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अनुक्रमणिका।
पृष्टांक.
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विषय
पृष्टांक. विषय विष लिप्त शस्त्र से बिद्ध के लक्षण ९२५ | रक्त में मिलकर विषका वढना शल्याकर्षण मे कर्तव्य
सर्पागाभिहत के लक्षण विष लिप्त शस्त्रविद्ध की चिकित्सा
शंका विषके लक्षण दुर्गेधित व्रण का उपाय
सविषनिविष दंश के लक्षण विषदेने बालों का वर्णन
दर्वीकरादि का प्रथम बेग गरके लक्षण गर पीडित के लक्षण
दर्वीकर के द्वितीय वेग गर पीडित का नाश
मण्डलिदष्ट के वेगों का लक्षण
राजिमान् के वेगों के लक्षण गर पीडित का कृत्य
बेगों का साध्या साध्यत्व गर विष पर अवलेह
जल के सर्पो का वर्णन गरो पहताग्नि का उपाय
त्याज्य विष दष्ट के कक्षण बिष जन्य तृषा का उपाय
अन्य लक्षण सौमें एक का जीवन
अन्य लक्षण क्षुधादि द्वारा विषकी वृद्धि ९२८
अन्य लक्षण शरद में विष की मंद बीर्यता
विष शांति में शीघ्रता . वैद्य को उपदेश
विषके लने का काल फफज विषमे कर्तव्य पैत्तिक विष में कर्तव्य
देश का उत्कर्तन
दष्टपुरुष का कर्तव्य वातिक विष का उपाय
दंशस्थान पर बंधन विष में घृत को उत्तमता
दंशका उद्धरण विषको साध्यासाध्यत्व
दंश दहनादि ___षत्रिशोऽध्यायः ।
अगद से बारबार लेपन
विषफैलने पर सिराज्यध सों के तीन भेद
सविषरुधिर के लक्षण द-करादि के विष के गुण विषोल्बणतां का काल
अदृष्यसिराओं में रक्तमोक्षण दर्वी कर सौ के लक्षण
सूतशेषरक्त का स्तंभन मंडली के लक्षण
अस्कन्नादि रक्तमें मुछी राजिमान के लक्षण
स्कन्नरुधिर में शांति गोधर के लक्षण
विषशांतहोने पर घृतपान व्यंतरा के लक्षण
विषार्त को वमन सर्प के काटने का कारण
सुजंग दोषाधनुसार क्रिया कारणानुसार चिकित्सा
किरदष्ट में पानादि व्यंतर सर्पका मार्ग में बैठना
कालेसांप की दवा दष्टका साध्यासाध्य विचार
" । राजिमान सोको दवा
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