Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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के विष को अमृत के रूप में परिणत करके इन शब्दों को बढ़ाया है और आर्यत्व एवं आर्यपथ को दिव्य, भव्य एवं उज्ज्वल-समुज्ज्वल बनाया है।
आचारांग क्या है :
प्रस्तुत आगम के नाम से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें आचार का वर्णन है। इसमें प्रायः साध्वाचार का वर्णन है। इसी कारण यह सब अंगों एवं आगमों में महत्त्वपूर्ण एवं सब अंग-शास्त्रों का सारभूत ग्रन्थ माना गया है। क्योंकि जीवन का, साधना का लक्ष्य मोक्ष है और मोक्ष-प्राप्ति के लिए सम्यक् दर्शन और ज्ञान के साथ सम्यक्-आचार का होना आवश्यक है। अतः मुक्ति-प्राप्ति का साधन आचार है और आचारांग में आचार का ही वर्णन है। भगवान महावीर के उपदेश या द्वादशांगी का उद्देश्य भी मोक्ष-मार्ग को बताना है। इसलिए आचारांग में सब अंगों का निचोड़ समाविष्ट है और इसी कारण इसे सब अंग-सूत्रों में सर्वप्रथम स्थान दिया गया है।
प्रस्तुत-आगम दो श्रुत-स्कंधों में विभक्त है। प्रथम श्रुतस्कंध में पंचाचारों1. ज्ञान आचार, 2. दर्शन आचार, 3. चारित्र आचार, 4. तप आचार और 5. वीर्य आचार का सूत्र-शैली में सैद्धान्तिक वर्णन किया गया है और द्वितीय श्रुतस्कन्ध में साधना में प्रयुक्त होने वाले नियमों को गिना दिया गया है। प्रस्तुत जिल्द में प्रथम श्रुतस्कन्ध ही प्रकाशित किया जा रहा है। अतः हम यहां संक्षिप्त में प्रथम श्रुतस्कन्ध का ही परिचय देना उपयुक्त समझते हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध नव अध्ययनों में विभक्त है और नव अध्ययन इक्यावन उद्देशकों में विभक्त हैं।
प्रथम अध्ययन - प्रस्तुत आगम के प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन का नाम-शस्त्र-परिज्ञा है। इसके सात उद्देशक हैं। इसमें यह बताया गया है कि शस्त्र महाभय का कारण है। इससे (शस्त्र से) वैर विरोध बढ़ता है और वैर विरोध के बढ़ने से संसार-परिभ्रमण बढ़ता है। शस्त्र द्रव्य और भाव से दो प्रकार के हैं-गाली-गलौच, अपशब्द, लाठी-डंडे से लेकर रिवाल्वर, बन्दूक, अणु-बम, उद्जन बम और राकेट तक के हथियार द्रव्य शस्त्र हैं और राग-द्वेष, काम, क्रोध, भय, लोभ, मोह, माया आदि मनोविकार भाव शस्त्र हैं। भाव शस्त्रों-काषायिक भावों की भयंकरता के अनुरूप ही द्रव्य शस्त्रों में