Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003614/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ले. डॉ. शीवप्रसाद खड-१ Jain Education in or Private & Personal Use on Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर ग्रंथावली क्रमांक- ५३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भाग-१ : लेखक : डॉ० शिवप्रसाद : प्रकाशक : आ० ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर सुभाषचौक, गोपीपुरा, सूरत Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (खंड - १) ले. डॉ. शिवप्रसाद JAIN SWETAMBAR GACHCHHO KA SAMKSHIPTA ITIHAS By : Dr. Sivaprasad मूल्य : २०० रूपये प्रत : ५०० प्राप्ति स्थान : • आ. ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर सुभाष चौक, गोपीपुरा, सूरत-३९५००१ E-mail : omkarsuri@rediffmail.com mehta_sevantilal@yahoo.co.in (मो.) ९८२४१५२७२७ (सेवंतीभाई महेता) ॐकार साहित्य निधि विजयभद्र चेरिटेबल ट्रस्ट हाईवे, भीलडीयाजी (बनासकांठा) फोन : ०२७४४-२३३१२९, २३४१२९ • सरस्वती पुस्तक भंडार हाथीखाना, रतनपोल, अहमदाबाद-३८० ००१ मोतीलाल बनारसीदास 40-UA, नेहरूनगर, नई दिल्ली. मुद्रक : किरीट ग्राफिक्स - अहमदाबाद (मो०) ९८९८४९००९९ E-mail : kiritgraphics@yahoo.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ग्रंथप्रकाशन सौजन्य HI11111111 वि.सं. २०६५ में पू.आ.भ. मुनिचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के सुंदरबा आराधनाभवन रांदेर रोड संघ में हुए आराधना सभर चातुर्मास की अनुमोदना हेतु 11111 इस ग्रंथ प्रकाशन का संपूर्ण लाभ श्री रांदेर रोड जैन श्वेताम्बरमूर्तिपूजक संघ ने ज्ञानद्रव्य से लिया है। 111 श्री संघ की श्रुतभक्ति की भूरि-भूरि अनुमोदना Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय गच्छों के इतिहास का अपने आप में एक खास महत्त्व है / डॉ. शिवप्रसादजी कई वर्षों से गच्छों के इतिहास के बारे में कार्य कर रहे हैं। आप के 'तपागच्छ का इतिहास', 'अंचलगच्छ का इतिहास' आदि स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रगट हो चुके हैं। अन्यान्य गच्छों के छोटे-बड़े लेख विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रगट हुए हैं / इन विविध गच्छों के विषय के भिन्न-भिन्न लेख यहाँ ग्रंथस्थ होकर प्रगट हो रहे हैं। गच्छों के इतिहास की सामग्री ग्रंथस्थ होकर एक साथ ही उपलब्ध होने से अध्येताओं को बड़ी सरलता रहेगी / - इसका अध्ययन करके अतीत के इतिहास को समझने की कोशिश करें / इस ग्रंथ के प्रकाशन का संपूर्ण लाभ श्री रांदेर रोड जैन संघ सूरत ने पू॰आ.भ. श्री मुनिचन्द्रसूरि म.सा. के वि०सं० 2065 में संघ में हुए चातुर्मास की विविध आराधनाओं की अनुमोदना हेतु लिया है। श्री संघ की श्रुतभक्ति की भूरि-भूरि अनुमोदना / -प्रकाशक Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण इतिहासरसिक, साहित्यसर्जक मुनिजनों और उनके सुकृत्यों को विश्व पटल पर उपस्थित करने वाले वर्तमान युग के मनीषियों तथा इस रचना के प्रेरणास्रोत स्व. अगरचन्दजी नाहटा एवं स्व. भंवरलालजी नाहटा की पुण्य स्मृति में इसके शिल्पकार सुप्रसिद्ध कलाविद् एवं इतिहासमर्मज्ञ प्रो. एम. ए. ढांकी को सादर समर्पित मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सब तोर । तेरा तुझको सोंपते, क्या लागे है मोर ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दो शब्द विश्व के सभी धर्म समय-समय पर विभिन्न शाखाओं उपशाखाओं में विभाजित होते रहे हैं । जैनधर्म भी इसका अपवाद नहीं है । इसके दोनों प्रमुख सम्प्रदाय - श्वेताम्बर और दिगम्बर भी विभिन्न उपसम्प्रदायों में विभक्त हैं। मूर्तिपूजक और अमूर्तिपूजक विभाग दोनों ही सम्प्रदायों में विद्यमान हैं । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में १६वीं शताब्दी में लोंकाशाह द्वारा मूर्तिपूजा विरोधी उपदेश प्रारंभ हुआ जिसके फलस्वरूप स्थानकवासी सम्प्रदाय की स्थापना हुई । इसी सम्प्रदाय में १८वीं शताब्दी में आचार्य भिक्षु द्वारा तेरापंथ की स्थापना की गयी । दिगम्बर परम्परा में भी १९वीं शताब्दी में तारणस्वामी द्वारा मूर्तिपूजा विरोधी पंथ की स्थापना की गयी जो तारणपंथ के नाम से प्रसिद्ध है । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय ईस्वीसन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में विभिन्न गण - कुल और शाखाओं में विभक्त रहा । कल्पसूत्र की 'स्थविरावली' में इसका विस्तृत विवरण पाया जाता है । इस में से अधिकांश का उल्लेख मथुरा के कंकालीटीला के उत्खनन से प्राप्त विभिन्न पुरावशेषों पर उत्कीर्ण अभिलेखीय साक्ष्यों में भी पाया जाता है, अतः इसकी प्रामाणिकता सिद्ध होती है । साहित्य और पुरातत्त्व का यह मेल अपने आप में अद्वितीय है । कल्पसूत्र 'स्थविरावली' में उल्लिखित कोटिक गण, नाइली शाखा और विद्याधरी शाखा को छोड़कर शेष गण-कुल और शाखाओं का आगे की शताब्दियों में कोई भी उल्लेख प्राप्त नहीं होता । नाइलीशाखा और विद्याधरी शाखा आकोटा से प्राप्त ईस्वीसन् की छठी शताब्दी और उसके बाद की शताब्दियों के पुरावलेखों में नाइलकुल और विद्याधर कुल के रूप में दिखाई देते हैं । ईस्वीसन् की ६ठी शताब्दी में ही दो नये कुलों चन्द्र और निवृत्ति का भी उल्लेख आकोटा से प्राप्त होता है । चूंकि कल्पसूत्र 'स्थविरावली' में इनका उल्लेख नहीं है अतः यह सुनिश्चित है कि ये कुल बाद में अस्तित्व में आये । आठवीं दसवीं शताब्दी से श्वेताम्बर श्रमणसंघ का इतिहास इन्हीं चार कुलों और उनसे अस्तित्व में Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आये विभिन्न गच्छों का ही इतिहास है । इन में चन्द्रकुल और उससे निष्पन्न विभिन्न गच्छों का प्राधान्य रहा । वर्तमान में श्वेताम्बर परम्परा में जो भी गच्छ प्रवर्तमान हैं वे सभी स्वयं को चन्द्रकुलीन ही कहते हैं । श्वेताम्बर श्रमणसंघ विभिन्न कारणों से समय-समय पर विभिन्न गच्छों में विभाजित होता रहा है। अनेक गच्छों का नामकरण विभिन्न नगरों अथवा ग्रामों के आधार पर हुआ, जैसे कोरटा से कोरंटगच्छ, चैत्रपुर (चित्तौड़) से चैत्रगच्छ, खंडाला से खंडिलगच्छ, काशहद से काशहदगच्छ, अडालजा से अडालजीयगच्छ, नागपुर (नागौर) से नागपुरीतपागच्छ, वरमाण से ब्रह्माणगच्छ, वायड से वायडीयगच्छ, सांडेराव से संडेरगच्छ, हर्षपुर (हरसोर) से हर्षपुरीयगच्छ आदि । इसी प्रकार घटना विशेष से भी विभिन्न गच्छ अस्तित्व में आये और उनका नामकरण भी उसी आधार पर हुआ, जैसे आचार्य सर्वदेवसूरि द्वारा आबू पर्वत के तलहटी में अपने आठ शिष्यों को वट वृक्ष के नीचे एक साथ आचार्य पद प्रदान करने के कारण उनका शिष्य समुदाय वटगच्छीय कहलाया । चूंकि वटगच्छ से वटवृक्ष के समय अनेक शाखायें-प्रशाखायें अस्तित्व में आयीं इसी लिये इसका एक नाम बृहद्गच्छ भी प्रचलित हो गया । इसी गच्छ के आचार्य चन्द्रप्रभसूरि द्वारा वि०सं० ११५६ में पाक्षिकपर्व पूर्णिमा को मनायी जाये या चतुर्दशी को; इस प्रश्न पर पूर्णिमा का पक्ष ग्रहण करने के कारण उनकी शिष्य संतति पूर्णिमापक्षीय या पूर्णिमगच्छीय कहलायी । इसी प्रकार बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के एक शिष्य पद्मप्रभसूरि द्वारा नागपुर (वर्तमान नागौर) में उग्रतप करने के कारण वहां के शासक द्वारा उन्हें 'तपा' विरुद् प्राप्त हुआ, इस आधार पर उनकी शिष्यसंतति नागपुरीय-तपागच्छीय कहलायी । इसी गच्छ में विक्रम की १६वीं शती में पार्श्वचन्द्रसूरि नामक एक प्रभावक आचार्य हुए अतः उनकी शिष्यसंतति पार्श्वचन्द्रगच्छीय कहलायी । यह गच्छ आज भी प्रवर्तमान है । इसी प्रकार सुविहितमार्गीय आचार्य वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि द्वारा चौलुक्यनरेश दुर्लभराज की राजसभा में चैत्यवासियों को शास्त्रार्थ में परास्त कर सुविहितमार्ग का प्रबल समर्थन किया । इस आधार पर उनकी शिष्यसंतति सुविहितमार्गीय कहलायी जो बाद में खरतरगच्छ के नाम से विख्यात हुई और आज भी प्रवर्तमान है। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रपुर (वर्तमान चितौड़) से अस्तित्व में आये चैत्रगच्छ के उपाध्याय देवचन्द्र के शिष्य जगच्चन्द्रसूरि के आघाटपुर में उग्रतप करने से प्रभावित हो कर वहाँ के शासक जैत्रसिंह ने वि.सं. १२८५ में उन्हें 'तपा' विरुद् से सम्मानित किया । इस घटना के आधार पर उनकी शिष्यसंतति तपागच्छीय कहलायी । अनेक शाखाओं में विभक्त यह गच्छ आज भी संख्या की दृष्टि से श्वेताम्बर श्रमण परम्परा में सबसे बड़ा और प्रभावशाली रूप में विद्यमान है । ___ इसी प्रकार बृहद्गच्छीय आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य आर्यरक्षितसूरि द्वारा वि.सं. ११६८ में विधिमार्ग की प्ररूपणा और उसके पालन के कारण विधिपक्ष अस्तित्व में आया । घटना विशेष के कारण इसका नाम अंचलगच्छ और अचलगच्छ भी प्रचलित हुआ । वर्तमान में यह गच्छ अचलगच्छ के नाम से जाना जाता है। आज खरतरगच्छ, अचलगच्छ, तपागच्छ और पार्श्वचन्द्रगच्छ (तपागच्छ के ही अंतर्गत) को छोड़कर सभी गच्छ नामशेष हो चुके हैं। इन में से पार्श्वचन्द्रगच्छ को छोड़कर प्रथम तीन गच्छों का विस्तृत इतिहास स्वतंत्र पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो चुका है । अत: उनके सम्बन्ध में इस पुस्तक में कोई चर्चा नहीं की गयी है। इस पुस्तक में जिन गच्छों का वर्णक्रमानुसार संक्षिप्त इतिहास दिया गया है वे प्रायः देश की विभिन्न शोधपत्रिकाओं 'श्रमण'-वाराणसी, 'तुलसीप्रज्ञा'-लाडनूं'शोधादर्श'-लखनऊ; 'सामीप्य'-अहमदाबाद; 'संस्कृतिसन्धान'-वाराणसी; 'कलासरोवर'-वाराणसी, 'तित्थयर'-कलकत्ता आदि के विभिन्न अंकों में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं । इस प्रकार सम्पूर्ण सामग्री अत्यन्त बिखरी हुई थी। आचार्य श्री मुनिचन्द्रसूरिजी महाराज की महती कृपा से इस सम्पूर्ण सामग्री का एक पुस्तक के रूप में प्रकाशन संभव हो सका । अब से लगभग ५० वर्ष पूर्व अगरचन्दजी नाहटा एवं भंवरलालजी नाहटा ने यतीन्द्रसूरी अभिनन्दन ग्रंथ में प्रकाशित "श्वेताम्बर श्रमणों के गच्छों का संक्षिप्त इतिहास" नामक अपने लेख में विद्वानों से इस महत्त्वपूर्ण विषय पर शोधकार्य करने का आह्वान किया था साथ ही यह शंका भी प्रकट की थी Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कि जैन धर्म में इतिहास पर शोध कार्य करने वालों की संख्या नगण्य होने से शायद ही कोई इस कार्य को आगे बढाये । लगभग आधी शताब्दी बीत जाने पर भी इस दिशा में कोई कार्य न हो सका, यह आश्चर्य का विषय है । प्रो० एम० ए० ढांकी के निर्देशन में मैंने उन्हीं के सुझाव पर यह कार्य प्रारंभ किया । उन्होंने अपना अमूल्य समय निकाल कर इस में मुझे हर प्रकार का सहयोग दिया । इसी प्रकार महोपाध्याय विनयसागरजी - जयपुर और प्रो० सागरमलजी, वाराणसी ( अब शाजापुर - मध्यप्रदेश ) द्वारा समय-समय पर अमूल्य सहयोग और सुझाव प्रदान किया गया । इन सभी विद्वानों द्वारा प्राप्त सहयोग के लिये उनके प्रति आभार प्रकट करने के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं । स्व. प्रो० जगदीश नारायण तिवारी, प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, प्रो० विनोदचन्द्र श्रीवास्तव, प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी एवं पूर्व निर्देशक, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला द्वारा समय-समय पर विभिन्न मार्गदर्शन एवं सहयोग प्राप्त होता रहा, जिसके लिये लेखक उनका हृदय से आभारी है । महोपाध्याय विनयसागरजी ने प्रस्तुत कृति का प्राक्कथन लिखने की महती कृपा की है । जिसके लिये लेखक उसका सदैव ऋणी रहेगा । I इस पुस्तक में जो भी अच्छाइयां हैं, उसका सम्पूर्ण श्रेय इन विद्वानों को ही है और जो भी त्रुटियां हैं, वे मेरी हैं । अन्त में मैं उन सभी विद्वानों के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूँ, जिनकी कृतियों से मुझे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्राप्त हुई है । चैत्र सुदि नवमी, बुधवार वि०सं० २०६६ - शिवप्रसाद Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय सूची प्राक्कथन दो शब्द १-६ अध्याय एक अध्याय दो अध्याय तीन ७-२५ २६-५० अध्याय चार ५१-५३ गच्छों के इतिहास के मूल स्रोत श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अड्डाजलीय गच्छ का संक्षिप्त इतिहास आगमिक गच्छ/प्राचीन त्रिस्तुतिक गच्छ का संक्षिप्त इतिहास उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास काम्यकगच्छ का संक्षिप्त इतिहास काशहदगच्छ का संक्षिप्त इतिहास कोरंटगच्छ का संक्षिप्त इतिहास कृष्णर्षिगच्छ का संक्षिप्त इतिहास खंडिलगच्छ का संक्षिप्त इतिहास ५४-१४० १४१-२९० २९१-२९४ २९५-३०४ ३०५-३४९ ३५०-३७२ ३७३-३९८ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९९-४३६ ४३७-५०३ ५०४-५१० ५११-५२४ ५२५-५५१ ५५२-६२३ ६२४-६७१ ६७२-६९२ ६९३-७६८ ७६९-७७९ चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास चैत्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास जालिहरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास जीरापल्लीगच्छ का संक्षिप्त इतिहास थारापद्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास धर्मघोषगच्छ का संक्षिप्त इतिहास नाणकीयगच्छ का संक्षिप्त इतिहास नागपुरीयतपागच्छ का संक्षिप्त इतिहास नागेन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निवृत्तिकुल का संक्षिप्त इतिहास पल्लीवालगच्छ का संक्षिप्त इतिहास पार्श्वचन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास पिप्पलगच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्णतल्लगच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्णिमागच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्णिमागच्छ - प्रधानशाखा अपरनाम ढंढेरियाशाखा का संक्षिप्त इतिहास सार्धपूर्णिमागच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा का संक्षिप्त इतिहास ब्रह्माणगच्छ का संक्षिप्त इतिहास ७८०-८१० ८११-८३५ ८३६-९१० ९११-९३० ९३१-९६५ ९६६-९९७ ९९८-१०२२ १०२३-१०४३ १०४४-११२० Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२१-११३९ ११४०-११७४ ११७५-११८० बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास मडाहडागच्छ का संक्षिप्त इतिहास मोढगच्छ और मौढचैत्य यशोभद्रसूरिगच्छ का संक्षिप्त इतिहास राजगच्छ का संक्षिप्त इतिहास वायडगच्छ का संक्षिप्त इतिहास ११८१-११८४ ११८५-१२०९ १२१०-१२२६ विद्याधरकुल / विद्याधरगच्छ १२२७-१२३८ १२३९-१२७१ १२७२-१२८१ संडेरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास सरवालगच्छ का संक्षिप्त इतिहास हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ गच्छ का संक्षिप्त इतिहास हारीजगच्छ का संक्षिप्त इतिहास सहायक ग्रन्थसूची १२८२-१३४२ १३४३-१३५४ १३५५-१३६५ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ આચાર્યશ્રી કારસૂરિ જ્ઞાન મંદિર ગ્રંથાવલી પ્રભુવાણી પ્રસાર સ્થંભ યોજના - ૧,૧૧,૧૧૧ ૧. શ્રી સમસ્ત વાવ પથક જૈન. મૂર્તિ પૂ. સંઘ-ગુરુમૂર્તિ પ્રતિષ્ઠા- સ્મૃતિ ૨. શેઠશ્રી ચંદુલાલ કલચંદ પરીખ પરિવાર-વાવ (બનાસકાંઠા) ૩. શ્રી સિદ્ધગિરિ ચાતુર્માસ આરાધના (સં.૨૦૫૭) દરમ્યાન થયેલ જ્ઞાનખાતાની આવકમાંથી હસ્તે શેઠશ્રી ઘુડાલાલ પુનમચંદભાઈ હેક્કડ પરિવાર-ડીસા (બનાસકાંઠા) ૪. શ્રી ધર્મોત્તેજક પાઠશાળા શ્રી ઝીંઝુવાડા જૈન સંઘ, ઝીંઝુવાડા. ૫. શ્રી સુઈગામ જૈન સંઘ. સુઈગામ (વાવ પથક) બનાસકાંઠા ૬. શ્રી વાંકડિયા વડગામ જૈન સંઘ. વાંકડિયા વડગામ ૭. શ્રી ગરબડી જૈન સંઘ. ગરાંબડી (વાવમથક) બનાસકાંઠા. ૮. શ્રી રાંદેરરોડ જૈન સંઘ – અડાજણ પાટીયા, રાંદેર રોડ, સૂરત. ૯. શ્રી ચિંતામણી પાર્શ્વનાથ જૈન સંઘ-પાર્લા (ઈસ્ટ)-મુંબઈ ૧૦.શ્રી આદિનાથ તપાગચ્છ શ્વેતાંબર મૂપૂિ. જૈન સંઘ, કતારગામ, સૂરત. ૧૧.શ્રી કૈલાસનગર જૈન સંઘ, કલાસનગર, સૂરત. ૧૨. શ્રી ઉચોસણ જૈન સંઘ, સમુબા શ્રાવિકા આ.ભવન સૂરત (જ્ઞાનદ્રવ્ય) ૧૩.શ્રી વાવ પથક જૈન સંઘ, અમદાવાદ પ્રભુવાણી પ્રસારક યોજના ૬૧,૧૧૧ ૧. શ્રી દિપા શ્વેતાંબર મૂ. પૂ. જૈન સંઘ રાંદેરરોડ, સૂરત ૨. શ્રી સીમંધરસ્વામી મહિલા મંડળ પ્રતિષ્ઠા કોમ્લેક્ષ, સૂરત Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પ્રભુવાણી પ્રસાર અનુમોદક - યોજના - ૩૧,૧૧૧ ૧. મોરવાડા જૈન સંઘ-મોરવાડા (બનાસકાંઠા) ૨. શ્રી ઉમરા જૈન સંઘ સૂરત ૩. શ્રી શત્રુંજય ટાવર જૈન સંઘ - સૂરત ૪. શ્રી ચૌમુખજી પાર્શ્વનાથ જૈન મંદિર ટ્રસ્ટ શ્રી જૈન શ્વેતાંબર તપાગચ્છ સંઘ-ગઢ સિવાના (રાજ.) ૫. શ્રીમતી તારાબેન ગગલદાસ વડેચા - ઉચોસણા ૬. સુખસાગર અને મલ્હાર એપાર્ટમેન્ટ સૂરતની શ્રાવિકાઓ તરફથી. ૭. રવિજ્યોત એપાર્ટમેન્ટ, સૂરતની શ્રાવિકાઓ તરફથી. ૮. અઠવાલાઇન્સ જૈન સંઘ, પાંડવ બંગલો, સૂરતની શ્રાવિકાઓ તરફથી. ૯. શ્રી આદિનાથ તપાગચ્છ શ્વે. મૂર્તિપૂજક જૈન સંઘ, કતારગામ, સૂરત ૧૦.શ્રીમતિ વર્ષાબેન કર્ણાવત-પાલનપુર પ્રભુવાણી પ્રસાર ભક્ત - યોજના - ૧૫,૧૧૧ ૧. શ્રી દેસલપુર (કંઠી) શ્રી પાર્શ્વચંદ્રગચ્છ (ઉપા. શ્રી ભુવનચંદ્રજીની પ્રેરણાથી) ૨. શ્રી ધ્રાંગધ્રા શ્રી પાર્શ્વચંદ્રસૂરીશ્વર ગચ્છ (ઉપા. શ્રી ભુવનચંદ્રજીની પ્રેરણાથી) ૩. શ્રી અઠવાલાઇન્સ જૈન સંઘ, સૂરત શ્રાવિકા ઉપાશ્રય, સૂરત. 木市市 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका श्रमण भगवान् महावीर ने तीव्र एवं कठोरतम साधना कर, केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् सर्वजनहिताय उन्होंने सदुपदेश दिया। स्वानुभूति के आलोक में कथित उनकी वाणी को सुनकर अनेक लोक प्रभावित हुए। अनेक राजा, महाराजा, उनकी रानियाँ, राजकुमारियाँ, राजकुमार, सार्थवाह, श्रेष्ठि, विद्वद्वर्ग तथा सभी वर्गों एवं वर्णों के नारी-पुरुष उनके शिष्य बने, गणधर आदि बने। अपने विशाल शिष्य समुदाय को दीक्षित कर उन्होंने अपने तीर्थ की स्थापना की। इन तीर्थ को अनुशासित और सुव्यवस्थित रखने के लिये उन्होंने चतुर्विध संघ की व्यवस्था प्रदान की। इसी संघ की पावनता की परख कर ही आप्त शास्त्रकारों ने इसे तीर्थ, महातीर्थ, धर्मतीर्थ, सर्वोदय तीर्थ, अभ्युदयकारी शासन आदि गरिमा मण्डित संज्ञाओं/नामों से अभिहित किया है। चतुर्विध संघ/तीर्थ की सुव्यवस्था एवं उत्कर्ष के लिये परवर्ती श्रुतधर तथा आप्त आचार्यों ने गच्छ, कुल, गण व संघ के नाम से उपविभाग भी किये हैं। जितने श्रमण एवं श्रमणियों की सुविधापूर्वक देख-रेख, शिक्षादीक्षा व व्यवस्था सम्पन्न की जा सकती हो, ऐसे समूह को 'गच्छ' कहा जाता है और उसके नायक या व्यवस्थापक को 'गच्छाचार्य' कहा जाता है। अनेक गच्छों में विभक्त इस समुदाय को 'कुल' कहा गया है, अर्थात् अनेक गच्छों का एक कुल होता है। कुल के प्रमुख नायक को 'कुलाचार्य' कहा गया है। इसी प्रकार अनेक कुलों के समूह को 'गण' और उसके अधिपति को 'गणाचार्य' तथा अनेक गणों के समुदाय को 'संघ' एवं संघाधिपति आचार्य को 'गणधर', 'संघाचार्य' के गौरव से विभूषित किया गया है। यही संघाचार्य चतुर्विध संघ की सुव्यवस्था एवं कार्य-संचालन करता है। 15 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प-सूत्रगत स्थविरावली के अनुसार देवर्धिगणि क्षमाश्रमण के समय तक इस तीर्थ में ८ गण, २७ कुल और ४५ शाखाओं का प्रचलन था और इनके अधिकारी/शासक/व्यवस्थापक वर्ग को क्रमशः गणधर, आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणि और गणादच्छेदक पदों से संबोधित किया गया है। वर्तमान समय में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज में जो भी खरतरगच्छ, तपागच्छ, अंचलगच्छ आदि गच्छों के नाम से प्रचलित/प्रसिद्ध है, वे सब कोटिक गण, चन्द्रकुल और वज्रशाखा के अन्तर्गत आते हैं और खरतर, तपा आदि 'बिरुद/उपाधि' के धारक हैं। वस्तुतः ये पृथक्-पृथक् गच्छ नहीं है। उनका तो सुस्थितसूरि का कोटिक गण, चन्द्रसूरि का चन्द्रकुल एवं आर्यवज्र से निसृत वज्रशाखा ही गण, कुल एवं शाखा है। ये बिरुद तो उन उन आचार्यों की उत्कृष्ट संयम-साधना को देखकर तत्कालीन नरेशों ने प्रदान किये थे अथवा उनके विशिष्ट गुणों या क्रिया-कलापों से उनकी परम्परा उक्त बिरुदों से प्रसिद्ध हुई थी। (निष्कर्ष यह है कि वर्तमान के समस्त गच्छ ही उन्हीं आचार्य की संतानें हैं और इन सबका एक ही गण है और वह है, कोटिक गण।) अधुना गच्छों के व्यवस्थापक नेता भी आचार्य, महोपाध्याय, उपाध्याय स्थविर, प्रवर्तक, पन्यास एवं गणि पद को सुशोभित करते हैं। महिला-श्रमणी वर्ग में सुसंचालिका अधिकारिणी पूर्वकाल के समान ही आज भी ‘महत्तरा, प्रवर्तिणी, स्थविरा और गणिनी' पद को विभूषित करने वाली होती है। गण शब्द का अर्थ - गण शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए पाइयसद्दमहण्णवो में लिखा गया है कि गण पुं [गण] १ समूह, समुदाय, यूथ, थोक; (जी ३४; कुमा; प्रासू ४; ७५; १५१)। २ गच्छ, समान आचार व्यवहार वाले साधुओं का समूह; (कप्प)। 16 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गम शब्द 'गम्लु गतौ' इस धातु से गच्छ शब्द निष्पन्न हुआ है। जिसका धातु के अनुसार अर्थ गमन होता है। ये गत्यर्थाः ते ज्ञानार्थाः' व्युत्पत्ति से गच्छ शब्द निष्पन्न होता है। ___ ८४ गच्छों की मान्यता परम्परानुसार रही है। विक्रम संवत् ९९४ में (तपागच्छ पट्टावली पृष्ठ ५३) उद्योतनसूरि ने अर्बुदाचल के समीप टेली ग्राम की सीमा में रात्रि के समय शुभ योग देखकर सर्वदेवसूरि आदि आठ आचार्यों की पदस्थापना की। वहीं से वटगच्छ, बृहद्गच्छ चला। तभी से ८४ गच्छों की परम्परा चल पड़ी। खरतरगच्छ की परम्परा के अनुसार श्री वर्द्धमानाचार्य जो कि ८४ मठों के अधिपति थे, चैत्यवासी आचार्य रहे। उन्होंने चैत्यवास से विरक्त होकर उद्योतनसूरि के समीप दीक्षा ग्रहण की। ८४ मठों की मान्यता ही ८४ गच्छों के रूप में प्रचलित हो गई। श्री वर्द्धमानसूरि के शिष्य श्री जिनेश्वरसूरि प्रथम हुए। तभी से ८४ गच्छों की परम्परा सभी को मान्य हो गई किन्तु कोई ऐतिहासिक प्रमाणों के अभाव में ऐसा नहीं कहा जा सकता। दसवीं शताब्दी से लेकर सत्रवहीं शती तक में जितने भी गच्छ उपलब्ध थे वे सब ८४ गच्छों में सम्मिलित होते गए और ८४ की मान्यता दृढ़ होती गई। ___ योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने गच्छमत प्रबन्ध नामक पुस्तक में इन प्राप्त गच्छों का उल्लेख और इतिवृत्त दिया है। डॉ. शिवप्रसाद ने इस पुस्तक विविध गच्छ पट्टावली संग्रह में ३८ गच्छों का विवरण दिया है। अध्याय १, गच्छों के इतिहास के मूल स्रोत में गच्छों की प्रारम्भिक स्थिति का अवलोकन करते हुए प्रारंभिक स्वरूप का विवेचन किया गया है। १. पट्टावली - पट्टावलियों में पट्टधर आचार्यों का ही वर्णन किया जाता है अन्य आचार्यों अथवा उपाध्यायों का वर्णन नहीं रहता है। 17 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. प्राचीन उल्लेख - प्राचीन प्रतिष्ठापित मूर्तियों, शिलालेखों एवं पादुकाओं के लेखों का आधार मुद्रित से लिया गया है। ३. प्राचीन ताम्रपत्रादि लेखों के उल्लेखों का आधार लिया गया है। ४. ग्रन्थ रचनाओं की प्रशस्ति का आधार मुद्रित से लिया गया है और लेखन प्रशस्तियों का भी आधार लिया गया है। द्वितीय अध्याय में कल्पसूत्र की द्वितीय वाचना स्थिविरावली का आधार दिया है और इसमें इस स्थिविरावली के अनुसार श्रमण भगवान महावीर के शिष्य गौतम से लेकर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक पूर्ण परम्परा दी है। पूर्ण परम्परा देते हुए इसमें उल्लिखित गण, संघ और कुलों का पूर्ण विवरण दिया है। तृतीय अध्याय में श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय दिया गया है। इन लेखों के आधार पर लेखक ने इस ग्रन्थ का निर्माण किया है । लेखक स्वयं स्वीकार करता है कि कोटिकगण, चन्द्रकुल, वज्रशाखा सबसे प्राचीन परम्परा रही। किन्तु अन्य गच्छों के साथ इस कोटिकगण का या वज्रशाखा का क्या संबंध रहा है इस पर कोई प्रकाश नहीं डाला गया है । लेखक ने तपागच्छ, अंचलगच्छ और खरतरगच्छ के संबंध में इस ग्रन्थ में विचार नहीं किया है क्योंकि तपागच्छ का इतिहास और अंचलगच्छ का इतिहास लेखक ने स्वयं ने लिखा है और खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास स्वयं (महोपाध्याय विनयसागर) ने लिखा है अत: इन तीन गच्छों को छोड़ दिया गया है । चन्द्रकुल के संबंध में विचार अवश्य किया गया है और चन्द्रकुल से संबंधित गच्छों का भी उल्लेख किया गया है। जो कि आगे वर्णित है। गच्छों के नामकरण के सम्बन्ध में अलग-अलग उल्लेख प्राप्त होते हैं। कई गच्छ ग्रामों के नाम से सम्बद्ध है, कई गच्छ आचार्यों के नाम से सम्बद्ध है और कई गच्छ मान्यता भेद से सम्बद्ध है । उसमें ग्रामों के नाम से जो गच्छ प्रचलित हुए हैं, वे निम्न हैं: 18 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. अड्डालिजीय गच्छ अहमदाबाद के निकट अडालज स्थान । २. उपकेश गच्छ - उपकेशपुर (ओसियां ) । ३. काम्यक गच्छ ४. काशहद गच्छ कोरंट गच्छ १०. थारापद्रगच्छ ११. नाणकीयगच्छ ५. कोरटा । ६. खंडिलगच्छ - खंडेला । ७. चैत्रगच्छ - चित्तौड़ के निकट । ८. जालिहरगच्छ जाल्योधर । ९. जीरापल्लीगच्छ जीरावला । - - नाणा । १२. ब्रह्माणगच्छ ब्रह्माण । १३. संडेरकगच्छ - संडेर । १४. हर्षपुरगच्छ - हरसोर । १५. चैत्रगच्छ - चैत्रपुर । १६. नागपुरीयतपागच्छ - नागौर । । भरतपुर के निकट कामा प्रदेश । कासीद्रा । १७. पल्लीवालगच्छ - पाली । १८. पार्श्वचन्द्रगच्छ - नागौर । - - वरमाण के निकट, पीपल वृक्ष के नीचे । १९. पिप्पलगच्छ २०. पूर्णतल्लगच्छ - संभवत: पुन्ताला (जोधपुर प्रदेश ) । २१. भीमपल्लीयाशाखा भीमपल्ली २२. भृगुकच्छशाखा भडौच २३. ब्रह्माणगच्छ २४. वटगच्छ / बृहद्गच्छ - वटवृक्ष के नीचे । २५. मडाहडागच्छ मडार । थराद । - - ब्रह्माण (वरमाण, आबू के निकट ) 19 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६. मोढगच्छ - मोढेरक। २७. वायडगच्छ - वायड। २९. हारीजगच्छ - हारीज, शंखेश्वर के पास। कई गच्छ संस्थापक आचार्यों के नाम से प्रसिद्ध हुए जैसेयशोभद्रसूरि से यशोभद्रगच्छ। सैद्धान्तिक मतभेद यह वैचारिक मतभेद के कारण जो गच्छ उत्पन्न हुए हैं उनमें पूर्णिमापक्ष (सार्द्धपूर्णिमा पक्ष) आदि। इसके पश्चात् लेखक द्वारा लिखित गच्छों का वर्णन अकारानुक्रम से प्राप्त होता है। १. अड्डालिजीय गच्छ - इसके केवल १२वीं शताब्दी के ४ प्रतिष्ठा लेख ही प्राप्त होते हैं। २. आगमिक गच्छ - यह वडगच्छ की शाखा मानी जाती है और यहीं से संवत् ११४९ में पूर्णिमागच्छ का प्रारम्भ हुआ। पूर्णिमागच्छ की एक शाखा तेरहवीं शताब्दी में आगमिक गच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई । आगमिक गच्छ का यह अपरनाम त्रिस्तुतिकमत हुआ। आगमिक गच्छ की शाखाओं में धन्धूकीया शाखा और विडालंबीया शाखा भी प्राप्त होती है। मुनिसागरसूरि रचित आगमिकगच्छीय पट्टावली में शीलगुणसूरि से लेकर मुनिसागरसूरि तक पट्टावली प्राप्त होती है और दूसरी पट्टावली शीलगुणसूरि से लेकर मेघरत्नसूरि तक प्राप्त होती है। साहित्यिक साक्ष्यों में हेमरत्नसूरि के शिष्य साधुमेरु द्वारा पुण्यसार रास और अन्य रचनाओं में अमररत्नसूरि फागु प्राप्त होता है। क्षमाकलश द्वारा १५५१ में रचित ललितांगकुमार रास, मतिसागरसूरि द्वारा १५९४ में रचित लघुक्षेत्रसमास चौपई, उदयधर्मसूरि ने मलयसुन्दरी रास, मुनिसुन्दरसूरि ने १४९९ में रचित धर्मकल्पद्रुम, शीलसिंहसूरि रचित कोष्ठकचिन्तामणि स्वोपज्ञ टीका और वरसिंहसूरि संवत् १६८१ में रचित आवश्यक बालावबोधवृत्ति आदि भी प्राप्त है। आगमिक गच्छ के संवत् १४२० से लेकर १६८३ तक २१८ मूर्तिलेख प्राप्त हैं। 20 . Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. उपकेशगच्छ - कहा जाता है कि भगवान महावीर के ७०वें वर्ष श्री रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर (ओसिया) में ओसवाल जाति की स्थापना की थी। लेखक लिखता है कि- परम्परानुसार इस गच्छ के आदिम आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीर संवत् ७० में ओसवाल जाति की स्थापना की, परन्तु किसी भी ऐतिहासिक साक्ष्य से इस तथ्य की पुष्टि नहीं होती। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ओसवालों की स्थापना और इस गच्छ की उत्पत्ति का समय ईस्वी सन् की आठवीं शती के पूर्व नहीं माना जा सकता। (पृष्ठ ४६) । उपकेशगच्छ चैत्यवासी आम्नाय का था। इसकी आवान्तर शाखाओं का भी जन्म हुआ। १२६६ में द्विवन्दनीक शाखा, १३०८ में खरतपाशाखा और १४९८ में खादिरि शाखा अस्तित्व में आयी। इस परम्परा में कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि और सिद्धसूरि इन तीन नामों की पुनरावृत्ति होती रहती थी। मेरे देखते-देखते श्री प्रेमसुन्दरजी फलोदी और मुकुन्दसुन्दरजी नागौर में विद्यमान थे और अभी पद्मसुन्दर नामक यति विद्यमान है। आचार्यों में अन्तिम देवगुप्तसूरि २०वीं सदी में विद्यमान थे। देवगुप्तसूरि नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति (१०७४), सिद्धसूरि (११९२) क्षेत्रसमासटीका, कक्कसूरि; नाभिनन्दनजिनोद्धर प्रबन्ध अपरनाम शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारप्रबन्ध (१३९३), कक्कसूरि-उपकेशगच्छप्रबन्ध (१३९३)। उपकेशगच्छपट्टावली- (१५वीं सदी का अन्त) उपकेशगच्छपट्टावली २०वीं शताब्दी। श्री देवगुप्तसूरि (ज्ञानसुन्दरजी) ने भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास दो भागों में लिखा है, जो वस्तुतः वह इतिहास भाटों की बिरुदावलियों के आधार पर लिखा गया है। कहा जाता है कि वीर निर्वाण संवत् ८४ में श्री रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर और कोरण्टगच्छ के मन्दिरों की प्रतिष्ठा एक साथ करवाई थी। संवत् १०११ से १९१८ तक १२९ मूर्ति लेख प्राप्त होते हैं। लेखन प्रशस्तियों में उत्तराध्ययनसूत्र, सुखबोधावृत्ति (१४८९), धर्मरुचि-अजापुत्रचौपई प्राप्त हैं। 21 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस शाखा के अन्तिम आचार्य २०वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक बीकानेर में विद्यमान थे और वे कँवलागच्छ के अधिपति माने जाते थे। बीकानेर में चौदह गवाड़ कँवलागच्छ की ही मानी जाती है। ४. काम्यकगच्छ - यह शाखा राजस्थान प्रान्त के भरतपुर जिले में अवस्थित कामा नामक स्थान से हुई है। बयाना में ११३० का एक शिलालेख प्राप्त होता है। जिसमें कि निवृत्तिकुल का उल्लेख किया गया है और महेश्वरसूरि से सम्बन्ध रखता है। इसका कोई विशेष उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। ५. काशहृदगच्छ - आबू पर्वत की तलहटी में कासीन्द्रा या कायंद्रा विद्यमान है उसी से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। जालिहरगच्छीय देवप्रभसूरि रचित पद्मप्रभचरित्र (१२५४) में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है। ११९२ से लेकर १३०० तक कुछ लेख प्राप्त होते हैं। इसी गच्छ के नरचन्द्रोपाध्याय की प्रश्नशतकज्ञानदीपिका टीकासह (१३२४), जन्मसमुद्रसटीक और ज्योतिषचतुर्विंशतिका आदि कृतियाँ प्राप्त होती हैं। ६. कोरंटगच्छ - राजस्थान के कोरटा नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति हुई है। यह गच्छ चैत्यवासी आम्नाय का है। इसमें भी कक्कसूरि, सावदेवसूरि (सर्वदेवसूरि) और नन्नसूरि आचार्यों के नाम क्रमशः प्राप्त होते रहते हैं। इस गच्छ के संवत् १२०१ से १६५२ तक के १४२ लेख प्राप्त होते हैं। कोरंटगच्छ की पट्टावली भी प्राप्त होती है। ७. कृष्णर्षिगच्छ - प्राक्मध्ययुगीन और मध्ययुगीन निर्ग्रन्थों में एक कृष्णर्षिगच्छ भी प्राप्त होता है। कृष्ण मुनि के अनुयायी होने से यह कृष्णर्षि गच्छ कहलाया। जयसिंहसूरि, प्रसन्नचन्द्रसूरि और नयचन्द्रसूरि ये नाम क्रमशः प्राप्त होते रहते हैं। संभवतः आगे जाकर यह सम्प्रदाय चैत्यवास से सम्बन्ध रखने लग गया। संवत् १२८७ से १६१६ तक इस गच्छ के लेख प्राप्त होते हैं। जयसिंहसूरि-धर्मोपदेशमालाविवरण (र.सं. ९१५), शीलोपदेशमाला के कर्ता जयकीर्ति भी जयसिंहसूरि के शिष्य थे। दाक्षिण्यचिह्न Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला (र.सं. ७००), प्रभानन्दसूरि-जंबूद्वीपसंग्रहणीप्रकरण टीका, जयसिंहसूरि कृत न्यायसार टीका न्यायतात्पर्यदीपिका, नयचन्द्रसूरिहम्मीर महाकाव्य (संवत् १४४४), रंभामंजरी नाटिका भी प्राप्त होती है। इस गच्छ के १२८७ से १६१६ तक ३१ लेख प्राप्त होते हैं। विभिन्न ग्रन्थों के आधार से इसमें कई ग्रन्थ प्रशस्तियों के आचार्यों के नाम दिए गए हैं। इसमें एक शाखा कृष्णर्षितपा नाम के संवत् १४५० से १४७४ तक के लेख मिलते हैं। ८. खंडिलगच्छ - यह गच्छ खंडेला, सीकर से ४५ कि.मी. दूर नाम से प्रसिद्ध हुआ। खंडेला को जैन तीर्थों की गणना में सिद्धसेनसूरि ने सकलतीर्थ स्तोत्र में और धर्मरत्नाकर की प्रशस्ति में उल्लेख किया है। भावदेवसूरि इस गच्छ के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। इसीलिए भावदेवाचार्य गच्छ भी इसका नाम मिलता है। इस गच्छ के आचार्य स्वयं को कालकाचार्य संतानीय कहते हैं। प्रतिमा लेखों में इस गच्छ का नाम भावडार गच्छ और भावडगच्छ भी मिलता है। इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों में भावदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, वीरसूरि और जिनदेवसूरि इन चारों नामों की पुनरावृत्ति दृष्टिगत होती है। वीरसूरि चालुक्य नरेश सिद्धराज जयसिंह के मित्र माने जाते थे और उन्होंने संवत् ११०७ में बौद्धाचार्य, दिगम्बर आचार्य कमलकीर्ति और सांख्यवादी वादीसिंह को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। भावदेवसूरि की प्रमुख रचनाओं में पार्श्वनाथ चरित्र (संवत् १४१२), कालिकाचार्य कथा, यतिदिनचर्या और अलंकारसार, शान्तिसूरि की भक्तामर रचना, हर्षमूर्ति की गौतमपृच्छा चौपई, चन्द्रलेखा चौपई और पद्मावती चौपई, कनकसुन्दर कृत हरिश्चन्द्रराजा रास की रचना भी प्राप्त होती है। संवत् १०८० का इसका प्राचीन लेख भी प्राप्त होता है। संवत् ११९६ में प्राचीन प्रतिमा लेख पर भावडार गच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है। संवत् ११९६ से १६९७ तक इस गच्छ के यत्र-तत्र उल्लेख प्राप्त होते हैं। 23 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. चन्द्रकुलगच्छ ( चन्द्रगच्छ ) - यह वस्तुतः चन्द्रगच्छ हि प्रतीत होता है । क्योंकि चन्द्रकुलीय आचार्यों में उद्योतनसूरि के शिष्य सर्वदेवसूरि ने वडगच्छ की स्थापना की थी और वर्द्धमानसूरि ८४ मठों के अधिपति थे। इस दृष्टि से लेखक ने धनेश्वरसूरि रचित सुरसुंदरीचरियं, जिनचन्द्रसूरि रचित संवेगरंगशाला, अभयदेवसूरि रचित व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति को ये दोनों चन्द्रकुलीय थे। चन्द्रकुलीय मानकर यहाँ उल्लेख किया है किन्तु वह गलत है। क्योंकि जिनेश्वरसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि ( जिनभद्रसूरि ) और अभयदेवसूरि- कौटिकगण, वज्रशाखा, चन्द्रकुलीय माने जाते हैं और उन्होंने अपना विशेषण सुविहित पक्षीय लिखा है । अतएव यह गच्छ अलग से ही प्रतीत होता है । इसमें धनेश्वरसूरि आदि आचार्यों को सम्मिलित करना उपयुक्त नहीं है। जयसिंहसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ अस्तित्व में आया। चन्द्रगच्छीय परम्परा में श्रीचन्द्रसूरि रचित सणंककुमारचरिउ | बालचन्द्रसूरि रचित उपदेशकंदलीटीका, वसन्तविलासमहाकाव्य, विवेकमंजरीटीका, करुणावज्रायुधनाटक आदि कृतियाँ प्राप्त हैं । चन्द्रगच्छीय देवेन्द्रसूरि ने ही उपमितिभवप्रपंचकथासारोद्धार (संवत् ९६२), विनयचन्द्रसूरि कृत पार्श्वनाथचरित्र, प्रद्युम्नसूरि कृत समरादित्यसंक्षेप ( संवत् १३२४), उदयप्रभसूरि कृत शीलवतिकथा (संवत् १४०० की लिखित) प्राप्त होती है । इसके अतिरिक्त कई लेखन प्रशस्तियाँ भी प्राप्त होती हैं । अभिलेखीय साक्ष्यों में अंकोटा से प्राप्त मूर्तियों पर इस गच्छ के प्राचीन लेख प्राप्त होते हैं । मूर्तिलेखों में १०३२ से १५५२ तक २३ लेख प्राप्त होते हैं। १०. चैत्रगच्छ - संभवत: चैत्रपुर (चित्तौड़) से इस गच्छ की उत्पत्ति हुई है । इस गच्छ के चैत्रगच्छ, चित्रवालगच्छ, चैत्रवालगच्छ, चित्रपल्लीगच्छ और चित्रगच्छ नामकरण भी प्राप्त होते हैं । इस गच्छ के आदिमाचार्य धनेश्वरसूरि हुए। इन्हीं के पट्टधर भुवनचन्द्रसूरि, प्रशिष्य देवभद्रसूरि और जगच्चन्द्रसूरि हुए। आचार्य जगच्चन्द्रसूरि ने क्रियोद्धार किया और महाराजा 24 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैत्रसिंह चित्तौड़ से तपाबिरुद प्राप्त किया। तब से यह गच्छ पृथक् गच्छ कहलाता है। इस गच्छ के अभिलेखीय और साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर भर्तृपुरीयशाखा, धारणपद्रीयशाखा, चतुर्दशीपक्षशाखा, चन्द्रसामीयशाखा, सलषणपुराशाखा, कम्बोइयाशाखा, अष्टापदशाखा, सार्दूलशाखा आदि का . भी पता चलता है। अनेक लेखन प्रशस्तियाँ भी प्राप्त होती हैं । संवत् १२२५ से १५९१ तक ११९ मूर्तिलेख तथा शाखाओं के संवत् १४०० से लेकर १५८२ तक २५ लेख प्राप्त होते हैं। चतुर्दशीयपक्ष भी चैत्रगच्छ की ही एक शाखा है। जिसके १५१० से लेकर १५४७ तक २५ लेख प्राप्त होते हैं। सलषणपुराशाखा भी इसकी शाखा मानी जाती है। ११. जालिहरगच्छ - विद्याधरकुल की द्वितीय शाखा जालिहर शाखा मानी जाती है। जो कि जाल्योधर स्थान से विकसित हुई है। बालचन्द्रसूरिनन्दीदुर्गवृत्ति (संवत् १२२६), देवप्रभसूरि-पद्मप्रभचरित्र (संवत् १५२४) भी प्राप्त हैं। विक्रम संवत् १२१३ से १३९३ तक के प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं। १२. जीरापल्लीगच्छ - लेखक की मान्यतानुसार इससे ही पूर्णिमागच्छ, आगमिकगच्छ, अंचलगच्छ, पिप्पलगच्छ और बृहद्गच्छ अस्तित्व में आए। बृहद्गच्छ गुर्वावली (१६वीं सदी) के अनुसार बृहद्गच्छ से उद्भुत २५ शाखाओं में से जीरापल्लीगच्छ भी अस्तित्व में आया। जीरापल्लीगच्छ, जीरावला नामक राजस्थान के गाँव से उत्पन्न हुआ और देवचन्द्रसूरि के प्रशिष्य श्री रामचन्द्रसूरि इस गच्छ के प्रवर्तक आचार्य माने जाते हैं। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों में १५वीं शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक इनके उल्लेख प्राप्त होते रहते हैं। संवत् १४०३ से १५७२ तक २७ लेख प्राप्त होते हैं। १३. थारापद्रगच्छ - इस गच्छ का उद्भव थारापद्र (थराद, बनासकांठा) नामक गाँव से हुआ। इस गच्छ के प्रवर्तक कौन थे? इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। किन्तु, ११वीं सदी के प्रारम्भ में पूर्णभद्रसूरि ने चन्द्रकुल 25 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के वटेश्वर क्षमाश्रमण को अपना पूर्वज बताया है । इस ग्रन्थ का सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य संवत् १०८४ का है। नमिसाधु षडावश्यकसूत्रवृत्ति ( संवत् १९२२), काव्यलंकारटिप्पण (संवत् १९२५), शालिभद्रसूरि - सटीक बृहद्संग्रहणीप्रकरण (संवत् ११३९), वादीवेताल शान्तिसूरि- उत्तराध्ययनसूत्र पाइयटीका । इन्हीं की जीवविचार प्रकरण, चैत्यवन्दन महाभाष्य, बृहद्शान्तिस्तवन, जिनस्त्रात्रविधि प्राप्त होती है । इन्हों ने महाकवि धनपाल कृत तिलकमंजरी का संशोधन किया था और विक्रम संवत् १०४० में उज्जयन्तगिरि पर संलेखना द्वारा अपना शरीर त्याग किया था । इस गच्छ में सर्वदेवसूरि, विजयसिंहसूरि और विजयशान्तिसूरि इन तीन नामों की पुनरावृत्ति होती रहती है । वटेश्वर क्षमाश्रमण का समय ई.सन् ६७५ से ७२५ माना जाता है। संवत् १०८४ से १५६३ तक २१ लेख और १९१८ से १३३४ तक १३ लेख प्राप्त होते हैं । १४. धर्मघोषगच्छ - चन्द्रकुलीय परम्परा में इस गच्छ का राजगच्छ के नाम से उल्लेख मिलता है। श्री धर्मघोषसूरि से यह गच्छ धर्मघोषगच्छ कहलाया । मैंने देखा है कि धर्मघोपगच्छ के अन्तिम यति गोपजी करके नागोर में रहते थे । यशोभद्रसूरि आगमिकवस्तुविचारसारवृत्ति, रविप्रभसूरिधर्मघोषसूरि स्तुति, प्रद्युम्नसूरि - विचारसारविवरण, पृथ्वीचन्द्रसूरिकल्पसूत्रटिप्पणक प्राप्त होते हैं । पुस्तक प्रशस्तियों में १५५० की लघुक्षेत्रसमासवृत्ति आदि प्राप्त होती हैं । संवत् १३०४ से १६९१ कल्याणसागरसूरि तक २१० लेख प्राप्त होते हैं । १५. नाणकीयगच्छ - चैत्यवासी गच्छों में नाणकीयगच्छ का प्रमुख स्थान है । अर्बुदमण्डल के अन्तर्गत नाणा स्थान से यह गच्छ ११वीं शती में अस्तित्व में आया है । इस गच्छ के शान्तिसूरि पुरातन आचार्य माने गए हैं। शान्तिसूरि, सिद्धसेनसूरि, धनेश्वरसूरि और महेन्द्रसूरि इन चार पट्टधर आचार्यों की पुनरावृत्ति होती गई है। लेखन प्रशस्तियों में १२७२ की 26 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्संग्रहणी पुस्तिका, षट्कर्मअवचूरि भी प्राप्त होती है। मूर्तिलेखों में संवत् ११०२ से लेकर १५९९ महेन्द्रसूरि तक १५३ लेख प्राप्त होते हैं। १६. नागपुरीयतपागच्छ - संभवतः तपागच्छ की एक शाखा के रूप में यह गच्छ का अस्तित्व आया होगा। किन्तु, मान्यतानुसार बृहद्गच्छीय वादीदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से इस गच्छ का उद्भव माना जाता है। पद्मप्रभसूरि को नागोर में उग्रतप करने के कारण वहाँ के शासक ने नागोरीतपा यह बिरुद दिया था जो कि परम्परागत शिष्य सन्तति ने स्वीकार किया। इसका उद्भव ११७३ में माना जाता है। किन्तु इसके मूर्तिलेख १६वीं-१७वीं शताब्दी के पूर्व के नहीं है। इस गच्छ का अन्तिम मूर्तिलेख १६६७ का प्राप्त है। चन्द्रकीर्तिसूरि ने १६२३ में सारस्वर व्याकरण दीपिका धातुपाठ विवरण, छन्दकोशटीका, हर्षकीर्ति रचित सारस्वरव्याकरण धातुपाठ (संवत् १६६३), योगचिन्तामणि, शारदीय नाममाला, लघुशांतिस्तोत्र, सिन्दूरप्रकर आदि प्राप्त होते हैं। लेखन प्रशस्तियों में १६५६ की प्राप्त होती है। १४५३ से लेकर १५४२ तक ३३ लेख प्राप्त होते हैं। श्री रत्नशेखरसूरि रचित सिरिवालचरियं प्राकृत भाषा में (१४२८) का प्राप्त होता है और इनकी कई अन्य कृतियाँ भी प्राप्त होती हैं। अन्य पट्टावलियों के अनुसार पद्मप्रभसूरि रचित भुवनदीपक ग्रन्थ भी इस गच्छ का माना गया है। १७. नागेन्द्रगच्छ - यह गच्छ कोटिकगण के नाइला शाखा से माना जाता है। नाइलशाखा का उद्भव ई.सन् १०० वर्ष के पश्चात् माना गया है। गुप्तकाल ई.सन् ४७३ में विमलसूरि रचित पउमचरियं ग्रन्थ भी इस परम्परा का माना जाता है। एक प्रशस्ति के अनुसार नाइलकुल में प्रद्युम्नसूरि हुए जिनके शिष्य का नाम वीरभद्र था। वीरभद्र के शिष्य प्रद्युम्नसूरि के शिष्य गुणपाल ने जंबूचरियं की रचना की। जंबूमुनि रचित जिनशतक (१०२५) का भी प्राप्त है। १०८८ की प्रतिमा के उल्लेख के आधार पर नागेन्द्रकुल नागेन्द्रगच्छ का नाम मिलता है। महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल के पितृपक्ष 27 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के कुलगुरु विजयसेनसूरि भी नागेन्द्रगच्छ के थे। उनके शिष्य उदयप्रभसूरि ने धर्माभ्युदय महाकाव्य (१२४०), उनके शिष्य शान्तिसूरि ने दिगम्बरों को शास्त्रार्थ में हराया था। उनके शिष्य आनन्दसूरि और अमरचन्द्रसूरि नामक दो शिष्य हुए उन्हों ने सिद्धराज जयसिंह के कार्यकाल में व्याघ्रशिशुक एवं सिंहशिशुक की उपाधि प्राप्त की थी। अमरचन्द्रसूरि ने सिद्धान्तार्णव ग्रन्थ की रचना की। इनके शिष्य हरिभद्रसूरि कलिकाल गौतम कहलाते थे। इस गच्छ की एक अन्य शाखा का भी उल्लेख प्राप्त होता है। उसमें देवेन्द्रसूरि कृत वासुपूज्य चरित्र (१२६४) की कृति प्राप्त होती है। मल्लिषेणसूरिस्याद्वादमंजरी टीका के रचियता (संवत् १३४८), मुनिधर्मकुमार-शालिभद्रचरित्र (संवत् १३३४) भी इनका प्राप्त होता है। इसी परम्परा में गुणरत्नसूरिऋषभरास और भरतबाहुबलि रास, सोमरत्नसूरि-कामदेवरास (संवत् १५२० के आसपास), ज्ञानसागर-जीवभवस्थितिरास (संवत् १४६७) और सिद्धचक्रश्रीपाल चौपई (संवत् १५३१) की प्राप्त होती है। संवत् १०८८ वासुदेवसूरि से लेकर संवत् १७१५ रत्नाकरसूरि तक १४८ लेख प्राप्त होते हैं। १८. निवृत्तिकुल - कल्पसूत्र स्थविरावली में इसका उल्लेख मिलता है। इसके अभिलेखीय साक्ष्य संवत् ५७२ से प्राप्त होते हैं। इस कुल में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण-विशेषावश्यकभाष्य, शीलाचार्य (शीलांकाचार्य)आचारांगसूत्र टीका, सूत्रकृतांगटीका, चउपन्नमहापुरुष चरियं, सिद्धर्षिन्यायावतारटीका, उपदेशमाला टीका और उपमितिभव प्रपंच कथा, गर्गर्षिकर्मविपाक और पंचसंग्रह, द्रोणाचार्य-ओघनियुक्ति टीका, सूराचार्यदानादिप्रकरण आदि प्रसिद्ध विद्वान् हुए हैं। १२वीं शताब्दी के चार लेख प्राप्त होते हैं और बाकी के लेख बाद के हैं। १९. पल्लीवालगच्छ - संभवतः पाली से इसका उद्भव हुआ है। इस गच्छ में महेश्वरसूरि प्रथम, अभयदेवसूरि, महेश्वसूरि द्वितीय, ननसूरि, अजितदेवसूरि, 28 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरानन्दसूरि आदि कई रचनाकार हो चुके हैं। अभिलेखीय साक्ष्य १२५७ से लेकर १६८१ तक के प्राप्त हैं। पट्टावलियों के आधार पर प्रभुचन्द्रसूरि संवत् १६७६ से विद्यमान थे। इसी प्रकार दूसरी पट्टावलियों के अनुसार उद्योतनसूरि १७२७ तक का उल्लेख प्राप्त होता है। इस गच्छ के १२५७ से लेकर १६८१ तक के ५३ लेख प्राप्त होते हैं। २०. पार्श्वचन्द्रगच्छ - इस गच्छ की पट्टावलियों के अनुसार वडगच्छीय वादीदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से नागोर में तपाबिरुद मिला था। इसीलिए उस समय नागोरीतपा नाम से इस परम्परा की प्रसिद्धि हुई। १६वीं शताब्दी में पार्श्वचन्द्रसूरि प्रखर विद्वान् हुए। उनकी कई कृतियाँ भी मिलती हैं। उनकी शिष्य सन्तति पार्श्वचन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई और आज भी इसके साधु विद्यमान है। पार्श्वचन्द्रसूरि के विनयदेवसूरि शिष्य हुए जिनसे सुधर्मगच्छ की प्रसिद्धि हुई। पूंजाऋषि-आरामशोभाचरित्र, अंजनासुन्दरी रास इत्यादि प्रसिद्ध है। मेघराज ने नलदमयन्ती रास की संवत् १४६४ में रचना की। पार्श्वचन्द्रसूरि से सम्बन्धित कई पट्टावलियाँ प्राप्त होती हैं जिनका सक्षिप्त परिचय दिया गया है। वर्तमान में इस परम्परा में महोपाध्याय भुवनचन्द्रगणि विद्यमान हैं। इनके यति भी आज विद्यमान हैं। २१. पिप्पलगच्छ - चन्द्रकुल तथा बाद में चन्द्रगच्छ से यह संबंधित रहा है। १२वीं शताब्दी के मध्य में शान्तिसूरि और विजयसिंहसूरि इसके प्रमुख आचार्य माने गए हैं। इसके मूर्तिलेख विजयसिंहसूरि १२०८ से लेकर धर्मप्रभसूरि १७७८ तक के १६८ लेख प्राप्त होते हैं। सागरचन्द्रसूरि के बाद नरशेखरसूरि आदि की साहित्यिक कृतियाँ भी प्राप्त होती हैं। इसी गच्छ के त्रिभवीयाशाखा के मूर्ति लेख भी संवत् १४१३ से लेकर १५६१ तक के प्राप्त होते हैं। त्रिभवीयाशाखा की सर्वदेवसूरि से उत्पत्ति मानकर धर्मवल्लभसूरि तक का उल्लेख मिलता है। संवत् १५२८ के लेख के तालध्वजीयाशाखा का भी उल्लेख मिलता है। 29 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२. पूर्णतल्लगच्छ - प्राचीन नाम पूर्णतल्लक या पूर्णतल्ल, वर्तमान पुंताला, राजस्थान से इसका उद्भव हुआ है। इस शाखा में आम्रदेवसूरि, श्रीदत्तसूरि, यशोभद्रसूरि, प्रद्युम्नसूरि, गुणसेनसूरि, देवचन्द्रसूरि, कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि, रामचन्द्र, गुणचन्द्र आदि प्रसिद्ध विद्वान आचार्य हुए हैं। इस गच्छ के प्रद्युम्नसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में रचित मूलशुद्धि प्रकरण, देवचन्द्रसूरि रचित इसी प्रकरण की टीका (संवत् ११४६) भी प्राप्त होती है। देवचन्द्रसूरि की दूसरी कृति शान्तिनाथ चरित्र-प्राकृत भाषा में संवत् ११६० की प्राप्त की है। आचार्य देवचन्द्रसूरि के शिष्य कलिकालसर्वज्ञ विश्व प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित्र महाकाव्य, सिद्धहेमशब्दानुशासन, योगशास्त्र आदि प्रमुख है। हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र शतप्रबन्ध के कर्ता माने गए हैं और गुणचन्द्रसूरि की नाट्यदर्पण और द्रव्यलंकार प्रसिद्ध कृति है। इसी प्रकार महेन्द्रसूरि ने अनेकार्थसंग्रह कोश पर अनेकार्थकैरवाकरकौमुदी की रचना की है और देवचन्द्र ने चन्द्रलेखाविजयप्रकरण नाटक की रचना की है। किसी शांत्याचार्य रचित न्यायावतार वार्तिक वृत्ति, तिलकमंजरी टिप्पण और पंचकाव्य लघु टीका आदि भी प्राप्त होते हैं। इन ग्रन्थों की रचना प्रशस्तियों में स्वयं को पूर्णतल्लगच्छीय और वर्द्धमान सूरि का शिष्य बतलाया है। २३. पूर्णिमागच्छ - चन्द्रगच्छ की परम्परा में पाक्षिकपर्व पूर्णिमा को माना जाने से इस गच्छ की स्थापना हुई है। विक्रम संवत् ११४९/११५९ में इसका आविर्भाव चन्द्रप्रभसूरि से हुआ। इस गच्छ में धर्मघोषसूरि, देवसूरि, चक्रेश्वरसूरि, समुद्रघोषसूरि, विमलगणि, देवभद्रसूरि, तिलकाचार्य, मुनिरत्नसूरि, कमलप्रभसूरि आदि प्रभावकाचार्य हुए हैं। इस शाखा से कई शाखाएँ उद्भव हुई। ढंढेरियाशाखा, साधुपूर्णिमा शाखा, कच्छोलीवालशाखा, भीमपल्लीयाशाखा, बटपद्रीयाशाखा, बोरसिद्धीयाशाखा, भृगुकच्छीयाशाखा और छापरियाशाखा आदि। चन्द्रप्रभसूरि की प्रमेयरत्नकोश, हेमप्रभसूरि की 30 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति, समुद्रघोषसूरि के शिष्य मुनिरत्नसूरि कृत अममस्वामिचरित महाकाव्य, मलयसुन्दरसूरि का प्रश्नोत्तरसंग्रहवृत्ति, तिलकाचार्य का प्रत्येकबुद्धचरित, रत्नप्रभसूरि का पुण्डरीकचरित, देवानन्दसूरि कृत क्षेत्रसमासवृत्ति (संवत् १४५५), गुणसमुद्रसूरि के शिष्य सत्यराजगणि कृत श्रीपालचरित्र (संवत् १५७५), उदयसमुद्रसूरि कृत पूर्णिमागच्छ पट्टावली (संवत् १५८०) प्राप्त हैं। रचना प्रशस्ति के आधार पर कई परम्पराओं के आचार्यों की इस ग्रन्थ में तालिका दी गई है। २४. पूर्णिमागच्छ-ढंढेरिया शाखा - यह पूर्णिमागच्छ की प्रधान शाखा है। इस शाखा के प्रथम आचार्य समुद्रघोषसूरि के द्वितीय शिष्य सूरप्रभसूरि माने गए हैं। इस शाखा में आचार्य जयसिंहसूरि, जयप्रभसूरि, भुवनप्रभसूरि, यशतिलकसूरि, कमलप्रभसूरि, पुण्यप्रभसूरि और ललितप्रभसूरि आदि कई प्रमुख विद्वान् आचार्य हो चुके हैं। इस शाखा के १५२० जयप्रभसूरि से लेकर १७९८ भावप्रभसूरि तक ५५ लेख प्राप्त होते हैं। श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने ढंढेरिया शाखा की एक पट्टावली दी है जिसके अनुसार लेखक ने वंशावली भी दी है। २५. सार्धपूर्णिमागच्छ - चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) की एक शाखा का वडगच्छ से ११५९ में उत्पन्न पूर्णिमागच्छ की शाखा के रूप में यह सार्धपूर्णिमागच्छ माना जाता है। विभिन्न पट्टावलियों के अनुसार पूर्णिमागच्छीय आचार्य सुमतिसिंहसूरि द्वारा विक्रम संवत् १२३६ में पाटण में इस शाखा का उदय माना गया है। महाराजा कुमारपाल ने नये गच्छों के मुनिजनों का अपने राज्य में प्रवेश निषेध करा दिया था। वहीं विक्रम संवत् १२३६ में पूर्णिमागच्छीय आचार्य सुमतिसिंहसूरि विहार करते हुए पाटण पहुँचे और वहाँ स्वयं को सार्धपूर्णिमागच्छीय बतलाकर प्रवेश किया। यह शाखा भी संडेरगच्छ, भावदेवाचार्यगच्छ, राजगच्छ, चैत्रगच्छ, नाणकीयगच्छ, वडगच्छ के समान चतुर्दशी को ही पाक्षिक पर्व मानता था। इसका उद्भव १२३६ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से माना जाता है किन्तु १४वीं शताब्दी के पूर्व इसके अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। संवत् १४१२ में श्री शांतिनाथचरित्र की प्रतिलिपि करवाई गई, उसमें अभयचन्द्रसूरि का उल्लेख है। गुणचन्द्रसूरि ने ११८१ रत्नकरावतारिकाटिप्पण लिखा है एवं आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के न्यायावतार सूत्र पर निवृत्तिकुलीय सिद्धर्षि द्वारा वृत्ति की १४५३ में प्रतिलिपि करवाई। इसमें रामचन्द्रसूरि का उल्लेख है। पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक आचार्य चन्द्रप्रभसूरि कृत सम्यक्त्वरत्न महोदधि की तिलकाचार्य द्वारा रची गई टीका पुण्यप्रभसूरि को प्रदत्त की गई। इसी प्रकार विजयचन्द्रसूरि के शिष्य ( श्रावक) कीर्ति द्वारा रचित आरामशोभा चौपई ( संवत् १५३५) रचना की । इस गच्छ के संवत् १४३३ से १६२४ तक ५३ लेख प्राप्त होते हैं 1 २६. भीमपल्लीयाशाखा - पूर्णिमापक्ष चन्द्रकुल / चन्द्रगच्छ में उद्भुत गच्छों में पूर्णिमागच्छ भी एक है। यह गच्छ पाक्षिक पर्व पूर्णिमा को मनाए जाने का आधार रखता है । संवत् १९४९ या संवत् ११५९ में जयसिंहसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभसूरि इस गच्छ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इस शाखा में देवचन्द्रसूरि पार्श्वचन्द्रसूरि, जयचन्द्रसूरि, भावचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि, विनयचन्द्रसूरि आदि महत्त्वपूर्ण आचार्य हुए हैं । १५वीं शताब्दी से लेकर १८वीं शताब्दी तक इनके मूर्तिलेख प्राप्त होते हैं। संवत् १४५९ पार्श्वचन्द्रसूरि से लेकर १५९८ विनयचन्द्रसूरि तक ५३ लेख प्राप्त होते हैं। जयचन्द्रसूरि ने १५०४ में पार्श्वनाथ चरित्र की प्रतिलिपि करवाई थी । पूर्णिमागच्छीय किन्ही जयराजसूरि ने मत्स्योदर रास ( संवत् १५५३), विद्यारत्नसूरि के कुर्मापुत्र संवत् १५७७ प्राप्त होते हैं । 1 २७. ब्रह्माणगच्छ - चैत्यवासी गच्छों से संबंधित ब्रह्माणगच्छ भी एक है संवत् ११२४ प्रद्युम्नसूरि से लेकर संवत् १५९२ श्रीसूरि तक २३४ लेख प्राप्त होते हैं । देवचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिचन्द्रसूरि को भवभावनाप्रकरण की प्रथम बार वाचना की थी । संवत् १५२७ की नेमिनाथ चरित्र की प्रतिलिपि भी 32 - Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्त होती है। संवत् १५९८ की रसरत्नाकर की दाताप्रशस्ति प्राप्त होती है । अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर कई छोटी-मोटी गुरु- परम्परा की तालिकाएँ भी दी गई हैं। २८. बृहद्गच्छ - इस गच्छ के उल्लेख वाली प्राचीनतम प्रशस्तियाँ १२वीं शताब्दी के मध्य की हैं । इस गच्छ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में चर्चा करने वाली सर्वप्रथम प्रशस्ति १२३८ रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति में प्राप्त होती है। जिसके अनुसार उद्योतनसूरि ने वटवृक्ष के नीचे शुभ लग्न पर सर्वदेवसूरि सहित ८ मुनिजनों को आचार्यपद प्रदान संवत् ९९४ में किया था। नेमिचन्द्रसूरि ने आख्यानकमणिकोश ११वीं शती का प्रारम्भिक चरण में विद्यावंशावली का उल्लेख किया है। नेमिचन्द्रसूरि ने उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधाटीका संवत् १२२९ में रचना की थी । मुनिचन्द्रसूरि का परिवार विशाल था। वादीदेवसूरि के परिवार में भद्रेश्वरसूरि, रत्नप्रभसूरि, विजयसिंहसूरि आदि शिष्य-प्रशिष्यों का विशेष उल्लेख मिलता है । यहाँ भी लेखक ने चन्द्रकुलीय आचार्य वर्द्धमान, आचार्य जिनेश्वर, आचार्य जिनचन्द्र, अभयदेवसूरि का उल्लेख किया है जो कि चन्द्रकुलीय के कारण है । लेखक ने यहाँ स्वीकार किया है कि जिनवल्लभगणि वास्तव में एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे और बाद में अभयदेवसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की थी। अभयदेवसूरि के शिष्य वर्द्धमानसूरि ने मनोरमाकहा (संवत् ११४०) आदिनाथ चरित्र (संवत् ११६०) में रचना की। उसमें विक्रम संवत् ११८७ के अभिलेख में वडगच्छीय चक्रेश्वरसूरि को वर्द्धमानसूरि का शिष्य लिखा है । संवत् १२१४ के एक अभिलेख में चक्रेश्वरसूरि के दादागुरु वर्द्धमानसूरि का उल्लेख है। विद्याध्ययन की दृष्टि से यह प्रतिकूल नहीं माना जाता। मुनिचन्द्रसूरि के अनेकान्त - जयपताका टिप्पणक, उपदेशपद सुखबोधावृत्ति, धर्मबिन्दुवृत्ति, योगबिन्दुवृत्ति आदि अनेकों ग्रन्थ प्राप्त हैं। वादीदेवसूरि ने संवत् ११८१/८२ में सिद्धराज जयसिंह की सभा में कर्णाटकीय विद्वान् आचार्य कुमुदचन्द्र को 33 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पराजित किया था और प्रमाणनयतत्वलोकालंकार एवं उसकी स्वोपज्ञ टीका स्याद्वादरत्नाकर की रचना की थी। हरिभद्रसूरि ने आगमिकवस्तुविचारसार प्रकरण की टीका एवं प्रशमरतिप्रकरण टीका एवं रत्नप्रभसूरि ने रत्नकरावतारिका, उपदेशमाला टीका, नेमिनाथ चरित्र आदि की रचना की । हेमचन्द्रसूरि ने नाभेयनेमिद्विसंधानकाव्य की रचना की जिसका संशोधन श्रीपाल महाकवि ने किया था । इस शाखा की कई गुरु परम्परागत तालिकाएँ दी गई हैं। २९. महाहडागच्छ - चन्द्रकुल से उद्भूत गच्छों में मडाहडागच्छ भी आता है। वर्तमान मडार नामक ग्राम से इसका उद्भव हुआ था । चक्रेश्वरसूरि इस गच्छ के मुख्य आचार्य माने जाते हैं। इस गच्छ की रत्नपुरीय शाखा, जागड़ियाशाखा, जालोराशाखा आदि प्रसिद्ध है । संवत् १२८७ से लेकर १७८७ चक्रेश्वरसूरि पर्यन्त ८९ लेख प्राप्त होते हैं । लींबड़ी के हस्तलिखित जैन ग्रन्थ भंडार में संवत् १५१७ की लिखित कल्पसूत्र स्तबक और कालिकाचार्य कथा रामचन्द्रसूरि की मानी गई है। श्री पद्मसागरसूरि रचित १५वीं शताब्दी की कयवन्ना चौपई आदि प्राप्त है । १७वीं शताब्दी में सारंग नामक विद्वान् ने कवि विल्हण पंचाशिका चौपई संवत् १६३९ और कृष्ण रुक्मणीवेलि की संस्कृत टीका ( संवत् १६७८) रचना की । इसकी रत्नपुरीयाशाखा के १४ लेख प्राप्त होते हैं। जिसमें धर्मघोषसूरि, सोमदेवसूरि, धनचन्द्रसूरि, धर्मचन्द्रसूरि, कमलसूरि आदि मुख्य हैं। रत्नपुरीयशाखा के प्रतिमा लेखों में संवत् १३५० का उल्लेख मिलता है । मडाहडागच्छ की एक शाखा जाखडिया शाखा के पाँच लेख प्राप्त होते हैं। जिसमें कमलचन्द्रसूरि, आनन्दसूरि और गुणचन्द्रसूरि प्रमुख हैं । ३०. मोढ़गच्छ और मोढचैत्य - चन्द्रकुल से निष्पन्न यह गच्छ माना गया है । मोढेरा उत्तर गुजरात से इसका उद्भव माना जाता है। संवत् १३२५ कालिकाचार्य कथा की प्रतिलिपि और १३३४ प्रभावक चरित्र की प्रतिलिपि 34 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदि प्राप्त होते हैं। प्रो. एम.ए. ढांकी के मतानुसार इस गच्छ के मुनिजन चैत्यवासी थे और पाटला, धंधुका, अणहिलपुर पाटण और मांडल में इनके चैत्य थे। पाटला स्थित मोढ़चैत्य भी मोढेरा के महावीर मंदिर के समान प्राचीन रहा है। जिनप्रभसूरि रचित कल्पप्रदीप के अनुसार ८४ तीर्थस्थानों में इसकी गणना की जाती है। खरतरगच्छीय विनयप्रभसूरि ई.सन् १३७५ और जिनतिलकसूरि ने १५वीं शताब्दी में यहाँ स्थित नेमिनाथ जिनालय का उल्लेख किया है। प्रभावकचरित्र के अनुसार पाटण में भी एक मोढ़चैत्य था जिसकी प्रतिष्ठा बप्पभट्टसूरि ने करवाई थी। मण्डली वर्तमान मांडल में वस्तुपाल के समय एक मोढ़चैत्य था। मोढवणिक की जाति यहीं से उत्पन्न हुई थी। ३१. यशोभद्रसूरिगच्छ - चन्द्रकुलीय परम्परा में यशोभद्रसूरिंगच्छ भी माना जाता है और यशोभद्रसूरि ही इसके संस्थापक थे। साधारणकवि की विलासवई संवत् ११२३ की प्रशस्ति में इसको चन्द्रकुलीय माना है। इस गच्छ के कतिपय ही लेख प्राप्त होते हैं। ३२. राजगच्छ - चन्द्रकुलीय परम्परा में राजगच्छ भी एक प्रमुख गच्छ रहा है। इसमें प्रद्युम्नसूरि, अभयदेवसूरि, धनेश्वरसूरि, श्रीचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि, सिद्धसेनसूरि, माणिक्यचन्द्रसूरि, मानतुंगसूरि और प्रभाचन्द्रसूरि आदि प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं। इसके अभिलेखीय साक्ष्य बहुत कम प्राप्त होते हैं। धनेश्वरसूरि (द्वितीय)-सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धारटीका (संवत् ११७१), सिद्धसेनसूरि-प्रवचनसारोद्धारटीका (संवत् १२७८), मानतुंगसूरि- श्रेयांसचरित्र (संवत् १३३२), प्रभाचन्द्रसूरि-प्रभावक चरित्र (संवत् १३३४), अभयदेवसूरिसन्मतितर्क की तत्त्वबोधविधायिनी टीका की रचना की। श्रीचन्द्रसूरि का दीक्षा नाम पार्श्वदेवगणि था। अज्ञात कर्तृक राजगच्छीय पट्टावली में ननसूरि को इसका आदिम आचार्य माना गया है। प्रो. एम.ए.ढाकी के मतानुसार राजगच्छीय पट्टावली में उल्लिखित अजित-यशो-वादी वस्तुत: उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधा टीका के अनुसार वादीदेवसूरि ही होना चाहिए। संवत् ११२८ 35 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से लेकर १५१० तक इनके अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं। प्रद्युम्नसूरि जो कि प्रथम आचार्य धनेश्वरसूरि के दादागुरु थे, समरादित्य संक्षेप आदि में इनकी चर्चा मिलती है। सन्मतितर्कटीकाकार अभयदेवसूरि का समय ११वीं शताब्दी निश्चित किया गया है। सिद्धसेनसूरि ने प्रवचनसारोद्धार टीका संवत् १२७८, माणिकचन्द्रसूरि ने पार्श्वनाथचरित्र संवत् १२७६, श्रीचन्द्रसूरि (पार्श्वदेवगणि) की न्यायप्रवेशवृत्ति पंजिका संवत् ११७९ आदि कई कृतियाँ प्राप्त हैं। ये श्रीचन्द्रसूरि आबू पर मन्त्रीश्वर पृथ्वीपाल द्वारा कराई गई प्रतिष्ठा के समय संवत् १२०६ में विद्यमान थे। देवप्रभसूरि ने श्रेयांसनाथ चरित्र संवत् १२४२ में रचना की। इन्हीं का तत्त्वबिन्दु और प्रमाणप्रकाश भी अनुपलब्ध है। माणिकचन्द्रसूरि-पार्श्वनाथचरित्र, शांतिनाथचरित्र, काव्यप्रकाशटीका आदि प्राप्त है। प्रभाचन्द्रसूरि ने प्रभावकचरित्र की संवत् १३३४ में रचना की। ३३ वायडगच्छ - थारापद्र और मोढगच्छ के बाद वायडगच्छ का नाम उल्लेखनीय है। वायट स्थान से इसकी उत्पत्ति हुई है। इसीलिए वायड का पर्याय वायटीय भी मिलता है। संवत् ११३९ से १३४९ तक ११ लेख प्राप्त होते हैं। किन्तु इसके पूर्व भी १०८६ का अभिलेख साक्ष्य प्राप्त है। वायड नगर में जीवन्त स्वामी का एक मन्दिर था। प्रभावकचरित्र के अनुसार विक्रमादित्य के मन्त्री लिम्बा द्वारा महावीर जिनालय का जीर्णोद्धार करवाया गया था। प्रभावकचरित्र के अनुसार वायडगच्छीय जीवदेवसूरि ने रुष्ट ब्राह्मणों द्वारा मृतगाय को महावीर मन्दिर के सन्मुख रखा, जिसको उन्होंने अपने चमत्कार से दूर किया। हर्षपुरीयगच्छ के लक्ष्मणगणि ने सुपार्श्वनाथचरित्र में (संवत् ११९४) इस गच्छ के साहित्यिक क्रियाकलापों का वर्णन किया है। अमरचन्द्रसूरि के पद्मानन्दमहाकाव्य, काव्यकल्पलतावृत्ति आदि ग्रन्थ प्राप्त हैं। जिनदत्तसूरि रचित विवेकविलास और शकुनशास्त्र ये दो ग्रन्थ प्राप्त हैं। ३४. विद्याधरकुल / विद्याधरगच्छ - यह कुल स्थविरावली से सम्बन्ध रखता है। डॉ. उमाकान्त प्रेमानन्द शाह ने अम्बिका प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख 36 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६वीं शताब्दी का माना है। आठवीं शताब्दी में आचार्य हरिभद्रसूरि हुए हैं जिनकी आवश्यक टीका आदि अनेकों ग्रन्थ आज भी प्राप्त हैं। पादलिप्तसूरिनिर्वाणकलिका संवत् ९५० में उल्लेख है। जाल्हिरगच्छीय देवप्रभसूरि पद्मप्रभचरित्र की प्रशस्ति में काशहद और जालिहरगच्छ को विद्याधरकुलीय मानते हैं। संवत् १४०८ उदयदेवसूरि से लेकर १५३४ हेमप्रभसूरि तक १३ लेख प्राप्त होते हैं। ३५. संडेरगच्छ - सांडेराव में उत्पन्न यह संडेरगच्छ १०वीं शताब्दी में प्रसिद्धि में आया। यह संडेरगच्छ चैत्यवासी आम्नाय के अन्तर्गत था। इसके प्रमुख आचार्य यशोभद्रसूरि हुए। यशोभद्रसूरि, शालिसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि, ईश्वरसूरि इसी नाम की पट्ट-परम्परा प्राप्त होती है। दानदाता प्रशस्तियों में षड्विधावश्यकविवरण संवत् १२९५, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के अन्तर्गत महावीरचरित्र संवत् १३२४, कालपुरुष एवं कालिकाचार्यकथा के प्रतिलिपियों के भी उल्लेख मिलते हैं। १०३९ से लेकर १७३२ तक शताधिक लेख प्राप्त होते हैं। ३६. सरवालगच्छ - यह गच्छ चैत्यवासियों से सम्बद्ध माना जाता है। बाद में चन्द्रकुलीय (चन्द्रगच्छीय) शाखा के रूप में इसका विकास हुआ। संवत् १११० से लेकर १२८३ तक कुछ ही लेख प्राप्त होते हैं। सरवालगच्छीय समुद्रघोषसूरि ने पिण्डनियुक्ति शिष्यहितावृत्ति का लेखन संवत् ११६० में करवाया था। ३७. हर्षपुरगच्छ / मलधारीगच्छ - सुविहितमार्गीय गच्छों में हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ का विशिष्ट स्थान है। हर्षपुर वर्तमान हरसोर नामक स्थान से इसका उद्भव हुआ है। ग्रन्थ की गुर्वावली में जयसिंहसूरि का नाम आदिम आचार्यों में मिलता है। उनके शिष्य अभयदेवसूरि को जिन्हें चालुक्य नरेश कर्ण संवत् ११२०-११५० से मलधारी बिरुद प्राप्त हुआ। यही बिरुद इस गच्छ के नाम के रूप में प्रचलित हो गया। सिद्धराज जयसिंह 37 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी इनका सम्मान करता था। इन्हीं के उपदेश से शाकम्भरी चाहमान नरेश पृथ्वीराज प्रथम ने रणथम्भौर के जैन मंदिर पर स्वर्ण कलश चढ़ाया था। ग्वालियर का राजा भुवनपाल और सौराष्ट्र का राजा खंगार इनके प्रभाव में था। इन्हीं के शिष्य हेमचन्द्रसूरि हुए। इनके परिवार में विजयसिंहसूरि, श्रीचन्द्रसूरि, विभूतिचन्द्रसूरि, लक्ष्मणगणि, मुनिचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि, देवप्रभसूरि, यशोभद्रसूरि, नरचन्द्रसूरि, नरेन्द्रप्रभसूरि, पद्मप्रभसूरि, श्रीतिलकसूरि, राजशेखरसूरि, वाचनाचार्य सुधाकलश आदि विद्वान् आचार्य हुए हैं। मलधारी हेमचन्द्रसूरि द्वारा अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति टीका, विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति, शतकविवरण, उपदेशमालावृत्ति आदि, विजयसिंहसूरि द्वारा धर्मोपदेशमालावृत्ति (संवत् ११९१), श्रीचन्द्रसूरि रचित मुनिसुव्रतचरित्र (संवत् ११९३), लक्ष्मणगणि रचित सुपार्श्वनाथचरियं (संवत् ११९९), देवभद्रसूरि रचित संग्रहणीवृत्ति, देवप्रभसूरि रचित पाण्डवचरित्र महाकाव्य, नरचन्द्रसूरि रचित कथारत्नसागर और अलंकारमहोदधि (संवत् १२८०) टीका (संवत् १२८२), राजशेखरसूरि रचित न्यायकंदलीपंजिका (संवत् १३८५), सुधाकलश रचित संगीतोपनिषत्सारोद्धार (संवत् १४०६) रचनाएँ प्राप्त होती हैं। संवत् ११९० से १६९९ तक ११६ मूर्तिलेख प्राप्त होते हैं। एक पट्टावली से श्रीचन्द्रसूरि के हरिभद्रसूरि, सिद्धसूरि और मानदेवसूरि शिष्य थे। ३८. हारीजगच्छ - पाटण और शंखेश्वर के मध्य हारीज स्थान से इसका उद्भव माना जाता है। कातन्त्र व्याकरण पर दुर्गसिंहवृत्ति पर अवचूर्णि संवत् १५५६ की कृति प्राप्त होती है। संवत् १३३० से लेकर १५७७ तक २१ लेख प्राप्त होते हैं। इस प्रकार इस विविधगच्छीय पट्टावली संग्रह में ३८ गच्छों का विवरण दिया गया है जिनमें से काम्यकगच्छ, कृष्णर्षिगच्छ, चन्द्रकुलगच्छ, नागेन्द्रगच्छ, निवृत्तिकुल और विद्याधरकुल यह छः प्राचीन परम्पराएँ हैं। और शाखाओं में आगमिकगच्छ, कंवलागच्छ, चैत्रगच्छ, सलखणपुराशाखा, 38 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ, त्रिभवीयाशाखा, पूर्णिमागच्छ, ढं ढेरियाशाखा, सार्धपूर्णिमागच्छ, भीमपल्लीयाशाखा और रत्नपुरीयाशाखा कुल ११ शाखाएँ गच्छों की शाखा के रूप में हैं। इस प्रकार शाखाओं को यदि पृथक् किया जाए तो २७ गच्छ रहते हैं। धन्यवाद "जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास' के लेखक साहित्योपासक डॉ. शिवप्रसाद इस विषय के सुनिष्णात एवं विद्वान् लेखक हैं, उन्होंने प्राचीन साक्ष्यों एवं विविधगच्छीय पट्टावलियों के आधार पर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास लिखा है। इसके पहले इस प्रकार का कोई प्रयत्न हुआ हो, ऐसा प्रतीत भी नहीं होता है। वस्तुतः इसके लेखक ने इन गच्छों का इतिहास लिखकर गच्छ सम्बन्धी साहित्य पर प्रकाश डालकर एक अभूतपूर्व एवं सराहनीय कार्य किया है। यह मेरे साहित्यिक कार्यों के सहयोगी हैं। भविष्य में भी इस प्रकार का प्रयत्न करते रहेंगे, इसी आशा के साथ...! समय-समय पर इसके लेखक ने अपने विविध लेखों के द्वारा इस गच्छ का इतिहास लिखना प्रारम्भ किया था जो श्रमण आदि में प्रकाशित होते रहे हैं। पुस्तक रूप में उसके प्रकाशन में श्रुतवारिधि अनुसंधित्सुओं को निरन्तर सहयोग देने वाले प.पू. आचार्य श्री विजयमुनिचन्दसूरिजी महाराज ने रस लेकर जो सहयोग प्रदान किया है इसके लिए वे भी साधुवाद के पात्र हैं। संवत् २०६७ सा. वा. महोपाध्याय विनयसागर जयपुर 39 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PLEASE 33238888888888888885668 . . ..... HTRATHIHEREHERE ALEHREEEEEEE H 8688888888 ॐ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-१ गच्छों के इतिहास के मल स्त्रोत किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय के इतिहास के स्रोत के रूप में भी साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्यों का अध्ययन अपरिहार्य है । प्राक् मध्ययुग में निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय में समय-समय पर उद्भूत विभिन्न गच्छों और उनसे निःश्रृत (उत्पन्न) शाखाओं-उपशाखाओं के इतिहास के अध्ययन के सम्बन्ध में भी ठीक यही बात कही जा सकती है। साहित्यिक साक्ष्य गच्छों के इतिहास से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, प्रथम ग्रन्थ या पुस्तक प्रशस्तियाँ और द्वितीय विभिन्न गच्छों के मुनिजनों द्वारा रची गयी अपने-अपने गच्छों की पट्टावलियाँ। प्रशस्तियाँ पुस्तकों के साथ सम्बन्ध रखनेवाली प्रशस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं । इनमें से एक तो वे हैं जो ग्रन्थों के अन्त में उनके रचयिताओं द्वारा बनायी गयी होती हैं। इनमें मुख्य रूप से रचनाकार द्वारा गण-गच्छ तथा अपने. गुरु-प्रगुरु आदि का उल्लेख होता है । किन्हीं-किन्हीं प्रशस्तियों में रचनाकाल. और रचनास्थान का भी निर्देश होता है । किसी-किसी प्रशस्ति में तत्कालीन शासक या किसी बड़े राज्याधिकारी का नाम और अन्य ऐतिहासिक सूचनायें भी मिल जाती हैं। कुछ प्रशस्तियाँ छोटी दो-चार पंक्तियों की और कुछ बड़ी होती हैं । इन प्रशस्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न गण-गच्छों के जैनाचार्यों की गुरु-परम्परा, उनका समय, उनका कार्यक्षेत्र और उनके द्वारा की गयी समाजोत्थान एवं साहित्य सेवा का संकलन कर उनकी परम्पराओं का अत्यन्त प्रामाणिक इतिहास तैयार किया जा सकता है। दूसरे प्रकार की प्रशस्तियाँ वे हैं जो प्रतिलिपि किये गये ग्रन्थों के अन्त Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास में लिखी होती हैं । ये भी दो प्रकार की होती हैं । प्रथम वे जो किन्हीं मुनिजनों या श्रावक द्वारा स्वयं के अध्ययनार्थ लिखी गयी होती हैं और दूसरी वे जो श्रावकों द्वारा स्वयं के अध्ययनार्थ या किन्हीं मुनिजनों को भेंट देने हेतु दूसरों से (लेहिया से) द्रव्य देकर लिखवाई जाती हैं । ___ गच्छों के इतिहास की सामग्री की दृष्टि से प्रशस्तियाँ राजाओं के दानपत्रों और मन्दिरों के शिलालेखों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं । तथ्य की दृष्टि से इनमें कोई अन्तर नहीं होता; अन्तर यही है कि एक पाषाण या ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण होता है तो दूसरा ताड़पत्र या कागजों पर ।। गुजरात के पाटण, खंभात, अहमदाबाद, बड़ौदा और लिम्बडी; राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, कोटा आदि तथा भण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्सिट्यूट, पुणे के ग्रन्थ भण्डारों में जैन ग्रन्थों का विशाल संग्रह विद्यमान है । पीटर पीटर्सन, मुनि जिनविजयजी, मुनि पुण्यविजयजी, श्री चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, पण्डित लालचन्द भगवान गांधी, प्रो. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, पण्डित अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह, डॉ. विधात्री वोरा, श्री जौहरीमल पारेख आदि विद्वानों के अथक परिश्रम से उक्त भण्डारों के विस्तृत सूचिपत्र प्रकाशित हो चुके हैं । इनका विवरण इस प्रकार है। 1. P. Peterson, Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, Vol. I-VI, Bombay 1882-1898 A.D. 2. C.D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandaras at Pattan, Vol. 1, G.O.S. No. LXXVI, Baroda 1937. 3. H.R. Kapadia, Descriptive Catalogue of the Government Collections of Manuscripts deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. XVII-XIX, Poona 1935-1977. 4. Muni Punya Vijaya, Catalogue of Palm-Leaf Mss. in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay. Vol. I, II, G.O.S., Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छों के इतिहास के मूल स्रोत No. 139, 149, Baroda 1961-1966 A.D. 5. A.P. Shah, Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Muni Shree Punya Vijayjis collection, Vol. I, II, III, L.D. Series No. 2, 6, 16. Ahmedabad 1962, 1965, 1968 A.D. ३ 6. A. P. Shah, Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Ac. Vijaydevsuris and Ac. Ksantisuris collection, Vol. IV., L.D. Series, No. 20, Ahmedabad 1968 A.D. 7. Muni Pujya Vijaya, New Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Jesalmer collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad 1972 A.D. 8. Vidhatri Vora, Catalogue of Gujarati Mss in the Muniraj Shree Punya Vijayji's collection, L.D. Series No. 70, Ahmedabad 1978 A.D. ९. अमृतलाल मगनलाल शाह, सम्पा० श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैन साहित्य प्रदर्शन, श्री देशविरति धर्माराधक समाज, अहमदाबाद वि. सं. १९९३. १०. मुनि जिनविजय, सम्पा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक-१८, भारतीय विद्याभवन, मुंबई १९४३ ई .. पट्टावलियाँ श्वेताम्बर गच्छों के इतिहास लेखन में उपरोक्त साक्ष्यों की भाँति पट्टावलियों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। श्वेताम्बर जैन मुनिजनों ने इनके माध्यम से इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। शिलालेख, प्रतिमा लेख और ग्रन्थ- प्रशस्तियों से केवल हम इतना ही ज्ञात कर पाते हैं कि किस काल में किस मुनि ने क्या कार्य किया । अधिक से अधिक उस समय के शासक एवं मुनि के गुरु- परम्परा का ही परिचय मिल पाता है । किन्तु पट्टावली में अपनी परम्परा से सम्बन्धित पट्ट परम्परा का पूर्ण परिचय होता है । फिर भी इनमें किसी घटना विशेष के सम्बन्ध में अथवा किसी आचार विशेष के सम्बन्ध में प्रायः अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण ही मिलते हैं। अत: ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से इनकी उपयोगिता पर 1 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पूर्णरूपेण विश्वास नहीं किया जा सकता । चूंकि इनके संकलन या रचना में किंवदन्तियों एवं अनुश्रुतियों के साथ-साथ कदाचित् तत्कालीन रास-गीत-सज्झाय आदि का भी उपयोग किया जाता है इसीलिए इनके विवरणों पर पूर्णतः अविश्वास भी नहीं किया जा सकता है और इनके उपयोग में अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता पड़ती है। ४ पट्टावलियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं । प्रथम शास्त्रीय पट्टावली और दूसरी विशिष्ट पट्टावली । प्रथम प्रकार में सुधर्मास्वामी से लेकर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक का विवरण मिलता है । कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की पट्टावलियाँ इसी कोटि में आती हैं। गच्छ-भेद के बाद विविध पट्टावलियाँ विशिष्ट पट्टावली की कोटि में रखी जा सकती हैं । इनकी अपनी-अपनी विशिष्टताएँ होती हैं । पट्टावलियों में मुख्य रूप से पट्टधर आचार्यों का ही विवरण मिलता है । अन्य आचार्यों का नहीं । कहीं-कहीं प्रसंगवश उनके गुरुभ्राताओं का भी नामोल्लेख मिल जाता है । इनके द्वारा ही आचार्य परम्परा अथवा गच्छ का क्रमबद्ध पूर्ण विवरण प्राप्त होता है, जो इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । श्वेताम्बर परम्परा में विभिन्न गच्छों की जो पट्टपरम्परा मिलती है, उसका श्रेय पट्टावलियों को ही है । > पट्टावलियों के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, इनमें मुनिदर्शनविजयजी द्वारा सम्पादित पट्टावलीसमुच्चय भाग १ - २, मुनि जिनविजयजी द्वारा सम्पादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, मुनि कल्याणविजय गणि द्वारा सम्पादित पट्टावलीपरागसंग्रह उल्लेखनीय हैं। स्व. मोहनलाल दलीचंद देसाई जैन गूर्जर कविओ (नवीन संस्करण संपा. डॉ. जयन्त कोठारी,) भाग ९ में भी विभिन्न गच्छों की पट्टावलियों प्रकाशित की हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उन सभी का यथास्थान उपयोग किया गया है । अभिलेखीय साक्ष्य श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विभिन्न गच्छों से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्य मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं १. प्रतिमालेख, २. शिलालेख । Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छों के इतिहास के मूल स्रोत धातु या पाषाण की अनेक जिनप्रतिमाओं के पृष्ठ भाग या आसनों पर लेख उत्कीर्ण होते हैं । इसी प्रकार विभिन्न तीर्थस्थलों पर निर्मित जिनालयों से अनेक शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। इन लेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक या प्रतिमा के प्रतिष्ठा हेतु प्रेरणा देनेवाले मुनि का नाम होता है तो किन्हीं-किन्हीं लेखों में उनके पूर्ववर्ती दो-चार मुनिजनों के भी नाम मिल जाते हैं । किन्हीं-किन्हीं लेखों में तत्कालीन शासक का भी नाम मिल जाता है । इतिहास लेखन में उक्त साक्ष्यों का बड़ा महत्व है। शिलालेखों में सामान्य रूप से जिनालयों के निर्माण, पुनर्निर्माण, जीर्णोद्धार आदि कराने वाले श्रावक का नाम, उसके कुटुम्ब एवं जाति आदि का परिचय, प्रेरणा देनेवाले मुनिराज का नाम, उनके गच्छ का नाम, उनकी गुरु-परम्परा में हुए पूर्ववर्ती दो-चार मुनिजनों का नाम, शासक का नाम, तिथि आदि का सविस्तार परिचय दिया हुआ होता है । __ श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध अभिलेखों के विभिन्न संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । इनका विवरण इस प्रकार है - जैनलेखसंग्रह, भाग-१-३; संपा० पूरनचंद नाहर, कलकत्ता १९१८, १९२७, १९२९ ई.। प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग-१-२; संपा. मुनि जिनविजय, जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर १९२१ ई.। जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग-१-२; संपा० आचार्य बुद्धिसागरसूरि, श्री अध्यात्म ज्ञानप्रसारक मंडल, पादरा १९२४ ई.। ___ प्राचीनलेखसंग्रह, संग्रा. आचार्य विजयधर्मसूरि, संपा० मुनि विद्याविजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९२९ ई. । __ अर्बुद प्राचीनजैनलेखसंदोह,(आबू, भाग-२), संपा. मुनि जयन्तविजय, विजयधर्मसूरि ज्ञानमंदिर, उज्जैन वि० सं० १९९४ । अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग-५), संपा० मुनि जयन्तविजय, यशोविजय जैनग्रन्थमाला, भावनगर वि० सं० २००५ । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जैनधातुप्रतिमालेख, संपा० मुनि कांतिसागर, श्रीजिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार, सुरत १९५० ई० । प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग - १, संपा० महोपाध्याय विनयसागर, सुमतिसदन, कोटा १९५३ ई०, , भाग-२, जयपुर २००३ ई० । बीकानेरजैनलेखसंग्रह, संपा० अगरचंद नाहटा एवं भंवरलाल नाहटा, नाहटा ब्रदर्स, ४, जगमोहन मल्लिक लेन, कलकत्ता १९५५ ई० । श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० श्री दौलतसिंह लोढा " अरविन्द" धामणिया, मेवाड़ १९५५ ई० । राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० मुनि विशालविजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९६० ई० । शत्रुंजयगिरिराजदर्शन, संपा० मुनि कंचनसागर, कपडवज १९८३ ई० । नाकोड़ापार्श्वनाथतीर्थ - संपा० महो० विनयसागर, कुशलसंस्थान, पुष्प - १, जयपुर १९८८ ई० । बाड़मेर जिले के प्राचीन जैनशिलालेख, संग्रा० संपा० - चम्पालाल सालेचा, प्रकाशक- जैन श्वे. नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, पो० मेवानगर, जिलाबाड़मेर १९८७ ई० । शत्रुंजयवैभव, संम्पा० मुनि कान्तिसागर, कुशलसंस्थान, पुष्प-४, जयपुर १९९० ई० । पाटणजैनप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० लक्ष्मण भोजक, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली २००० ई० अर्बुद परिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मंदिरावलि, संग्राहकसंपा० सोहनलाल पटनी, सिरोही २००२ ई० । Jain image inscriptions of Ahmedabad, Ed. Praveen Chandra C. Parikh And Bharti Shelat, B. J. Institute of Learning and Research, Ahmedabad 1997 A.D. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-२ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप भगवान् महावीर के निर्वाण के उपरान्त जैन संघ का नायकत्व उनके गणधर सुधर्मास्वामी ने किया । सुधर्मास्वामी के पश्चात् क्रमशः जम्बूस्वामी, प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, सम्भूतविजय, भद्रबाहु, स्थूलिभद्र, आर्यमहागिरि, सुहस्ती आदि विभिन्न स्थविरों ने क्रमशः निर्ग्रन्थ संघ का नेतृत्व किया । पर्युषणाकल्प की 'स्थविरावली'१, जिसका प्रारम्भिक भाग ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी का माना जाता है,२ में इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इस स्थविरावली में भी दो प्रकार का विवरण है, प्रथम तो संक्षिप्त और द्वितीय अपेक्षाकृत विस्तृत । संक्षिप्त स्थविरावली में सर्वप्रथम सुधर्मास्वामी का नाम आता है, उनके पश्चात् क्रमशः जम्बूस्वामी, प्रभव, शय्यंभवसूरि और यशोभद्रसूरि का नाम दिया गया है । यशोभद्रसूरि के दो शिष्य हुए, प्रथम सम्भूतविजय और द्वितीय भद्रबाहु । सम्भूतविजय के पट्टधर स्थूलिभद्र हुए । स्थूलिभद्र के दो शिष्यों-आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ति का नाम मिलता है । सुहस्ति के शिष्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध हुए। इनके पश्चात् क्रमशः आर्यइन्द्रदिन्न, आर्यदिन्न, आर्यसिंहगिरि और आर्यवज्र हुए । आर्यवज्र के ४ शिष्य-नागिल, पद्मिल, जयन्त और तापस हुए जिनसे क्रमशः नागिली, पद्मिली, जयन्ती और तापसी शाखायें अस्तित्व में आयी । उक्त संक्षिप्त स्थविरावली को एक तालिका के रूप में इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है: Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ सम्भूतविजय स्थूलिभद्र महागिरि सुहस्ति सुस्थित इन्द्रदिन आर्यदिन्न | आर्यसिंहगिरि --- नागिली शाखा प्रारम्भ T आर्यवज्र आर्यनागिल आर्यपद्मिल जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास आर्य सुधर्मा --- पद्मिली शाखा प्रारम्भ जम्बूस्वामी प्रभव सुप्रतिबुद्ध शय्यभव यशोभद्र आर्यजयन्त --- जयन्ती शाखा प्रारम्भ भद्रबाहु आर्यतापस --- तापसी शाखा प्रारम्भ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप पर्युषणाकल्प की विस्तृत 'स्थविरावली" में भी सुधर्मा से लेकर यशोभद्र तक वही नाम आये हैं, जो संक्षिप्त स्थविरावली में हम ऊपर देख चुके हैं। यशोभद्र के दो शिष्यों भद्रबाहु और संभूतविजय का इसमें भी नाम मिलता है। भद्रबाहु के ४ शिष्य हुए १. गोडास, २. अग्निदत्त, ३. यज्ञदत्त, ४. सोमदत्त | गोडास से गोडासगण अस्तित्व में आया । इस गण की ४ शाखायें हुई १. ताम्रलिप्तिका २. कोटिवर्षीया ३. पौण्डुवर्धनिका ४. दासीकर्पटिका सम्भूतविजय के १२ शिष्यों का नाम मिलता है, जो इस प्रकार है : १. नन्दनभद्र ७. पूर्णभद्र २. उपनन्द ३. तिष्यभद्र ४. यशोभद्र (द्वितीय) ८. स्थूलिभद्र ९. ऋजुमति १०. जम्बू ११. दीर्घभद्र ५. सुमनोभद्र ६. मणिभद्र १२. पाण्डुभद्र इसके पश्चात् सम्भूतिविजय की ६ शिष्याओं का भी नाम मिलता है, जो इस प्रकार हैं : १. यक्षा २. यक्षदत्ता ३. भूता ४. भूतदत्ता स्थूलभद्र के दो शिष्य हुए - १. आर्यमहागिरि और २. आर्यसुहस्ति । आर्यमहागिरि के ८ शिष्यों का नाम मिलता है : ५. सेणा ६. वेणा ७. रेणा Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १. उत्तर ५. कौडिन्य २. वल्लिसह ६. नाग ३. धनद्धि ७. नागमित्र ४. शिरद्धि ८. षड्लूक रोहगुप्त स्थविर उत्तर और बल्लिसह से उत्तरबल्लिसहगण निकला। इस गण की ४ शाखायें हुईं। १. कौशाम्बिका २. सौमित्रिका ३. कोटुम्बिनी ४. चन्द्रनागरी आर्यस्थूलिभद्र के दूसरे शिष्य आर्यसुहस्ति के १२ शिष्यों का नाम मिलता १. आर्यरोहण २. भद्रयश ३. मेघगणि ४. कामधि ५. सुस्थित ६. सुप्रतिबुद्ध ७. रक्षित ८. रोहगुप्त ९. ऋषिगुप्त १०. श्रीगुप्त ११. ब्रह्मगणि १२. सोमगणि Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप आर्यरोहण से उद्देहगण अस्तित्व में आया । इस गण से ४ शाखायें व ६ कुल अस्तित्व में आये : उद्देहगण ४ शाखायें ६ कुल १. औदुम्बरीया १. नागभूतिक २. मासपूरिका २. सोमभूतिक ३. मतिपत्रिका ३. आर्द्रकच्छ ४. सुवर्णपत्रिका ४. हस्तलीय ५. नान्दिक ६. पारिहासक श्रीगुप्त से चारणगण निकला । इस गण से ४ शाखायें व ७ कुल अस्तित्व में आये जो इस प्रकार हैं :४ शाखायें ७ कुल १. हारितमालागारिक १. वत्सलीय २. संकाशिका २. प्रीतिधर्मक ३. गवेधुका ३. हरिद्रक ४. वज्रनागरी ४. पुष्पमित्रक ५. माल्यक ६. आर्यचेटक ७. कृष्णसखा आर्यभद्रयश से उड्डवाडिय (ऋतुवाटिक) गण निकला । इस गण से ४ शाखायें व ३ कुल अस्तित्व में आये :ऋतुवाटिक गण ४ शाखायें ३ कुल १. चम्पार्जिका १. भद्रयशिक २. भद्राणिका २. भद्रगौप्तिक Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ३. काकन्दिका ४. मेखलर्जिका आर्यकामर्द्धि से वेशवाटिक गण अस्तित्व में आया । इस गण से ४ शाखायें व ४ कुल निकले वेशवाटिक गण ४ शाखायें १. श्रावस्तिका २. राजपालिका ३. अन्तरंजिका ४. सेमलिया ४ कुल १. गणिक २. मेधिक ३. कामर्दिधक ४. वेशवाडिय आर्यऋषिगुप्त से मानवगण निकला । इस गण से ४ शाखायें व ३ कुल अस्तित्व में आये : मानवगण ४ शाखायें १. काश्यवर्जिका २. गौतमीया जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ३. यशोभद्रीय ३. वाशिष्ठिया ४. सौराष्ट्रका ३ कुल १. ऋषिगोत्रक २. ऋषिदत्तिक ३. अभिजयन्त सुहस्ति- सुप्रतिबुद्ध से कोटिकगण अस्तित्व में आया । इस गण से ४ शाखायें व ४ कुल अस्तित्व में आये : कोटिकगण ४ शाखायें १. उच्च नागरी २. विद्याधरी ३. वज्री ४. मध्यमिका ४ कुल १. ब्रह्मलिप्तिक २. वत्सलिप्तिक ३. वाणिज्य ४. प्रश्नवाहन Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप __ सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध के ५ शिष्य विख्यात हुए, जिनके नाम इस प्रकार १. आर्यइन्द्रदिन्न २. स्थविर प्रियग्रन्थ ३. विद्याधर गोपाल ४. स्थविर ऋषिदत्त ५. स्थविर अर्हदत्त स्थविर प्रियग्रन्थ से मध्यमिका शाखा और स्थविर विद्याधर गोपाल से विद्याधरी शाखा अस्तित्व में आयी । आर्यइन्द्रदिन के शिष्य आर्यदिन्न हुए । आर्यदिन्न के दो शिष्य हुए :१. शांतिश्रेणिक २. सिंहगिरि आर्य शांतिश्रेणिक (शांतिसेन) से उच्चैर्नागर शाखा प्रारम्भ हुई। शांतिसेन के ४ शिष्य हुए। १. आर्यश्रेणिक २. आर्य तापस ३. आर्य कुबेर ४. आर्य ऋषिपालित उक्त चारों शिष्यों से उन्हीं के नामों वाली शाखायें अस्तित्व में आयीं । आर्य सिंहगिरि के ४ शिष्य हुए :१. धनगिरि २. आर्यवज्र ३. आर्यसमित ४. आर्यअर्हद्दत्त Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ___ आर्यवज्र से वज्रीशाखा और आर्यसमित से ब्रह्मदीपिका शाखा अस्तित्व में आयी। आर्यवज्र के ३ शिष्य हुए - १. आर्य वज्रसेन २. आर्य पद्म ३. आर्य रथ इनसे क्रमशः नागिली, पद्मा और जयन्ती शाखा प्रारम्भ हुईं। उक्त स्थविरावली में आर्य रथ के पश्चात् जिन आचार्यों के नाम मिलते हैं, वे इस प्रकार हैं : (१) पुष्पगिरि ___ (२) फल्गुमित्र (३) धनगिरि (४) शिवभूति (५) आर्य भद्र 'प्रथम' (६) आर्य नक्षत्र (७) आर्य रक्ष (८) आर्य जेष्ठिल (९) आर्य विष्णु (१०) आर्य कालक (११) आर्य सम्पालित (१२) आर्य भद्र 'द्वितीय' (१३) आर्य वृद्ध (१४) आर्य संघपालित (१५) आर्य हस्ति (१६) आर्य धर्म 'प्रथम' (१७) आर्य सिंह (१८) आर्य धर्म 'द्वितीय' (१९) आर्य शाण्डिल्य इसी स्थविरावली में आगे १४ गाथाओं में विभिन्न आचार्यों का नाम देते हुए उनकी वन्दना की गयी है और अन्त में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण को प्रणाम किया गया है । इसे कल्पसूत्रगत स्थविरावली का तृतीय खंड मान सकते हैं। इसमें उल्लिखित आचार्यों का क्रम निम्नानुसार है : १. फल्गुमित्र १४. आर्य भद्र २. धनगिरि १५. आर्य वृद्ध Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप ३. शिवभूति १६. संघ पालित ४. दुर्जयन्त कृष्ण १७. आर्य हस्ति ५. भद्र १८. आर्य धर्म ६. नक्षत्र १९. आर्य सिंह ७. रथ २०. आर्य धर्म ८. नाग २१. आर्य जम्बू ९. जेष्ठिल २२. आर्य नंदियमापिय १०. विष्णु २३. दूष्यगणि ११. कालक २४. स्थिरगुप्त १२. कुमारभद्र २५. कुमारधर्म १३. संपलित २६. देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण स्थविरों की उक्त तालिका में दुर्जयन्त कृष्ण और कुमारभद्र को छोड़कर शेष नाम वही हैं, जो पूर्व में हम कल्पसूत्र की. 'स्थविरावली' के द्वितीय खंड में देख चुके है । इस विस्तृत 'स्थविरावली' अर्थात् 'स्थविरावली' के द्वितीय खंड में आये शाण्डिल्य के गुरु का नाम धर्म आया है, जब कि ऊपर हम देख चुके हैं, 'स्थविरावली' के तृतीय खंड में आर्यज़म्बू के गुरु का नाम धर्म मिलता है । इस प्रकार आर्य शाण्डिल्य और आर्य जम्बू परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं । आर्य धर्म के पश्चात् दो अलग-अलग शाखायें हो जाती हैं, जिन्हें निम्न रूप में रखा जा सकता है । आर्यधर्म आर्यजम्बू आर्य शाण्डिल्य नंदियमापिय Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास दूष्यगणि स्थिरगुप्त कुमारधर्म देवधि देववाचक कृत नन्दीसूत्र में वाचक वंश की 'स्थविरावली' मिलती है, जो इस प्रकार है :१. सुधर्मा १५. समुद्र २. जम्बूस्वामी १६. मंगु ३. प्रभव १७. नंदिल ४. शय्यंभव १८. नागहस्ति ५. यशोभद्र १९. रेवतीमित्र ६. सम्भूतविजय २०. ब्रह्मदीपिकासिंह ७. भद्रबाहु २१. स्कन्दिलाचार्य ८. स्थूलभद्र २२. हिमवन्त ९. महागिरि २३. नागार्जुन १०. सुहस्ति २४. गोविंद ११. वल्लिसह २५. भूतदिन १२. स्वाति २६. लौहित्य १३. श्यामाचार्य २७. दूष्यगणि १४. शाण्डिल्य नन्दीसूत्र की उक्त 'स्थविरावली' में आर्यसुहस्ति के पश्चात् जिन-जिन वाचकों के नाम मिलते हैं, उनके क्रम में न तो उनके समय का ध्यान रखा गया है और Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप न ही उनके गुरु-परम्परा का वस्तुतः यह एक ऐसी तालिका है, जिसमें देववाचक ने अपने पूर्ववर्ती आचार्यों का श्रद्धावश स्मरण किया हैं। नन्दीचूर्णी के कर्ता जिनदासगणि महत्तर ने उन्हें (देववाचक को) दृष्यगणि का शिष्य कहा है। यद्यपि देववाचक ने 'स्थविरावली' के अन्त में दूष्यगणि का नाम दिया है परन्तु • उन्हें कहीं भी अपना गुरु नहीं कहा है। कल्पसूत्र 'स्थविरावली' के तृतीय भाग में देसीगणि (दूष्यगणि) का नाम आ चुका है जिन्हें देववाचक के गुरु दूष्यगणि से अभिन्न मानने में कोई बाधा नहीं है । इस प्रकार कल्पसूत्र 'स्थविरावली' के आधार पर संकलित तालिका को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है : आर्यरथ आर्यधर्म आर्यजम्बू आर्य शाण्डिल्य नंदियमापिय दुष्यंगणि देववाचक स्थिरगुप्त क्षमाश्रमण (नन्दीसूत्र के कर्ता) कुमारधर्म देवर्धिगणी क्षमाश्रमण(वीर निर्वाण ९५० अथवा ९९३ में वलभी में आगमों को पुस्तकारूढ करनेवाली वाचना के प्रधान) Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देवधिगणि क्षमाश्रमण और देववाचक को मुनि कल्याणविजयजी", आचार्य आत्मारामजी", आचार्य हस्तिमलजी आदि ने एक ही व्यक्ति माना है। चूंकि तपागच्छीय आचार्य देवेन्द्रसूरि रचित कर्मग्रन्थ की स्वोपज्ञवृत्तिमा नन्दीसूत्र के कर्ता का नाम देवर्धि दिया है। अंचलगच्छीय आचार्य मेरुतुंगसूरि ने भी अपनी कृति स्थविरावली अपरनाम विचारश्रेणि में पट्टक्रम का निर्देश करते हुए भूतदिन्न, लोहित्य और दूष्यगणि के पश्चात् देवधि का नाम दिया है। चूंकि नंदीचूर्णी में दूष्यगणि के शिष्य के रूप में देववाचक का नाम दिया है। इस आधार पर उक्त विद्वानों ने अपना मत व्यक्त किया है। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि एक ही ग्रन्थकार अपने दो अलग-अलग ग्रन्थों में अपना दो अलग-अलग नाम और अलग-अलग गुरु-परंपरा नहीं दे सकता । साथ ही देवेन्द्रसूरि से लगभग ६०० वर्ष पूर्व हुए जिनदासगणि ने नंदीचूर्णि में स्पष्टरूप से देववाचक को दूष्यगणि का शिष्य बतलाया है, अत: देववाचक और देवधि न केवल अलग-अलग व्यक्ति हैं, बल्कि देववांचक उनसे दो पीढी पूर्व हुए हैं । जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं । चूंकि देववाचक का समय ४५० ई. के आसपास माना जाता है । अतः देवधि का समय भी ५०० ई. के आसपास रखने में कोई बाधा नहीं है। जैसा कि हम पीछे देख चुके हैं कल्पसूत्र की स्थविरावली के अनुसार भद्रबाहु के शिष्य गोडास से गोडास गण की उत्पत्ति हुई । इस गण की चारों शाखायें बंगाल के विभिन्न स्थानों से सम्बद्ध हैं। ये शाखायें ईस्वी पूर्व की चौथी शताब्दी में विद्यमान थीं । इन शाखाओं में से तीन तो बंगाल के प्रसिद्ध स्थानों में से हैं । प्रथम शाखा ताम्रलिप्तिका के सम्बन्ध में तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है । कोटिवर्ष को पण्णवणासूत्र में लाढ़ देश की राजधानी कहा गया है । पुण्ड्रवर्धन उत्तरी बंगाल में स्थित है। यह उल्लेखनीय है कि महावीर ने अपने विहारक्रम में बंगाल के भी कुछ क्षेत्रों की यात्रा की थी। इस आधार पर यह संभावना व्यक्त की जाती है कि उनकी मृत्यु के पश्चात् वहां उनके उपदेशों का प्रचार Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप हुआ होगा । आचार्य हरिषेण द्वारा रचित बृहत्कथाकोश (रचनाकाल वि.सं. ९८७/ई०स० ९३१) के अनुसार आचार्य भद्रबाहु का जन्म पुण्ड्रवर्धन देश के 'देवकोट्ट' नामक नगर में हुआ था । २ भद्रबाहु के वंगभूमि में जन्म लेने के कारण उनके शिष्य गोडास द्वारा स्थापित चार शाखाओं का वहां के विभिन्न स्थानों से सम्बन्ध होना स्वाभाविक ही है । मोरियपुत्र, जिसने महावीर के जीवनकाल में ही जैनधर्म स्वीकार कर लिया था, ताम्रलिप्ति का निवासी था । भगवतीसूत्र में इसके सम्बन्ध में विस्तृत कथानक प्राप्त होता है। उत्तरबल्लिसहगण की चार शाखाओं में से एक शाखा-कौशाम्बिका का सम्बन्ध वत्स जनपद की राजधानी कौशाम्बी से था । कौशाम्बी की स्थापना हस्तिनापुर के बाढ से नष्ट हो जाने के पश्चात् की गयी थी। महावीर और बुद्ध ने यहां विहार किया था । महावीर के समय उदयन वहां का शासक था । जब महावीर वहां पधारे थे तो उसने उनकी वन्दना की थी । भगवतीसूत्र के अनुसार इसी नगरी में उदयन की चाची जयन्ती ने श्रमणी दीक्षा ग्रहण कर ली थी। महावीर ने उपवास के पश्चात् प्रथम बार यहां आहार ग्रहण किया था। ऐसे प्रसिद्ध स्थान पर ई० पू० ३०० के आसपास जैन धर्म की एक शाखा स्थापित होना अस्वाभाविक नहीं लगता। उत्तरबल्लिसहगण की दूसरी शाखा सौमित्रिका की पहचान सुक्तमती से की गयी है, जो मध्यभारत के दक्षिणी विभाग में विंध्याचल की घाटियों की तराई में थी। यहां भी ई० पू० की तीसरी शताब्दी के आस-पास जैन श्रमणों का प्रवेश हो चुका था । इस गण की दो अन्य शाखाओं - कौटुम्बिनी और चन्द्रनागरी के सम्बन्ध में मुनि कल्याणविजयजी का मत है कि वे पूर्वी भारत से सम्बद्ध हैं। चन्द्रनगर को मात्र नामसाम्य के आधार पर वे पूर्वफ्रांसीसी बस्ती चन्द्रनगर से समीकृत मानते हैं । आर्यरोहण से प्रारम्भ हुए उद्देहगण की औदुम्बरीया शाखा को मुनि कल्याणविजयजी ने प्राचीन श्रावस्ती के निकट स्थित माना है। जबकि अन्य विद्वानों ने औदुम्बर की पहचान पंजाब के औदुम्बर गण से की है। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास यहां से इस गण की मुद्रायें बडी संख्या में प्राप्त हुई हैं । ये मुद्रायें ईस्वी पूर्व की शताब्दियों की हैं, जिनके आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि २५० ई० पू० के आस-पास यह शाखा अस्तित्व में आ चुकी थी और इस समय इस क्षेत्र में जैन धर्म अच्छी तरह से प्रसारित हो चुका था। आर्य भद्रयश से ईस्वी पूर्व तृतीय शती के मध्य में अस्तित्व में आयी विभिन्न शाखाओं में दो शाखायें भद्रार्जिका और काकन्दिका इन्ही नामवाले नगरों से निःश्रृत हुई थीं । जैन साहित्य में इन नगरियों के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं। __ सुहस्ति के शिष्य कामद्धि द्वारा स्थापित विभिन्न शाखाओं में श्रावस्ति - का शाखा श्रावस्ती से अस्तित्व में आयी थी। अपने जीवनकाल में महावीर का यहां कई बार आगमन हुआ था । गोशाल और जामालि ने भी यहां अपने धर्म का प्रचार किया था। सुहस्ति के शिष्य ऋषिगुप्त द्वारा स्थापित विभिन्न शाखाओं में सौराष्ट्रिका शाखा का स्थान महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है । इस शाखा के नामकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि ईस्वी पूर्व तीसरी शताब्दी में गुर्जर प्रान्त में न केवल जैन धर्म का प्रचार हो चुका था,६ बल्कि वहां उस समय विकसित दशा में विद्यमान रहा और उसी स्थिति में वहां आज भी विद्यमान है। कोटिक गण की मध्यमिका शाखा को राजस्थान के प्रसिद्ध मध्यमिका नगरी से सम्बद्ध माना जाता है । जैन साहित्य में इस नगरी का विवरण प्राप्त होता है । ईस्वी पूर्व की तीसरी शताब्दी में इस शाखा के अस्तित्व में आने से यह स्पष्ट होता है कि इस समय के पूर्व ही इस क्षेत्र में जैन धर्म का प्रवेश हो चुका था। कोटिक गण की उच्चैर्नागर शाखा को बुहलर और मुनि कल्याणविजयजी ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश में स्थित बुलन्दशहर से प्रायः नामसाम्य के आधार पर समीकृत किया है। प्रो. सागरमल जैन ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर उक्त शाखा को मध्यप्रदेश के सतना जिले में अवस्थित ऊंचेहरा नामक स्थान से समीकृत किया है, जो सत्य प्रतीत होता है। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माह । श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप ___ कल्पसूत्र की ‘स्थविरावली' में उल्लिखित उक्त शाखाओं के आधार पर यह स्पष्ट निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ईस्वी पूर्व की तीसरी शताब्दी तक जैनधर्म भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसारित हो चुका था । बृहत्कल्पसूत्र भाष्य में जैन श्रमणों के विहार की भौगौलिक सीमा निर्धारित की गयी है, जिसके अनुसार उन्हें पूर्व में अंग-मगध, दक्षिण में कौशाम्बी, उत्तर में कुणाला और पश्चिम में थूणा तक ही विहार की अनुमति थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि उक्त ग्रन्थ का यह कथन कल्पसूत्र-'स्थविरावली' में उल्लिखित विभिन्न गण-कुल-शाखाओं के उत्पन्न होने के पूर्व ही रचा जा चुका था । यद्यपि बृहत्कल्पसूत्र बहुत प्राचीन ग्रन्थ नहीं माना जाता है, तथापि उक्त तथ्यों का इस ग्रन्थ में उल्लेख होने से यह कहा जा सकता है कि इसमें सुरक्षित उक्त कथन काफी प्राचीन है। __ स्थविरावलीगत विभिन्न गण-कुल-शाखाओं का नाम मथुरा से प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों में भी प्राप्त होता हैं । उनके अध्ययन से विद्वानों ने जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे इस प्रकार हैं : १. कोटिकगण सबसे अधिक लोकप्रिय रहा है और आज भी यह बहुत अंशों में विद्यमान है । खरतरगच्छ में आज भी दीक्षा के समय कोटिक गण, चन्द्रकुल और वज्रशाखा का नाम उच्चारित किया जाता है । २. कुछ गणों का नामकरण उनके प्रवर्तकों के नाम पर पड़ा, जैसे गोडासगण, उत्तरबल्लिसहगण आदि । ३. कुछ शाखाओं का नामकरण व्यक्तिगत और स्थलों के नाम पर भी हुआ, जैसे इसिपालिय, सावत्थिया, कौशाम्बिका आदि । ४. जैन श्रमणों के विभिन्न गण-कुल-शाखा-सम्भोग आदि में विभाजन की प्राचीनता ईस्वी पूर्व की तीसरी शताब्दी तक जाती है। यह भी संभावना व्यक्त की जा सकती है कि यह विभाजन और भी पहले से चला आ रहा होगा। ५. कल्पसूत्र 'स्थविरावली' में किन्ही सम्भोगों का उल्लेख नहीं मिलता। जबकि मथुरा के अभिलेखों में इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख है। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ६. मथुरा के अभिलेखों और कल्पसूत्र 'स्थविरावली' में किसी भी गच्छ का नाम नहीं मिलता है । कोटिकगण और उसकी शाखाओं का बाद की शताब्दियों में भी प्रचारप्रसार होता रहा । आचार्य उमास्वाति (ईस्वी सन् की तीसरी शताब्दी) भी इसी गण की उच्चैर्नागर शाखा के थे। नन्दीचूर्णि के कर्ता जिनदासगणि महत्तर कोटिकगण, वाणिज्यकुल और वज्रशाखा के थे। दशवैकालिकचूणि के कर्ता अगस्त्यसिंह (ईस्वीसन्-५५०-६००) भी कोटिकगण की वज्रशाखा से सम्बद्ध थे । उनके गुरु का नाम ऋषिगुप्त था। उत्तराध्ययनचूर्णी के कर्ता (नाम-अज्ञात) के गुरु का नाम गोपालगणि महत्तर था, जो कोटिकगण, वाणिज्यकुल और वज्रशाखा के थे । ६ठी-७वीं शताब्दी में कोटिकगण से दो नये कुलों निवृत्ति और चन्द्र अस्तित्व में आये । विशेषावश्यकभाष्य आदि के रचनाकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, उपमितिभवप्रपंचाकथा के कर्ता सिद्धर्षि (९वीं शताब्दी) आदि इसी कुल के थे। चन्द्रकुल से पूर्वमध्यकाल में छोटे-बड़े अनेक गच्छ अस्तित्व में आये। पूर्वमध्यकाल और मध्यकाल का श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय का इतिहास वस्तुतः विभिन्न गच्छों का ही इतिहास है। आगे के पृष्ठों में इन्ही गच्छों के संक्षिप्त इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। संदर्भ: १. पट्टावली समुच्चय, प्रथम भाग, संपा० मुनि दर्शनविजय, वीरमगाम १९३३ ईस्वी, पृष्ठ-३, ८. प्राध्यापक मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर पट्टावली समुच्चय, प्रथम भाग, पृष्ठ-३. वही, प्रथम भाग, पृष्ठ-३-१०. वही, प्रथम भाग, पृष्ठ-८ ५. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप ६. वही, प्रथम भाग, पृष्ठ-११-११. ७. वही, प्रथम भाग, पृष्ठ-११. प्राध्यापक मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर. नन्दीसूत्र, संपादक-आचार्य श्रीआत्मारामजी महाराज, श्री जैन शास्त्रमाला, ग्रन्थांक-८, आचार्य श्री आत्माराम जैन प्रकाशन समिति, लुधियाना १९६६ ई०, मंगलाचरण गाथा-२२ और आगे. प्राध्यापक ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर. ११. नंदीचूर्णी, संपा० मुनि पुण्यविजय, प्राकृत ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक-९, अहमदाबाद १९६६ ईस्वी, प्रस्तावना, पृष्ठ-४. १२. नंदीसूत्र, संपा० आचार्य श्रीआत्मारामजी, मंगलाचरण, गाथा-४८, पृष्ठ-४८. १३. द्रष्टव्य संदर्भ क्रमांक-७ और ८. १४. मुनि कल्याणविजय गणि, संपा० पट्टावलीपरागसंग्रह, जालोर १९६६ ईस्वी, पृष्ठ-५४-६१. १५. नन्दीसूत्र, संपा० आचार्य आत्मारामजी, प्रस्तावना, पृष्ठ-२३-२४. १६. आचार्य हस्तिमलजी, जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग-२, जयपुर १९६७ ईस्वी, पृष्ठ-६८०-८६. १७-१८. वही, भाग-२, पृष्ठ-६८०-८१. १९. नन्दीचूर्णी, संपा० मुनि पुण्यविजयजी, प्रस्तावना, पृष्ठ-४. २०. प्राध्यापक ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर २१. A. K. Chatarjee, A Comprihensive History of Jainism, Vol.I, Calcutta 1984 A.D. P-3. २२. Chatarjee, Ibid, P-23. २३. बृहत्कथाकोश, संपा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक-१७, मुंबई १९४३ ई०, "भद्रबाहुकथानकम्", पृष्ठ-३१७-३१९. २४. M. L. Mehta & K. R. Chandra, Ed. Prakrit Proper Names, Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Vol. I, L.D. Series No. 28, Ahmedabad 1970 A.D., P-334. २५-२६. bid, Pp-207-208. २७. मुनि कल्याणविजय गणि, श्रमण भगवान महावीर, प्रथम आवृत्ति, अहमदाबाद २००२ ईस्वी, पृष्ठ ३७२. २८-३०. मुनि कल्याणविजय, पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ-२१, पाद टिप्पणी ३१. वही, पृष्ठ-२२, पाद टिप्पणी क्रमांक-१ ३२-३३. Chatarjee, Ibid, Vol. I, P-38 ३४. Mehta & Chandra, Ibid, Vol. I, 780-81. ३५-३६. Chatarjee, lbid, P-39. ३७. bid, P-40. मुनि कल्याणविजयजी, पूर्वोक्त, पृष्ठ-३७. ३८. मुनि कल्याणविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ-३७-३८. ३९. "उच्चै गर शाखा के उत्पत्तिस्थान एवं उमास्वाति के जन्मस्थल की पहचान" श्रमण, वर्ष-४२, अंक-६-१२, पृष्ठ-१७-२४. बृहत्कल्पसूत्र १-५०. उद्धृत-जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, परिशिष्ट-१, पृष्ठ-५५८. ४१. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग-३, प्रस्तावना, पृष्ठ-१५-१६. S. B. Deo, History of Jain Monachism, P-575-578. J. P. Singh, Aspect of Early Jainism, P.-36-51. ४२. तत्त्वार्थसूत्र, विवेचक पं० सुखलाल संघवी, प्रस्तावना, पृष्ठ-४-५. ४३. नन्दीसूत्र, जिनदासगणि महत्तर कृत चूर्णि सहित, संपा० मुनि पुण्यविजय, प्रस्तावना, पृष्ठ-५ और आगे. ४४. दशवैकालिकसूत्र, नियुक्ति एवं चूर्णि सहित, संपा० मुनि पुण्यविजयजी, प्राकृत ग्रन्थ परिषद, ग्रन्थांक १७, अहमदाबाद १९७३ ईस्वी, प्रस्तावना, पृष्ठ १६-१७. ४०. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप ४५. वाणिजकुल संभूतो कोडियगणितो य विज्जसाहीतो । गोवालियमहत्तरओ विक्खातो आसि भोगम्मि ॥ १ ॥ ससमय-परसमयविऊ ओयस्सी देहिमं सुगंभीरो । सीसगणसंपरिवुडो वक्खाणरतिप्पियो आसी ॥ २ ॥ तोसिं सीसेण इमं उत्तरझयणाण चुण्णिखंडं तु । रइयं अणुग्गहत्थं सीसाणं मंदबुद्धीणं ॥ ३ ॥ जं सत्थं उस्सुतं अयाणमाणेण विरतितं होज्जा । तुं अणुओगधरा मे अणुचिंतेउ समारंतु ॥ ४ ॥ वही, प्रस्तावना, पृष्ठ-८. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-३ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय विश्व के सभी धर्म एवं सम्प्रदाय अपने उद्भव के पश्चात् कालान्तर में अनेक शाखाओं-उपशाखाओं आदि में विभाजित होते रहे हैं । जैन धर्म भी इसका अपवाद नहीं है। यह विभाजन अनेक कारणों से होता रहा है और इनमें सबसे प्रधान कारण रहा है - देश और काल की परिवर्तनशील परिस्थितियाँ एवं परिवेश । इन्हीं के फलस्वरूप परम्परागत प्राचीन विधिविधानों के स्थान पर नवीन विधि-विधानों और मान्यताओं को प्रश्रय देने से मूल परम्परा में विभेद उत्पन्न हो जाता है। कभी-कभी यह मतभेद वैयक्तिक अहं की पुष्टि और नेतृत्व के प्रश्न को लेकर भी होता है, फलतः एक नई शाखा अस्तित्व में आ जाती है । पुनः इन्हीं कारणों से उसमें भी भेद होता है और नई-नई उपशाखाओं का उदय होता रहता है। निर्ग्रन्थ श्रमण संघ में भगवान् महावीर के समय में ही गोशालक एवं जमालि ने संघभेद के प्रयास किये, परन्तु गोशालक आजीवक संघ में सम्मिलित हो गया और जमालि की शिष्य-परम्परा आगे नहीं चल सकी । वीरनिर्वाण के बाद की शताब्दियों में निर्ग्रन्थ श्रमण संघ विभिन्न गण, शाखा, कुल और अन्वयों में विभक्त होता गया । जैसा कि पिछले अध्याय में कहा जा चुका है कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की स्थविरावलियों में वीरनिर्वाण संवत् ९८० अर्थात् विक्रम संवत् की ५वीं-६ठीं शताब्दी तक उत्तर भारत की जैन परम्परा में कौन-कौन से जैन आचार्यों से कौन-कौन से गण, कुल और शाखाओं का जन्म हुआ, इसका सुविस्तृत विवरण संकलित है। ये सभी गण, कुल और शाखायें गुरु-परम्परा विशेष से ही सम्बद्ध रही हैं । इनके धार्मिक विधि-विधानों में किसी प्रकार का मतभेद था या नहीं, Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय यदि मतभेद था, तो किस प्रकार का था ? इन बातों की जानकारी हेतु हमारे पास कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है । __ निर्ग्रन्थ श्रमण संघ के जो श्रमण दक्षिण में चले गये थे, वे भी कालान्तर में गणों एवं अन्वयों में विभाजित हुए । यह परम्परा दिगम्बर सम्प्रदाय के रूप में जानी गयी। उत्तर भारत के निर्ग्रन्थ संघ में लगभग दूसरी शती में वस्त्र के प्रश्न को लेकर संघ भेद हुआ और एक नवीन परम्परा का उद्भव हुआ जो आगे चलकर बोटिक या यापनीय नाम से प्रसिद्ध हुई । पीछे से जो संघभेद हुए उनके मूल में सैद्धान्तिक विधि-विधान सम्बन्धी भेद अवश्य विद्यमान रहे, किन्तु यहाँ इन सब की चर्चा न करते हुए मात्र श्वेताम्बर सम्प्रदाय में समय-समय पर उत्पन्न एवं विकसित हुए विभिन्न गच्छों की चर्चा प्रस्तुत की गयी है। उत्तर और पश्चिम भारत का श्वेताम्बर संघ प्रारम्भ में तो वारणगण, मानवगण, उत्तरवल्लिसहगण आदि अनेक गणों और उनकी कुल-शाखाओं में विभक्त था, किन्तु कालान्तर में कोटिक गण को छोड़कर शेष सभी कुल और शाखायें समाप्त हो गयीं । आज के श्वेताम्बर मुनिजन स्वयं को इसी कोटिकगण से सम्बद्ध मानते हैं । इस गण से भी अनेक शाखायें अस्तित्व में आयीं । उनमें उच्चनागरी, विद्याधरी, वज्री, माध्यमिका, नागिल, पद्मा, जयंती आदि शाखायें प्रमुख रूप से प्रचलित रहीं । इन्हीं से आगे चलकर नागेन्द्र और विद्याधर ये दो कुल अस्तित्व में आये । ६ठीं शताब्दी के पश्चात् कोटिक गण से ही निवृत्ति और चन्द्र ये दो कुल भी अस्तित्व में आये । पूर्व मध्ययुगीन श्वेताम्बर गच्छों का इन्हीं से प्रादुर्भाव हुआ । ___ ईस्वी सन् की छठी-सातवीं शताब्दी से ही श्वेताम्बर श्रमण परम्परा को पश्चिमी भारत (गुजरात और राजस्थान) में राज्याश्रय प्राप्त होने से इसका विशेष प्रचार-प्रसार हुआ, फलस्वरूप वहाँ अनेक नये-नये जिनालयों का निर्माण होने लगा । जैन मुनि भी अब वनों को छोड़कर जिनालयों के साथ संलग्न भवनों (चैत्यालयों) में निवास करने लगे । स्थिरवास एवं जिनालयों Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास का स्वामित्व प्राप्त होने के फलस्वरूप इन श्रमणों में अन्य दोषों के साथसाथ परस्पर विद्वेष एवं अहंभाव का भी अंकुरण हुआ । इनमें अपने-अपने अनुयायियों की संख्या में वृद्धि करने की होड़ सी लगी हुई थी । इन्हीं परिस्थितियों में श्वेताम्बर श्रमणसंघ विभिन्न नगरों, जातियों, घटनाविशेष तथा आचार्यविशेष के आधार पर विभाजित होने लगा। विभाजन की यह प्रक्रिया दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में तेजी से प्रारम्भ हुई, जिसका क्रम आगे भी जारी रहा। श्वेताम्बर श्रमणों का ऐसा भी वर्ग था जो श्रमणावस्था में सुविधावाद के पनपने से उत्पन्न शिथिलाचार का कट्टर विरोधी था । आठवीं शताब्दी में हुए आचार्य हरिभद्र ने अपने समय के चैत्यवासी श्रमणों के शिथिलाचार का अपने ग्रन्थ सम्बोधप्रकरण में विस्तृत वर्णन किया है और इनके विरुद्ध अपनी आवाज उठायी है । चैत्यवासियों पर इस विरोध का प्रतिकूल असर पड़ा और उन्होंने सुविहितमार्गीय श्रमणों का तरह-तरह से विरोध करना प्रारम्भ किया । गुर्जर प्रदेश में तो उन्होंने चावड़ावंशीय शासक वनराज चावड़ा से राजाज्ञा जारी कर सुविहितमार्गियों का प्रवेश ही निषिद्ध करा दिया । फिर भी सुविहितमार्गीय श्रमण शिथिलाचारी श्रमणों के आगे नहीं झुके और उन्होंने चैत्यवास का विरोध जारी रखा । अन्ततः चौलुक्य नरेश दुर्लभराज (वि०सं० १०६६-१०८२) की राजसभा में चन्द्रकुलीन वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि ने चैत्यवासियों को शास्त्रार्थ में पराजित कर गुर्जरभूमि में सुविहितमागियों के विहार और प्रवास को निष्कंटक बना दिया । ___ कालदोष से सुविहितमार्गीयश्रमण भी परस्पर मतभेद के शिकार होकर समय-समय पर बिखरते रहे, फलस्वरूप नये-नये गच्छ (समुदाय) अस्तित्व में आते रहे । जैसे चन्द्रकुल की एक शाखा वडगच्छ से पूर्णिमागच्छ, सार्धपूर्णिमागच्छ, सत्यपुरीयशाखा आदि अनेक शाखायें-उपशाखायें अस्तित्व में आयीं । इसी प्रकार खरतरगच्छ से भी कई उपशाखाओं का उदय हुआ। ___ जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है एक स्थान पर स्थायी रूप से रहने की प्रवृत्ति से मुनियों एवं श्रावकों के मध्य स्थायी सम्पर्क बना, Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय फलस्वरूप उनकी प्रेरणा से नये-नये जिनालयों एवं वसतियों का द्रुतगति से निर्माण होने लगा । स्थानीयकरण की इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप स्थानों के नाम पर भी कुछ गच्छों का भी नामकरण होने लगा, यथा कोरटा नामक स्थान से कोरंटगच्छ, नाणा नामक स्थान से नाणकीयगच्छ, ब्रह्माण (आधुनिक वरमाण) नामक स्थान से ब्रह्माणगच्छ, संडेर (वर्तमान सांडेराव) नामक स्थान से संडेरगच्छ, हरसोर नामक स्थान से हर्षपुरीयगच्छ, पल्ली (वर्तमान पाली) नामक स्थान से पल्लीवालगच्छ आदि अस्तित्व में आये । यद्यपि स्थानविशेष के आधार पर ही इन गच्छों का नामकरण हुआ था, किन्तु सम्पूर्ण पश्चिमी भारत के प्रमुख जैन तीर्थों एवं नगरों में इन गच्छों के अनुयायी श्रमण एवं श्रावक विद्यमान थे । यह बात सम्पूर्ण पश्चिमी भारत के विभिन्न स्थानों में इनके आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों से ज्ञात होती है। __ कुछ गच्छ तो घटनाविशेष के कारण ही अस्तित्व में आये । जैसे चन्द्रकुल के आचार्य धनेश्वरसूरि (वादमहार्णव के रचनाकार अभयदेवसूरि के शिष्य) साधुजीवन के पूर्व कर्दम नामक राजा थे, इसी आधार पर उनके शिष्य राजगच्छीय कहलाये । इसी प्रकार आचार्य उद्योतनसूरि ने आबू के समीप स्थित टेली नामक ग्राम में वटवृक्ष के नीचे सर्वदेवसूरि आदि ८ मुनियों को एक साथ आचार्यपद प्रदान किया । वटवृक्ष के आधार पर इन मुनिजनों का शिष्य परिवार वटगच्छीय कहलाया। वटवृक्ष के समान ही इस गच्छ की अनेक शाखायेंउपशाखायें अस्तित्व में आयीं, अतः इसका एक नाम बृहद्गच्छ भी पड़ गया। इसी प्रकार खरतरगच्छ, आगमिकगच्छ, पूर्णिमागच्छ, सार्धपूर्णिमागच्छ, अंचलगच्छ, पिप्पलगच्छ आदि भी घटनाविशेष से ही अस्तित्व में आये । चाहमाननरेश अर्णोराज (ईस्वी सन् ११३९-११५३) की राजसभा में दिगम्बर आचार्य कुलचन्द्र को शास्त्रार्थ में पराजित करने वाले आचार्य धर्मघोषसूरि राजगच्छीय आचार्य शीलभद्रसूरि के शिष्य थे। चूंकि ये अपने जीवनकाल में यथेष्ठ प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके थे, अतः इनकी मृत्यु के पश्चात् इनकी शिष्यसंतति धर्मघोषगच्छीय कहलायी । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार स्पष्ट है कि विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न कारणों से श्वेताम्बर श्रमण संघ का विभाजन होता रहा और नये-नये गच्छ अस्तित्व में आते रहे । इन गच्छों का इतिहास जैनधर्म के इतिहास का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अध्याय है, परन्तु इस ओर अभी तक विद्वानों का ध्यान बहुत कम ही है। आज से लगभग ५५ वर्ष पूर्व महान् साहित्यसेवी स्व० अगरचन्द जी नाहटा और भंवरलाल जी नाहटा ने यतीन्द्रसूरिअभिनन्दनग्रन्थ में "जैन श्रमणों के इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश" नामक लेख प्रकाशित किया था और लेख के प्रारम्भ में ही विद्वानों से यह अपेक्षा की थी कि वे इस कार्य के लिये आगे आयें । स्व० नाहटा जी के उक्त कथन को आदेश मानते हुए प्राध्यापक एम०ए० ढांकी की प्रेरणा और सहयोग से मैंने श्वेताम्बर श्रमणों के गच्छों के इतिहास लेखन का कार्य प्रारम्भ किया, जिनका साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।। अंचलगच्छ अपरनाम विधिपक्ष- वि० सं० ११५९ या ११६९ में उपाध्याय विजयचन्द्र (बाद में आर्यरक्षितसूरि) द्वारा विधिपक्ष का पालन करने के कारण उनकी शिष्य-संतति विधिपक्षीय कहलायी। प्रचलित मान्यता के अनुसार इस गच्छ के अनुयायी श्रावकों द्वारा मुंहपत्ती के स्थान पर वस्त्र के दोर (अंचल) से वन्दन करने के कारण अंचलगच्छ नाम प्रचलित हुआ। इस गच्छ में अनेक विद्वान् आचार्य और मुनिजन हुए हैं और उनमें से विभिन्न आचार्यों की कृतियाँ आज उपलब्ध होती हैं । इस गच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं । इनमें प्राचीनतम लेख वि०सं० १२०६ का है। अपने उदय से लेकर आज तक इस गच्छ की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है। आगमिकगच्छ - पूर्णिमापक्षीय शीलगुणसूरि और उनके शिष्य देवभद्रसूरि द्वारा जीवदयाणं तक का शक्रस्तव, ६७ अक्षरों का परमेष्ठीमंत्र और तीन स्तुति से देववंदन आदि बातों में आगमों का समर्थन करने के कारण वि०सं० १२१४ या वि०सं० १२५० में आगमिकगच्छ या त्रिस्तुतिकमत की ★ मेरे द्वारा लिखित इस गच्छ का इतिहास २००१ ईस्वी में प्रकाशित हो चुका है। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय उत्पत्ति हुई। इस गच्छ में यशोभद्रसूरि सर्वाणंदसूरि, विजयसिंहसूरि, अमरसिंहसूरि, हेमरत्नसूरि, अमररत्नसूरि, सोमप्रभसूरि, आनन्दप्रभसूरि आदि कई प्रभावक आचार्य हुए जिन्होंने साहित्यसेवा और धार्मिक क्रियाकलापों से श्वेताम्बर श्रमणसंघ को जीवन्त बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। आगमिकगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में आज साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध होते हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा लिखे गये ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ तथा कुछ पट्टावलियाँ आदि हैं । इस गच्छ से सम्बद्ध लगभग २०० प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं जो वि०सं० १४२० से लेकर वि० सं० १६८३ तक के हैं । उपलब्ध साक्ष्यों से इस गच्छ की दो शाखाओं-धंधूकीया और विलाबंडीया का पता चलता है । ३१ उपकेशगच्छ - पूर्वमध्यकालीन और मध्यकालीन श्वेताम्बर परम्परा में उपकेशगच्छ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । जहाँ अन्य सभी गच्छ भगवान् महावीर से अपनी परम्परा जोड़ते हैं, वहीं उपकेशगच्छ अपना सम्बन्ध भगवान् पार्श्वनाथ से जोड़ता है । अनुश्रुति के अनुसार इस गच्छ का उत्पत्ति स्थल उपकेशपुर (वर्तमान ओसिया - राजस्थान) माना जाता है । परम्परानुसार इस गच्छ के आदिम आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीर सम्वत् ७० में ओसवाल गच्छ की स्थापना की, परन्तु किसी भी प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य से इस बात की पुष्टि नहीं होती । ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ओसवालों की स्थापना और इस गच्छ की उत्पत्ति का समय ईस्वी सन् की आठवीं शती के पूर्व नहीं माना जा सकता । उपकेशगच्छ में कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि और सिद्धसूरि इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की प्राय: पुनरावृत्ति होती रही है, जिससे प्रतीत होता है कि इस गच्छ के अनुयायी श्रमण चैत्यवासी रहे होंगे । इस गच्छ में विभिन्न प्रभावक और विद्वान् आचार्य हो चुके हैं जिन्होंने साहित्योपासना के साथ-साथ नवीन जिनालयों के निर्माण, प्राचीन जीनालयों के जीर्णोद्धार नूतन जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना द्वारा पश्चिम भारत में श्वेताम्बर श्रमण परम्परा को जीवन्त बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास __ अन्यान्य गच्छों की भाँति उपकेशगच्छ से भी कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ । जैसे वि०सं० १२६६/ईस्वी सन् १२१० में द्विवंदनीक शाखा, वि०सं० १३०८/ईस्वी सन् १२५२ में खरतपाशाखा तथा वि.सं. १४९८१ ईस्वी सन् १४४२ में खादिरी शाखा अस्तित्व में आयी। इसके अतिरिक्त इस गच्छ की दो अन्य शाखाओं-ककुदाचार्यसंतानीय और सिद्धाचार्यसंतानीय का भी पता चलता है, किन्तु इनकी उत्पत्तिकाल के सम्बन्ध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। उपकेशगच्छ के इतिहास से सम्बद्ध पर्याप्त संख्या में इस गच्छ के मुनिजनों के कृतियों की प्रशस्तियाँ, मुनिजनों के अध्ययनार्थ या उनकी प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी प्राचीन ग्रन्थों की दाताप्रशस्तियाँ तथा दो प्रबन्ध (उपकेशगच्छप्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध-रचनाकाल वि०सं० १३९३/ईस्वी सन् १३३६) और उपकेशगच्छ की कुछ पट्टावलियाँ उपलब्ध हैं। इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में जिनप्रतिमायें प्राप्त होती हैं जिनमें से अधिकांश लेखयुक्त हैं । इसके अतिरिक्त इस गच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से निर्मित सर्वतोभद्रयंत्र, पंचकल्याणकपट्ट, तीर्थंकरों के गणधरों की चरणपादुका आदि पर भी लेख उत्कीर्ण हैं । ये सभी लेख वि०सं० १०११ से वि०सं० १९१८ तक के हैं । उपकेशगच्छ के इतिहास के लेखन में उक्त साक्ष्यों का विशिष्ट महत्त्व है। ___ उपकेशगच्छीय साक्ष्यों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि वि.सं. की १०वीं शताब्दी से लेकर वि०सं० की १६वीं शताब्दी तक इस गच्छ के मुनिजनों का समाज पर विशेष प्रभाव रहा, किन्तु इसके पश्चात् इसमें न्यूनता आने लगी, फिर भी २०वीं शती के प्रारम्भ तक निर्विवाद रूप से इस गच्छ का स्वतन्त्र अस्तित्व बना रहा । काशहृदगच्छ-अर्बुदगिरि की तलहटी में स्थित काशहद (वर्तमान कासीन्द्रा या कायन्द्रा) नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। जालिहरगच्छ के देवप्रभसूरि द्वारा रचित पद्मप्रभचरित (रचनाकाल वि०सं०१२५४/ईस्वी सन् Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय ३३ १९९८) की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि काशहद और जालिहर ये दोनों विद्याधरगच्छ की शाखायें हैं । यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस गच्छ के आदिम आचार्य कौन थे, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । प्रश्नशतक और ज्योतिषचतुर्विंशतिका के रचनाकार नरचन्द्र उपाध्याय इसी गच्छ के थे । प्रश्नशतक का रचनाकाल वि० सं० १३२४ / ईस्वी सन् १२७८ माना जाता है । विक्रमचरित (रचनाकाल वि० सं० १४७१ / ईस्वी सन् १४१५ के आसपास) के रचनाकार उपाध्याय देवमूर्ति इसी गच्छ के थे । इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ प्रतिमालेख भी प्राप्त होते हैं जो वि० सं० १२२२ से वि० सं० १४१६ तक के हैं । उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर विक्रम सम्वत् की १३वीं शती से १५वीं शती के अन्त तक इस गच्छ का अस्तित्व सिद्ध होता है । इस गच्छ सम्बद्ध साक्ष्यों की विरलता को देखते हुए यह माना जा सकता है कि अन्य गच्छों की अपेक्षा इस गच्छ के अनुयायी श्रावकों और श्रमणों की संख्या अल्प थी । १६वीं शती से इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों के नितान्त अभाव होने से यह कहा जा सकता है कि इस समय तक इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया । कृष्णर्षिगच्छ- प्राक्मध्ययुगीन और मध्ययुगीन श्वेताम्बर आम्नाय के गच्छों में कृष्णर्षिगच्छ भी एक है। आचार्य वटेश्वर क्षमाश्रमण के प्रशिष्य और यक्षमहत्तर के शिष्य कृष्णमुनि की शिष्य संतति अपने गुरु के नाम पर कृष्णर्षिगच्छीय कहलायी । धर्मोपदेशमालाविवरण ( रचनाकाल वि० सं० ९१५ / ईस्वी सन् ८५९ ) के रचयिता जयसिंहसूरि, प्रभावकशिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि, निस्पृहशिरोमणि महेन्द्रसूरि कुमारपालचरित ( वि० सं० १४२२ / ईस्वी सन् १३६६ ) के रचनाकार जयसिंहसूरि, हम्मीरमहाकाव्य ( रचनाकाल वि०सं० १४४४ / ईस्वी सन् १३८६) और रम्भामंजरीनाटिका के कर्ता नयचन्द्रसूरि इसी गच्छ के थे । इस गच्छ में जयसिंहसूरि, प्रसन्नचंन्द्रसूरि, नयचन्द्रसूरि इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति मिलती है, जिससे अनुमान होता है कि यह चैत्यवासी गच्छ था । इस गच्छ से सम्बद्ध पर्याप्त संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं जो वि०सं० १२८७ से वि०सं० १६१६ तक के हैं । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास __ अभिलेखीय साक्ष्यों से इस गच्छ की कृष्णर्षितपाशाखा का भी उल्लेख प्राप्त होता है। इस शाखा के वि०सं० १४५० से १४७३ तक के लेखों में पुण्यप्रभसूरि, वि०सं० १४८३-१४८७ के लेखों में शिष्य जयसिंहसूरि तथा वि०सं० १५०३१५०८ के लेखों में जयसिंहसूरि के प्रथम पट्टधर जयशेखरसूरि तथा वि०सं० १५१० के एक लेख में उनके द्वितीय पट्टधर कमलचन्द्रसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु इस शाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह शाखा कब अस्तित्व में आयी, इस सम्बन्ध में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। वि०सं० की १७वीं शती के पश्चात् कृष्णर्षिगच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों का अभाव है। इससे प्रतीत होता है कि इन समय तक इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो चुका था। कोरंटगच्छ-आबू के निकट कोरटा (प्राचीन कोरंट) नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। उपकेशगच्छं की एक शाखा के रूप में इस गच्छ की मान्यता है। इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों को कक्कसूरि, सर्वदेवसूरि और नन्नसूरि ये तीन नाम पुनः-पुनः प्राप्त होते रहे । इस गच्छ का सर्वप्रथम उल्लेख वि०सं० १२०१ के एक प्रतिमालेख में और अन्तिम उल्लेख वि०सं० १६१९ में प्रतिलिपि की गयी राजप्रश्नीयसूत्र की दाताप्रशस्ति में प्राप्त होता है। इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र कुछ दाताप्रशस्तियाँ तथा बड़ी संख्या में प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं । ये लेख वि०सं० १६१२ तक के हैं। लगभग ४०० वर्षों के अपने अस्तित्वकाल में इस गच्छ के अनुयायी श्रमण शास्त्रों के पठन-पाठन की अपेक्षा जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा में ही अधिक सक्रिय रहे। खंडिलगच्छ-इस गच्छ के कई नाम मिलते हैं यथा भावडारगच्छ, कालिकाचार्यसंतानीय, भावड़गच्छ, भावदेवाचार्यगच्छ, खंडिल्लगच्छ आदि । प्रभावकचरित में चन्द्रकुल की एक शाखा के रूप में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है। इस गच्छ में पट्टधर आचार्यों को भावदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, वीरसूरि और जिनदेवसूरि ये चार नाम पुनः-पुनः प्राप्त होते रहे । पार्श्वनाथचरित (रचनाकाल वि०सं० १४१२/ईस्वी सन् १३५६) के रचनाकार भावदेवसूरि इसी गच्छ के थे। इसकी प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय भावदेवसूरि विजयसिंहसूरि वीरसूरि जिनदेवसूरि भावदेवसूरि विजयदेवसूरि वीरसूरि जिनदेवसूरि यशोभद्रसूरि भावदेवसूरि (वि०सं० १४१२/ईस्वी सन् १३५६ में पार्श्वनाथचरित के रचनाकार) कालकाचार्यकथा, यतिदिनचर्या, अलंकारसार, भक्तामरटीका आदि के कर्ता भावदेवसूरि को ब्राउन ने पार्श्वनाथचरित के कर्ता उपरोक्त भावदेवसूरि से अभिन्न माना है। इस गच्छ से सम्बद्ध अनेक प्रतिमालेख मिले हैं जो वि०सं० ११९६ से वि०सं० १६६४ तक के हैं । निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि वि०सं० की १२वीं शती में यह गच्छ अस्तित्व में आया और वि०सं० की १७वीं शती के अन्तिम चरण तक विद्यमान रहा । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास खरतरगच्छ - चन्द्रकुल के आचार्य वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि ने चौलुक्य नरेश दुर्लभराज की राजसभा में शास्त्रार्थ में चैत्यवासियों को परास्त किया, जिससे प्रसन्न होकर राजा द्वारा उन्हें 'खरतर' का विरुद् प्राप्त हुआ । इस घटना से गुर्जरभूमि में सुविहितमार्गीय श्रमणों का विहार प्रारम्भ हो गया। जिनेश्वरसूरि की शिष्य-सन्तति प्रारम्भ में सुविहितमार्गीय और बाद में खरतरगच्छीय कहलायी । इस गच्छ में अनेक प्रभावशाली और प्रभावक आचार्य हुए और आज भी हैं । इस गच्छ के आचार्यों ने साहित्य की प्रत्येक विधाओं को अपनी लेखनी द्वारा समृद्ध किया, साथ ही जिनालयों के निर्माण, प्राचीन जिनालयों के पुनर्निर्माण एवं जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा में भी सक्रियरूप से भाग लिया। युगप्रधानाचार्यगुर्वावली में इस गच्छ के ११वीं शती से १४वीं शती के अन्त तक के आचार्यों का जीवनचरित्र दिया गया है जो न केवल इस गच्छ के अपितु भारतवर्ष के तत्कालीन राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसके अतिरिक्त इस गच्छ से सम्बद्ध अनेक विज्ञप्तिपत्र, पट्टावलियाँ, गुर्वावलियाँ, ऐतिहासिकगीत आदि मिलते हैं, जो इसके इतिहास के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं । अन्यान्य गच्छों की भांति इस गच्छ की भी कई शाखायें अस्तित्व में आयीं, जो इस प्रकार हैं - १. मधुकर शाखा - आचार्य जिनवल्लभसूरि के समय वि०सं० ११६७/ ईस्वी सन् ११११ में यह शाखा अस्तित्व में आयी। ... २. रुद्रपल्लीयशाखा - वि०सं० १२०४ में आचार्य जिनेश्वरसूरि से यह शाखा अस्तित्व में आयी । इस शाखा में अनेक विद्वान् आचार्य हुए । श्री अगरचन्द नाहटा के अनुसार वि०सं० की १७वीं शती तक इस शाखा का अस्तित्व रहा । ३. लघुखरतरशाखा- वि०सं० १३३१/ई.सन् १२७५ में आचार्य जिनसिंहसूरि से इस शाखा का उदय हुआ । अन्यान्य ग्रन्थों के रचनाकार, सुल्तान मुहम्मद तुगलक के प्रतिबोधक शासनप्रभावक आचार्य जिनप्रभसूरि इसी शाखा के थे । वि.सं. की १८वीं शती तक इस शाखा का अस्तित्व रहा । . इस गच्छ का इतिहास प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर से तीन भागों में प्रकाशित हो चुका है। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय ४. बेगड शाखा - वि.सं. १४२२ में यह शाखा अस्तित्व में आयी। जिनेश्वरसूरि इस शाखा के प्रथम आचार्य हुए । ५. पिप्पलकशाखा - वि०सं० १४७४ में जिनवर्धनसूरि द्वारा इस शाखा का उदय हुआ । नाहटाजी के अनुसार पिप्पलक नामक स्थान से सम्बद्ध होने से यह पिप्पलकशाखा के नाम से जाना गया । इसी नाम का एक गच्छ वडगच्छीय शांतिसूरि के शिष्य महेन्द्रसूरि, विजयसिंहसूरि आदि के द्वारा वि०सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५ में अस्तित्व में आया । ६. आद्यपक्षीयशाखा - वि०सं० १५६४ में आचार्य जिनदेवसूरि से यह शाखा अस्तित्व में आयी । इस शाखा की एक गद्दी पाली में थी। ७. भावहर्षीयशाखा - वि०सं० १६२१ में भावहर्षसूरि से इसका उदय हुआ । इस शाखा की एक गद्दी बालोतरा में है । ८. लघुआचार्यशाखा - आचार्य जिनसागरसूरि से वि०सं० १६८६ में यह शाखा अस्तित्व में आयी । इसकी गद्दी बीकानेर में विद्यमान है । ९. जिनरंगसूरिशाखा - यह शाखा वि०सं० १७०० में जिनरंगसूरि से प्रारम्भ हुई । इसकी गद्दी लखनऊ में थी। १०. श्रीसारीयशाखा - वि०सं० १७०० के लगभग यह शाखा अस्तित्व में आयी, परन्तु शीघ्र ही नामशेष हो गयी। ११. मंडोवराशाखा - जिनमहेन्द्रसूरि द्वारा वि०सं० १८९२ में मंडोवरा नामक स्थान से इसका उदय हुआ। इसकी एक गद्दी जयपुर में विद्यमान थी। अगरचन्दजी नाहटा, भंवरलालजी नाहटा और महो० विनयसागरजीने इस गच्छ की साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों का न केवल संकलन और प्रकाशन किया है, अपितु उनका सम्यक् अध्ययन भी समाज के सम्मुख रखा है जो अपने आप में अद्वितीय है। चन्द्रगच्छ - चन्द्रकुल ही आगे चलकर चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । राजगच्छ, वडगच्छ, खरतरगच्छ, पूर्णतल्लगच्छ, भावडारगच्छ, Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पूर्णिमागच्छ आदि कई गच्छ चन्द्रकुल से ही अस्तित्व में आये । इस गच्छ से सम्बद्ध विभिन्न प्रतिमालेख मिलते हैं जो वि०सं०१०७२ से वि०सं० १५५२ तक के हैं। मुनिपतिचरित्र (रचनाकाल वि०सं० १००५) एवं जिनशतककाव्य (रचनाकाल वि०सं० १०२५) के रचयिता जम्बूकवि अपरनाम जम्बूनाग इसी गच्छ के थे। सनत्कुमारचरित के रचनाकार चन्द्रसूरि भी इसी गच्छ के थे। इसी गच्छ के शिवप्रभसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि ने वि०सं० १२६१ में प्रत्येकबुद्धचरित की रचना की । वसन्तविलास के रचनाकार बालचन्द्रसूरि, प्रसिद्ध ग्रन्थ संशोधक प्रद्युम्नसूरि, शीलवतीकथा के रचनाकार उदयप्रभसूरि इसी गच्छ के थे । चैत्रगच्छ- मध्ययुगीन श्वेताम्बर गच्छों में चैत्रगच्छ भी एक है । चैत्रपुर नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है । इस गच्छ के कई नाम मिलते हैं यथा - चैत्रवालगच्छ, चित्रवालगच्छ, चित्रपल्लीयगच्छ, चित्रगच्छ आदि । धनेश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं । इनके पट्टधर भुवनचन्द्रसूरि हुए जिनके प्रशिष्य और उपाध्याय देवभद्र के शिष्य जगच्चन्द्रसूरि से वि०सं० १२८५/ईस्वी सन् १२२९ में तपागच्छ का प्रादुर्भाव हुआ । देवभद्रसूरि के अन्य शिष्यों से चैत्रगच्छ की अविच्छिन्न परम्परा जारी रही । सम्यकत्वकौमुदी (रचनाकाल वि०सं० १५०४/ईस्वी सन् १४४८) और भक्तामरस्तवटीका के रचनाकार गुणाकरसूरि इसी गच्छ के थे। चैत्रगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जो वि०सं० १२६५ से वि०सं० १५९१ तक के हैं । इस गच्छ से कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ, जैसे भर्तृपुरीयशाखा, धारणपद्रीयशाखा, चतुर्दशीयशाखा, चन्द्रसामीयशाखा, सलषणपुराशाखा, कम्बोइयाशाखा, अष्टापदशाखा, शार्दूलशाखा आदि। जाल्योधरगच्छ- विद्याधरगच्छ की द्वितीय शाखा के रूप में इस गच्छ का उदय हुआ । यह शाखा कब और किस कारण अस्तित्व में आयी, इसके पुरातन आचार्य कौन थे, साक्ष्यों के अभाव में ये प्रश्न अनुत्तरित हैं। इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो प्रशस्तियाँ - नन्दिपददुर्गवृत्ति की दाताप्रशस्ति Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ____ ३९ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय (प्रतिलेखनकाल वि०सं० १२२६/ईस्वी सन् ११६०) और पद्मप्रभचरित (रचनाकाल वि०सं० ११९८) की प्रशस्ति ही मिलती है । पद्मप्रभचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह गच्छ विद्याधरगच्छ की एक शाखा थी। इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं जो वि०सं० १२१३ से वि०सं० १४२३ तक के हैं । ग्रन्थ प्रशस्तियों और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक तालिका बनती है, जो इस प्रकार है - बालचन्द्रसूरि गुणभद्रसूरि (वि०सं० १२२६ की नंदीदुर्गपदवृत्ति में उल्लिखित) सर्वाणंदसूरि (पार्श्वनाथचरित- [अनुपलब्ध] के रचनाकार) धर्मघोषसूरि देवसूरि (वि०सं० १२५४/ईस्वी सन् ११९८ में पद्मप्रभचरित के रचनाकार) हरिभद्रसूरि (वि०सं० १२९६/ईस्वी सन् १२४० प्रतिमालेख - घोघा) हरिप्रभसूरि चन्द्रसूरि विबुधप्रभसूरि (वि०सं० १३९२ प्रतिमालेख) ललितप्रभसूरि (वि०सं० १४२३/ईस्वी सन् १३६७ प्रतिमालेख) जीरापल्लीगच्छ-राजस्थान प्रान्त के अर्बुदमण्डल के अन्तर्गत जीरावला नामक प्रसिद्ध स्थान है। यहाँ पार्श्वनाथ का एक महिम्न जिनालय विद्यमान Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास है जो जीरावला पार्श्वनाथ के नाम से जाना जाता है । बृहद्गच्छ पट्टावली में उसकी एक शाखा के रूप में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है । जीरावला नामक स्थान से सम्बद्ध होने के कारण यह शाखा जीरापल्लीगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई । इस गच्छ से सम्बद्ध कई प्रतिमालेख मिलते हैं, जो वि० सं० १४०६ से वि०सं० १५१५ तक के हैं। इसके सम्बन्ध में विशेष अध्ययन आगे के अध्याय में दिया गया है । तपागच्छ चैत्रगच्छीय आचार्य भुवनचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और देवभद्रसूरि के शिष्य जगच्चन्द्रसूरि को आघाट में उग्र तप करने के कारण वि० सं० १२८५/ ईस्वी सन् १२२९ में 'तपा' विरुद् प्राप्त हुआ, इसी कारण उनकी शिष्य सन्तति तपागच्छीय कहलायी । अपने जन्म से लेकर आज तक इस गच्छ की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है और इसका प्रभाव उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है । इस गच्छ में अनेक प्रभावक आचार्य और विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं और आज भी हैं । इस गच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं । अन्य गच्छों की भाँति इस गच्छ की भी कई अवान्तर शाखायें अस्तित्व में आयी, जैसे- बृहद्पौषालिक, लघुपौषालिक, विजयानंदसुरिशाखा, विमलशाखा, विजयदेवसूरिशाखा, सागरशाखा, रत्नशाखा, कमलकलशशाखा, कुतुबपुराशाखा, निगमशाखा आदि । थारापद्रगच्छ- प्राक् मध्ययुगीन और मध्ययुगीन निर्ग्रन्थ धर्म के श्वेताम्बर आम्नाय के गच्छों में इस गच्छ का महत्त्वपूर्ण स्थान है । थारापद्र (वर्तमान थराद, बनासकांठा मंडल उत्तर गुजरात) नामक स्थान से इस गच्छ का प्रादुर्भाव हुआ । इस गच्छ में ११वी शती के प्रारम्भ में हुए आचार्य पूर्णभद्रसूरि ने वटेश्वर क्षमाश्रमण को अपना पूर्वज बतलाया है, परन्तु इस गच्छ के प्रवर्तक कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में वे मौन हैं । इस गच्छ में ज्येष्ठाचार्य, शांतिभद्रसूरि 'प्रथम', सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि, शान्तिभद्रसूरि 'द्वितीय', पूर्णभद्रसूरि, सुप्रसिद्ध पाइयटीका के रचनाकार वादिवेताल शान्तिसूरि, विजयसिंहसूरि आदि अनेक प्रभावक और विद्वान् आचार्य हुए हैं । षडावश्यकवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १९२२) और * मेरे द्वारा लिखित इस गच्छ का इतिहास पुस्तक के रूप में ईस्वी सन् २००० में प्रकाशित हो चुका है । - Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय काव्यालंकारटिप्पण के कर्ता नमिसाधु इसी गच्छ के थे। इस गच्छ से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्य भी पर्याप्त संख्या में प्राप्त हुए हैं, जो वि०सं० १०११ से वि०सं० १५३६ तक के हैं । इस प्रकार इस गच्छ का अस्तित्व प्रायः १६वीं शती के मध्य तक प्रमाणित होता है । चूंकि इसके पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों का अभाव है । अत: यह माना जा सकता है कि उक्त काल के बाद इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया होगा ।। धर्मघोषगच्छ- राजगच्छीय आचार्य शीलभद्रसूरि के एक शिष्य धर्मघोषसूरि अपने समय के अत्यन्त प्रभावक आचार्य थे । नरेशत्रय प्रतिबोधक और दिगम्बर विद्वान् गुणचन्द्र के विजेता के रूप में इनकी ख्याति रही। इनकी प्रशंसा में लिखी गयी अनेक कृतियाँ मिलती हैं, जो इनकी परम्परा में हुए उत्तरकालीन मुनिजनों द्वारा रची गयी हैं। धर्मघोषसूरि के मृत्योपरान्त इनकी शिष्यसन्तति अपने गुरु के नाम पर धर्मघोषगच्छ के नाम से विख्यात हुई। इस गच्छ में यशोभद्रसूरि, रविप्रभसूरि, उदयप्रभसूरि, पृथ्वीचन्द्रसूरि, प्रद्युम्नसूरि, ज्ञानचन्द्रसूरि आदि कई प्रभावक और विद्वान् आचार्य हुए जिन्होंने वि०सं० की १२वीं शती से वि०सं० की १७वीं शती के अन्त तक अपनी साहित्योपासना, तीर्थोद्धार, नूतन जिनालयों के निर्माण की प्रेरणा, जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आदि द्वारा मध्ययुग में श्वेताम्बर श्रमण परम्परा को चिरस्थायित्व प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस गच्छ से सम्बद्ध लगभग २०० अभिलेख मिले हैं जो वि०सं० १३०३ से वि०सं० १६९१ तक के हैं । ये लेख जिनमन्दिरों के स्तम्भादि और तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं, जो धर्मघोषगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं। नागपुरीयतपागच्छ- वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के एक शिष्य पद्मप्रभसूरि ने नागौर में वि०सं० ११७४ या ११७७ में उग्र तप कर 'नागौरीतपा' विरुद् प्राप्त किया। इस आधार पर उनकी शिष्य संतति 'नागपुरीय तपागच्छ' के नाम से विख्यात हुई मुनि जिनविजय द्वारा संपादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह और श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई द्वारा लिखित जैनगुर्जरकविओ (नवीन संस्करण) Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भाग-९ में इस गच्छ की पट्टावली प्रकाशित हुई है । इसी गच्छ में १६वीं शती में पार्श्वचन्द्रसूरि हुए, जिनके नाम पर पार्श्वचन्द्रगच्छ का उदय हुआ, जो वर्तमान में भी अस्तित्ववान है । ४२ 1 नागेन्द्रगच्छ- जिस प्रकार चन्द्रकुल बाद में चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ, उसी प्रकार नागेन्द्रकुल भी नागेन्द्रगच्छ के नाम से विख्यात हुआ । पूर्व मध्ययुगीन और मध्ययुगीन गच्छों में इस गच्छ का विशिष्ट स्थान रहा । इस गच्छ में अनेक विद्वान् आचार्य हुए हैं । अणहिलपुरपाटन के संस्थापक वनराज चावड़ा के गुरु शीलगुणसूरि इसी गच्छ के थे । उनके शिष्य देवचन्द्रसूरि की एक प्रतिमा पाटन में विद्यमान है । अकोटा से प्राप्त ईस्वी सन् की सातवीं शताब्दी की दो जिनप्रतिमाओं पर नागेन्द्रकुल का उल्लेख मिलता है । महामात्य वस्तुपाल - तेजपाल के गुरु विजयसेनसूरि इसी गच्छ के थे । इसी कारण उनके द्वारा बनवाये गये मन्दिरों में मूर्तिप्रतिष्ठा उन्हीं के करकमलों से हुई | जिनहर्षगणि द्वारा रचित वस्तुपालचरित (रचनाकाल वि०सं० १४९७ / ईस्वी सन् १४४१ ) से ज्ञात होता है कि विजयसेनसूरि के उपदेश से ही वस्तुपाल - तेजपाल ने संघ यात्रायें कीं और ग्रन्थभंडार स्थापित किये तथा जिनमंदिरों का निर्माण कराया । इनके शिष्य उदयप्रभसूरि ने धर्माभ्युदय - महाकाव्य ( रचनाकाल वि० सं० १२९० / ईस्वी सन् १२३४ ) और उपदेशमालाटीका (रचनाकाल वि० सं० १२९९ / ईस्वी सन् १२४३ ) की रचना की। इनकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु- परम्परा का सुन्दर विवरण दिया है जो इस गच्छ के इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । वासुपूज्यचरित ( रचनाकाल वि० सं० १२९९ / ईस्वी सन् १२४३) के रचयिता वर्धमानसूरि और प्रबन्धचिन्तामणि के रचयिता मेरुतुंगसूरि भी इसी गच्छ के थे । इस गच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेख भी बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं 1 नाणकीयगच्छ श्वेताम्बर चैत्यवासी गच्छों में नाणकीय गच्छ का प्रमुख स्थान है । इसके कई नाम मिलते हैं, जैसे- नाणगच्छ, ज्ञानकीयगच्छ, नाणावालगच्छ आदि । जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है कि अर्बुदमण्डल में स्थित नाणा नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया । शांतिसूरि I Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। उनके पट्ट पर क्रम से सिद्धसेनसूरि, धनेश्वरसूरि और महेन्द्रसूरि ये तीन आचार्य प्रतिष्ठित हुए । यही ४ नाम इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों को पुनः पुनः प्राप्त होते रहे । इस गच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से वि०सं० १२७२ में बृहत्संग्रहणीपुस्तिका और वि०सं० १५९२ में षट्कर्मअवचूरि की प्रतिलिपि करायी गयी। यह बात उनकी दाताप्रशस्ति से ज्ञात होती है । गच्छ से सम्बद्ध यही साहित्यिक साक्ष्य आज प्राप्त होते हैं । इसके विपरीत इस गच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में जिनप्रतिमायें मिली हैं जो वि०सं० ११०२ से वि०सं० १५९९ तक की हैं। इससे प्रतीत होता है कि इस गच्छ के मुनिजन पठन-पाठन की ओर से प्राय: उदासीन रहते हुए जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा और चैत्यों की देखरेख में ही प्रवृत्त रहते थे। श्रावकों को नूतन जिनप्रतिमाओं के निर्माण की प्रेरणा देना ही इनका प्रमुख कार्य रहा । सुविहितमार्गीय मुनिजनों के बढ़ते हुए प्रभाव के बावजूद चैत्यवासी गच्छों का लम्बे समय तक बने रहना समाज में उनकी प्रतिष्ठा और महत्त्व का परिचायक है। निवृत्तिगच्छ - निर्ग्रन्थ दर्शन के चैत्यवासी गच्छों में निवृत्तिकुल (बाद में निवृत्तिगच्छ) भी एक है । पर्युषणाकल्प की 'स्थविरावली' में इस कुल का उल्लेख नहीं मिलता । इससे प्रतीत होता है कि यह कुल बाद में अस्तित्व में आया । इस कुल का सर्वप्रथम उल्लेख अकोटा से प्राप्त धातु की दो प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में प्राप्त होता है । डॉ० उमाकान्त प्रेमानन्द शाह ने इन लेखों की वाचना इस प्रकार दी है - १. ॐ देवधर्मोयं निवृ()तिकुले जिनभद्रवाचनाचार्यस्य । २. ऊँ निवृ()तिकुले जिनभद्रवाचनाचार्यस्य । शाह ने इन प्रतिमाओं का काल ईस्वी सन् ५५० से ६०० के मध्य का माना है। दलसुखभाई मालवणिया के अनुसार वाचनाचार्य और क्षमाश्रमण समानार्थक शब्द हैं, अतः जिनभद्रवाचनाचार्य और प्रसिद्ध भाष्यकार जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ___ उपमितिभवप्रपंचाकथा - (रचनाकाल वि०सं० ९६२/ईस्वी सन् ९०६), सटीकन्यायावतार, उपदेशमालाटीका के रचनाकार सिद्धर्षि, चउपन्नमहापुरुषचरियं (रचनाकाल वि०सं० ९२५/ईस्वी सन् ८६९) के रचनाकार शीलाचार्य अपरनाम विमलमति अपरनाम शीलाङ्क, प्रसिद्ध ग्रन्थसंशोधक द्रोणाचार्य, सूराचार्य आदि भी इसी कुल से सम्बद्ध थे । यद्यपि इस कुल या गच्छ से सम्बद्ध अभिलेख वि०सं० १६वीं शती तक के हैं, परन्तु उनकी संख्या न्यून ही है। इस गच्छ के आदिम आचार्य कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में उपलब्ध साक्ष्यों से कोई जानकारी नहीं मिलती । यद्यपि पट्टावलियों में नागेन्द्र, चन्द्र और विद्याधर कुलों के साथ इस कुल की उत्पत्ति का भी विवरण मिलता है, किन्तु उत्तरकालीन एवं भ्रामक विवरणों से युक्त होने के कारण ये पट्टावलियाँ किसी भी गच्छ के प्राचीन इतिहास के अध्ययन के लिये यथेष्ट प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती हैं । महावीर की परम्परा में निवृत्तिकुल का उल्लेख नहीं मिलता, अतः क्या यह पार्श्वपत्यों की परम्परा से लाटदेश में निष्पन्न हुआ ! यह अन्वेषणीय है । पल्लीवालगच्छ- पल्ली (वर्तमान पाली, राजस्थान) नामक स्थान से पल्लीवाल ज्ञाति और श्वेताम्बरों के पल्लीवाल गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है । इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य प्राप्त होते हैं । कालिकाचार्यकथा (रचनाकाल वि०सं० १३६५) के रचनाकार महेश्वरसूरि, पिंडविशुद्धिदीपिका (रचनाकाल वि०सं० १६२७), उत्तराध्ययनबालावबोधिनी टीका (रचनाकाल वि०सं० १६२९) और आचारांगदीपिका के रचयिता अजितदेवसूरि इसी गच्छ से सम्बद्ध थे । पल्लीवालगच्छ से सम्बद्ध जो प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं वे वि०सं० १३८३ से वि०सं० १६८१ तक के हैं । इस गच्छ की एक पट्टावली भी प्राप्त हुई है, जिसके अनुसार यह गच्छ चन्द्रकुल से उत्पन्न हुआ है। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___४५ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय पूर्णतल्लगच्छ - चन्द्रकुल से उत्पन्न गच्छों में पूर्णतल्लगच्छ भी एक है । इस गच्छ में जिनदत्तसूरि, यशोभद्रसूरि, प्रद्युम्नसूरि, गुणसेनसूरि, देवचन्द्रसूरि, कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि, अशोकचन्द्रसूरि, चन्द्रसेनसूरि, रामचन्द्रसूरि, गुणचन्द्रसूरि, बालचन्द्रसूरि आदि कई आचार्य हुए । तिलकमंजरीटिप्पण, जैनतर्कवार्तिकवृत्ति आदि के रचनाकार शांतिसूरि इसी गच्छ के थे। देवचन्द्रसूरि ने स्वरचित शांतिनाथचरित (रचनाकाल वि०सं० ११६०/ई. सन् ११०४) की प्रशस्ति में अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - यशोभद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि गुणसेनसूरि देवचन्द्रसूरि (वि.सं. ११६०/ईस्वी सन् ११०४ में शांतिनाथचरित के ___रचनाकार) इसके अतिरिक्त देवचन्द्रसूरि ने स्थानकप्रकरणटीका अपरनाम मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति की भी रचना की । चौलुक्यनरेश कुमारपालप्रतिबोधक, कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि, उत्पादसिद्धिप्रकरण (रचनाकाल वि.सं. १२०५/ईस्वी सन् ११४९) के रचयिता चन्द्रसेनसूरि तथा अशोकचन्द्रसूरि . उक्त देवचन्द्रसूरि के शिष्य थे । हेमचन्द्रसूरि की शिष्य परम्परा में प्रसिद्ध नाट्यकार रामचन्द्र-गुणचन्द्र, अनेकार्थसंग्रह के टीकाकार महेन्द्रसूरि, स्नातस्या नामक प्रसिद्ध स्तुति के रचयिता बालचन्द्रसूरि, उदयचन्द्रसूरि, यशश्चन्द्रसूरि, वर्धमानगणि आदि हुए। पिप्पलगच्छ-वडगच्छीय आचार्य सर्वदेवसूरि के प्रशिष्य और नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य आचार्य शांतिसूरि ने वि०सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५ में पीपलवृक्ष के नीचे महेन्द्रसूरि, विजयसिंहसूरि आदि आठ शिष्यों को आचार्य पद प्रदान किया । पीपलवृक्ष के नीचे उन्हें आचार्यपद प्राप्त होने के कारण उनकी शिष्यसन्तति पिप्पलगच्छीय कहलायी । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सिंहासनद्वात्रिंशिका (रचनाकाल वि०सं० १४८४/ईस्वी सन् १४२८) के रचनाकार सागरचन्द्रसूरि, वस्तुपाल-तेजपाल रास (रचनाकाल वि०सं०१४८४/ ईस्वी सन् १४२८), विद्याविलासपवाडो आदि के कर्ता प्रसिद्ध ग्रन्थकार हीरानन्दसूरि, कालकसूरिभास के कर्ता आनन्दमेरु इसी गच्छ के थे। इस गच्छ की दो अवान्तर शाखाओं का पता चलता है - १. त्रिभवीयाशाखा २. तालध्वजीयशाखा अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर वि०सं० १७७८ तक इस गच्छ का अस्तित्व सिद्ध होता है। पूर्णिमागच्छ या पूर्णिमापक्ष - मध्ययुगीन श्वेताम्बर गच्छों में पूर्णिमागच्छ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। चन्द्रकुल के आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभसूरि द्वारा पूर्णिमा को पाक्षिक पर्व मनाये जाने का समर्थन करने के कारण उनकी शिष्य सन्तति पूर्णिमापक्षीय या पूर्णिमागच्छीय कहलायी। वि०सं० ११४९ या ११५९ में इस गच्छ का आविर्भाव माना जाता है । इस गच्छ में आचार्य धर्मघोषसूरि, देवसूरि, चक्रेश्वरसूरि, समुद्रघोषसूरि, विमलगणि, देवभद्रसूरि, तिलकाचार्य, मुनिरत्नसूरि, कमलप्रभसूरि, महिमाप्रभसूरि आदि कई प्रखर विद्वान् आचार्य हो चुके हैं । इस गच्छ की कई आवन्तर शाखायें अस्तित्व में आयीं, जैसे - प्रधानशाखा या ढंढेरियाशाखा, सार्धपूर्णिमाशाखा, कच्छोलीवालशाखा, भीमपल्लीयाशाखा, वटपद्रीयाशाखा, बोरसिद्धीयाशाखा, भृगुकच्छीयाशाखा, छापरियाशाखा आदि । पूर्णिमागच्छ के मुनिजनों द्वारा रचित ग्रन्थों की प्रशस्तियों, उनकी प्रेरणा से लिपिबद्ध कराये गये प्राचीन ग्रन्थों की दाताप्रशस्तियों एवं पट्टावलियों में इस गच्छ के इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री संकलित है। यही बात इस गच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्रतिमालेखों के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। ब्रह्माणगच्छ - अर्बुदमण्डल के अन्तर्गत वर्तमान वरमाण (प्राचीन ब्रह्माण) नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है । इस गच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं जो वि०सं०११२४ से १६वीं शती के अन्त तक के Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय __४७ हैं । इन लेखों में विमलसूरि, बुद्धिसागरसूरि, उदयप्रभसूरि, मुनिचन्द्रसूरि आदि आचार्यों के नाम पुनः पुनः आते हैं, जिससे प्रतीत होता है कि इस गच्छ के मुनिजन चैत्यवासी रहे होंगे । इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों का प्रायः अभाव है, अतः इसके बारे में विशेष बातें ज्ञात नहीं होती हैं। वडगच्छ - सुविहितमार्गप्रतिपालक और चैत्यवास विरोधी गच्छों में वडगच्छ का प्रमुख स्थान है । परम्परानुसार चन्द्रकुल के आचार्य उद्योतनसूरि ने वि०सं० ९९४ में आबू के निकट स्थित टेलीग्राम में वटवृक्ष के नीचे सर्वदेवसूरि सहित ८ शिष्यों को आचार्यपद प्रदान किया। वटवृक्ष के नीचे उन्हें आचार्यपद प्राप्त होने के कारण उनकी शिष्यसन्तति वडगच्छीय कहलायी । वटवृक्ष के समान इस गच्छ की भी अनेक शाखायें-प्रशाखायें अस्तित्व में आयीं, अतः इसका एक नाम बृहद्गच्छ भी पड़ गया। गुर्जरभूमि में विधिमार्गप्रवर्तक वर्धमानसूरि, उनके शिष्य जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि, नवाङ्गीवृत्तिकार अभयदेवसूरि, आख्यानकमणिकोश के रचयिता देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि, उनके शिष्य आम्रदेवसूरि, प्रसिद्ध ग्रन्थकार मुनिचन्द्रसूरि, उनके पट्टधर प्रसिद्ध वादीदेवसूरि, रत्नप्रभसूरि, हरिभद्रसूरि आदि अनेक प्रभावक और विद्वान् आचार्य हो चुके हैं। इस गच्छ की कई अवान्तर शाखायें अस्तित्व में आयी, जैसे वि०सं० ११४९ या ११५९ में यशोभद्र-नेमिचन्द्र के शिष्य और मुनिचन्द्रसूरि के ज्येष्ठ गुरुभ्राता चन्द्रप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ का उदय हुआ । इसी प्रकार वडगच्छीय शांतिसूरि द्वारा वि०सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५ में पीपलवृक्ष के नीचे महेन्द्रसूरि, विजयसिंहसूरि आदि ८ शिष्यों को आचार्यपद प्रदान करने के कारण उनकी शिष्यसन्तति पिप्पलगच्छीय कहलायी। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा वि०सं० की १७वीं शती के अन्त तक वडगच्छ का अस्तित्व ज्ञात होता है। ___ मलधारीगच्छ या हर्षपुरीयगच्छ - हर्षपुर (वर्तमान हरसौर) नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। जिनप्रभसूरि विरचित कल्पप्रदीप (रचनाकाल वि०सं० १३८९/ईस्वी सन् १३३३) के अनुसार एक बार चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज ने हर्षपुरीयगच्छ के आचार्य अभयदेवसूरि को मलमलिन वस्त्र एवं उनके मलयुक्तदेह को देखकर उन्हें 'मलधारी' नामक उपाधि से अलंकृत किया । उसी समय से हर्षपुरीयगच्छ मलधारीगच्छ के नाम से विख्यात हुआ । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इस गच्छ में अनेक ग्रन्थों के प्रणेता हेमचन्द्रसूरि, विजयसिंहसूरि, श्रीचन्द्रसूरि, लक्ष्मणगणि, विबुधप्रभसूरि, जिनभद्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, देवप्रभसूरि, नरचन्द्रसूरि, नरेन्द्रप्रभसूरि, राजशेखरसूरि, सुधाकलश आदि प्रसिद्ध आचार्य और विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं। इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा बड़ी संख्या में रची गयी कृतियों की प्रशस्तियों एवं गच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १९९० से वि० सं० १६९९ तक के प्रतिमालेखों में इतिहास सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त होती है । मोढगच्छ - गुजरात राज्य के मेहसाणा जिले में अवस्थित मोढेरा (प्राचीन मोढेर) नामक स्थान से मोढ ज्ञाति एवं मोढगच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है । ईस्वी सन् की १०वीं शताब्दी की धातु की दो प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में इस गच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है । इससे प्रमाणित होता है कि उक्त तिथि के पूर्व यह गच्छ अस्तित्व में आ चुका था । प्रभावकचरित से भी उक्त मत की पुष्टि होती है । ईस्वी सन् १९७१ /वि० सं० १२२७ के एक लेख में भी इस गच्छ का उल्लेख मिलता है। श्री पूरनचन्द नाहर ने इसकी वाचना इस प्रकार दी है 1 - सं० १२२७ वैशाख सुदि ३ गुरौ नंदाणि ग्रामेन्या श्राविकया आत्मीयपुत्र लूणदे श्रेयोर्थं चतुर्विंशति पट्टः कारिता: । श्रीमोढगच्छे बप्पभट्टिसंताने जिनभद्राचार्यैः प्रतिष्ठित: । जैनलेखसंग्रह, भाग-२, लेखांक - १६९४ 1 वि०सं० १३२५ में प्रतिलिपि की गयी कालकाचार्यकथा की दाता प्रशस्ति में मोढगुरु हरिप्रभसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है । यद्यपि इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्य सीमित संख्या में प्राप्त होते हैं, फिर भी उनके आधार पर इस गच्छ का लम्बे काल तक अस्तित्व सिद्ध होता है। प्रो० एम०ए० ढांकी का मत है कि जैन धर्मानुयायी मोढ ज्ञाति द्वारा स्थानकवासी (अमूर्तिपूजक) जैनधर्म अथवा वैष्णवधर्म स्वीकार कर लेने से इस श्वेताम्बर मूर्तिपूजक गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया । राजगच्छ - चन्द्रकुल से समय-समय पर अनेक गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ, राजगच्छ भी उनमें से एक है । वि० सं०की ११वीं शती के आस-पास इस गच्छ का प्रादुर्भाव माना जाता है । चन्द्रकुल के आचार्य प्रद्युम्नसूरि के प्रशिष्य और अभयदेवसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि 'प्रथम' दीक्षा लेने के पूर्व राजा थे, अतः उनकी शिष्य-सन्तति राजगच्छ के नाम से विख्यात हुई । इस गच्छ में धनेश्वरसूरि. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय 'द्वितीय', अनेक कृतियों के कर्ता पार्श्वदेवगणि अपरनाम श्रीचन्द्रसूरि, सिद्धसेनसूरि, देवभद्रसूरि, माणिक्यचन्द्रसूरि, प्रभाचन्द्रसूरि आदि कई प्रभावक और विद्वान् आचार्य हुए हैं। इसी गच्छ के वादीन्द्र धर्मघोषसूरि की शिष्य सन्तति अपने गुरु के नाम पर धर्मघोषगच्छीय कहलायी। यद्यपि राजगच्छ से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं जो वि०सं० ११२८ से वि०सं० १५०९ तक के हैं, तथापि उनकी संख्या न्यून ही है । साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा इस गच्छ का अस्तित्व वि०सं० की १४वीं शती तक ही ज्ञात हो पाता है, किन्तु अभिलेखी व साक्ष्यों द्वारा वि०सं० की १६वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक इस गच्छ का अस्तित्व प्रमाणित होता है। रुद्रपल्लीयगच्छ यह खरतरगच्छ की एक शाखा है जो वि०सं० १२०४ में जिनेश्वरसूरि से अस्तित्व में आयीं । रुद्रपल्ली नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति हुई । इस गच्छ में देवसुन्दरसूरि, सोमसुन्दरसूरि, गुणसमुद्रसूरि, हर्षदेवसूरि, हर्षसुन्दरसूरि आदि कई आचार्य हुए हैं। वि०सं० की १७वीं शताब्दी तक इस गच्छ की विद्यमानता का पता चलता है। वायडगच्छ - गुजरात राज्य के पालनपुर जिले में अवस्थित डीसा नामक स्थान के निकट वायड नामक गाम है, जहाँ से छठवीं-सातवीं शती में वायड ज्ञाति और वायडगच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। इस गच्छ में पट्टधर आचार्यों को जिनदत्तसूरि, राशिल्लसूरि और जीवदेवसूरि ये तीन नाम पुनः पुनः प्राप्त होते थे, जिससे पता चलता है कि इस गच्छ के अनुयायी चैत्यवासी रहे। बालभारत और काव्यकल्पलता के रचनाकार अमरचन्द्रसूरि, विवेकविलास व शकुनशास्त्र के प्रणेता जिनदत्तसूरि वायडगच्छ के ही थे। सुकृतसंकीर्तन का रचनाकार ठक्कुर अरिसिंह इसी गच्छ का अनुयायी एक श्रावक था। विद्याधरगच्छ - नागेन्द्र, निर्वृत्ति और चन्द्रकुल की भाँति विद्याधरकुल भी बाद में विद्याधर गच्छ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस गच्छ के कुछ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं। जालिहरगच्छीय देवप्रभसूरि द्वारा रचित पद्मप्रभचरित (रचनाकाल वि०सं० १२५४/ईस्वी सन् ११९८) की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि काशहद और जालिहर ये दोनों विद्याधरगच्छ की शाखायें थीं। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास संडेरगच्छ - मध्ययुगीन श्वेताम्बर चैत्यवासी गच्छों में संडेरगच्छ का भी प्रमुख स्थान है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है संडेर (वर्तमान सांडेरावराजस्थान) नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया । ईश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। शालिसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि और ईश्वरसूरि ये चार नाम पुन: पुन: इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों को प्राप्त होते रहे । संडेरगच्छीय मुनिजनों द्वारा लिखित ग्रन्थों की प्रशस्तियों एवं उनकी प्रेरणा से लिखाये गये ग्रन्थों की दाता प्रशस्तियों में इस गच्छ के इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री संकलित है । यही बात इस गच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों - जो वि० सं० २०३९ से वि०सं० १७३२ तक के हैं, के बारे में भी कही जा सकती है। सागरदत्तरास (रचनाकाल वि०सं० १५५०), ललितांगचरित, श्रीपालचौपाई, सुमित्रचरित्र आदि के रचनाकार ईश्वरसूरि इसी गच्छ के थे । प्राचीन ग्रन्थों के प्रतिलेखन की पुष्पिकाओं के आधार पर ईस्वी सन् की १८वीं शती तक इस गच्छ का अस्तित्व ज्ञात होता है । Į 1 ५० सरवालगच्छ - पूर्वमध्ययुगीन श्वेताम्बर चैत्यवासी गच्छों में सरवालगच्छ भी एक है । चन्द्रकुल की एक शाखा के रूप में इस गच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है । इस गच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १११० से वि० सं० १२८३ तक के कुछ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं। पिण्डनिर्युक्तिवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १९६० / ईस्वी सन् १९०४) के रचयिता वीरगणि अपरनाम समुद्रघोषसूरि इसी गच्छ के थे । इस गच्छ के प्रवर्तन कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । सरवाल जैनों की कोई जाति थी अथवा किसी स्थान का नाम था जहाँ से यह गच्छ अस्तित्व में आया, यह अन्वेषणीय है । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - ४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अड्डालिजीय गच्छ जैन परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में विभिन्न स्थानों के नाम से उद्भूत अल्पजीवी गच्छों में अड्डालिजीय गच्छ भी एक है। अडालज नामक स्थान से सम्बद्ध होने के कारण इस गच्छ का उक्त नामकरण हुआ होगा। अहमदाबाद के निकट 'अडालज' नामक स्थान है जो शायद यही हो सकता है। इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों में मात्र चार अभिलेख ही प्राप्त होते हैं जो बढ़वाण स्थित एक जिनालय में परिकर एवं एक जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण हैं । विजयधर्मसूरिने इनकी वाचना दी है, जो निम्नानुसार है :१. सं० ११३६ फाल्गुन वदि ४ श्रीअड्डालिजीयगच्छे श्रीजीवदेवाचार्यसंताने कुंभानाजप्रतिबद्धसोढसुताशांतिना स्वस्वश्रेयोर्थं (स्वस्वश्रेयोऽर्थ) श्रीशांतिनाथप्रतिमा कारापिता । परिकर के नीचे का लेख बड़ा जैन मंदिर, बढवाण, (गुजरात)। २. सं० १२०७ चैत्र वदि ५ स(श)नौ श्रीअड्डालिजीयगच्छे श्रीदेवाचार्यसंताने श्रे० सांति दुहिता सामी सांपी स्वश्रेयोर्थं (स्वश्रेयोऽर्थ) श्रीअजितनाथजिनयुगलं कारापितं ।। मंगलं महाश्री ॥ अजितनाथ की युगलप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बड़ा जैन मंदिर, बढवाण, (गुजरात)। ३. संवत् १२२८ फाल्गुन वदि ५ भो (भौ) मे श्रीअड्डालिज्जगच्छे श्रीमोढवंशे श्रे० धांधू भार्या । चडवश्राविकया आत्मश्रेयो) (आत्मश्रेयोऽर्थ) श्रीश्रेयांसप्रतिमा कारिता ।। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास परिकर के नीचे का लेख बड़ा जैन मंदिर, बढवाण, (गुजरात)। ४. संवत् १२७३ वर्षे कार्तिक वदि ५ सोमे श्रीमोढ......... श्रीअड्डालिज्ज गच्छीय श्रे० आसादेवसुत श्रे० शांतिपुत्रेण व्य० उदयपातेन श्रे० षोहिणि स्वश्रेयो) (स्वश्रेयोऽर्थ) श्रीमल्लिनाथजिनविवं (बिंब) कारितमिति । परिकर के नीचे का लेख बड़ा जैन मंदिर, बढवाण, (गुजरात). जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं प्रथम लेख में जो वि० सं० ११३६ का है, जीवदेवाचार्य की परम्परा के अनुयायी एक श्रावक द्वारा शांतिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने की बात कही गयी है जबकि द्वितीय लेख में (जो वि० सं० १२०७ का है) देवसूरि की परम्परा के एक श्रावक द्वारा अजितनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने का उल्लेख है। श्वेताम्बर परम्परा में परकायप्रवेशविद्या में निपुण जीवदेवसूरि नामक एक प्रभावक आचार्य हो चुके हैं जो वायडगच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। उनका काल ईस्वी सन् की ८वीं-९वीं शताब्दी माना जाता है। यदि ऊपरकथित अभिलेखों में उल्लिखित जीवदेवसूरि और देवसूरि से वायडगच्छ के प्रवर्तक जीवदेवसूरि की ओर संकेत है तो यह कहा जा सकता है कि वायडगच्छ या वायटीयगच्छ की एक शाखा के रूप में यह गच्छ अस्तित्व में आया होगा। इस गच्छ से सम्बद्ध तृतीय और चतुर्थ लेखों से भी ज्ञात होता है कि प्रतिमा प्रतिष्ठा का कार्य इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा नहीं बल्कि श्रावकों द्वारा ही सम्पन्न होता रहा। वि० सं० १२६३ के पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिलता । अतः यह माना जा सकता है कि इस गच्छ के अनुयायी श्रमण विक्रम सम्वत् की तेरहवीं शती के अन्त तक किन्हीं अन्य प्रभावशाली गच्छों में सम्मिलित हो गये होंगे। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ अड्डालिजीय गच्छ इस गच्छ के प्रवर्तक कौन थे ! वायडगच्छ की एक शाखा के रूप में यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, साक्ष्यों के अभाव में ये सभी प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं 1 संदर्भ : १. २. ३. पृष्ठ ४७-५३. विजयधर्मसूरि-संपा० प्राचीनलेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक २, १०, २१, ३२. प्रभावकचरित, संपा० मुनि जिनविजय, "जीवदेवसूरिप्रबन्ध" प्रबन्धकोश, संपा० मुनि जिनविजय, पृष्ठ ७-९. M.A. Dhaky- “Vayatagaccha and Vayatiya Caityas” निर्ग्रन्थ, वर्ष २, १९९६ ई०स०, हिन्दी खण्ड, पृष्ठ ४०-४८. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ/प्राचीन त्रिस्तुतिक गच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्वमध्यकाल में श्वेताम्बर श्रमणसंघ का विभिन्न गच्छों और उपगच्छों में विभाजन जैन धर्म के इतिहास की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है । चन्द्रकुल (बाद में चन्द्रगच्छ) से अनेक छोटी-बड़ी शाखाओं (गच्छों) का प्रादुर्भाव हुआ और ये शाखायें पुन: कई उपशाखाओं में विभाजित हुईं। चन्द्रकुल की एक शाखा (वडगच्छ /बृहद्गच्छ) के नाम से प्रसिद्ध हुई । वडगच्छ से वि०सं० १९४९ में पूर्णिमागच्छ का प्रादुर्भाव हुआ और पूर्णिमागच्छ की एक शाखा वि० सं० की १३वीं शती से आगमिकगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई । पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक आचार्य चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य आचार्य शीलगुणसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं । इस गच्छ में यशोभद्रसूरि, सर्वाणंदसूरि, विजयसिंहसूरि, अमरसिंहसूरि, हेमरत्नसूरि, अमररत्नसूरि, सोमप्रभसूरि, आणंदप्रभसूरि, मुनिरत्नसूरि, आनन्दरत्नसूरि आदि कई विद्वान् एवं प्रभावक आचार्य हुए हैं, जिन्होंने अपने साहित्यिक और धार्मिक क्रियाकलापों से श्वेताम्बर श्रमणसंघ को जीवन्त बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान की । पूर्णिमागच्छीय आचार्य शीलगुणसूरि और उनके शिष्य देवभद्रसूरि द्वारा जीवदयाणं तक का शक्रस्तव और ६७ अक्षरों का परमेष्ठीमन्त्र, तीन स्तुति से देववन्दन आदि बातों में आगमपक्ष के समर्थन से वि० सं० १२१४ या १२५० में आगमिकगच्छ अपरनाम त्रिस्तुतिकमत का प्रादुर्भाव हुआ १ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ ५५ आगमिक गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के आचार्यों द्वारा लिखित ग्रन्थों की प्रशस्तियों तथा इस गच्छ और इसकी शाखाओं की पट्टावलियों का उल्लेख किया जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के आचार्यों / मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों को रखा गया है, इनकी संख्या सवा दो सौ के आसपास है । पट्टावलियों द्वारा इस गच्छ की दो शाखाओं -धंधूकीया और विडालंबीया का पता चलता है । आगमि गच्छ और उसकी शाखाओं की पट्टावलियों की तालिका इस प्रकार है : Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्ञात क्रमाङ्क | पट्टावली का नाम - रचनाकार | संभावित संदर्भ ग्रन्थ तिथि | आगमिकगच्छपट्टावली अज्ञात | १३वीं शती | विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, लगभग संपा० जिनविजय, पृ. ९-१२ आगमिकगच्छपट्टावली १६वीं शती | जैनगूर्जरकविओ, भाग-३, परिशिष्ट, लगभग संपा० मोहनलाल दलीचंद देसाई, पृष्ठ २२२४-२२३२ ३. धंधूकीया शाखा की १७वीं शती | वही, पृष्ठ २२३२ पट्टावली लगभग ४. विडालंबीया शाखा | १८वीं शती | वही पृष्ठ २२३३ की पट्टावली लगभग आगमिकगच्छपट्टावली | मुनिसागरसूरि | १६वीं शती | पट्टावलीसमुच्चय, भाग-२, पृष्ठ १५८-१६२ लगभग जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ६, अंक-४, जैन परम्परानो इतिहास, भाग-२, अज्ञात अज्ञात जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क ६. पट्टावली का नाम धंधूकीयाशाखा की पट्टावली रचनाकार अज्ञात संभावित तिथि १७वीं शती लगभग संदर्भ ग्रन्थ पृष्ठ ५४०-५४२ विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ २३४ - २३५८५ विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ २३५ - २३६ आगमिक गच्छ ५७ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त तालिका की प्रथम पट्टावली में आगमिकगच्छ के प्रवर्तक आचार्य शीलगुणसूरि का पूर्णिमागच्छीय आचार्य चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य के रूप में उल्लेख है । इसके अतिरिक्त इस पट्टावली से आगमिकगच्छ के इतिहास के बारे में कोई सूचना नहीं मिलती है। 1 ५८ तालिका में प्रदर्शित अंतिम दोनों पट्टावलियाँ इस प्रकार हैं :मुनिसागरसूरि द्वारा रचित आगमिकगच्छपट्टावली में उल्लिखित गुरुपरम्परा की सूची शीलगुणसूरि [ आगमिकगच्छ के प्रवर्तक] देवभद्रसूरि I धर्मघोषसूरि I यशोभद्रसूरि | सर्वाणंदसूर अभयदेवसूरि 1 वज्रसेनसूरि T जिनचन्द्रसूरि हेमसिंहसूरि रत्नाकरसूरि T विजयसिंहसूरि 1 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ गुणसमुद्रसूरि अभयसिंहसूरि सोमतिलकसूरि 1 सोमचन्द्रसूरि गुणरत्नसूर I मुनिसिंहसूरि शीलरत्नसूरि T आणंदप्रभसूरि T मुनिरत्नसूरि | मुनिसागरसूरि [ पट्टावली के लेखक ] तालिका में क्रमाङ्क ६ पर प्रदर्शित आगमिकगच्छ ( धंधूकीयाशाखा ) की पट्टावली में उल्लिखित गुरु- परम्परा की सूची : शीलगुणसूरि T देवभद्रसूरि धर्मघोषसूरि T यशोभद्रसूरि ५९ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० सर्वाणंदसूर | जिनचन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि | अभयसिंहसूरि अमरसिंहसूरि हेमरत्नसूरि | अमररत्नसूरि T सोमरत्नसूरि | गुणनिधानसूरि T उदयरत्नसूर सौभाग्यसुन्दरसूरि 1 धर्मरत्नसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभयदेवसूरि मेघरत्नसूरि जैसा कि स्पष्ट है, उक्त दोनों पट्टावलियां आगमिकगच्छ के प्रकटकर्ता शीलगुणसूरि से प्रारम्भ होती हैं। इसमें प्रारम्भ के ४ आचार्यों के नाम भी समान हैं, अत: इस समय तक शाखाभेद नहीं हुआ था, ऐसा माना जा वज्रसेनसूरि Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ ६१ सकता है। आगे यशोभद्रसूरि के तीन शिष्यों-सर्वाणंदसूरि, अभयदेवसूरि और वज्रसेनसूरि को पट्टावलीकार मुनिसागरसूरि ने एक सीधे क्रम में रखा है वहीं धंधूकीया शाखा की पट्टावली में उन्हें यशोभद्रसूरि का शिष्य बतलाया गया है। सर्वाणंदसूरि की शिष्यपरम्परा में जिनचन्द्रसूरि हुए, शेष दो आचार्यों अभयदेवसूरि और वज्रसेनसूरि की शिष्यपरम्परा आगे नहीं चली। जिनचन्द्रसूरि के शिष्य विजयसिंहसूरि का दोनों पट्टावलियों में समान रूप से उल्लेख है। पट्टावलीकार मुनिसागरसूरि ने जिनचन्द्रसूरि के दो अन्य शिष्यों हेमसिंहसूरि और रत्नाकरसूरि का भी उल्लेख किया है, परन्तु उनकी परम्परा आगे नहीं चली । विजयसिंहसूरि के शिष्य अभयसिंहसूरि का नाम भी दोनों पट्टावलियों में समान रूप से मिलता है। अभयसिंहसूरि दो शिष्यों - अमरसिंहसूरि और सोमतिलकसूरि से यह गच्छ दो शाखाओं में विभाजित हो गया । अमरसिंहसूरि की शिष्यसन्तति आगे चलकर धन्धूकीया शाखा और सोमतिलकसूरि की शिष्यपरम्परा विडालंबीया शाखा के नाम से जानी गयी । यह उल्लेखनीय है कि प्रतिमालेखों में कहीं भी इन शाखाओं का उल्लेख नहीं हुआ है, वहाँ सर्वत्र केवल आगमिकगच्छ का ही उल्लेख है, किन्तु कुछ प्रशस्तियों में स्पष्ट रूप से इन शाखाओं का नाम मिलता है तथा दोनों शाखाओं की पट्टावलियाँ तो स्वतन्त्र रूप से मिलती ही हैं, जिनकी प्रारम्भ में चर्चा की जा चुकी है। अभयसिंहसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित एक जिनप्रतिमा पर वि० सं० १४२१ का लेख उत्कीर्ण है, अत: यह माना जा सकता है कि वि० सं० १४२१ के पश्चात् अर्थात् १५वीं शती के मध्य के आसपास यह गच्छ दो शाखाओं में विभाजित हुआ होगा । चूँकि इस गच्छ के इतिहास से सम्बद्ध जो भी साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध हैं, वे १५वीं शती के पूर्व के नहीं है और इस समय तक यह गच्छ दो शाखाओं में विभाजित हो चुका था अत: इन दोनों शाखाओं का ही अध्ययन कर पाना सम्भव है । शीलगुणसूरि तक के ८ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पट्टधर आचार्यों में केवल अभयसिंहसूरि का ही वि० सं० १४२१ के एक प्रतिमा लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। शेष ७ आचार्यों के बारे में मात्र पट्टावलियों से ही न्यूनाधिक सूचनायें प्राप्त होती हैं, अन्य साक्ष्यों से नहीं । लगभग २०० वर्षों की अवधि में किसी गच्छ में ८ पट्टधर आचार्यों का होना असम्भव नहीं लगता, अत: आगमिक गच्छ के विभाजन के पूर्व इन पट्टावलियों की सूचना को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसूरि और सोमतलिकसूरि की शिष्यसन्तति आगे चलकर क्रमशः धन्धूकीयाशाखा और विडालंबीयाशाखा के नाम से जानी गयी, यह बात निम्न प्रदर्शित तालिका से स्पष्ट होती है : शीलगुणसूरि देवभद्रसूरि धर्मघोषसूरि यशोभद्रसूरि सर्वानन्दसूरि अभयदेवसूरि वज्रसेनसूरि जिनचन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि हेमचंद्रसूरि रत्नाकरसूरि अभयसिंहसूरि गुणसमुद्रसूरि अमरसिंहसूरि सोमतिलकसूरि Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ हेमरत्नसूरि सोमचन्द्रसूरि अमररत्नसूरि गुणरत्नसूरि सोमरत्नसूरि मुनिसिंहसूरि धंधूकीयाशाखा """stan विडालंबीया शाखा प्रारम्भ.... अध्ययन की सुविधा के लिये दोनों शाखाओं का अलग-अलग विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। इनमें सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों के विवरणों की विवेचना की गयी है। साहित्यिक साक्ष्य १- पुण्यसाररास-यह कृति आगमगच्छीय आचार्य हेमरत्नसूरि के शिष्य साधुमेरु द्वारा वि० सं० १५०१ पौष वदि ११ सोमवार को धंधूका नगरी में रची गयी । कृति के अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है अमरसिंहसूरि हेमरत्नसूरि साधुमेरु [ रचनाकार ] २- अमररत्नसूरिफागु-मरु-गुर्जर भाषा में लिखित १८ गाथाओं की इस कृति को श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने वि० सम्वत् की १६वीं शती की रचना मानी है। इस कृति में रचनाकार ने अपना परिचय केवल Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अमररत्नसूरिशिष्य इतना ही बतलाया है। यह रचना प्राचीनफागुसंग्रह में प्रकाशित है। अमरसिंहसूरि अमररत्नसूरिशिष्य [ रचनाकार ] ३- सुन्दरराजारास-आगमगच्छीय अमररत्नसूरि की परम्परा के कल्याणराजसूरि के शिष्य क्षमाकलश ने वि० सं० १५५१ में इस कृति की रचना की । क्षमाकलश की दूसरी कृति ललिताङ्गकुमाररास वि० सं० १५५३ में रची गयी है। दोनों ही कृतियाँ मरु-गूर्जर भाषा में हैं । इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है, जो इस प्रकार है अमररत्नसूरिशिष्य अमररत्नसूरि सोमरत्नसूरि कल्याणराजसूरि क्षमाकलश [सुन्दरराजारास एवं ललिताङ्गकुमाररास के कर्ता] ४-लघुक्षेत्रसमासचौपाई-यह कृति आगमगच्छीय मतिसागरसूरि द्वारा वि०सं० १५९४ में पाटन नगरी में रची गयी है। इसकी भाषा मरुगुर्जर है। चना के प्रारम्भ और अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा की चर्चा की है, जो इस प्रकार है - सोमरत्नसूरि Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ - गुणनिधानसूरि उदयरत्नसूरि गुणमेरुसूरि मतिसागरसूरि [ रचनाकार ] अभिलेखीय साक्ष्य आगमिक गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं पर वि० सं० १४२१ से वि० सं० १६८३ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इन प्रतिमालेखों के आधार पर इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं, जो इस प्रकार हैं - १. अमरसिंहसूरि-इनके द्वारा वि० सं० १४५१ से वि० सं० १४७८ के मध्य प्रतिष्ठापित ७ प्रतिमा लेख उपलब्ध हैं, इनका विवरण इस प्रकार वि०सं० १४५१ ज्येष्ठ सुदि ४ रविवार १ प्रतिमालेख वि०सं० १४६२ वैशाख सुदि ३ वि०सं० १४६५ माघ सुदि ३ रविवार वि०सं० १४७० तिथि विहीन वि०सं० १४७५ ॥ ॥ वि०सं० १४७६ चैत्र वदि १ शनिवार वि०सं० १४७८ वैशाख सुदि ३ गुरुवार २. अमरसिंहसूरि के पट्टधर हेमरलसूरि-हेमरत्नसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ४० प्रतिमायें अद्यावधि उपलब्ध हुई हैं। ये सभी प्रतिमायें लेख युक्त हैं। इन पर वि०सं० १४८४ से वि० सं० १५२१ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनका विवरण इस प्रकार है - Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वैशाख सुदि ३ शुक्रवार १ प्रतिमालेख मार्गशीर्ष सुदि ५ रविवार ज्येष्ठ वदि.............. २ प्रतिमालेख माघ सुदि ५ गुरुवार १ प्रतिमालेख ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रवार माघ वदि २ शुक्रवार तिथि विहीन फाल्गुन-सोमवार द्वितीय ज्येष्ठ वदि ७ शनिवार ज्येष्ठ वदि ......... वि०सं० १४८४ वि०सं० १४८४ वि०सं० १४८५ वि०सं० १४८७ वि०सं० १४८८ वि०सं० १४८९ वि०सं० १४८९ वि०सं० १४९० वि०सं० १४९१ वि०सं० १४९२ वि०सं० १५०३ वि०सं० १५०४ वि०सं० १५०५ वि०सं० १५०६ वि०सं० १५०७ वि०सं० १५०७ वि०सं० १५१२ वि०सं० १५१२ वि०सं० १५१२ वि०सं० १५१२ वि०सं० १५१२ वि०सं० १५१२ वि०सं० १५१५ वि०सं० १५१५ माघ वदि ८ बुधवार फाल्गुन सुदि १२ गुरुवार माघ सुदि ९ शनिवार २ प्रतिमालेख तिथि विहीन ज्येष्ठ सुदि ९ १ प्रतिमालेख माघ सुदि १३ शुक्रवार तिथि विहीन २ प्रतिमालेख ज्येष्ठ वदि ५ सोमवार १ प्रतिमालेख ज्येष्ठ सुदि १० रविवार वैशाख वदि १० शुक्रवार २ प्रतिमालेख वैशाख सुदि ५ शुक्रवार ३ प्रतिमालेख फाल्गुन वदि ३ शुक्रवार १ प्रतिमालेख वैशाख सुदि १० गुरुवार फाल्गुन सुदि ८ शनिवार Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ वि०सं० १५१६ वैशाख सुदि ३ वि०सं० १५१७ वैशाख सुदि ३ सोमवार वि०सं० १५१८ माघ सुदि ५ गुरुवार वि०सं० १५१९ वैशाख वदि ११ शुक्रवार वि०सं० १५१९ वैशाख सुदि ३ गुरुवार २ प्रतिमालेख वि०सं० १५१९ माघ वदि ९ शनिवार १ प्रतिमालेख वि०सं० १५१९ माघ सुदि ३ सोमवार वि०सं० १५२१ आषाढ सुदि १ गुरुवार ३. हेमरत्न के पट्टधर अमररत्नसूरि-इनके द्वारा वि० सं० १५२४ से वि० सं० १५४७ के मध्य प्रतिष्ठापित १८ प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं । इनका विवरण इस प्रकार है - वि०सं० १५२४ वैशाख सुदि २ गुरुवार १ प्रतिमालेख वि०सं० १५२४ कार्तिक वदि १३ शनिवार १ प्रतिमालेख वि०सं० १५२५ तिथि विहीन वि०सं० १५२७ तिथि विहीन वि०सं० १५२८ वैशाख सुदि ५ शुक्रवार वि०सं० १५२९ ज्येष्ठ वदि १ शुक्रवार २ प्रतिमालेख वि०सं० १५३० माघ वदि २ शुक्रवार १ प्रतिमालेख वि०सं० १५३१ माघ सुदि ५ वि०सं० १५३२ वैशाख सुदि ३ ४ प्रतिमालेख वि०सं० १५३२ ज्येष्ठ वदि १३ बुधवार १ प्रतिमालेख वि०सं० १५३५ वैशाख सुदि ६ सोमवार वि०सं० १५३५ आषाढ़ सुदि २ मंगलवार " वि०सं० १५३६ वैशाख सुदि ३ शुक्रवार ४ प्रातमाल Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि०सं० १५४५ वैशाख सुदि ५ गुरुवार ४. अमररत्नसूरि के पट्टधर सोमरत्नसूरि-इनके द्वारा प्रतिष्ठापित १२ प्रतिमायें मिलती हैं, जो वि० सं० १५४८ से वि० सं० १५८१ तक की हैं। इसका विवरण इस प्रकार है - वि०सं० १५४८ वैशाख सुदि ३ १ प्रतिमालेख वि०सं० १५५२ वैशाख सुदि ३ वि०सं० १५५२ माघ वदि ८ शनिवार वि०सं० १५५५ ज्येष्ठ सुदि ९ रविवार वि०सं० १५५६ वैशाख सुदि १३ रविवार वि०सं० १५६७ वैशाख सुदि ३ बुधवार वि०सं० १५६९ वैशाख सुदि ९ शुक्रवार वि०सं० १५७१ चैत्र वदि २ गुरुवार वि०सं० १५७१ चैत्र वदि ७ गुरुवार...? वि०सं० १५७३ वैशाख सुदि ६ गुरुवार वि०सं० १५७३ फाल्गुन सुदि २ रविवार वि०सं० १५८१ माघ सुदि ५ गुरुवार इस प्रकार अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर आगमगच्छ के उक्त मुनिजनों का जो पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होता है, वह इस प्रकार है - अमरसिंहसूरि [ वि० सं० १४५१-१४८३ ] हेमरत्नसूरि [ वि० सं० १४८४-१५२१ ] अमररत्नसूरि [ वि० सं० १५२४-१५४७ ] सोमरत्नसूरि [ वि० सं० १५४८-१५८१ ] Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९ आगमिक गच्छ पूर्व प्रदर्शित पट्टावलियों की तालिका में श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई द्वारा आगमिकगच्छ और उसकी दोनों शाखाओं की अलग-अलग प्रस्तुत की गई पट्टावलियों को रखा गया है । देसाई द्वारा दी गयी आगमिकगच्छ की गुर्वावली शीलगुणसूरि से प्रारम्भ होकर हेमरत्नसूरि तक एवं धंधूकीया शाखा की गुवावला अमररत्नसूरि से प्रारम्भ होकर मेघरत्नसूरि तक के विवरण के पश्चात् समाप्त होती है । ये दोनों गुर्वावलियां मुनि जिनविजयजी द्वारा दी गई धंधूकीयाशाखा की गुर्वावली [ जो शीलगुणसूरि से प्रारम्भ होकर मेघरत्नसूरि तक के विवरण के पश्चात् समाप्त होती है ] से अभिन्न हैं अतः इन्हें अलग-अलग मानने और इनकी अप्रामाणिकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा ज्ञात पूर्वोक्त चार आचार्यों [ अमरसिंहसूरिहेमरत्नसूरि-अमररत्नसूरि-सोमरत्नसूरि ] के नाम इसी क्रम में धंधूकीया शाखा की पट्टावली में मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रंथप्रशस्तियों द्वारा आगमिक गच्छ के मुनिजनों के जो नाम ज्ञात होते हैं, उनमें से न केवल कुछ नाम धंधूकीयाशाखा की पट्टावली में मिलते हैं, बल्कि इस शाखा के साधुमेरुसूरि, कल्याणराजसूरि, क्षमाकलशसूरि, गुणमेरुसूरि, मतिसागरसूरि आदि ग्रन्थकारों के नाम केवल उक्त ग्रंथप्रशस्तियों से ही ज्ञात होते हैं। इस प्रकार धंधूकीया शाखा की परम्परागत पट्टावली में उल्लिखित अभयसिंहसूरि, अमरसिंहसूरि, हेमरत्नसूरि, अमररत्नसूरि, सोमरत्नसूरि आदि आचार्यों के बारे में जहाँ अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा कालनिर्देश की जानकारी होती है, वहीं ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर इस शाखा के अन्य मुनिजनों के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के संयोग से आगमिकगच्छ की धंधूकीया शाखा की परम्परागत पट्टावली को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है - साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० आगमिकगच्छ [ धंधूकीयाशाखा ] का वंशवृक्ष [ तालिका - १ ] सर्वाणंदसूर जिनचन्द्रसूरि I विजयसिंहसूरि I | हेमरत्नसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास साधुमेरु [ वि० सं० १५०१ में पुण्यसाररास के कर्ता ] शीलगुणसूरि 1 देवभद्रसूरि धर्मघोषसूरि यशोभद्रसूरि अभयसिंहसूरि [वि० सं० १४२१ ] प्रतिमालेख 1 अमरसिंहसूरि [वि० सं० १४२१ - १४८३ ] प्रतिमालेख [वि० सं० १४८४ - १५२१ ] प्रतिमालेख अभयदेवसूरि वज्रसेनसूरि अमररत्नसूरि [वि० सं० १५२४ - ४३ ] प्रतिमालेख Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ ७१ सोमरत्नसूरि [वि० सं० १५४८-८१ ] प्रतिमालेख कल्याणराजसूरि __अमररत्नसूरिशिष्य [अमररत्नसूरिफागु के कर्ता] गुणनिधानसूरि क्षमाकलश [ वि० सं० १५५१ में सुन्दरराजारास एवं वि० सं० १५५३ में ललिताङ्गकुमाररास के कर्ता] उदयरत्नसूरि[ वि० सं० १५८६-८७ ] प्रतिमालेख सौभाग्यसुन्दरसूरि गुणमेरुसूरि [ वि० सं० १६१०] । प्रतिमालेख मतिसागरसूरि धर्मरत्नसूरि [वि० सं० १५९४ में लघुक्षेत्रसमासचौपाई के रचनाकार] मेघरत्नसूरि जैसा कि पूर्व में ही स्पष्ट किया जा चुका है, अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसूरि और सोमतिलकसूरि से आगमिकगच्छ की दो शाखायें अस्तित्व में आयीं । अमरसिंहसूरि की शिष्यसंतति आगे चलकर धंधूकीया शाखा के नाम से जानी गयी । उसी प्रकार सोमतिलकसूरि की शिष्य परम्परा विडालंबीयाशाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मुनिसागरसूरि द्वारा रचित आगमिकगच्छपट्टावली में अभयसिंहसूरि के पश्चात् सोमतिलकसूरि से मुनिरत्नसूरि तक ७ आचार्यों का क्रम इस प्रकार मिलता है - ७२ सोमतिलकसूरि | सोमचंद्रसूरि | गुणरत्नसूरि | मुनिसिंहसूरि शीलरत्नसूरि आनन्दप्रभसूरि | मुनिरत्नसूरि साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर इस पट्टावली के गुणरत्नसूरि और मुनिरत्नसूरि के अन्य शिष्यों के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त होती है । गजसिंहकुमार (रचनाकाल वि० सं० १५१३) की प्रशस्ति में रचनाकार देवरत्नसूरि ने अपने गुरु गुणरत्नसूरि का ससम्मान उल्लेख किया है । इसी प्रकार मलयसुन्दरीरास (रचनाकाल वि० सं० १५४३ ) और कथाबत्तीसी (रचनाकाल वि० सं० १५५७) की प्रशस्तियों में रचनाकार ने Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ - अपने गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - मुनिसागरसूरि 1 उदयधर्मसूरि मुनिसिंहसूरि 1 मतिसागरसूरि | उदयधर्मसूरि [ रचनाकार ] आगमिकगच्छीय उदयधर्मसूरि (द्वितीय) द्वारा रचित धर्मकल्पद्रुम की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपने गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है. - आनन्दप्रभसूरि T मुनिरत्नसूरि ७३ आनन्दरत्नसूरि [ धर्मकल्पद्रुम के रचनाकार ] मुनिसिंहसूरि द्वारा वि० सं० १४९९ कार्तिक सुदी ५ सोमवार को प्रतिष्ठापित भगवान् शान्तिनाथ की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसी प्रकार मुनिसिंहसूरि के शिष्य शीलरत्नसूरि द्वारा वि० सं० १५०६ से वि० सं० १५१२ तक प्रतिष्ठापित ५ प्रतिमायें मिलती हैं । शीलरत्नसूरि के शिष्य आनन्दप्रभसूरि द्वारा वि० सं० १५१३ से वि० सं० १५२७ तक प्रतिष्ठापित ६ प्रतिमायें प्राप्त होती हैं । आनन्दप्रभसूरि के शिष्य मुनिरत्नसूरि द्वारा वि० सं० १५२३ और वि० सं० १५४२ में प्रतिष्ठापित २ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा ही मुनिरत्नसूरि के शिष्य आनन्दरत्नसूरि का भी उल्लेख प्राप्त होता है । उनके द्वारा प्रतिष्ठापित ५ तीर्थंङ्कर प्रतिमायें Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मिली हैं, जो वि० सं० १५७१ से वि० सं० १५८३ तक की हैं। उक्त बात को तालिका के रूप में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है सोमतिलकसूरि 1 सोमचन्द्रसूरि | गुणरत्नसूरि - | मुनिसिंहसूरि [वि० सं० १४९९ ] १ प्रतिमालेख T शीलरत्नसूरि [वि० सं० १५०६ - १५१२ ] I ५ प्रतिमालेख आनन्दप्रभसूरि [वि० सं० १५१३-१५२७] ६ प्रतिमालेख मुनिरत्नसूरि [वि० सं० १५२३ - १५४२ ] 1 २ प्रतिमालेख आनन्दरत्नसूरि [ वि० सं० १५७१ - १५८३ ] ५ प्रतिमालेख श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई द्वारा प्रस्तुत आगमिकगच्छ की विडालंबीया शाखा की गुर्वावली इस प्रकार है - --- Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ उदयसागरसूरि | भानु भट्टसूरि I माणिक्यमंगलसूरि [ वि० सं० १६३९ में मुनिरत्नसूरि | आनन्दरत्नसूरि ज्ञानरत्नसूरि T हेमरत्नसूरि धर्महंससूरि [ वि० सं० १६२० के लगभग नववाडढालबंध के रचनाकार ] अंबडरास के रचनाकार ] उक्त पट्टावली के आधार पर मुनिसागरसूरि द्वारा रचित आगमिकगच्छपट्टावली में ६ अन्य नाम भी जुड़ जाते हैं । इस प्रकार ग्रन्थ प्रशस्ति, प्रतिमालेख तथा उपरोक्त पट्टावली के आधार पर मुनिसागरसूरि द्वारा रचित पट्टावली अर्थात् आगमिकगच्छ की विडालंबीया शाखा की पट्टावली को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है। - [ तालिका - २ ] साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित आगमिकगच्छ [ विडालंबीयाशाखा ] का वंश वृक्ष ७५ शीलगुणसूरि I Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ सर्वाणंदसूर 1 जिनचन्द्रसूरि अमरसिंहसूरि धंधूकीयाशाखा जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देवभद्रसूरि विजयसिंहसूरि हेमसिंहसूरि | अभयसिंहसूरि धर्मघोषसूरि ' यशोभद्रसूरि अभयदेवसूरि देवरत्नसूरि [वि० सं० १५१३ में गजसिंहसकुमाररास के रचनाकार ] वज्रसेनसूरि रत्नाकरसूरि सोमतिलकसूरि सोमचन्द्रसूरि | गुणरत्नसूरि मुनिसिंहसूरि [वि० सं० १४९९ ] प्रतिमालेख 1 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ ७७ मतिसागरसूरि शीलरत्नसूरि [वि० सं० १५०६-१५१३ ] प्रतिमालेख उदयधर्मसूरि [ प्रथम ] [ मलयसुन्दरीरास वि० सं० १२४३ कथाबत्तीसी वि० सं० १५५७ ] आनन्दप्रभसूरि [वि० सं० १५१३-१५१४ ] प्रतिमालेख गुणप्रभसूरि [ वि० सं० १५२० ] प्रतिमालेख मुनिरत्नसूरि [वि० सं० १५२३-१५४३ ] प्रतिमालेख मुनिसागरसूरि [ आगमिकगच्छगुर्वावली ] के रचनाकार आनन्दरत्नसूरि [ वि० सं० १५७१-१५८३ ] प्रतिमालेख ज्ञानरत्नसूरि उदयधर्मसूरि [ द्वितीय ] अमरसिंहसूरि [धर्मकल्पद्रुम के रचनाकार वि० सं० १५८४ में मेघदूत की प्रति के लेखक ] हेमरत्नसूरि [ वि० सं० १५७७ ] प्रतिमालेख Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ उदयसागरसूरि | भानु भट्टसूरि | माणिक्य मंगलसूरि [वि० सं० १६३९ में जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अंबडरास के रचनाकार ] साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर आगमिक गच्छ के जयानन्दसूरि, देवरत्नसूरि, शीलसिंहसूरि, विवेकरत्नसूरि, संयमरत्नसूरि, कुलवर्धनसूरि, विनयमेरुसूरि, जयरत्नगणि, देवरत्नगणि, वरसिंहसूरि, विनयरत्नसूरि आदि कई मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं । इन मुनिजनों के परस्पर सम्बन्ध भी उक्त साक्ष्यों के आधार पर निश्चित हो जाते हैं और इनकी जो गुर्वावली बनती है, वह इस प्रकार है - ? देवरत्नसूरि [वि० सं० १५०५१५३३ ] प्रतिमालेख धर्महंससूरि [वि० सं० १६२० के लगभग नववाडढालबंध के रचनाकार ] जयानन्दसूरि [वि० सं० १४७२ - १४९४ ] शीलसिंहसूरि [कोष्ठकचिन्तामणि स्वोपज्ञटीका के कर्ता ] 7 विवेकरत्नसूरि Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ कुलवर्धनसूरि [वि० सं० १६४३ - ८३] प्रतिमालेख ७९ [ श्रीचन्द्रचरित [वि० सं० १५४४-७९] वि० सं० १४९४ के कर्ता] विनयमेरु [वि० सं० १५९९] प्रतिमालेख | वरसिंहसूरि प्रतिमालेख 1 संयमरत्नसूरि [वि० सं० १५८०- १६१६ ] प्रतिमालेख [आवश्यक बालावबोधवृत्ति के रचनाकार ] जयरत्नगणि देवरत्नगणि वि० सं० १६८१ आगमिकगच्छ के मुनिजनों की उक्त तालिका का आगमिकगच्छ की पूर्वोक्त दोनों शाखाओं ( धंधूकीया शाखा और विडालंबीया शाखा) में से किसी के साथ भी समन्वय स्थापित नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति में यह माना जा सकता है कि आगमिकगच्छ में उक्त शाखाओं के अतिरिक्त भी कुछ मुनिजनों की स्वतंत्र परम्परा विद्यमान थी । इसी प्रकार आगमिकगच्छीय जयतिलकसूरि, मलयचन्द्रसूरि', जिनप्रभसूरि, सिंहदत्तसूरि" आदि की कृतियाँ तो उपलब्ध होती हैं, परन्तु उनके गुरु- परम्परा के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती है। विनयरत्नसूरि [वि० सं० १६७३ माघ सुदी १३ को भगवतीसूत्र के प्रतिलिपिकार] Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा भी इस गच्छ के अनेक मुनिजनों के नाम तो ज्ञात होते हैं, परन्तु उनकी गुरु-परम्परा के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती। यह बात प्रतिमालेखों की प्रस्तुत तालिका से भी स्पष्ट होती है - ८० Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् १. २. ३. तिथि १४२० कार्तिक सुदि १५ रविवार १४२१ कार्तिक सुदि ५ रविवार १४२१ | माघ वदि ११ सोमवार आचार्य का नाम अभयसिंहसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख देवकुलिका का लेख पद्मप्रभ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वीर जिनालय, जीरावला जीरावलीतीर्थ चैत्यदेवकुलिका, जैन मन्दिर थराद गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ मुनि जयन्तविजय संपा० आबू, भाग-५, लेखाङ्क १२२ दौलत सिंह लोढ़ा, संपा० श्रीप्रतिमा लेखसंग्रह, लेखाङ्क ३०४ (अ) अगरचन्द नाहटा, संपा०- बीकानेर जैनलेखसंग्रह - लेखाङ्क - १९३६ आगमिक गच्छ ८१ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ४. १४३८ ५. ५ अ. तिथि आषाढ़ सुदि ९ शुक्रवार १४३९ पौष वदि ८ रविवार १४४० पौष वदि ...l आचार्य का नाम जयतिलकसूरि जयाणंदसूरि श्रीतिलकसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान महावीर स्वामी का मन्दिर, ओसिया नेमिनाथ जिनालयं, मांडवीपोल, खंभात कोठार पंचतीर्थी, शत्रुञ्जय संदर्भ ग्रन्थ पूरनचंद नाहर, संपा० - जैनलेख संग्रह, भाग १, लेखाङ्क ७१५ बुद्धिसागरसूरि संपा० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २ लेखाङ्क ६३१ मुनि कंचनसागर संपा०- शत्रुञ्जयगिरिराजदर्शन, लेखाङ्क २६५ ८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि - आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख | १४५१ | ज्येष्ठ अमरसिंहसूरि शांतिनाथ की जैन मन्दिर, विजयधर्मसूरि सुदि ४ पंचतीर्थी प्रतिमा | वणा संपा०- प्राचीनरविवार का लेख लेखसंग्रह, लेखाङ्क ९४ ७. | १४६२ | वैशाख पार्श्वनाथ की मनमोहन पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | जिनालय, मीयागाम | पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क २७७ ८. १४६४ | माघ शांतिनाथ की | चिन्तामणि पार्श्वनाथ | वही, भाग १ सुदि ३ चौबीसी प्रतिमा | जिनालय, बीजापुर | लेखाङ्क ४२२ शनिवार का लेख ९. १४७० शांतिनाथ की जैन देरासर, वही, भाग १ चौबीसी प्रतिमा सौदागर पोल, लेखाङ्क ८२६ का लेख अहमदाबाद Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०. ११. १४७१ १३. १२. १४७५ तिथि १४७२ | ज्येष्ठ सुदि ११ १४७६ चैत्र वदि १ शनिवार आचार्य का नाम जयाणंदसूरि अमरसिंहसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख चौबीसी जिन प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख पद्मप्रभ की प्रतिमा का लेख महावीर स्वामी की चौबीसी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैन मन्दिर, थराद पार्श्वनाथ देरासर, अहमदाबाद अजितनाथ जिनालय, नदियाड चोसठिया जी का मन्दिर, नागौर संदर्भ ग्रन्थ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ७५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ९०१ वही, भाग २ लेखाङ्क ३९८ विनयसागर, संपा०-प्रतिष्ठा लेखसंग्रह, भाग १, लेखाङ्क २१५ ८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १४. १४७६ चैत्र १५. १४७८ १६. तिथि १७. १४८३ वदि ९ रविवार वैशाख सुदि ३ गुरुवार १४८२ फाल्गुन सुदि ३ रविवार माघ वदि ११ गुरुवार आचार्य का नाम जयाणंदसूरि अमरसिंहसूरि जयाणंदसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु प्रतिमा का लेख सुमितनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर जैन देरासर, पाटडी शांतिनाथ जिनालय, कडाकोटडी पार्श्वनाथ देरासर, पाटण संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ४७० विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १२० बुद्धिसासूरि, पूर्वोक्त भाग २, लेखाङ्क ६१३ वही, भाग १, लेखाङ्क २१७ आगमिक गच्छ ७ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १८. १९. २०. २१. तिथि १४८४ वैशाख सुदि ३ शुक्रवार १४८४ | मार्गशीर्ष सुदि ५ रविवार १४८५ | ज्येष्ठ वदि... १४८५ | ज्येष्ठ मास... १ आचार्य का नाम हेमराजसूरि अमरसिंहसूरि के पट्टघर श्री ...... रत्नसूरि अमरसिंहसूरि के पट्टधर हेमरत्नसूरि "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ स्वामी की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख सुविधिनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान सीमंधरस्वामी का जिनालय, अहमदाबाद पार्श्वनाथ देरासर, अहमदाबाद जैन मंदिर, वणा चिन्तामणि पार्श्वनाथ देरासर, बीजापुर संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग १, लखाङ्क १२३१ वही, भाग १, लेखाङ्क ९०० विजयधर्मसूरि पूर्वोक्त, लेखाङ्क १३५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्ग ४२३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २२. १४८७ | माघ अमरसिंहसूरि | पार्श्वनाथ की सीमंधर स्वामी का |वही, भाग १, सुदि ५ के पट्टधर चौबीसी प्रतिमा | मंदिर, अहमदाबाद | लेखाङ्क १२२६ गुरुवार हेमरत्नसूरि का लेख २३. | १४८८ | ज्येष्ठ । __हेमरत्नसूरि | शीतलनाथ की | चिन्तामणिजी का नाहटा, सुदि १० पंचतीर्थी प्रतिमा | मंदिर, बीकानेर पूर्वोक्त, लेखाङ्क ७ शुक्रवार का लेख २४. १४८८ जयानंदसूरि पार्श्वनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, पंचतीर्थी प्रतिमा बालकेश्वर, मुम्बई भाग २, का लेख लेखाङ्क १७९८ २५. १४८९ माघ अमरसिंहसूरि पार्श्वनाथ की कुंथुनाथ देरासर, । बुद्धिसागरसूरि, वदि २ ___ के पट्टधर चौबीसी प्रतिमा | बीजापुर पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार हेमरत्नसूरि | का लेख लेखाङ्क ४४० Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २६. १४८९ तिथि विहीन २७. २८. २९. तिथि १४९० फाल्गुन सोमवार १४९१ द्वितीय ज्येष्ठ वदि ७ शनिवार १४९२ ज्येष्ठ वदि... आचार्य का नाम अमरसिंहसूरि के पट्टधर हेमरत्नसूरि "" हेमरत्नसूरि "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, राधनपुर शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ वहीं, भाग १, लेखाङ्क १३४६ मुनि विशालविजय, संपा०- राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखाङ्क ११८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क १२६९ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ७६३ ८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३०. | १४९३ | चैत्र । जयाणंदसूरि | धर्मनाथ की वीर जिनालय, मुनि विशालविजय, वदि ८ पंचतीर्थी प्रतिमा | राधनपुर | पूर्वोक्त, गुरुवार का लेख लेखाङ्क १२२ ३१. | १४९४ | माघ | जयानन्दसूरि | संभवनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, सुदि ५ | के शिष्य श्रीसूरि | पंचतीर्थी राधनपुर पूर्वोक्त, गुरुवार प्रतिमा का लेख लेखाङ्क १६२ एवं मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १२३ ३२. | १३९६ | फाल्गुन विमलनाथ की | नवपल्लव पार्श्वनाथ | बुद्धिसागरसूरि, (१४९६)| वदि २ चौबीसी प्रतिमा | जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, शुक्रवार का लेख बोलपीपलो, खंभात | लेखाङ्क १०८६ - - Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ o क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३३. |१४९९ | कार्तिक | मुनिसिंहसूरि शांतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, वही, भाग १, सुदि ५ प्रतिमा का लेख खेरालु लेखाङ्क ७५५ सोमवार ३४. १५०० | चैत्र । सिंहदत्तसूरि पार्श्वनाथ की | चिन्तामणि पार्श्वनाथ | मुनि विशालविजय सुदि १३ प्रतिमा का | जिनालय, राधनपुर | पूर्वोक्त, रविवार लेख लेखाङ्क १३१ ३५. १५०३ माघ वदि शांतिनाथ की गोड़ी पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का पूर्वोक्त, भाग १ शुक्रवार बीजापुर लेखाङ्क ४४८ ३६. १५०३ | माघ | हेमरत्नसूरि सुविधिनाथ मुनिसुव्रत जिनालय, वही, वदि ८ की प्रतिमा | भरुच भाग २, बुधवार का लेख लेखाङ्क ३३८ देरासर, लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आगमिक गच्छ चिन्तामणिजी का | नाहटा, पूर्वोक्त मंदिर, बीकानेर । | लेखाङ्क ८७८ मडार क्रमाङ्क संवत् | तिथि आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ३७. | १५०३ | माघ कुंथुनाथ सुदि ४ की प्रतिमा गुरुवार का लेख ३८. | १५०३ | माघ । शीतलनाथ सुदि ५ की पंचतीर्थी गुरुवार प्रतिमा का लेख ३९. | १५०४ फाल्गुन | अमरसिंहसूरि विमलनाथ सुदि १२ के पट्टधर की प्रतिमा गुरुवार हेमरत्नसूरि | का लेख ४०. १५०४ | तिथि- जिनचन्द्रसूरि पार्श्वनाथ विहीन की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ जिनालय | मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ७८ शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, शांतिनाथ पोल पूर्वोक्त, भाग १, अहमदाबाद लेखाङ्क १३१२ शांतिनाथ जिनालय | वही, भाग १, शांतिनाथ पोल, लेखाङ्क १३०९ अहमदाबाद Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४१. १५०५ माघ हेमरत्नसूरि शांतिनाथ ओसवालों का विजयधर्मसूरि, सुदि ९ की धातु प्रतिमा | मंदिर, पूना पूर्वोक्त, शनिवार का लेख लेखाङ्क २०८ ४२. १५०५ | माघ सुमतिनाथ की महावीर स्वामी लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ९ प्रतिमा का लेख का मन्दिर, थराद लेखाङ्क १ शनिवार ४३ १५०६ | चैत्र शीलरत्नसूरि वासुपूज्य स्वामी | देहरी नं० ९७, मुनि कंचनसागर, वदि ४ की पंचतीर्थी शत्रुञ्जय पूर्वोक्त, बुधवार प्रतिमा का लेख लेखाङ्क १७९ ४४. १५०६ | चैत्र हर्षतिलकसूरि संभवनाथ की मनमोहन पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ सिंहदत्तसूरि प्रतिमा का लेख | जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार लेखाङ्क २८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मीयागाम Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४५. | १५०६ / पौष हेमरत्नसूरि | शांतिनाथ की | वासुपूज्यस्वामी नाहटा, वदि २ पंचतीर्थी प्रतिमा | का जिनालय, पूर्वोक्त, लेखाङ्क बुधवार का लेख बीकानेर १३२६ ४६. | १५०६ / तिथि- अमररत्नसूरि | सुविधिनाथ हीरालाल नाहर, विहीन के पट्टधर | की धातु की गुलाबसिंह का पूर्वोक्त, भाग २, हेमरत्नसूरि | चौबीसी प्रतिमा | घरदेरासर, लेखाङ्क १००४ का लेख चितपुर रोड, कलकत्ता ४७. | १५०६ / तिथि यति पन्नालाल वही, भाग १, विहीन का घर देरासर, लेखाङ्क ३९१ कलकत्ता नोट : क्रमांक ४६ और ४७ पर दिये गये दोनों प्रतिमा लेखों की वाचना एक ही है और ये दो अलग-अलग प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४८. १५०७ | वैशाख शीलरत्नसूरि मुनि सुव्रतस्वामी | नवघरे का मन्दिर, | वही, भाग १, ४९. ५०. वदि ६ गुरुवार १५०७ | वैशाख वदि ६ गुरुवार १५०७ माघ सुदि ५ शुक्रवार १५०७ | माघ सुदि १३ शुक्रवार सिंहदत्तसूरि | की प्रतिमा चेलपुरी, दिल्ली लेखाङ्क ४७६ का लेख शांतिनाथ की जैन मन्दिर, बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख वडावली पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ९७ । | आदिनाथ की पद्मप्रभ जिनालय, विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा घाट, जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखाङ्क ४२० | अभिनन्दन स्वामी शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, की प्रतिमा दंतालवाडो, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, का लेख लेखाङ्क ६८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ५१. हेमरत्नसूरि Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ सुदि ६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५२. | १५०७ | वैशाख शीलरत्नसूरि | शांतिनाथ की जैन मन्दिर वही, भाग १, प्रतिमा का लेख | वडावली लेखाङ्क ९७ गुरुवार ५३. | १५०८ / चैत्र सिंहदत्तसूरि चन्द्रप्रभ की पार्श्वनाथ जिनालय, | वही, भाग २, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | भरुच लेखाङ्क ३१५ रविवार ५४. | १५०८ / चैत्र विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | चौकसी पोल, लेखाङ्क ८४२ रविवार खंभात ५५. | १५०८ | चैत्र शांतिनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ वही, भाग २, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | जिनालय, शकोपुर, लेखाङ्क ९०९ रविवार खंभात Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५६. | १५०८ | वैशाख । हर्षतिलकसूरि श्रेयांसनाथ की वीर जिनालय, वही, भाग २, वदि ११ प्रतिमा का लेख | भरुच लेखाङ्क ३४२ रविवार ५७. १५०८ | वैशाख जिनरत्नसूरि शांतिनाथ की शांतिनाथ देरासर, वही, भाग १, वदि १२ प्रतिमा का लेख शांतिनाथ पोल, । लेखाङ्क १३४९ रविवार अहमदाबाद ५८. १५०८ | आषाढ देवरत्नसूरि शांतिनाथ की घर देरासर, वही, भाग २, सुदि २ चौबीसी प्रतिमा |बड़ोदरा लेखाङ्क २२० रविवार का लेख ५९. |१५०९ | वैशाख कुंथुनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, वही, भाग २, वदि ५ चौबीसी का लेख | भरुच लेखाङ्क ३३१ शनिवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५९ (अ)| १५(०?)९ वैशाख दे...भिः । आदिनाथ की | संग्रामसोनी के एम० ए० ढाकी, वदि ११ चौबीसी का लेख | मन्दिर की पं० बेचरदासशुक्रवार देवकुलिका, दोशी स्मृतिग्रन्थ, गिरनार पृ० १८८ ६०. | १५१० | फाल्गुन । हर्षतिलकसूरि | अजितनाथ की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ३ प्रतिमा का लेख | माणेक चौक, पूर्वोक्त, भाग २, शुक्रवार खंभात लेखाङ्क ९८८ ६१. | १५१० जिनरत्नसूरि आदिनाथ की धर्मनाथ जिनालय, नाहर, प्रतिमा का लेख | बड़ा बाजार, पूर्वोक्त, भाग १, कलकत्ता लेखाङ्क १०० ६२. | १५१० सिंहदत्तसूरि सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख | मांडवी पोल, पूर्वोक्त, भाग २, | खंभात लेखाङ्क ६१९ जाणार, Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख ६३. १५१० विमलनाथ की | गौड़ीजी भंडार, धातु प्रतिमा उदयपुर का लेख ६४. १५११ आषाढ़ देवरत्नसूरि वासुपूज्य की जैन मन्दिर, सुदि६ प्रतिमा का लेख | कालोल शुक्रवार ६५. |१५११ सुमतिनाथ की शांतिनाथ देरासर, पंचतीर्थी प्रतिमा अहमदाबाद का लेख ६६. १५११ | आषाढ़ देवगुप्तसूरि | शांतिनाथ की सीमंधर स्वामी सुदि ६ प्रतिमा का लेख का जिनालय, अहमदाबाद विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखाङ्क २६० बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ७१८ वही, भाग १, लेखाङ्क १२५० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही, भाग १, लेखाङ्क ११६० Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ माघ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान - संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६७. | १५११ । सिंहदत्तसूरि शांतिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय सुदि १ पंचतीर्थी प्रतिमा | राधनपुर पूर्वोक्त, शुक्रवार का लेख लेखाङ्क १७० ६८. |१५१२ | माघ शांतिनाथ की संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० चौबीसी प्रतिमा कड़ी पूर्वोक्त, भाग १, बुधवार का लेख लेखाङ्क ७२३ ६९. | १५१२ | ज्येष्ठ हेमरत्नसूरि नमिनाथ की शत्रुञ्जय | मुनि कंचनसागर, वदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा पूर्वोक्त, सोमवार का लेख लेखाङ्क ४३९ ७०. | १५१२ | ज्येष्ठ सुमतिनाथ की जैन मन्दिर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० प्रतिमा का लेख | बडावली पूर्वोक्त, भाग १, Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ७१. ७२. ७३. ७४. तिथि रविवार १५१२ वैशाख वदि १० गुरुवार १५१२ "" १५१२ वैशाख सुदि ५ १५१२ वैशाख सुदि ५ शुक्रवार आचार्य का नाम " "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख कुथुनाथ की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की धातु प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की चौबीसी का लेख प्रतिष्ठा स्थान वीर जिनालय, अहमदाबाद जैन मन्दिर, बडावली | गोपों का उपाश्रय, बाड़मेर चन्द्रप्रभ स्वामी का जिनालय, जैसलमेर संदर्भ ग्रन्थ लेखाङ्क ९५ वही, भाग १, लेखाङ्क ९५९ वही, भाग १, लेखाङ्क ९४ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, वही, भाग ३, लेखाङ्क २१६५ एवं १०० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ७५. १५१२ ७६. ७७. १५१२ १५१२ तिथि ज्येष्ठ सुदि १० रविवार आचार्य का नाम हेमरत्नसूरि शीलरत्नसूरि आदिरत्नसूरि हेमरत्नसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नमिनाथ की चौबीसी का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद जैनमंदिर, वादनवाड़ा सुमतिनाथ की जैनमंदिर, प्रतिमा का लेख बडावली संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क २७७५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क १३२१ जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ६, अंक १०, पृष्ठ ३७२-३७४, लेखाङ्क ८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ९५ आगमिक गच्छ १०१ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | क्रमाङ्क संवत् तिथि ७८. १५१२ | फाल्गुन वदि ३ ७९. ८०. ८१. शुक्रवार १५१३ चैत्र सुदि ५ बुधवार १५१३ | ज्येष्ठ सुदि ३ १५१३ | आषाढ़ सुदि १० गुरुवार आचार्य का नाम हेमरत्नसूरि आणंदप्रभसूरि देवरत्नसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की धातु प्रतिमा का लेख "" प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ सुमतिनाथ जिनालय, वही, भाग-२, चोलापोल, खंभात लेखाङ्क ६१५ जीरावलापार्श्वनाथ देरासर, घोघा शांतिनाथ जिनालय, वीरमगाम विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखाङ्क २८७ वहीं, लेखाङ्क २९२ बुद्धिसागरसूरि, नवपल्लव पार्श्वनाथ जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, बोलपीपलो, खंभात लेखाङ्क १०९८ १०२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८२. १५१३ | माघ साधुरत्नसूरि अजितनाथ की | चिन्तामणि पार्श्वनाथ वही, भाग-२, वदि २ प्रतिमा का लेख | जिनालय, चौकसी- | लेखाङ्क ८०० शुक्रवार पोल, खंभात ८३. | १५१५ / वैशाख हेमरत्नसूरि संभवनाथ की सीमंधरस्वामी का वही, भाग १, | सुदि १ प्रतिमा का लेख | देरासर, अहमदाबाद लेखाङ्क ११६३ गुरुवार ८४. | १५१५ / वैशाख संभवनाथ की आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि १० पंचतीर्थी प्रतिमा | करमदी पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखाङ्क ५३१ ८५. | १५१५ / कार्तिक देवरत्नसूरि । | वासुपूज्य की पद्मप्रभजिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि १ प्रतिमा का लेख | कडाकोटडी, खंभात पूर्वोक्त, भाग-२, रविवार लेखाङ्क ५९३ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८६. |१५१५ सुविधिनाथ की | सीमंधरस्वामी का वही, भाग १, प्रतिमा का लेख | जिनालय, लेखाङ्क १२१२ अहमदाबाद ८७. १५१५ | माघ सिहदत्तसूरि | शांतिनाथ की | धनवसही तलहटी शत्रुजय वैभव, सुदि १ प्रतिमा का लेख | पालिताना लेखाङ्क १४६ शुक्रवार ८८. १५१५ | फाल्गुन | हेमरत्नसूरि पार्श्वनाथ की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ८ पंचतीर्थी प्रतिमा खाडीवाडो, खेड़ा, पूर्वोक्त, भाग-२, शनिवार का लेख गुजरात लेखाङ्क ४०७ ८९. १५१६ | चैत्र आणंदप्रभसूरि चन्द्रप्रभस्वामी की नेमिनाथ जिनालय, वही, भाग-२, वदि ४ प्रतिमा के लेख भोयरापाडो, खंभात लेखाङ्क ८८९ गुरुवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९०. | १५१६ | वैशाख हेमरत्नसूरि विमलनाथ की आदिनाथ जिनालय, वही, भाग-२, सुदि ३ पंचतीर्थी प्रतिमा | बड़ोदरा लेखाङ्क १२५ का लेख ९१. |१५१६ | ज्येष्ठ देवरत्नसूरि | वासुपूज्यस्वामी सुमतिनाथमुख्य वही, भाग-२, सुदि ३ की प्रतिमा बावन जिनालय, लेखाङ्क ४९९ गुरुवार का लेख मातर ९२. | १५१६ | आषाढ श्रेयांसनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा के लेख नाहटों की गवाड़, लेखाङ्क १५१३ रविवार बीकानेर ९३. | १५१६ | आषाढ़ नमिनाथ की चांदी सुपार्श्वनाथ वही, सुदि ९ की सपरिकर | जिनालय, नाहटों लेखाङ्क १७६१ प्रतिमा का लेख की गवाड़, बीकानेर Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि १५१६ कार्तिक सुदि १५ शनिवार ९४. ९५. ९६. ९७. १५१७ वैशाख सुदि ३ सोमवार १५१७ वैशाख १५१७ सुदि १२ सोमवार माघ सुदि ५ शुक्रवार आचार्य का नाम सिंहदत्तसूरि हेमरत्नसूरि आणंदप्रभसूर "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान सुव्रतनाथ जिनालय, खारवाडो, खंभात बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखाङ्क -१०३२ शांतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, लखनऊ पार्श्वनाथ देरासर, अहमदाबाद संदर्भ ग्रन्थ सुविधिनाथ जिनालय, घोघा, काठियावाड़ भाग- २, लेखाङ्क १५०५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क १०८९ नाहर, पूर्वोक्त, भाग- २, लेखाङ्क १७६९ १०६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९८. | १५१७ | माघ देवरत्नसूरि धर्मनाथ की संभवनाथ जिनालय, वही, भाग १, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | अजमेर लेखाङ्क५५७ एवं शुक्रवार विनयसागर, पूर्वोक्त भाग १, लेखाङ्क ५७२ ९९. १५१७ | " विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | चुरु, राजस्थान लेखाङ्क २४०८ १००. | १५१७ महेन्द्रसूरि आदिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख शांतिनाथ पोल, पूर्वोक्त, अहमदाबाद भाग १, लेखाङ्क १२८४ ola Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख १०१. |१५१७ पूर्णदेवसूरि मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ देरासर, अहमदाबाद वही, भाग १, लेखाङ्क ११३१ देवरत्नसूरि हेमरत्नसूरि १०२ | १५१८ | ज्येष्ठ । सुदि २ शनिवार १०३. | १५१८ | माघ सुदि ५ गुरुवार १०४. | १५१९ | ज्येष्ठ वदि १ गुरुवार संभवनाथ की महावीर जिनालय, वही, भाग-२ चौबीसी प्रतिमा चौकसीपोल, खंभात लेखाङ्क ८२७ का लेख | पद्मप्रभ स्वामी की पार्श्वनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, पंचतीर्थी प्रतिमा | राधनपुर पूर्वोक्त, का लेख लेखाङ्क २१६ धर्मनाथ की मोतीसा की टूक, मुनि कंचनसागर पंचतीर्थी प्रतिमा शत्रुञ्जय पूर्वोक्त, का लेख लेखाङ्क ४६२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देवरत्नसूरि Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ | भाग-२, क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १०५. | १५१९ / वैशाख __ हेमरत्नसूरि | धर्मनाथ की | नवपल्लवपार्श्वनाथ |बुद्धिसागरसूरि, वदि ११ पंचतीर्थी प्रतिमा | देरासर, खंभात शुक्रवार के लेख लेखाङ्क १०८९ १०६. | १५१९ | वैशाख पद्मप्रभस्वामी की | पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ पंचतीर्थी का लेख| अञ्जार भाग-२, गुरुवार लेखाङ्क १७२१ १०७. | १५१९ कुन्थुनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, वही, भाग-३, पंचतीर्थी प्रतिमा | जैसलमेर लेखाङ्क २३४४ का लेख १०८. | १५१९ । माघ अजितनाथ की | कुंथुनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ९ चौबीसी का लेख | घड़ियाली पोल, पूर्वोक्त, भाग – २, शनिवार बड़ोदरा लेखाङ्क १६० Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जामनगर वदि ८ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १०९. |१५१९ । माघ वासुपूज्य की | शान्तिनाथ देरासर, विजयधर्मसूरि सुदि ३ धातु प्रतिमा पूर्वोक्त, सोमवार का लेख लेखाङ्क ३३० ११०. |१५२० | चैत्र शीतनलाथ की शान्तिनाथ जिनालय, वही धातु प्रतिमा | वीरमगाम लेखाङ्क ३४५ शुक्रवार का लेख १११. १५२० वैशाख आणंदप्रभसूरि मुनिसुव्रतस्वामी गौड़ीपार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, वदि ७ की पंचतीर्थी देरासर, राधनपुर पूर्वोक्त, शनिवार का लेख लेखाङ्क २३१ ११२. |१५२० आणंदप्रभसूरि संभवनाथ की मनमोहनपार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, के शिष्य । प्रतिमा का लेख | जिनालय, पूर्वोक्त, भाग-२ गुणप्रभसूरि चौक्सीपोल, लेखाङ्क ८२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ११३. ११४. ११५. ११६. तिथि १५२० आषाढ़ सुदि ९ गुरुवार आषाढ़ सुदि १ १५२१ गुरुवार १५२३ कार्तिक वदि ५ सोमवार १५२३ | वैशाख सुदि १३ गुरुवार आचार्य का नाम हेमरत्नसूरि "" मुनिरत्नसूरि सिंहदत्तसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख मुनिसुव्रत की चौबीसी का लेख शीतलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान कुन्थुनाथ जिनालय, खंभात चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर आदिनाथ जिनालय, माणेकचौक, खंभात बावन जिनालय, पेथापुर संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग- २ लेखाङ्क ६६६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १०२२ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखाङ्क १००५ वही, भाग-१, लेखाङ्क ७१३ आगमिक गच्छ १११ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ११७. १५२३ | फाल्गुन देवरत्नसूरि कुन्थुनाथ की धातु जील्लावाला देरासर, विजयधर्मसूरि, वदि ४ प्रतिमा का लेख | घोघा पूर्वोक्त, सोमवार लेखाङ्क ३७० ११८. १५२४ | वैशाख चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुनि जयन्तविजय, सुदि ३ देरासर, लाजग्राम पूर्वोक्त, भाग-५, सोमवार लेखाङ्क ४७७ ११९. |१५२४ कार्तिक अमररत्नसूरि सुमतिनाथ की जैन मंदिर, बुद्धिसागरसूरि, वदि १३ पंचतीर्थी प्रतिमा गांभू पूर्वोक्त, भाग-१, शनिवार का लेख लेखाङ्क७४ १२०. | १५२४ | वैशाख संभवनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ | विनयसागर, सुदि २ चौबीसी प्रतिमा जिनालय, किशनगढ़ पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखाङ्क ६३९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२१. | १५२५ | पौष देवरत्नसूरि पार्श्वनाथ की धातु | जैन देरासर, लींबडी विजयधर्मसूरि, वदि ५ प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, सोमवार लेखाङ्क ३८८ १२२. | १५२५ माघ सुविधिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, | बुद्धिसागरसूरि, वदि १३ प्रतिमा का लेख | माणेकचौक, खंभात | पूर्वोक्त, भाग-२, बुधवार लेखाङ्क ९३७ १२३. | १५२५ जयचन्द्रसूरि अभिनन्दनस्वामी | घर देरासर, नाहर, पूर्वोक्त, के पट्टधर की चौबीसी का | गामदेवी, |भाग-२, देवरत्नसूरि लेख वाचागांधी रोड, लेखाङ्क १८०० मुम्बई १२४. | १५२५ | - अमररत्नसूरि कुन्थुनाथ की आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, पंतचीर्थी प्रतिमा । जामनगर पूर्वोक्त, का लेख लेखाङ्क ४०३ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२५. १५२७ / वैशाख आनन्दप्रभसूरि धर्मनाथ की धातु | नवखंडा पार्श्वनाथ वही, वदि६ प्रतिमा का लेख | देरासर, घोघा लेखाङ्क ४०९ शुक्रवार १२६. १५२७ | वैशाख देवरत्नसूरि | पद्मप्रभ की प्रतिमा सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागरसूरि, वदि १० का लेख बावन जिनालय, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखाङ्क ४६८ १२७. १५२७ १५२७ - अमररत्नसूरि पार्श्वनाथ की धातु सुविधिनाथ देरासर, विजयधर्मसूरि, की प्रतिमा का घोघा पूर्वोक्त, लेख लेखाङ्क ४०५ १२८. १५२८ | आषाढ सिंहदत्तसूरि सुमतिनाथ की राधनपुर मुनि विशालविजय, सुदि ५ के पट्टधर | धातु की पंचतीर्थी पूर्वोक्त, रविवार सोमदेवसूरि प्रतिमा का लेख लेखाङ्क २६२ एवं मातर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग ५, लेखाङ्क ५१० १२९. | १५२८ | पौष । अमररत्नसूरि | धर्मनाथ की आदिनाथ जिनालय | विजयधर्मसूरि, सुदि ३ धातु की पंचतीर्थी | जामनगर पूर्वोक्त, सोमवार प्रतिमा का लेख लेखाङ्क ४१३ १३०. | १५२९ वैशाख देवरत्नसूरि अभिनन्दनस्वामी | पार्श्वनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ की प्रतिमा माणेक चौक, खंभात भाग-२, पूर्वोक्त, शुक्रवार का लेख लेखाङ्क ९४७ १३१. | १५२९ पार्श्वनाथ की कुन्थुनाथ जिनालय, | वही, भाग-२, रत्नमय प्रतिमा के मांडवी पोल, लेखाङ्क ६४३ परिकर का लेख | खंभात Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् १३२. १३३. १३४. १३५. तिथि १५२९ ज्येष्ठ वदि १ शुक्रवार १५२९ ज्येष्ठ वदि १ शुक्रवार माघ वदि २ १५३० शुक्रवार १५३० माघ सुदि १० गुरुवार आचार्य का नाम अमररत्नसूरि "" देवरत्नसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख संभवनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख पद्मप्रभ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संभवनाथ जिनालय, वही, भाग-२, मांडवीपोल, खंभात लेखाङ्क ११४२ जैनमंदिर, थराद संदर्भ ग्रन्थ विमलनाथ जिनालय, (कोचरों में) बीकानेर लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ८२ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १५८२ आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, माणेक चौक, खंभात पूर्वोक्त, भाग-२ लेखाङ्क १०१० ११६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३६. | १५३१ / माघ अमररत्नसूरि चन्द्रप्रभस्वामी की मुनिसुव्रतदेरासर, वही, भाग १, सुदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा | डभोई लेखाङ्क ६५ का लेख १३७. | १५३१ / माघ देवरत्नसूरि आदिनाथ की जैन मंदिर, ऊंझा वही, भाग-१, वदि ८ प्रतिमा का लेख लेखाङ्क १८२ सोमवार १३८. १५३१ संभवनाथ की चिन्तामणिपार्श्वनाथ वही, भाग-२ चौबीसी प्रतिमा जिनालय, खंभात का लेख १३९. १५३१ सुविधिनाथ की सुमतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | पालिताना भाग २, लेखाङ्क १७५९ एवं + ११० Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १४०. १५३१ १४२. तिथि " १४१. १५३२ वैशाख...। अमररत्नसूरि आचार्य का नाम १५३२ | वैशाख...। "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्यस्वामी की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणि पार्श्वनाथ देरासर, कड़ी संदर्भ ग्रन्थ बावन जिनालय, पेथापुर विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ४३५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ७२२ अभिनन्दनस्वामी आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, जामनगर की धातुप्रतिमा का लेख शान्तिनाथ की प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, लेखाङ्क ४४६ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखाङ्क ७१२ ११८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १४३. | १५३२ | ज्येष्ठ महावीर स्वामी आदिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, वदि १३ की पंचतीर्थी राधनपुर पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख लेखाङ्क २८१ १४४. | १५३२ | वैशाख पार्श्वनाथ की सुमतिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | नागौर पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ७४५ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग-२ लेखाङ्क १३२३ १४५. | १५३२ | वैशाख श्रेयांसनाथ की धर्मनाथदेरासर, बुद्धिसागरसूरि, पंचतीर्थी प्रतिमा | डभोई | पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखाङ्क ५७ - Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १४६. १५३३ १४७. १५३४ १४८. १४९. तिथि माघ सुदि ५ रविवार माघ सुदि ५ शुक्रवार १५३५ वैशाख सुदि ६ १५३५ आषाढ़ सुदि २ मंगलवार आचार्य का नाम देवरत्नसूरि आनन्दप्रभसूरि अमररत्नसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्यस्वामी की प्रतिमा का लेख वही कुथुनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात जैनदेरासर, गेरीता जैन मंदिर, चाणस्मा जैनमंदिर गेरीता संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग-२, लेखाङ्क ३०८ वही, भाग १, लेखाङ्क ६७१ वही, भाग-१, लेखाङ्क ११४ वही, भाग-१, लेखाङ्क ६६६ १२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १५०. | १५३६ / वैशाख विमलनाथ की | जैन मंदिर, पाडीव नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | सिरोही-राजस्थान भाग-२ गुरुवार लेखाङ्क २०९१ १५१. | १५३६ | पौष सिंहदत्तसूरि नमिनाथ की धातु | बड़ा मंदिर, सीहोर | नाहर, पूर्वोक्त, वदि... की प्रतिमा का भाग २, गुरुवार लेख लेखाङ्क १७३७, एवं विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ४६७ १५२. | १५३६ / माघ पं० उदयरत्न पंचतीर्थी प्रतिमा | जैन मंदिर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ का लेख बडावली पूर्वोक्त भाग-१, शुक्रवार लेखाङ्क ९८ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम / प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १५३. १५३७ | पौष सिंहदत्तसूरि | शांतिनाथ की | कोठार पंचतीर्थी-२ | मुनि कंचनसागर, सुदि ९ के पट्टधर प्रतिमा का लेख शत्रुञ्जय पूर्वोक्त, रविवार सोमदेवसूरि लेखाङ्क २३५ १५४. | १५३७ | माघ सिंहदत्तसूरि सुमतिनाथ की चन्द्रप्रभजिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ प्रतिमा का लेख जानीशेरी, बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग-२, शुक्रवार लेखाङ्क १५६ १५५. १५४२ | चैत्र । आनन्दप्रभसूरि विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि ८ । के पट्टधर | धातु प्रतिमा घोघा पूर्वोक्त, मंगलवार| मुनिररत्नसूरि का लेख लेखाङ्क ४८२ १५६. |१५४२ | वैशाख जिनचन्द्रसूरि अजितनाथ की आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १ प्रतिमा का लेख बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग-२, गुरुवार लेखाङ्क ९५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १५७. | १५४२ / वैशाख श्रीसूरि विमलनाथ की | दादापार्श्वनाथ वही, भाग-२ सुदि २ प्रतिमा का लेख | जिनालय, लेखाङ्क १३६ गुरुवार नरसिंहजी की पोल, बड़ोदरा १५८. | १५४२ | वैशाख जिनचन्द्रसूरि | आदिनाथ की विमलनाथ | वही, भाग २, सुदि १० प्रतिमा का लेख | जिनालय, लेखाङ्क ८०६ गुरुवार चौकसीपोल, खंभात १५९. | १५४३ | वैशाख सुविधिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग-२, वदि १० प्रतिमा का लेख | सेठ वाडो, खेड़ा लेखाङ्क ४३२ शुक्रवार १६०. | १५४३ / वैशाख शीतलनाथ की सुमतिनाथमुख्य वही, भाग-२, वदि १० प्रतिमा का लेख | बावन जिनालय, लेखाङ्क ५१६ शुक्रवार मातर Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 828 क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १६१.१५४४ फाल्गुन विवेकरत्नसूरि विमलनाथ की जैनदेरासर, सौदागर वही, भाग-१, सुदि २ प्रतिमा का लेख पोल, अहमदाबाद लेखाङ्क ८२४ शुक्रवार १६२. |१५४४ जिनचन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की घर देरासर, बड़ोदरा वही, भाग १, प्रतिमा का लेख लेखाङ्क २४९ १६३. १५४६ / माघ । विवेकरत्नसूरि स्तम्भलेख मुनिसुव्रत जिनालय, वही, भाग-२ वदि १३ लेखाङ्क ३२१ १६४. |१५४६ | माघ चन्द्रप्रभस्वामी की वीर जिनालय, वही, भाग-२ सुदि १३ प्रतिमा का लेख गीपटी, खंभात लेखाङ्क ७०६ १६५. १५४७ वैशाख अमररत्नसूरि वासुपूज्यस्वामी महावीर जिनालय, नाहर, सुदि ५ की प्रतिमा डीसा पूर्वोक्त, भाग-२ गुरुवार का लेख (लेखाङ्क २७०६) भरुच जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ " क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १६६. | १५४७ | वैशाख | अमररत्नसूरि | सुविधिनाथ की | मनमोहन पार्श्वनाथ | बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | जिनालय, बड़ोदरा | पूर्वोक्त, भाग-२, शुक्रवार लेखाङ्क ८५ १६७. | १५४७ | पौष वदि वीर जिनालय, मुनि विशालविजय, राधनपुर पूर्वोक्त, रविवार लेखाङ्क - ३०६ १६८. | १५४७ | पौष पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि १० पूर्वोक्त, भाग १, बुधवार लेखाङ्क २२८ १६९. | १५४७ माघ | अमररत्नसूरि | शीतलनाथ की बड़ा मंदिर, विजयधर्मसूरि, सुदि १३ | के पट्टधर श्रीसूरि | धातु की प्रतिमा कातर ग्राम पूर्वोक्त, रविवार का लेख लेखाङ्क ४९६ पाटन Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १७०. |१५४८ | वैशाख | जिनचन्द्रसूरि शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ चौकसीपोल खंभात पूर्वोक्त, भाग २, शनिवार लेखाङ्क ८३४ १७१. १५४८ | वैशाख | सोमरत्नसूरि श्रेयांसनाथ की प्रतापसिंह जी का नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख मंदिर, रामघाट भाग १, वाराणसी लेखाङ्क ४२३ १७२. | १५४९ | आषाढ़ विवेकरत्नसूरि | अजितनाथ की संभवनाथ जिनालय बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ प्रतिमा का लेख / बोलपीपलो, खंभात पूर्वोक्त, भाग-२, सोमवार लेखाङ्क ११३९ १७३. १५५२ माघ | सोमरत्नसूरि सुमतिनाथ की मनमोहनपार्श्वनाथ वही, भाग-२ पंचतीर्थी प्रतिमा | जिनालय, मीयागाम लेखाङ्क २७६ शनिवार का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वदि ८ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख सुमतिनाथ की चन्द्रप्रभजिनालय, वही, भाग-२ प्रतिमा का लेख | भोंपरापाडो, खंभात | लेखाङ्क-८९४ विमलनाथ की सुमतिनाथ मुख्य वही, भाग-२ प्रतिमा का लेख | बावन जिनालय, लेखाङ्क ४६६ आगमिक गच्छ १७४. | १५५२ | वैशाख सुदि ३ १७५. | १५५४ | फाल्गुन । सुदि... । विवेकरत्नसूरि मातर १७६. | १५५५ | ज्येष्ठ । सुदि ९ अमररत्नसूरि के पट्टधर सोमरत्नसूरि सोमरत्नसूरि रविवार १७७. | १५५६ / वैशाख सुदि १३ रविवार मुनिसुव्रत की बृहद्खरतरगच्छ नाहर, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा । | का उपाश्रय, लेखाङ्क २४८५ का लेख जैसलमेर | पार्श्वनाथ जिनालय, विनयसागर, दाहोद पूर्वोक्त, भाग-१, लेखाङ्क ८८७ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १७८. १५५९ । वैशाख | विवेकरत्नसूरि अभिनन्दनस्वामी | शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ की चौबीसी पादरा पूर्वोक्त, लेखाङ्क ८ प्रतिमा का लेख १७९. | १५६० वैशाख श्रेयांसनाथ की जैनमंदिर, राधनपुर मुनि विशालविजय, सुदि ३ धातु की चौबीसी पूर्वोक्त, शुक्रवार प्रतिमा का लेख लेखाङ्क ३२१ १८०. | १५६० | वैशाख भावसागरसूरि शीतलनाथ की सीमंधरस्वामी का बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | देरासर, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, बुधवार लेखाङ्क १२३६ १८१. १५६४ | फाल्गुन आणंदसूरि शांतिनाथ की शांतिनाथ जिनलय, वही, भाग-१ वदि ५ प्रतिमा का लेख बीजापुर लेखाङ्क ४३९ रविवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् १८२. १८३. १८४. १८५. १५६६ तिथि माघ सुदि ५ सोमवार १५६७ | वैशाख सुदि ३ १५७० बुधवार १५६९ वैशाख सुदि ९ शुक्रवार पौष वदि ५ रविवार आचार्य का नाम शिवकुमारसूरि सोमरत्नसूरि 19 शिवकुमारसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वीर जिनालय, गीपटी, खंभात संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग-२, लेखाङ्क ७१० पद्मप्रभ जिनालय, वही, भाग-१, लेखाङ्क ६२४ आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, जयपुर भाग- २, लेखाङ्क १२१६ आजिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, बडोदरा पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १०० आगमिक गच्छ १२९ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान - संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १८६. १५७१ चैत्र । आनन्दरत्नसूरि वासुपूज्य स्वामी आदिनाथ जिनालय, वही, भाग-१, वदि २ | की प्रतिमा वडनगर लेखाङ्क५५२ गुरुवार का लेख १८७. १५७१ सोमरत्नसूरि अभिनन्दन स्वामी महावीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, की चौबीसी लखनऊ भाग-२ प्रतिमा का लेख लेखाङ्क १५७७ १८८. १५७१ | चैत्र वासुपूज्य स्वामी जैनदेरासर, गेरीता बुद्धिसागरसूरि, वदि ७ की प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखाङ्क ६७० १८९. १५७३ । वैशाख आदिनाथ जिनालय, वही, भाग २, सुदि६ लेखांक ४१४ गुरुवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास खेड़ा Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १९०. | १५७३ | फाल्गुन अमररत्नसूरि | श्रेयांसनाथ की | वीर जिनालय, वही, भाग-१, सुदि २ __ के पट्टधर | चौबीसी प्रतिमा | बीजापुर लेखाङ्क ४३३ रविवार सोमरत्नसूरि का लेख १९१. | १५७५ | माघ । आनन्दरत्नसूरि | धर्मनाथ की धर्मनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ६ प्रतिमा का लेख | बड़ा बाजार, | भाग १, गुरुवार कलकत्ता लेखाङ्क १११ १९२. | १५७५ | माघ मुनिरत्नसूरि पद्मप्रभ की पद्मावती देरासर, | बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ | के पट्टधर | चौबीसी प्रतिमा | बीजापुर पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार आनन्दरत्नसूरि | का लेख लेखाङ्क ४२१ १९३. | १५७६ | माघ चन्द्रप्रभस्वामी की चन्द्रप्रभ जिनालय, | वही, भाग २, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | सुल्तानपुरा, लेखाङ्क १९५ शनिवार बड़ोदरा Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १९४. | १५७७ | माघ । हेमरत्नसूरि | शांतिनाथ की कोठार पंचतीर्थी-४ मुनि कंचनसागर, सुदि १३ प्रतिमा का लेख |शत्रुञ्जय पूर्वोक्त, गुरुवार लेखाङ्क २३७ १९५. |१५७८ | माघ । विवेकरत्नसूरि धर्मनाथ की आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ चतुर्मुख प्रतिमा | भरुच पूर्वोक्त, भाग-२, का लेख लेखाङ्क २९४ १९६. |१५७८ | माघ संभवनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, वही, भाग-२, प्रतिमा का लेख भरुच लेखाङ्क ३३७ गुरुवार १९७. |१५७८ | माघ । सुमतिनाथ की नेमिनाथ जिनालय, वही, भाग २, सुदि ८ प्रतिमा का लेख | मेहतापोल, बड़ोदरा | लेखाङ्क १७१ गुरुवार वदि ५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १९८. | १५७९ / वैशाख शीतलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, सुदि ५ धातु की चौबीसी | राधनपुर पूर्वोक्त, सोमवार प्रतिमा का लेख लेखाङ्क ३३६ १९९. | १५७९ | फाल्गुन शिवकुमारसूरि जैन मंदिर, | मुनि जयन्तविजय, सुदि ५ भ्रामरा ग्राम आबू-भाग ५, सोमवार लेखाङ्क १८२ २००. | १५७९ | फाल्गुन शांतिनाथ जिनालय | बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ कडाकोटडी, खंभात पूर्वोक्त, भाग-२, लेखाङ्क ६१५ २०१. | १५८१ | माघ । सोमरत्नसूरि | मुनिसुव्रत की वीर जिनालय, लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा | थराद लेखाङ्क २४७ का लेख Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २०२ १५८३ ज्येष्ठ मुनिरत्नसूरि के श्रेयांसनाथ की शांतिनाथ देरासर, मुनि विशालविजय, सुदि ९ । पट्टधर धातु की चौबीसी | राधनपुर पूर्वोक्त, शुक्रवार | आनन्दरत्नसूरि प्रतिमा का लेख लेखाङ्क ३४२ २०३१५८४ वैशाख | शिवकुमारसूरि आदिनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ४ प्रतिमा का लेख । भरुच पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ३४८ २०४. १५८४ | वैशाख श्रेयांसनाथ की जैन मंदिर, वही, भाग १, सुदी -४ प्रतिमा का लेख झुंडाल लेखाङ्क ७७५ २०५. १५८६ । माघ उदयरत्नसूरि शीतलनाथ की देरी नं० ७१।२ मुनि कंचनसागर, वदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा पंचतीर्थी, शत्रुञ्जय पूर्वोक्त, का लेख लेखाङ्क ४५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः | संवत् २०६. २०७. २०८. २०९. १५८७ पौष १५८७ तिथि १५८७ वदि ६ रविवार माघ वदि ८ गुरुवार १५८७ | माघ वदि ... गुरुवार माघ वदि ८ गुरुवार आचार्य का नाम सिंहदत्तसूरि के पट्टधर शिवकुमारसूरि उदयरत्नसूरि "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्यस्वामी की प्रतिमा का लेख विमलनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभजिनालय, सुल्तानपुरा, बड़ोदरा बुद्धिसागरसूरि पूर्वोक्त, भाग-२, लेखाङ्क १९३ सीमन्धरस्वामी का वही, भाग १, जिनालय, लेखाङ्क १२१६ अहमदाबाद जैन मंदिर, ईडर संदर्भ ग्रन्थ पार्श्वनाथ देरासर, लाडोल वही, भाग १, लेखाङ्क १४७७ वही, भाग १, लेखाङ्क ४६८ आगमिक गच्छ 2 w Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २१०. २११. २१२. २१३. तिथि १५९१ वैशाख वदि ६ शुक्रवार १५९९ | ज्येष्ठ सुदि १० १५९९ | ज्येष्ठ सुदि ११ रविवार १६१० चैत्र सुदि १५ बुधवार आचार्य का नाम संयमरत्नसूरि संयमरत्नसूरि विनयमेरुसूरि "" उदयरत्नसूरि के पट्टधर सौभाग्यरत्नसूर प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख वासुपूज्यस्वामी की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख शिलालेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, ऊंडीपोल, खंभात जैन देरासर, सौदागर पोल, संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग- २, लेखाङ्क ६७३ वही, भाग ६, लेखाङ्क ८६० अहमदाबाद विमलनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, (कोचरों में), लेखाङ्क १५७७ बीकानेर विमलवसही, आबू मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग-२, लेखाङ्क १९४ १३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - आगमिक गच्छ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख के परिवार के हर्षरत्न उपाध्याय, पं.० गुणमंदिर, माणिकरत्न, विद्यारत्न, सुमतिराज आदि २१४. | १६१२ / वैशाख | संयमरत्नसूरि संभवनाथ की शांतिनाथ देरासर, मुनि विशालविजय, सुदि ६ धातु की पंचतीर्थी राधनपुर पूर्वोक्त, बुधवार प्रतिमा का लेख लेखाङ्क ३५१ २१५. | १६४६ | फाल्गुन संयमरत्नसूरि | शांतिनाथ की संभवनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ के पट्टधर | धातु की प्रतिमा | पादरा पूर्वोक्त, भाग-२, गुरुवार | कुलवर्धनसूरि | का लेख लेखाङ्क ११ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् २१६. २१७. २१८. तिथि १६६७ | वैशाख वदि ७ १६६७ १६८३ | ज्येष्ठ सुदि ६ गुरुवार आचार्य का नाम कुलवर्धनसूरि "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख " पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग-२, खंभात लेखाङ्क ६१० संदर्भ ग्रन्थ शीतलनाथ जिनालय, कुंभारवाडो, खंभात शांतिनाथ जिनालय, कनासा पाड़ो, पाटन वही, भाग-२ लेखाङ्क ६४९ वही, भाग-१ लेखाङ्क ३६१ १३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमिक गच्छ १३९ इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आगमिकगच्छ १३वीं शती के प्रारम्भ अथवा मध्य में अस्तित्व में आया और १७वीं शती के अन्त तक विद्यमान रहा । लगभग ४०० वर्षों के लम्बे काल में इस गच्छ में कई प्रभावक आचार्य हुये, जिन्होंने अपनी साहित्योपासना और नूतन जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना, प्राचीन जिनालयों के उद्धार आदि द्वारा पश्चिमी भारत (गुजरात, काठियावाड़ और राजस्थान) में श्वेताम्बर श्रमणसंघ को जीवन्त बनाये रखने में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह भी स्मरणीय है कि यह वही काल है, जब सम्पूर्ण उत्तर भारत पर मुस्लिम शासन स्थापित हो चुका था, हिन्दुओं के साथ-साथ बौद्धों और जैनों के भी मन्दिर - मठ समान रूप से तोड़े जाते रहे, ऐसे समय में श्वेताम्बर श्रमण संघ को न केवल जीवन्त बनाये रखने बल्कि उसमें नई स्फूर्ति पैदा करने में श्वेताम्बर जैन आचार्यों ने अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । विक्रम सम्वत् की १७वीं शताब्दी के पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध प्रमाणों का अभाव है । अत: यह कहा जा सकता है कि १७वीं शती के पश्चात् इस गच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया होगा और इसके अनुयायी श्रमण एवं श्रावकादि अन्य गच्छों के अनुयायी हो गये होंगे । वर्तमान समय में भी श्वेताम्बर श्रमण संघ की एक शाखा त्रिस्तुतिकमत अपरनाम बृहद्सौधर्मतपागच्छ के नाम से जानी जाती है, किन्तु इस शाखा के मुनिजन स्वयं को तपागच्छ से उद्भूत तथा उसकी एक शाखा के रूप में स्वीकार करते हैं । संदर्भ-सूची : १. २. अगरचन्द नाहटा-‘“जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश" यतीन्द्रसूरि अभिनन्दनग्रन्थ (आहोर, १९५८ ई०) पृष्ठ १३५ - १६५. आषाढ़ादि पर एकोतरइ, पोस वदि इग्यारिसि अंतरइ । धंधूकपुरि कृपारस सत्र, सोमवारि समर्थिउ ए चरित्र ॥ कुमतरुख वणभंग गइंद, जिनशासन रयणायर इंदु | सद्गुरुश्रीअमरसिंहसूरिंद, सेवई भविय जसुय अरविंद ॥ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० 3 जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास तसु पाटि नयनानंद अमीबिंदु गुरु, श्रीहेमरत्नसूरिमुणिंद । आगमगच्छ प्रकाश दिणिंद, जसु दीसइ वर परि चरविंद ।। सुगुरु पसाइं नयर गोआलेर, धणी पुण्यसार रिद्धिइ कुबेर । तासु गुण इम वर्णवइ अजस्त्र, साधुमेरुगणि पंडित मिश्र ।। मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैनगूर्जरकविओ (नवीन संस्करण, अहमदाबाद १९८६ ई०) भाग १, पृ० ८५ और आगे. ३. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० ४७८ और आगे. वही, पृ० २०१-२०२ मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैनगूर्जरकविओ पृ० ३३७ और आगे. शितिकंठ मिश्र-हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास [भाग-१] मरु-गूर्जर (वाराणसी १९९० ई०) पृ० ४००. शितिकंठ, मिश्र, पूर्वोक्त, पृ० ३३४ और आगे. कर्मग्रन्थ-रचनाकाल वि० सं० १४५०. मलयसुन्दरीकथा-रचनाकाल अज्ञात् [यह कृति प्रकाशित हो चुकी है] सुलसाचरित-[प्राचीनतम प्रति वि० सं० १४५३] कथाकोश [वि० सं० १५वीं शती का मध्य] स्थूलभद्रकथानक-यह कृति प्रकाशित हो चुकी है. मल्लिनाथचरित-रचनाकाल १३वीं शती के आसपास. ११. स्थूलिभद्ररास-रचनाकाल १६वीं शती के प्रथम चरण के आसपास. ००० ) १०. Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्वमध्यकालीन श्वेताम्बर गच्छों में उपकेशगच्छ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। जहाँ अन्य सभी श्वेताम्बर गच्छ भगवान् महावीर से अपनी परम्परा जोड़ते हैं, वहीं उपकेशगच्छ अपना सम्बन्ध भगवान् पार्श्वनाथ से जोड़ता है। अनुश्रुति के अनुसार इस गच्छ की उत्पत्ति का स्थान राजस्थान प्रदेश में स्थित ओसिया (प्राचीन उपकेशपुर) माना जाता है। परम्परानुसार इस गच्छ के आदिम आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीर सम्वत् ७० में ओसवाल जाति की स्थापना की, परन्तु किसी भी ऐतिहासिक साक्ष्य से इस तथ्य की पुष्टि नहीं होती । ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ओसवालों की स्थापना और इस गच्छ की उत्पत्ति का समय ईस्वी सन् की आठवीं शती के पूर्व नहीं माना जा सकता। चैत्यवासी आम्नाय में उपकेशगच्छ का विशिष्ट स्थान है। इस गच्छ में कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि और सिद्धसूरि इन तीन नामों की प्रायः पुनरावृत्ति होती रही है। उपकेशगच्छ में कई विद्वान् एवं प्रभावक आचार्य और मुनिजन हुए हैं, जिन्होंने साहित्योपासना के साथ-साथ नवीन जिनालयों के निर्माण और प्राचीन जिनालयों के जीर्णोद्धार तथा जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना द्वारा पश्चिम भारत में श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय को जीवन्त बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अन्य गच्छों की भाँति उपकेशगच्छ से भी कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ, जैसे वि० सं० १२६६/ई० सन् १२१० में द्विवंदनीक शाखा, वि० सं० १३०८/ई० सन् १२५२ में खरतपाशाखा तथा वि० सं० १४९८/ई० सन् १४४१ में खादिरीशाखा अस्तित्व में आयी। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उपकेशगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों की कृतियों की प्रशस्तिया, मुनिजनों के अध्ययनार्थ अथवा प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी प्राचीन ग्रन्थों की दाता प्रशस्तियाँ, दो प्रबन्ध (उपकेशगच्छप्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध - रचनाकाल - वि० सं० १३९३/ई० सन् १३३६) और उपकेशगच्छ की कुछ पट्टावलियाँ उपलब्ध हैं । इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा बड़ी संख्या में प्रतिष्ठापित जिन-प्रतिमायें मिली हैं, जिनमें से अधिकांशतः लेखयुक्त हैं। साम्प्रत लेख में उक्त साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है १. नवपयपयरण (नवपदप्रकरण) -महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में रचित १३७ पद्यों की यह रचना उपकेशगच्छीय कक्कसूरि के विद्वान् शिष्य जिनचन्द्रगणि पूर्वनाम कुलचन्द्र (देवगुप्तसूरि) की अनुपम कृति है । रचनाकार ने अपनी इस कृति पर वि० सं० १०७३/ई० सन् १०१६ में वृत्ति की रचना की, जिसका नाम श्रावकानन्दकारिणी है।' कक्कसूरि कुलचन्द्र / जिनचंद्रगणि अपरनाम देवगुप्तसूरि [वि० सं० १०७३/ ई० सन् १०१६ में नवपदप्रकरण सटीक के रचनाकार वाचक उमास्वाति के तत्त्वार्थाधिगमसूत्र की ३१ उपोद्धातकारिका की टीका करने वाले देवगुप्तसूरि भी शायद यही देवगुप्तसूरि हों ! २. नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति - उपकेशगच्छीय धनदेव अपरनाम यशोदेवउपाध्याय ने वि०सं० ११६५ में अपने पूर्वज जिनचन्द्रगणि अपरनाम Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४३ उपकेश गच्छ देवगुप्तसूरि की कृति पर बृहदवृत्ति की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - कक्कसूरि जिनचन्द्रगणि / देवगुप्तसूरि [नवपदप्रकरण के रचनाकार] कक्कसूरि [पञ्चप्रमाण के कर्ता] सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि धनदेव/यशोदेव उपाध्याय [वि०सं० ११६५/ई० सन् ११०८ में नवपदप्रकरणबृहवृत्ति के रचनाकार] यशोदेवउपाध्याय ने वि० सं० ११७८ / ई० सन् ११२१ में प्राकृत भाषा में (६४०० गाथाओं) चन्द्रप्रभचरित की भी रचना की। ३. क्षेत्रसमासवृत्ति - ३००० श्लोक परिमाण यह कृति उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि द्वारा वि०सं० ११९२ में रची गयी है। इसकी प्रशस्ति में वृत्तिकार की गुरु-परम्परा का जो उल्लेख मिलता है, वह इस प्रकार है कक्कसूरि सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि [क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार] Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति इस ग्रन्थ की एक प्रति शान्तिनाथ जैन ग्रंथ भण्डार, खंभात में संरक्षित है। इसे उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि के शिष्य सिद्धसूरि के उपदेश से वि.सं. १३५२ / ई० सन् १२९५ में श्रावक गोसल के पुत्र सङ्घपति आशाधर ने लिपिबद्ध कराया : १४४ देवगुप्तसूरि T सिद्धसूरि नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध अपरनाम शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारप्रबन्ध शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारक समरसिंह के गुरु उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि के पट्टधर कक्कसूरि ने वि० सं० १३९३ में कञ्जरोटपुर में उक्त कृति की रचना की । इसमें समरसिंह द्वारा शत्रुञ्जय पर कराये गये जीर्णोद्धार एवं उपकेशगच्छ के सम्बन्ध में विवरण प्राप्त होता है । श्री लालचन्द भगवानदास गांधी ने अपने विद्वत्तापूर्ण लेख' में कक्कसूरि की गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - रत्नप्रभसूरि T यक्षदेवसूरि - कक्कसूरि I सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि [वि० सं० १३५२ / ई० सन् १२९५ में इनके उपदेश से उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि की गयी ] Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ ____ १४५ सिद्धसूरि [समरसिंह के गुरु)] कक्कसूरि [वि०सं० १३९३ / ई० सन् १३३६ में नाभिनन्दन जिनोद्धारप्रबन्ध के कर्ता] उपदेशगच्छ की पट्टावलियाँ - जहाँ अन्य गच्छों की मात्र दो या तीन पट्टावलियाँ ही मिलती हैं, वहाँ उपकेशगच्छ की कई पट्टावलियों का उल्लेख मिलता है, किन्तु दुर्भाग्यवश अद्यावधि मात्र तीन पट्टावलियाँ ही प्रकाशित होने से अध्ययनार्थ उपलब्ध हो पाती हैं, शेष पट्टावलियाँ या तो नष्ट हो गयीं अथवा किन्हीं प्राचीन हस्तलिखित भण्डारों में पड़ी होंगी। प्रकाशित पट्टावलियों का विवरण इस प्रकार है - १. उपकेशगच्छप्रबन्ध - रचनाकार - कक्कसूरि, रचनाकाल वि० सं० १३९३ २. उपकेशगच्छपावली - रचनाकार - अज्ञात, रचनाकाल - वि०सं० की १५वीं शती का अन्त ३. उपकेशगच्छपट्टावली - रचनाकार - अज्ञात, रचनाकाल - वि० सम्वत् की २०वीं शती ... कक्कसूरि के सं० १३९३/ई० १३३६ में लिखे गये उपकेशगच्छप्रबन्ध एवं नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के आधार पर श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने उपकेशगच्छ की पट्टावली का पुनर्गठन किया है। इस पट्टावली में कक्कसूरि और उनके गुरु सिद्धसूरि के सम्बन्ध में दिये गये समसामयिक विवरणों की ऐतिहासिकता निर्विवाद है। इसी प्रकार इस पट्टावली के कुछ अन्य विवरणों जैसे देवगुप्तसूरि द्वारा नवपदप्रकरणवृत्ति, उनकी पश्चात्कालीन परम्परा में हुए यशोदेवउपाध्याय द्वारा नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति के लेखन की बात उक्त रचनाओं की प्रशस्तियों से समर्थित होती है । चौलुक्यनरेश कुमारपाल के समय कक्कसूरि द्वारा पाटण में क्रियाहीन Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास साधुओं को गच्छ से बाहर करने की बात, जो इस पट्टावली में उद्धृत की गयी है, सत्य प्रतीत होती है । यद्यपि इस घटना का किसी अन्य समसामयिक साक्ष्य से समर्थन नहीं होता। इस पट्टावली में उल्लिखित अन्य बातें - यथा - पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा से उपकेशगच्छ की उत्पत्ति, वीरनिर्वाणसम्वत् ८४ में आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर और कोरंटपुर में एक साथ जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा आदि का किसी भी पुराने ऐतिहासिक साक्ष्य से समर्थन नहीं होता, अतः ये बातें ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वहीन उपकेशगच्छ की द्वितीय पट्टावली में भी पार्श्वनाथ की परम्परा से उपकेशगच्छ की उत्पत्ति, वीरसम्वत् ८४ में आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर और कोरंटपुर में एक ही तिथि में जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठापना का परम्परागत विवरण प्राप्त होता है । इस पट्टावली में वि०सं० १२६६ में उपकेशगच्छ से द्विवंदनीकगच्छ का प्रादुर्भाव, इसके पश्चात् वि० सं० १३०८ में खरातपा शाखा का उद्भव एवं वि० सं० १४९८ में देवगुप्तसूरि के शिष्य से खादिरी शाखा के उदय की बात कही गयी है। द्विवंदनीकगच्छ के उद्भव की बात तो अन्य पट्टावलियों से भी ज्ञात होती है किन्तु खरातपा शाखा और खादिरी शाखा के उद्भव के सम्बन्ध में अन्य किसी पट्टावली से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । चूंकि अभिलेखीय साक्ष्यों से उक्त शाखाओं का अस्तित्व सिद्ध है, अतः इस पट्टावली का उक्त विवरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। उपकेशगच्छ की तृतीय पट्टावली में भगवान् पार्श्वनाथ के पट्टधर शुभदत्त से लेकर सिद्धसूरि वि०सं० १९३५ तक लगभग २५०० वर्षों की अवधि में हुए ८४ आचार्यों के नाम, उनके काल एवं उनके समय की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का संक्षिप्त विवरण है। अनुश्रुतिपरक विवरणों से परिपूर्ण एवं अर्वाचीन होने के कारण उपकेशगच्छ के प्राचीन इतिहास के अध्ययन में उक्त पट्टावली प्रामाणिक नहीं कही जा सकती है। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ अभिलेखीयसाक्ष्य - उपकेशगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध हुए हैं। ये लेख वि० सं० १०११ से वि० सं० १९१८ तक के हैं । इन लेखों में विक्रम की ग्यारहवीं शती के प्रारम्भ से लेकर विक्रम की १३वीं शती के अन्त तक केवल १५ लेख ही उपलब्ध हुए हैं, इनका विवरण इस प्रकार है - उपकेशगच्छ के प्रारम्भिक प्रतिमा लेखों का विवरण संवत् तिथि/मिति आचार्य नाम १०११ चैत्र सुदि६ कक्काचार्य [१ प्रतिमालेख] १०११ - देवसूरि [१ प्रतिमालेख] ११७२ फाल्गुन सुदि ७ सोमवार ककुदाचार्य [१ प्रतिमालेख] १२०२ आषाढ़ सुदि ६ सोमवार [६ प्रतिमालेख] १२०३ वैशाख सुदि १२ सिद्धाचार्य [१ प्रतिमालेख] १२०६ कार्तिक वदि ६ ककुदाचार्य [१ प्रतिमालेख] १२१२ ज्येष्ठ वदि ८ मङ्गलवार ,, [१ प्रतिमालेख १२५९ कार्तिकसुदि १२ कक्कसूरि [१ प्रतिमालेख] १२६१ ज्येष्ठ सुदि १२ सिद्धसूरि [१ प्रतिमालेख] Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १. २. ३. तिथि १०११ चैत्र सुदि ६ १०११ तिथि विहीन ११७२ | फाल्गुन सुदि ७ सोमवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम कक्काचार्य (ककुदाचार्य) के शिष्य देवदत्त देवसूरि ककुदाचार्य प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शान्तिनाथ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख जिन प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान वीर जिनालय, ओसिया लोटाना तीर्थ पार्श्वनाथ जिनालय माणेक चौक, खंभात संदर्भ ग्रन्थ पूरनचन्द नाहर, संपा० जैनलेख संग्रह, भाग १, लेखांक १३४ दौलतसिंह लोढा, संपा० श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३२१ बुद्धिसागर संपा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग-२ लेखांक ९१७ 288 जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ ४. १२०२ | आषाढ़ सुदि ६ सोमवार ५. १२०२ प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम स्तम्भलेख ककुदाचार्य | अरनाथ की | मुनि कल्याणविजय प्रतिमा का लेख देलवाड़ा संपा० प्रबन्धआबू पारिजात लेखांक १४ धर्मनाथ की वही, लेखांक २ प्रतिमा का लेख एवं मुनि जिनविजय संपा. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३५ शांतिनाथ की मुनि जिनविजय, प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३९ ६. १२०२ - Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ७. |१२०२ कुन्थुनाथ को वहीं, भाग २ प्रतिमा का लेख लेखांक १४३ १२०२ ककुदाचार्य । | जिन प्रतिमा पर | विमलवसही, वही, भाग-२, उत्कीर्ण लेख आबू लेखांक १४७ . १२०२ आदिनाथ की वही, भाग २, प्रतिमा का लेख लेखांक १५० १०. | १२०३ | वैशाख । सिद्धाचार्य...? | शांतिनाथ की। आदिनाथ जिनालय, विनयसागरसुदि १२ प्रतिमा का लेख | नाकोड़ा तीर्थ, लेखक, नाकोड़ा राजस्थान पार्श्वनाथतीर्थ, लेखांक ४ ११. १२०६ / कार्तिक ककुदाचार्य पार्श्वनाथ की नेमिनाथजिनालय | मुनि विशालविजय वदि ६ प्रतिमा का लेख | कुंभारिया लेखक, कुंभारिया तीर्थ परिशिष्ट, लेखांक ९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि १२१२ | ज्येष्ठ वदि ८ मंगलवार १२. १३. १४. १५. १(२?)२५ वैशाख सुदि १० १२५९ कार्तिक सुदि १२ १२६१ ज्येष्ठ सुदि १२ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम " मुनिचन्द्रसूरि कक्कसूरि सिद्धसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख देहरी का लेख पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख चौबीसमाता के पट्ट पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान देहरी नं० ५१ विमलसही, आबू सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर वीर जिनालय, ओसिया जैन मंदिर, ईडर संदर्भ ग्रन्थ मुनि कल्याणविजय पूर्वोक्त, लेखांक १३८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ४७४ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७९१ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १४०८ उपकेश गच्छ १५१ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास नवपदप्रकरण के कर्ता देवगुप्तसूरि के शिष्य कक्कसूरि और वि०सं० १०७८/ई. सन् १०२१ के प्रतिमालेख में उल्लिखित कक्कसूरि को समसामयिक होने से एक ही आचार्य मानने में कोई बाधा उपस्थित नहीं होती है, इसी प्रकार देवगुप्तसूरि 'द्वितीय' के शिष्य लघुक्षेत्रसमास (रचनाकाल वि०सं० ११९२/ई० सन् ११३५) के रचनाकार सिद्धसूरि और वि० सं० १२०३/ई. सन् ११४६ के प्रतिमालेख में उल्लिखित सिद्धसूरि को एक दूसरे से अभिन्न माना जा सकता है, क्योंकि इस समय तक उपकेशगच्छ में कोई विभाजन दृष्टिगोचर नहीं होता है। पट्टावली नं. १ के अनुसार सिद्धसूरि के पट्टधर कक्कसूरि ने चौलुक्यनरेश कुमारपाल (वि०सं० ११९९-१२३०) के समय अपने गच्छ के क्रियाहीन मुनिजनों को गच्छ से निष्कासित कर दिया था। उक्त कक्कसूरि को वि० सं० ११७२-१२१२ के प्रतिमालेखों में उल्लिखित ककुदाचार्य से अभिन्न माना जा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कक्कसूरि ने अपने साथ के जिन मुनिजनों को गच्छ से निष्कासित कर दिया था, उन्हीं से गच्छभेद प्रारम्भ हुआ । सम्भवतः इन्हीं मुनिजनों ने स्वयं को सिद्धाचार्यसन्तानीय कहना प्रारम्भ कर दिया और इसके परिणामस्वरूप कक्कसूरि के शिष्य ककुदाचार्यसंतानीय कहलाये। १३वीं शती तक के साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छीय मुनिजनों की गुरु-शिष्य परम्परा का क्रम इस प्रकार निर्मित होता है - तालिका - १ कक्कसूरि Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ जिनचन्द्रगणि / कुलचंद्रगणि अपरनाम देवगुप्तसूरि [वि०सं० १०७३ / ई० सन् १०१६ में नवपदप्रकरण। सटीक के रचनाकार] कक्कसूरि [जिनचैत्यवन्दनविधि एवं | पञ्चप्रमाण के कर्ता] पञ्चप्रमाण क कता । [वि०सं० १०७८ प्रतिमालेख] सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि [द्वितीय] सिद्धसूरि यशोदेव उपा० पूर्वनाम धनदेव [वि०स० ११९२। [वि०सं० ११६५/ ई० सन् ११३५ में ई० सन् ११०८] क्षेत्रसमासवृत्ति में नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति [वि०सं० १२०३ वि०सं० ११७८/ प्रतिमा लेख] ई. सन् ११२१ में चंद्रप्रभचरित के कर्ता कक्कसूरि [चौलुक्यनरेश कुमारपाल-वि०सं० ११९९-१२३०] के समकालीन [वि०सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख] विक्रम की चौदहवीं शती से उपकेशगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों की संख्या बढ़ने लगती है। यह उल्लेखनीय है कि विक्रम की १३वीं शती तक के समक Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास के लेखों में उपकेशगच्छ और प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख मिलता है, जबकि १४वीं शती एवं बाद के लेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के नाम के पूर्व ककुदाचार्यसन्तानीय और सिद्धाचार्यसन्तानीय ऐसा उल्लेख मिलता है, इससे यह प्रतीत होता है कि विक्रम की १३वीं शती के अन्त में अथवा १४वीं शती के प्रथम दशक में उपकेशगच्छ दो शाखाओं : ककुदाचार्यसन्तानीय और सिद्धाचार्यसन्तानीय में विभाजित हो चुका था। उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसन्तानीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण इस प्रकार है - SHRENIK/MUNICHANDRA/2-1-210/Shewtamber Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १. | १३२० | ज्येष्ठ ककुदाचार्यसंतानीय | पार्श्वनाथ की चिन्तामणिपार्श्वनाथ |अगरचन्द नाहटा, सुदि १५ / देवगुप्तसूरि प्रतिमा का लेख | जिनालय, बीकानेर | संपादक, बीकानेर शुक्रवार जैनलेखसंग्रह, लेखांक ४४५ २. | १३४५ ककुदाचार्यसंतानीय | शांतिनाथ की चन्द्रप्रभजिनालय, नाहर, पूर्वोक्त सिद्धसूरि । प्रतिमा का लेख | जैसलमेर | भाग ३, लेखांक २२३६ ३. १३४७ स्तम्भ लेख | चिन्तामणि जिनालय नाहटा, पूर्वोक्त, बीकानेर लेखांक २०४ ४. १३४९ फाल्गुन नेमिनाथ की वीर जिनालय, मुनि जयन्तविजय सुदि ८ पाषाण की अजारी संपा० अर्बुदाचल Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख रविवार प्रतिमा का लेख प्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ४३१ ५. १३५४ | माघ अरनाथ की चिन्तामणि जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्तवदि ४ प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक २१७ शुक्रवार ६. १३५६ | ज्येष्ठ शांतिनाथ की । | स्तम्भन पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि वदि ८ प्रतिमा का लेख | जिनालय, खारवाडो, पूर्वोक्त, भाग २, खंभात लेखांक १०४४ ७. १३६(?)| तिथि ककुदाचार्यसंतानीय | पार्श्वनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त विहीन | देवगुप्तसूरि के प्रतिमा का लेख | राजलदेसर लेखांक २३४८ शिष्य सिद्धसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् ८. ९. १०. ११. १३७३ तिथि १३७७ | ज्येष्ठ वदि ११ गुरुवार १३७८ | ज्येष्ठ वदि ९ सोमवार १३७८ | ज्येष्ठ वदि ९ सोमवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" ककुदाचार्यसंतानीय कक्कसूरि ककुदाचार्यसंतानीय कक्कसूरि "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की सपरिकर प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणि पार्श्वनाथ | बुद्धिसागरसूरि जिनालय, पीपलाशेरी, बड़ोदरा लेखांक १६६ महावीर जिनालय बीकानेर देवकुलिका नं. १० विमलवसही, पूर्वोक्त, भाग २, आबू देहरी नं. ४२ विमलवसही, आबू नाहटा - पूर्वोक्त लेखांक १३५२ मुनि जिनविजय पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २०६ मुनि कल्याणविजय पूर्वोक्त, लेखांक ११३ उपकेश गच्छ १५७ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १२. १३. १४. १५. १३७८ १३८० तिथि १३८० | ज्येष्ठ १३८० ज्येष्ठ सुदि ९ मंगलवार सुदि १४ माघ सुदि ६ सोमवार माघ सुदि ६ मंगलवार प्रतिमालेख / स्तम्भलेख प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम ककुदाचार्यसंतानीत्ज जिन प्रतिमा पर सिंहसूरि उत्कीर्ण लेख (सिद्धसूरि?) के शिष्य कक्कसूरि ककुदाचार्यसंतानीय कक्कसूरि 11 11 आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख विमलवसही, आबू चौबीसी प्रतिमा का चिन्तामणिपार्श्वनाथ लेख जिनालय, खंभात संदर्भ ग्रन्थ शांतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, चुरू, राजस्थान भाग २, लेखांक १३५८ बावन जिनालय, पेथापुर वही, लेखांक २२१ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५३१ वही, भाग १, लेखांक ७११ १५८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | | संदर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान आचार्य का नाम | स्तम्भलेख आदिनाथ की | चिन्तामणिजी का प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर उपकेश गच्छ नाहटा, पूर्वोक्त, | लेखांक २९० वही, १६. | १३८२ | वैशाख सुदि २ शनिवार १७. | १३८४ | माघ सुदि ५ १८. | १३८५ | फाल्गुन सुदि ८ १३८५ ,, वही, पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख लेखांक ३०० महावीरस्वामी की प्रतिमा का लेख लेखांक १२७५ पार्श्वनाथ की वही, लेखांक ३०९ प्रतिमा का लेख ककुदाचार्यसंतानीय | आदिनाथ की आदिनाथजिनालय विनयसागरकक्कसूरि प्रतिमा का लेख | गाररडु संपा० प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२६ २०. | १३८६ | वैशाख सुदि १२ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ | | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख २१. १३८६ / ज्येष्ठ सुमतिनाथ की चन्द्रप्रभजिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर भाग ३ सोमवार लेखांक २२५३ २२. १३८७ | माघ अजितनाथ की चन्द्रप्रभजिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० प्रतिमा का लेख जानीशेरी, बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग २, शनिवार लेखांक १४३ २३. १३८८ | माघ । शांतिनाथ की बावन जिनालय वही, भाग १, सुदि६ | प्रतिमा का लेख | पेथापुर लेखांक ७०६ सोमवार २४. १३९० | ज्येष्ठ पार्श्वनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ११ प्रतिमा का लेख | (नाहटों में) लेखांक १४७७ बीकानेर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २५. २६. २७. तिथि १३९१ तिथि विहीन १३९३ | तिथि विहीन १४०१ ज्येष्ठ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम ܐܐ "" ककुदाचार्यसंतानीय सुदि १० कक्कसूरि के पट्टधर देवगुप्तसूरि बुधवार प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख धातु की परिकर वाली एकतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभजिनालय, जैसलमेर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर जैन मंदिर, जीरावला संदर्भ ग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२६१ नाहटा, पूर्वोक्त, | लेखांक ३५३ मुनि जयन्तविजय, अर्बुदाचल प्रदक्षिणाजैन लेखसंदोह (आबू, भाग-५) लेखांक ११७ उपकेश गच्छ १६१ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम । स्तम्भलेख २८. १४०५ | वैशाख ककुदाचार्यसंतानीय | आदिनाथ की जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ | कक्कसूरि प्रतिमा का लेख | जयपुर भाग १, लेखांक ४०० २९. |१४०५ वैशाख ककुदाचार्यसंतानीय | आदिनाथ की नेमिनाथ जिनालय मुनि कान्तिसागर, सुदि ३ | कक्कसूरि प्रतिमा का लेख | भिंडी बाजार, बम्बई संपा. जैनधातु प्रतिमालेख, लेखांक ३६ ३०. १४०८ | वैशाख पार्श्वनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि.. प्रतिमा का लेख | जैसलमेर लेखांक २७५८ ३१. १४२१ ज्येष्ठ ककुदाचार्यसंतानीय देवकुलिका जीरावला तीर्थ लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि १० कक्कसूरि के पट्टधर का लेख चैत्य देवकुलिका लेखांक ३०३(अ) बुधवार | देवगुप्तसूरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि १४२२ वैशाख ३२. ३३. १४२५ ३४. ३५. सुदि ११ बुधवार आषाढ सुदि ३ रविवार १४२६ माघ वदि ककुदाचार्यसंतानीय ७ देवप्रभसूरि १४२७ ज्येष्ठ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम ककुदाचार्यसंतानीय धातु की देवगुप्तसूरि जिनप्रतिमा का लेख आदिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख सुदि १५, शुक्रवार ककुदाचार्यसंतानीय सिद्धसूरि ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात घर देरासर भारोलग्राम, आबू जगवल्लभपार्श्वनाथ देरासर, निशापोल अहमदाबाद महावीर जिनालय, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५४१ मुनि जयन्तविजय आबू, भाग ५, लेखांक ५९ बुद्धिसागर-पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १२०४ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३२८ उपकेश गच्छ १६३ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । १६ ३६. १४२७ ३७. १४३२ / फाल्गुन वदि २ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ वही, प्रतिमा का लेख जिनालय, बीकानेर लेखांक ४८४ शांतिनाथ की वही, चौबीसी प्रतिमा लेखांक ५०१ का लेख आदिनाथ की नेमिनाथ जिनालय बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख खंभात भाग-२, लेखांक ६३५ शांतिनाथ की | पोरवालों का मंदिर, विजयधर्मसूरि, धातु की प्रतिमा पूना संपा० प्राचीनलेखका लेख संग्रह, लेखांक ९० ३८. | १४३२ | फाल्गुन सुदि २ शुक्रवार ३९. |१४४६ | वैशाख सुदि ३ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख कक्कसूरि (??) | पंचासरापार्श्वनाथ जिनविजय, की प्रतिमा जिनालय, पाटन | पूर्वोक्त, भाग २, का लेख लेखांक ५१६ शांतिनाथ की वासुपूज्यस्वामी नाहटा, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा | का मंदिर, बीकानेर | लेखांक १३९२ का लेख धर्मनाथ की चिन्तामणि का प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ५७७ ३९. अ | १४५२ | वैशाख सुदि ३ बुधवार ४०. | १४५७ | वैशाख सुदि ३ शनिवार ४१. | १४५७ | वैशाख सुदि ३ शनिवार ४२. | १४५९ | ज्येष्ठ वदि १२ शनिवार वही, वही, चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा का लेख लेखांक ५९१ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ ४३. |१४५९ । ,, वही, लेखांक ५९२ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख ४४. वही, लेखांक ६०० १४६१ | ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रवार १४६१ | ज्येष्ठ सुदि १० ४५. मुनि कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक ६४ संभवनाथ की नवघरे का मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा | दिल्ली भाग १, का लेख लेखांक ४९७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४६. १४६२ | वैशाख सुदि १० रविवार Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि उपकेश गच्छ ४७. | १४६३ | तिथि विहीन प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख शांतिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, पंचतीर्थी प्रतिमा | (नाहटों में) लेखांक १८३३ का लेख बीकानेर ककुदाचार्यसंतानीय | वासुपूज्य की चिन्तामणिजी का देवगुप्तसूरि प्रतिमा का लेख । मंदिर, बीकानेर लेखांक ६२२ वही, ४८. | १४६५ | माघ सुदि ३ शनिवार ४९. | १४९८ | वैशाख वदि ३ ५०. | १४६८ | वैशाख सुदि ३ रविवार सुमतिनाथ की वही, प्रतिमा का लेख लेखांक ६३६ आदिनाथ की | चिन्तामणिपार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, चौबीसी प्रतिमा | जिनालय, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, का लेख लेखांक ५६० Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / m क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ५१. १४७० | ज्येष्ठ । आदिनाथ की | मनमोहनपार्श्वनाथ मुनि विशालविजय सुदि १३ पंचतीर्थी प्रतिमा | जिनालय वोरवाड़, संपा० राधनपुर शुक्रवार का लेख राधनपुर प्रतिमालेखसंग्रह लेखांक ९५ ५२. १४७० माघ पार्श्वनाथ की जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त सुदि २ प्रतिमा का लेख |मडिया, सिरोही | भाग २, गुरुवार लेखांक २०९२ ५३. |१४७० माघ जैन मंदिर, कंकूबाई | मुनि कांतिसागर, सुदि २ की धर्मशाला, शत्रुञ्जयवैभव, गुरुवार पालिताना लेखांक ६० ५४. १४७७ | मार्गशीर्ष | ककुदाचार्यसंतानीय | सुमतिनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ४ | सिद्धसूरि | धातु की प्रतिमा बीकानेर लेखांक २७४३ रविवार का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ ५५. | १४७८ | पौष . वदि १ गुरुवार ५६. | १४८० | ज्येष्ठ वदि ५ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख आदिनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, विनयसागर, चौबीसी प्रतिमा | अलाय पूर्वोक्त, भाग १ का लेख लेखांक २२० नमिनाथ की | नमिनाथ जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा | कासिमबाजार | भाग १, का लेख लेखांक ७७ पार्श्वनाथ की श्रेयांसनाथ विनयसागर, प्रतिमा का लेख | जिनालय, हिंडोन पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २२९ वासुपूज्य की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | मंदिर, लेखांक ७१३ बीकानेर ५७. | १४८१ वैशाख वदि ११ ५८. | १४८२ माघ वदि ५ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ५९. १४८२ | तिथि शीतलनाथ नाहर, पूर्वोक्त, विहीन जिनालय, उदयपुर | भाग २, लेखांक १०७० ६०. |१४८३ | ज्येष्ठ ककुदाचार्यसंतानीय | शांतिनाथ की वीर जिनालय, लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ११ | यक्षदेवसूरि धातु की प्रतिमा थराद लेखांक १० शुक्रवार का लेख ६१. १४८५ वैशाख ककुदाचार्यसंतानीय चन्द्रप्रभ की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, । सुदि ३ । सिद्धसूरि प्रतिमा का लेख जैसलमेर भाग ३, बुधवार लेखांक २३९१ एवं नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २७७२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ वासुपूज्य की ६२. | १४८५ / ज्येष्ठ वदि ९ ६३. | १४८५ आषाढ़ सुदि ३ रविवार ६४. | १४८६ | मार्गशीर्ष वदि ५ ६५. | १४८७ | मार्गशीर्ष वदि १० शुक्रवार प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख खरतरगच्छ का विनयसागर, प्रतिमा का लेख | उपाश्रय, किशनगढ़ | पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २५४ आदिनाथ की सीमंधरस्वामी का बुद्धिसागरसूरि, चौबीसी प्रतिमा | मंदिर, अहमदाबाद | पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ११७५ सुविधिनाथ की | वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक १२०५ संभवनाथ की आदिनाथ जिनालय, वही, धातु की प्रतिमा | (नाहटों में) लेखांक १४७३ का लेख बीकानेर Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । ६६. | १४८८ | पौष सुदि ३ शनिवार ६७. १४८८ | पौष सुदि १२ शनिवार ६८. |१४८९ | वैशाख वदि १० गुरुवार ६९. १४९१ / माघ सुदि ५ बुधवार प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख विमलनाथ की संभवनाथ जिनालय नाहर, पूर्वोक्त प्रतिमा का लेख | अजमेर भाग १, लेखांक ५५० विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २७२ शांतिनाथ की अजितनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख शेख पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, अहमदाबाद लेखांक १०३० सुविधिनाथ की पार्श्वनाथ देरासर, नाहटा, पूर्वोक्त प्रतिमा का लेख | देवसागर, सुजानगढ़, लेखांक २३७७ बीकानेर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ ७०. | १४९३ | वैशाख सुदि ३ प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख श्रेयांसनाथ की सुमतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | जयपुर भाग २, लेखांक ११८२ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २९४ आदिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, | बुद्धिसागरसूरि, धातु की प्रतिमा | कनासा पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ३५१ श्रेयांसनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय विनयसागर, प्रतिमा का लेख | आमेर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २९९ ७१. | १४९३ | ज्येष्ठ सुदि ३ सोमवार ७२. | १४९३ | फाल्गुन वदि १ पाटण Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ७३. ७४. ७५. ७६. तिथि १४९५ ज्येष्ठ १४९५ सुदि १३ "" प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम गुरुवार १४९७ ज्येष्ठ सुदि २ "" "" १४९५ मार्गशीर्ष ककुदाचार्यसंतानीय वदि ४ सर्वदेवसूरि ककुदाचार्यसंतानीय सिद्धसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख "" शांतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर अजितनाथ जिनालय, अयोध्या संदर्भ ग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५३१ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७८२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६४१ विमलनाथ जिनालय, विनयसागर, सवाई माधोपुर पूर्वोक्त- भाग १, लेखांक ३१९ १७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ७७. | १४९७ | ज्येष्ठ सुमतिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, |वही, भाग १, सुदि६ प्रतिमा का लेख | साथां लेखांक ३२० ७८. १४९८ | वैशाख पद्मप्रभ की पञ्चायती मंदिर, वही, भाग १, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | जयपुर लेखांक ३२७ ७९. | १४९८ | फाल्गुन ककुदाचार्यसंतानीय | शीतलनाथ की | बालावसही, शत्रुञ्जयवैभव, वदि १० कक्कसूरि । प्रतिमा का लेख | शत्रुञ्जय लेखांक ८२ | १४९९ | फाल्गुन चन्द्रप्रभ जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, वदि २ भाग १, गुरुवार लेखांक २१९ ८१. | १४९९फाल्गुन आदिनाथ की जैन मंदिर, वही, भाग १, वदि २ प्रतिमा का लेख चेलापुरी, दिल्ली लेखांक ४७१ ८०. Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ८२. १४९९ ८३. ८४. ८५. १५०० १५०१ १५०१ तिथि " मार्गशीर्ष वदि २ ज्येष्ठ वदि १२ सोमवार ज्येष्ठ वदि १२ सोमवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख विमलनाथ की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान मनमोहनपार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, जिनालय, चौकसीपोल, खंभात लेखांक ८२५ वीर जिनालय, बीकानेर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ " नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३३० वही, लेखांक ८४६ वही, लेखांक ८४५ १७६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ ८६. १५०१ माघ वदि ६ ८७. | १५०१ / माघ वदि६ बुधवार ८८. |१५०१ माघ वदि ६ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम स्तम्भलेख शान्तिनाथ की | गुरु मन्दिर, वही, । धातु की प्रतिमा | कोचरों की बगीची, लेखांक १९९१ का लेख बीकानेर श्रेयांसनाथ की | शीतलनाथ, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | जिनालय, बालोतरा | भाग १, लेखांक ७३० शान्तिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | (कोचरों में) लेखांक १६१८ बीकानेर अजिनाथ की पद्मप्रभ जिनालय, विनयसागर, प्रतिमा का लेख | घाट, जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३४३ - - ८९. | १५०१ | माघ सुदि ५ बुधवार Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख . ९०. | १५०१ | माघ ककुदाचार्यसंतानीय | चन्द्रप्रभ की जैन मंदिर, मन्दसौर वही, भाग १, सुदि६ कक्कसूरि प्रतिमा का लेख लेखांक ३४४ गुरुवार ९१. १५०३ / ज्येष्ठ श्रेयांसनाथ की बावनजिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ११, प्रतिमा का लेख करेड़ा भाग २, शुक्रवार लेखांक १९३४ ९२. १५०३ | ज्येष्ठ अजितनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ११ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ८६७ ९३. १५०३ | आषाढ आदिनाथ की सुदि ९ प्रतिमा का लेख लेखांक ८७१ गुरुवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही, Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९४. ९५. ९६. ९७. तिथि १५०४ वैशाख सुदि ६ शुक्रवार १५०४ ज्येष्ठ सुदि ४ १५०४ फाल्गुन वदि ५ १५०५ वैशाख सुदि ६ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" "" ककुदाचार्यसन्तानीय सिद्धसूरि के शिष्य कक्कसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान गौड़ी जी भंडार उदयपुर की एक प्रतिमा चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख कुथुनाथ की धातु की पंचतीर्थी देरासर, प्रतिमा का लेख अजितनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर चौमुख जी अहमदाबाद गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, मोतीकटरा, आगरा संदर्भ ग्रन्थ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक २०३ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८८० बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३३ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १४७९ उपकेश गच्छ १७९ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९८. १५०५ ९९. १००. १०१. तिथि "" १५०६ | फाल्गुन वदि ८ १५०७ ज्येष्ठ सुदि १० प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" "" "" १५०७ फाल्गुन ककुदाचार्यसंतानीयं वदि ३ कक्कसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर पंचायती मंदिर जयपुर संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १९३७ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४१० शीतलनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, उदयपुर पूर्वोक्त, का लेख वीर जिनालय, भिनाय लेखांक २३३ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४२४ १८० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् १०२. १०३. तिथि १०५. १५०८ | ज्येष्ठ सुदि २ १५०८ | मार्गशीर्ष वदि २ १०४. १५०८ माघ सुदि ५ गुरुवार १५०९ | वैशाख वदि ३ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" "" ककुदाचार्यसंतानीय ... सूरि ककुदाचार्यसंतानीय कक्कसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नेमिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख सुविधिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान आदिनाथ जिनालय, वही, भाग १, भैंसरोडगढ़ लेखांक ४३२ महावीर जिनालय, सांगानेर संदर्भ ग्रन्थ पार्श्वनाथ देरासर मांडला वही, भाग १, लेखांक ४३५ चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, जैसलमेर भाग ३, लेखांक २३२७ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक २५२ उपकेश गच्छ १८१ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि १०६. १५०९ | वैशाख सुदि ३ १०७. १५०९ । माघ सुदि ५ सोमवार १०८. |१५१० माघ सुदि ५ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख चन्द्रप्रभ की बड़ा मंदिर, विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा | नागोर पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ४३७ संभवनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख । नागौर भाग २, लेखांक १२५६ महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, आसानियों का चौक, लेखांक १८९६ बीकानेर कुंथुनाथ की बालावसही, शत्रुञ्जयवैभव, प्रतिमा का लेख शत्रुञ्जय लेखांक १२७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १०९. १५१० फाल्गुन सुदि ४ शुक्रवार Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि । उपकेश गच्छ ११०. | १५११ | माघ वदि ४ १११. | १५११ / माघ वदि ५ सोमवार ११२. | १५११ | फाल्गुन सुदी ११ प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख पद्मप्रभ की | कल्याण पार्श्वनाथ |बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख | जिनालय, वीसनगर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४९८ नमिनाथ की नेमिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | अजीमगंज, | भाग १, मुर्शिदाबाद लेखांक १३ श्रेयांसनाथ की खरतरगच्छीय विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा | आदिनाथ पूर्वोक्त, भाग १, का लेख जिनालय, कोटा लेखांक ४८१ आदिनाथ की पंचायती जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख लश्कर, ग्वालियर भाग २, लेखांक १३७३ ११३. | १५१२ माघ सुदि १ बुधवार Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | 826 ११४. १५१२ माघ वदि ७ बुधवार ११५. | १५१२ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख सुमतिनाथ की | बड़ा मंदिर, विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा | नागौर पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ४८८ संभवनाथ की माणिकसागरजी का |वही, भाग १, पंचतीर्थी प्रतिमा मंदिर, कोटा लेखांक ४८७ का लेख अनन्तनाथ की सुपार्श्वनाथ का नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | पंचायती मंदिर, भाग २, जयपुर लेखांक ११५३ सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, वही, भाग २, प्रतिमा का लेख | नागौर लेखांक १२६१ ११६. | १५१२ | महासुदी सुदी ६, बुधवार ११७. |१५१२ | माघ वदि बुधवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ११८. ११९. १२०. तिथि १५१२ फाल्गुन सुदि ८ शुक्रवार १५१२ फाल्गुन ककुदाचार्यसंतानीय सुदि १२ कक्कसूरि १५१३ चैत्र प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम ककुदाचार्यसंतानीय सूरि सुदि ६ गुरुवार प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख विमलनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर संदर्भ ग्रन्थ वीरजिनालय, अहमदाबाद वही, भाग ३, लेखांक २३३४ आदिनाथ जिनालय, वही, भाग २, नागौर लेखांक १२६३ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४९१ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८७६ उपकेश गच्छ १८५ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । १२१. | १५१३ | वैशाख सुदि ३ गुरुवार १२२. १५१३ आषाढ़ सुदि २ लेख प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख अभिनन्दनस्वामी | जैन मन्दिर, मुनि कान्तिसागर, की प्रतिमा का घाटकोपर, मुम्बई पूर्वोक्त, लेखांक १४२ शीतलनाथ की महावीर जिनालय, विनयसागर, पञ्चतीर्थी प्रतिमा सांगानेर पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ५१५ कुंथुनाथ की धातु | चिन्तामणि जी मंदिर, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख बीकानेर लेखांक ९८० श्रेयांसनाथ की | चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | जैसलमेर भाग ३, लेखांक २३३५ १२३. |१५१३ | फाल्गुन वदि १२ १२४. | १५१४ | फाल्गुन सुदि १० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि उपकेश गच्छ १२५. | १५१४ | फाल्गुन सुदि १० सोमवार १२६. | १५१४ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख शांतिनाथ की | आदिनाथ जिनालय | नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | देवीकोट, जैसलमेर | भाग ३, लेखांक २५७७ कुंथुनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, धातु की प्रतिमा | जामनगर पूर्वोक्त, का लेख लेखांक २९५ नेमिनाथ की केशरियानाथ का विनयसागर, पञ्चतीर्थी प्रतिमा | मन्दिर, भिनाय । | पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ५३६ अजितनाथ की | जैन मन्दिर, नाहर, पूर्वोक्त, पञ्चतीर्थी प्रतिमा | जसोल, मारवाड़ | भाग २, का लेख लेखांक १८८३ १२७. | १५१५ | ज्येष्ठ सुदि ११ १२८. | १५१७ / माघ वदि ५ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १२९. १५१७ १३०. १५१७ १३१. ११७ १३२. १३३. १५१७ तिथि माघ वदि ६ माघ वदि ५ माघ सुदि ५ १५१८ ज्येष्ठ सुदि २ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख कुंथुनाथ की पञ्चतीर्थी प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभस्वामी की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पञ्चायती जैन मन्दिर, विनयसागर, जयपुर शान्तिनाथ जिनालय राधनपुर आदिनाथ की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर अजितनाथ की मनमोहन पार्श्वनाथ प्रतिमा का लेख जिनालय, खंभात संदर्भ ग्रन्थ वीर जिनालय, बीकानेर चिन्तामणिजी पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५७१ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ३०८ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १२४४ वही, लेखांक १००५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ७६५ १८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख शीतलनाथ की | चिन्तामणि नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख जिनालय, बीकानेर | लेखांक १०१३ उपकेश गच्छ १३४. | १५१८ | फाल्गुन वदि ७ शनिवार | १३५. | १५१९ । वैशाख वदि ११ शुक्रवार १३६. | १५२० / वैशाख सम्भवनाथ की | वीर जिनालय, प्रतिमा का लेख | पायधुनी, मुम्बई वदि ५ आदिनाथ की सुमतिनाथ मुख्य प्रतिमा का लेख | बावन जिनालय, मातर चन्द्रप्रभ की माणिकसागरजी पञ्चतीर्थी प्रतिमा | का मंदिर, कोटा का लेख मुनि कान्तिसागर, | पूर्वोक्त, लेखांक १६८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ४७५ | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६०४ १३७. | १५२० | वैशाख सुदि ५ बुधवार Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १३८. १५२० | मार्गशीर्ष आदिनाथ नाहर, पूर्वोक्त, वदि १२ | जिनालय, नागौर भाग २, लेखांक १२७१ १३९. |१५२१ | वैशाख ककुदाचार्यसन्तानीय | शान्तिनाथ की । | पञ्चायती जैन वही, भाग २, सुदि १० | सिद्धसूरि के पट्टधर | चौबीसी प्रतिमा | मन्दिर, लस्कर, लेखांक १३८१ कक्कसूरि का लेख ग्वालियर १४०. | १५२२ | पौष शीतलनाथ की वीर जिनालय, लोढ़ा, पूर्वोक्त, वदि १ धातु की प्रतिमा थराद लेखांक ४० गुरुवार का लेख १४१. | १५२२ | माघ ककुदाचार्यसंतानीय | अजितनाथ की शांतिनाथ जिनालय मुनि विशालविजय, कक्कसूरि धातु की प्रतिमा खजूरी शेरी, पूर्वोक्त, गुरुवार का लेख राधनपुर लेखांक २४४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सुदि २ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १४२. | १५२४ | वैशाख ककुदाचार्यसंतानीय | सुमतिनाथ की मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुञ्जयवैभव, सुदि ३ ___कक्कसूरि प्रतिमा का लेख | शत्रुञ्जय लेखांक १८१ सोमवार १४३. | १५२४ | वैशाख नमिनाथ की शांतिनाथ जिनालय | नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ६ प्रतिमा का लेख | (नाहटों में) बीकानेर लेखांक १८३६ गुरुवार १४४. | १५२४ मार्गशीर्ष अजितनाथ की शांतिनाथ जिनालय | विनयसागर, वदि ३ पंचतीर्थी प्रतिमा | चाडसू पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ६४७ १४५. | १५२४ | मार्गशीर्ष | ककुदाचार्यसंतानीय | कुन्थुनाथ की चिन्तामणि नाहर, पूर्वोक्त, वदि ४ | सिद्धसूरि के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | पार्श्वनाथ जिनालय, | भाग २, रविवार कक्कसूरि आगरा लेखांक १४४३ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १४६. |१५२४ मार्गशीर्ष ककुदाचार्यसंतानीय | चन्द्रप्रभ की धातु | संभवनाथ सुदि १० । कक्कसूरि की चौबीसी जिनालय, शुक्रवार प्रतिमा का लेख मुर्शिदाबाद १४७. |१५२४ ककुदाचार्यसंतानीय | शीतलनाथ की बड़ा जैन मंदिर, कक्कसूरि | पंचतीर्थी प्रतिमा | नागौर का लेख नाहर, पूर्वोक्त |भाग १, लेखांक ५० वही, भाग २, लेखांक १२७४ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६५० नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९९४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १४८. |१५२६ / वैशाख वदि ५ वासुपूज्य की जैन मंदिर, प्रतिमा का लेख | अलवर Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'ख/ / उपकेश गच्छ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १४९. | १५२६ | आषाढ सुविधिनाथ की | कुंथुनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि २ धातु की प्रतिमा | रांगड़ी चौक, लेखांक १६९१ का लेख बीकानेर १५०. | १५२६ | ,, संभवनाथ की चिन्तामणिजी का वही, प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक १०४७ १५१. | १५२७ / माघ शांतिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, सुदि ९ पंचतीर्थी प्रतिमा | सरदारशहर लेखांक २३८६ बुधवार का लेख १५२. | १५२८ | वैशाख ककुदाचार्यसंतानीय | संभवनाथ की धर्मनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि६ | देवगुप्तसूरि प्रतिमा का लेख | जोधपुर लेखांक ६२५ सोमवार १५३. १५२८ , नमिनाथ की वीर जिनालय, वही, भाग २, प्रतिमा का लेख | सुधिटोला, लखनऊ | लेखांक १५७१ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम स्तम्भलेख १५४. १५२९ फाल्गुन कुन्थुनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १ प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक १०६४ १५५. १५३० । वैशाख अभिनन्दनस्वामी | पार्श्वनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ की प्रतिमा माणेकचौक, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, का लेख लेखांक ९४० १५६. |१५३० | मार्गशीर्ष ककुदाचार्यसंतानीय | चन्द्रप्रभस्वामी की बड़ा जैन मंदिर, विनयसागर, वदि १२ । कक्कसूरि | पंचतीर्थी प्रतिमा | नागौर पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ६०७ १५७. १५३० माघ ककुदाचार्यसंतानीय | श्रेयांसनाथ की मनमोहनपार्श्वनाथ बुद्धिसागर, सुदि १२ | सिद्धसूरि पंचतीर्थी प्रतिमा | जिनालय, खजूरी पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार का लेख पाड़ो, पाटन लेखांक २५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास 4 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् १५८. १५९. १६०. १६१. तिथि १५३० फाल्गुन सुदि ६ १५३१ वैशाख सुदि ५ सोमवार वैशाख सुदि ५ १५३२ १५३२ | वैशाख सुदि ४ शनिवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि "" "" "> प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख "" आदिनाथ की प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान मणिकसागरजी का मंदिर, कोटा जैन मंदिर, नासिक संदर्भ ग्रन्थ महावीर जिनालय, सांगानेर विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७३० मुनि कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक २२० विमलनाथ जिनालय, विनयसागर, सवाई माधोपुर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७४६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १२२३ उपकेश गच्छ १९५ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १६२. १५३३ | पौष अरनाथ की चन्द्रप्रभजिनालय बुद्धिसागरसूरि, वदि १० प्रतिमा का लेख सुल्तानपुरा, बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार लेखांक २०२ १६३. |१५३४ | आषाढ़ पद्मप्रभ की पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १ प्रतिमा का लेख रेजीडेन्सी बाजार, भाग २, गुरुवार हैदराबाद सांगानेर २०५२ १६४. १५३४ मार्गशीर्ष ककुदाचार्यसंतानीय | कुन्थुनाथ की शान्तिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि६ ___ कक्कसूरि प्रतिमा का लेख हनुमानगढ, बीकानेर लेखांक २५३० सोमवार १६५. १५३४ मार्गशीर्ष देवगुप्तसूरि की आदिनाथ जिनालय, वही, वदि १२ प्रतिमा का लेख राजलदेसर लेखांक २३४१ १६६. |१५३४ | माघ ककुदाचार्यसंतानीय | संभवनाथ की चिन्तामणिजी वही, सुदि ९ | देवगुप्तसूरि प्रतिमा का लेख का मंदिर, बीकानेर | लेखांक १०८९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | उपकेश गच्छ १६७. | १५३४ | माघ सुदि ९ १६८. | १५३५ | आषाढ़ प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख वासुपूज्य की जैन मंदिर जिनविजय, प्रतिमा का लेख | पाटन पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३५७ पद्मप्रभ की आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | नागौर भाग २, लेखांक १२९२ श्रेयांसनाथ की | जैन मंदिर | बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख | गवाड़ा पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६५७ शीतलनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक १०९७ - १६९. | १५३५ | पौष वदि ९ शनिवार १७०. | १५३६ / मार्गशीर्ष सुदि ५ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् । तिथि । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १७१. |१५३७ / मार्गशीर्ष अजितनाथ की वीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ५ प्रतिमा का लेख |डीसा भाग २, लेखांक २१०५ १७२. १५३८ | फाल्गुन सुविधिनाथ की |सुपार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग ३, सुदि ३ प्रतिमा का लेख जैसलमेर लेखांक २२०१ १७३. | १५४२ ज्येष्ठ शांतिनाथ की हिम्मतराम बाफना |वही, सुदि ५ प्रतिमा का लेख का मंदिर, भाग ३, सोमवार अमरसागर, लेखांक २५३९ जैसलमेर १७४. १५४६ माघ अजितनाथ की सांवलियाजी का नाहर, पूर्वोक्त, वदि ४ प्रतिमा का लेख | मंदिर, रामबाग, भाग १, मुर्शिदाबाद लेखांक ३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् १७५. १७६. १७७. १७८. १५५० तिथि आषाढ़ वदि ८ शुक्रवार १५५० माघ वदि १२ शनिवार १५५५ ज्येष्ठ सुदि ५ बुधवार १५५.. पौष वदि ५ गुरुवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम " " ककुदाचार्यसंतानीय कक्कसूरि के शिष्य देवगुप्तसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख अरनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ शीतलनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, रिणी, तारानगर लेखांक २४४४ शांतिनाथ जिनालय, बीकानेर वीर जिनालय, बीकानेर वही, लेखांक १११७ वही, लेखांक १२५६ सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, जैसलमेर भाग ३, | लेखांक २२०४ उपकेश गच्छ १९९ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १७९. १८०. १८१. १८२. तिथि १५५८ वैशाख १५५८ सुदि ११ शुक्रवार सुदि ११ गुरुवार १५५९ वैशाख वदि ११ शुक्रवार १५५९ आषाढ़ सुदि १० बुधवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि ककुदाचार्यसंतानीय कक्कसूरि के शिष्य देवगुप्तसूरि ककुदाचार्यसंतानीय कक्कसूरि ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख " कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, सहादतगंज जैन मंदिर, अलवर मुनि कर्मचन्द्र हेमचन्द्रजी का मंदिर, पालिताना सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग २, लेखांक १६३४ वही, भाग १, लेखांक ९९७ वही, भाग १, लेखांक ६७२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १९८९ एवं विनय २०० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख उपकेश गच्छ सागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९०५ भाग १८३. | १५६२ वैशाख सुदि १० रविवार १८४. | १५६३ | माघ सुदि १ गुरुवार १८५. | १५६६ / ज्येष्ठ सुमतिनाथ की शीतलनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | माणिकतल्ला, कलकत्ता लेखांक १२८ पद्मप्रभ की नेमिनाथ जिनालय, वही, भाग १, प्रतिमा का लेख | अजीमगञ्ज, लेखांक २० मुर्शिदाबाद शांतिनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, विनयसागर, Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् तिथि प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख वदि १२ पंचतीर्थी प्रतिमा | मालपुरा पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ९२५ १८६. |१५६७ | वैशाख ककुदाचार्यसंतानीय | पार्श्वनाथ की नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० सिद्धसूरि पंचतीर्थी प्रतिमा | सोहावल, फैजाबाद |भाग २, बुधवार का लेख लेखांक १६५९ १८७ १५७१ | फाल्गुन ककुदाचार्यसंतानीय | मुनिसुव्रत की वीर जिनालय, वही, भाग २, | श्रीसिंहसूरि प्रतिमा का लेख सुधिटोला, लखनऊ लेखांक १५७४ शुक्रवार १८८. १५७२ | फाल्गुन ककुदाचार्यसंतानीय | आदिनाथ की खरतरगच्छीय विनयसागर, सुदि ९ देवगुप्तसूरि | पंचतीर्थी प्रतिमा आदि | पंचतीर्थी प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ९५३ १. १५७४ वैशाख ककुदाचार्यसंतानीय धर्मनाथ की | चिन्तामणि पार्श्वनाथ | नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कोटा Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् १९०. १९१ १९२. १९३. सुदि १० शुक्रवार वैशाख वदि १ रविवार १५७९ वैशाख सुदि ६ सोमवार १५७६ १५७९ तिथि १५८५ "" आषाढ आचार्य का नाम सिद्धसूरि ककुदाचार्यसंतानीय सिद्धसूरि के पट्टधर कक्कसूरि ककुदाचार्यसंतानीय सिद्धसूरि "" "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख धातु की चौबीसी जिनालय, आगरा प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख पद्मप्रभ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान आदिनाथ की वीर जिनालय, बीकानेर जगत सेठ का मंदिर महिमापुर, बंगाल जैन मंदिर, चाणस्मा संदर्भ ग्रन्थ भाग १, लेखांक १४५० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १२२९ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७४ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १ लेखांक १०८ वासुपूज्य जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, उपकेश गच्छ २०३ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ २०४ बिहार क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख सुदि ५ प्रतिमा का लेख | चम्पापुरीतीर्थ, सोमवार १९४. | १६३४ | माघ ककुदाचार्यसंतानीय | वासुपूज्य की जैन मंदिर, सुदि ९ देवगुप्तसूरि । प्रतिमा का लेख | जूना बेडा मारवाड़ | भाग १, लेखांक १५६ वही, भाग १, लेखांक ९२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २०५ उक्त प्रतिमा लेखों के आधार पर उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय मुनिजनों की आचार्य-परम्परा का एक क्रम सुनिश्चित होता है, जो इस प्रकार है - देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३१४-१३२३] सिद्धसूरि [वि०सं० १३४६-१३७३] कक्कसूरि [वि०सं० १३७८-१४१२] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १४२१-१४७६] सिद्धसूरि [वि०सं० १४७७-१४९८] कक्कसूरि [वि०सं० १४९९-१५१२] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १५२८-१५५७] सिद्धसूरि [वि०सं० १५६६-१५९६] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १६३४] ककुदाचार्यसन्तानीय आचार्यों की तालिका में उल्लिखित कक्कसूरि [वि०सं० १३७८-१४१२ प्रतिमालेख] और उनके गुरु सिद्धसूरि [वि०सं० Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १३४६-१३७३ प्रतिमालेख] को नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के कर्ता कक्कसूरि और उनके गुरु सिद्धसूरि से समसामयिकता के आधार पर अभिन्न मान सकते हैं । इसी प्रकार वि०सं० १३५२ में प्रतिलिपि कृत उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधावृत्ति में उल्लिखित सिद्धसूरि भी उपरोक्त सिद्धसूरि से अभिन्न प्रतीत होते हैं । इसी प्रकार ककुदाचार्य संतानीय देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३१४-१३२३ प्रतिमालेख] तथा उपकेशगच्छप्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के रचनाकार कक्कसूरि के प्रगुरु और सिद्धसूरि के गुरु देवगुप्तसूरि को एक ही आचार्य माना जा सकता है। ___ उपकेशगच्छीय मतिशेखर द्वारा रचित धन्नारास [रचनाकाल वि०सं० १५१४/ई० सन् १४५८] और वाचक विनयसमुद्र द्वारा रचित आरामशोभाचौपाई [वि०सं० १५८३/ई. सन् १५२७] की प्रशस्तियों में रचनाकार द्वारा जो गुरु-परम्परा दी गई है उसकी संगति भी ककुदाचार्य सन्तानीय गुरु-परम्परा से पूर्णतया बैठ जाती है। इनका विवरण इस प्रकार है धन्नारास - मरु-गुर्जर भाषा में रचित यह रचना उपकेशगच्छीय मुनि शीलसुन्दर के शिष्य मतिशेखर की अनुपम कृति है। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है। जो इस प्रकार है रत्नप्रभसूरि यक्षदेवसूरि देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २०७ कक्कसूरि शीलसुन्दर मतिशेखर [वि०सं० १५१४/ई. सन् १४५६ में धन्नारास के रचयिता] मतिशेखर द्वारा रचित अन्य रचनायें, यथा-मयणरेहारास, बावनी, नेमिनाथसतफुलडाफागु, कुरगडु (क्रूरघट) महर्षिरास, इलापुत्रचरित्र, नेमिगीत भी उपलब्ध हैं। आरामशोभाचौपाई मरु-गूर्जर भाषा में रचित यह कृति उपकेशगच्छीय हर्षसमुद्र के शिष्य वाचक विनयसमुद्र द्वारा वि० सं० १५८३ में रची गयी है।११ अद्यावधि इनकी २० रचनायें उपलब्ध हैं जो वि०सं० १५८३ से वि० सं० १६१४ के मध्य रची गयी हैं। आरामशोभाचौपाई की प्रशस्ति में रचनाकार की जो गुरु-परम्परा प्राप्त होती है, वह इस प्रकार है रत्नप्रभसूरि सिद्धसूरि हर्षसमुद्र विनयसमुद्र [वि०सं० १५८३/ई० सन् १५२६ आरामशोभाचौपाई के रचनाकार] मृगावतीचपाईर यह उपकेशगच्छीय वाचक विनयसमुद्र की दूसरी महत्त्वपूर्ण कृति है, जो वि०सं० १६०२/ई. सन् १५४६ में रची गयी हैं। इस Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास रचना की प्रशस्ति में भी वाचक विनयसमुद्र ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - रत्नप्रभसूरि सिद्धसूरि हर्षसमुद्र कक्कंसूरि विनयसमुद्र [वि०सं० १६०२/ई. सन् १५४६ में मृगावतीचौपाई के रचनाकार] उपकेशगच्छीय वाचक मतिशेखर द्वारा वि०सं० १५३७ में रचित मयणरेहारास की वि०सं० १५९१/ई. सन् १५३४ में लिखी गयी प्रतिलिपि की प्रशस्ति में उपकेशगच्छीय कक्कसूरि, उनके शिष्य उपा० रत्नसमुद्र और उनकी शिष्या साध्वी रङ्गलक्ष्मी का उल्लेख प्राप्त होता है। इस प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि मयणरेहारास की यह प्रतिलिपि साध्वी रङ्गलक्ष्मी के पठनार्थ लिखी गयी थी। उक्त साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसन्तानीय मुनिजनों के आचार्य परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है - द्रष्टव्य, तालिका संख्या २ : Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ तालिका-२ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय मुनिजनों की गुरु-परम्परा कक्कसूरि जिनचन्द्रगणि/कुलचन्द्रगणि अपरनाम देवगुप्तसूरि [वि०सं० १०७३/ई. सन् १०१७ में नवपदप्रकरण के रचयिता] [संभवतः तत्त्वार्थाधिगमसूत्र की ३१ उपोद्घात्कारिका के टीकाकार] कक्कसूरि [पंचप्रमाण के कर्ता] वि०सं० १०७८/ई सन् १०२२ प्रतिमालेख सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि [द्वितीय] सिद्धसूरि [वि०सं० ११९२/ई० सन् ११३६ में क्षेत्रसमासवृत्ति के कर्ता] [वि०सं० १२०३ प्रतिमालेख] यशोदेव उपाध्याय पूर्वनाम धनदेव वि०सं० ११६५/ई. सन् ११०९ में नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति एवं वि०सं० ११७८/ई. सन् ११२२ में चन्द्रप्रभचरित के कर्ता Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कक्कसूरि (चौलुक्यनरेश कुमारपाल [वि०सं० ११९९-१२३०] । के समकालीन) वि०सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३१४-२३] प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि०सं० १३४६-१३७३] प्रतिमालेख, । शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारक समरसिंह के गुरु; । वि०सं० १३५२ की उत्तराध्ययनसूत्रटीका में उल्लिखित कक्कसूरि [वि०सं० १३७६-१४१२] प्रतिमालेख; । वि०सं० १३९३/ ई० सन् १३३७ में नाभिनन्दन जिनोद्धारप्रबन्ध एवं उपकेशगच्छप्रबन्ध के रचयिता देवगुप्तसूरि [वि०सं० १४३२-१४७६] प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि०सं० १४७७-१४९८] प्रतिमालेख कक्कसूरि [वि०सं० १४९९-१५१२] प्रतिमालेख मुनि शीलसुन्दर देवगुप्तसूरि [वि०सं० १५२८-१५२७] प्रतिमालेख वाचक मतिशेखर सिद्धसूरि वि०सं० १५१४/ई. सन् [वि०सं० १५६६-१५९६] प्रतिमालेख १४५८ में धन्नारास एवं वि०सं० १५३७/ई. सन् १४७१ में मयणरेहारास के कर्ता Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ हर्षसमुद्र उपा० रत्नसमुद्र कक्कसूरि . [वि०सं० १६०२ में वाचक विनयसमुद्र साध्वी रंगलक्ष्मी रचित मृगावतीचौपाई [वि०सं० १५८३ में [वि०सं० १५९१ में में उल्लिखित आरामशोभाचौपाई] इनके पठनार्थ । एवं [वि०सं० १६०२ मयणरेहारास की में मृगावतीचौपाई] प्रतिलिपि की गयी] [वि०सं० १६३४ के कर्ता प्रतिमालेख] साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय आचार्य परम्परा की उक्त तालिका में वि० सं० की ग्यारहवीं शती के मध्य हुए कक्कसूरि से लेकर विक्रम की सत्रहवीं शती के बीच हुए देवगुप्तसूरि तक के आचार्य हैं । इस तालिका में चौलुक्यनरेश कुमारपाल (वि०सं० ११९९-१२३०) के समकालीन कक्कसूरि (वि० सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख) और ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि (वि०सं० १३१४-१३२३ प्रतिमालेख) के मध्य लगभग १०० वर्षों का अन्तराल है। इस बीच कौन-कौन से आचार्य हुए, इस बारे में ग्रन्थप्रशस्तियों तथा प्रतिमालेखों से कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती, किन्तु उपकेशगच्छपट्टावली (उपकेशगच्छप्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के आधार पर निर्मित) के विवरण के आधार पर इस अन्तराल को पूर्ण किया जा सकता है। उक्त पट्टावली के अनुसार कक्कसूरि (कुमारपाल के समकालीन) के पश्चात् देवगुप्तसूरि हुये५ । यद्यपि इस देवगुप्तसूरि का कोई प्रतिमालेख नहीं मिला है, तथापि वि० सं० १२४० के आस-पास उनका समय माना जा सकता है। पट्टावली के अनुसार देवगुप्तसूरि के पट्टधर सिद्धसूरि हुए।१६ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि०सं० १२६१ के प्रतिमालेख में उल्लिखित सिद्धसूरि संभवतः यही सिद्धसूरि हैं । पट्टावली में कहा गया है कि वि० सं० १२५२ में तुरुष्कों ने उपकेशपुर पर आक्रमण किया और यहाँ स्थित महावीर जिनालय को क्षतिग्रस्त कर दिया। गच्छनायक सिद्धसूरि इस समय पाटण में थे, बाद में वि० सं० १२५५ में उन्होंने इसका जीर्णोद्धार कराया। इसी पट्टावली के अनुसार सिद्धसूरि अपना पट्टधर नियुक्त करने के पूर्व ही स्वर्गस्थ हो गये, अतः श्रीसंघ ने वि०सं० १२७८ में उपाध्याय पदधारक मुनि वर्धमान को देवगुप्तसूरि के नाम से गच्छनायक बनाया।१९ उपकेशगच्छ की द्वितीय पट्टावली के अनुसार महावीर और पार्श्व; दोनों की वन्दना करने के कारण वि०सं० १२६६ में उपकेशगच्छ में सिद्धसूरि से द्विवंदनीकशाखा का उदय हुआ° रस-रस-दिनकर (१२६६) वर्षे, मासे मधुमाधवे च संज्ञायाम् । जाता द्विवंदनीकाः, श्रीमत्सिद्धसूरिवराः ॥ उक्त विवरण से यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि गच्छनायक गुरु द्वारा गच्छ की परम्परागत मान्यता के विपरीत नवीन मान्यता स्थापित करने के कारण गच्छ में मतभेद हो गया, जिससे सिद्धसूरि अपने जीवनकाल में अपना पट्टधर भी नियुक्त न कर सके, अन्त में श्रीसंघ ने गच्छ की प्राचीन मान्यताओं में श्रद्धा रखने वाले मुनिजनों की सम्मति से वि० सं० १२७८ में उपाध्याय वर्धमान को देवगुप्तसूरि के नाम से गच्छनायक के पद पर प्रतिष्ठित किया। प्रथम पट्टावली के अनुसार देवगुप्तसूरि का वि०सं० १३३० में ८४ वर्ष की आयु में निधन हुआ ।२१ अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि द्वारा वि०सं० १३१४-१३२३ में प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं, अतः समसामयिकता के आधार पर उक्त दोनों देवगुप्तसूरि एक ही आचार्य माने जा सकते हैं। ऐसा प्रतीत होता है Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २१३ कि देवगुप्तसूरि के समय से ही उपकेशगच्छ की इस प्राचीन शाखा के मुनिजन ककुदाचार्यसंतानीय कहे जाने लगे। इस प्रकार उपरोक्त तालिका के १०० वर्षों की आचार्य परम्परा का अन्तराल पूर्ण हो जाता है और उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय मुनिजनों के गुरु-परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार है, द्रष्टव्य-तालिका-३ । तालिका-३ कक्कसूरि जिनचन्द्रगणि कुलचन्द्रगणि अपरनाम [वि०सं० १०७३/ई० सन् देवगुप्तसूरि १०१७ में नवपदप्रकरण के रचनाकार] कक्कसूरि [पंचप्रमाण के कर्ता] । [वि०सं० १०७८/ई० सन् १०२२ । प्रतिमालेख] सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि [द्वितीय] सिद्धसूरि यशोदेव उपाध्याय पूर्वनाम धनदेव [वि०सं० ११९२/ई० सन् ११३६ में [वि०सं० ११६५/ई० सन् ११०९ में क्षेत्रसमासवृत्ति; [वि०सं० १२०३ नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति एवं प्रतिमालेख] वि०सं० ११७८/ई० सन् ११२२ में चन्द्रप्रभचरित के कर्ता] ककुदाचार्य/कक्कसूरि (चौलुक्यनरेश कुमारपाल Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि०सं० ११९९-१२३० के समकालीन) वि०सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि वीरदेव उपाध्याय |---द्विवंदणीकशाखा प्रारम्भ----- सिद्धसूरि [वि०सं० १२६१] प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि [पट्टावली के अनुसार वि०सं० १२७८ में पट्टधर बने, वि०सं० १३३० में मृत्यु; वि०सं० १३१४| १३२३ प्रतिमालेख] सिद्धसूरि [वि०सं० १३४६-१३७३] प्रतिमालेख; शत्रुञ्जय तीर्थोद्धारक समरसिंह के गुरु कक्कसूरि [वि०सं० १३७६-१४१२] । प्रतिमालेख;वि०सं०१३९३ में नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबंध एवं उपकेशगच्छ प्रबंध के कर्ता] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १४३२-१४७६] । प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि०सं० १४७७-१४९८] प्रतिमालेख +---ककुदाचार्यसंतानीयशाखा प्रारम्भ---- Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २१५ कक्कसूरि [वि०सं० १४९९-१५१२] । प्रतिमालेख मुनि शीलसुन्दर देवगुप्तसूरि [वि०सं०१५२८-१५५७] वाचक मतिशेखर प्रतिमालेख वि०सं० १५१४ में धन्नारास एवं वि०सं० १५३७ में मयणरेहारास के कर्ता सिद्धसूरि [वि०सं०१५६६-१५९६] प्रतिमालेख हर्षसमुद्र उपा. रत्नसमुद्र कक्कसूरि [वि०सं० १६०२ में वाचक विनयसमुद्र साध्वी रंगलक्ष्मी रचित मृगावतीचौपाई [वि०सं० १५८३ में [वि०सं० १५९१ में में उल्लिखित आरामशोभाचौपाई] इनके पठनार्थ । एवं [वि०सं० १६०२ मयणरेहारास की देवगुप्तसूरि में मृगावतीचौपाई] प्रतिलिपि की गयी] [वि०सं० १६३४ के रचनाकार प्रतिमालेख] उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण इस प्रकार है - Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख १. १३१५ | वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | सिद्धसूरि की । | पल्लविया पार्श्वनाथ जिनविजय, (?) | गुरुवार कक्कसूरि प्रतिमा का लेख | जिनालय, पालनपुर | पूर्वोक्त, भाग २, वदि ७ लेखांक ५५३ २. १३३७ माघ पार्श्वनाथ की चिन्तामणि । नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ७ प्रतिमा का लेख जिनालय, बीकानेर लेखांक १८९ ३. | १३४४ | कार्तिक | सिद्धाचार्यसंतानीय | महावीर की पार्श्वनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि १० श्री..... प्रतिमा का लेख हरसूली पूर्वोक्त-भाग १, लेखांक ९४ . ४. | १३४७ | वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | पार्श्वनाथ की जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १५ / देवगुप्तसूरि । प्रतिमा का लेख जूनाबेडा, मारवाड़ भाग १, रविवार लेखांक ९२१ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ५. |१३९३ | ज्येष्ठ चन्द्रप्रभ जिनालय विनयसागर, सुदि १ कोटा पूर्वोक्त, भाग १ शुक्रवार लेखांक १३७ ६. १४३२ | फाल्गुन | सिद्धाचार्यसंतानीय | महावीर की चिन्तामणिजी नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ सिद्धसूरि प्रतिमा का लेख का मंदिर लेखांक५०२ शुक्रवार बीकानेर ७. १४४० | पौष वासुपूज्य की सुदि १२ प्रतिमा का लेख लेखांक ५४१ बुधवार ८. १४६६ | वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | मुनिसुव्रत की वही, सुदि ३ कक्कसूरि प्रतिमा का लेख लेखांक ६२६ शनिवार वही, Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम स्तम्भलेख ९. | १४७० | ज्येष्ठ | सिद्धाचार्यसंतानीय | आदिनाथ की | वीर जिनालय, वही, सुदि ४ | देवगुप्तसूरि धातु की प्रतिमा | बीकानेर लेखांक १३४६ बुधवार का लेख १०. | १४७३ / फाल्गुन | सिद्धाचार्यसंतानीय | अनन्तनाथ की वही, सुदि १५ सिद्धसूरि सपरिकर प्रतिमा लेखांक १३६४ सोमवार का लेख ११. | १४८४ | वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | वासपूज्य की शीतलनाय नाहर, पूर्वोक्त, वदि १२ देवगुप्तसूरि प्रतिमा का लेख | जिनालय, उदयपुर | भाग २, रविवार लेखांक १०७२ १२. | १४८६ / वैशाख विमलनाथ की अनुपूर्ति लेख, मुनि जयन्तविजय, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | आबू संपा० अर्बुदप्राचीन गुरुवार जैनलेखसंदोह जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख (आबू, भाग २) लेखांक ६२२ १३. १४८६ | कातिक सुमतिनाथ पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ११ की प्रतिमा का देलवाडा, मेवाड़ भाग २, सोमवार लेख लेखांक १९८२ १४. १४९७ | आषाढ़ नमिनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, वही, भाग १, वदि ८ प्रतिमा का लेख | राजगृह लेखांक २३८ रविवार १५. १५०२ / वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | शीतलनाथ की संभवनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ४ | कक्कसूरि प्रतिमा का लेख झवेरीवाड़, पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार अहमदाबाद लेखांक ८३२ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् १६. १५०२ १७. १८. १९. तिथि माघ सुदि ३ शुक्रवार १५०३ | ज्येष्ठ सुदि ११ शुक्रवार १५०३ | माघ सुदि ३ शुक्रवार १५०४ | ज्येष्ठ वदि ११ मंगलवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" "" सिद्धाचार्यसंतानीय कक्कसूरिके पट्टधर देवगुप्तसूरि सिद्धाचार्य संतानीय देवगुप्तसूर प्रतिमालेख / स्तम्भलेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख नमिनाथ की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान बावन जिनालय, पेथापुर चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग १, लेखांक ६८५ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८७० अजितनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, शेखनो पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०६५ अहमदाबाद चौमुखजी देरासर, वही, भाग १, वडनगर लेखांक ५६३ २२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख २०. |१५०४ | फाल्गुन | सिद्धाचार्यसंतानीय | पद्मप्रभ की | मुनिसुव्रत जिनालय, वही, भाग २, सुदि १३ | भट्टारक कक्कसूरि | प्रतिमा का लेख खारवाडो, खंभात लेखांक १०२४ शनिवार २१. |१५०५ | माघ । सिद्धाचार्यसंतानीय शांतिनाथ की पार्श्वनाथ के मंदिर बुद्धिसागरसूरि, वदि६ कक्कसूरि प्रतिमा का लेख के तलघर की पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार प्रतिमा, अहमदाबाद | लेखांक ९०१ २२. |१५०६ | चैत्र... विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग १, गुरुवार प्रतिमा का लेख शांतिनाथ पोल, लेखांक १३०५ अहमदाबाद २३. |१५०६ | वैशाख सुमतिनाथ की गौड़ी पार्श्वनाथ शत्रुञ्जयवैभव, वदि प्रतिमा का लेख | जिनालय, पालिताना लेखांक १०९ गुरुवार Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भ ग्रन्थ आबू, भाग २, लेखांक ६३८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान आचार्य का नाम | स्तम्भलेख २४. | १५०७ | फाल्गुन अजितनाथ की अनुपूति लेख, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | आबू शुक्रवार २५. | १५०७ | ज्येष्ठ सिद्धाचार्यसंतानीय | संभवनाथ की वीर जिनालय, सुदि ५ | देवगुप्तसूरि एवं प्रतिमा का लेख पायधुनी, मुम्बई कक्कसूरि २६. | १५०७ | कार्तिक | सिद्धाचार्यसंतानीय बड़ा जैन मंदिर, सुदि ११ कक्कसूरि शुक्रवार २७. १५०८ | | वैशाख सुमतिनाथ की | जैनमंदिर, वदि ९ प्रतिमा का लेख | बडावली शनिवार मुनि कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक १०७ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४१७ वही, भाग १, लेखांक ९६ नागौर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख २८. १५०८ | वैशाख शीतलनाथ की | चिन्तामणि नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | जिनालय, बीकानेर लेखांक ९२५ सोमवार २९. |१५०९ | आषाढ़ श्रेयांसनाथ की नेमिनाथ जिनालय, विनयसागर, वदि २ पञ्चतीर्थी प्रतिमा टोडारायसिंहपूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक ४३९ ३०. १५१० | चैत्र सुमतिनाथ | पार्श्वनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि १० की प्रतिमा अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार का लेख लेखांक ८५८ ३१. १५११ | माघ आदिनाथ की . शांतिनाथ देरासर, वही, सुदि ८ प्रतिमा का लेख | अहमदाबाद | भाग १, बुधवार लेखांक १२३९ - Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् । तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम स्तम्भलेख ३२. | १५११ | वैशाख अजितनाथ की शांतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ११ प्रतिमा का लेख | लखनऊ भाग २, शुक्रवार लेखांक १५०४ ३३. | १५१२ | फाल्गुन संभवनाथ की | धर्मनाथ जिनालय, | वही, भाग १, सुदि १२ प्रतिमा का लेख | जोधपुर लेखांक ६२३ ३४. | १५१२ | ,, नमिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ९६० ३५. | १५१५ | मार्गशीर्ष सिद्धाचार्यसंतानीय | चन्द्रप्रभ की चौमुख शांतिनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि १० सिद्धसूरि प्रतिमा का लेख | देरासर, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १ गुरुवार लेखांक ८९० ३६. | १५१९ | ज्येष्ठ । शीतलनाथ की | बावन जिनालय, वही, भाग १, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | पेथापुर लेखांक ६८० सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि उपकेश गच्छ ३७. १५१९ । आषाढ़ वदि ५ । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख | अभिनन्दनस्वामी चिन्तामणि जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, की प्रतिमा बीकानेर लेखांक १०१७ का लेख | सिद्धाचार्यसंतानीय | कुंथुनाथ की अजितनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, देवगुप्तसूरि प्रतिमा का लेख शेखनो पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, अहमदाबाद लेखांक १०९४ - ३८. १५१९ । माघ वदि ५ बुधवार ३९. १५२१ | वैशाख जैन मंदिर, वही, भाग १, लेखांक ७७० वदि २ ४०. रविवार १५२१ आषाढ़ सुदि ९ सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख राजलदेसर लेखांक २३३९ गुरुवार Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुदि ९ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ४१. | १५२१ | आषाढ़ | सिद्धाचार्यसंतानीय | विमलनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, | वही, | देवगुप्तसूरि । प्रतिमा का लेख | (कोचरों में) । लेखांक १६०३ गुरुवार बीकानेर ४२. | १५२५ / ज्येष्ठ | सिद्धाचार्यसंतानीय | बासुपूज्य की संभवनाथ जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, वदि १ सिद्धसूरि धातु की प्रतिमा । मुर्शिदाबाद लेखांक ५१ शुक्रवार का लेख ४३. | १५२५ | फाल्गुन विमलनाथ की जैनमंदिर, शत्रुञ्जयवैभव, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | जसकौर धर्मशाला, लेखांक १८५ सोमवार पालिताना ४४. | १५२७ | आषाढ़ संभवनाथ की वीरजिनालय, | मुनि विशालविजय सुदि २ धातु की पञ्चतीर्थी तंबोली शेरी, पूर्वोक्त, गुरुवार प्रतिमा का लेख | राधनपुर लेखांक २५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ४५. १५२७ । पौष सिद्धाचार्यसंतानीय | कुन्थुनाथ की सुमतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ | देवगुप्तसूरि के प्रतिमा का लेख | नागौर भाग २, शुक्रवार | पट्टधर सिद्धसूरि लेखांक १३२ ४६. १५२७ कुन्थुनाथ की कुन्थुनाथ जिनालय, विनयसागर, पञ्चतीर्थी प्रतिमा | गोगोलाब पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ६९३ ४७. १५२७ । चौसठिया जी वही, भाग १, का मन्दिर, नागौर लेखांक ६९४ ४८. १५२८ | चैत्र विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, कान्तिसागर, वदि ५ प्रतिमा का लेख | भिण्डी बाजार, पूर्वोक्त, रविवार मुम्बई लेखांक २०६ २२७ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ४९. | १५३२ चैत्र | सिद्धाचार्यसंतानीय | धर्मनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ४ । सिद्धसूरि प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक १०७१ शनिवार ५०. | १५३३ | आषाढ | सिद्धाचार्यसंतानीय | शांतिनाथ की जगवल्लभ पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि सुदि २ देवप्रभसूरि प्रतिमा का लेख | देरासर, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक १२०५ ५१. | १५३४ | फाल्गुन सिद्धाचार्यसंतानीय | सुविधिनाथ की | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि३ सिद्धसूरि प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक १०९० शुक्रवार ५२. | १५३७ | पौष | सिद्धाचार्यसंतानीय | श्रेयांसनाथ की सामला पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, वदि १० कक्कसूरि चौबीसी प्रतिमा | जिनालय, डभोई पूर्वोक्त, भाग १, बुधवार का लेख लेखांक ३२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ (?) क्रमाङ्क संवत् । तिथि । प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ५३. १५३ | ज्येष्ठ नमिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ११ प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ११०५ शुक्रवार ५४. १५४० | वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | मुनिसुव्रत की मुनिसुव्रत जिनालय, विनयसागर, सुदि १० भट्टारक पञ्चतीर्थी प्रतिमा सैलाना पूर्वोक्त, भाग १, बुधवार | धर्मसुन्दरसूरि एवं | का लेख लेखांक ८२२ सिद्धसरि ५५. १५४९ / ज्येष्ठ सिद्धाचार्यसंतानीय | आदिनाथ की | आदिनाथ जिनालय, वही, भाग १, वदि १० | धर्मसुन्दरसूरि के पञ्चतीर्थी प्रतिमा बीबड़ोद, लेखांक ८५४ शुक्रवार | पट्टधर कक्कसूरि | का लेख मध्यप्रदेश Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय शाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की तालिका कक्कसूरि [वि०सं० १३१५-१३४५] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३४७] सिद्धसूरि [वि०सं० १३८५] देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि [वि०सं० १३८९-१४२७] [वि०सं० १४३२-१४४५] कक्कसूरि [वि०सं० १४६६-१४७१] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १४७१-१४९९] सिद्धसूरि [वि०सं० १४७३] कक्कसूरि वि०सं० १५०२-१५१२] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १५०३-१५२१] Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ सिद्धसूरि [वि०सं० १५१५-१५४०] कक्कसूरि [वि०सं० १५३७-१५४९] __ अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर सिद्धाचार्यसंतानीय मुनिजनों की तालिका ऊपर प्रदर्शित की गयी है । साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा भी उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय कुछ मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, इनका विवरण इस प्रकार हैउत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रतिलेखन प्रशस्ति उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि के शिष्य विनयप्रभ उपाध्याय ने वि० सं० १४७९ में अपने गुरु की आज्ञा से स्वपठनार्थ वडगच्छीय आचार्य नेमिचन्द्रसूरि की प्रसिद्ध कृति उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि करायी ।२२ इसके अन्त में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है सिद्धाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि विनयप्रभ उपाध्याय [वि०सं० १४७९/ई. सन् १४२३] में इनके पठनार्थ उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि की गयी] यद्यपि इस प्रशस्ति से उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय दो मुनिजनों के नाम ही ज्ञात होते हैं, फिर भी उपकेशगच्छ की उक्त शाखा के इतिहास की दृष्टि से यह प्रशस्ति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अजापुत्रचौपाई२३ - यह उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय मुनि धर्मरुचि द्वारा मरु-गूर्जर भाषा में वि०सं० १५६१ में रची गयी है। रचना के अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सिद्धसूरि कक्कसूरि देवगुप्तसूरि सिद्धाचार्यसंतानीय कक्कसूरि धर्महंस धर्मरुचि [वि०सं० १५६१/ई.सन् १५०५ में अजापुत्रचौपाई के रचनाकार] साहित्यक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय शाखा के मुनिजनों के गुरु-परंपरा की तालिका तालिका ४ कक्कसूरि [वि०सं० १३१५-१३४५] | प्रतिमालेख Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २३३ देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३४७] प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि०सं० १३८५]प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३८९-१४२७] प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि०सं० १४३२-१४४५] प्रतिमालेख कक्कसूरि [वि०सं० १४६६-१४७१] प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि [वि०सं० १४७१-१४९९] प्रतिमालेख विनयप्रभ उपाध्याय सिद्धसूरि [वि०सं० १४७९/ई. सन् [वि०सं० १४७३] प्रतिमालेख १४२३ की उत्तराध्यनसुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि में कक्कसूरि उल्लिखित] [वि०सं० १५०२-१५०८] प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि [वि०सं० १५०३-१५०७] प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि०सं० १५२५-१५४०] प्रतिमालेख Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कक्कसूरि [वि०सं० १५३७-१५४९] प्रतिमालेख धर्महंस धर्मरुचि [वि०सं० १५६१/ई. सन् १५०५ में अजापुत्रचौपाई के रचनाकार] | उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय शाखा के आचार्यों की परम्परा की पूर्वोक्त तालिका संख्या ४ को अविभाजित उपकेशगच्छ की पूर्व प्रदर्शित तालिका-१ से समायोजिता तो किया जा सकता है, किन्तु दोनों के मध्य लंगभग १०० वर्षों का जो अन्तराल है, उसे पूरा करने में साहित्यक और अभिलेखीये साक्ष्यों से कोई सहायता प्राप्त नहीं होती । उक्त दोनों तालिकाओं के समायोजन से गुरु-शिष्य परम्परा की जो नवीन तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार हैद्रष्टव्य-तालिका ५ तालिका ५ कक्कसूरि जिनचन्द्रगणि/कुलचन्द्रगणि अपरनाम देवगुप्तसूरि [वि०सं० १०७३/ई. सन् १०१७ में नवपदप्रकरणवृत्ति के रचनाकार] [तत्वार्थाधिगमसूत्र की ३१ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २३५ उपोद्घातकारिकाओं के टीकाकार ?] कक्कसूरि [जिनचैत्यवंदनविधि एवं | पंचप्रमाण के रचयिता] । [वि०सं० १०७८ प्रतिमालेख] सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि [वि०सं० ११९२/ई. सन् ११३६ में क्षेत्रसमासवृत्ति के रचयिता] [वि०सं० १२०३ प्रतिमालेख] यशोदेव उपाध्याय पूर्वनाम धनदेव [वि०सं० ११६५/ई. सन् ११०९ में नवपदप्ररणबृहद्वृत्ति एवं वि०सं० ११७८/ई. सन् ११२१ में चन्द्रप्रभचरित के रचयिता] कक्कसूरि [चौलुक्यनरेश कुमारपाल वि०सं० ११९९-१२३०] के समकालीन [वि०सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख] कक्कसूरि [वि०सं० १३१५-१३४५] प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३४७] प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि०सं० १३८५] प्रतिमालेख Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ शाखा प्रारम्भ सिद्धाचार्य संतानीय - देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३८९ - १४२७] प्रतिमालेख 1 सिद्धसूरि 1 [वि०सं० १४३२ - १४४५ ] प्रतिमालेख कक्कसूरि [वि० सं० १४६६ - १४७१] प्रतिमालेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास I देवगुप्तसूरि [वि० सं० १४७१ - १४९९] प्रतिमालेख विनयप्रभ उपाध्याय [वि० सं० १४७९ / ई० सन् १४२३ की उत्तराध्यनसूत्र की सुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि में उल्लिखित ] सिद्धसूरि [वि० सं० १४७३] प्रतिमालेख I कक्कसूरि [वि० सं० १५०२ - १५०८] प्रतिमालेख | देवगुप्तसूरि [वि० सं० १५०३ - १५०७] 1 सिद्धसूरि [वि० सं० १५२५ - १५४०] कक्कसूरि [वि० सं० १५३७ - १५४९] | Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २३७ धर्महंस धर्मरुचि [वि०सं० १५६१/ई. सन् १५०५ में ___ अजापुत्रचौपाई के रचनाकार] साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छ की उक्त शाखाओं (ककुदाचार्यसंतानीय और सिद्धाचार्यसंतानीय) के अतिरिक्त इस गच्छ की एक अन्य शाखा द्विवंदणीकगच्छ या विवंदणीकगच्छ का भी पता चलता है। उपकेशगच्छपट्टावली के अनुसार वि० सं० १२६६ (ई० सन् १२१०)में सिद्धसूरि द्वारा आगमिकगच्छ की सामाचारी और सूरिमंत्र अपनाने के कारण इस शाखा का जन्म हुआ। संभवतः पार्श्व और महावीर दोनों की वन्दना करने के कारण ये द्विवंदणीक कहलाये । इस शाखा की कोई पट्टावली नहीं मिलती है । इस शाखा से सम्बद्ध वि० सं० १३३४ से १५९९ तक के प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं। इस शाखा के १६वीं शती के कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य को सिद्धाचार्यसंतानीय कहा गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि उपकेशगच्छ की द्विवंदणीकशाखा और सिद्धाचार्य संतानीयशाखा का निकट सम्बन्ध रहा है । इस शाखा के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण इस प्रकार है Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ | उपकेशगच्छ (द्विवंदणीक/विवंदणीक शाखा) से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण क्रमाङ्क | संवत् | तिथि प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १. १३३४ | ज्येष्ठ सिद्धसूरि श्रेयांसनाथ की | अजितनाथ जिनालय बुद्धिसागरसूरि, वदि २ प्रतिमा का लेख | विरमगाम पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेखांक १५११ २. १४४७ फाल्गुन रत्नप्रभसूरि | अजितनाथ की चौसठियाजी का विनयसागर, सुदि ८ पंचतीर्थी प्रतिमा | मंदिर, नागौर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार का लेख लेखांक १७३ ३. १४७९ / पौष देवगुप्तसूरि | जिनप्रतिमा जैन देरासर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ बनवाने का उल्लेख सौदागर पोल, पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार अहमदाबाद लेखांक ७९६ ४. १५०३ | माघ | श्री ... सेनसूरि | शीतलनाथ की चिन्तामणिपार्श्वनाथ | विनयसागर, सुदि ७ पंचतीर्थी प्रतिमा | देरासर, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, बुधवार का लेख लेखांक ३७२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख देवगुप्तसूरि | शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख उपकेश गच्छ ५. जैनमंदिर, कोबा १५०८ | वैशाख सुदि ५ शनिवार १५१२ मार्गशीर्ष वदि २ ६. सिद्धसूरि | कुन्थुनाथ की धातु गौड़ीजी भंडार, की प्रतिमा | उदयपुर का लेख शांतिनाथ की पार्श्वनाथ देरासर, प्रतिमा का लेख | पाटण बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७६८ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक २७४ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २३५ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ३१२ ७. १५१७ | वैशाख सुदि ३ सोमवार ८. १५१७, पार्श्वनाथ की जैन मंदिर, प्रतिमा का लेख वढवाण Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | संदर्भ ग्रन्थ २४० ९. |१५१७ | पौष वदि ८ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान आचार्य का नाम | | स्तम्भलेख शीतलनाथ की देरी नं. ६१३/ पंचतीर्थी प्रतिमा | ९।९ शत्रुञ्जय का लेख रविवार १०. | १५२१ | वैशाख सुदि ३ गुरुवार ११. |१५२१ देवगुप्तसूरि के पट्टधर सिद्धसूरि विमलनाथ की | जैनमंदिर, प्रतिमा का लेख चाणस्मा शत्रुञ्जयगिरिराजदर्शन, लेखांक २७४ एवं शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक १५५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०२ वही, भाग १, लेखांक १११ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १२. १३. १४. १५२१ तिथि माघ वदि ५ गुरुवार १५२२ पौष सुदि १२ सोमवार १५२४ वैशाख सुदि ३ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" "" श्री ....? प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नमिनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैन मंदिर, ऊझा सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग १, लेखांक १८८ वही, भाग २, लेखांक ४९२ एवं जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ४९२ मुनिसुव्रत जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, भरुच पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३५० उपकेश गच्छ २४१ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्पष्ट क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १५. | १५२५ / चैत्र सुविधिनाथ की | गौड़ीपार्श्वनाथ विनयसागर, वदि ९ चौबीसी प्रतिमा | जिनालय, अजमेर | पूर्वोक्त, भाग १ शनिवार का लेख लेखांक ६२५ १६. १५३१ | माघ सिद्धसूरि श्रेयांसनाथ की सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागरसूरि, वदि ८ प्रतिमा का लेख बावन जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार लेखांक ५०९ १७. | १५३३ | वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | वासुपूज्य की सीमंधर स्वामी वही, भाग १, सुदि ३ सिद्धसूरि प्रतिमा का लेख का मंदिर, लेखांक ११७३ बुधवार अहमदाबाद १८. १५४७ / वैशाख सिद्धसूरि नमिनाथ की | बालावसही, शत्रुञ्जयवैभव, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | शत्रुञ्जय लेखांक २३७ सोमवार मातर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १९. १५४७ शांतिनाथ की वही, लेखांक २३८ प्रतिमा का लेख २०. १५५२ वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | मुनिसुव्रत की । जैन मंदिर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ | कक्कसूरि चौबीसी प्रतिमा | ऊझा पूर्वोक्त, भाग१, शनिवार का लेख लेखांक १५७ ११. १५५३ / माघ सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, कान्तिसागर, सुदि६ प्रतिमा का लेख | भायखला, मुम्बई पूर्वोक्त, सोमवार लेखांक २६६ २२. १५६० / वैशाख कक्कसूरि । कुन्थुनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, | सुदि ३ प्रतिमा का लेख | भिंडी बाजार मुंबई लेखांक २७३ २३. १५६० । चिन्तामणिपार्श्वनाथ बुद्धिसागर, जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, जीरारपाडो, खंभात लेखांक ७२५ " EXC Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख २४. | १५६१ / ज्येष्ठ सुविधिनाथ की सुमतिनाथ चौमुख वही, भाग २, सुदि २ प्रतिमा का लेख | जिनालय, लेखांक ६९१ बुधवार चेला पोल, खंभात २५. १५६६ | माघ सिद्धसूरि चन्द्रप्रभ की | बालावसही, शत्रुञ्जयवैभव, वदि ६ ___के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | शत्रुञ्जय लेखांक २६३ कक्कसूरि २६. | १५६७ | वैशाख | सिद्धाचार्यसंतानीय | वासुपूज्य की पार्श्वनाथ जिनालय |बुद्धिसागर, सुदि १० देवगुप्तसूरि प्रतिमा का लेख माणेक चौक, पूर्वोक्त, भाग २, खंभात लेखांक ९६८ २७. १५७० | कार्तिक श्रेयांसनाथ की पार्श्वनाथ देरासर, वही, भाग १, वदि ५ प्रतिमा का लेख | अहमदाबाद लेखांक १०७८ गुरुवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः |संवत् २८. २९. ३०. ३१. तिथि १५७५ माघ वदि २ सोमवार १५८३ | वैशाख सुदि ३ १५८९ वैशाख सुदि १२ सोमवार १५९९ | ज्येष्ठ वदि २ रविवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम सिद्धाचार्यसंतानीय ....? देवगुप्तसूरि सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख भट्टारक कक्कसूरि संभवनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख सिद्धाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, कान्तिसागर, भिंडी बाजार, मुंबई बालावसही, शत्रुञ्जय चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, जीरारपाडो, खंभात संदर्भ ग्रन्थ धर्मनाथ जिनालय, उपलो गभारो, अहमदाबाद पूर्वोक्त, लेखांक २८७ शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक २७८ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ७२१ वही, भाग १, लेखांक १११५ उपकेश गच्छ २४५ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त प्रतिमालेखों के आधार पर द्विवंदणीकशाखा के मुनिजनों के गुरु- परम्परा की एक तालिका बनती है, जो इस प्रकार है - सिद्धसूरि [वि० सं० १३३४] २४६ रत्नप्रभसूरि [वि० सं० १४७९ - १५०८] [वि० सं० १५१२ - १५४७] [वि० सं० १५५२ - १५८९] [वि.सं. १५६७ - १५९९] देवगुप्तसूरि विवंदणीक / द्विवंदणीकगच्छीय कक्कसूरि के प्रशिष्य एवं देवगुप्तसूरि के शिष्य सिंहकुल ने वि० सं० १४८५ (एक अन्य प्रति में वि० सं० १५५०) में मुनिपतिचरित्र की रचना की । २५ अभिलेखीयसाक्ष्यों के आधार पर निर्मित द्विवंदणीकशाखा के मुनिजनों की उक्त तालिका में देवगुप्तसूरि नामक दो आचार्यों का उल्लेख है । मुनिपतिचरित्र की दो हस्तप्रतियों में भी इसके रचनाकाल की दो तिथियां वि० सं० १४८५ और वि० सं० १५५० दी गयी हैं। अब हमारे सामने यह प्रश्न उठता है कि रचनाकार सिंहकुल किस देवगुप्तसूरि के शिष्य थे और मुनिपतिचरित्र के रचनाकाल की कौन सी तिथि सत्य है ? देवगुप्तसूरि 1 सिद्धसूरि [वि०सं० १४४७] 1 कक्कसूरि Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २४७ ___ जहां तक द्विवंदणीकगच्छीय प्रथम देवगुप्तसूरि का सम्बन्ध है, चूंकि उनके द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें वि०सं० १४७९ से १५०८ तक की हैं और मुनिपतिचरित्र की एक प्रति में इस कृति का रचनाकाल वि०सं० १४८५ दिया गया है, अत: समसामयिकता के आधार पर मुनिपतिचरित्र के कर्ता द्विवंदणीकगच्छीय सिंहकुल द्विवंदणीकगच्छीय देवगुप्तसूरि 'प्रथम' (वि०सं० १४७९-१५०८) के ही शिष्य कहे जा सकते है और यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि मुनिपतिचरित्र की द्वितीय प्रति में उल्लिखित रचनाकाल वि० सं० १५५० अवश्य ही भ्रामक है और यह लिपिकार की भूल का परिणाम है। विक्रम की १६वीं शती के पश्चात् उपकेशगच्छ की ककुदाचार्यसंतानीय तथा द्विवंदणीकगच्छ आदि शाखाओं से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों का नितान्त अभाव है, अतः यह कहा जा सकता है कि इस समय (१६वीं शती के पश्चात्) तक उपकेशगच्छ की उक्त शाखाओं का अस्तित्व समाप्त हो गया था । उपकेशगच्छ की जो शाखा २०वीं शती तक अस्तित्व में रही, वह निश्चय ही इन शाखाओं से भिन्न रही है। सिद्धाचार्यसंतानीय मुनिजनों की परम्परा आगे चलकर १६वीं शती में संभवतः अपना प्रभाव कम होने पर द्विवंदणीकगच्छ [उपकेशगच्छ की एक शाखा, जिसका वि० सं० १२६६ में आविर्भाव हुआ] में सम्मिलित हो गयी प्रतीत होती है, क्योंकि १६वीं शती के कई प्रतिमालेखों में आचार्य के नाम के साथ द्विवंदणीकगच्छीयसिद्धाचार्यसंतानीय यह विशेषण जुड़ा हुआ मिलता है। एक संभावना यह भी है कि सिद्धसूरि, जिनसे वि० सं० १२६६/ ई० सन् १२१० में द्विवंदणीकशाखा का उदय हुआ, की शिष्य सन्तति अपने गुरु के नाम पर सिद्धाचार्यसंतानीय एवं पार्श्वनाथ तथा महावीर - दोनों की वन्दना करने के कारण द्विवंदनीक कहलायी । संभवतः यही कारण है कि उपकेशगच्छ की इस शाखा के प्रतिमा लेखों में कहीं द्विवंदणीकगच्छ और Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कहीं सिद्धाचार्यसंतानीय तथा किन्ही-किन्ही लेखों में दोनो विशेषणों का साथ-साथ प्रयोग मिलता है। उपकेशगच्छ से सम्बद्ध ऐसे भी अनेक प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं जिनमें प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य न तो ककुदाचार्यसंतानीय बतलाये गये हैं और न ही सिद्धाचार्यसंतानीय । इससे यह स्पष्ट होता है कि उक्त शाखाओं (सिद्धाचार्यसंतानीय, ककुदाचार्यसंतानीय तथा द्विवंदणीक शाखा) से भिन्न इन मुनिजनों की परम्परा का अपना स्वतंत्र अस्तित्व था । इस श्रेणी के अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण इस प्रकार है Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ उपकेशगच्छीय आचार्यों / मुनिजनों / यतियों से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण क्रमाङ्क | संवत् | तिथि प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १. १३१४ | फाल्गुन देवगुप्तसूरि । नेमिनाथ की | चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर | भाग ३, शुक्रवार लेखांक २२२६ . |१३२३ | माघ पार्श्वनाथ की धातु | पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, सुदि ६ की प्रतिमा का लेख | पाटण भाग १, लेखांक २३७ ३. |१३२५ फाल्गुन कक्कसूरि शीतलनाथ | नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ४ जिनालय, उदयपुर | भाग २, शुक्रवार लेखांक १०३८ ४. |१३३७ | फाल्गुन | देवगुप्तसूरि के | गणपति की जैन मंदिर नं. १ वही, भाग ३, सुदि २ | पट्टधर पद्मचन्द्र | प्रतिमा का लेख | लोद्रवा लेखांक २५६५ ५. १३४६ | फाल्गुन __सिद्धसूरि आदिनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, वही, भाग ३, सुदि २ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर लेखांक २२३८ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् ६. १३५६ तिथि विहीन १३७८ ज्येष्ठ वदि ९ ७. तिथि ८. १३८५ वैशाख वदि ५ बुधवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम कक्कसूरि "" सिद्धसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख देहरी का लेख महावीर की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान बावन जिनालय करेड़ा देहरी नं. ३९, आबू चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग २, लेखांक १९२३ मुनि कल्याणविजय, पूर्वोक्त, लेखांक १०५ एवं मुनि जयन्तविजय आबू, भाग २, लेखांक १३६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ३०७ २५० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ९. १३८५ | फाल्गुन । कक्कसूरि पार्श्वनाथ की शीतलनाथ नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ...! प्रतिमा का लेख | जिनालय, उदयपुर | भाग २, लेखांक १०४३ १०. |१३८९ / ज्येष्ठ । देवगुप्तसूरि आदिनाथ जिनालय | विनयसागर, वदि ११ मालपुरा पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेखांक १३१ ११. | १३९४ | वैशाख पानशालि (?) सूरि | शांतिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ३६५ १२. | १३९४ | तिथि ___कक्कसूरि । महावीर की देहरी नं. ५० मुनि कल्याणविजय, विहीन प्रतिमा का लेख | विमलवसही, आबू प्रबन्धपारिजात लेखांक १३७ वदि६ २५१ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १३. १३९७ पार्श्वनाथ की चिन्तामणि जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख बीकानेर लेखांक ३७१ १४. १४०० | वैशाख समवसरण के सीमंधरस्वामी का बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ अंकन पर उत्कीर्ण मंदिर, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, लेख लेखांक १०७६ १५. |१४०३ | वैशाख पार्श्वनाथ की | गौड़ीपार्श्वनाथ कान्तिसागर, सुदि....! प्रतिमा का लेख | जिनालय, पायधुनी, पूर्वोक्त, मुंबई लेखांक ३४ १६. १४०६ | फाल्गुन सिद्धसूरि के पट्टधर | आदिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ११ / कक्कसूरि प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ४१० १७. १४१२ | वैशाख कक्कसूरि | जैन मंदिर, जयपुर | नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ भाग १, लेखांक ४०१ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १८. | १४१४ | वैशाख कक्कसूरि के शिष्य शत्रुञ्जय A. P. Shah-“Some सुदि १० | देवगुप्तसूरि Inscriptions on गुरुवार Mount Satrunjaya” महावीर जैन विद्यालयसुवर्णजयन्ती अंक, भाग १, पृष्ठ १६७, लेखांक ४ १९. | १४२० | वैशाख । रत्नप्रभसूरि शांतिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ४४४ शुक्रवार Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वही, क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ । आचार्य का नाम | स्तम्भलेख २०. |१४३० / तिथि। | देवगुप्तसूरि जिन प्रतिमा चन्द्रप्रभ जिनालय नाहर, पूर्वोक्त, विहीन का लेख जैसलमेर भाग ३, लेखांक २२७४ २१. १४३६ | वैशाख आदिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ११ प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ५२४ २२. १४३६ |" शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख लेखांक ५२५ २३. |१४३९ । पौष पार्श्वनाथ की | वीर जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि... प्रतिमा का लेख गीपटी, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार लेखांक ६९७ २४. १४४५ | पौष सिद्धसूरि शांतिनाथ की जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १२ धातु की प्रतिमा चेलापुरी, दिल्ली भाग १, बुधवार का लेख लेखांक ४६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २५. २६. २७. २८. तिथि १४५७ वैशाख सुदि ३ शनिवार १४६५ वैशाख सुदि ३ गुरुवार १४६८ वैशाख वदि ४ शुक्रवार १४६८ | ज्येष्ठ वदि १३ रविवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम रामदेवसूरि देवगुप्तसूरि " "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख "" शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, नमकमंडी, आगरा चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर "" संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग २, लेखांक १४९० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ६१७ वही, | लेखांक ६३८ शीतलनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि उदयपुर पूर्वोक्त, लेखांक १०३ उपकेश गच्छ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०६२ २९. १४७१ | माघ कक्कसूरि सुमतिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ६ | प्रतिमा का लेख | मेड़तासिटी पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक २०४ ३०. १४७१ | माघ । देवगुप्तसूरि शांतिनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ |वही, भाग १, सुदि १३ प्रतिमा का लेख जिनालय, लेखांक २०५ बुधवार मेड़ता सिटी एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७७४ ३१. १४७२ फाल्गुन आदिनाथ की वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक १२१६ - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. १४७३ तिथि ज्येष्ठ वदि ५ १४७६ फाल्गुन सुदि १२ १४८२ | ज्येष्ठ वदि ४ १४८५ वैशाख सुदि ५ १४८५ ज्येष्ठ सुदि १३ सोमवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" सिद्धसूरि के शिष्य कक्कसूरि सिद्धसूरि कक्कसूर के पट्टधर सिद्धसूरि सिद्धसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख "" "" पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर "" " सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर जैन मंदिर, मिरर स्ट्रीट, कलकत्ता संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक ६६६ वही, लेखांक ६८३ वही, लेखांक ७१२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २१७९ वही, भाग १, लेखांक ३८९ उपकेश गच्छ २५७ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ३७. १४८८ | वैशाख कक्कसूरि पार्श्वनाथ की । चन्द्रप्रभ जिनालय, वही, भाग ३, सुदि६ प्रतिमा का लेख | जैसलमेर लेखांक २३०२ ३८. १४९१ | माघ । सिद्धसूरि पार्श्वनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, वही, भाग २, सुदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा | लखनऊ लेखांक १५४६ बुधवार का लेख ३९. १४९२ | चैत्र श्रेयांसनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख लेखांक ७५६ शुक्रवार ४०. |१४९४ | तिथि सुविधिनाथ की वीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, विहीन प्रतिमा का लेख जैसलमेर | भाग ३, लेखांक २४११ - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् तिथि ४१. ४२. ४३. ४४. १४९९ वैशाख वदि १ शनिवार १५०१ | फाल्गुन सुदि १३ शनिवार १५०२ माघ सुदि ५ १५०३ | माघ सुदि २ शुक्रवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम देवगुप्तसूरि कक्कसूरि "" " प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, मुनि कान्तिसागर, कोट, मुम्बई पूर्वोक्त, लेखांक ८९ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ पद्मप्रभ जिनालय, जयपुर नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८५७ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३६२ माणिकसागरजी का वही, मंदिर, कोटा लेखांक ३७१ उपकेश गच्छ २५९ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ४५. १५०४ | तिथि अम्बिका की |संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, | विहीन प्रतिमा पर | कड़ी पूर्वोक्त, भाग १ उत्कीर्ण लेख लेखांक ७४७ ४६. १५०५ | आषाढ़ चन्द्रप्रभ की चन्द्रप्रभ जिनालय, विनयसागर, सुदि ९ प्रतिमा का लेख |आमेर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३९३ ४७. १५०५ | आषाढ़ सुपार्श्वनाथ का नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ९ पंचायती मंदिर, भाग २, जयपुर लेखांक ११४८ ४८. १५०६ | आषाढ़ देवगुप्तसूरि . | सुमतिनाथ की सीमंधरस्वामी का बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | मंदिर, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, बुधवार लेखांक ११५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् ४९. ५०. ५१. ५२. तिथि १५०७ | चैत्र वदि ५ शनिवार १५०८ वैशाख सुदि ५ सोमवार १५०८ | वैशाख सुदि ५ १५०८ | वैशाख सुदि ५ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम कक्कसूरि "" कक्कसूरि "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख "" वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख "" प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर संदर्भ ग्रन्थ "" नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २३२५ वही, भाग २, लेखांक १३३२ एवं शंखेश्वरपार्श्वनाथ जिनालय, आसानियों का चौक, नाहटा, पूर्वोक्त, बीकानेर लेखांक १९०७ वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, बीकानेर लेखांक १२८१ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३७४ उपकेश गच्छ U ៣ ނ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ५३. १५०८ | वैशाख पार्श्वनाथ की घर देरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ५ प्रतिमा का लेख बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २२१ ५४. १५०९ चैत्र मुनिसुव्रत की चिन्तामणिपार्श्वनाथ विजयधर्मसूरि, वदि ११ धातु प्रतिमा | जिनालय, वेरावल पूर्वोक्त, शुक्रवार का लेख लेखांक २५१ ५५. १५०९ / वैशाख कुन्थुनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, वदि ११ चौबीसी प्रतिमा | माणेक चौक, लेखांक ७७१ शुक्रवार का लेख खंभात ५६. १५०९ । मार्गशीर्ष वासुपूज्य की । बालावसही, मुनि कान्तिसागर, सुदि ९ प्रतिमा का लेख शत्रुञ्जय शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक १२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ कुन्थुनाथ की ५६.अ. | १५०९ | मार्गशीर्ष सुदि ९ ५७. १५११ | माघ सुदि २ शनिवार ५८. |१५१२ | माघ सुदि ५ सोमवार ५९. | १५१२ | फाल्गुन सुदि ८ प्रतिष्ठापक | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख शान्तिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख (नाहटों में) लेखांक १८३१ बीकानेर शांतिनाथ की नेमिनाथ जिनालय, विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा | महुआ पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ४७९ सुमतिनाथ की · | आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागसूरि, प्रतिमा का लेख | वडनगर पूर्वोक्त, भाग १ लेखांक ५५३ श्रेयांसनाथ की विजयगच्छीय जैन विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा | मंदिर, जयपुर पूर्वोक्त, का लेख लेखांक ४९२ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | वही, ६०. १५१३ | चैत्र सुदि ६ गुरुवार ६१. १५१४ माघ सुदि १ शुक्रवार ६२. १५१५ | फाल्गुन सुदि ९ रविवार ६३. | १५१८ | मार्गशीर्ष वदि ५ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख नमिनाथ की विमलनाथ पंचतीर्थी प्रतिमा | जिनालय, लेखांक ४९९ का लेख सवाईमाधोपुर श्रेयांसनाथ की संभवनाथ बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा का लेख | देरासर, कड़ी पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७२७ शीतलनाथ की गौड़ी पार्श्वनाथ नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | जिनालय, अजमेर |भाग १, लेखांक ५३४ कुन्थुनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा | सोजत रोड पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ५८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - - - Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् ६४. ६५. तिथि १५१९ | ज्येष्ठ वदि ११ शुक्रवार १५२० वैशाख वदि ३ सोमवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" " प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख सुमतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ संभवनाथ जिनालय, वही, भाग १, अजमेर चन्द्रप्रभ की धातु | गौड़ी जी का की प्रतिमा का मंदिर, उदयपुर लेख लेखांक ५९३ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५५८ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ३४८ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११२८ उपकेश गच्छ २६५ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ६६. ६७. ६८. ६९. १५२० तिथि १५२४ मार्गशीर्ष सुदि ९ शनिवार १५२३ माघ सुदि ६ रविवार ज्येष्ठ वदि ४ १५२५ ज्येष्ठ वदि १ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम " सिद्धसूरि के पट्टधर कक्कसूरि "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख अजितनाथ की पाषाण की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान अमीझरा पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात पार्श्वनाथ जिनालय, बीकानेर चन्द्रप्रभ जिनालय बाबापुरी पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, खंभात संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ७५३ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक १५०३ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २२६ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ९१९ m m जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् ७०. ७१. ७२. ७३. तिथि १५२५ माघ वदि ६ सोमवार १५२५ | फाल्गुन सुदि १२ १५२८ ज्येष्ठ वदि ३ बुधवार १५२८ माघ वदि ४ बुधवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम सिद्धसूरि के पट्टधर कक्कसूरि कक्कसूरि "" देवगुप्तसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख कुन्थुनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान आदिनाथ जिनालय भैंसरोड़गढ़ विनयसागर, पूर्वोक्त, | लेखांक ६७१ आदिनाथ जिनालय बुद्धिसागरसूरि, भरुच वीर जिनालय, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २९७ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३०१ वही, लेखांक १०५९ उपकेश गच्छ २६७ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ७४. ७५. ७६. ७७. तिथि १५३१ वैशाख सुदि २ सोमवार १५३४ आषाढ सुदि १ गुरुवार १५३६ आश्विन सुदि ९ सोमवार १५३६ | फाल्गुन सुदि ३ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम श्रावकों का उल्लेख कक्कसूरि के पट्टधर देवगुप्तसूरि "" " प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख शिलालेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख अम्बिका की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान लूणवसही, आबू वीर जिनालय, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ जमुनादास कोठारी का घर देरासर, आबू, भाग २, लेखांक ३३८ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १२१९ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २३७ बड़ोदरा महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, आसानियों का चौक, लेखांक १८९८ बीकानेर २६८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ ७८. | १५४२ / माघ सुदि २ शनिवार ७९. | १५४४ | आषाढ़ वदि ८ गुरुवार ८०. | १५४५ | पौष वदि... प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख सुमतिनाथ की | चन्द्रप्रभ जिनालय, विनयसागर, पंचतीर्थी प्रतिमा | जोमनेर पूर्वोक्त, का लेख लेखांक ८२९ आदिनाथ की | संभवनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | फूलवाली गली, भाग २, आगरा लेखांक १६०३ जिन प्रतिमा पर | अजितनाथ जिनालय, | बुद्धिसागरसूरि, उत्कीर्ण लेख | शेख पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, अहमदाबाद लेखांक १०१४ देवगुप्तसूरि चन्द्रप्रभ की आदिनाथ जिनालय | नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | नागौर लेखांक १२९३ ८१. | १५४६ | आषाढ़ वदि २ भाग २, Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख ८२. |१५४६ | आषाढ वासुपूज्य की पार्श्वनाथ जिनालय नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि २ प्रतिमा का लेख (नाहटों में) लेखांक १५१८ शनिवार बीकानेर ८३. १५४९ | वैशाख सुविधिनाथ की गांव का जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा का लेख | बालावसही, |भाग १, शुक्रवार | पालिताना लेखांक ६७६ एवं शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक २४६ ८४. |१५५१ | माघ चन्द्रप्रभ की आदिनाथ जिनालय, | नाहटा, पूर्वोक्त, वदि २. प्रतिमा का लेख राजलदेसर लेखांक २३३७ ८५. १५५६ | वैशाख देव (?) सूरि चतुर्मुख प्रासाद | रैनपुर तीर्थ नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ६ देवकुलिका भाग १, शनिवार का लेख लेखांक ७१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि ८६. १५५७ वैशाख सुदि ५ गुरुवार आषाढ सुदि २ ८७. ८८. १५५९ १५५९ आषाढ सुदि १० प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम देवगुप्तसूरि "" " प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख वासुपूज्य की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान सुमतिनाथ जिनालय विनयसागर, जयपुर शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर संदर्भ ग्रन्थ संभवनाथ जिनालय अजमेर पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ८९० नाहर, पूर्वोक्त भाग २, लेखांक ११०१ वही, भाग १, लेखांक ५६६ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९०३ उपकेश गच्छ २७१ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् ८९. ९०. ९१. ९२. तिथि १५५९ मार्गशीर्ष वदि ६ १५६३ वैशाख सुदि ६ शनिवार १५६६ चैत्र सुदि १ १५६६ फाल्गुन सुदि ३ सोमवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" श्रीसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख मुनि देवसागर के शिलालेख निधन का उल्लेख सिद्धसूरि नमिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ जिनालय, हनुमानगढ़ (बीकानेर) अरनाथ जिनालय जीरारवाड़ो, खंभात उपकेशगच्छ की बगीची, बीकानेर बड़ा मंदिर, नागौर संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २५३३ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाक ७७२ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २१३१ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३०० एवं विनयसागर, २७२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । उपकेश गच्छ ९३. ९४. १५९३ | ज्येष्ठ वदि ८ रविवार १५७१/ आषाढ़ सुदि २ १५७२ चैत्र वदि ३ बुधवार १५७८ माघ सुदि ४ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९३३ देवगुप्तसूरि अरनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, के पट्टधर प्रतिमा का लेख | जिनालय, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, सिद्धसूरि लेखांक ५३४ कक्कसूरि | सुमतिनाथ की शान्तिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक ११३५ सिद्धसूरि | शांतिनाथ की वीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | सुंधि टोला, | भाग २, लखनऊ लेखांक १५७६ आदिनाथ की आदिनाथ जिनालय, मुनि कान्तिसागर, प्रतिमा का लेख | भायखला, मुम्बई पूर्वोक्त, लेखांक १९४ ९५. ९६. गुरुवार Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९७. ९८. ९९. १५९२ तिथि १५९३ आषाढ सुदि ९ १५९३ ज्येष्ठ वदि ४ मंगलवार आषाढ सुदि ४ गुरुवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख अभिनन्दन स्वामी बड़ा मंदिर, नागौर की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख वीर जिनालय, बीकानेर शांतिनाथ जिनालय, भूरों का वास, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९८८ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३०४ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २२७२ वही, लेखांक २२३७ २७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १००. | १५९४ | कार्तिक सुविधिनाथ की | श्री गंगा गोल्डेन वही, वदि ९ प्रतिमा का लेख | जुबिली म्युजियम, लेखांक २१६१ बीकानेर १०१. | १५९६ / वैशाख शांतिनाथ की महावीर जिनालय, वही, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | आसानियों का चौक लेखांक १९०३ सोमवार बीकानेर एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३४७ १०२. | १६३८ | वैशाख । यति श्री वस्ता के | शांतिनाथ की | उपकेशगच्छ की नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १५ / दिवंगत होने का | प्रतिमा का लेख | बगीची, बीकानेर लेखांक ११३२ उल्लेख Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ जैनमंदिर, नाणा नाहर, पूर्वोक्त, भाग १ लेखांक ८९० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २१३३ | उपकेशगच्छ की बगीची बीकानेर क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १०३. | १६५९ | भाद्रपद | सिद्धसूरि सुदि ७ शनिवार १०४. |१६६३ | प्रथम चैत्र| विनयसमुद्रसूरि | शिलालेख सुदि ८ | के शिष्य (यति) शुक्रवार |अचलसमुद्रसूरि के निधन का उल्लेख १०५. १६६३ | माघ श्रीवस्ता के शिष्य वदि ९ | यति तिहुणा का सोमवार निधन १०६. | १६६४ वैशाख । (यति) तिहुणा के सुदि ११ | शिष्य श्रीराणा का सोमवार | निधन वही, लेखांक २१३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही, लेखांक २१३५ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०७. १६८९ १०८. १०९. ११०. तिथि १७६३ भाद्रपद सुदि ४ गुरुवार १६९१ | भाद्रपद सुदि ५ श्रावण सुदि १ सोमवार १७८१ आषाढ़ सुदि १३ प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम देवगुप्तसूरि के पट्टधर सिद्धसूरि का निधन कक्कसूरि आनन्दकलश के शिष्य अमीपाल के पट्टधर यति खेतसी का निधन कर्पूरप्रियगणि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शिलालेख सुमतिनाथ प्रतिमा का लेख शिलालेख चौबीसी प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान >> संदर्भ ग्रन्थ चन्द्रप्रभ जिनालय रङ्गपुर, बंगाल वही, लेखांक २१३६ आदिनाथ जिनालय, वही, राजलदेसर उपकेशगच्छ की बगीची, बीकानेर लेखांक २३४० वही, लेखांक २१३९ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २ | लेखांक १०२४ उपकेश गच्छ २७७ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १११. ११२. ११३. तिथि १७८३ आषाढ़ सुदि १५ रविवार १७९५ वैशाख सुदि ३ गुरुवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम सिद्धसूरि के निधन की तिथि का उल्लेख देवगुप्तसूरि के १८०५ पौष पट्टधर भामसुन्दर के शिष्य कल्याणसुन्दर एवं लब्धिसुन्दर द्वारा पौषधशाला बनवाने का उल्लेख सिद्धसूरि के शिष्य सुदि २-३ | (यति) क्षमासुन्दर रविवार प्रतिमालेख / स्तम्भलेख "" "" "" प्रतिष्ठा स्थान उपकेशगच्छ की बगीची, बीकानेर "" "" संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २१४० वही, लेखांक २५५४ वही, लेखांक २१४२ २७८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ११४. ११५. ११६. ११७. तिथि १८०७ आषाढ़ सुदि १५ रविवार १८३८ | तिथि विहीन १८४६ चैत्र वदि ३ बुधवार १८६० चैत्र सुदि ८ रविवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम कक्कसूरि के निधन का उल्लेख क्षमासुन्दर के शिष्य (यति) उदयसुन्दर का निधन देवगुप्तसूरि के निर्वाण की तिथि का उल्लेख (यति) बखतसुन्दर के निधन का उल्लेख प्रतिमालेख / स्तम्भलेख "" "" "" प्रतिष्ठा स्थान "" "" संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक २१४१ वही, लेखांक २१४३ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २१४४ वही, लेखांक २१४५ उपकेश गच्छ २७९ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ वही. लेखांक २१४६ वही, लेखांक २१४७ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ आचार्य का नाम । स्तम्भलेख ११८. | १८९० | माघ सिद्धसूरि के निधन सुदि ६ | की तिथि का शनिवार उल्लेख ११९. १८९१ कक्कसूरि के पट्टधर सिद्धसूरि के पट्टधर क्षमासुन्दर के पट्टधर जयसुन्दर के शिष्य (यति) मतिसुन्दर के चरणचिह्न स्थापित होने का उल्लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । संदर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान आचार्य का नाम स्तम्भलेख उपकेश गच्छ १२०. | १८९१ वही, लेखांक २१४८ देवगुप्तसूरि वही, गिरनारतीर्थ पट्ट | वीर जिनालय पर उत्कीर्ण लेख | बीकानेर सिद्धचक्रमंडल पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १२६९ वही, लेखांक १२६७ १२१. १९०५ | माघ सुदि ५ १२२. | १९०५ / माघ । सुदि ५ सोमवार १२३. | १९०५ | माघ । सुदि ५ सोमवार १२४. | १९०५ वही, गणधर की पादुका पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १२६८ देवगुप्तसूरि वही, पार्श्वनाथ के गणधर की पादुका पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १२६६ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १२५. १९०५ १२६. १२७. १२८. तिथि "" १९१२ मार्गशीर्ष वदि ५ १९१२ मार्गशीर्ष वदि ४ बुधवार १९१५ |... सुदि ५ सोमवार प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम "" (यति) आनन्दकलश के निधन का उल्लेख प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पंचकल्याणक पट्ट पर उत्कीर्ण लेख सर्वतोभद्रयंत्र पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शिलालेख प्रतिष्ठा स्थान "" " विमलनाथ जिनालय, (कोचरों में) बीकानेर उपकेशगच्छ की बगीची, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक १२६५ वही, लेखांक १२४७ वही, लेखांक १५६७ वही, लेखांक २१४९ २८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ उपकेश गच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । प्रतिष्ठापक । प्रतिमालेख/ आचार्य का नाम | स्तम्भलेख १२९. | १९१८ | ज्येष्ठ (यति) आनन्दसुन्दर सोमवार | के शिष्य (यति) वदि १० खूबसुन्दर का उल्लेख वही, लेखांक २१५१ २८२ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उपकेशगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं एवं चरणचिन्हों पर उत्कीर्ण लेखों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की जो तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार है कक्कसूरि [प्रतिमालेख अनुपलब्ध] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३१४-१३२३] सिद्धसूरि [वि०सं० १३४६-१३८५] कक्कसूरि [वि०सं० १३५६-१४१२] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३८९-१४३९] सिद्धसूरि [वि०सं० १४४५] कक्कसूरि [वि०सं० १४७१-१४८८] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १४६५-१४९९] सिद्धसूरि . [वि०सं० १४८२-१४९४] कक्कसूरि [वि०सं० १५०१-१५२८] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १५२८-१५५९] सिद्धसूरि [वि०सं० १५६६-१५९६] कक्कसूरि [प्रतिमालेख अनुपलब्ध] Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ . २८५ [प्रतिमालेख अनुपलब्ध] देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि [वि०सं० १६५९-१६८९] वि०सं० १६८१ में दिवंगत [वि०सं० १६९१---?] कक्कसूरि देवगुप्तसूरि [प्रतिमालेख अनुपलब्ध] सिद्धसूरि [वि०सं० १७८३ में दिवंगत] कक्कसूरि [प्रतिमालेख अनुपलब्ध] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १८४६ में दिवंगत] सिद्धसूरि [वि०सं० १८९० में दिवंगत] कक्कसूरि [प्रतिमालेख अनुपलब्ध] देवगुप्तसूरि [वि०सं० १९०५-१९१२] प्रतिमालेख उपकेशगच्छ से सम्बद्ध १८वीं - १९वीं शती के कुछ प्रतिमाओं पर इस गच्छ के यतिजनों के नाम भी मिलते हैं,२६ परन्तु इनके आधार पर इन यतिजनों की गुरु-परम्परा की कोई तालिका नहीं बन पाती हैं। उपकेशगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों की उक्त तालिका से स्पष्ट है कि विक्रम की १६वीं शती तक इस गच्छ के मुनिजनों का विशेष प्रभाव रहा, किन्तु १७वीं शताब्दी से इस गच्छ के प्रभाव में कमी आने लगी, फिर भी २०वीं शती तक इस गच्छ का निर्विवाद रूप से अस्तित्व बना रहा । Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ संदर्भसूची : १. २. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास नवपदपटीका प्रोक्ता श्रावकानन्दकारिणी नाम्ना । श्रीदेवगुप्तसूरिभिर्भावयितव्या प्रयत्नेन ॥ साधूपयोगाय मया प्रयासः कृतः स्वपुण्याय च एष धर्मः । अतोत्र मात्सर्यमभिप्रपद्य मा कोपि कार्षीन्मम पुण्यविघ्नं ॥ I त्रिसप्तत्यधिकसहस्रे मासे कार्तिकसंज्ञिते । श्रीपार्श्वनाथचैत्ये तु दुर्गमये च पत्तने ॥ श्रावकानन्दटीकेयं नवपदस्य प्रकीर्तिता । जिनचन्द्रगणिनाम्ना तु गच्छे ऊकेशसंज्ञिते ॥ कक्काचार्यस्य शिष्येण कुलचन्द्रसंज्ञितेन । तेनैषा रचिता टीका निर्जरार्थं तु कर्म॑णां ॥ शिष्य-प्रशिष्यवंशस्योपकाराय जायते । टीकेयं नवपदस्यास्तु यथार्थेयं प्रवर्तिता ॥ C. D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan, (Baroda - 1937 A. D.) Pp. 2-3. उत्सूत्रमत्र रचितं यदनुपयोगान्मया कुबोधाय । तच्छोधयन्तु सुधियः सदाशया मयि विधाय कृपाम् ॥ १ ॥ विलसद्गुणमणिनिकरः, पाठीनविराजितो नदीनश्च । जलनिधिरिवास्ति गच्छः श्रीमानूकेशपुरनिसृतः ॥ २ ॥ तत्रासीदतिशायिबुद्धिविभवश्चारित्रिणामग्रणीः, सिद्धान्तार्णवपारगः स भगवान् श्रीदेवगुप्ताभिधः । सूरिर्भूरिगुणान्वितो जिनमतादुद्धृत्य येन स्वयं, श्रोतॄणां हितकाम्यया विरचिता भव्याः प्रबन्धा नवाः ॥ ३ ॥ तेनैव स्वपदप्रतिष्ठिततनुः श्रीकक्कसूरिप्रभुर्नानाशास्त्रप्रबोधबन्धुरमतिर्जज्ञे स विद्वानिह । मीमांसां जिनचैत्यवन्दनविधिं पञ्चप्रमाणीं तथा, बुध्वा यस्य कृतिं भवन्ति कृतिनः सद्बोधशुद्धाशयाः ॥ ४ ॥ तत्पादपद्मद्वयचञ्चरीकः, शिष्यस्तदीयोऽजनि सिद्धसूरिः । तस्माद्वभूवोज्ज्वलशीलशाली, त्रिगुप्तिगुप्तः खलु देवगुप्तः ॥ ५ ॥ अपिच-यं वीक्ष्य निःसीमगुणैरुपेतं, श्रीसिद्धसूरिः स्वपदे विधातुम् । श्रीमत्युपाध्यायपदे निवेश्य, प्रख्यापयामास जनस्य मध्ये ॥ ६ ॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८७ उपकेश गच्छ तद्वचनेनारब्धा तस्यान्तेवासिना विवृतिरेषा । तत्रैवाचार्यपदं विशदं पालयति सन्नीत्या ॥ ७॥ लोकान्तरिते तस्मिस्तस्य विनेयेन निजगुरुभ्रात्रा । श्रीसिद्धसूरिनाम्ना, भणितेन समर्थिता चेति ॥ ८ ॥ उपाध्यायो यशोदेवो, धनदेवाद्यनामकः । जडोऽपि धाष्टर्यतञ्चक्रे, वृत्तिमेनां सविस्तराम् ॥ ९॥ एकादशशतसंख्येष्वब्देष्वधिकेषु पञ्चषष्टयेयम् । अणहिल्लपाटकपुरे सिद्धोकेशीयवीरजिनभवने ॥ १० ॥ नवपदप्रकरणबृहवृत्ति की प्रशस्ति, प्रकाशक-देवचन्दलालभाई जैन पुस्तकोद्धार; ई० सन् १९२७. ३. प्रसिद्ध ऊकेशपुरीयगच्छे श्रीकर्कसूरिविदुषां वरिष्ठः। साहित्यतर्कागमपारदृश्वा बभूव सल्लक्षणलक्षिताङ्गः ॥ १॥ तदीयशिष्योऽजनि सिद्धसूरिः सद्देशनाबोधितभव्यलोकः । निर्लोभतालङ्कृतचितवृत्तिः सज्ज्ञानचारित्रदयान्वितश्च ॥ २ ॥ श्रीदेवगुप्तसूरिस्तच्छिष्योऽभूद्विशुद्धचारित्रः । वादिगजकुम्भभेदनपटुतरनखरायुधसमानः ॥ ३ ॥ तच्छिष्यसिद्धसूरिः क्षेत्रसमासस्य वृत्तिमयमकरोत् । गुरुभ्रातृयशोदेवोपाध्यायज्ञातशास्त्रार्थः ॥ ४ ॥ उत्सूत्रमत्र किञ्चिन्मतिमान्द्याज्ञानतो मयाऽलेखि । निर्व्याजं विद्वद्भिस्तच्छोध्यं मयि विधाय दयाम् ॥ ५ ॥ खैः षण्णवत्याङ्कश्चतुःषष्ट्या द्वात्रिंशताक्षरैः । श्लोकमानेन चैवं त्रिसहस्रा ग्रन्थसङ्ख्याऽत्र ॥६॥ अब्दशतेष्वेकादशसु द्विनवत्याधिकेषु ११९२ विक्रमतः । चैत्रस्य शुक्लपक्षे समर्थिता शुक्लत्रयोदश्याम् ॥ ७ ॥ यावज्जैनेश्वरो धर्मः समेरुवर्तते भुवि । भव्यैः पापठ्यमानोऽयं तावन्नन्दतु पुस्तकः ॥ ८ ॥ Muni Punyavijaya, Ed. New Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts : Jesalmer Collection. (Ahmedabad - 1972 A.D.) P.68. Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४. सिद्धसूरिगुरोराज्ञां बिभ्राणः शिरसा भृशम्। करेष्वग्नीन्दु १३५२ वर्षेऽत्र व्यलीलिखदवाचयत् ॥ २८ ॥ श्रीदेवगुप्तसूरीणां शिष्यः समुदि संसदि । पासमूर्तिस्तदादेशात् किमप्यर्थमभाषत् ।। ३१ ।। ....... जस्येह पुष्पदन्तौ स्थिराविमौ । गुरुभिर्वाच्यमानोऽयं तावन्नन्दतु पुस्तकः ॥ ३२ ॥ संवत् १३५२ वर्षे वर्षाकाले श्रीउपकेशगच्छे ककुदाचार्यसंताने श्रीसिद्धसूरिप्रतिपत्तो सा. देसलसन्ताने सा. गोसलात्मजसंघपतिआशाधरेण श्रीउत्तराध्ययनवृत्तिः ससूत्रा कारिता ॥ Muni Punyavijaya, Ed. Catalogue of Palm-Leaf Manuscripts in the Shantinath Jain Bhandar, Cambay (Baroda 1962-66 A.D.) Pp. 120-123). लालचन्द भगवानदास गान्धी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, [बड़ोदरा, १९६३ ई०] पृष्ठ ५११-५९१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ४२६-२७. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगुर्जरकविओ (प्रथम संस्करण), भाग-३, खण्ड २, पृष्ठ २२५४-२२७६. मुनि जिनविजय - संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह (बम्बई १९५१ ई०) पृष्ठ ७-९. देसाई, जैनगुर्जरकविओ (प्रथम संस्करण), भाग-३, खंड-२, पृष्ठ २२७७२२८५. मुनि दर्शनविजय-संपा० पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, (वीरमगाम १९३३ ई०) पृष्ठ १७७-१९४. मुनि कल्याणविजय - संपा० पट्टावलीपरागसंग्रह (जालौर सं० २०२३) पृष्ठ २३४२३८. श्री उवएसगच्छ सिणगारो पहिलो रयणप्पह गणधारो, गुणि गोयम अवतारो, जकखदेवसूरीय प्रसिद्धो तास पाटि जिणि जगि जस लीधो, संयमसिरि उरिहारो ॥२६॥ अनुक्रमि देवगुपतिसूरीस, सिद्धसूरि नामि तस सीस, मुणिजण सेवीय पाय, Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश गच्छ २८९ तस पाटे संपइ जयवंतो, गच्छनायक महिमा गुणवंतो, कक्कसूरि गुरुराय ॥ २७ ॥ सई हत्थ थापीय तिणि गुणहारा, गुणवन्त सीलसुन्दर सारा, वारीय जिणि अणंगो, तास सीस मतिसेहर हरसिहि, पनरइ सई चउदोत्तर वरसिहि, कीयो कवित अतिअंगो ॥२८॥ मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगुर्जरकविओ - भाग १, (नवीन संस्करण, अहमदाबाद - १९८६ ई०) पृष्ठ १०७. १०. देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ १०७ और आगे. ११. करि संलेहण साध्यां काज, लहिसे मुक्तिपुरीनउ राज । उवसगच्छ गुणगणे गरिठ्ठ, श्री रयणप्पहसूरि वरिठ्ठ ॥ ४५ ॥ तसु अनुक्रम संपइ सिद्धसूरि, तासु सीस वाचक गुणभूरि । हरषसमुद्र नामि गुणसार, तासु सीसइ कहउ विचार ॥ ४६ ॥ विनयसमुद्र वाचक इम भणई, धन्य ति नरनारी जे सुणई । तेहनी सीझई सघली आस, पुणि ते लहिओ शिवपुरि वास ॥ ४७ ॥ अ आरामसोभा चउपइ, भावतणे उपरि मई कही, वरस त्र्यासिये मागसिर मासि, कानरिहि मन उल्लास ॥ ४८ ॥ देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ २८१ १२. कर गयणंगण रस शशि वर्षे, वर वैशाख मास मन हर्षे । पञ्चमी सोमवार चउसाल, उपबन्ध रची सुविशाल ॥ ९३ ॥ बीकानरहि वीर जिणंद, तासु पसायई परमाणंद । श्री उवसगच्छ सिणगार, taye गिरुओ गणधार ॥ ९४ ॥ प्रकट पारसनाहथी पट्टि, बहुरिमें मुनिजननैं थट्ठि । श्री सिद्धसूरि संपइ सुहकार, कक्कसूरितसु शिष्य उदार ॥ ९५ ॥ तसु आदेशि हर्षसमुद्र, वाचक तेहनै विनयसमुद्र । तिणि विरच्यो अ चरित रसाल, सुणियो कविवर संघ विशाल ।। ९६ ।। मोहनलाल दलीचन्द देसाई, वही, भाग १, पृष्ठ २८२-८३. १३. देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ ११०. १४. देसाई, जैनगुर्जरकविओ (प्रथम संस्करण) भाग ३, खंड २, पृष्ठ २२५४-२२७६. १५. वही, पृष्ठ २२६५-२२६६. १६. वही, पृष्ठ २२६७. Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० १७. वही, पृष्ठ २२६७. १८. वही, पृष्ठ २२६८ १९. वही २०. मुनि जिनविजय- विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ ८. २१. देसाई, पूर्वोक्त, प्रथम संस्करण, भाग ३, खंड २, पृष्ठ २२६९. २२. संवत् १४७९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि षष्ठ्यां रवौ श्री श्री उपकेशगच्छे श्री सिद्धाचार्य संताने जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास एवंविधगुणोपेतभट्टारकश्री श्रीदेवगुप्तसूरीणामादेशेन शिष्याणुरुपाध्याय श्रीविनयप्रभेण आत्मपठनार्थ श्रीनेमिचन्द्रसूरिविरचिता श्रीउत्तराध्ययन- लघुवृत्तिर्नि (नि) जसंच(?) पुस्तके निजगुर्वाज्ञया लिषापिता लेषकेन लिखिता श्रीउत्तराध्ययनवृत्तिः संपूर्णा ॥ २६. Kapadiya, H.R. - Descriptive Catalogue of the Govt. Collections of the Mss deposited at the B. O. R. I., Pune, Volume XVII Part III (Pune - 1940) Pg. 32-33. २३. संवत पन्नर वरस अकसट्ठि, वैशाख पंचमी शुदि गुरुहिं गरिठ्ठा । नक्षत्र मृगशिर योग सकर्मा, कधी चउपई दिन जाणी ॥ ३४ ॥ उवएसगच्छ तणा शृंगार, सिद्धसूरि गुरु लब्धिभंडार । सद्गुरु नामइ गच्छ संतान, वंदिइ भवियण महिमानिधान ॥ ३५ ॥ कक्कसूरि तस पाटि मुणींद, आगम कमला विकासन दिणंद । लोपी मिथ्यामय विषकंद, समकित अमृतकला गुरु चंद || ३६ || सूरि शीरोमणी देवगुप्त, जाइ पाय जस नाम पवित्त । विघ्न टलइ सवि संपद मिलइ, गुरु नामइ चिंतित फलइ ॥ ३७ ॥ चितामणी कामधेनु समान, रत्नत्रय जिम नाम प्रधान । अलिय निवारी देव सचि आवी, वीरजिणेश्वर नमइशि भावि ॥ ३८ ॥ कक्कसूरि केरा शिष्य, श्री धर्महंस पय नामक शिष्य । धर्म्मरुचि बोलइ तास पसाइ, रची चउपर अजापुत्रराय ॥ ३९ ॥ देसाई, पूर्वोक्त, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ २१८-२१९. २४. मुनि कान्तिसागर - शत्रुञ्जयवैभव, पृष्ठ १२६-१२७. २५. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जकविओ- - भाग १ (नवीन संस्करण, बम्बई १९८५) पृष्ठ १९४-१९६. अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २१३१ - २१५१. Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काम्यकगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय में विभिन्न स्थानों के नाम से उद्भूत गच्छों में काम्यक गच्छ भी एक है। काम्यक नामक स्थान से सम्बद्ध होने के कारण इस गच्छ का उक्त नामकरण हुआ। श्री विमलाचरण लाहा ने काम्यक की पहचान राजस्थान प्रान्त के भरतपुर जिले में अवस्थित कामा नामक स्थान से की है।' भरतपुर जिले के ही बयाना (प्राचीन श्रीपथ) नामक स्थान से वि. सं. ११०० (ई. सन् १०४४) का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है जो आज मस्जिद के रूप में परिवर्तित एक जैन मंदिर की दीवार पर उत्कीर्ण हैं । जे. एफ. फ्लीट ने रोमन लिपि में इसकी वाचना दी है जिसका कुछ सुधार के साथ नागरी लिपि में रूपान्तर निम्नानुसार है : ॐ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ आसीन्निवृतकान्वयैकतिलकः श्रीविष्णुसूर्यासने श्रीमत्काम्यकगच्छतारकपथश्वेताशुमान् विश्रुत । श्रीमान्सूर्यमहेश्वरः प्रशमभूः (प्रशम्भूः) श्वेताम्ब(ब)रग्रामणी: राज्ये श्रीविजयाधिराजनृपतेः श्रीश्रीपथायांपुरी ॥ ततश्च नाशं यातुशतं सहस्रसहितं संवत्सराणां द्रुतम्, म्याना [नाम्ना] भाद्रभद सभद्रपदवीं मासः समारोहतु । सास्यैव क्षयमेतु सोम स (हि) ता कृष्णा द्वितीया तिथि:, पंचश्रीपर [मेष्ठी] निष्ठ हृदयः प्राप्तोदिवं यत्र सः ॥ [अ] [पि] च ॥ - Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ ___ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कीर्तिर्दिक्करिकान्तदन्तमुशल प्रोद्भूतलास्यक्रमम्, क्वापि क्वापि हिमाद्रि मु-मही [मुद्रितमही] सोत्प्रास [सोऽत्रास] हास स्थितिम् क्वाप्यैरावण नागराजनजित स्पर्धानुबद्धोदस्म नुव (बं) धोद्धरं, भ्र[1]मन्ति भुवनत्रयम् त्रिपथगेवाद्यापि न श्राम्यति । सं० ११०० भाद्रवदि २ चन्द्रे कल्याणक दि [ने] प्रशस्तिरियं साधु सर्व्वदेवेनोत्कीर्णेति ॥ यही इस गच्छ से सम्बद्ध एकमात्र उपलब्ध साक्ष्य है। जैसा कि ऊपर हम देख चुके है यह लेख ॐ नमः सिद्धेभ्यः से प्रारम्भ होता है। इसके द्वितीय और तृतीय पंक्ति में निवृत्ति अन्वय (कुल) से उद्भूत काम्यकगच्छ में हुए विष्णुसूरि के पट्ट पर आसीन महेश्वरसूरि का उल्लेख है जो वि० सं० ११०० में स्वर्गवासी हुए । लेख की पंचम पंक्ति से ज्ञात होता है कि इसे श्रीपथ के राजा या अधिपति विजय के राज्यकाल में उत्कीर्ण कराया गया। लेख की अंतिम पंक्ति में इसे उत्कीर्ण कराने वाले साधु सर्वदेव का नाम मिलता है जो महेश्वरसूरि के शिष्य रहे होंगे। निर्वृतिकुल विष्णुसूरि महेश्वरसूरि [वि० सं० ११०० में स्वर्गस्थ] Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काम्यक गच्छ उक्त प्रशस्ति के अनुसार वि० सं० ११०० में महेश्वरसूरि का निधन हुआ था, अत: अपनी मृत्यु के लगभग २५ पूर्व अर्थात् वि० सं० १०७५ के आसपास वे अपने गुरु विष्णुसूरि के पट्टधर हुए होंगे । इस आधार पर विष्णुसूरि का काल वि० सं० १०५० १०७५ के आसपास माना जा सकता है। २. I साधु सर्वदेव [वि० सं० ११०० में प्रशस्ति अभिलेख उत्कीर्ण कराने वाले ] निर्वृतिकुल की यह शाखा कब और किस कारण अस्तित्व में आयी, इसके आदिम आचार्य कौन थे ? इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है । मात्र स्थानांगसूत्र' में 'कामढिक' (कामर्धिक) गण का और कल्पसूत्र (पर्युषणाकल्प) की 'स्थविरावली' में 'कामड्डियकुल' का उल्लेख मिलता है। इनका काम्यकगच्छ से सम्बन्ध रहा है ? अथवा नहीं रहा यह प्रश्न प्रमाणों के अभाव में अभी अनुत्तरित ही रह जाता है । ३. ४. २९३ - संदर्भ सूची : १. विमलाचरण लाहा - प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, लखनऊ १९७२ ई० सन्, पृष्ठ ५२९. J. F. Fleet:, ‘Bayana Stone Inscription of AdhiRaja Vijaya, Samvat 1100', Indian Antiquary, Vol. 14, Pp. 8-10. वही श्वेताम्बर आम्नाय के चार प्रमुख कुलों में निवृत्तिकुल भी एक है । अन्य कुलों की भांति यह कुल भी पूर्वमध्यकाल में एक गच्छ के रूप में प्रसिद्ध हुआ और इससे भी कुछ अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ । काम्पयकगच्छ भी उन्हीं में से एक है। समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णव गणा हुत्था, तं जहा गोदासगणे, उत्तरबलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामड्डियगणे, मानवगणे, कोडियगणे । स्थानांगसूत्र, संपा० मधुकर मुनि, जिनागम ग्रन्थमाला, ग्रंथांक ७, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर १९८१ ई०, ९।२९, पृष्ठ ६७०. Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ ६. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास गणियं मेहिय कामड्डियं च, तह होई इंदपुरगं च । एसाई वेसणाडियगणस्स चत्तारि उ कुलाइ ॥ २१४ ॥ "स्थविरावली" कल्पसूत्र, संपा० देवेन्द्रमुनि शास्त्री, श्री अमर जैन आगम शोध संस्थान, गढ सिवाना, बाड़मेर १९६८ ई० सन्, पृष्ठ २९९. Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काशहृदगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थदर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय से पूर्वमध्ययुग में नगरों और ग्रामों के नाम के आधार पर भी विभिन्न गच्छों का नामकरण हुआ; यथा ब्रह्माण से [वर्तमान वरमाण] से ब्रह्माणगच्छ, वायट से वायटीयगच्छ, काशहद से काशहृदगच्छ, जाल्योधर [जालिहर] से जाल्योधर या जालिहरगच्छ, कोरंट [कोरटा] से कोरटंगच्छ आदि । अर्बुदगिरि [वर्तमान आबू पर्वत] की तलहटी में काशहद' [वर्तमान कासीन्द्रा या कायंद्रा] नामक एक प्राचीन ग्राम स्थित है जो जैन तीर्थ के रूप में पूर्व मध्ययुग से ही प्रसिद्ध रहा है। इसी स्थान से काशहृदगच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। जहां अन्य गच्छों से सम्बद्ध बड़ी संख्या में ग्रन्थप्रशस्तियां, महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपि की दाता प्रशस्तियां, दो-एक पट्टावलियां तथा प्रतिमालेख आदि उपलब्ध होते हैं वही इस गच्छ की न तो कोई पट्टावली मिलती है और न ही पर्याप्त संख्या में ग्रन्थ प्रशस्तियां या अभिलेखीय साक्ष्य ही मिलते हैं। मात्र कुछ ग्रन्थप्रशस्तियां और प्रतिमालेख ही ऐसे मिलते हैं जो इस गच्छ से सम्बद्ध हैं। उक्त सीमित साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत है -- जालिहरगच्छीय आचार्य देवप्रभसूरि द्वारा रचित पद्मप्रभचरित [रचनाकाल वि०सं० १२५४/११९८ ई.] की प्रशस्ति में काशहदगच्छ और जालिहरगच्छ का विद्याधरगच्छ की शाखा के रूप में उल्लेख है। परन्तु ये दोनों गच्छ कब और किस कारण से अस्तित्व में आये, इनके आदिम आचार्य कौन थे, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई भी जानकारी नहीं मिलती। Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास काशहदगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्व प्रथम साक्ष्य है वि०सं० ११९२/ ११३६ ई. का एक लेख, जो पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री साराभाई नवाब ने इसकी वाचना निम्नानुसार दी है - सं० ११९२ .... ............... काशहृदगच्छे श्रीसिंहलभार्या........ भार्यया सोहव्था कारिता। काशहृदगच्छ का उल्लेख करने वाला द्वितीय साक्ष्य है वि० सं० १२२२/ ११६६ ई. का लेख, जो पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। यह प्रतिमा आबू स्थित विमलवसही में प्रतिष्ठापित है। मुनि जयन्तविजयजी ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है____ संवत् १२२२ फाल्गुन सुदी १३ रवौ श्रीकाशहृदगच्छे श्र [श्री] मदु [द्] द्योतनाचार्यसंताने अर्बुदवास्तव्य श्रे० वरणाग तद्भार्या दली तत् पुत्रो [तत्पुत्रौ] श्रे० छाहर बाहरौ प्रथम [स्य] भार्या जासू तत्पुत्रा देवचंद्र वीरचंद्र । पास [व] चंद्र प्रभृतिसमस्तकुटुंबसमुदायेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं आत्मश्रेयोर्थं कारितमिति ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ चंद्रा6 यावन्नंदति चिरं जयतु। उक्त लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं मिलता बल्कि उद्योतनसूरिसंतानीय..... ऐसा उल्लेख है। काशहृदगच्छ के उपलब्ध साक्ष्यों में सबसे प्राचीन होने से यह लेख महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। काशहदगच्छ से सम्बद्ध वि०सं० १२४५/११८९ ई. वैशाख वदि ५ गुरुवार के १० लेख मिले है। ये सभी आबू स्थित विमलवसही में प्रतिष्ठापित तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं । इन लेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में काशहदगच्छीय आचार्य सिंहसूरि का उल्लेख है। ये सिंहसूरि किनके शिष्य थे, इस बारे में उक्त लेखों से कोई जानकारी नहीं प्राप्त होती। ___काशहृदगच्छ से सम्बन्धित वि० सं० १३००/१२४४ ई. का भी एक लेख उक्त जिनालय से ही प्राप्त हुआ है । लेख का मूल पाठ इस प्रकार है Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९७ काशहद गच्छ संवत १३०० ज्येष्ठ वदि १ सुक्रै: [शुक्रैः] ॥ श्रीकाशहदगच्छे, श्रीदेवचंद्रा आचारजसंताने सालिगसुत आसिग .... .... .... .... देवेन .... .... .... .... सहितेन .... .... .... .... । ___ यद्यपि उक्त खण्डित लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम नष्ट हो गया है, परन्तु वे आचार्य देवचन्द्र के संतानीय [शिष्य] थे, ऐसा स्पष्ट होता है। ___ काशहदगच्छ में किन्ही सिंहसूरि के शिष्य नरचन्द्र उपाध्याय नामक एक विद्वान् मुनि हो चुके हैं जिनके द्वारा रचित प्रश्नशतक ज्ञानदीपिका नामक वृत्ति सहित, जन्मसमुद्रसटीक और ज्योतिषचतुर्विंशतिका आदि कृतियां मिलती हैं। प्रश्नशतक का रचनाकाल वि०सं० १३२४/१२६८ ई. माना जाता है । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपने गुरु का सादर उल्लेख किया इति श्रीकाशहृदगच्छीय श्रीसिंहसूरिशिष्यश्रीनरचंद्रोपाध्यायकृतायां ज्ञानदीपिकासंज्ञायां प्रश्नशतकवृत्तौ वृत्तिवेडालधुभागिन्यां वृष्टिवार्तादिप्रकीर्णकफललक्षणो नाम सप्तमः प्रकाशः ॥ ६ ॥ ज्ञानदीपिकानामवृत्तिः समाप्ता ॥ जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, वि०सं० १२४५/११८९ ई. के कई प्रतिमालेखों में काशहृदयगच्छीय आचार्य सिंहसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है और प्रश्नशतक आदि कई ग्रन्थों के रचनाकार नरचन्द्र उपाध्याय भी अपने गुरु का नाम सिंहसूरि ही बतलाते हैं । ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या आबू स्थित विमलवसही में वि० सं० १२४५/११८९ ई० में प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक सिंहसूरि तथा पूर्वोक्त ग्रन्थकार नरचन्द्र उपाध्याय के गुरु सिंहसूरि एक ही व्यक्ति हैं ? नरचन्द्र उपाध्याय का समय वि० सं० १३२४/१२६८ ई. सुनिश्चित है, अत: उनके गुरु का समय उनसे लगभग २५ वर्ष पूर्व वि०सं० १३०० के आस-पास माना जा सकता है । इस प्रकार दोनों सिंहसूरि के Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास बीच लगभग ५५ वर्षो का अन्तराल है । अत: इस आधार पर यह माना जा सकता है कि दोनों अलग-अलग व्यक्ति हैं, एक नहीं । काशहृदगच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० १३४९/१२८३ ई० का है । यह लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर में संरक्षित पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । श्री अगरचन्द नाहटा ' ने इस लेख की वाचना निम्नानुसार दी है I संव [त्] १३४९ फागुण [ फाल्गुन] सुदि ८ श्रीकाशहृदगच्छे श्री० आंबड़पुत्रकर्मणेन मातृपितृश्रेयार्थं पार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० यण: ( ? ) | इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक मुनि का स्पष्ट उल्लेख नहीं है । इसी गच्छ से सम्बद्ध अगला लेख वि० सं० १३७३ / १३१७ ई० का है । यह लेख वडनगर स्थित चौमुखजी देरासर में प्रतिष्ठापित आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण हैं । आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है 1 सं० १३७३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १२ श्रीकाशहदीयगच्छे, बहुसीहनय श्री आदिनाथबिंब का० प्रति० श्री उमेतनसूरिभिः ॥ इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उमेतनसूरि [ उद्योतनसूरि ] का उल्लेख है । .१० काशहदगच्छ से सम्बद्ध अगला अभिलेख वि० सं० १३९३/१३३७ ई० में प्रतिष्ठापित शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। मुनि जयन्तविजय' के अनुसार लेख का मूलपाठ इस प्रकार है सं० १३९३ काशहदगच्छे ० नरसीह भा० वरजी पु० धरणिगेन पित्रोः श्रेयसे श्री शांतिनाथ बिं० का० प्र० श्री सिंहसूरिभि: ॥ उक्त लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में सिंहसूरि का नाम दिया गया है । इसी गच्छ से सम्बद्ध दो प्रतिमालेख वि. सम्वत् की १५वीं शती के हैं । उनमें से एक वि० सं० १४६१ / १४०५ ई० का है, जो मातर स्थित Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काशहद गच्छ २९९ सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय में रखी पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है ।" लेख का मूलपाठ इस प्रकार है सं० १४६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रे उपकेराज्ञा ० ० सांगणभार्यासुहवदे-पुत्रघणसीहेन सु० मेघासहितेन पितृपितृव्यराणानिमित्तं श्री पार्श्वनाथबिंबं का० प्र० काशहृदगच्छे श्रीदेवचन्द्रसूरिभिः ॥ वि० सं० की १५वीं शती का द्वितीय लेख वि० सं० १४७२ / १४१६ ई० का है जो धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । श्री अगरचन्द नाहटा ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है सं० १४७२ वर्ष फा॰ सु० ९ श्रीकासद [काशहद] गच्छे उएस ज्ञा० मोटिलागोत्रे . जयता पु० रत्ना भा० रत्नसिरि पु. धणसीहेन पित्रोः श्रेयसे श्री धर्मनाथ [[ ] कारित प्रति० श्री उजोअण [ उद्योतन ] सूरिभिः ॥ उक्त प्रतिमा आज चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर में है काशहदगच्छ का उल्लेख करने वाला यह अंतिम अभिलेखीय साक्ष्य है I काशहृदगच्छीय किन्हीं देवचन्द्रसूरि के शिष्य उपाध्याय देवमूर्ति द्वारा रचित विक्रमचरित [रचनाकाल वि०सं० १४७१ के आसपास] नामक एक कृति मिलती है । १३ इस कृति की दो हस्तलिखित प्रतियां मेदपाट । [मेवाड़] के शासक कुम्भकर्ण [वि०सं० १४८९ - १५२४ / १४३३ -१४६८ ई०] के राज्य में लिखी गयीं। प्रथम प्रति वि० सं० १४९२ / १४३६ ई० में वेसग्राम नामक स्थान पर ग्रन्थकार के गुरु देवचन्द्रसूरि के शिष्य उद्योतनसूरि पट्टधर सिंहरि ने स्व पठनार्थ वाचनाचार्य शीलसुन्दर से लिखवायी । द्वितीय प्रति उक्त सिंहसूरि ने ही उक्त शासक के शासनकाल में ही वि० सं० १४९९/१४४० ई० में महीतिलक से लिखवायी । अर्थात् ? Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देवचन्द्रसूरि उपाध्याय देवमूर्ति उद्योतनसूरि [वि०सं० १४७१/१४१५ ई० के आसपास विक्रमचरित अपरनाम सिंहासनद्वात्रिंशिका के रचनाकार] सिंहसूरि [वि०सं० १४९२ और १४९६ में इन्होंने विक्रमचरित की प्रतिलिपि करायी] वि० सं० १४६१/१४०५ ई० के प्रतिमालेख में उल्लिखित देवचन्द्रसूरि और वि०सं० १४७२/१४१६ ई. के प्रतिमालेख में प्रतिष्ठापक के रूप में वर्णित उद्योतनसूरि को विक्रमचरित की प्रशस्ति में उल्लिखित देवचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर उद्योतनसूरि से समसामयिकता और गच्छसाम्य के आधार पर अभिन्न माना जा सकता है। देवचन्द्रसूरि [वि०सं० १४६१/१४०५ ई०] प्रतिमालेख उपाध्याय देवमूर्ति [वि०सं० १४७१/१४१५ ई. के आसपास विक्रमचरित के रचनाकार] उद्योतनसूरि वि०सं० १४७२-१४१६ ई.] प्रतिमालेख सिंहसूरि [वि०सं० १४९२ और १४९५ में उन्होंने Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०१ काशहद गच्छ विक्रमचरित की प्रतिलिपि करायी] उक्त साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के कुल ९ मुनिजनों के नामों का पता चलता है। इनमें से उद्योतनसूरि और सिंहसूरि का तीन बार और देवचन्द्रसूरि का दो बार उल्लेख आया है अर्थात् देवचन्द्रसूरि, उद्योतनसूरि और सिंहसूरि का पट्टधर आचार्यों के रूप में पुनः पुनः नाम आता है। अतः यह कहा जा सकता है कि काशहृदगच्छ में पट्टधर आचार्यों के यहीं तीन नाम पुनः पुनः प्राप्त होते रहे । संख्या की दृष्टि से साक्ष्यों की विरलता तथा उपलब्ध साक्ष्यों से प्राप्त विवरणों की सीमितता आदि कारणों से इस गच्छ के बारे में विशेष विवरणों का अभाव सा है। फिर भी उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर विक्रम सम्वत् की १३वीं शती से १५वीं शती के अन्त तक लगभग ३०० वर्ष पर्यन्त इस गच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध होता है। इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की सीमितता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अन्य गच्छों की अपेक्षा इस गच्छ के मुनिजनों और उनके अनुयायी श्रावकों की संख्या अधिक न थी। १६वीं शती से इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों का पूर्णतः अभाव है, अत: यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि इस गच्छ के मुनि और श्रावक इस समय तक किन्ही अन्य गच्छ में सम्मिलित हो गये होंगे। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका निर्मित की जा सकती है, जो इस प्रकार है ? उद्योतनसूरिसंतानीय [वि०सं० १२२२/११६६ ई.] प्रतिमालेख Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सिंहसूरि [वि०सं० १२४५/११८९ ई.] प्रतिमालेख सिंहसूरि के शिष्य नरचन्द्र उपाध्याय [वि०सं० १३२४ के आसपास प्रश्नशतक, ज्योतिषचतुविंशतिका आदि ग्रन्थों के रचयिता] उद्योतनसूरि [वि०सं० १३७३/१३१७ ई.] प्रतिमालेख सिंहसूरि (द्वितीय) [वि०सं० १३९३/१३३७ ई.] देवचन्द्रसूरि प्रतिमालेख [वि०सं० १४६१/१४०५ ई.] प्रतिमालेख; विक्रमचरित की वि०सं० १४९२ और १४९५ की दाताप्रशस्ति में ग्रन्थकार देवमूर्ति उपाध्याय के गुरु तथा प्रतिलिपि कराने वाले सिंहसूरि के प्रगुरु के रूप में उल्लिखित] उपा० देवमूर्ति उद्योतनसूरि तृतीय Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०३ काशहद गच्छ [वि०सं० १४७१/१४१५ ई. के [वि०सं० १४७२] प्रतिमालेख आसपास विक्रमचरित के रचनाकार] सिंहसूरि [इन्होंने वि०सं० १४९२ और १४९५ में विक्रमचरित की स्वपठनार्थ प्रतिलिपि करवायी.] संदर्भ सूची: १. यह वही ऐतिहासिक स्थान है जहां चौलुक्यनरेश बाल मूलराज [११७६-७८ ई.] और शहाबुद्दीन गोरी की सेनाओं में भीषण संघर्ष हुआ था, जिसमें तुर्कों की बुरी तरह पराजय हुई थी। R. C. Majumdar, and A.D. Pusalker, (Ed.) - The Struggle For Empire, 3rd Ed., p. 78. २. C.D. Dalal, - Descriptive Catalogue of Mss in the Jaina Bhandars at Pattan, P. 210-213. साराभाई नवाब- "गुजरातनी केटलीक प्राचीन जिनमूर्तियो" श्रीमहावीर जैन विद्यालय रौप्य जयन्ती ग्रन्थ, मुंबई १९४० ई०, पृष्ठ १४४-४५. मुनि जयन्तविजय (संपा०), अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक १७१. वही, लेखांक ५५, ७३, ९५, ९८, १००, १०३, १०४, १०६, १०९, १४७ वही, लेखांक ४३. भोगीलाल सांडेसरा - महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मंडल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, पृष्ट १०२-१०३, संदर्भ संख्या ३. प्रो० सांडेसरा ने प्रश्नशतक का रचनाकाल ई० सन् ११७८ माना है, जो भ्रामक है। अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा (संपा०), बीकानेर जैन लेख संग्रह, लेखांक २१०. बुद्धिसागरसूरि (संपा०) जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह, भाग १, लेखांक ५६२. १०. मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ५६२. ११. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ४७१. ॐ 3 ) Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १२. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ६६१. १३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ४६८. श्री देसाईने विक्रमचरित की "रायल एशियाटिक सोसायटी- बाम्बे ब्रांच" में संरक्षित प्रति को वि० सं० १४८२/१४२६ ई. में लिपिबद्ध बतलाया है। श्री अगरचन्द नाहटा ने भी विक्रम स्मृति ग्रन्थ (उज्जैन, वि० सं० २००१) में प्रकाशित अपने लेख "विक्रमादित्य संबंधी जैन साहित्य" में श्री देसाई का ही अनुसरण किया है; जब कि श्री हरि दामोदर वेलणकर ने स्वसम्पादित जिनरत्नकोश (पृष्ठ ३४९-३५०) में उक्त प्रति को वि० सं० १४९२ में लिखा गया बतलाया है, जो प्रमाणिक है क्यों कि राणा कुम्भकर्ण का शासन वि० सं० १४८९ /१४३३ ई० में प्रारम्भ हुआ था। Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ का संक्षिप्त इतिहास ई० सन् की दसवीं - ग्यारहवीं शताब्दी में श्वेताम्बर जैन श्रमण संघ का नगरों, उपनगरों आदि के आधार पर भी विभाजन होने लगा । इसी क्रम से कोरटा नामक स्थान से कोरंटगच्छ, नाणा से नाणकीयगच्छ, ब्रह्माण से ब्रह्माणगच्छ, संडेर से संडेरगच्छ आदि अनेक गच्छ अस्तित्व में आये । विभाजन की यह प्रक्रिया परवर्ती शताब्दियों में भी जारी रही। प्रस्तुत लेख में कोरंटगच्छ के इतिहास पर प्रकाश डाला गया है गच्छों के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत ग्रन्थ और पुस्तक प्रशस्तियों एवं गच्छ से सम्बन्धित गुर्वावली - पट्टावली आदि उल्लेखनीय हैं । अभिलेखीय साक्ष्यों में सम्बद्ध गच्छ के आचार्यों द्वारा विभिन्न स्थानों पर प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की चर्चा की सकती है। कोरंटगच्छ मध्ययुगीन श्वेताम्बर जैन संघ के चैत्यवासी आम्नाय से सम्बद्ध रहा है। उपकेशगच्छ की एक शाखा के रूप में इसकी मान्यता है । इस गच्छ के आचार्यों के ये तीन नाम कक्कसूरि, सावदेव (सर्वदेव) सूरि और नन्नसूरि पुन: पुन: मिलते हैं । इस गच्छ का सर्वप्रथम उल्लेख वि० सं० १२०१ के एक प्रतिमा लेख में और अन्तिम उल्लेख रायपसेणियसुत्त की वि० सं० १६१९ की प्रतिलिपि की प्रशस्ति में प्राप्त होता है । इस प्रकार लगभग ४०० वर्षों तक इस गच्छ का अस्तित्व रहा । कोरंटगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये सीमित संख्या में Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मूलकर्ता के ग्रन्थ की प्रतिलिपि की दाताप्रशस्तिया एवं बड़ी संख्या में इस गच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं के लेख मिले हैं, जिनके आधार पर इस गच्छ के इतिहास का एक सर्वेक्षण प्रस्तुत है कोरंटगच्छ का उल्लेख करने वाला सबसे प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य हैं महावीरचरित्र (त्रि. श० पु०, पर्व १०) की वि० सं० १३६८ में की गयी प्रतिलिप की दाताप्रशस्ति', जिसमें कोलापुर (?) निवासी श्रावक मूलू और उसके परिजनों द्वारा अपनी माता के श्रेयार्थ अपने गुरु, कोरंटगच्छीय कृष्णर्षि के शिष्य, चन्द्रकुल के ध्वज समान आचार्य नन्नसूरि को वाचनार्थ प्रदान करने का उल्लेख है। दूसरा साहित्यिक साक्ष्य है त्रि. श. पु. च० के द्वितीय सर्ग (अजितनाथचरित्र) की वि० सं० १४३६ में तैयार की गयी प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति । ९ श्लोकों की इस प्रशस्ति में प्रथम ४ श्लोकों में दाता श्रावक देवसिंह और उसके परिवार का परिचय और अन्तिम ५ श्लोकों में श्रावक के गुरु एवं पुस्तक प्राप्तकर्ता सावदेवसूरि के शिष्य आचार्य नन्नसूरि का प्रशंसात्मक विवरण है। तीसरा और अन्तिम साहित्यिक साक्ष्य है राजप्रश्नीयसूत्र की वि० सं० १६१९ में पूर्ण की गयी प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति । इसमें कोरंटगच्छीय वाचक आसदेव के पट्टधर भोजदेव की परम्परा में हुए वाचक देवप्रभ द्वारा जोधपुर नरेश महाराज मालदेव के उत्तराधिकारी चन्द्रसेन के राज्यकाल में उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि करने का उल्लेख है। प्रशस्ति में कोरंटगच्छीय वाचक परम्परा की गुर्वावली दी गयी है जो इस प्रकार है - वाचक आसदेव वाचक भोजदेव वाचक जयतिलक वाचक देवकलश Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ ३०७ वाचक देवसुन्दर वाचक देवमूर्ति वाचक देवप्रभ (वि० सं० १६१९ में रायपसेणियसुत्त के प्रतिलिपि कर्ता) कोरंट गच्छ से सम्बद्ध अब तक उपलब्ध अन्तिम साक्ष्य होने के कारण ही इस प्रशस्ति का महत्त्व है। कोरंटगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का कालक्रमानुसार विवरण इस प्रकार है Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् २. ३. तिथि १२०१ | तिथि विहीन १२१२ | ज्येष्ठ वदि ८ मंगलवार १२१२ ज्येष्ठ वदि ८ मगलवार आचार्य का नाम नन्नसूरि के पट्टधर कक्कसूरि कक्कसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख प्रतिष्ठा स्थान शिलालेख धातु प्रतिमा लेख | आदिनाथ जिनालय, जैन सत्यप्रकाश कोरटा, मारवाड जिल्द १, संदर्भ ग्रन्थ हस्तिशाला, विमलवसही, आबू पृ. ३१०-११, लेख क्रमांक ८ जिनविजय, प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २४८ हस्तिशाला, आबू, भाग ५ विमलवसही, आबू लेखांक २२९ ३०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ सुदि ५ क्रमाङ्क संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४. १२२६ माघ । यशोभद्रसूरि | पार्श्वनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग ५ सुदि ४ संतानीय प्रतिमा का लेख रोहिड़ा लेखांक ५५७ गुरुवार ५. १२७४ | फाल्गुन । कक्कसूरि के | गुरु प्रतिमा लेख | पालनपुर जिनविजय, शिष्य सर्वदेवसूरि पूर्वोक्त, गुरुवार की प्रतिमा पर लेखांक ५५२ एवं उत्कीर्ण लेख जैनतीर्थसर्वसंग्रह, पालनपुर, पृ. ३२-३४ १२९२ | फाल्गुन कक्कसूरि एक तीर्थी प्रतिमा | जिनालय आबू. भाग ५ . सुदि ८ पर उत्कीर्ण लेख | रोहिड़ा लेखांक ५०३ रविवार Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ७. १२९३ | फाल्गुन कक्कसूरि धर्मनाथ पंचतीर्थी | जैन मंदिर, | पूरनचन्द नाहर, सुदि ८ प्रतिमा का लेख | रोहेड़ा, सिरोही जैनलेखसंग्रह भाग २, लेखांक २०८० ८. || १२९८ | वैशाख एक तीर्थी प्रतिमा | जैन मंदिर, अजारी |आबू, भाग ५, सुदि ३ पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ४२४ ९. १२९८ | ज्येष्ठ धातु प्रतिमा लेख | शांतिनाथ जिनालय, मुनि कांतिसागर, सुदि १३ भिण्डी बाजार, जैनधातुप्रतिमाबम्बई लेख भाग १, लेखांक १४ १०. |१३१२ सर्वदेवसूरि चन्द्रप्रभ जिनालय, बुद्धिसागर, संपा) सुलतानपुरा, जैनधातुप्रतिमाबड़ोदरा जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास लेखसंग्रह, Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख | संदर्भ ग्रन्थ कोरंट गच्छ ११. १३१७ ज्येष्ठ नन्नाचार्य संतानीय | देहरियों की पाट | बावन जिनालय, वदि ११ ___ सर्वदेवसूरि का लेख करेड़ा बुधवार भाग २, . लेखांक ५०४ पूरनचन्द्र नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९५० जैनतीर्थसर्वसंग्रह पृ० ३२-३४ १२. |१३२५ | फाल्गुन | मुनिप्रभ उपाध्याय | पुण्डरीक प्रतिमा | जैन मंदिर, सुदि ४ | के शिष्य हस्तिराज | पर उत्कीर्ण लेख | पालनपुर बुधवार | द्वारा पुण्डरीक प्रतिमा की स्थापना का उल्लेख १३. |१३३१ । वैशाख । नन्नाचार्यसंतानीय | खंडित लेख जैन मंदिर, वदि ४ कक्कसूरि के शिष्य.. वही, पालनपुर पृ. ३२-३४ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १४. १५. १६. तिथि मिति - माघ सुदि १३ नष्ट १३३२ | मिति विहीन १३४० ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रवार आचार्य का नाम नन्नचार्य संतानीय कक्कर के शिष्य सर्वदेवसूरि श्री .... सूरिभिः प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की खंडित प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ जिनालय, सुल्तानपुरा, बड़ोदरा मल्लिनाथ की महादेव मंदिर के पास पड़ी खंडित प्रतिमा का लेख, प्रभासपाटन संदर्भ ग्रन्थ मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५५५ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १८९ नाहर, पूर्वोक्त, भाग- २, लेखांक १७९२ ३१२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि । आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १७. |१३४० | मिति नन्नसूरि के संतानीय | नेमिनाथ की महावीर जिनालय, नाहर, वही, विहीन कक्कसूरि के पट्टधर | प्रतिमा का लेख मणिकतल्ला भाग १, सावदेवसूरि । कलकत्ता लेखांक ११५ १८. १३४५ | वैशाख महावीर की धातु चिन्तामणिजी का अगरचन्द नाहटा, वदि २ प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर । बीकानेरजैन लेखसंग्रह, लेखांक २०१ १९. |१३५४ वैशाख कायोत्सर्ग प्रतिमा अजितनाथ जिनालय जैनतीर्थसर्वसंग्रह, सुदि २ पर उत्कीर्ण तारंगा तारंगा, सोमवार दो लेख पृ० १४६-१५२; जैनसत्यप्रकाश जिल्द २, - ३१३ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २०. २१. तिथि १३६० | आषाढ़ सुदि ९ सोमवार १३७३ | ज्येष्ठ सुदि १२ आचार्य का नाम "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नन्नसूरि की प्रतिमा का लेख आदिनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पावठा, जमीन की खुदाई में मिट्टी के ढेर से प्राप्त प्रतिमाओं में से एक चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ "पुरातन इतिहास अने स्थापत्य', जयन्तविजयजी, पृ० ६५-६८ लेखांक ११-१२ जैनतीर्थसर्वसंग्रह, पृ० ३६-३७, नं० ११७ - पावठा कोठा नं० २८८२ अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २५५ ३१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २२. १३७५ | तिथि वही, वही, पूर्वोक्त, विहीन लेखांक २६८ १३८२ | वैशाख वही, वही, पूर्वोक्त, सुदि ५ लेखांक २९३ २४. १३८४ / माघ । पार्श्वनाथ प्रतिमा | वही, वही, पूर्वोक्त, सुदि ५ का लेख लेखांक ३०२ २५. १३८४ माघ वज्रसूरि महावीर प्रतिमा चन्द्रप्रभ जिनालय, पूरनचन्द नाहर, | सुदि ५ का लेख जेसलमेर पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२५१ २६. १३८७ | ज्येष्ठ नन्नसूरि आबू आबू, भाग २, वदि ११ अनुपूर्ति लेख लेखांक ५५६ सोमवार Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ । क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम / प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख २७. | १३८९ | फाल्गुन नन्नसूरि लूणवसही, आबू सुदि ८ कक्कसूरि सोमवार २८. | १३८९ | फाल्गुन नन्नसूरि आदिनाथ प्रतिमा | चिन्तामणिजी का सुदि ८ का लेख मंदिर, बीकानेर आबू, भाग ५, लेखांक ४०५ २९. | १३८९ | फाल्गुन सुदि ८ ३०. | १३९० / तिथि विहीन गूढ मंडप का लूणवसही. आबू लेख शांतिनाथ प्रतिमा | चिन्तामणिजी का का लेख मन्दिर, बीकानेर अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ३३८ आबू, भाग २, लेखांक २५४ | अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ३३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३१. १३९२ / ज्येष्ठ कक्कसूरि | आदिनाथ महावीर जिनालय, विनयसागर, वदि ८ पंचतीर्थी का | सांगानेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेख भाग १, लेखांक १३४ ३२. १३९२ | फाल्गुन | नन्नसूरि के पट्टधर | - अनुपूर्ति लेख आबू, भाग २, वदि ८ कक्कसूरि लेखांक ५५६ ३३. |१३९३ | फाल्गुन आचार्य प्रतिमा |जैन मन्दिर, विजयधर्मसूरि, सुदि ८ पर उत्कीर्ण लेख | सादड़ी प्राचीनलेखसंग्रह, सोमवार लेखांक ६३ ३४. १३९७ | फाल्गुन नन्नसूरि महावीर की जैन मन्दिर, बुद्धिसागर, सुदि १३ | पंचतीर्थी का लेख ऊँझा, गुजरात पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक १५४ आबू १७ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख ३५. | १४०४ | वैशाख संभवनाथ की वीर जिनालय, सुदि १० प्रतिमा का लेख | डीसा रविवार ३६. | १४०६ | फाल्गुन | नन्नाचार्य संतानीय | महावीर प्रतिमा | चिन्तामणिजी का सुदि ८ कक्कसूरि का लेख मन्दिर, बीकानेर पूरनचन्द नाहर, भाग २, लेखांक २१०२ अगरचन्द, नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४०८ वही, पूर्वोक्त, लेखांक ४०९ नेमिनाथ प्रतिमा | वही का लेख ३७. | १४०६ | फाल्गुन सुदि ११ गुरुवार ३८. | १४०८ / वैशाख सुदि ५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास गूढ़मंडप में | विमलवसही, कक्कसूरि द्वारा २ | आबू जिन प्रतिमाओं आबू, भाग २, लेखांक ११ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भ ग्रन्थ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख की प्रतिष्ठा का उल्लेख ३९. |१४०८ | वैशाख | नन्नसूरि के पट्टधर | शिलालेख सुदि ५ कक्कसूरि गुरुवार ४०. १४०८ | वैशाख सुदि ५ गुरुवार - - मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २४० जिनविजय,पूर्वोक्त, लेखांक २३९ तथा आबू, भाग २ लेखांक १० अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४२७ ४१. कक्कसूरि १४११ | ज्येष्ठ । सुदि १२ | शांतिनाथ-प्रतिमा | चिन्तामणिजी का का लेख मंदिर Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वही, का लेख क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४२. | १४१४ | वैशाख । नन्नाचार्य संतानीय | अजितनाथ-प्रतिमा वही, सुदि १० कक्कसूरि । लेखांक ४३३ ४३. १४२२ | वैशाख | श्री ... देवसूरि | महावीर स्वामी | वही, वही, सुदि ११ की प्रतिमा का लेखांक ४४८ लेख ४४. | १४२६ | वैशाख कक्कसूरि के पट्टधर | शिलालेख | जैन मन्दिर, जिनविजय, सुदि २ मुंगथला पूर्वोक्त, भाग २ रविवार लेखांक २७४ ४५. | १४२६ | वैशाख कक्कसूरि शांतिनाथ की महावीर जिनालय विनयसागर, सुदि ९ पंचतीर्थी का लेख चोथका, बरवाड़ा पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक १५६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १४२६ / वैशाख कक्कसूरि के पट्टधर स्तंभ लेख । | खंडित जिनालय आबू, भाग ५ सुदि १ सार्वदेवसूरि | मुंगथला लेखांक १४९ ४७. १४२७ | ज्येष्ठ । कक्कसूरि पार्श्वनाथ की जैन मन्दिर, ऊंझा बुद्धिसागरसूरि, सुदि १५ पंचतीर्थी प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक १५२ ४८. १४२८ | पौष नन्नाचार्य संतानीय | वासुपूज्य- |चिन्तामणिजीनाहटा, पूर्वोक्त, वदि ७ कक्कसूरि पंचतीर्थी का का मन्दिर, बीकानेर लेखांक ४९० रविवार लेख ४९. १४३३ वैशाख नन्नाचार्य संतानीय धातु पंचतीर्थी महावीर जिनालय, लोढ़ा, सुदि ९ सावदेवसूरि का लेख थराद श्रीप्रतिमालेखशनिवार संग्रह, लेखांक ७ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५०. | १४३७ | वैशाख आदिनाथ की शीतलनाथ जिनालय नाहर, पूर्वोक्त, वदि १० प्रतिमा का लेख | उदयपुर भाग २, सोमवार लेखांक १०५७ ५१. | १४३९ । माघ वासुपूज्य पंचतीर्थी चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ५ का लेख मंदिर लेखांक ५३७ रविवार बीकानेर ५२. | १४५१ | फाल्गुन नन्नसूरि | वासुपूज्य प्रतिमा | वही वही, का लेख लेखांक ५५९ रविवार ५३. | १४५२ | ज्येष्ठ संभवनाथ की शांतिनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरि, सुदि ८ धातु प्रतिमा कनासा पाडो पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार जो गंभगृह में लेखांक ३६२ वदि २ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास " Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख रखी है, पर उत्कीर्ण लेख ५४. १४५६ / वैशाख पद्मप्रभ की प्रतिमा चिन्तामणि जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ४ का लेख बीकानेर लेखांक ५६९ ५५. १४६२ | सुदि ५ धातु की एकतीर्थी जैन मन्दिर आबू, भाग ५, प्रतिमा का लेख मालग्राम लेखांक २१० ५६. १४६६ | फाल्गुन धातु प्रतिमा लेख | गौडी जी भंडार प्राचीनलेखसंग्रह, सुदि ३ उदयपुर भाग १, सोमवार लेखांक १०१ ५७. १४७२ | फाल्गुन कक्कसूरि सुमतिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ९ प्रतिमा लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ६६३ शुक्रवार Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ५८. ५९. ६०. ६१. तिथि १४७५ ज्येष्ठ सुदि २ १४८० सुदि १० सोमवार १४८० फाल्गुन सुदी १० बुधवार १४८० | फाल्गुन सुदि १० बुधवार आचार्य का नाम "" नन्नसूरि के पट्टधर कक्कसूरि " "> प्रतिमालेख / स्तम्भलेख चन्द्रप्रभ स्वामी की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख "" प्रतिष्ठा स्थान विमलनाथ जिनालय, सवाई माधोपुर चिन्तामणिजी का जिनालय, बीकानेर धातु प्रतिमा लेख | आदिनाथ जिनालय भोजकों की सेरी, थराद संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ६७६ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २२८ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ६९९ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक २०५ ३२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क संवत् । तिथि | आचार्य का नाम प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६२. १४८६ / वैशाख । नन्नसूरि के पट्टधर शीतलनाथ की महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० कक्कसूरि धातु प्रतिमा | बीकानेर लेखांक १२९९ का लेख ६३. १४८६ | ज्येष्ठ सुमतिनाथ की चिन्तामणिजी का वही, पूर्वोक्त, वदि ६ प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ७३३ शनिवार ६४. १४८७ आषाढ़ कक्कसूरि | पद्मप्रभ की धातु आदिनाथ जिनालय वही, वदि ८ प्रतिमा का लेख राजलदेसर, बीकानेर लेखांक २३४७ रविवार ६५. १४९१ सावदेवसूरि भोयरा स्थित | शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, प्रतिमा लेख खंभात पूर्वोक्त, भाग २ लेखांक ७४० Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् ६६. १४९१ ६७. १४९१ ६८. १४९२ ६९. १४९२ तिथि फाल्गुन सुदि ११ फाल्गुन सुदि १२ वैशाख वदि ५ आचार्य का नाम "" कक्कसूरि के पट्टधर सावदेवसूरि सावदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धातुपंचतीर्थी का लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैनमन्दिर रोहिड़ा, सिरोही जैन मंदिर रोहिडा, सिरोही जैन मंदिर, प्रभासपाटन संभवनाथ प्रतिमा जैन मन्दिर, का लेख ओसिया संदर्भ ग्रन्थ आबू, भाग ५, लेखांक २०८२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २०८२ जैनसत्यप्रकाश, जिल्द १८ पृ०२३७, लेखांक २२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७९६ w m जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ७०. | १४९२ | वैशाख श्रेयांसनाथ की माणिकसागर जी विनयसागर, सुदि ३ पंचतीर्थी प्रतिमा का मन्दिर, कोटा पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक २८९ ७१. १४९५ | आषाढ पद्मप्रभपंचतीर्थी | पंचायती मन्दिर वही, वदि १३ का लेख जयपुर भाग १ मंगलवार लेखांक ३१४ ७२. |१४९५ | ज्येष्ठ शांतिनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय वही, भाग १, वदि १४ | पंचतीर्थी का लेख मालपुरा लेखांक ३०९ बुधवार ७३. १४९५ / ज्येष्ठ आदिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि प्रतिमा का लेख जिनालय, बीकानेर लेखांक ७८१ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ७४. |१४९६ | आषाढ़ अभिनन्दननाथ । मनमोहन पार्श्वनाथ | बुद्धिसागर, सुदि ६ की चौबीसी | मन्दिर, जीरारवाड़ो पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार प्रतिमा का लेख | खंभात लेखांक ७६४ ७५. | १४९६ | फाल्गुन शांतिनाथ की धातु महावीर स्वामी का | नाहटा, पूर्वोक्त, वदि६ प्रतिमा का लेख | मन्दिर, आसाणियों | लेखांक १८९३ बुधवार का चौक, बीकानेर ७६. | १४९६ | फाल्गुन कक्कसूरि के पट्टधर | शांतिनाथ की शंखेश्वर पार्श्वनाथ नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ | सावदेवसूरि | पंचतीर्थी का लेख जिनालय, बीकानेर भाग २, बुधवार लेखांक १३३० ७७. | १४९९ | फाल्गुन | नन्नाचार्य सतानीय | सुमतिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि २ भावदेव(सावदेव)सूरि | प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ८११ गुरुवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ७८. ८०. तिथि ७९. १५०३ ज्येष्ठ ८१. १५०१ तिथि विहीन सुदि ११ शुक्रवार १५०६ | माघ वदि ९ १५०६ | माघ वदि ਤੇ आचार्य का नाम सावदेवसूरि कक्कसूरि के पट्टधर सावदेवसूरि सावदेवसूरि नन्नाचार्य संतानीय सावदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख प्रतिष्ठा स्थान अभिनन्दननाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, पंचतीर्थी का लेख कोटा पद्मप्रभ की प्रतिमा का लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वासुपूज्य की पंचतीर्थी का लेख जयपुर संदर्भ ग्रन्थ वासुपूज्यपंचतीर्थी | वही का लेख विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३५६ सुमतिनाथ जिनालय विनयसागर, नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८६८ पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४०८ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११८३ कोरंट गच्छ Ww U Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम संदर्भ ग्रन्थ प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख चन्द्रप्रभ की चिन्तामणिजी का प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९१० ८२. | १५०७ | चैत्र वदि ५ शनिवार ८३. | १५०७ माघ | वदि ५ सोमवार | १५०७ / माघ सुदि सावदेवसूरि | धातु प्रतिमा लेख | शांतिनाथ जिनालय, प्राचीनलेखसंग्रह, मांडल लेखांक २२६ ८४. कक्कसूरि आदिनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, विनयसागर पूर्वोक्त धातु प्रतिमा का | मालपुरा | भाग १, लेख लेखांक ४२३ सुमतिनाथ प्रतिमा चिन्तामणि जी का नाहटा, पूर्वोक्त, का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ९२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सावदेवसूरि फाल्गुन वदि ३ गुरुवार Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८६. |१५०८ | वैशाख । नन्नाचार्य संतानीय | चौबीसी का लेख | अजितनाथ नाहर, पूर्वोक्त, वदि ११ कक्कसूरि के पट्टधर | जिनालय, तारंगा भाग २, सावदेवसरि लेखांक १७३३ ८७. १५०९ | तिथि सावदेवसूरि वासुपूज्य की | ऊंडीपोल, बुद्धिसागर, विहीन चौबीसी प्रतिमा शांतिनाथ जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, का लेख बड़ौदा लेखांक ६७१ ८८. |१५०९ कक्कसूरि के पट्टधर जैनमन्दिर, जैनसत्यप्रकाश, सावदेवसूरि गुलाबबाड़ी, बम्बई |जिल्द ५, पृ. १६०-६५ क्रमांक २१ ८९. | १५०९ / ज्येष्ठ सावदेवसूरि वासुपूज्य की चन्द्रप्रभ जिनालय, बुद्धिसागर, सुदि ९ धातु की प्रतिमा | सुलतानपुरा, पूर्वोक्त, भाग २, शुक्रवार का लेख बड़ौदा लेखांक २०३ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लखाक क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९०. | १५०९ | वैशाख । नन्नाचार्य संतानीय | वासुपूज्यपंचतीर्थी आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ११ | सावदेवसूरि का लेख धर्मशाला, आबूरोड | भाग २, लेखांक २०१२ ९१. १५०९ वैशाख धातुपंचतीर्थी आदिनाथ जिनालय, आबू, भाग ५, वदि ११ का लेख खराड़ी ग्राम लेखांक १ शुक्रवार ९२. | १५०९ | वैशाख कुंथुनाथ की कुशलाजी का नाहर, भाग १, वदि ११ प्रतिमा का लेख । मन्दिर, रामघाट, लेखांक ४१७ शुक्रवार वाराणसी ९३. | १५०९ | वैशाख कुंथुनाथ की | अजितनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ११ प्रतिमा का लेख | शेखनो पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार अहमदाबाद लेखांक १०९२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ पंचमी क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९४. १५०९ / वैशाख | नन्नसूरि के पट्टधर | पाषाण की आदिनाथ जिनालय, नाहर, भाग २, सुदि कक्कसूरि कायोत्सर्ग प्रतिमा आबू लेखांक २०१४ का लेख ९५. १५०९ | वैशाख कक्कसूरि के पट्टधर | धातुकी प्रतिमा का घेलासेठ का राधनपुरप्रतिमासुदि १३ | सावदेवसूरि लेख घर देरासर, लेखसंग्रह, शुक्रवार राधनपुर विशालविजयजी, लेखांक १५७ ९६. १५०९ । माघ धर्मनाथकी धातु चिन्तामणि पार्श्वनाथ कान्तिसागर, पंचमी की प्रतिमा | जिनालय, पूर्वोक्त, भाग १, | का लेख गुलाबबाड़ी, बम्बई |लेखांक १२१ ९७. १५११ माघ सावदेवसूरि सुमतिनाथ की सीमंधर स्वामी का वही, भाग १, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | जिनालय, लेखांक ११४८ गुरुवार अहमदाबाद Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९८. | १५१२ | फाल्गुन नमिनाथ की धातु गौड़ी पार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १२ प्रतिमा का लेख | जिनालय, लेखांक १९२९ बुधवार गोगा दरवाजा, पार्श्वनाथ पार्क, बीकानेर ९९. | १५१३ | मिति कक्कसूरि के पट्टधर | धर्मनाथ की |संभवनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, विहीन | सावदेवसूरि प्रतिमा का लेख | कड़ी पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७३६ १००. | १५१५ | फाल्गुन | सोम(साव)देवसूरि | संभवनाथ की अभिनंदननाथ वही, भाग २, सुदि १२ प्रतिमा का लेख | जिनालय, लेखांक ८६१ बुधवार लालवाड़ी, खंभात जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०१. १०२. १०३. १०४. १५१७ १५१७ तिथि माघ सुदि १० बुधवार "" १५१७ माघ सुदि १२ १५१८ ज्येष्ठ सुदि ६ बुधवार आचार्य का नाम कक्कसूरि के पट्टधर श्रीपाद... । प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख सावदेवसूरि चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान कुंथुनाथ की धातु प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख संदर्भ ग्रन्थ पार्श्वनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, लस्कर, ग्वालियर कक्कसूरि के पट्टधर धातु प्रतिमा लेख आदिनाथ जिनालय, प्राचीनलेखसंग्रह, सावदेवसूरि जामनगर लेखांक ३०५ भाग २, लेखांक १४०४ रिणी, तारानगर शांतिनाथ जिनालय, बरलुट (सिरोही) शीतलनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २४४२ जैनसत्यप्रकाश, जिल्द २, पृ० ५०६, क्रमाक ३८ कोरंट गच्छ ww W Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०५. १५१८ ज्येष्ठ सुदि ६ बुधवार १०६. १०७. १०८. तिथि १५१८ १५१९ ज्येष्ठ सुदि १३ शनिवार १५२१ | वैशाख वदि ६ बुधवार आचार्य का नाम " पजूनसूरि नन्नाचार्य संतानीय कक्कसूरि के पट्टधर सावदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख कुंथुनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ पंचतीर्थी | अजितनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, का लेख तारंगा धर्मनाथ प्रतिमा का लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संभवनाथ चौबीसी का लेख | पेथापुर बावन जिनालय, संदर्भ ग्रन्थ धर्मनाथ जिनालय, डभोई भाग २, | लेखांक १७२६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०१० बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६९७ वही, भाग १, लेखांक १४ ३३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०९. ११०. १११. ११२. तिथि १५२१ वैशाख सुदि २ शनिवार १५२२ | आषाढ़ सुदि १२ रविवार १५२३ | वैशाख सुदि ४ बुधवार १५२३ वैशाख सुदि ५ बुधवार आचार्य का नाम सावदेवसूरि नन्नसूरि कक्कसूरि के पट्टधर सावदेवसूरी कक्कसूरि के पट्टधर भावदेवसूरि (सावदेवसूरि) प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धातुपंचतीर्थी का लेख धातुपंचतीर्थी का लेख श्रेयांसनाथ की धातु प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की धातु प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान भयरासेरी स्थित महावीर जिनालय की एक धातु प्रतिमा | लेखांक २३५ का लेख संदर्भ ग्रन्थ ठाकुर भाई मूलचन्द जिनालय, गौडीजी खड़की वही, स्थित गौड़ी पार्श्वनाथ लेखांक २४७ जिनालय सूरत बड़ा देरासर, लिंबडी राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, प्राचीनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३७१ वही, भाग १, | लेखांक ३७३ कोरंट गच्छ ३३७ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ११३. ११४ ११६. १५२३ वैशाख १५२४ तिथि सुदि १३ शुक्रवार ज्येष्ठ १५२५ ११५. सुदि १३ शुक्रवार फाल्गुन सुदि ७ शनिवार १५२८ वैशाख वदि २ गुरुवार आचार्य का नाम "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान आदिनाथ प्रतिमा का लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर आदिनाथ पंचतीर्थी का लेख | जयपुर पद्मप्रभ जिनालय झवेरीवाड़, अहमदाबाद चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०३० विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६४५ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८५० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०५६ ३३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ११७. १५३० ११८. ११९. १२०. तिथि माघ वदि ८ सोमवार १५३० तिथि विहीन १५३१ वैशाख वदि ११ सोमवार १५३१ | माघ वदि ८ आचार्य का नाम नन्नाचार्य संतानीय कक्कसूरि के पट्टधर सावदेवसूरि सावदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख जैन मंदिर, झवेरीवाड़ अहमदाबाद आदिनाथ की धातु गौड़ी पार्श्वनाथ प्रतिमा का लेख जिनालय, देरापोल बाबाजीपुरा, बड़ोदरा महावीर जिनालय, रिलीफ रोड, अहमदाबाद आदिनाथ की धातु जैन मंदिर, प्रतिमा का लेख ईडर संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८११ वही, भाग-२, लेखांक २१८ वही, भाग १, लेखांक ९५५ वही, भाग १, लेखांक १४१७ कोरंट गच्छ ३३९ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् १२१. १५३१ वैशाख सुदि ५ सोमवार १२२. १५३१ १२३. १२४. तिथि १५३४ "" १५३२ वैशाख सुदि ६ सोमवार माघ सुदि १३ शुक्रवार आचार्य का नाम सर्व (साव) देवसूरि मुनिसुव्रत की धातु - प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की धातु प्रतिमा का लेख "" "" प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख "" प्रतिष्ठा स्थान सुमतिनाथ की पंचतीर्थी का लेख संदर्भ ग्रन्थ शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, दंताल पोल, खंभात लेखांक ६६३ भोंयरा स्थित प्रतिमा वही, भाग २, लेख, शांतिनाथ लेखांक ७४८ जिनालय, खंभात पंचायती मंदिर नाहर, पूर्वोक्त, सराफा बाजार, भाग २ लस्कर, ग्वालियर लेखांक १३८० धातु प्रतिमा लेख आदिनाथ जिनालय, प्राचीनलेखसंग्रह, पूना भाग १, लेखांक ४५६ ३४० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२५. | १५३४ | वैशाख । नन्नसूरि के स्तम्भ लेख जैन मन्दिर, आबू, भाग-५, सुदि १० | संतानीय कक्कसूरि जीरावला लेखांक १७३ सोमवार १२६. १५३६ माघ नन्नाचार्य के आदिनाथ चिन्तामणि जिनालय, विनयसागर, वदि ५ संतानीय पंचतीर्थी का लेख किशनगढ़ पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार सावदेवसूरि लेखांक ७९८ १२७. १५४४ फाल्गुन सावदेवसूरि धातु प्रतिमा पर गांव का जैन मंदिर, मुनि कान्तिसागर, वदि २ उत्कीर्ण लेख चांदवाड़, नासिक पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक २४७ १२८. |१५४९ | माघ | रत्न (नन्न) सूरि | दादा पार्श्वनाथजी | नरसिंहजी की पोल, बुद्धिसागर, सुदि ५ देहरा का लेख बड़ोदरा पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार लेखांक १२३ - Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् १२९. १३०. १३१. १३२. १५४९ तिथि माघ सुदि... १५५२ | मार्गशीर्ष सुदि ५ रविवार १५५३ १५५३ | माघ सुदि ५ दिने माघ सुदि ६ आचार्य का नाम नन्नसूरि "" "" श्री .... सूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ पंचतीर्थी | पार्श्वनाथ जिनालय, विनयसागर, का लेख डाउ मणिक सागरजी का कुन्थुनाथ पंचतीर्थी का लेख मन्दिर, कोटा संदर्भ ग्रन्थ कुन्थुनाथ जैन मंदिर, पंचतीर्थी का लेख क्षत्रियकुंड, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८५६ वही, भाग १, लेखांक ८६८ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६९८ लक्षवाड़ कुन्थुनाथ की धातु आदिनाथ जिनालय, वही, भाग-१, बालुचर, मुर्शिदाबाद लेखांक ३७ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३४२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् १३३. १३४. १३५. १३६. तिथि १५५६ माघ सुदि ५ सोमवार १५५७ वैशाख सुदि १० १५६८ | आषाढ़ सुदि ४ १५६९ | ज्येष्ठ सुदि १३ मंगलवार आचार्य का नाम भावदेवसूरि (सावदेवसूरि ? ) नन्नसूरि "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पाषाण प्रतिमा का लेख नमिनाथ पंचतीर्थी का लेख की वासुपूज्य प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान महावीर जिनालय, सांगानेर अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा सीमंधर स्वामी का मन्दिर, खंभात संदर्भ ग्रन्थ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १ लेखांक ८०१ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २ लेखांक १६४२ विनयसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९३६ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, | लेखांक १०६६ कोरंट गच्छ ३४३ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३७. | १५७३ | आषाढ़ आदिनाथ की पहले यह प्रतिमा चारजैनतीर्थो, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | मातर ग्राम में थी, मुनि विशालविजय, गुरुवार परन्तु अब लेखांक ९, तथा अरनाथ जिनालय | बुद्धिसागरसूरि, जीरारवाडो, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, | लेखांक ७६९ १३८. | १५७९ | वैशाख कक्कसूरि । | पार्श्वनाथ की धातु | वीर जिनालय नाहर, पूर्वोक्त, . सुदि ७ प्रतिमा का लेख । पुरानी मंडी, भाग १, बुधवार जोधपुर लेखांक ६०३ १३९. | १५९५ / वैशाख अजितनाथ की बृहत्खरतगच्छ का वही, सुदि ४ पंचतीर्थी का उपाश्रय, जैसलमेर | भाग ३, गुरुवार लेख लेखांक २४८८ में है। जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ क्रमाङ्क |संवत | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १४०. |१५१५ माघ मुनिसुव्रत की जैन मंदिर, पाटण बुद्धिसागरसूरि, वदि १२ धातु प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ४५५ १४१. १६११ / ज्येष्ठ नन्नसूरि |सुपार्श्वनाथ की शीतलनाथ जिनालय, वही, भाग २, सुदि १२ प्रतिमा का लेख | कुंभारवाडो, खंभात |लेखांक ६५६ शनिवार १४२. १६१२ | तिथि शांतिनाथ की वीर जिनालय, वही, भाग २, विहीन प्रतिमा का लेख गीपटी, खंभात लेखांक ६९६ ३४५ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित कोरंटगच्छ की पट्टावली वि० सं० १२०१ I 1 कक्कसूरि I यशोभद्रसूरि संतानीय - ? I कक्कसूरि के शिष्य सर्वदेवसूरि की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख 1 कक्कसूरि I सर्वदेवसूरि | (प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम अनुपलब्ध) वि० सं० १२१२ ? वि० सं० १२२६ वि० सं० १२७४ वि० सं० १२९२-१२९८ के मध्य ३ प्रतिमा लेख वि० सं० १३१२-१३४० के मध्य ४ प्रतिमा लेख वि० सं० १३४५ - १३६० के मध्य ३ लेख जिनमें प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं है। Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ ३४७ नन्नसूरि वि० सं० १३७३-१३९७ के मध्य ९ प्रतिमा लेख कक्कसूरि वि० सं० १३८९-१४२८ के मध्य १५ प्रतिमा लेख सावदेव (सर्वदेवसूरि) वि० सं० १४२२ - १४३९ के मध्य ४ प्रतिमा लेख नन्नसूरि वि० सं० १४५१-१४६६ के मध्य ५ प्रतिमा लेख कक्कसूरि वि० सं० १४७२-१४८७ के मध्य ८ प्रतिमा लेख सावदेवसूरि वि० सं० १४९१-१५२१ के मध्य लगभग ४० प्रतिमा लेख नन्नसूरि वि० सं० १५२२ कक्कसूरि (कोई प्रतिमा लेख नहीं मिलता) सावदेवसूरि वि० सं० १५२३-१५३४ के मध्य १० प्रतिमा लेख नन्नसूरि (कोई प्रतिमा लेख नहीं मिलता है) Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कक्कसूरि वि० सं० १५३४ वाचक आसदेव सावदेवसूरि वि० सं० १५३६-१५५६ के वाचक भोजदेव वाचक जयतिलक नन्नसूरि --------------- मध्य ३ प्रतिमा लेख वि० सं० १५४९-१५७३ के मध्य ७ प्रतिमा लेख वि० सं० १५७९-१५९५ के मध्य ३ प्रतिमा लेख कक्कसूरि वाचक देवकलश वाचक देवसुन्दर सावदेवसूरि वाचक देवमूर्ति (कोई प्रतिमा लेख उपलब्ध नहीं) - वाचक नन्नसूरि वि.सं. १६११-१६१२ के देवप्रभ २ प्रतिमा लेख [वि० सं० १६१९ में रायपसेणियसुत्त के प्रतिलिपिकर्ता] उक्त तालिका से स्पष्ट है कि वि० सं० की १२वीं शती के उत्तरार्ध में यह गच्छ अस्तित्व में आया और सत्रहवीं शती के प्रथम चरण तक विद्यमान रहा । ४०० वर्षों के दीर्घकाल में इस चैत्यवासी गच्छ के आचार्यों Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरंट गच्छ ३४९ ने स्वयं को नूतन जिनालयों के निर्माण तथा नवीन जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा तक ही सीमित रखा । शनैः शनैः इस गच्छ के आचार्यों का समाज पर प्रभाव कम होने लगा और ऐसी स्थिति में इस गच्छ के अनुयायी मुनिजनों का अन्य प्रभावशाली गच्छों में सम्मिलित हो जाना अस्वाभाविक नहीं है। संदर्भ-सूची :१. C. D. Dalal, Ed. Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandaras at Pattan, Pp. 327-28. २. Ibid. P. 364.. ३. श्री प्रशस्ति संग्रह, संपादक : अमृतलाल मगनलाल शाह (अहमदाबाद वि० सं० १९९३) भाग २, पृ० ११५, प्रशस्ति क्रमांक ४३४. Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षिगच्छ का संक्षिप्त इतिहास प्रामध्ययुगीन एवं मध्ययुगीन निर्ग्रन्थदर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय के गच्छों में कृष्णर्षिगच्छ भी एक था । आचार्य वटेश्वर क्षमाश्रमण के प्रशिष्य एवं यक्षमहत्तर के शिष्य कृष्णमुनि की शिष्यसंतति अपने गुरु के नाम पर कृष्णर्षिगच्छीय कहलायी। इस गच्छ में जयसिंहसूरि (प्रथम), नयचन्द्रसूरि (प्रथम), जयसिंहसूरि (द्वितीय), प्रसन्नचन्द्रसूरि (प्रथम व द्वितीय), महेन्द्रसूरि, नयचन्द्रसूरि, (द्वितीय य तृतीय) आदि कई विद्वान् आचार्य हुए हैं । इस गच्छ में जयसिंहसूरि, प्रसन्नचन्द्रसूरि और नयचन्द्रसूरि इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की प्रायः पुनरावृत्ति मिलती है, अतः यह माना जा सकता है कि इस गच्छ के मुनिजन संभवतः चैत्यवासी रहे होंगे। कृष्णर्षिगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये इस गच्छ के मुनिजनों की कृतियों की प्रशस्तियाँ तथा उनकी प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की दाताप्रशस्तियां उपलब्ध हैं । इस गच्छ से सम्बद्ध कोई पट्टावली प्राप्त नहीं होती। अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिवरों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन-प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की चर्चा की जा सकती है। ये लेख वि० सं० १२८७ से वि० सं० १६१६ तक के हैं। यहां उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। कृष्णर्षिगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य है - गच्छ के आदिपुरुष कृष्णर्षि के शिष्य जयसिंहसूरि द्वारा वि० सं० ९१५ / ई. स० ८५९ में रचित धर्मोपदेशमालाविवरण की प्रशस्ति । इसमें जो गुरुपरम्परा दी गयी है, वह इस प्रकार है : Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षि गच्छ वटेश्वर क्षमाश्रमण I तत्त्वाचार्य T यक्षमहत्तर T कृष्णर्षि जयसिंहसूरि [वि०सं० ९१५ / ई० सन् ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण के रचनाकार ] शीलोपदेशमाला के कर्त्ता जयकीर्ति संभवत: इन्हीं जयसिंहसूरि के शिष्य थे। दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा' (रचनाकाल शक सं० ७०० / ई० स० ७७८ ) की प्रशस्ति में अपने गुरु - परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जिसमें वटेश्वरसूरि का भी उल्लेख है। इस तालिका में सर्वप्रथम वाचक हरिगुप्त का नाम आता है, जो तोरराय (तोरमाण) के गुरु थे। उनके पट्टधर कवि देवगुप्त हुए, जिन्होनें सुपुरुषचरिय या त्रिपुरुषचरिय की रचना की । कवि देवगुप्त के शिष्य शिवचन्द्रगणि महत्तर हुए जिनके नाग, वृन्द, दुर्ग, मम्मट, अग्निशर्मा और वटेश्वर ये ६ शिष्य थे । वटेश्वर क्षमाश्रमण ने आकाशवप्रनगर ( अम्बरकोट / अमरकोट) में जिनमंदिर का निर्माण करवाया । वटेश्वर के शिष्य तत्त्वाचार्य हुए। कुवलयमालाकहा के रचनाकार दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि इन्हीं तत्त्वाचार्य के शिष्य थे। इस बात को प्रस्तुत तालिका से भली भांति समझा जा सकता है : 1 वाचक हरिगुप्त [ तोरमाण के गुरु ] | कवि देवगुप्त [सुपुरुषचरिय के रचनाकार ] ३५१ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास शिवचन्द्रगणि महत्तर [ भिन्नमाल में स्थिरवास] I नाग वृन्द दुर्ग मम्मट अग्निशर्मा वटेश्वर [ आकाशवप्रनगर / अम्बरकोट / अमरकोट में जिनमंदिर के निर्माता] I तत्त्वाचार्य दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि [शक सं० ७०० / ई० स० ७७८ में कुवलयमालाकहा के रचनाकार ] उक्त दोनों प्रशस्तियों की गुरु-परम्परा की तालिकाओं के मिलान से उद्योतनसूरि और कृष्णर्षिगच्छीय जयसिंहसूरि की गुरु-परंपरा की जो संयुक्त तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : वाचक हरिगुप्त [ तोरमाण के गुरु] कवि देवगुप्त I | [सुपुरुषचरिय या त्रिपुरुषचरिय के रचनाकार ] शिवचन्द्रगणि महत्तर [ भिन्नमाल में स्थिरवास] I नाग वृन्द दुर्ग मम्मट अग्निशर्मा वटेश्वर क्षमाश्रमण [ आकाशवप्रनगर में जिनमंदिर के निर्माता ] Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षि गच्छ ३५३ तत्त्वाचार्य कृष्णर्षि दाक्षिण्यचिह्न यक्षमहत्तर उद्योतनसूरि [शक सं० ७००/ • ई०स० ७७८ में कुवलयमालाकहा जयसिंहसूरि के रचनाकार] [वि.स. ९१५/ ई०स० ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण के रचनाकार] थारापद्रगच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १०८४ / ई० स० १०२८ के लेख में इस गच्छ के आचार्य पूर्णभद्रसूरि ने भी वटेश्वर क्षमाश्रमण का अपने पूर्वज के रूप में उल्लेख किया है। कृष्णर्षिगच्छ का उल्लेख करनेवाला द्वितीय साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १३९० / ई० स० १३३४ में इस गच्छ के भट्टारक प्रभानंदसूरि द्वारा आचार्य हरिभद्र विरचित जम्बूद्वीपसंग्रहणीप्रकरण पर लिखी गई टीका की प्रशस्ति । यद्यपि इसमें टीकाकार प्रभानन्दसूरि के अतिरिक्त किसी अन्य आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु इनकी प्रेरणा से वि० सं० १३९१ / ई० स० १३३५ में लिपिबद्ध करायी गयी त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति से इनके गुरु-परम्परा के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होती है । इसके अनुसार कृष्णर्षिगच्छ में सुविहित शिरोमणि पद्मचन्द्र उपाध्याय हुए जिनकी शाखा में भट्टारक पृथ्वीचन्द्रसूरि हुए । उनके पट्टधर प्रभानन्दसूरि के उपदेश से एक श्रावकपरिवार द्वारा उक्त Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास महत्त्वपूर्ण कृति की प्रतिलिपि करायी गयी। सुविहितशिरोमणि पद्मचन्द्र उपाध्याय भट्टारक पृथ्वीचन्द्रसूरि प्रभानन्दसूरि [वि०सं० १३९० / ई. सन् १३३४ में जम्बूद्वीपसंग्रहणीप्रकरणटीका के रचनाकार, इनके उपदेश से वि० सं० १३९१ / ई. स. १३३५ में त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रतिलिपि की गयी] कृष्णर्षिगच्छ का उल्लेख करने वाला तृतीय साहित्यिक साक्ष्य है इसी गच्छ के आचार्य जयसिंहसूरि द्वारा रचित कुमारपालचरित (रचनाकाल वि०सं० १४२२। ई० १३६६) की प्रशस्ति, जिसके अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरुपरम्परा दी है । इसके अनुसार चारण (वारण) गण की वज्रनागरी शाखा के... कुल में कृष्ण नामक महातपस्वी मुनि हुए। उनकी परम्परा में निर्ग्रन्थचूडामणि आचार्य जयसिंहसूरि हुए, जिन्होंने वि० सं० १३०१ / ई. स. १२४५ में मरुभूमि से मंत्रशक्ति द्वारा जल निकाल कर प्यास से व्याकुल श्रीसंघ की प्राणरक्षा की । इनके शिष्य प्रभावक शिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि हुए। इनके पट्टधर निःस्पृहशिरोमणि महेन्द्रसूरि हुए, जिनका सम्मान मुहम्मदशाह ने किया था। इन्हीं के शिष्य जयसिंहसूरि हुए, जिन्होंने वि० सं० १४२२ / ई. सन् १३६६ में उक्त कृति की रचना की जिसकी प्रथमादर्श प्रति इनके प्रशिष्य नयचन्द्रसूरि ने लिखी । कृष्णमुनि Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षि गच्छ ३५५ निर्ग्रन्थचूडामणि [वि०सं० १३०१ / जयसिंहसूरि ई. स. १२४५ में मरुभूमि में । जल निकालकर संघ की प्राणरक्षा की प्रभावक शिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि निःस्पृह शिरोमणि [मुहम्मदशाह द्वारा महेन्द्रसूरि सम्मानित] जयसिंहसूरि [वि०सं० १४२२ / ई. स. १३६६ में कुमारपालचरित के रचनाकार] आचार्य जयसिंहसूरि ने भासर्वज्ञ कृत न्यायसार पर न्यायतात्पर्यदीपिका की भी रचना की। जयसिंहसूरि के प्रशिष्य एवं प्रसन्नचन्द्रसूरि के शिष्य नयचन्द्रसूरि ने वि० सं० १४४४ / ई. स. १३८८ के आसपास हम्मीरमहाकाव्य और रम्भामञ्जरीनाटिका' की रचना की । इन रचनाओं की प्रशस्तियों में इन्होंने अपने प्रगुरु जयसिंहसूरि का सादर स्मरण किया है। जयसिंहसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि नयचन्द्रसूरि Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास [वि०सं० १४४४ / ई० स० १३८८ के लगभग हम्मीरमहाकाव्य और रम्भामंजरीनाटिका के रचनाकार] यही इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्य हैं। जैसा कि पूर्व में कहा गया है, इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें भी उपलब्ध हुई हैं। इन पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण इस प्रकार है : Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षि गच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. | १२८७ | फाल्गुन नयचन्द्रसूरि | शिलालेख लूणवसही, आबू अर्बुदप्राचीनजैनवदि ३ लेखसंदोह, रविवार लेखांक २५१ २. |१३७१ / तिथि प्रसन्नचन्द्रसूरि | पार्श्वनाथ की पंचायती मंदिर, जैनलेखसंग्रह, विहीन प्रतिमा का लेख | कलकत्ता भाग १, लेखांक ४२६ ३. १४१७ | आषाढ जयसिंहसूरि | स्तम्भ लेख | लूणवसही, आबू मुनि जयंतविजय, सुदि ५ पूर्वोक्त, गुरुवार लेखांक ३८१ ४. १४८३ | माघ प्रसन्नचन्द्रसूरि के | आदिनाथ की चिन्तामणिजी का बीकानेरजैनलेखसुदि ५ | पट्टधर नयचन्द्रसूरि | धातु प्रतिमा मंदिर, बीकानेर संग्रह, का लेख लेखांक ७२४, Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५. १४८८ | मार्गशीर्ष शांतिनाथ की | वीर जिनालय, वही, सुदि ५ धातु की प्रतिमा वैदो का चौक, लेखांक १३४३ गुरुवार का लेख बीकानेर ६. १४९८ | फाल्गुन सुविधिनाथ की | जैनमंदिर, प्राचीनलेखसंग्रह, वदि १० धातु की प्रतिमा | कातरग्राम लेखांक १७४ सोमवार का लेख ७. १४९८ जयसिंहसूरि के सुमतिनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, संतानीय | प्रतिमा का लेख | जैसलमेर भाग ३, नयचन्द्रसूरि लेखांक २३१४ ८. १५०१ | माघ नयचन्द्रसूरि | शांतिनाथ की वीर जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, सुदि १० पंचतीर्थी प्रतिमा | पनवाड़ |भाग १, सोमवार का लेख सं. विनयसागर, लेखांक ३५१ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९. १०. १५०६ ११. १२. तिथि १५०९ पौष सुदि ५ "" १५०६ पौष सुदि ९ १५१० चैत्र वदि ५ शनिवार आचार्य का नाम " "" प्रसन्नचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान धर्मनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९८ वही, लेखांक ९९ बड़ा बाजार, कलकत्ता "" संदर्भ ग्रन्थ जैनमंदिर, तूलापट्टी जैनधातुप्रतिमा कलकत्ता बालावसही, शत्रुञ्जय लेख, लेखांक १०५ शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक १२३ कृष्णर्षि गच्छ ३५९ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १३. १५१२ १४. १५. १६. तिथि माघ वदि १३ शुक्रवार १५२१ | ज्येष्ठ सुदि १० बुधवार १५२४ मार्गशिर वदि ५ रविवार १५३२ आषाढ़ सुदि २ सोमवार आचार्य का नाम पुण्यरत्नसूरि नयचन्द्रसूरि के पट्टधर जयसिंहसूरि लक्ष्मीसागरसूरि जयसिंहसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख जिनप्रतिमापर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ बालावसही, शत्रुञ्जय वीर जिनालय, खेड़ा, गुजरात शांतिनाथ जिनालय, रामपुरा चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, बीकानेर वही, लेखांक १३७ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४५५ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६४८ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०७५ ३६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षि गच्छ | क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १७. | १५३४ | आषाढ नयचन्द्रसूरि के | सुमतिनाथ की भाण्डारस्थ वही, सुदि १ । पट्टधर जयचन्द्रसूरि | पंचतीर्थी प्रतिमा | धातु-प्रतिमा, लेखांक १३७८ गुरुवार | का लेख वीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर १८. |१५३४ माघ प्रसन्नचन्द्रसूरि के | शांतिनाथ की | जैन मंदिर, भिनाय | विनयसागर, सुदि ... | पट्टधर नयचन्द्रसूरि | चौबीसी प्रतिमा पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार का लेख लेखांक ७८२ १९. | १५८५ / ज्येष्ठ । जयशेखरसूरि | वासुपूज्य की नेमिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा सेठियों का वास, लेखांक २३२६ का लेख बीकानेर सुदि६ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २०. १५९५ माघ । जयसिंहसूरि अजितनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, वदि २ धातु की प्रतिमा हनुमानगढ़, बीकानेर लेखांक २५३४ बुधवार का लेख २१. १६१६ | माघ धनचन्द्रसूरि, शिलालेख विमलवसही, आबू मुनि जयन्तविजय, सुदि ११ उपाध्याय, पूर्वोक्त, कमलकीर्ति आदि लेखांक १५५ २२. १६१६ माघ । धनचन्द्रसूरि, | शिलालेख | विमलवसही, आबू वही, सुदि ११ । उपाध्याय लेखांक २०६ कमलकीर्ति आदि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६३ कृष्णर्षि गच्छ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के कुछ मुनिजनों की गुरु-परम्परा की एक तालिका इस प्रकार बनायी जा सकती है : नयचन्द्रसूरि (प्रथम) [वि० सं० १२८७] प्रसन्नचन्द्रसूरि (प्रथम) जयसिंहसूरि [वि० सं० १३७९] [वि० सं० १४१७] प्रसन्नचन्द्रसूरि (द्वितीय) नयचन्द्रसूरि (द्वितीय) [वि० सं० १४८३- । १५०६] जयसिंहसूरि जयचन्द्रसूरि [वि० सं० १५२१-३२] [वि० सं० १५३४] लक्ष्मीसागरसूरि [वि० सं० १५२४] जयसिंहसूरि [वि० सं० १५९५] अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा निर्मित इस तालिका में नयचन्द्रसूरि, प्रसन्नचन्द्रसूरि और जयसिंहसूरि ये तीन नाम कुमारपालचरित और हम्मीरमहाकाव्य की प्रशस्तियों में भी आ चुके हैं। दोनों ही साक्ष्यों में इन नामों की प्रायः पुनरावृत्ति होती रही है । इस आधार पर कहा जा सकता है कि कृष्णर्षिगच्छ की इस शाखा में पट्टधर आचार्यों को जयसिंहसूरि, प्रसन्नचन्द्रसूरि और नयचन्द्रसूरि ये तीन नाम प्रायः प्राप्त होते रहे । उक्त तर्क के आधार पर वि० सं० १२८७ के प्रतिमालेख में उल्लिखित नयचन्द्रसूरि को निर्ग्रन्थचूडामणि जयसिंहसूरि (जिन्होंने वि० सं० १३०१ में मरुभूमि में भीषण ताप के समय मंत्रशक्ति द्वारा भूमि से जल निकाल कर श्रीसंघ की Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्राणरक्षा की थी) के गुरु (नयचन्द्रसूरि ?) से समीकृत किया जा सकता है । किन्तु इनके शिष्य प्रसन्नचन्द्रसूरि और वि० सं० १३७९ में प्रतिमाप्रतिष्ठापक प्रसन्नचन्द्रसूरि को अभिन्न मानने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि दोनों आचार्यों की कालावधि में पर्याप्त अन्तर है। वि० सं० १४१७ के प्रतिमालेख में उल्लिखित जयसिंहसूरि कुमारपालचरित और न्यायतात्पर्यदीपिका (रचनाकाल वि० सं० १४२२/ई० स० १३६६) के रचनाकार जयसिंहसूरि से निश्चय ही अभिन्न हैं। वि० सं० १४८३ से वि० सं० १५०५ के मध्य प्रतिमाप्रतिष्ठापक नयचन्द्रसूरि और हम्मीरमहाकाव्य (रचनाकाल वि० सं० १४४४ / ई० स० १३८८) और रम्भामंजरीनाटिका के कर्ता नयचन्द्रसूरि को उनके कालावधि के आधार पर अलग - अलग आचार्य माना जा सकता है और यह कहा जा सकता है कि वि० सं० १४४४ और वि० सं० १४८३ के मध्य जयसिंहसूरि और प्रसन्नचन्द्रसूरि ये दो आचार्य हुए, परन्तु उनके बारे में हमें कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित लक्ष्मीसागरसूरि (वि० सं० १५२४) और जयशेखरसूरि (वि० सं० १५८४) के बारे में हमें अन्यत्र कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। .. इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा निर्मित तालिकाओं के परस्पर समायोजन से कृष्णर्षिगच्छीय मुनिजनों के आचार्य परम्परा की एक विस्तृत तालिका बनती हैं, जो इस प्रकार है : वाचक हरिगुप्त [तोरमाण के गुरु] कवि देवगुप्त [सुपुरुषचरिय या त्रिपुरुषचरिय के रचनाकार] शिवचन्द्रगणि महत्तर [भिन्नमाल में स्थिरवास] Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षि गच्छ ३६५ नाग वृन्द दुर्ग मम्मट अग्निशर्मा वटेश्वर तत्त्वाचार्य यक्षमहत्तर दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि कृष्णर्षि जयसिंहसूरि [प्रथम] [वि०सं० ९१५] [वि० सं० १२८७, प्रतिमालेख] नयचन्द्रसूरि [प्रथम] [वि० सं० १३०१ में मरुभूमि में जयसिंहसूरि [द्वितीय] भीषण ताप के समय मंत्रशक्ति से जल निकाल कर संघ की प्राणरक्षा की] प्रभावकशिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि [प्रथम] निःस्पृहशिरोमणि [मुहम्मदशाह द्वारा महेन्द्रसूरि सम्मानित] Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास [वि० सं० १४२२ / ई० स० १३६६जयसिंहसूरि [तृतीय] में कुमारपालचरित एवं न्यायतात्पर्यदीपिका के रचनाकार] प्रसन्न प्रसन्नचन्द्रसूरि [द्वितीय] [वि० सं० १४४४ / ई. स. १३८८नयचन्द्रसूरि [द्वितीय] के आसपास हम्मीरमहाकाव्य एवं रम्भामंजरीनाटिका के रचयिता] प्रसन्नचन्द्रसूरि [तृतीय] [वि० सं० १४८३-१५०६] नयचन्द्रसूरि [तृतीय] प्रतिमालेख लक्ष्मीसागरसूरि [वि०सं० १५२४, प्रतिमालेख] जयसिंहसूरि [चतुर्थ] जयचन्द्रसूरि [वि० सं० १५१६-१५३२, [वि० सं० १५३४, प्रतिमालेख] प्रतिमालेख] जयशेखरसूरि [वि० सं० १५८५, प्रतिमालेख] । . जयसिंहसूरि । [वि०सं० १५८५, प्रतिमालेख] Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षि गच्छ ३६७ धनचन्द्रसूरि, कमलकीर्ति आदि [वि० सं० १६१६, प्रतिमालेख] अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा कृष्णर्षिगच्छ की एक कृष्णर्षितपाशाखा का भी पता चलता है। इस शाखा से सम्बद्ध वि० सं० १४५० से वि० सं० १५१० तक के प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ //m माघ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १४५० पुण्यप्रभसूरि | पद्मप्रभ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ९ धातुप्रतिमा जिनालय, बीकानेर | लेखांक ५५८ सोमवार का लेख २. १४७३ | ज्येष्ठ सुपार्श्वनाथ की | आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ५ पंचतीर्थी प्रतिमा | मालपुरा पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक २११ भाद्रपद पुण्यप्रभसूरि | देहरी नं० १८ पर | जैनमंदिर, जीरावला अर्बुदाचलवदि ७ के पट्टधर | उत्कीर्ण लेख प्रदक्षिणाजैनगुरुवार जयसिंहसूरि लेखसंदोह, सं० मुनि जयन्तविजय, लेखांक १३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्णर्षि गच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४. १४८३ | भाद्रपद देहरी नं० २० पर | जैनमंदिर, जीरावला वही, लेखांक १४१ वदि ७ उत्कीर्ण लेख गुरुवार ५. १४८९ | माघ __ जयसिंहसूरि आदिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि६ धातुप्रतिमा मंदिर, बीकानेर लेखांक ७४४ रविवार का लेख ६. १५०३ | आषाढ़ जयसिंहसूरि धर्मनाथ की वीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ९ के पट्टधर प्रतिमा का लेख पुरानी मंडी, भाग १, जयशेखरसूरि जोधपुर लेखांक ५८६ ७. १५०५ । वैशाख चन्द्रप्रभ की धातु | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि६ की प्रतिमा का मंदिर, बीकानेर लेखांक ८९० . सोमवार लेख Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ ३७० क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ८. |१५०८ | वैशाख शांतिनाथ की सुदि ५ धातु की प्रतिमा सोमवार का लेख ९. १५१० | मार्गशीर्ष | जयसिंहसूरि की संभवनाथ की सुदि १० शाखा के धातु की प्रतिमा रविवार कमलचन्द्रसूरि का लेख लक्कड़वास का विजयधर्मसूरि, मंदिर, उदयपुर पूर्वोक्त, लेखांक २३७ महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वैदों का चौक, लेखांक १२१३ बीकानेर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७१ कृष्णर्षि गच्छ अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर कृष्णर्षिगच्छ की कृष्णर्षितपाशाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है: पुण्यप्रभसूरि [वि० सं० १४५० - १४७३, प्रतिमालेख] जयसिंहसूरि [वि० सं० १४८३-१४८७, प्रतिमालेख] कमलचन्द्रसूरि जयशेखरसूरि [वि० सं० १५१०, [वि० सं० १५०३-१५०८ प्रतिमालेख] प्रतिमालेख] कृष्णर्षितपाशाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह शाखा कब और किस कारण से अस्तित्व में आयी, इस बात की कोई जानकारी नहीं मिलती। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि कृष्णर्षिगच्छ वि० सं० की ९वीं शती के अंतिम चरण तक अवश्य ही अस्तित्व में आ चुका था । वि० सं० की १० वीं शती के प्रारम्भ का केवल एकमात्र साक्ष्य है जयसिंहसूरि कृत धर्मोपदेशमालाविवरण की प्रशस्ति । इसके लगभग ३५० वर्षों पश्चात् ही इस गच्छ के बारे में विवरण प्राप्त होते हैं और ये साक्ष्य वि० सं० की १७वीं शती के प्रारम्भ तक जाते हैं । यद्यपि इस गच्छ के बारे में लगभग ३५० वर्षों तक कोई विवरण प्राप्त नहीं होता, किन्तु इस गच्छ की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान रही होगी, इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। वि० सं० की १६वीं शती के पश्चात् इस गच्छ के सम्बन्ध में कोई भी विवरण न मिलने से ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय तक इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया होगा और इसके अनुयायी किसी अन्य गच्छ में सम्मिलित हो गये होंगे। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ३७२ संदर्भसूची: ४. धर्मोपदेशमालाविवरण, सं० पं० लालचंद भगवानदास गांधी, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क २८, बम्बई १९४९, पृ० २२८-२३०; पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, श्री सयाजी साहित्यमाला, पुष्प ३३५, बड़ोदरा १९६३, पृ० ३०४ और आगे; और त्रिपुटी महाराज, जैन परम्परानो इतिहास, श्री चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ५१, अहमदाबाद १९५२, पृ० ५१८ और आगे. शीलोपदेशमाला, गुजराती भाषान्तर, अनुवादक हरिशंकर कालिदास शास्त्री, अहमदाबाद १९००; पं० लालचंद भगवानदास गांधी, ऐतिहासिक०, पृ० ३१४. कुवलयमालाकहा, सं० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ४५, बम्बई १९५९, पृ० २८२-२८४ अम्बालाल प्रेमचंद शाह, जैनतीर्थसर्वसंग्रह, खंड १, भाग १, अहमदाबाद १९५३, पृ० ३९. Muni Punyavijaya, New Catalogue of Prakrit and Sahskrit Mss, Jesalmer Collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad - 1972, Pp. 303, No. 1492. Muni Punyavijaya, Catalogue of Plam-Leaf Mss. in the Shantinath Jain Bhandar, Cambay, Part II, G.O.S. No. 149, Baroda Pp. 301-302. H. R. Kapadia, Descriptive Catalogue of the Govt. Callections of Mss. desposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Volume XIX, Section II, Part 1, B. O. R. I. Pune 1967, Pp. 176-178. न्यायतात्पर्यदीपिका, सं० महामहोपाध्याय सतीशचंद्र विद्याभूषण, Asiatic Society of Bengal, Calcutta 1910. हम्मीरमहाकाव्य, सं० मुनि जिनविजय, राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ६५, जोधपुर १९६८. H. D. Velankar, Jinaratnakosha, Bhandarkar Oriental Research Institute, Government Oriental Series, Class c, No. 4, Poona 1944, Pp. 329. 1. १०. Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिलगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में ईस्वी सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में विभाजन की जो प्रक्रिया प्रारम्भ हुई, वह आगे भी जारी रही, जिसके फलस्वरूप पूर्वमध्ययुग में विभिन्न छोटे-बड़े गच्छ अस्तित्व में आये, जिनमें से खंडिलगच्छ भी एक है। यह गच्छ खंडेला नामक स्थान से अस्तित्व में आया । सिद्धसेनसूरि ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति सकलतीर्थस्तोत्र' में इस स्थान का उल्लेख एक जैन तीर्थ के रूप में किया है। वि० सं० १०५५ । ई० स० ९९८ में रची गयी धर्मरत्नाकर की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार यहां आये थे। इसका नाम खंडिल्ला और खण्डेलपुरा भी प्रचलित रहा है। वर्तमान राजस्थान प्रान्त के सीकर जिले में जिला मुख्यालय से ४५ किलोमीटर दूर स्थित यह स्थान आज 'खण्डेला' के नाम से जाना जाता है। यहां प्राचीन जिनालयों एवं अन्य स्मारकों के अवशेष यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं जिनसे विभिन्न जिन प्रतिमायें, जो मध्ययुगीन हैं, प्राप्त हुई हैं। भावदेवसूरि इस गच्छ के प्रथम आचार्य माने जाते हैं, उनके नाम पर इस गच्छ का एक नाम 'भावदेवाचार्यगच्छ' भी प्रचलित हुआ। इस गच्छ के आचार्य स्वयं को कालकाचार्यसंतानीय कहते हैं, अत: इसका यह भी एक नाम प्रचलन में आया। प्रतिमालेखों में इस गच्छ का नाम भावडारगच्छ एवं भावड़गच्छ भी मिलता है। प्रभावकचरित (रचनाकाल वि० सं० १३३४) के अन्तर्गत 'वीरसूरिचरितम्' में चन्द्रकुल की एक शाखा के रूप में इस गच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है । इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों को Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भावदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, वीरसूरि और जिनदेवसूरि- ये चार नाम पुन: पुन: प्राप्त होते हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि यह चैत्यवास समर्थक गच्छ था, क्योंकि पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति की परम्परा चैत्यवासियों में ही दिखाई देती है । प्रभावकचरित के 'वीरसूरिचरितम्' से ज्ञात होता है कि भावदेवसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य थे । उनके पट्टधर महान् वादी विजयसिंहसूरि हुए, जिनके शिष्य एवं पट्टधर वीरसूरि थे। ये चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० १९५० - १९९९) के मित्र एवं इस गच्छ के महान् आचार्य थे । वि० सं० १९६० में उन्होंने बौद्धाचार्य, दिगम्बर आचार्य कमलकीर्ति और सांख्यवादी वादिसिंह को शास्त्रार्थ में परास्त कर यश प्राप्त किया ।" ६ इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये सीमित संख्या में उपलब्ध साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण इस प्रकार है : १. पार्श्वनाथचरित ( रचनाकाल वि० सं० १४१२ ) ; रचनाकारभावदेवसूरि २. कालकाचार्यकथा भावदेवसूरि ३. यतिदिनचर्या भावदेवसूरि (रचनाकाल - अज्ञात) ४. अलंकारसार-भावदेवसूरि ( रचनाकार - अज्ञात) ५. भक्तामरटीका - शांतिसूरि ( रचनाकाल - अज्ञात) शांतिनाथ जैन ज्ञान भंडार, खंभात में इस ग्रन्थ की एक हस्तलिखित प्रति संरक्षित है, जो वि० सं० १५वीं शती प्रारम्भ की मानी जाती है। जहां तक प्रथम दो रचनाओं के रचनाकारों के नामसाम्य का प्रश्न है, ब्राउन ने कालकाचार्यकथा कर्ता भावदेवसूरि को पार्श्वनाथचरित के कर्ता भावदेवसूरि से अभिन्न माना है । यतिदिनचर्या और अलंकारसार के रचनाकार भावदेवसूरि पार्श्वनाथचरित के कर्ता भावदेवसूरि से अभिन्न हैं अथवा अलग-अलग, यह कहना कठिन है 1 Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ ३७५ पार्श्वनाथचरित की प्रशस्ति' में इस गच्छ के आचार्यों की लम्बी गुर्वावली पायी जाती है, जो इस प्रकार है : यशोभद्रसूरि भावदेवसूरि | विजयसिंहसूरि I वीरसूरि T जिनदेवसूरि T भावदेवसूरि | विजयसिंहसूरि I वीरसूरि भावदेवसूरि (वि० सं० १४१२ में पार्श्वनाथचरित के रचनाकार) भक्तामरटीका के रचनाकार शांतिसूरि ने अपनी रचना की प्रशस्ति के अन्त में अपने गच्छ का नाम तो स्पष्ट रूप से दिया है, किन्तु अपनी गुरु- परम्परा और समय आदि की कोई चर्चा नहीं की हैं । T जिनदेवसूरि Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास "श्रीखंडेल्लकगच्छसम्बन्धिश्वेताम्बरशान्तिसूरिविरचितमानतुंगाचार्यकविकृतभक्तामराख्यसूत्रवृत्तिः परिसमाप्ता।" विक्रम सम्वत् की १६वीं शती के उत्तरार्ध में इसी गच्छ में हुए विजयसिंहसूरि के हर्षमूर्ति नामक विद्वान् शिष्य हुए, जिनके द्वारा वि० सं० १५९२ में मरु-गुर्जर भाषा में रची गयी गौतमपृच्छाचौपाई नामक कृति प्राप्त होती है । चन्द्रलेखाचौपाई और पद्मावतीचौपाई भी इन्हीं की कृतियाँ हैं ।११ विजयसिंहसूरि के काल में ही वि० सं० १५६१ श्रावण सुदि ११ को ब्रह्मेचा गोत्रीय श्रावक द्वारा सूत्रकृतांगसूत्र की प्रतिलिपि कराय गयी । अमृतलाल मगनलाल शाह ने इसकी प्रशस्ति का मूलपाठ दिया है, जो इस प्रकार है संवत १५६१ वर्षे श्रावण सुदि ११ श्री भावडारगच्छे श्रीभावदेवसूरिः। तप्पट्टे श्रीविजयसिंहसूरिः ब्रह्मचागोत्रे संघवी हरा भार्या हासलदे पुत्र संघवी वीरा भार्या वील्हणदे पुत्र संघवी भोजकेन ज्ञान लखापितं दशसहस्रं आलोचननिमित्तं ॥ विक्रम सम्वत् की सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम दशक में इसी गच्छ में कनकसुन्दर नामक विद्वान मुनि हुए, जिन्होंने वि० सं० १६९७ में हरिश्चन्द्रराजारास की रचना की ।१३ यही इस गच्छ से सम्बद्ध अब तक उपलब्ध अंतिम साक्ष्य है। __ जैसा कि प्रारम्भ में हम साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत देख चुके हैं इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों को भावदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, वीरसूरि और जिनदेवसूरि ये चार नाम पुनः पुनः प्राप्त होते हैं । इन्ही नामों का उल्लेख करने वाला वि० सं० १०८० का एक लेख मथुरा से प्राप्त हुआ है। जार्ज बुहलर ने इसकी वाचना दी है, जो कुछ संशोधन के साथ इस प्रकार है: Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ १. है ॐ जिनदेवः सूरिस्तदनु श्रीभावदेवनामाभूत् । आचार्य विजयसिंह स्वच्छिष्यस्तेन च प्रोक्तैः ॥ १ ॥ २. सुश्रावकैर्नवग्रामस्थानादिस्यै स्वशक्तितः वर्द्धमानश्चतुर्बिंब: कारितोऽयं सभक्तिभिः ||२|| संवत्सरै १०८० यंभकपप्पकाभ्यांघटितः ॥ ॐ ॥ G Buhler, ``Further Jaina Inscriptions From Mathura” Epigraphia Indica, Vol. II, Pp. 195-212, No. XLI. यद्यपि इस लेख में कहीं भी गच्छ का नाम नहीं मिलता, फिर भी इसमें जिनदेवसूरि, भावदेवसूरि और विजयसिंहसूरि का नाम मिलने से इसे खंडिलगच्छ से सम्बद्ध मानने में कोई बाधा दिखाई नहीं देती । इस आधार पर इस लेख को इस गच्छ का सर्वप्राचीन साक्ष्य माना जा सकता I है १४ इस गच्छ के नामोल्लेख वाला सर्वप्रथम लेख वि० सं० १९९६ का परन्तु इसमें प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं मिलता। यही बात वि० सं० १२१४ का एक लेख " जो आबू के निकट स्थित सीवेरा नामक ग्राम के एक जिनालय में संरक्षित ऋषभदेव की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, के बारे में भी कही जा सकती है । वि० सं० १२३७ के लेख में स्पष्ट रूप से प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में विजयसिंहसूरि का उल्लेख है । १६ वि० सं० १५७८ तक के प्रायः सभी लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम मिलता है, जिनकी संक्षिप्त तालिका इस प्रकार है : जिनदेवसूरि I भावदेवसूरि ३७७ 1 विजयसिंहसूरि | Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (वीरसूरि) (वि० सं० १०८० में जिनप्रतिमा के प्रतिष्ठापक) - - - (वि० सं० ११९६ प्रतिमालेख) (वि० सं० १२०८ प्रतिमालेख) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १२३७ प्रतिमालेख) वीरसूरि (कोई प्रतिमालेख उपलब्ध नहीं है) जिनदेवसूरि (वि० सं० १२६८-१२८२) भावदेवसूरि (वि० सं० १३१७) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १३४९) वीरसूरि (वि० सं० १३७४) जिनदेवसूरि (वि० सं० १३७९-१४२९ के मध्य कुल ८ प्रतिमा लेख) भावदेवसूरि (वि० सं० १४३५-१४४९ के मध्य कुल ६ प्रतिमा लेख) Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ विजयसिंहसूरि ३७९ (वि० सं० १४६९-१४८५ के मध्य कुल ६ प्रतिमा लेख) वीरसूरि (वि० सं० १४८९-१५१३ के मध्य लगभग ३० प्रतिमा लेख) जिनदेवसूरि (वि० सं० १५१५ के तीन प्रतिमा लेख) भावदेवसूरि (वि० सं० १५१७ - १५३९ के मध्य कुल १५ प्रतिमा लेख) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १५५६ - १५७८ के मध्यकुल ५ प्रतिमा लेख) अन्तिम प्रतिमा लेख वि० सं० १६६४ का है । इस लेख में भी प्रतिष्ठापक आचार्य का नामोल्लेख नहीं मिलता है। इस गच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है - जैसा कि पहले कहा जा चुका है, भावडारगच्छ का उल्लेख करने वाला सबसे प्राचीन प्रतिमा लेख वि० सं० ११९६ / ई. सन् ११४० का है, जो आज भिवंडी (बम्बई) के एक जैन मन्दिर में सुरक्षित है । मुनि कांतिसागरजी ने लेख की वाचना इस प्रकार दी हैं - सम्वत् ११९६ वैशाख सुदि १० भाडवाचार्य (गच्छीय साध ---- लाडि पुत्र नमि कुमारेण नि० (बिम्बं) कारितः ।१७ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं है। इस गच्छ से सम्बन्धित अगला अभिलेख वि० सं० १२१४ /ई. सन् ११५७ का है जो ऋषभदेव की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख में भी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता । वर्तमान में यह धातु प्रतिमा आबू के निकट सीवेरा नामक ग्राम के एक जैन मन्दिर में प्रतिष्ठित है।१८ डो० सोहनलाल पटनी ने इस लेख को वि० सं० १२२४ का बतलाया है। दोनों में कौन सी वाचना सही है, इसका निर्णय तो लेख को प्रत्यक्ष देखने से ही हो सकता है ।१८१ जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, इस गच्छ में भावदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, वीरसूरि और जिनदेवसूरि, इन चार पट्टधर आचार्यों के नामों की ही पुनरावृत्ति होती है। इन परम्परागत नामों का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम लेख वि० सं० १२३७ / ई. सन् ११८० का है जो एक सिरविहीन पाषाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। यह प्रतिमा आज खेड़ा जिले में स्थित रणछोड़जी के मंदिर में रखी हुई है। इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में आचार्य विजयसिंहसूरि का उल्लेख है। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित अन्य कोई प्रतिमा नहीं मिली है। विजयसिंहसूरि के पट्टधर वीरसूरि हुए। इनके द्वारा भी प्रतिष्ठापित कोई प्रतिमा आज उपलब्ध नहीं है। वीरसूरि के पट्टधर जिनदेवसूरि हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित दो प्रतिमाओं के लेख उपलब्ध हुए हैं । उनका विवरण इस प्रकार है (१) सं० १२६८ वैशाख सुदि ३ श्री भावदेवाचार्यगच्छ श्रे० पुत्र वत्र सुतेन आमदत्तेन पु० त्रागभंत्रुढत्याण (?) । ३ । वीरबिबं कारितं । प्रति० श्री जिनदेवसूरिभिः२० (२) सं० १२८२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रे श्रीभावदेवाचार्य गच्छे ताड़कात्रा पत्र्या वाढ़ जामहेड़ आरात देवड़ शालिभि: वीरा श्रेयसे पार्श्वबिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जि(न)देवसूरिभिः । २१ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८१ खंडिल गच्छ जिनदेवसूरि के पट्टधर भावदेवसूरि हुए जिनके द्वारा प्रतिष्ठापित शांतिनाथ की प्रतिमा पर वि० सं० १३१७ का एक लेख उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है सं० १३१७ वर्षे वैशाख वदि ... शनौ क्येह श्रीमद्णहिलपाटके श्री भवडाद (भावडार) गच्छे श्रीमालज्ञा० रत्नपुरीय श्रे. जसकुमार सु श्रे० उदाश्रेयोर्थं पुत्र सोमाकेन श्री शांतिनाथबिंबं का० प्रति० श्रीभावदेवसूरिभिः ॥२२ प्रतिष्ठा स्थान - शांतिनाथ जैन मंदिर, पाटन । भावदेवसूरि के पट्टधर विजयसिंहसूरि हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर वि० सं० १३४९ का लेख उत्कीर्ण है, जो इस प्रकार है - सं० १३४९ ज्येष्ठ सुदि २ श्री भावडारगच्छे सा० सोमा भार्या सोमश्री पुत्र छाड़ा-नागा-गयवरैः स्वमातृ श्रेयसे श्री पार्श्वनाथबिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंहसूरिभिः । प्रतिष्ठा स्थान-जैनमंदिर, थराद २३ विजयसिंहसूरि के पट्टधर वीरसूरि हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ऋषभनाथ की प्रतिमा पर वि० सं० १३७४ का लेख उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है - सम्वत् १३७४ वर्षे वैशाख सुदि ७ श्री भावडारगच्छे उपकेशज्ञातीय तिहुणा भार्या तिहुणा देवि पु० महणाकेन श्रीऋषभदेवबिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीवीरसूरिभिः ॥२४ विजयसिंहसूरि के पट्टधर जिनदेवसूरि हुए जिनके द्वारा प्रतिष्ठापित वि० सं० १३७९ से १४२९ तक के कुल ८ लेख मिले हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है १. सं० १३७९ वैशाख सु० ...... भावडारगच्छे उपकेशज्ञा० पितृ का भ० ललतू भ्रातृ सही...... महं० भउणाकेन श्री पार्श्वनाथबिबं का० प्र० श्री जिनदेवसूरिभिः। बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखाङ्क २८३ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास २. सं० १३८३ वर्षे श्री भावडारगच्छे ओसरा(वा)लज्ञातीय व्य० जयतपाल भार्या मोषल श्रेयसे सुत सहजपालकेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्र० श्री जिनदेवसूरिभिः ॥ अर्बुदाप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ५५३ ३. सं० १३९३ ---- सुदि ८ रवौ श्री भावडारगच्छे --- गोत्रे श्रे० --- भा० लखम पुत्र मंडलिकेन पित्रो श्रेयसे श्री पार्श्वनाथबिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनदेवसूरिभिः ।। बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ३६२ ४. सं० १४०९ ज्ये० शु० १० सोमे श्री भावडारगच्छे श्री श्रीमाल ज्ञा० व्य० वीदा भा० कडू सुत रामाकेन पि० श्रे० श्री शांतिनाथबिबं का० प्र० श्री जिनदेवसूरिः (रिभिः) ॥ अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ५७० ५. सं० १४२२ वैशाख सु० १२ श्री भावडारगच्छे उप० ज्ञा० श्रे० गागल भा० कामल पु० देवसिंह उदयसिंहेः पित्रोः श्रेयसे श्री पंचतीर्थ (र्थी) का. प्रतिष्ठिता श्री जिनदेवसूरिभिः । राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ६२ ६. सं० १४२२ वैशाख सुदि १२ भावडारगच्छे श्रीमाल ज्ञा० व्य० तेजा भा० तेजलदे पु० पासढ़ेन पित्रोः भ्रातृः सहजपालस्य च श्रेयसे श्री विमलनाथबिबं का० प्र० श्रीजिनदेवसूरिभिः । बीकानेरजैनलेखसंग्रहे, लेखांक ४५१ ७. सं० १४२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १५ शुक्रे श्री भावडारगच्छे उपकेश ज्ञा० श्रे० रत्न् पुत्रेण हीराकेन भ्रातृ कालू सा० कुरंपाल नरपाल श्री कुंथुनाथपंचतीर्थी का. प्र. जिनदेवसूरिभिः । बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ४८३ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ ३८३ ८. सं० १४२९ वर्षे माघ वदि... सोमे श्री कालिकाचार्य सन्ताने श्री भावदेवाचार्यगच्छे श्री विजयसिंहसूरिपट्टालंकार-श्रीवीरसूरीणां मूर्तिः श्रीजिनदेवसूरिभिः प्र० । (प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५२१) जिनदेवसूरि के पट्टधर भावदेवसूरि हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ६ प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं जिन पर वि० सं० १४३५ से वि० सं० १४४९ तक के लेख उत्कीर्ण हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है सं० १४३५ माघ वदि १२ सोमवार२५ पार्श्वनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान- जैनमंदिर, राधनपुर। सं० १४३६ वैशाख वदि ११ मंगलवार२६ शान्तिनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान-चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर । सं० १४३८ ज्येष्ठ वदि ४ शनिवार शान्तिनाथ प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान-पूर्वोक्त, बीकानेर । सं० १४४० पौष सुदि १२२८ वासुपुज्य स्वामी की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान-पूर्वोक्त, बीकानेर । सं० १४४४ ज्येष्ठ वदि ९ शनिवार आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान-चन्द्रप्रभ जिनालय, जामनेर । सं० १४४९ वैशाख सुदि ६ शुक्रवार वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर । Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भावदेवसूरि के पट्टधर विजयसिंहसूरि हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ६ सलेख जिनप्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जो वि० सं० १४६९ से वि० सं० १४८५ तक की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। वि० सं० १४६९ माघ सुदि १ - ३८४ मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर । .३२ वि० सं० १४७१ माघ सुदि १३ बुधवार आदिनाथ की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान- पूर्वोक्त, बीकानेर । वि० सं० १४७६ चैत्र वदि १ शनिवार _.३३ शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान- पूर्वोक्त, बीकानेर । वि० सं० १४७९ माघ वदि ७ सोमवार ३४ चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान - जैनमंदिर थराद । वि० सं० १४८१ वैशाख वदि ११ ३५ धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर । .३६ वि० सं० १४८५ माघ वदि ९ गुरुवार संभवनाथ की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान - जैनमंदिर थराद | विजयसिंहसूरि के पट्टधर वीरसूरि हुए। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ३१ प्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जो वि० सं० १४८९ से वि० सं० १५१३ के मध्य की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है वि०सं० १४८९ फाल्गुन वदि २ गुरुवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर । संदर्भ - बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ७४५ वि० सं० १४९४ माघ सुदि ५ गुरुवार Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर । संदर्भ - बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ७७७ वि० सं० १४९५ ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्रवार आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - पार्श्वनार्थ जिनालय, रोहिडा संदर्भ - अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५७६. वि० सं० १४९५ ज्येष्ठ वदि १ शुक्रवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - संदर्भ - जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २३१० वि० सं० १४९८ पौष वदि ११ रविवार संभवनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - पुरातत्त्व संग्रहालय सिरोही। संदर्भ - अर्बुदपरिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मन्दिरावलि, पृष्ठ ६८, लेखांक १७२ वि० सं० १४९९ वैशाख वदि ४ गुरुवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्तान - जैन मंदिर थराद । संदर्भ - श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक २५५ वि० सं० १४९९ फाल्गुन वदि २ गुरुवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर । संदर्भ - बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ८१२ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १४९९ फाल्गुन वदि २ गुरुवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - मुनिसुव्रत जिनालय, जोधपुर संदर्भ - जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६१६ वि० सं० १५०७ माघ सुदि ५ सुविधिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - पुरातत्त्व संग्रहालय, सिरोही। संदर्भ - अर्बुदपरिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मन्दिरावलि, लेखांक ३१, पृ० ७८ वि० सं० १५०९ वैशाख सुदि ३ गुरुवार शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैन मंदिर, निवज, सिरोही, (राज.)। संदर्भ - जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०९३ एवं अर्बुदपरिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मन्दिरावलि, लेखांक १०९ वि० सं० १५१० फाल्गुन सुदि ११ शनिवार धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - महावीर जिनालय, बीकानेर । संदर्भ - बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १३६२ वि० सं० १५०१ माघ सुदि ५ । शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - पार्श्वनाथ जिनालय, मुंडावा। संदर्भ - प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३४२ वि० सं० १५०२ माघ सुदि ५ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८७ खंडिल गच्छ श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - पद्मप्रभ जिनालय, जयपुर । संदर्भ - प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३६२ वि० सं० १५०२ फाल्गुन सुदि २ गुरुवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - महावीर जिनालय, भिनाय । संदर्भ - प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३६३ . वि० सं० १५०३ फाल्गुन सुदि ८ सोमवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान – मुनिसुव्रत जिनालय, डभोई।। संदर्भ - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६० वि० सं० १५०३ ज्येष्ठ वदि ३ सोमवार वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैन मंदिर, थराद । संदर्भ - श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १५० वि० सं० १५०३ मार्गशीर्ष वदि ५ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - पूर्वोक्त । संदर्भ - श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १६२ वि० सं० १५०३ माघ वदि ५ शनिवार वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ जिनालय, जामनगर । संदर्भ - प्राचीनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १९२ वि० सं० १५०६ कार्तिक वदि ७ शुक्रवार Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास तीर्थंकर की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान - आदिनाथ जिनालय, चाडसू। संदर्भ - प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४०२ वि० सं० १५१० फागुन सुदि ११ शनिवार आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १५१० आषाढ़ वदि १३ रविवार संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १५१० फाल्गुन सुदि ११ शनिवार अभिनन्दनस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १५१२ चैत्र वदि ८ सोमवार कुनथुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १५१२ मार्गशीर्ष सुदि १५ सोमवार १ एवं सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख२ वि० सं० १५१२ चैत्र वदि ८ सोमवार ३ कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १५१२ मार्गशीर्ष सुदि १५ सोमवार४४ श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १५१२ माघ सुदि ६ सोमवार ५ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १५१२ कार्तिक सुदि १० रविवार शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि० सं० १५१३ फाल्गुन वदि १२ सोमवार अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८९ खंडिल गच्छ वीरसूरि के पट्टधर जिनदेवसूरि हुए । उनके द्वारा वि० सं० १५१५ कार्तिक वदि १४ शुक्रवार को प्रतिष्ठापित श्रेयांसनाथ, सुमतिनाथ और शीतलनाथ की प्रतिमायें आज थराद, मुंडावा और पाटन के जैनमंदिरों में संरक्षित हैं। इन पर उत्कीर्ण लेख इस प्रकार हैं संवत् १५१५ वर्षे कार्तिक वदि १४ शुक्रे श्री भावडारगच्छे श्रीश्रीमाल ज्ञा० व्य० राणा भा० रांभलदे पु० बेलां भा० फत्तू पु० आल्हा सहितेन पित्रोः श्रेयसे भ्रातृ वीरा लीना श्रेयसे श्रीश्रेयांसनाथबिबं कारि० प्रति० भ० श्रीजिनदेवसूरिभिः ॥ प्रतिष्ठा-स्थान-पार्श्वनाथ जिनालय, मुंडावा ८ संवत् १५१५ वर्षे कार्तिक वदि १४ शुक्रे श्रीभावडारगच्छे श्रीश्रीमाल ज्ञा० व्य० मीणा भा० माहणादे पु० माला भोजी देवासहितेन श्रीसुमतिनाथबिबं का० मातृपितृश्रेयसे श्री पू० कालिकाचार्यसंताने पू. श्रीजिनदेवसूरिभिः ।। प्रतिष्ठा स्थान – बड़ा देरासर, कानासानो पाडो, पाटन । ४९ संवत् १५१५ वर्षे कार्तिक वदि १४ शुक्र श्रीभावडारगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. मेहाउलेन भा० दादू पुत्र पूना गांगा सांगा पितृव्य गेला सहितेन स्वपुण्यार्थं श्री शीतलनाथबिबं का० प्रति० श्री वीरसूरिपट्टे पूज्य श्री जिनदेवसूरिभिः । प्रतिष्ठा स्थान - जैन मंदिर- थराद५० जिनदेवसूरि का अन्य कोई लेख उपलब्ध नहीं है। जिनदेवसूरि के पट्टधर भावदेवसूरि हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि० सं० १५१७ से वि०सं० १५३९ तक के लेख उत्कीर्ण है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है वि०सं० १५१७ फाल्गुन सुदि ३ शुक्रवार५१ मुनिसुव्रत की चौबीसी पर उत्कीर्ण लेख । प्रतिष्ठा स्थान-सुमतिनाथ जिनालय, ओराण Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९० वि०सं० १५१८ माघ सुदि २ शनिवार चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ जिनालय, करमदी । वि० सं० १५१८ फाल्गुन सुदि ९ सोमवार ५३ संभवनाथ की धातु - प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थानजैनमंदिर थराद | ५४ वि०सं० १५२४ कार्तिक वदि २ शुक्रवार पद्मप्रभ चौबीसी पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ जैनमंदिर, डीसा । ५५ वि०सं० १५२९ ज्येष्ठ सुदि ३ रविवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान- बृहद् खरतरगच्छ जैसलमेर । -५६ वि० सं० १५३२ ज्येष्ठ सुदि १३ बुधवार " नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान - जैनमंदिर, उपासरा, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ५२ थराद । ५७ वि० सं० १५३२ वैशाख वदि ५ रविवार सुविधिनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान- महावीर जिनालय, माणिकतल्ला, कलकत्ता । -५८ वि०सं० १५३२ आषाढ़ सुदि ८ रविवार धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ जिनालय, नागौर । वि० सं० १५३४ मार्गशीर्ष वदि ५ रविवार ५९ सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों का मुहल्ला, बीकानेर । वि०सं० १५३५ पौष सुदी ६ बुधवार ६० Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ मुनिसुव्रत की चौबीसी पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - चन्द्रप्रभस्वामी का मंदिर, जैसलमेर । .६१ वि० सं० १५३६ माघ वदि ६ मंगलवार शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - सीमंधरस्वामी का मंदिर, अहमदाबाद । वि०सं० १५३७ फाल्गुन ८ ८६२ सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान - पंचायती मन्दिर, जयपुर । .६३ वि०सं० १५३९ वैशाख सुदि ४ शुक्रवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान- महावीर स्वामी का मंदिर, आसानियों का चौक, कार | वि०सं० १५३९ आषाढ़ ६ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्राप्ति स्थान - गौड़ीजी भंडार, उदयपुर । ३९१ ६४ .६५ वि० सं० १५३१ मार्गशीर्ष वदि ८ बुधवार का एक लेख अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है इस पर भी प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में जिनदेवसूरि के पट्टधर भावदेवसूरि का उल्लेख है । भावदेवसूरि के शिष्य विजयसिंहसूरि हुए । उनके द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर वि० सं० १५५६ से वि० सं० १५७८ तक के प्रतिमा लेख उपलब्ध हुए है । इनका विवरण इस प्रकार है : _६६ देरासर, ईडर । वि० सं० १५५६ फाल्गुन वदि २ बुधवार वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठा स्थान- कुएं वाला Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० १५५८ फागुण वदि २ बुधवार शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख, प्रतिष्ठा स्थान-सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर । वि० सं० १५६६ माघ सुदि पंचमी६८ आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ जिनालय, भायखला, मुम्बई । वि० सं० १५७२ फाल्गुन वदि ४ गुरुवार कुन्थनाथ एवं संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-पाटण । वि०सं० १५७८ माघ वदि ८ सोमवार कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-आदिनाथ जिनालय, भायखला । इस गच्छ का उल्लेख करनेवाला अन्तिम प्रतिमा लेख वि० सं० १६६४७२ का है, जो बीकानेर के नाहटों की गुवाड़ स्थित ऋषभदेव जिनालय की भण्डारस्थ एक खंडित प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख में प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नष्ट हो गया है। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के आचार्यों की लम्बी गुर्वावली निर्मित होती है जो इस प्रकार है जिनदेवसूरि (वि०सं० १०००) अनुमानित भावदेवसूरि (वि० सं० १०२५) अनुमानित विजयसिंहसूरि (वि० सं० १०५०) अनुमानित (वीरसूरि) (वि० सं० १०८०) में वर्धमान Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ ३९३ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक | जिनदेवसूरि (वि० सं० ११००) अनुमानित भावदेवसूरि (वि० सं० ११२५) अनुमानित विजयसिंहसूरि (वि० सं० ११५०) अनुमानित वीरसूरि जयसिंहसिद्धराज के समकालीन (वि० सं० ११५० - ९९) एवं मित्र तथा वि० सं० ११९० . में बौद्धाचार्य, दिगम्बराचार्य कमलकीर्ति और सांख्यवादी वादिसिंह को वाद में परास्त कर प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले (जिनदेवसूरि?) (वि० सं० ११९६) ------------- (भावदेवसूरि) (वि० सं० १२०८) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १२३७) (वीरसूरि) (प्रतिमालेख अनुपलब्ध) जिनदेवसूरि (वि०सं० १२६८-१२८२) Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भावदेवसूरि (वि० सं० १३१७) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १३४९) T वीरसूरि (वि० सं० १३७४) 1 जिनदेवसूरि (वि० सं० १३७१ - १४२९) | भावदेवसूरि (वि० सं० १४३५ - १४४९; पार्श्वनाथचरित एवं कालकाचार्यकथा के रचनाकार) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १४६९ - १४८५ ) | वीरसूरि (वि० सं० १४८९ - १५१३) T जिनदेवसूरि (वि० सं० १५१५) I भावदेवसूरि (वि० सं० १५१७-१५३९) विजयसिंहसूरि (वि०सं० १५५५-१५७८) Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ २. 1 हरिश्चन्द्रराजारास के रचनाकार) निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वि० सं० की ११ वीं शताब्दी के प्रथम चरण में यह गच्छ अस्तित्व में आया और वि० सं० की १७ वीं शती के अन्त तक इसका स्वतंत्र अस्तित्व बना रहा, तथापि इस समय तक इसका पूर्व गौरव समाप्त हो चुका था । वर्तमान में इस गच्छ का अस्तित्व इतिहास के पृष्ठों तक सीमित है । ३. (?) I T संदर्भ सूची : १. 'सकलतीर्थस्तोत्र' C.D. Dalal, Descriptive Catalogue of Manuscripts at Jaina Bhandar's at Pattan, G.O.S. No. 76, P. 156. मेदार्येण महर्षिभिर्विहरता तेपे तपो दुश्वरं । श्रीखंडिल्लकपत्तनान्ति करणाभ्यर्द्धिप्रभावात्तदा । ४. ७. (वि० सं० १६६४) इस लेख में आचार्य का नाम नहीं मिलता है। 1 कनकसुन्दर (वि० सं० १६९७ में ३९५ मुनि जिनविजय, संपा० खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४२, मुम्बई १९५६ ई० पृष्ठ ९६ । प्रोग्रेस रिपोर्ट, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इन्डिया, वेस्टर्न सर्किल, पृष्ठ ५६ । ५- ६. मुनि जिनविजय, संपा० प्रभावकचरित, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १३, मुम्बई १९४० ई० H.D. Velankar, Ed. Jinaratnakosh, Poona 1944 A.D. PP. 86. जुगल किशोर मुख्तार, संपा० जैनग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह, वीरसेवा मंदिर ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १२, दिल्ली १९५४ ई०, पृष्ठ ३-४ । Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ८. श्रीपत्तनाख्यनगरे रविविश्व वर्षे । पार्श्वप्रभोश्चरितरत्नमिदं ततान ।। १४ ॥ इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में पं० श्री हरगोविन्ददासजी ने प्रशस्ति पद्य में उल्लिखित रविविश्व वर्ष का अर्थ १३१२ किया है जो भ्रामक प्रतीत होता है, क्योंकि रवि - १२ और विश्व १४ गणना ही उचित है। इस आधार पर भावदेवसूरि विक्रम सम्वत् की १५वीं शती के विद्वान् सिद्ध होते हैं। यह ग्रन्थ यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, काशी से ई० सन् १९१२ में प्रकाशित हुआ है। ९. Muni Punyavijaya, Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay Part II G.O.S. No. 149, pp. 432-33 No. 278. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगुर्जरकविओ, भाग ३, खंड १, पृष्ठ ५३०-३१ । ११. वही, भाग १, पृष्ठ १०५; शीतिकंठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, मरु - गुर्जर, भाग १, पृष्ठ ५३७-३८ । १२. अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा० श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक २४५, पृष्ठ ६४। १३. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगुर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ ५८३, Vidhatri ___Vora, Ed. Catalogue of Gujarati Mss. Muni PunyavijayaJi's Collection, L.D. Siris No. 71. Ahmedabad 1978, P. 610. १४. मुनि कांतिसागर, संपा० जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ५। १५. मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ३१९ । सोहनलाल पटनी, संपा० अर्बुद परिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मन्दिरावलि, सिरोही २००२ ई०, लेखांक १, पृष्ठ १०७ । १६. अगरचन्द नाहटा, "खेड़ का जैन शिलालेख", जैनसत्यप्रकाश, जिल्द XVIII पृष्ठ १८७-९० । मुनि कांतिसागर, संपा० जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ५ । मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, लेखांक १८ अ-सोहनलाल पटनी, पूर्वोक्त, पृष्ठ. १०७, ३१९ । १९. अगरचंद नाहटा - 'खेड़ का जैन शिलालेख जैनसत्यप्रकाश, जिल्द XVIII, पृ० १८७-९० । २०. अगरचन्द नाहटा, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०९ । १८. Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडिल गच्छ २१. वही, लेखांक १२० । २२. बुद्धिसागरसूरि - संपा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३२२ | २३. दौलतसिंह लोढ़ा, संपा० श्रीजैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक २० । २४. पूरनचन्द नाहर, संपा० जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २२४८ । २५. मुनि विशाल विजय, संपा० राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ७३ । २६. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ५२२ । २७. वही, लेखांक ५३१ । २८. वही, लेखांक ५३८ । २९. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, संपा० महो० विनयसागर, लेखांक १६९ । ३०. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ५५६ । ३१. वही, लेखांक ६५० । ३२. वही, लेखांक ६५६ । ३३. वही, लेखांक ६८४ । ३४. श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ११३ | ३५. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ७०३ । ३६. श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १७६ । ३७. वही, लेखांक ८८ । ३८. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४६३ । ३९. श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १५७ । ४०. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९५४ । ४१. राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १७८ । ४२. श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक । ४३. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९५४ । ४४. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २७३ | ४५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५५३ । ४६. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २७२ । ४७. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५२७ । ३९७ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४८. वही, लेखांक ५४५ । ४९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३०२ । ५०. श्रीजैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १२८ । जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६११ । ५२. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५८३ । ५३. श्रीजैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३३५ । ५४. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०९५ । वही, भाग ३, लेखांक २४८३ । ५६. श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, पूर्वोक्त, लेखांक १२४ । ५७. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११८ । ५८. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७५१ । ५९. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १६०२। ६०. जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २२१७ । जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११५४ । ६२. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८१५ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११६५ । ६३. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३४२ एवं बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १८९९ । ६४. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४७८ । ६५. प्रतिष्ठालेखसंग्रह,भाग १, लेखांक ७३६ । ६६. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४३५ । ६७. जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २२०३ । ६८. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक २८३ । ६९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १९८ । ७०. वही, लेखांक २२२ । ७१. जैनधातुप्रतिमालेख, पूर्वोक्त, लेखांक २९१ । ७२. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १४६४ । Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ ) का संक्षिप्त इतिहास १ निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में चन्द्रकुल का स्थान प्रथम पंक्ति में है । परम्परानुसार आर्य वज्रसेन के चार शिष्यों - नागेन्द्र, चन्द्र, निर्वृत्ति और विद्याधर से उक्त नाम वाले चार कुलों का जन्म हुआ, किन्तु पर्युषणाकल्प अपरनाम कल्पसूत्र की स्थविरावली में चन्द्र और निर्वृत्तिकुल उल्लेख न होने से यह माना जा सकता है कि ये दोनों कुल बाद में अस्तित्व में आये । २ चन्द्रकुल का सर्वप्रथम उल्लेख अकोटा से प्राप्त कुछ धातु प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में प्राप्त होता है । डा० उमाकान्त पी० शाह ने लिपि एवं प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन के आधार पर उनमें से एक प्रतिमा का काल ईस्वी सन् की छठ्ठी शताब्दी निर्धारित किया है । ३ से समय चन्द्रकुल समय पर विभिन्न शाखाओं के रूप में अनेक गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ, जैसे वि० सम्वत् ९९४ में चन्द्रकुल के एक आचार्य उद्योतनसूरि ने सर्वदेवसूरि सहित ८ शिष्यों को अर्बुद-मण्डल में स्थित धर्माण (ब्रह्माण - वर्तमान वरमाण) सन्निवेश में वट वृक्ष के नीचे आचार्य पद प्रदान किया । वट वृक्ष के कारण उनका शिष्य परिवार वटगच्छीय कहलाया । इसी प्रकार चन्द्रकुल के ही एक आचार्य प्रद्युम्नसूरि के प्रशिष्य और अभयदेवसूरि (वादमहार्णव के रचनाकार) के शिष्य धनेश्वरसूरि; जो कि मुनि दीक्षा के पूर्व राजा थे, की शिष्यसन्तति राजगच्छीय कहलायी।' इसी प्रकार पूर्णतल्लगच्छ, सरवालगच्छ, पूर्णिमागच्छ, -- Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास आगमिकगच्छ, पिप्पलगच्छ, खरतरगच्छ, तपागच्छ और अंचलगच्छ आदि का भी समय-समय पर विभिन्न कारणों से चन्द्रकुल की एक शाखा के रूप में जन्म हुआ । इनमें से खरतरगच्छ, तपागच्छ और अंचलगच्छ आज भी विद्यमान हैं । ४०० ईस्वीसन् की १२ वीं शताब्दी से नागेन्द्र, चन्द्र, निर्वृत्ति और विद्याधर ये चारों कुल गच्छों के रूप में उल्लिखित मिलते हैं । चन्द्रकुल से सम्बद्ध पर्याप्त संख्या में ग्रन्थप्रशस्तियाँ, पुस्तकप्रशस्तियाँ तथा प्रतिमालेख आदि मिले हैं और ये सब मिलकर ईस्वी सन् की छठी शताब्दी से लेकर ई० सन् की १६ वीं शताब्दी तक के हैं। यहां उक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । अध्ययन की सुविधा के लिये सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पञ्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है : साहित्यिक साक्ष्य चन्द्रकुल से सम्बद्ध पर्याप्त संख्या में प्रकाश में आ चुके साहित्यिक साक्ष्यों के दो वर्ग किये जा सकते हैं । प्रथम वर्ग के अन्तर्गत इस कुल एवं गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रणीत कृतियों की प्रशस्तियों को रखा गया है । द्वितीय वर्ग में उक्त गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के उपदेश से श्रावकों द्वारा लिखवाई गयी या स्वयं मुनियों द्वारा ही लिखी गयी प्राचीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपि की प्रशस्तियों को रखा गया है। दोनों ही प्रकार की प्रशस्तियों में प्राय: समान रूप से रचनाकार या प्रतिलिपिकार मुनि की गुरु-परंपरा, रचनाकाल या लेखनकाल आदि का उल्लेख मिलता है । यहां केवल उन्हीं कृतियों को रखा गया है जिनकी प्रशस्तियां इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । उक्त प्रशस्तियों को क्रमशः ग्रन्थप्रशस्ति और पुस्तकप्रशस्ति के नाम से जाना जाता है | इनका अलग अलग-विवरण इस प्रकार है : Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ४०१ (क) ग्रन्थप्रशस्तियां १. सुरसुंदरीचरियं (सुरसुन्दरीचरित) प्राकृत भाषा में १६ अध्यायों में विभक्त ४००० गाथाओं की यह कृति चन्द्रकुल के आचार्य धनेश्वरसूरि की कृति है। इसमें एक विद्याधर राजकुमार की प्रणयगाथा वर्णित है। कृति के अन्त में प्रशस्ति' के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : उद्योतनसूरि वर्धमानसूरि जिनेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि जिनभद्र अपरनाम (वि० सं० १०९५/ईस्वी सन् १०३९ में धनेश्वरसूरि सुरसुन्दरीचरित के रचनाकार) २. संवेगरंगशाला - यह कृति चन्द्रगच्छीय जिनचन्द्रसूरि द्वारा वि० सं० ११२५/ ईस्वी सन् १०६९ में रची गयी है। इसमें १५० गाथायें हैं। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल आदि का उल्लेख किया है। इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार ने अपने गुरुभ्राता नवावृत्तिकार अभयदेवसूरि के अनुरोध पर इस कृति की रचना की थी। इसमें उल्लिखित गुरु-परम्परा इस प्रकार है: ? उद्योतनसूरि Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वर्धमानसूरि जिनेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि जिनचन्द्रसूरि अभयदेवसूरि (वि०सं० ११२५/ (संवेगरंगशाला की ई. सन्० १०६९ में रचना के प्रेरक) संवेगरंगशाला के रचनाकार ३. व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति - चन्द्रकुल के आचार्य वर्धमानसूरि के प्रशिष्य और जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि के शिष्य अभयदेवसूरि ने वि० सं० ११२८/ईस्वी सन् १०७२ में इस कृति की रचना की । अभयदेवसूरि ने व्याख्याप्रज्ञप्ति सहित ९ अंग ग्रन्थों पर वृत्तियां रची हैं, इसी कारण ये नवाङ्गवृत्तिकार के रूप में विख्यात रहे हैं। व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति की प्रशस्ति में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल, रचनास्थान आदि का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : वर्धमानसूरि जिनेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि अभयदेवसूरि (वि० सं० ११२८/ईस्वी सन् १०७२ में ___ व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति के रचनाकार) ४. सणंकुमारचरिय (सनत्कुमारचरित ) श्वेताम्बर जैन परम्परा में सनत्कुमार की चौथे चक्रवर्ती के रूप में मान्यता है। इनके जीवनचरित Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ४०३ पर विभिन्न जैन ग्रन्थकारों की कृतियां उपलब्ध होती हैं । इनमें सबसे प्राचीन है चन्द्रगच्छीय श्रीचन्द्रसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में रचित सणंकुमारचरिय है । इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु - परम्परा, रचनाकाल आदि का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है : सर्वदेवसूरि जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि देवेन्द्रसूरि यशोभद्रसूरि श्रीचंद्रसूरि यशोदेवसूरि श्रीचंद्रसूरि जिनेश्वरसूरि 'प्रथम' 'द्वितीय (वि० सं० १२१४ में सनत्कुमारचरित के रचनाकार) इसी प्रकार पूर्णिमापक्षीय विमलगणि द्वारा रचित दर्शनशुद्धिवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५) की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि पूर्णिमागच्छ या पूर्णिमापक्ष के प्रवर्तक तथा विमलगणि के प्रगुरु चन्द्रप्रभसूरि चन्द्रकुल के सर्वदेवसूरि के प्रशिष्य तथा जयसिंहसूरि के शिष्य थे। इस प्रशस्ति में दी गयी गुरु-परम्परा इस प्रकार है : सर्वदेवसूरि Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमापक्ष के प्रवर्तक तथा दर्शनशुद्धि के रचनाकार धर्मघोषसूरि विमलगणि (वि० सं० ११८१/ ई. सन्० ११२५ में दर्शनशुद्धिवृत्ति के रचनाकार) उक्त दोनों प्रशस्तियों से प्राप्त गुर्वावली से स्पष्ट होता है कि उनमें प्रथम दो नाम सर्वदेवसूरि और जयसिंहसूरि समान हैं तथा जयसिंहसूरि के एक शिष्य चन्द्रप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ अस्तित्व में आया एवं द्वितीय शिष्य देवेन्द्रसूरि की शिष्य मंडली में सनत्कुमारचरित के रचनाकार श्रीचंद्रसूरि (प्रथम) हुए। ५. उपदेशकन्दलीटीका - यह चन्द्रगच्छीय हरिभद्रसूरि के शिष्य बालचंद्रसूरि द्वारा रची गयी है। इनके द्वारा रची गयी कुछ अन्य कृतियां भी मिलती हैं, जैसे वसन्तविलासमहाकाव्य, विवेकमंजरीवृत्ति, करुणावज्रायुधनाटक आदि । उपदेशकन्दलीटीका की प्रशस्ति में टीकाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत विवरण दिया है, जो इस प्रकार है: प्रद्युम्नसूरि (तलवाटक के राजा के उपदेशक) Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ४०५ चन्द्रप्रभसूरि । (जिनेश्वर की एक प्रभावी स्तुति के रचनाकार) धनेश्वरसूरि वीरभद्रसूरि देवसूरि देवभद्रसूरि देवेन्द्रसूरि भद्रेश्वरसूरि अभयदेवसूरि हरिभद्रसूरि बालचन्द्रसूरि (वि० सं० १२९६/ई. सन् १२४० के पूर्व ___उपदेशकन्दलीटीका के रचनाकार) ६. उपमितिभवप्रपंचकथासारोद्धार - चन्द्रगच्छीय देवेन्द्रसूरि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित यह कृति सिद्धर्षि के उपमितिभवप्रपंचाकथा (रचनाकाल वि० सं० ९६२/ईस्वी सन् ९०६) का संक्षिप्त रूप है । इसकी प्रशस्ति१३ के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी लम्बी गुर्वावली दी है और रचनाकाल का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : भद्रेश्वरसूरि हरिभद्रसूरि शांतिसूरि Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभयदेवसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि मुनिरत्नसूरि श्रीचन्द्रसूरि यशोदेवसूरि देवेन्द्रसूरि (वि० सं० १२९८/ई. सन् १२४२ में उपमितिभवप्रपंचकथासारोद्धार के रचनाकार) ६. पार्श्वनाथचरित - यह चन्द्रगच्छीय रविप्रभसूरि के शिष्य विनयचन्द्रसूरि की कृति है। यह ६ सर्गों में विभाजित है, इसमें ४९८५ श्लोक हैं। रचना के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : शीलगुणसूरि मानतुंगसूरि रविप्रभसूरि नरसिंहसूरि नरेन्द्रप्रभसूरि विनयचन्द्रसूरि (पार्श्वनाथचरित के रचनाकार) Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ৪০9 यद्यपि रचनाकार ने अपनी इस कृति में रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है, फिर भी विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इसे वि० सं० की १४ वीं शती के प्रथम चरण की कृति माना जा सकता है। ८. समरादित्यसंक्षेप - यह आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित समराइच्चकहा (प्राकृत भाषामय) का संस्कृत भाषा में रचित छंदोबद्धसार है जिसे चन्द्रगच्छीय कनकप्रभसूरि के विद्वान् शिष्य प्रद्युम्नसूरि ने वि० सं० १३२४/ईस्वी सन् १२५८ में रचा है । प्रद्युम्नसूरि ने अनेक ग्रन्थों का संशोधन किया । कृति के अन्त में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल आदि का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है : प्रद्युम्नसूरि (प्रथम) चन्द्रप्रभसूरि धनेश्वरसूरि शांतिसूरि देवभद्रसूरि देवाणंदसूरि रत्नप्रभसूरि परमानन्दसूरि कनकप्रभसूरि जयसिंहसूरि बालचंद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि (द्वितीय) (वि० सं० १३२४/ई० सन् १२५८ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास में समरादित्यसंक्षेप के रचनाकार) वि० सं० २००५ / ई० सन् ९४९ में रचित मुनिपतिचरित के कर्ता जम्बूनाग और वि० सं० १०२५ / ई० सन् ९६९ में रची गयी जिनशतक के रचनाकार जम्बूकवि भी स्वयं को चन्द्रगच्छीय ही बतलाते हैं । किन्तु इन्होंने अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख नहीं किया है। क्या ये दोनों (जम्बूनाग और जम्बूकवि) एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग ! इस सम्बन्ध में पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है, किन्तु चन्द्रकुल से सम्बद्ध प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य होने से ये महत्त्वपूर्ण माने जा सकते हैं। ४०८ इसी प्रकार चन्द्रगच्छीय किन्ही उदयप्रभसूरि द्वारा रचित शीलवतीकथा नामक कृति भी मिलती है, परन्तु इसके रचनाकाल, और ग्रन्थकार की गुरु-परम्परा के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । इस कृति की वि० सं० १४०० / ईस्वी सन् १३४४ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति मिली है 1 (ख) पुस्तक प्रशस्तियां अथवा प्रतिलिपि प्रशस्तियां १. योगशास्त्रवृत्ति की पुस्तकप्रशस्ति कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र द्वारा रची गयी योगशास्त्रवृत्ति की वि० सं० १२९२ / ईस्वी सन् १२३६ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति शांतिनाथ जैन भंडार, खंभात में संरक्षित है जिसके प्रतिलेखन प्रशस्ति में चन्द्रगच्छीय मुनिजनों की गुर्वावली दी गयी है, जो इस प्रकार है : / ? 1 मानदेवसूरि ( प्रथम ) 1 मानतुंगसूरि (प्रथम) Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्र गच्छ ४०९ बुद्धिसागरसूरि प्रद्युम्नसूरि देवचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि मानदेवसूरि (द्वितीय) मानतुंगसूरि (द्वितीय) पद्मदेवसूरि (वि० सं० १२९२ / ईस्वी सन् १२३६ में लिखी गयी योगशास्त्रवृत्ति की दाताप्रशस्ति में उल्लिखित) २. आवश्यकसूत्र की पुस्तक प्रशस्ति - चन्द्रगच्छीय यशश्चन्द्रसूरि की प्रेरणा से वि० सं० १२९२/ ई० सन् १२३६ में एक श्रावक द्वारा लिपिबद्ध करायी गयी आवश्यकसूत्र की प्रतिलिपि की प्रशस्ति में चंद्रगच्छीय उक्त आचार्य की गुरु-परम्परा दी गयी है, जो इस प्रकार है : वर्धमानसूरि गुणरत्नसूरि देवसूरि यशश्चन्द्रसूरि (इनकी प्रेरणा से वि० सं० १२९२/ई. सन् १२३६ में Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास आवश्यक सूत्र की प्रतिलिपि की गयी) ३. उत्तराध्ययनसूत्र की पुस्तक प्रशस्ति - चन्द्रगच्छीय रत्नाकरसूरि ने वि० सं० १३०८ / ईस्वी सन् १२५२ में उत्तराध्ययनसूत्र की प्रतिलिपि की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपने गच्छ की लम्बी गुर्वावली दी है, जो निम्नानुसार है : ? J नन्नसूरि I वादिसूरि 1 सर्वदेवसूरि I प्रद्युम्नसूरि I भद्रेश्वरसूरि T देवभद्रसूरि सिद्धसेनसूरि 1 यशोदेवसूरि मानदेवसूरि | रत्नप्रभसूरि T देवप्रभसूरि | Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्र गच्छ ४११ रत्नाकरसूरि (वि० सं० १३०८ / ई. सन् १२५२ में उत्तराध्ययनसूत्र के प्रतिलिपिकर्ता) ४. पिण्डविशुद्धिसावचूरि की पुस्तक प्रशस्ति - वि० सं० १४१०/ ईस्वी सन् १३५४ में देवकुलपाटक में किन्हीं आनन्दरत्नगणि के परोपकारार्थ उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि की गयी । यह बात उक्त प्रति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है । इस प्रशस्ति में चन्द्रगच्छ के नायक सोमसुन्दरसूरि, उनके शिष्य साधुराजगणि आदि का उल्लेख है। सोमसुन्दरसूरि साधुराजगणि साधुराजगणिशिष्य (?) ५. युगप्रधानयंत्र की प्रतिलिपिप्रशस्ति - देवेन्द्रसूरि द्वारा प्रणीत युगप्रधानयंत्र की एक प्रति वि० सं० १४१३/ईस्वी सन् १३५७ में चन्द्रगच्छीय कीर्तिभुवन द्वारा लिपिबद्ध की गयी । इसकी प्रशस्ति२२ में प्रतिलिपिकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : चन्द्रगच्छीय सोमतिलकसूरि उपाध्याय हंसभुवनगणि कीर्तिभुवन (वि० सं० १४१३/ईस्वी सन् १३५७ में युगप्रधानयंत्र के प्रतिलिपिकार) Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ६. प्रशमरतिप्रकरणवृत्ति की प्रतिलिपि प्रशस्ति संघवीपाड़ा भंडार पाटन में संरक्षित और वि० सं० १४९८ / ईस्वी सन् १४४१ में लिखी गयी उक्त कृति की प्रतिलिपि प्रशस्ति में चन्द्रगच्छीय मुनिजनों की एक छोटी गुर्वावली मिलती है, जो निम्नानुसार है : ? ४१२ I चन्द्रगच्छीय पूर्णचन्द्रसूरि | महंससूरि | हेमसारगणि | हेममेरुगणि प्रतिलिपिकार) उक्त प्रशस्ति से यह भी पता चलता है कि प्रतिलिपिकार ने उक्त ग्रन्थ के त्रुटित अंश को भी पूर्ण किया था । ७. जीवाभिगमसूत्र की प्रतिलिपि प्रशस्ति - चन्द्रगच्छीय वाचनाचार्य संयमहंस ने वि० सं० १६०५ / ई० सन् १५४९ में उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिप की, जिसकी प्रशस्ति२४ में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा निम्नानुसार दी है : ? (वि० सं० १४९८ / ई० सन् १४४१ में प्रशमरतिप्रकरणवृत्ति के T वादी चक्रचूड़ामणि जिनप्रभसूरि I जिनतिलकसूरि - Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ___४१३ राजहंस उपाध्याय वाचनाचार्य संयमहंस (वि० सं० १६०५/ ई. सन् १५४९ में जीवाभिगमसूत्र के प्रतिलिपिकार) उक्त सभी साहित्यिक साक्ष्यों में उल्लिखित चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) की छोटी - बड़ी गुर्वावलियों से अनेक मुनिजनों के नामों का पता चलता है, परन्तु इनमें से दो-तीन गुर्वावलियों को छोड़कर अन्य सभी गुर्वावलियों के परस्पर समायोजित न हो पाने के कारण इस गच्छ की गुरु - परम्परा की एक अविच्छिन्न तालिका को संगठित कर पाना असम्भव सा लगता (ग) अभिलेखीय साक्ष्य । चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण निम्नानुसार है । जैसा कि लेख के प्रारम्भ में कहा जा चुका है। अकोटा से प्राप्त कुछ धातुप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण अभिलेखों में भी इस कुल का उल्लेख मिलता है । प्राध्यापक उमाकांत पी० शाह ने इनका काल प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन और लिपि के आधार पर ईस्वी सन् की छठी शताब्दी से ईस्वी सन् की १० वीं शताब्दी तक निर्धारित किया है। इनका विवरण इस प्रकार अकोटा से प्राप्त चन्द्रकुल का उल्लेख करनेवाला प्रथम लेख जीवन्तस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। शाह" महोदय ने इसकी वाचना निम्नानुसार दी है : १. ॐ देवधर्मोऽयं जीवंतसामी २. प्रतिमा चद्र (चन्द्र) कुलिकस्य Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ३. नागीस्वरी श्राविकस्या प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन के आधार पर उन्होंने इस लेख को ईस्वी सन् की छठी शताब्दी के मध्य का माना है। चन्द्रकुल का उल्लेख करनेवाला द्वितीय अभिलेखीय साक्ष्य भी वहीं से प्राप्त एक जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। शाह ने इसे ई० सन् ६०० से ६४० के मध्य का बतलाया है । लेख का मूलपाठ निम्नानुसार है : १. ॐ देवधमय (धर्मोयं) । चद (न्द्र) कुलिकस्य ।। ९. सिहजि श्रा (व) स्य। अकोटा से ही प्राप्त इसी काल की पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा पर भी इस कुल का उल्लेख मिलता है । शाह ने इस लेख का पाठ दिया है, जो इस प्रकार है: १. देवधर्मोयं चन्द्रकुले दुरिंग २. णि श्राविकया रथवसति ३. काया अकोटा से प्राप्त पार्श्वनाथ की एक अष्टतीर्थी धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में भी इस कुल का उल्लेख मिलता है । उन्होंने इस लेख को प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन के आधार पर ई. सन् की १० वीं शती के अंतिम चरण और ११ वीं शती के प्रथम चरण के बीच का माना है।" लेख का मूलपाठ इस प्रकार है : ॐ चन्द्रकुले मोढगच्छेनिन्नट श्रावकस्य इस लेख के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मोढगच्छ भी चन्द्रकुल की ही एक शाखा के रूप में अस्तित्व में आया । यद्यपि उक्त चारों प्रतिमालेखों में चन्द्रकुल के किसी आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं मिलता, फिर भी उनसे इस कुल की प्राचीनता सिद्ध होती है। Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१५ चन्द्रगच्छ चन्द्रगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुई है। इन पर वि० सं० १०३२ वि० सं० १५५२ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनका विवरण इस प्रकार है : Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १०३२ / शीलगुणसूरि पार्श्वनाथ की श्री कुमारसिंह हाल पूरनचन्द नाहर, धातु की प्रतिमा | नं० ४६, इण्डियन संपा. जैनलेखका लेख मिरर स्ट्रीट, संग्रह भाग १, कलकत्ता लेखांक ३८६ २. ११८२ | ज्येष्ठ | चक्रेश्वरसूरि । परिकर की | जैन मन्दिर, देरणा |मुनि जयन्तविजय, वदि ६ गादी का लेख संपा० अर्बुदाचलबुधवार प्रदक्षिणाजैनलेख - संदोह (आबू-भाग ५) लेखांक ६३६ मुनि कांतिसागरसंपा० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ३. षण्डगसूरि १२२६ | आषाढ़ सुदि ९ महावीर की गणधर की प्रतिमा का लेख | देवकुलिका, Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख गुरुवार जिनेन्द्र ढूंक, शत्रुञ्जयवैभव, शत्रुञ्जय लेखांक ६ ४. १२३५ वैशाख पूर्णभद्रसूरि पार्श्वनाथ की श्वेताम्बर जैनमंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ३ पंचतीर्थी प्रतिमा | सम्मेतशिखर भाग २ बुधवार पर उत्कीर्ण लेखांक १६८८ खंडित लेख ५. १२३९ चैत्र श्री चन्द्रसूरि के दीवाल पर उत्कीर्ण | तोपखाना, जालौर मुनि जिनविजय, सुदी ५ | पट्टधर पूर्णभद्रसूरि | लेख संपा. प्राचीनजैनगुरुवार लेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३५१ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८९९ + 688 Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 268 क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२५८ | ज्येष्ठ । देवभद्रसूरि | शांतिनाथ की शीतलनाथ नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा पर | जिनालय, उदयपुर | भाग २, रविवार उत्कीर्ण लेख लेखांक १०३४ ७. |१२७२ | ज्येष्ठ | शांतिप्रभसूरि के | महावीर की | जैन मंदिर, जिनविजय, वदि २ | पट्टधर हरिप्रभसूरि | प्रतिमा पर | शीयालवेट, | पूर्वोक्त, भाग २, रविवार उत्कीर्ण लेख काठियावाड लेखांक ५४७ ८. |१२७२ | ज्येष्ठ जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, वदि २ शीयालवेट भाग २, रविवार काठियावाड़ लेखांक १७७७ ९. १२७२ | श्रावण देवसूरि पाषाण खण्ड पर | वडाली प्राचीनलेखसंग्रह सुदि १ उत्कीर्ण लेख भाग १, बुधवार लेखांक ३३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख १०. १२७९ | माघ | श्रीचन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की | सुमतिनाथ मुख्य सुदि २ धातु की प्रतिमा बावन जिनालय, गुरुवार का लेख मातर चन्द्रगच्छ ११. १२८६ | फाल्गुन सुदि २ रविवार आबू मलयचंद्रसूरि आदिनाथ की । | विमलवसही, के पट्टधर | प्रतिमा पर समंतभद्रसूरि | उत्कीर्ण लेख बुद्धिसागर - संपा० जैनधातुप्रतिमा- | लेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५२० |मुनि जयन्तविजय - संपा०अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग - २) लेखांक ११२ एवं मुनि कल्याणविजयलेखक - प्रबन्धपारिजात, लेखांक ८२ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १२. १३. १२९३ तिथि आचार्य का नाम फाल्गुन समुद्रघोषसूरि सुदि ११ के पट्टधर महेन्द्रसूरि शनिवार १३०० वैशाख वदि ११ बुधवार हरिप्रभसूरि के पट्टधर यशोभद्रसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख धातुकी प्रतिमा पर उत्कीरक्ण लेख मल्लिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर जैन मंदिर, शीयालवेट, काठियावाड़ संदर्भ ग्रन्थ तथा मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, लेखांक १८२ अगरचन्द्र नाहटा - संपा० बीकानेर जैनलेखसंग्रह, लेखांक १३२ जिनविजय पूर्वोक्त, लेखांक ५४५ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११७८ ४२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । संदर्भ ग्रन्थ चन्द्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | स्तम्भलेख १४. १३०१ | फाल्गुण पद्मप्रभसूरि तीर्थकर की चिन्तामणि सुदि ४ धातु प्रतिमा पर | जिनालय, गुरुवार उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिशेरी, राधनपुर १५. १३०१ | फाल्गुन | मुनिचन्द्रसूरि के | धातु की चौबीसी | पद्मप्रभजिनालय, सुदि ५ पट्टधर नेमिचन्द्रसूरि | जिनप्रतिमा पर कडाकोटडी, उत्कीर्ण लेख खंभात १६. १३१० | वैशाख परमानन्दसूरि के | स्तम्भ निर्माण का | जैन मंदिर, पट्टधर रत्नप्रभसूरि | उल्लेख आरासणा गुरुवार मुनि विशालविजयसंपा० राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह लेखांक ३२ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, |भाग २, लेखांक ५९४ मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, आबू, भाग ५, लेखांक २४, मुनि विशालविजय-|| वदि ५ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १७. तिथि १३१५ | फाल्गुन वदि ७ शनिवार आचार्य का नाम यशोभद्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैन मंदिर, शीयालवेट, काठियावाड़ संदर्भ ग्रन्थ आरासणातीर्थ लेखांक १२, एवं मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, लेखांक २८० नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १७७९ एवं मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ५४६ ४२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ क्रमाङ्क संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १८. |१३३१ | ज्येष्ठ | पद्मप्रभसूरि के पार्श्वनाथ की | जैन मंदिर, मुनि कांतिसागर सुदि १ | पट्टधर गुणाकरसूरि | प्रतिमा का लेख | वल्लभविहार, संपा० बुधवार | पालिताना शत्रुजयवैभव, लेखांक २२ १९. १३३१ वैशाख ...सूरि के पट्टधर | पार्श्वनाथ की वीर जिनालय, बुद्धिसागर, (२) | सुदि ३ रत्नप्रभसूरि | प्रतिमा का लेख गीपटी, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, रविवार लेखांक ७०२ २०. १३३२ / ज्येष्ठ पद्मप्रभसूरि पार्श्वनाथ की चिन्तामणि जी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १३ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक १७९ ___ गुणाकरसूरि २१. |१३४४ | वैशाख गुणाकरसूरि आदिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागर, सुदि १० प्रतिमा का लेख माणेक चौक, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ९९६ बुधवार ४२३ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २२. १३५६ / चैत्र पार्श्वनाथ की सीमंधर स्वामी का वही, भाग २, वदि ११ प्रतिमा का लेख | जिनालय, खारवाड़ा लेखांक १०७३ रविवार २३. | १५५२ माघ । वीरदेवसूरि सुविधिनाथ की गौडी पार्श्वनाथ मुनि विशालविजय, वदि १२ प्रतिमा का लेख | जिनालय, गौडी पूर्वोक्त, बुधवार पार्श्वनाथ खड़की, लेखांक ३१४ राधनपुर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२५ महामात्य तेजपाल द्वारा वि० सं० १२९८ / ई० सन् १२४२ में तीर्थाधिराज शत्रुञ्जय पर आयोजित श्वेताम्बर श्रमण संघ के सम्मेलन में अन्यान्य गच्छों के आचार्यों एवं मुनिजनों के साथ- साथ नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि की परम्परा में हुए छत्राउला ( ? ) देवप्रभसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि के सम्मिलित होने का भी उल्लेख मिलता है । २९ यद्यपि वहां यह नहीं बतलाया गया है कि देवप्रभसूरि और उनके शिष्य पद्मप्रभसूरि किस गच्छ के थे; किन्तु उन्हें स्पष्ट रूप से नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि की परम्परा का बतलाया गया है। नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि चन्द्रकुल के सुविख्यात आचार्य रहे हैं, अत: उनकी परम्परा में परवर्ती काल में होने वाले देवप्रभसूरि और पद्मप्रभसूरि भी चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) से ही सम्बद्ध माने जा सकते हैं। यद्यपि इनका किन्ही समकालीन साक्ष्यों में कोई उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु चन्द्रगच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १३३१-१३३२-१३४४ और १३५७ के प्रतिमालेखों में (जिनका इसी निबन्ध में पीछे उल्लेख आ चुका है) प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य गुणाकरसूरि के गुरु पद्मप्रभसूरि का नाम मिलता है जिन्हें उपरोक्त पद्मप्रभसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। गुणाकरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित सबसे प्राचीन प्रतिमा वि० सं० १३३१ की है । इस समय तक वे अपने गुरु के पट्टधर बन चुके थे। अतः वह सुनिश्चित है कि इस समय तक पद्मप्रभसूरि दिवंगत हो चुके थे और वि० सं० १२९८ में जब उन्होंने उक्त सम्मेलन में भाग लिया था, प्रौढावस्था में ही रहे होंगे । चन्द्रगच्छ इस प्रकार उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों से भी इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं किन्तु साहित्यिक साक्ष्यों की भांति इनके आधार पर भी चंद्रगच्छीय मुनिजनों की गुरु परम्परा की किसी तालिका को संगठित कर पाना कठिन है । साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के अध्ययन के आधार पर जहां विभिन्न गच्छों की गुरु- परम्परा की लम्बी तालिकायें निर्मित हो जाती हैं और उनके इतिहास का स्वरूप स्पष्ट होने लगता है वहीं बड़ी संख्या में Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्राप्त उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर भी चंद्रकुल (चंद्रगच्छ) के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की संयुक्त तालिका बना पाना कठिन है । सम्भवतः इसका कारण यही प्रतीत होता है कि इस प्राचीन गच्छ की अनेक शाखायें थीं और समय-समय पर उन शाखाओं से नूतन गच्छों का उद्भव और विकास होता रहा, फिर भी कुछ शाखायें अलग-अलग रहते हुए भी स्वयं को चन्द्रगच्छीय ही कहती रहीं और वि० सं० की १७ वीं शती के प्रथम दशक तक इस गच्छ का स्वतन्त्र अस्तित्व प्रमाणित होता है। इसके पश्चात् इस गच्छ का उल्लेख न मिलने से यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि इस गच्छ के अनुयायी मुनिजन किन्हीं अन्य गच्छों में (सम्भवतः खरतरगच्छ, तपागच्छ अथवा अंचलगच्छ, जो चन्द्रकुल से ही उद्भूत हुए हैं) में सम्मिलित हो गये होंगे। इस गच्छ के प्रमुख आचार्यों और ग्रन्थकारों का विवरण इस प्रकार १. धनेश्वरसूरि - ये चन्द्रकुल के आचार्य वर्धमानसूरि (जिन्होंने चौलुक्यनरेश दुर्लभराज (वि० सं० १०६५-१०८०/ ई० सन् १००९-१०२४) की राजसभा में चैत्यवासियों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था) के प्रशिष्य तथा जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि के शिष्य थे । आचार्य पद की प्राप्ति के पूर्व इनका नाम जिनभद्रगणि था। जैसा कि इस निबन्ध के प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है इन्होंने वि० सं० १०९५ / ई. सन् १०३९ में चन्द्रावती नगरी में सुरसुन्दरीचरित की रचना की। यह कृति प्राकृत भाषा में रची गयी है। इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि साध्वी कल्याणमति के आदेश पर उन्होंने इसकी रचना की । इनके द्वारा रचित किन्हीं अन्य कृतियों का उल्लेख नहीं मिलता। २. जिनचन्द्रसूरि - ये भी पूर्वोक्त आचार्य वर्धमानसूरि के प्रशिष्य और जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि के शिष्य थे । नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि इनके गुरु-भ्राता थे जिनके अनुरोध पर इन्होंने वि० सं० Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ४२७ ११२५/ ईस्वी सन् १०६९ में संवेगरंगशाला की रचना की ।३१ ग्रन्थ की प्रशस्ति में इन्होंने अपने गुरु जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि की प्रशंसा की ३. अभयदेवसूरि - जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है ये चन्द्रकुल के आचार्य जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि के शिष्य थे । इन्होंने जैन आगम ग्रंथों में सर्वप्रधान ११ अंग सूत्रों में से ९ अंग सूत्रों पर संस्कृत भाषा में टीकायें लिखीं। इन्हें श्वेताम्बर परम्परा के प्रायः सभी गच्छों के न केवल समकालीन विद्वानों ने बल्कि परिवर्ती काल के विद्वानों ने भी बड़ी श्रद्धा के साथ प्रमाणभूत एवं तथ्यवादी आचार्य के रूप में स्वीकृत किया है और इनके वचनों को सदैव आप्त वाक्य की कोटि में रखा है। जिन चैत्यवासी मुनिजनों का जिनेश्वरसूरि ने प्रबल विरोध किया था, उन्हीं में से एक पक्ष के अग्रगण्य एवं राज्यमान्य और बहुश्रुत द्रोणाचार्य (निर्वृत्तिकुलीन) ने अपनी प्रौढ पण्डित परिषद के साथ अभयदेवसूरि द्वारा रची गयी वृत्तियों का बड़े ही सौहार्द के साथ आद्योपरांत संशोधन करते हुए इनके प्रति सौजन्य प्रदर्शित किया है।३२ अभयदेवसूरि ने वि० सं० ११२०/ ई. सन् १०६४ में स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग और ज्ञातृधर्मकथा की वृत्तियां अणहिलपुरपत्तन में समाप्त की तथा जैन आगमों में सर्वप्रधान और बृहद्परिमाण भगवतीसूत्र की व्याख्या वि० सं० ११२८ / ई. सन् १०७२ में पूर्ण की । इनके द्वारा रची गयी अन्य टीकाओं का रचनाकाल ज्ञात नहीं है। उक्त टीकाओं के अतिरिक्त प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी, पंचाशकवृत्ति, जयतिहुअणस्तोत्र, पंचनिर्ग्रन्थी और सप्ततिकाभाष्य भी इन्हीं की कृतियां हैं । प्रभावकचरित के अनुसार पाटण में चौलुक्य नरेश कर्ण (वि० सं० ११२१-४९ / ईस्वी सन् १०६५-९३) के शासनकाल में इनका स्वर्गवास हुआ।३२ विभिन्न पट्टावलियों में इनके स्वर्गवास का समय वि० सं० ११३५ / ईस्वी सन् १०७९ दिया गया है और पाटण के स्थान पर केपटवज में इनका स्वर्गवास होना बतलाया गया है।३४ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४. श्रीचन्द्रसूरि - श्वेताम्बर श्रमण परम्परा में श्रीचन्द्रसूरि नामक कई मुनिजन हो चुके हैं। विवेच्य श्रीचंद्रसूरि चंद्रकुल के आचार्य सर्वदेवसूरि के संतानीय जयसिंहसूरि के प्रशिष्य और देवेन्द्रसूरि के शिष्य तथा चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० ११५०-९८ / ई. सन् १०९४४२) और कुमारपाल (वि० सं० ११९९-१२२८ / ई. सन् ११४३-७२) के समसामयिक थे । जैसा कि लेख के प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है इन्हों ने वि० सं० १२१४ / ईस्वी सन् ११५८ में प्राकृत भाषा में ८१२७ श्लोक परिमाण सणंकुमारचरिय (सनत्कुमारचरित) की रचना की । यह कृति अणहिलपुरपाटण में श्रेष्ठी सोमेश्वर के अनुरोध पर रची गयी । चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार के जीवन पर प्राकृत भाषा में रची गयी यह सबसे बड़ी रचना है। कृति के प्रारम्भ में रचनाकार ने हरिभद्रसूरि, सिद्धमहाकवि, अभयदेवसूरि, धनपाल, देवचंद्रसूरि, शान्तिसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि और मलधारी हेमचन्द्रसूरि की कृतियों का स्मरण करते हुए उनकी प्रशंसा की है।३५ इनके द्वारा रचित किन्हीं अन्य कृतियों का उल्लेख नहीं मिलता और न ही इनके बारे में अन्य कोई जानकारी ही मिल पाती है। ५. बालचन्द्रसूरि - ये चंद्रगच्छीय हरिभद्रसूरि के पट्टधर तथा महामात्य वस्तुपाल - तेजपाल के समकालीन थे। जैसा कि इस निबन्ध के प्रारम्भिक पृष्ठों में कहा गया है इन्होंने महामात्य वस्तुपाल के पुत्र जैत्रसिंह की प्रार्थना पर वसन्तविलासमहाकाव्य की रचना की । इस कृति में वस्तुपाल के उपनाम वसंतपाल के नाम से उसकी जीवनी लिखी गयी है। इस कृति में रचनाकाल नहीं दिया गया है, किन्तु वस्तुपाल की मृत्यु की तिथि वि० सं० १२९६/ ईस्वी सन् १२४० दी गयी है जिससे स्पष्ट है कि उक्त तिथि के पश्चात् ही इसकी रचना हुई थी। इन्होंने कवि आसड़ द्वारा रचित उपदेशकन्दली और विवेकमंजरी पर वृत्तियां लिखीं । करुणावज्रायुध नामक एकांकी नाटक भी इन्हीं की कृति है। वसन्तविलास के विपरीत इन्होंने उक्त कृतियों की प्रशस्तियों में अपनी लम्बी गुर्वावली Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ____४२९ दी है किन्तु रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है। उपदेशकन्दलीवृत्ति की वि० सं० १२९६/ई० सन् १२४० में लिखी गयी एक प्रति पाटन के ग्रन्थभंडार में संरक्षित है।३६ इससे यह सुनिश्चित है कि उक्त तिथि के पूर्व यह वृत्ति लिखी जा चुकी थी । इसका संशोधन बृहद्गच्छीय पद्मसूरि ने किया था । विवेकमंजरीवृत्ति का संशोधन नागेन्द्रगच्छीय आचार्य विजयसेनसूरि और उपरोक्त पद्मसूरि ने किया था। यह बात उक्त कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है । नागेन्द्रगच्छीय आचार्य विजयसेनसूरि का स्वर्गवास वि० सं० १३०१ / ई. सन् १२४५ में हुआ माना जाता है, अतः यह स्पष्ट है कि उक्त तिथि के पूर्व ही विवेकमंजरीवृत्ति की रचना हो चुकी थी। उक्त दोनों वृत्तियों की प्रशस्तियों से यह भी ज्ञात होता है कि आसड़ के पुत्र जैत्रसिंह की प्रार्थना पर उनकी रचना की गयी।३७ उपदेशकंदली की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह कृति चंद्रगच्छीय देवेन्द्रसूरि के प्रशिष्य और भद्रेश्वरसूरि के शिष्य अभयदेवसूरि के अनुरोध पर रची गयी । यही अभयदेवसूरि बालचंद्रसूरि के प्रगुरु थे, यह बात उपदेशकन्दलीवृत्ति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है। ६. विनयचन्द्रसूरि - विनयचंद्रसूरि नामधारी मुनि द्वारा रची गयी कई कृतियां मिलती है । यथा मल्लिनाथचरित, मुनिसुव्रतचरित, पार्श्वनाथचरित, कालकाचार्यकथा, दीपावलीकल्प, नेमिनाथचउपइ, उपदेशमालाकथानकछप्पय, कल्पनिरुक्त, काव्यशिक्षा ( कविशिक्षा) आदि । पूर्वकथित पार्श्वनाथचरित की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं कि ये चन्द्रगच्छीय रविप्रभसूरि के शिष्य थे ।३८ जब कि मल्लिनाथचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार विजयचन्द्रसूरि रत्नप्रभसूरि के प्रशिष्य और प्रद्युम्नसूरि के शिष्य थे। सद्गत प्राध्यापक श्री गुलाबचंद्र चौधरी ने कालकाचार्यकथा के रचनाकार विनयचन्द्रसूरि को रत्नसिंहसूरि का शिष्य बतलाया है । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि उक्त ग्रन्थों के रचनाकार विनयचन्द्रसूरि नामधारी ग्रन्थकार अलग अलग व्यक्ति हैं। Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कालकाचार्यकथा के रचनाकार विनयचंद्रसूरि तपागच्छ के थे । इन्होंने वि० सं० १३२५ / ईस्वी सन् १२६९ में पर्युषणाकल्प पर निरुक्त की रचना की। बारहव्रतरास (वि० सं० १३३८/ ई. सन् १२८२) और नेमिनाथचतुष्पदिका भी इन्हीं की कृतियां हैं।०२।। प्राध्यापक चौधरी ने पार्श्वनाथचरित के रचनाकार विनयचंद्रसूरि का परिचय देते समय उन्हें उक्त सभी कृतियों का रचयिता बतलाया हैं,७३ जो न केवल भ्रामक है बल्कि सत्य से पर है। बाद में लिखे गये कुछ ग्रंथों में भी उक्त त्रुटिपूर्ण विवरण को अक्षरशः दुहराया गया है। वस्तुतः एक ही समय में एक ही नाम वाले एक से अधिक ग्रन्थकारों के हो जाने तथा उनके द्वारा रचनाकाल आदि का स्पष्ट उल्लेख न होने से ऐसा भ्रम उत्पन्न हो जाना सामान्य बात है किंतु मूल साक्ष्यों के आधार पर इसका निराकरण भी सम्भव है। ७. प्रद्युम्नसूरि - ये चंद्रगच्छीय कनकप्रभसूरि के शिष्य थे। जैसा कि इस निबन्ध के प्रारम्भिक पृष्ठों में ही कहा जा चुका है इन्होंने वि० सं० १३२४ / ई. सन् १२६८ में समरादित्यसंक्षेप की संस्कृत भाषा में रचना की । इसके अतिरिक्त इन्होंने वि० सं० १३२८ / ई. सन् १२७२ में प्रवज्याविधानटीका की भी रचना की।५ इन्होंने उदयप्रभसूरि, मुनिदेवसूरि, विनयचंद्रसूरि, प्रभाचंद्रसूरि आदि ग्रन्थकारों की कृतियों का संशोधन भी किया। संदर्भ सूची: १. प्रभावकचरित संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई विविध गच्छीयपट्टावलीसंग्रह संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, बम्बई १९६१ ईस्वी सन्, पृष्ठ ६१, १७८ आदि. U. P. Shah - Akota Bronzes, State Board for Historical Records and Ancient Monuments Archaelogical Series, No. 1, Bombay 1959 A. D. Pp. 28, 39, 66 Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३१ चन्द्रगच्छ Ibid P. 28 ४. बृहद्गच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १२३८/ ईस्वी सन् ११८२) की प्रशस्ति . Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm-Leaf Mss in The Shanti Natha Jaina Bhandar, Combay, GO. S. No. 149, Baroda 1966 A. D., Pp. 284-286. तपागच्छीय मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १४६६ / ई० सन् १४१९) तपागच्छीय आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य धर्मसागरसूरि द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली (रचनाकाल वि० सं० १६४८ / ई० सन् १५९२) । बृहद्गच्छीय मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छगुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १७५१ । ई० सन् १६९५) राजगच्छ का संक्षिप्त इतिहास इसी पुस्तक में यथास्थान प्रकाशित है। .। आसि सिरिबद्धमाणो पवड्डमामो गुण-सिरीए । २४०॥ एगो ताण जिमेसर-सूरी सूरोव्व उक्कड-पयावो। तस्स सिरि-बुद्धिसागर-सूरी य सहोयरो वीओ ॥ २४५ ॥ तडरुह-अवसडू महीरुहोह-उम्मूलणम्मि सुसमत्था। अज्भ्काय-पवर-तित्था पंचग्गंथी नई पवरा ।। २४८ ॥ तेसि सीस-वरो धणेसर-मुणी एयं कहं पायडं, चड्डावल्लि-पुरी ठिओ से-गुरुणो आणाए पाटंतरा । कासी विक्कम-वच्छरम्मि ए गए वाणंक-सुन्नोडुपे, मासे भदूवए गुरुम्मि कसिणे वीया धणिट्ठा-दिणे ॥ २४९ ।। सुरसुंदरीचरिय, संपा० मुनिश्री राजविजय, जैन विविध साहित्य ग्रंथमाला, ग्रन्थांक १, वाराणसी १९१६ ईस्वी, ग्रन्थकार की प्रशस्ति पृ० २८५-२८६. Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कालेणं संभूओ भयवं सिरिवद्वमाणमुणिवसभो। निप्पडिमपसमलच्छीविच्छड्डाखंडभंडारो॥ ववहारनिच्छयनय व्व दव्वभावत्थय व्व धम्मस्स । परमुन्नइजणगा तस्स दोण्णि सिस्सा समुप्पण्णा ।। पढमो सिरिसूरिजिणेसरो त्ति सूरे व्व जम्मि उइयम्मि । होत्था पहावहारो दूरं तेयस्सिचक्कस्स ।। अज्ज वि य जस्स हरहासहंसगोरं गुणाण पब्भारं । सुमरंता भव्वा उव्वहंति रोमंचमंगेसु॥ बीओ उण विरइयनिउणपवरवागरणपमुहबहुसत्थो । नामेण बुद्धिसागरसूरि त्ति अहेसि जयपयडो॥ तेसि पयपंकउच्छंगसंगसपत्तपरममाहप्पो। सिस्सो पढमो जिणचंदसूरिनामो समुप्पन्नो । अन्नो य पुन्निमाससहरो व्व निव्ववियभव्वकुमुयवणो । सिरिअभयदेवसूरि त्ति पत्तकित्ती परं भुवणे ॥ ................................................... छत्तावल्लिपुरीए जज्जयसुयपासणागभवणम्मि । विक्कमनिवकालाओ समइक्कंतेसु वरिसाण ।। एक्कारससु सएसुं पणुवीसासमहिएसु निप्फत्ति । संपत्ता एसाऽऽराहण त्ति फुडपायडपयत्था ।। Muni Punyavijaya - Ed. New Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts; Jesalmer Collection, L. D. Series No. 36, Ahmedabad 1972 A. D., P- 88. एकस्तयोः सूरिवरो जिनेश्वरः, ख्यातस्तथाऽन्यो मुनि बुद्धिसागरः । तयोविनेयेन विबुद्धिनाऽप्यलं, वृत्तिः कृतैषाभयदेवसूरिणा ।। ५ ॥ अष्टाविंशतियुक्ते वर्षसहस्त्रे शतेन चाभ्यधिके। अणहिलपाटकनगरे कृतेयमच्छुप्तधनिवसतौ ॥ १५ ।। अष्टादशसहस्ताणि षट् शतान्यथ षोडश। इत्येवं मानमेतस्यां श्लोकमानेन निश्चितम् ।। १६ ।। Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ४३३ H. R. Kapadia - Descriptive Catalogue of the Government Collections of Manuscripts deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Volume XVII, Part I, Poona - 1935, A. D. Pp. 87-88. Mohanlal Mehta and K. R. Chandra - Prakrit Proper Names, Vol. I Part II, L. D. Serties No. 37. Ahmedabad - 1972, Pp. 750 751. १०. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, बम्बई १९३२ ईस्वी, पृ० २७७. हीरालाल रसिकलाल कापडिया - पाइय भाषा अने साहित्य । ११. Muni Punyavijaya - Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jaina Bhandar, Cambay, Volume II, G.O.S. No. 149, Baroda 1966 A. D.Pp. 67-70. १२. C.D. Dalal A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandars at Pattan, Vol. I. G.O.S. No. LXXVI. Baroda - 1937. A. D., Pp. 331-333. समाश्रितो यः शरणं क्षमाभृद्गणेन काशनिपातभीत्या । अवारपारश्रियमादधानः स चंद्रगच्छोऽस्ति भुवि प्रसिद्धः ॥ १॥ भव्यारविन्दप्रतिबोधहेतुरखण्डवृत्तः प्रतिषिद्धदोषः । श्रयन्नपूर्वेन्दुतुलामिह श्रीभद्रेश्वरो नाम बभूव सूरिः ॥ २ ॥ तत्पपट्टपूर्वाचलचण्डरोचिरजायत श्रीहरिभद्रसूरिः । मुदं न कस्मै रहितं विकृत्या तपश्च चित्तं च तनोति यस्य ॥ ३ ॥ श्रीमानथाजायत शांतिसूरिय॑तः समुद्रादिव शिष्य मेघाः । ज्ञानामृतं प्राप्य शुभोपदेशवृष्टया व्यधुः कस्य मनो न शस्यम् ? ॥ ४ ॥ ततो बभूवाभयदेवसूरिर्यदीयवाणी गुणरत्नहृया। मेधाभरेन्दूल्लसिता विभाति वेलेव मध्यस्थजिनागमाब्धे ॥ ५ ॥ प्रसन्नचन्द्रोऽथ बभूव सूरिर्वक्तुं गुणान्यस्य नहि क्षमोऽभूत् । सहस्रवक्त्रोऽपि भुजङ्गराजस्ततो हियेवैष रसातलेऽगात् ॥ ६ ॥ अथाजनि श्रीमुनिरत्नसूरिः स्वबुद्धिनिर्दूतसुरेन्द्रसूरिः । रत्नन्ति शास्त्राण्यखिलानि यस्य स्थिरोन्नते मानसरोहणाद्रौ ॥ ७ ॥ श्रीचन्द्रसूरिः सुगुरुस्ततोऽभूत्प्रसन्नतालङ्कृतमस्तदोषम् । Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चित्तं च वाक्यं च वपुश्च यस्य कं न प्रमोदोत्पुलकं करोति ? ॥ ८ ॥ सूरिर्यशोदेव इति प्रसिद्धस्ततोऽभवद्यत्पदपङ्कजस्य । रजोभिरालिङ्कितमौलयोऽपि चित्रं पवित्राः प्रणता भवन्ति ॥ ९ ॥ तत्पाणिपद्मोल्लसितप्रतिष्ठः श्रचिन्द्रसूरिप्रभुशिष्यलेश: । देवेन्द्रसूरि : किमपीति सारोद्धारं चकारोपमितेः कथायाः ॥ १० ॥ श्रीविक्रमादित्यनरेन्द्रकालादष्टानवत्यर्यमसंख्यवर्षे (१२९८) । पुष्यार्कभृत्कार्त्तिककृष्णष्ठ्यां सन्पूर्णतामेष समाससाद ॥ १४ ॥ उपमितिभवप्रपञ्चकथासारोद्धार - संपा० संशोधक पंन्यास मानविजयकान्तिविजय, आचार्यदेव श्रीमद्विजयकमलसूरि-जैन ग्रन्थमाला - ग्रन्थांक १४, पाटण वि० सं० २००६, प्रशस्ति पृ० १९३. १४. गुलाबचन्द्र चौधरी - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २०, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, १९७३ ई० पृ० १२१-१२३. १५. P. Peterson - Fourth Report of Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, Bombay 1894 A.D. No. 1361, P. 123-124. १६. गुलाबचन्द चौधरी, पूर्वोक्त, पृ० २९६ - २९७ १७, वही, पृष्ठ ३५३. १८. Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm-leaf Mss in the Shanti Natha Jaina Bhandar, Combay, Part II, Pp. 257-258. अमृतलाल मगनलाल शाह संपा० श्री प्रशस्तिसंग्रह, प्रकाशक : श्री देशविरति धर्माराधक समाज, अहमदाबाद, वि० सं० १९९३, खंड १, पृष्ठ ५, क्रमांक ९ । १९. C. D. Dalal - Ibid, Pp 361-363. २०. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३०-३२. मुनि पुण्यविजय को उक्त प्रशस्ति खंडित रूप में प्राप्त हुई, अतः उन्होंने उसे उसी रूप में प्रकाशित किया है. Catalouge of Palm-leaf Mss in the Jaina Bhandar Combay, Part I, Pp. 112-118. Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगच्छ ४३५ २१. संवत् १४१० वर्षे आषाढ़ वदि द्वितीया दिने अलेखि आनन्दररत्नगणिना परोपकाराय देवकुलपाटक महानगरे || श्रीमच्चंद्रगच्छनायकपुरंदर श्रीसोमसुंदरसूरितत् शिष्योपाध्याय श्री साधुराजगणिशिष्यपरमाणुना ॥ शुभं भवतु श्री श्रमणसंघस्य ॥ श्रीपिण्डविशुद्धि (सावचूरि) की पुस्तक प्रशस्ति, श्री अमृतलाल मगनलाल शाह, पूर्वोक्त, भाग २, पृष्ठ २, प्रशस्ति क्रमांक ७. २२. इति श्री भद्रबाहुप्रणीत दुखमाप्राभृततश्चतुरधिकद्विशहस्त्रयुगप्रधानस्वरूपं सुखावबोधनार्थं श्रीदेवेन्द्रसूरिणा यंत्रपत्रे न्यासीचक्रे श्रीचंद्रगच्छे प्रद्योतनाभ श्रीसोमतिलकसूरिस्तेषामुपाध्याय श्रीहंस भवनगणिप्रसादतः श्रीशिष्य श्रीकीर्तिभुवनेन श्रीमति स्तंभनकपुरे विक्रमांत संवत् विश्वमनु १४१३ वर्षे लिखितं श्रीपद्रपत्तने श्रीवासुपूज्यप्रसत्ते: । वही, भाग २, पृष्ठ ३, प्रशस्ति क्रमांक ८. २३. मुनि जिनविजय संपा० जैन पुस्तकप्रज्ञस्तिसंग्रह, पृष्ठ १४८. प्रशस्ति क्रमांक ३९७. २४. श्री अमृतलाल मगनलाल शाह, पूर्वोक्त, भाग २, पृष्ठ १०४, प्रशस्ति क्रमांक ३८२. २५. U.P. Shah - Akota Bronzes, Pp. 27-28. २६. २७. २८. Ibid, Pp60. २९. नवाङ्गवृत्तिकार श्री अभयदेवसूरिसंताने छत्राउला श्रीदेवप्रभसूरिशिष्य श्रीपद्मप्रभसूरि । - Ibid, Pp 39-40. Ibid, Pp 39-40. U. P. Shah "A Forgotten Chapter in the History of Shvetambara Jaina Church" Journal of the Asiatic Society of Bombay, Vol. 30, Part I, 1955 A. D., Pp. 100-113. द्रष्टव्य-संदर्भ क्रमांक ६. - ३०. ३१. संदर्भ क्रमांक ७. ३२. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ २१६-२१७. ३३. “अभयदेवसूरिप्रबन्ध" प्रभावकचरित, संपा० मुनि जिनविजय, पृष्ठ १६१ - १६६. ३४. मोहनलाल मेहता, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३९८. Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास "बृहत्पोषालिकपट्टावली" में इनका स्वर्गवास काल वि० सं० ११३९ दिया गया है। केचिदेकोनचत्वारिंशदधिकैकादशशते ११३९ नवांगवृत्तिकृत श्रीअभयदेवसूरिः स्वर्गभाक्। ३५. लालचन्द भगवानदास गांधी - ऐतिहासिकलेखसंग्रह, श्री सयाजी साहित्यमाला, पुष्प ३३५, बड़ौदरा १९६३ ईस्वी, पृ० ११४. ३६. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक १२. ३७. भोगीलाल सांडेसरा - महामात्य वस्तुपाल का साहित्यमंडल और संस्कृत साहित्य में उनकी देन, सन्मति प्रकाशन नं० १५, जैन संस्कृति संशोधक मंडल, वाराणसी १९५९ ईस्वी, पृष्ठ १०६-१०९. ३८. द्रष्यव्य-संदर्भ क्रमांक १४.। ३९. Jinaratankosha, P. 303. ४०. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृष्ठ २११. ४१-४२. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन गूर्जरकविओ, नवीन संस्करण, संपा० डॉ० जयन्त कोठारी, महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई १९८६ ई० पृष्ठ १२-१३. ४३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृष्ठ १२२-१२३. ४४. जयकुमार जैन - पार्श्वनाथचरित का समीक्षात्मक अध्ययन, मुजफ्फरनगर १९८७ ईस्वी, पृष्ठ ५६-५७. 84. Jinaratnakosha, P. 272. Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास प्राक् मध्ययुगीन और मध्ययुगीन श्वेताम्बर चैत्यवासी गच्छों में चैत्रगच्छ भी एक था। चैत्रपुर (संभवतः चितौड़) से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। यह गच्छ कब और किस कारण से अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है । साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों में इस गच्छ के कई नाम मिलते हैं, यथा चैत्रगच्छ, चित्रवालगच्छ, चैत्रवालगच्छ, चित्रपल्लीगच्छ, चित्रगच्छ आदि । धनेश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं । इनके पट्टधर भुवनचन्द्रसूरि हुए, जिनके प्रशिष्य और देवभद्रसूरि के शिष्य जगच्चन्द्रसूरि से वि० सं० १२८५ / ई० सन् १२२९ में तपागच्छ का प्रादुर्भाव हुआ। देवभद्रसूरि के अन्य शिष्यों से चैत्रगच्छ की परम्परा अविच्छिन्न रूप से लम्बे समय तक चलती रही । चितौड़ के निकट स्थित घाघसा एवं चीरवा नामक स्थानों से प्राप्त वि० सं० १३२२ एवं वि०सं० १३३० के ऐतिहासिक महत्त्व के शिलालेखों के रचनाकार धनेश्वरसूरि भी इसी गच्छ के थे। चैत्रगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिए साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र कुछ ग्रन्थ एवं पुस्तक प्रशस्तियां मिलती हैं । इस गच्छ की कोई पट्टावली भी नहीं मिलती है, किन्तु तपागच्छ के चैत्रगच्छ से ही उद्भूत होने के कारण तपागच्छीय आचार्यों की विभिन्न प्राचीन कृतियों की प्रशस्तियों एवं तपागच्छ की विभिन्न पट्टावलियों में चैत्रगच्छ के प्रारम्भिक आचार्यों का उल्लेख मिलता है, जो इस प्रकार है : Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास धनेश्वरसूरि भुवनचन्द्रसूरि देवभद्रगणि - चैत्रगच्छ की परम्परा जारी जगच्चचन्द्रसूरि (वि० सं० १२८५ में तपागच्छ के प्रवर्तक) चैत्रगच्छ का उल्लेख करनेवाला सबसे प्राचीन साक्ष्य है वि०सं० १२२५ आषाढ़ वदि ९ को प्रतिष्ठापित चन्द्रप्रभ की प्रतिमा के परिकर पर उत्कीर्ण लेख, जो खंडित रूप में प्राचीन देवास राज्य के रिंगणोद (बिंबणोद) नामक कस्बे में खुदाई में प्राप्त हुआ है। सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व. आचार्य विजययतीन्द्रसूरिजी ने इस लेख की वाचना दी है जो इस प्रकार है : संवत् १२२५ वर्ष आषाढ़ वदि ९ रवौ श्रीमालीय सा० लोहडागंज सा० वच्च हीरू पुत्रेण पाल्हा प्रावासा बोहित्थेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीचैत्रकगच्छे श्रीगुणचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीरविप्रभसूरिभिः । भद्रमस्तु संघस्य । यदि सूरिजी की उक्त वाचना को सही मानें तो इसे चैत्रगच्छ का अब तक उपलब्ध सबसे प्राचीन साक्ष्य माना जा सकता है । धनेश्वरसूरि और उनके शिष्य भुवनचन्द्रसूरि तथा उक्त परिकर लेख में उल्लिखित गुणचन्द्रसूरि और उनके शिष्य रविप्रभसूरि के बीच किस Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ ४३९ प्रकार का सम्बन्ध था, इस बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। विभिन्न अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों से इस गच्छ की कई शाखाओं जैसे भर्तृपुरीयशाखा, धारणपद्रीयशाखा, चतुर्दशीपक्षशाखा, चन्द्रसामीयशाखा, सलषणपुराशाखा, कम्बोइयाशाखा, अष्टापदशाखा, सार्दूलशाखा आदि का भी पता चलता है। अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है चैत्रगच्छ से सम्बद्ध उपलब्ध सबसे प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १४७५ में मेवाड़ में चित्रित कल्पसूत्र की प्रशस्ति । अगरचन्दजी नाहटा ने इसका मूल पाठ दिया है, जो इस प्रकार है: संवत् १४७५ वर्षे चैत्र सुदि प्रतिपदां तिथे । निशानाथदिने श्रीमत मेदपाट देशे सोमेश्वर ग्रामे । अश्विनी नक्षत्रे मेषराशिस्थिते चन्द्रे । विष्कंभयोगे श्रीमत् चित्रवालगच्छे श्रीवीरचन्द्रसूरिशिष्येण धनसारेण कल्पपुस्तिका आत्मवाचनार्थं लिखापितः । लिखित: वाचनाचार्येण शीलसुन्दरेण । श्री श्री श्री शुभं भवतु। . इसके बाद आगे की दो लाईनों पर सफेदा फेर दिया गया है जिससे पीछे वाला लेख पूरा पढ़ा नहीं जा सका, पर उसके अंतिम उल्लेख से स्पष्ट है कि जैसलमेर में जयसुन्दर के शिष्य तिलकरंग को पंचमी तप के उद्यापन में यह प्रति भेंट की गयी थी। उक्त प्रशस्ति के अनुसार चैत्रगच्छीय वीरचन्द्रसूरि के शिष्य धनसार मुनि ने अपने अध्ययन के लिए वाचनाचार्य शीलसुन्दर से वि० सं० १४७५ चैत्र सुदि ११ को उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि करायी। चैत्रगच्छीय वीरचन्द्रसूरि धनसारमुनि (वि० सं० १४७५ में स्व पठनार्थ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वाचनाचार्य शीलसुन्दर से कल्पसूत्र की प्रतिलिपि कराने वाले) वीरचन्दसूरि के शिष्य धनसारमुनि और प्रतिलिपिकार वाचनाचार्य शीलसुन्दर में परस्पर क्या सम्बन्ध था, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई जानकारी नहीं प्राप्त होती, संभवतः वे भी चैत्रगच्छीय ही रहे होंगे । ठीक यही बात जयसुन्दर के शिष्य तिलकरंग, जिन्हें पंचमी उद्यापन के अवसर पर जैसलमेर में उक्त प्रति भेंट की गयी थी. के बारे में भी कही जा सकती है। जैसा कि अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत आगे हम देखेंगे कि वीरचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ४ सलेख जिन प्रतिमायें मिलती हैं, जो कि वि० सं० १४५८, १४६०, १४६९ एवं १४७० की हैं। इन्हें समसामयिकता, नाम साम्य एवं गच्छ साम्य को देखते हुए वि० सं० १४७५ में चित्रित कल्पसूत्र की प्रशस्ति में उल्लिखित धनसार मुनि के गुरु वीरचन्द्रसरि से अभिन्न मानने में कोई बाधा दिखाई नहीं देती। चैत्रगच्छ से सम्बद्ध दूसरा साहित्य साक्ष्य है सम्यक्त्वकौमुदी की प्रशस्ति । चैत्रगच्छीय आचार्य गुणाकरसूरि ने वि० सं० १५०४ / ई० सन् १४४८ में उक्त ग्रन्थ की रचना की । यद्यपि इसकी प्रशस्ति में उन्होंने न तो अपने गुरु और न ही अपनी गुरु- परम्परा के किसी आचार्य का नामोल्लेख किया है, किन्तु चैत्रगच्छ से सम्बद्ध प्राचीन प्रशस्ति होने से यह महत्त्वपूर्ण है । गुणाकरसूरि की दूसरी कृति है वि० सं० १५२४ / ई० सन् १४६८ में रचित भक्तामरस्तवव्याख्या । इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि चैत्रगच्छीय आचार्य धनेश्वरसूरि की मूल परम्परा में गुणाकरसूरि हुए, जिन्होंने उक्त कृति की रचना की । वि० सं० १५५४ / ई० सन् १४९८ में लिपिबद्ध की गयी भक्तामरस्तवव्याख्या की एक प्रति मुनि पुण्यविजयजी के संग्रह में उपलब्ध है, जिसकी दाताप्रशस्ति में चैत्रगच्छीय मुनि चारुचन्द्र का उल्लेख है। Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ ४४१ चैत्रगच्छ से सम्बद्ध अगला साहित्यिक साक्ष्य इसके ८० वर्ष पश्चात् का है। यह वि० सं० १६०४ में प्रतिलिपि की गयी मेघदूत की प्रतिलेखन प्रशस्ति है, जो आज श्री जैन सं० ज्ञान भंडार, पाटन में संरक्षित है । श्री अमृतलाल मगनलाल शाह ने इस प्रशस्ति का मूलपाठ दिया है, जो इस प्रकार है I सं० १६०४ वर्षे वैशाख सुदि २ भूमवासरे श्री चैत्रगच्छे भ० श्री ६ नयकीर्तिसूरि सूरिन्द्रान तत् शिष्यमु० विनयकीर्तिलिखितं स्ववाचनाय, चित्रांगददुर्ग मध्ये | श्रीरस्तु ॥ श्री ॥ अर्थात् चैत्रगच्छीय नयकीर्तिसूरि के शिष्य विनयकीर्ति ने वि० सं० १६०४ वैशाख सुदि २ मंगलवार को चित्रांगददुर्ग (चितौड़गढ) में स्वपठनार्थ मेघदूत की प्रतिलिपि की । श्री प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ३७३, पृष्ठ १०२. चैत्रगच्छ से सम्बद्ध अगला साहित्यिक साक्ष्य इसके २० वर्ष पश्चात् अर्थात् वि० सं० १६२४ में लिपिबद्ध की गयी लघुक्षेत्रसमास की प्रतिलेखन प्रशस्ति का है । यह प्रति अद्यावधि नि० वि० जी० मणि पुस्तकालय चाणस्मा में संरक्षित है। श्री अमृतलाल मगनलाल शाह ने इस प्रशस्ति की भी वाचना दी है, जो इस प्रकार है इति क्षेत्रसमासप्रकरणं समाप्तमेति ॥ श्री ॥ संवत् १६२४ वर्षे माघ वदि १२ मंदवासरे ॥ श्री चैत्रगच्छे भ० ॥ श्रीः ५ विनयचंद्रसूरि ॥ वाचनाचार्य वा० श्री श्री ५ अभयचंद्र तत् शिष्य मुनि अमरचंद्रेण लिखितं ॥ श्री वालीसादेशे श्री वोहिया शुभस्थाने वालीसा श्री कान्हजी विजयराज्ये ॥ श्री रस्तु ॥ कल्याणं ॥ द्य ॥ शुभं भवतु ॥ श्रीः ॥ द्य ॥ श्रीः ॥ श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ४५८, पृष्ठ १२०. अर्थात् चैत्रगच्छीय विनयचन्द्रसूरि के समय वाचनाचार्य अभयचन्द्र के शिष्य अमरचन्द्र ने वि० सं० १६२४ माघ वदि १२ को लघुक्षेत्रसमास Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास की प्रतिलिपि की । आचार्य विनयचंद्रसूरि और वाचनाचार्य अभयचन्द्र के बीच गुरुभ्राता अथवा गुरु-शिष्य का सम्बन्ध था, यह बात उक्त प्रशस्ति से स्पष्ट नहीं होता । दशवैकालिकसूत्र की वि० सं० १७६८ / ई० सन् १७१२ में लिखी गयी एक प्रति की दाताप्रशस्ति' में चैत्रगच्छ की देवशाखा का उल्लेख है । यह प्रति उक्त शाखा के आचार्य रत्नदेवसूरि के पट्टधर सौभाग्यदेवसूरि की परम्परा के मुनि बेलजी के पठनार्थ लिखी गयी थी । चैत्रगच्छ से सम्बद्ध कुल यही साहित्यिक साक्ष्य प्राप्त होते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घाघसा' के वि० सं० १३२२ एवं चीरवा के वि० सं० १३३० के शिलालेखों के रचनाकार रत्नप्रभसूरि भी चैत्रगच्छ से ही सम्बद्ध थे । उक्त लेख यद्यपि जैन धर्म से सम्बद्ध नहीं है, किन्तु इनमें मेवाड़ के गुहिल शासकों पद्मसिंह, जैत्रसिंह और समरसिंह की उपलब्धियों का वर्णन है । इन लेखों के रचनाकार चैत्रगच्छीय रत्नप्रभसूरि द्वारा लेख के अन्त में अपनी गुरु-परम्परा, गच्छ का नाम, लेख का समय आदि का सुन्दर विवरण दिया गया है जो इस प्रकार है भद्रेश्वरसूरि I देवभद्रसूरि 1 सिद्धसेनसूरि जिनेश्वरसूरि I विजयसिंहसूरि भुवनचन्द्रसूरि Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ ४४३ रत्नप्रभसूरि (वि० सं० १३२२ के घाघसा एवं वि० सं० १३३० के चीरवा के शिलालेखों के रचनाकार) तपागच्छीय प्राचीन ग्रन्थप्रशस्तियों एवं पट्टावलियों में उल्लिखित चैत्रगच्छीय धनेश्वरसूरि, भुवनचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि, जगच्चन्द्रसूरि आदि से घाघसा एवं चीरवा अभिलेखों में उल्लिखित चैत्रगच्छीय रत्नप्रभसूरि और उनके पूर्ववर्ती मुनिजनों का क्या सम्बन्ध था, इस बारे में प्रमाणों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है।। चैत्रगच्छ से सम्बद्ध दो जैन लेख चित्तौड़ से प्राप्त हुए हैं। इनमें से एक लेख चैत्रगच्छ की मूलशाखा और दूसरी भर्तृपुरीयशाखा से सम्बद्ध है। त्रिपुटी महाराज ने प्रथम लेख की वाचना इस प्रकार दी है : "---कार्तिक सुदि १४ चैत्रगच्छे रोहणाचलचिंतामणि--- सा मणिभद्र सा० नेमिभ्यां सह वंडाजितायाः सं राजन श्रीभुवनचन्द्रसूरिशिष्यस्य विद्वत्तया सुहत्तया व रंजितं श्रीगुर्जरराज श्रीमेदपाट प्रभु प्रभृति क्षितिपतिमानितस्य श्री (३) xxx लघुपुत्र देदासहितेन स्वपितुरामित्य प्रथमपुत्रस्य वर्मनसिंहस्य पूर्वप्रतिष्ठित श्रीसीमंधरस्वामी श्रीयुगमंधरस्वामी" उक्त लेख में उल्लिखित भुवनचन्द्रसूरि और उनके शिष्य (नाम अज्ञात) को घाघसा और चीरवा के लेखों में उल्लिखित भुवनचन्द्रसूरि और उनके विद्वान् शिष्य एवं लेख के रचयिता रत्नप्रभसूरि से समीकृत किया जा सकता है और इस स्थिति में उक्त लेख का काल भी वि० सं० १३२२ - १३३० के आसपास माना जा सकता है। चैत्रगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों का विवरण इस प्रकार है : Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 888 क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १२६५ | तिथि पद्मदेवसूरि पार्श्वनाथ की धातु | आदिनाथ जिनालय, अगरचन्द नाहटा, विहीन प्रतिमा का लेख | (नाहटों में) । संपा. बीकानेरबीकानेर जैनलेखसंग्रह, लेखांक १४८० २. |१२७३ | फाल्गुन धर्मसिंहसूरि | गुरुमूति पर चिन्तामणिपार्श्वनाथ अरविन्दकुमारसिंह, . वदि २ उत्कीर्ण लेख | जिनालय, सादड़ी | "चिन्तामणि रविवार (राज.) पार्श्वनाथ मंदिर के तीन जैन प्रतिमा लेख" |पं० दलसुखभाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ १७२-७३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३. |१२८८ आषाढ़ --सूरि चिन्तामणि पार्श्वनाथ- नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० जिनालय बीकानेर लेखांक १२६ शुक्रवार ४. १३०० | माघ हरिचन्द्रसूरि | शांतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, दौलतसिंह लोढावदि २ प्रतिमा पर थराद संपा० श्रीप्रतिमाउत्कीर्ण लेख लेखसंग्रह, लेखांक ५. १३१२ वैशाख यशोदेवसूरि के | पार्श्वनाथ की धातु | चिन्तामणिजी मुनि विशालविजय, वदि पट्टधर देवेन्द्रसूरि की प्रतिमा पर मंदिर, संपा० राधनपुरउत्कीर्ण लेख |चिन्तामणि शेरी, प्रतिमालेख राधनपुर संग्रह, लेखांक ३६ || Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ६. १ ८. १३१२ १३२० १३२१ तिथि माघ वदि ५ बुधवार फाल्गुन सुदि १२ चैत्र सुदि ३ शुक्रवार आचार्य का नाम देवेन्द्रसूरि के पट्टधर धर्मदेवसूरि रविप्रभसूरि शालिभद्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ की चिन्तामणिजी, प्रतिमा पर का मंदिर उत्कीर्ण लेख बीकानेर पार्श्वनाथ की धातु | पार्श्वनाथ जिनालय, की प्रतिमा पर (कोचरों में) उत्कीर्ण लेख बीकानेर आदिनाथ की प्रतिमा का लेख संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १५३ वही, लेखांक १६२० अनुपूर्तिलेख, आबू मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुद प्राचीनजैनलेख संदोह, लेखांक ४६२ ४४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख ९. |१३२१ | फाल्गुन । आमदेवसूरि शांतिनाथ की | बावन जिनालय, . सुदि चौबीसी प्रतिमा करेड़ा, मेवाड़ का लेख १०. |१३२६ / चैत्र । वदि १२ शुक्रवार शालिभद्रसूरि के शिष्य धर्मचन्द्रसूरि शांतिनाथ की धातु-प्रतिमा का लेख | पार्श्वनाथ देरासर, लाडोल पूरनचन्द नाहर, संपा. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९२१ बुद्धिसागरसूरि, संपा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४६२ वही, भाग १, लेखांक ४६३ ११. १३२६ / चैत्र वदि १२ शुक्रवार अजितनाथ की पार्श्वनाथ देरासर, धातु की प्रतिमा | लाडोल का लेख ४४७ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 288 क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२. | १३२६ / ..वदि ३ __ पद्मप्रभसूरि | जिनप्रतिमा पर | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त बुधवार उत्कीर्ण लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक १६८ १३. | १३२७ फाल्गुन ___ अजितसिंहसूरि | जिनप्रतिमा पर | चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १२ __के संतानीय उत्कीर्ण लेख | जैसलमेर | भाग ३, कनकप्रभसूरि लेखांक २२२९ १३३१ | तिथि पार्श्वनाथ की |चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, विहीन प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक १७८ १५. |१३३२ वैशाख देवेन्द्रसूरि के चतुर्विंशति पट्ट । वही वही, लेखांक १८३ (?) | सुदि ११ संतानीय | पर उत्कीर्ण लेख रविवार धर्मदेवसूरि १६. १३३३ | आषाढ़ देवाणंदसूरि | शांतिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, | बुद्धिसागरसूरि, धातु की प्रतिमा | शांतिनाथ पोल, पूर्वोक्त, भाग १, का लेख अहमदाबाद लेखांक १२९७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सुदि २ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १७. १३३३ | माघ । देवचन्द्रसूरि के स्तम्भ लेख जैन मंदिर, रत्नपुर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १ पट्टधर | मारवाड़ भाग १, अमरचन्द्रसूरि लेखांक ९३५ १८. १३३४ | वैशाख भद्रेश्वरसूरि जिनप्रतिमा पर पंचायती मंदिर, विनयसागर, संपा० सुदि ५ के शिष्य उत्कीर्ण लेख जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, गुरुवार नरचन्द्रसूरि भाग-१,लेखांक ८६ १९. |१३३४ / वैशाख देवभद्रसूरि के | कायोत्सर्ग जैन मंदिर, तिवारी, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ५ के संतानीय | जिनप्रतिमा पर सिरोही भाग २, गुरुवार पं० सोमचन्द्र उत्कीर्ण लेख लेखांक २०९० २०. |१३३५ | चैत्र पद्मचन्द्रसूरि | शालिभद्रसूरि | पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागर, वदि ५ के पट्टधर | की प्रतिमा पर लाडोल पूर्वोक्त, भाग १ रविवार शालिभद्रसूरि | उत्कीर्ण लेख लेखांक ४५६ ४४९ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्कः संवत् २१. २२. तिथि १३३९ तिथि विहीन १३४० ज्येष्ठ सुदि १३ रविवार आचार्य का नाम के शिष्य रविचन्द्रसूरि और धर्मचन्द्रसूरि धर्मदेवसूरि देवप्रभसूरि के संतानीय अमरभद्रसूरि के पट्टधर अजितदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वीर जिनालय, जैसलमेर सुपार्श्वनाथ का बड़ा पंचायती जैन मंदिर जयपुर संदर्भ ग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २४१६ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १ लेखांक ११३४ ४५० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् २३. २४. २५. तिथि १३४..? ५ रविवार १३५२ | फाल्गुन सुदि १ बुधवार १३५४ | माघ वदि ५ आचार्य का नाम रत्नप्रभसूरि के पद्मप्रभसूरि गुणचन्द्रसूरि धर्मदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा का लेख वासूपूज्य की धातुप्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, भोंयरापाडो, खंभात शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, खंभात संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ८७९ आचार्य विजय धर्मसूरि, संपा० प्राचीनलेखसंग्रह लेखांक ५० एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०४१ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ८२६ चैत्रगच्छ ४५१ Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् १३५८ (?) २७. १३६१ २६. २८. २९. तिथि १३६९ वैशाख सुदि ६ तिथि विहीन १३६९ तिथि विहीन फाल्गुन सुदि ९ सोमवार आचार्य का नाम रत्नसिंहसूरि वर्धमानसूरि के शिष्य जयसेन उपाध्याय आमदेवसूरि अजितदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख स्तम्भ लेख महावीर की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर लूणवसही, आबू चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर प्राचीन जैन मंदिर, लाल बाग, मुम्बई संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २८१ मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ३८४ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २४४ मुनि कान्तिसागर, संपा० जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक २३ ४५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ -- - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान / संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३०. १३७१ | आषाढ़ श्री उद...? | महावीर की धातु | जैन मंदिर, भावरी मुनि जयन्तविजय, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | ग्राम, सिरोही संपा० अर्बुदाचलगुरुवार प्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५२४ ३१. १३७३ | वैशाख पद्मदेवसूरि शांतिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ७ | प्रतिमा का लेख मन्दिर, बीकानेर लेखांक २५३ सोमवार ३२. १३७८ | वैशाख रत्नसिंहसूरि जिन प्रतिमा पर वही, | सुदि६ उत्कीर्ण लेख लेखांक २७६ बुधवार ___३३. १३७८ | ज्येष्ठ । हेमप्रभसूरि के सुमतिनाथ की विमलवसही, आबू मुनि जयन्तविजय, Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ 808 क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख वदि ९ । शिष्य रामचन्द्रसूरि | प्रतिमा पर सोमवार उत्कीर्ण लेख संपा० अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक १३९ एवं मुनि जिनविजय, संपा. प्राचीनजैनलेखसंग्रह भाग २, लेखांक २०२ चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, जैसलमेर भाग ३ लेखांक २२४९ चन्द्रप्रभ जिनालय, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, जानीशेरी, बडोदरा | भाग २, स्तम्भन पार्श्वनाथ लेखांक १५० ३४. | १३८१ | वैशाख | धर्मदेवसूरि पार्श्वनाथ की सुदि १ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३५. १३८६ | माघ पद्मदेवसूरि शांतिनाथ की वदि २ के पट्टधर | धातुप्रतिमा पर सोमवार मानदेवसूरि | उत्कीर्ण लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास - Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ वही, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम , प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ३६. १३८७ माघ पार्श्वनाथ की स्तम्भन पार्श्वनाथ वही, भाग २, वदि ९ धातु की प्रतिमा | जिनालय, खारवाड़ा, लेखांक १०४१ शुक्रवार का लेख खंभात ३७. १३...? | फाल्गुन मानदेवसूरि चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ८ मंदिर, बीकानेर लेखांक ३८१ ३८. | १३८८ | मार्गशीर्ष | मदनसूरि के पट्टधर | महावीर की धातु | वही सुदि ९ धर्मसिंहसूरि की प्रतिमा लेखांक ३२६ शनिवार का लेख ३९. १३८८ / वैशाख हरिचंद्रसूरि | शांतिनाथ की जैन देरासर, बुद्धिसागर, वदि २ धातु की प्रतिमा कोलवडा पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार का लेख लेखांक ६५९ ४०. |१३८५ | तिथि- आमदेवसूरि चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, विहीन जैसलमेर भाग ३, लेखांक २२५५ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ | शत्रुञ्जय क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ४०. अ१३९१ | चैत्र । मानदेवसूरि पद्मदेवसूरि वदि ७ के शिष्य भीमा की मूर्ति पर उत्कीर्ण लेख मधुसूदन ढांकी और लक्ष्मण भोजक "शत्रुञ्जयगिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमालेखों" सम्बोधि, वर्ष ७, अंक १-४, लेखांक २३ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ४९ वही, भाग २ ४१. १३९१ | माघ | हरिप्रभसूरि के | अजितनाथ की | वीर जिनालय, सुदि ६ | शिष्य धर्मदेवसूरि | प्रतिमा का लेख | बडोदरा रविवार ४२. | १३९२ | माघ पद्मदेवसूरि के | नमिनाथ की धातु | सीमंधरस्वामी का जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४२ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख (३) | वदि ११ | शिष्य मानदेवसूरि की प्रतिमा का | मंदिर, खारवाडो, लेखांक १०६८ शुक्रवार लेख खंभात ४३. १३९६ माघ । मानदेवसूरि । | पार्श्वनाथ की | पार्श्वनाथ देरासर, वही, भाग १, वदि २ धातु की प्रतिमा देवसानो पाडो, लेखांक १०९३ सोमवार का लेख अहमदाबाद ४४. |१३९७ | माघ... शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, छाणी, बडोदरा लेखांक २५६ ४५. १४०५ / वैशाख धर्मदेवसूरि आदिनाथ की शांतिनाथ देरासर, वही, भाग १, धातु की प्रतिमा | कनासा पाडो, लेखांक ३५७ का लेख पाटण ४६. १४०८ | वैशाख | पद्मदेवसूरि के शांतिनाथ की शीतलनाथ जिनालय, वही, भाग २, ९.... सुदि २ 668 Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ । स्तम्भलेख सुदि ५ | पट्टधर मानदेवसूरि | धातुप्रतिमा | कुंभारपाडो, खंभात | लेखांक ६५० गुरुवार का लेख ४७. | १४१७ | ज्येष्ठ मानदेवसूरि | आदिनाथ की शांतिनाथ देरासर, वही, भाग १, सुदि ९ धातु की प्रतिमा | कनासा पाडो, लेखांक ३२४ गुरुवार का लेख पाटण ४८. | १४२२ | वैशाख मुनिरत्नसूरि शांतिनाथ की | चिन्तामणिजी नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १२ धातु की प्रतिमा | का मंदिर, लेखांक ४४९ बुधवार का लेख बीकानेर ४९. | १४२४ | आषाढ़ धर्मदेवसूरि | आदिनाथ की वही वही, सुदि ६ धातु की प्रतिमा लेखांक ४७० गुरुवार का लेख ५०. | १४३० | आषाढ़ | . धर्मदेवसूरि | शांतिनाथ की संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त | जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख सुदि६ धातु की प्रतिमा | पादरा भाग २, गुरुवार का लेख लेखांक १४ ५०.अ. |१४३२ | फाल्गुन गुरु-प्रतिमा पर मधुसूदन ढांकी और सुदि २ शिष्य रत्प्रभसूरि | उत्कीर्ण लेख लक्ष्मण भोजक, शुक्रवार की प्रतिमा के "शत्रुजयगिरिना प्रतिष्ठापक उनके केटलाक अप्रकट शिष्य गुणसमुद्रसूरि प्रतिमालेखो" सम्बोधि, जिल्द ७, अंक १-४ लेखांक २७ ५१. १४३५ माघ । गुणदेवसूरि पार्श्वनाथ की | चिन्तामणि जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख वदि १३ धातु की पंचतीर्थी | बीकानेर लेखांक ५१६ सोमवार प्रतिमा का लेख ५२. | १४४६ / वैशाख देवचन्द्रसूरि । आदिनाथ की सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागरसूरी, वदि . के पट्टधर धातु की प्रतिमा । बावन जिनालय, पूर्वोक्त, भाग २, पार्श्वचन्द्रसूरि का लेख मातर ५३. | १४५१ | ज्येष्ठ पासदेवसूरि शांतिनाथ की | जैन मंदिर, ऊंझा वही, भाग १, सुदि ४ धातु की लेखांक १५५ रविवार प्रतिमा का लेख ५४. १४५८ | फाल्गुन वीरचन्द्रसूरि | आदिनाथ की | चिन्तामणि जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १ धातु की प्रतिमा | बीकानेर लेखांक ५८५ शुक्रवार का लेख ५५. | १४६६ | वैशाख । धर्मदेवसूरि के | शांतिनाथ की संभवनाथ जिनालय, बुद्धिसागर, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख सुदि ३ | पट्टधर पार्श्वचन्द्रसूरि | धातु की प्रतिमा | बोलपीपलो, खंभात | पूर्वोक्त, भाग २, सोमवार | का लेख लेखांक ११३३ ५६. |१४६६ | मार्गशीर्ष वीरचन्द्रसूरि | आदिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० धातु की प्रतिमा मंदिर, बीकानेर लेखांक ३२९ बुधवार का लेख ५६.अ. |१४६९ माघ । वीरचन्द्रसूरि संभवनाथ की पुरातत्त्व संग्रहालय, सोहनलाल पटनी, सुदि ९ एकतीर्थी प्रतिमा | सिरोही अर्बुदपरिमंडल रविवार का लेख की जैनधातु प्रतिमायें, लेखांक १०५, पृ. ६४-६५ ५६.ब. १४७० | तिथि । वीरचन्द्रसूरि आदिनाथ की वही वही, Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख विहीन एकतीर्थी प्रतिमा लेखांक १०७ का लेख पृ. ६५ ५७. | १४७४ | फाल्गुन पार्श्वचन्द्रसूरि | वही धर्मनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरी, सुदि ९ के शिष्य उपलो गभारो, पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार मलयचन्द्रसूरि अहमदाबाद लेखांक १११३ ५८. १४७७ | वैशाख गुणदेवसूरि | अनन्तनाथ की शांतिनाथ देरासर, वही, भाग २, सुदि ५ धातु की चौबीसी | छाणी, बड़ोदरा लेखांक २६७ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ५९. | १४७७ / वैशाख गुणदेवसूरि शांतिनाथ की सहस्रफणा पार्श्वनाथ | मुनि विशालविजय, सुदि ५ धातु की चौबीसी जिनालय, पूर्वोक्त, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख प्रतिमा का लेख | बम्बावाली शेरी, लेखांक १०० | राधनपुर ६०. (१४) | वैशाख जयानन्दसूरि पार्श्वनाथ की अनुपूर्तिलेख, आबू |अर्बुदप्राचीन७८ | सुदि ६ प्रतिमा का लेख जैनलेखसंदोह, सोमवार लेखांक ६६० ६१. १४८४ वैशाख | जिनदत्त (देव) सूरि | धातु की चौबीसी | कल्याण पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरी, सुदि ११ जिनप्रतिमा पर देरासर, वीसनगर पूर्वोक्त, भाग १, रविवार उत्कीर्ण लेख लेखांक ५३४ ६२. १४८७ | मार्गशीर्ष जिनदेवसूरि श्रेयांसनाथ की मुनिसुव्रतनाथ वही, भाग २, सुदि ९ धातु की प्रतिमा | जिनालय, खारवाडो, लेखांक १०२५ शुक्रवार का लेख खंभात ६३. |१४९३ | माघ धनदेवसूरि पार्श्वनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, ४६२ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 838 सुदि ८ वही, - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख धातु की प्रतिमा | राजलदेसर लेखांक २३४७ शनिवार का लेख ६४. | १४९९ । कार्तिक ...तिलकसूरि | धर्मनाथ की वीरजिनालय, सुदि १५ धातु की पंचतीर्थी | बीकानेर लेखांक १३४१ गुरुवार प्रतिमा का लेख ६५. |१४९९ । माघ मुनितिलकसूरि । सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, के पट्टधर प्रतिमा का लेख | सेठों की हवेली भाग २ सोमवार गुणाकरसूरि के पास, उदयपुर लेखांक १९०१ ६६. |१४९९ फाल्गुन जयानन्दसूरि, | मुनिसुव्रत की पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि २ मुनितिलकसूरि, | धातु की चौबीसी सरदारशहर लेखांक २३८४ गुरुवार गुणाकरसूरि । प्रतिमा का लेख ६७. | १५०० | वैशाख श्री सूरि शांतिनाथ की शातिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, सुदि ६ - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख सुदि ५ धातु की चौबीसी कडुवामत की शेरी, पूर्वोक्त, गुरुवार प्रतिमा का लेख राधनपुर लेखांक १३२ ६८. १५०१ | माघ सुमतिसूरि, | चन्द्रप्रभ की पंचायती मंदिर, विनयसागर, सुदि १० । गुणाकरसूरि | चौबीसी प्रतिमा | जयपुर पूर्वोक्त, भाग - १ सोमवार का लेख लेखांक ३४६ ६९. |१५०१ | फाल्गुन | मुनितिलकसूरि । शांतिनाथ की | वही नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १३ प्रतिमा का लेख भाग २, शनिवार लेखांक ११४५ ७०. |१५०३ | मार्गशीर्ष संभवनाथ की शांतिनाथ-जिनालय, विनयसागर, वदि १० पंचतीर्थी प्रतिमा | रतलाम पूर्वोक्त, भाग १ का लेख लेखांक ३७० ७१. १५०३ मार्गसिर मलयचन्द्रसूरि सुमतिनाथ चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, मलयचन Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ७२. १५०४ ७३. १५०५ ७४. १५०६ ७५. १५०६ तिथि सुदि ६ माघ सुदि ५ रविवार माघ वदि ७ माघ वदि ३ गुरुवार माघ आचार्य का नाम गुणाकरसूरि के सानिध्य में मुनितिलकसूरि मुनितिलकसूरि "" "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की प्रतिष्ठा स्थान जैसलमेर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, बीकानेर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ शांतिनाथ जिनालय, विनयसागर, रतलाम अस्पष्ट भाग ३, लेखांक २३२० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९०४ पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३९७ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९०० नाहर, पूर्वोक्त, ४६६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ सुदि ५ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख प्रतिमा का लेख भाग १, लेखांक २१३ ७६. १५०७ | भाद्रपद ____ गुणदेवसूरि |सुविधिनाथ की महावीर जिनालय, मुनि कान्तिसागर, सुदि १३ के संतानीय धातु की प्रतिमा | पायधुनी, मुम्बई पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार जिनदेवसूरि | का लेख लेखांक १०६ ७७. १५०७ | माघ । मुनितिलकसूरि | सुमतिनाथ की बावन जिनालय, बुद्धिसागर, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | पेथापुर पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक ७०४ ७८. |१५०८ | वैशाख धर्मनाथ की जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | पटना(बिहार) भाग १, सोमवार का लेख लेखांक २७७ ७९. |१५०८ | वैशाख श्रेयांसनाथ की गौड़ी पार्श्वनाथ मुनि कान्तिसागर, ४८७ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् ८०. ८१. ८२. ८३. तिथि सुदि ५ सोमवार १५०८ | मार्गशीर्ष वदि २ बुधवार १५०८ | मार्गशीर्ष सुदि ३ शुक्रवार १५०९ माघ वदि ९ मंगलवार १५११ | ज्येष्ठ वदि ९ आचार्य का नाम मुक्तवि.... सूरि गुणदेवसूरि के के संतानीय जिनदेवसूरि वीरदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धातु की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की के पट्टधर पासदेवसूरि गुणदेवसूरि के संतानीय जिनदेवसूरि धातु की पंचतीर्थी प्रतिष्ठा स्थान जिनालय, पायधुनी, पूर्वोक्त, मुम्बई पंचायती मंदिर, जयपुर संदर्भ ग्रन्थ जैन मंदिर, चांदवाड़, नासिक विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४३४ जैन मंदिर, बोटाड विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक २३५ मुनि कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक ११५ मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, नेमिनाथ जिनालय, सेठ की शेरी, लेखांक १११ ४६८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख रविवार के पट्टधर रत्नदेवसूरि प्रतिमा का लेख | राधनपुर लेखांक १७६ ८४. १५१२ | वैशाख विमलनाथ की शांतिनाथ देरासर, बुद्धिसागर, वदि ३ धातु की चौबीसी | वीसनगर पूर्वोक्त भाग १, शुक्रवार प्रतिमा का लेख लेखांक ५०४ ८५. १५१२ | पौष मुनितिलकसूरि | शीतलनाथ की | चौमुख शांतिनाथ वही, भाग १, वदि ५ धातु की प्रतिमा देरासर, लेखांक ८९५ शुक्रवार का लेख अहमदाबाद ८६. १५१३ वैशाख गुणदेवसूरि | शांतिनाथ की | कल्याण पार्श्वनाथ बुद्धिसागर, वदि ५ के संतानीय | धातु की प्रतिमा । देरासर, मामा की पूर्वोक्त, भाग २, शनिवार __रत्नदेवसूरि का लेख पोल, बड़ोदरा लेखांक ३२ ८७. १५१३ | वैशाख मुनितिलकसूरि संभवनाथ की | आदिनाथ जिनालय, नाहर, सुदि ५ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | नागौर पूर्वोक्त, भाग २, शुक्रवार | गुणाकरसूरि लेखांक ५०५ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० - -- - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८८. १५१३ । माघ गुणाकरसूरि संभवनाथ की | चिन्तामणि पार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख जिनालय, बीकानेर लेखांक ९७५ ८९. १५१३ | माघ विमलनाथ की धर्मनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख | बड़ा बाजार, भाग १, रविवार कलकत्ता लेखांक १०१ ९०. १५१५ / ज्येष्ठ रामदेवसूरि । कुन्थुनाथ की शीतलनाथ जिनालय, | वही, भाग २, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | उदयपुर लेखांक १०९० ९१. १५१५ | मार्गशीर्ष | मुनितिलकसूरि | संभवनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ११ | पट्टधर गुणाकरसूरि | धातु की प्रतिमा | मंदिर, बीकानेर लेखांक ९८५ का लेख ९२. १५१७ | माघ श्रेयांसनाथ की वही, वदि १२ धातु की प्रतिमा लेखांक १००३ गुरुवार का लेख - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही, Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९३. १५१९ ९४. १५११ ९५. ९६. १५२३ १५२४ तिथि आषाढ़ वदि ९ शनिवार पौष वदि १३ मंगलवार वैशाख वदि ४ गुरुवार वैशाख सुदि ३ सोमवार आचार्य का नाम "" श्रीसूरि गुणदेवसूरि के पट्टधर रत्नदेवसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैन मंदिर, अलवर नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, | लेखांक ९९२ संभवनाथ देरासर झवेरीवाड, अहमदाबाद शंखेश्वरपार्श्वनाथ देरासर, वीरमगाम संदर्भ ग्रन्थ आदिनाथ जिनालय, शेखनो पाडो, अहमदाबाद बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८६४ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १५०५ वही, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०१९ चैत्रगच्छ ४७१ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९७. | १५२४ | वैशाख | रामचन्द्रसूरि | कुन्थुनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, सुदि ६ धातु की प्रतिमा | भरुच लेखांक ३१२ गुरुवार का लेख ९८. | १५२५ | ज्येष्ठ गुणदेवसूरि के | धर्मनाथ की बालावसही, | मुनि कान्तिसागर, सुदि ५ संतानीय प्रतिमा का लेख | शत्रुजय शत्रुञ्जयवैभव, बुधवार जिनदेवसूरि लेखांक १८७ ९९. १५२७ ज्येष्ठ सोमकीर्तिसूरि | शीतलनाथ की वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ४ ....? धातु की प्रतिमा बीकानेर लेखांक १२२६ बुधवार का लेख १००. | १५२७ | आषाढ़ | सोमकीर्तिसूरि के | सुमतिनाथ की शीतलनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १३ पट्टधर प्रतिमा का लेख | उदयपुर भाग २, रविवार ___ चारुचन्द्रसूरि लेखांक १०९४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०१. १०२. १०३. १०४. तिथि १५२७ माघ सुदि ९ बुधवार १५२८ | चैत्र वदि १० गुरुवार १५२९ माघ वदि ६ रविवार १५३१ | फाल्गुन सुदि ८ शनिवार आचार्य का नाम साधुकीर्तिसूरि, चारुचन्द्रसूरि ज्ञानदेवसूरि सोमकीर्तिसूरि सोमकीर्तिसूरि के पट्टधर वीरचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान शांतिनाथ की गौड़ी पार्श्वनाथ धातु की पंचतीर्थी | जिनालय, गौड़ीजी प्रतिमा का लेख की खड़की, सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख चिन्तामणि पार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्त, जिनालय, बीकानेर लेखांक १०५४ संदर्भ ग्रन्थ शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक २५७ राधनपुर पंचायती जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, मिर्जापुर भाग १, लेखांक ४३२ वही, भाग २, लेखांक १०९६ चैत्रगच्छ ४७३ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 808 क्रमाङ्क संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान - संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १०५. | १५३४ / वैशाख । सोमकीतिसूरि के | सुमतिनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, मुनि कान्तिसागर, वदि १३ | पट्टधर वारवेन्द्र | धातु की प्रतिमा | भद्रावती जैनधातुप्रतिमासोमवार | (वीरचन्द्र) सूरि | का लेख लेख, भाग १, लेखांक २२७ १०६. १५४७ ज्येष्ठ । सोमकीतिसूरि के | धर्मनाथ की संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागरसूरी, वद्धि ४ । पट्टधर चारुचन्द्रसूरि धातु की प्रतिमा | झवेरीवाड़, पूर्वोक्त, भाग १, मंगलवार का लेख अहमदाबाद लेखांक ८४२ १०७. | १५३८ वैशाख रत्नदेवसूरि | चन्द्रप्रभ की आदिनाथ का बड़ा लोढ़ा, पूर्वोक्त, वदि ५ के पट्टधर | धातु की प्रतिमा | चैत्य, थराद लेखांक २१३ बुधवार अमरदेवसूरि | का लेख १०८.१५४० मार्गशीर्ष सोमकीतिसूरि | वासुपूज्य की विमलनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ के पट्टधर धातु की प्रतिमा कोचरों का चौक, लेखांक १५८३ चारुचन्द्रसूरि का लेख बीकानेर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ । क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १०९. १५४२ | वैशाख सोमकीर्तिसूरि | शांतिनाथ जिनालय, वही, सुदि ९ पाषाण की प्रतिमा हनुमानगढ़, लेखांक २५३६ का लेख बीकानेर ११०. | १५४३ | वैशाख सोमदेवसूरि । | पार्श्वनाथ की पार्श्वनाथ देरासर, बुद्धिसागर, वदि १० धातु की प्रतिमा | अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार का लेख लेखांक ९१९ १११.१५४८ कातिक धर्मनाथ की जैन मंदिर पंजाबी शत्रुञ्जयवैभव, सुदि ११ प्रतिमा का लेख | धर्मशाला, लेखांक २४३ गुरुवार पालिताना ११२. |१५४८ | कार्तिक चन्द्रप्रभ की बड़ा मंदिर, वही, लेखांक २४१ सुदि ११ प्रतिमा का लेख पालिताना एवं नाहर, पूर्वोक्त, गुरुवार भाग १, लेखांक ३७६ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 368 - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ११३. | १५५९ । माघ । भुवनकीतिसूरि । श्रेयांसनाथ की आदिनाथ जिना., अर्बुदाचलसुदि १० धातु की प्रतिमा | बासा, सिहोरी प्रदक्षिणाजैनका लेख लेखसंदोह, लेखांक ५५३ ११४. | १५५६ / वैशाख भुवनकीतिसूरि | अजितनाथ की | वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ७ धातु की प्रतिमा | बीकानेर लेखांक १३६८ का लेख ११५. | १५५८ माघ । ___ गुणदेवसूरि चन्द्रप्रभ की शांतिनाथ देरासर, बुद्धिसागर, सुदि ५ के संतानीय प्रतिमा का लेख | ऊंझा पूर्वोक्त, भाग १, | बुधवार रत्नदेवसूरि लेखांक २१३ ११६. | १५७९ / तिथि । वीरदेवसूरि के | संभवनाथ की संभवनाथ देरासर, बुद्धिसागर, विहीन | पट्टधर पासदेवसूरि | धातु की प्रतिमा | कड़ी पूर्वोक्त, भाग १, का लेख लेखांक ७३७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ११७. ११८. ११९. १५९१ १५९१ १५९१ तिथि वैशाख वदि २ सोमवार वैशाख वदि २ सोमवार वैशाख वदि ६ आचार्य का नाम वीरचन्द्रसूरि "" विजयदेवसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पार्श्वनाथ देरासर, देवसा पाडो, संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग १, लेखांक १०८२ अहमदाबाद अजितनाथ जिना०, शेखपाडो, अहमदाबाद कपड़वज का मंदिर, शत्रुञ्जयवैभव, शत्रुञ्जय लेखांक २८५ वही, भाग १, लेखांक १००२ चैत्रगच्छ ४७७ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभिलेखीय साक्ष्यों की पूर्वोक्त सूची से यद्यपि चैत्रगच्छीय अनेक मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, किन्तु उनमें से कुछ के पूर्वापर सम्बन्ध ही ज्ञात हो पाते हैं, जो इस प्रकार है: जिनेश्वरसूरि यशोदेवसूरि जिनदेवसूरि वि० सं० १३०३ देवेन्द्रसूरि वि० सं० १३१२ धर्मदेवसूरि वि० सं० १३१२-१३५४ पद्मचन्द्रसूरि शालिभद्रसूरि धर्मचन्द्रसूरि रविचन्द्रसूरि ? अजितसिंहसूरि कनकप्रभसूरि वि० सं० १३२७ देवभद्रसूरि देवचन्द्रसूरि Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ सोमचन्द्रसूरि वि० सं० १३३४ अमरप्रभसूरि अजितदेवसूरि वि० सं० १३३३ - १३६९ ? रत्नप्रभसूरि T रामचन्द्रसूरि वि० सं० १३७८ पद्मप्रभसूरि वि० सं० १३२४ - १३४...? ? हेमप्रभसूर ? I पद्मदेवसूरि वि० सं० १३७३ मदनसूरि मानदेवसूरि (वि० सं० १३८६ - १४१७) ? I ? धर्मसिंहसूरि (वि० सं० १३८८) ? हरिप्रभसूरि धर्मदेवसूरि (वि० सं० १३९१ - १४३०) (वि० सं० १४४९) T पार्श्वचन्द्रसूरि (वि० सं० १४४६ - १४६६) T मलयचन्द्रसूरि (वि० सं० १४७४ - १५०३ ) ? T देवचन्द्रसूरि T पार्श्वचन्द्रसूरि ? ४७९ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जयानन्दसूरि गुणदेवसूरि (वि० सं० १५३५ - १५७७) जिनदेवसूरि मुनितिलकसूरि (वि० सं० १५०७-१५०८) (वि. सं. १५०१-१५०८) रत्नदेवसूरि गुणाकरसूरि (वि० सं० १५११ - १५५८)(वि० सं० १४९९-१५१९) ? वीरदेवसूरि पासदेव (पार्श्वदेव) सूरि (वि० सं० १५०९) सोमर्कीर्तिसूरि चारुचन्द्रसूरि वीरचन्द्रसूरि (वि० सं० १५२७ - १५४०) (वि० सं० १५३१ - १५३४) परन्तु इन सबको मिला कर भी चैत्रगच्छीय मुनिजनों की गुरु-शिष्य परम्परा की नामावली की अविच्छिन्न तालिका का पुनर्गठन कर पाना कठिन है। जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत सम्यक्त्वकौमुदी (रचनाकाल वि० सं० १५०४ / ई० सन् १४४८) और Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ ४८१ भक्तामरस्तवव्याख्या (रचनाकाल वि० सं० १५२४ /ई. सन् १४६८) के कर्ता चैत्रगच्छीय गुणाकरसूरि का नाम आ चुका है। किन्तु वे किसके शिष्य थे, यह बात उक्त साक्ष्य से ज्ञात नहीं होता। अभिलेखीय साक्ष्यों में जयानन्दसूरि के पट्टधर मुनितिलकसूरि (वि० सं० १५०१-१५०८, प्रतिमा लेख) के शिष्य गुणाकरसूरि (वि० सं० १४९९ - १५१९, प्रतिमालेख) का उल्लेख मिलता है। अतः समसामयिकता के आधार पर मुनितिलकसूरि के पट्टधर गुणाकसूरि को सम्यक्त्वकौमुदी आदि के कर्ता गुणाकरसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। जयानन्दसूरि मुनितिलकसूरि (वि० सं० १५०१ - १५०८) प्रतिमालेख गुणाकरसूरि (वि०सं० १४९९ - १५१९) प्रतिमालेख (वि० सं० १५०४ / ई. सन् १४४८ में सम्यक्त्वकौमुदी और वि. सं. १५३४/ई. सन् १४६८ में भक्तामरस्तवव्याख्या के रचनाकार) ठीक इसी प्रकार चैत्रगच्छीय सोमकीर्तिसूरि के शिष्य चारुचन्द्रसूरि (वि० सं० १५२७-१५४०, प्रतिमालेख) और वि० सं० १५५४ / ई. सन् १४९८ में प्रतिलिपि की गयी भक्तामरस्तवव्याख्या की दाताप्रशस्ति में उल्लिखित चैत्रगच्छीय चारुचन्द्रसूरि एक ही व्यक्ति मालूम पड़ते हैं : सोमकीर्तिसूरि (वि० सं० १५२७-१५४२, प्रतिमालेख) Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चारुचन्द्रसूरि वीरचन्द्रसूरि (वि०सं० १५२७ - १५४०, (वि०सं० १५३१-१५३४, प्रतिमालेख) प्रतिमालेख) (वि० सं० १५५४/ई. सन् १४९८ में लिपिबद्ध की गयी भक्तामरस्तवव्याख्या की दाता प्रशस्ति में उल्लिखित) चैत्रगच्छ की शाखायें जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से चैत्रगच्छ की कई शाखाओं का पता चलता है। इनका अलगअलग विवरण इस प्रकार है : १. भर्तृपुरीयशाखा : जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, चैत्रगच्छ की इस शाखा का नामकरण भर्तृपुर (वर्तमान भटेवर, राजस्थान) नामक स्थान से हुआ प्रतीत होता है । इस शाखा से सम्बद्ध चार लेख मिले हैं, प्रथम लेख वि० सं० १३०३ का है और करेड़ा से प्राप्त हुआ है। द्वितीय लेख वि० सं० १३३४ / ई. सन् १२७८ का है और चित्तौड़ से प्राप्त हुआ है। तृतीय लेख वि० सं० १३३८ का है। चतुर्थ लेख... १४ का है, अर्थात् इसके प्रथम दो अंक नष्ट हो गये हैं । श्री पूरनचन्द नाहर और विजयधर्मसूरि ने वि० सं० १३०३ / ई. सन् १२४७ के लेख की वाचना इस प्रकार दी है१२: "संवत् १३०३ वर्षे चैत्र वदि ४ सोमदिने श्रीचैत्रगच्छे श्रीभद्रेश्वरसंताने भर्तृपुरीयवत्स श्रे० भीम अर्जुन कडवट श्रे० चूडा पुत्र श्रे० वयजा धांधल पासड उदाविभिः कुटुंबसमेतैः ... प्रतिमा कारिता प्रति० श्री जिनेश्वरसूरिशिष्यैः श्रीजिनदेवसूरिभिः ॥" तीर्थङ्कर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८३ चैत्रगच्छ प्रतिष्ठास्थान - पार्श्वनाथ जिनालय, करेड़ा । जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है भर्तृपुरीय शाखा से सम्बद्ध द्वितीय लेख वि० सं० १३३५ / ई. सन् १२७८ का है, जो चित्तौड़ से प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख श्याम पार्श्वनाथ के मंदिर में लगा था जो मंदिर नष्ट हो जाने से चित्तौड़ के प्राचीन महलों के एक चौक में गौरीशंकर हीराचंद ओझा को गड़ा हुआ मिला । उन्होंने इसे उदयपुर संग्राहलय में सुरक्षित रखवा दिया । संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध इस लेख में ५ पंक्तियां हैं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार यह लेख ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस लेख के अनुसार चैत्रगच्छ की भर्तृपुरीय शाखा के आचार्य (अभिलेख का मूलपाठ उपलब्ध न हो पाने के कारण इनका नाम ज्ञात न हो सका) के उपदेश से रावल तेजसिंह की रानी जयतल्लदेवी ने चित्तौड़ में श्याम पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया । इस लेख से यह भी ज्ञात होता है कि इसी जिनालय के पिछले भाग की भूमि महारावल समरसिंह ने चैत्यालय और मंदिर के व्यय के लिये दान में दिया था। यह लेख वि० सं० १३३५ वैशाख सुदि ५ गुरुवार का है। एक शैव शासक की रानी द्वारा एक जैन आचार्य के उपदेश से जिनालय का निर्माण कराना और उसी वंश के दूसरे शासक द्वारा उक्त जिनालय और उससे सम्बद्ध उपाश्रय के लिये भूमि दान में देना उस समय के शासकों द्वारा पालन किये जा रहे धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुपम उदाहरण है। इस लेख से यह भी ज्ञात होता है कि उस काल में विभिन्न नगरों के व्यापारिक संगठनों से प्राप्त कर का कुछ भाग धार्मिक कार्यों में भी लगाया जाता था। भर्तृपुरीय शाखा से सम्बद्ध तृतीय लेख वि० सं० १३३८ / ई. सन् १२८२ का है, जो शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । मुनि जयन्तविजयजी" ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : "संवत् १३३८ श्री चैत्रगच्छे भर्तृपुरीय सा० खुनिया भा० होली पु. हरपा केशव वाण रावण बेल पु. नरसिंह खीमड हरिचंदेण निजपूर्वजपित्रोः श्रेयार्थं श्रीशांतिनाथबिंब का० श्रीवर्धमानसूरिभिः ॥" Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनुपूर्ति लेख, आबू इस शाखा से सम्बद्ध चतुर्थ लेख वि० सं० xx१४ का है । यह चित्तौड़ से प्राप्त हुआ है । त्रिपुटी महाराज ने इसकी वचना इस प्रकार दी है१६ : "संवत् xx१४ वर्षे मार्गसुदि ३ श्री चैत्रपुरीयगच्छे श्रीवुडागणि भतृपुर महादुर्ग श्री गुहिलपुत्रवि xxx हार श्रीबडादेव आदिजिन वाभांग दक्षिणाभिमुखद्वारगुफायां कलिं श्रुतदेवीनां चतु xxलानां चतुर्णां विनायकानां पादुकाघटितसहसाकारसहिता श्रीदेवी चित्तोडरी मूर्ति xx श्रीध्र (भ) तृगच्छीय महाप्रभावक श्री आम्रदेवसूरिभिः xxx श्री सा० सामासु सा० हरपालेन श्रेयसे पुण्योपार्जना x व्यधियते ।" यद्यपि इस लेख के प्रथम दो अंक नष्ट हो गये है, फिर भी लेख की भाषा शैली पर राजस्थानी भाषा के प्रभाव को देखते हुए इसे १६वीं शती के प्रारम्भ अर्थात् वि० सं० १५१४ का माना जा सकता है 1 भर्तृपुरीय शाखा से सम्बद्ध उक्त लेखों से यद्यपि कई मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, किन्तु उनके आधार पर इस शाखा के मुनिजनों की गुरुपरम्परा की कोई लम्बी तालिका नहीं बन पाती है । २. थारणपद्रीय शाखा - यद्यपि प्रतिमालेखों में 'धारणपद्रीय' नाम मिलता है, जो संभवतः थारणपद्रीय होना चाहिए । इस शाखा से सम्बद्ध २५ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं, जो वि० सं० १४०० से वि० सं० १५८२ तक के हैं । इनका विवरण इस प्रकार है : Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. | १४०० | तिथिनष्ट | राजदेवसूरि शांतिनाथ की धर्मनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, धातु की पंचतीर्थी | उपलो गभारो, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा का लेख | अहमदाबाद लेखांक १०१९ २. |१४५७ | आषाढ़ | पासदेवसूरि श्रेयांसनाथ की संभवनाथ देरासर, वही, भाग १, सुदि ५ | धातु की प्रतिमा झवेरीवाड़, लेखांक ८६६ गुरुवार का लेख अहमदाबाद ३. १५०६ | पौष । विजयदेवसूरि | सुविधिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, | वही, भाग २, वदि६ धातु की प्रतिमा पादरा लेखांक ५ का लेख ४. १५०७ | वैशाख लक्ष्मीदेवसूरि विमलनाथ की अजितनाथ जिनालय, वही, भाग १, वदि ११ धातु की प्रतिमा शेखनो पाडो, लेखांक ९९८ सोमवार का लेख अहमदाबाद XM Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 378 पूर्वोक्त, क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५. १५०७ वैशाख कुन्थुनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि ११ धातु की प्रतिमा मांडल पूर्वोक्त, सोमवार का लेख लेखांक २३० ६. १५११ | माघ आदिनाथ की आदिनाथ चैत्य, दौलतसिंह लोढ़ा, सुदि ५ प्रतिमा का लेख थराद लेखांक ६७ ७. १५१३ | पौष नमिनाथ का | आदिनाथ देरासर विजयधर्मसूरि, वदि ५ धातुप्रतिमा जामनगर पूर्वोक्त, रविवार का लेख लेखांक २८४ ८. १५१३ / पौष अजितनाथ की वीर चैत्य, थराद लोढ़ा, पूर्वोक्त, वदि५ की प्रतिमा लेखांक १७ रविवार का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९. |१५१३ | पौष वही, वदि ५ लेखांक ३ रविवार १०. | १५१७ | ज्येष्ठ कुन्थुनाथ की जैन देरासर, महुवा विजयधर्मसूरि, सुदि ५ धातुप्रतिमा पूर्वोक्त, का लेख लेखांक ३ ११. | १५१७ / ज्येष्ठ सुमतिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, सुदि धातु की पंचतीर्थी | भानीपोल, राधनपुर पूर्वोक्त प्रतिमा का लेख लेखांक २१२ १२. |१२१७ / पौष सुविधिनाथ की । मोतीसा की ट्रॅक, शत्रुञ्जयवैभव, प्रतिमा का लेख | शत्रुञ्जय लेखांक १५१ गुरुवार वदि ५ ४८७ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ । स्तम्भलेख १३. |१२१७ | पौष सुमतिनाथ की |शांतिनाथ देरासर, बुद्धिसागर, वदि ५ धातु की प्रतिमा | अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख लेखांक १०३१ १४. १२१७ | पौष कुन्थुनाथ की | चन्द्रप्रभ जिनालय, वही, भाग २, वदि ५ धातु की प्रतिमा सुल्तानपुरा, बड़ोदरा लेखांक १९९ गुरुवार का लेख १५. १५१७ | माघ धर्मनाथ की नेमिनाथ जिना. सेठ मुनि विशालविजय, सुदि १० धातु की पंचतीर्थी की शेरी, राधनपुर पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख लेखांक २०७ १६. १५२२ | तिथि धर्मनाथ की धातु | शांतिनाथ देरासर, विजयधर्मसूरि, विहीन की पंचतीर्थी जामनगर पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख लेखांक ३६६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १७. १५२४ चैत्र श्रेयांसनाथ की | आदिनाथ चैत्य, लोढा, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख लेखांक १५५ १८. | १५२७ | कार्तिक ज्ञानदेवसूरि नमिनाथ की शांतिनाथ जिना., बुद्धिसागर, वदि २ धातु की प्रतिमा | लिंबडीपाड़ा, पाटन पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार का लेख लेखांक २८४ १९. १५२८ | चैत्र धर्मनाथ की आदिनाथ देरासर, विजयधर्मसूरि, वदि १ धातु की प्रतिमा | जामनगर | पूर्वोक्त, गुरुवार का लेख लेखांक ४१४ २०. | १५२८ | पौष । विमलनाथ की आदिनाथ चैत्य, | लोढ़ा, पूर्वोक्त, वदि ३ धातु की प्रतिमा | थराद लेखांक ३७ सोमवार का लेख ४०२ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहीन क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २१. १५२८ | तिथि आदिनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, बुद्धिसागर, धातु की प्रतिमा |जानीशेरी, बड़ोदरा पूर्वोक्त भाग २, का लेख लेखांक १५३ २२. १५३० पौष... लक्ष्मीदेवसूरि | शीतलनाथ की नेमिनाथ जिना. मुनि विशालविजय, रविवार के पट्टधर धातु की पंचतीर्थी शेठ की शेरी, पूर्वोक्त, ज्ञानदेवसूरि | प्रतिमा का लेख राधनपुर लेखांक २६८ २३. १५३२ | वैशाख सोमदेवसूरि नमिनाथ की धातु अगरचन्द नाहटा, वदि १० की चौबीसी पूर्वोक्त, शुक्रवार प्रतिमा का लेख लेखांक १८१८ २४. |१५५४ तिथि नमिनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ बुद्धिसागर, विहीन धातु की चौबीसी | देरासर, कड़ी पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा का लेख लेखांक ६४१ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २५. १५८२ | वैशाख | विजयदेवसूरि नमिनाथ की जैन मंदिर, लुआण, लोढ़ा पूर्वोक्त, सुदि १० धातु की चौबीसी | थराद लेखांक ३६७ शुक्रवार प्रतिमा का लेख Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर धारणपद्रीय (थारापद्रीय) शाखा के मुनिजनों की तालिका इस प्रकार बनती है : लक्ष्मीदेवसूरि (वि० सं० १५०७-१५२८) १४ प्रतिमालेख ज्ञानदेवसूरि (वि० सं० १५२७-१५३०) ५ प्रतिमालेख राजदेवसूरि (वि० सं० १४००) १ प्रतिमालेख पासदेवसूरि (वि० सं० १४५७) १ प्रतिमालेख विजयदेवसूरि (वि० सं० १५०६) १ प्रतिमालेख सोमदेवसूरि (वि० सं० १५३२-१५५४) २ प्रतिमालेख विजयदेवसूरि (वि० सं० १५८२) १ प्रतिमालेख ३. चतुर्दशीपक्ष - चैत्रगच्छ की इस शाखा का केवल एक लेख मिला है, जो वि० सं० १५०६ का है। आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : "संवत् १५०६ वर्षे माघ सुदि १३ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीयसा. मेलाभा० करमादेसुत श्रीरंग भा० अमरी स्व श्रेयोहेतवे श्रीश्रीचन्द्रप्रभनाथमुख्यचतुर्विंशतिपट्टः कारित: चतुर्दशीपक्षे चैत्रगच्छे श्रीगुणदेवसूरिसंताने श्रीजिनदेवसूरिभिः प्रतिष्ठितः शुभं भवतु ॥" । प्रतिष्ठास्थान - श्री अमीझरा पार्श्वनाथ जिनालय, जीरारवाडो, खंभात Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ ४९३ ४. चंद्रसामीयशाखा - चैत्रगच्छ की इस शाखा से सम्बद्ध कई लेख मिले हैं, जो वि० सं० १५१० से० वि० सं० १५४७ तक के हैं। इन सभी लेखों में मलयचन्द्रसूरि के पट्टधर लक्ष्मीसागरसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। इनका विवरण इस प्रकार है : Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १५१० | माघ । मलयचन्द्रसूरि के | चन्द्रप्रभ की महावीर जिना० मुनि विशालविजय, सुदि ५ पट्टधर धातु की भोंयराशेरी, पूर्वोक्त, शुक्रवार | लक्ष्मीसागरसूरि | प्रतिमा का लेख | राधनपुर लेखांक १६३ २. |१५१८ | पौष शीतलनाथ की कुंथुनाथ जिना०, बुद्धिसागरसूरि, वदि १३ धातु की प्रतिमा | मांडवीपोल, पूर्वोक्त, भाग १, मंगलवार का लेख खंभात लेखांक ९४५ १५२० चैत्र विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, | विशालविजय, वदि ८ धातु की भानीपोल, राधनपुर पूर्वोक्त, । शुक्रवार प्रतिमा का लेख लेखांक २२६ एवं विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ३४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४. १५२० | चैत्र । लक्ष्मीसागरसूरि | संभवनाथ की अजितनाथ जिना. मुनि विशालविजय, वदि ८ धातु की पंचतीर्थी | भोयराशेरी, पूर्वोक्त, शुक्रवार प्रतिमा का लेख | राधनपुर । लेखांक २२८ ५. १५२० | पौष शांतिनाथ की जैन मंदिर, कोबा, बुद्धिसागरसूरि, वदि १३ धातु की प्रतिमा अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, मंगलवार का लेख लेखांक ७६९ ६. १५२० | पौष जगवल्लभ पार्श्वनाथ वही, भाग १, वदि १३ देरासर, नीशापोल, लेखांक १११६ मंगलवार अहमदाबाद ७. १५२१ माघ चौमुखजी, देरासर, वही, भाग, १, सुदि १ ईडर लेखांक १४५७ गुरुवार Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुदि २ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८. १५२१ | माघ सुदि सुपार्श्वनाथ की जगवल्लभ पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, १३(?) धातुप्रतिमा देरासर, नीशापोल, पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार का लेख अहमदाबाद लेखांक ११९५ ९. १५२२ कार्तिक जैन मंदिर, डभोई वही, भाग १, धातु की प्रतिमा लेखांक १५ गुरुवार का लेख १०. १५२९ / ज्येष्ठ कुन्थुनाथ की महावीर जिनालय, मुनि कान्तिसागर, वदि १ धातु की प्रतिमा | पायधुनी, मुम्बई पूर्वोक्त, शुक्रवार का लेख लेखांक २१० ११. | १५२९ | ज्येष्ठ शीतलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, सुदि ५ धातु की पंचतीर्थी | भानी पोल, पूर्वोक्त, सोमवार प्रतिमा का लेख | राधनपुर लेखांक २८० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२: १५३४ | कार्तिक शांतिनाथ की सुपार्श्वनाथ का बड़ा नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | पंचायती मंदिर, भाग २, रविवार जयपुर लेखांक ११६३ १३. १५३४ गौड़ी पार्श्वनाथ मुनि कांतिसागर, जिनालय, संपा० पालिताना शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक २१६ १४. १५३६ | ज्येष्ठ विमलनाथ की पंचायती मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ७ प्रतिमा का लेख | सराफाबाजार, भाग २, मंगलवार लस्कर, ग्वालियर लेखांक १४१० १५. १५४७ | माघ श्रेयांसनाथ की चौमुख शांतिनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि १३ धातु की प्रतिमा | देरासर, अमहदाबाद | पूर्वोक्त, भाग १, रविवार का लेख लेखांक ८८४ - ४९७ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जैसा कि इस लेख के प्रारम्भ में हम देख चुके हैं अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा चैत्रगच्छीय मलयचन्द्रसूरि की गुरु-परंपरा इस प्रकार निश्चित होती है : ? ४९८ हरिप्रभसूरि I धर्मदेवसूरि (वि० सं० १३९१ - १४३० ) (वि० सं० १४४६ - १४६६) (वि० सं० १४७४ - १५०३) समसामयिकता के आधार पर पार्श्वचन्द्रसूरि के शिष्य मलयचन्द्रसूरि और चैत्रगच्छ की चन्द्रसामीय शाखा के लक्ष्मीसागरसूरि के गुरु मलयचन्द्रसूरि को एक ही व्यक्ति माना जा सकता है । लक्ष्मीसागरसूरि के पश्चात् इस शाखा का कोई उल्लेख नहीं मिलता, अतः यह कहा जा सकता है कि उनके बाद इस शाखा का अस्तित्व समाप्त हो गया होगा । चैत्रगच्छ की यह शाखा चन्द्रसामीय क्यों कहलायी, इस सम्बन्ध में हमें कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। 1 पार्श्वचन्द्रसूरि 1 मलयचन्द्रसूरि ५. सलषणपुराशाखा - इस शाखा से सम्बन्ध केवल दो प्रतिमायें मिली हैं, जो वि० सं० १५३० / ई० सन् १४७४ में एक ही तिथि में, एक ही मुहुर्त में और एक ही आचार्य द्वारा प्रतिष्ठापित हुई हैं। ये प्रतिष्ठापक आचार्य हैं चैत्रगच्छीय सलषणपुराशाखा के आचार्य ज्ञानदेवसूरि । आचार्य विजयधर्मसूरि" ने इन लेखों की वाचना इस प्रकार दी है : संवत १५३० वर्षे पो (पौ) ष वदि ६ रवौ श्रीश्री मालज्ञातीय श्रे० देपाल भा० हरपू सुत भूमाकेन भा० माल्हणदे हेदान (नि) मित्तं सुसुवसहितेन Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ ४९९ स्वये (श्रे) यस (से) श्रीवासुपूज्यबिंबं क० (का०) श्री चे (च) गछे (च्छे) श्रीज्ञानदेवसूरिभिः प्रतिष्ठित (ष्ठितं) त... न्य. गाम.... वासुपूज्य की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ जिनालय, जामनगर ॥ संवत् १५३० वर्षे पौष वदि ६ रवौ श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० गेला भा० पूरी सू० रत्नाकेन भा० रूपिणि द्वि० भा० कीरूसहितेन स्वपितृपूर्वजन् (नि) मितं (तं) आत्मश्रेयोर्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० चैत्रगच्छे सलषणपुरा भ० श्रीज्ञानदेवसूरिभिः ॥ वासुपूज्य की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान - आदिनाथ जिनालय, जामनगर चैत्रगच्छीय धारणपद्रीय (थारापद्रीय) शाखा के लक्ष्मीसागरसूरि के शिष्य ज्ञानदेवसूरि (वि०सं० १५२७-१५३०, प्रतिमालेख) का उल्लेख मिलता है। ये दोनों ज्ञानदेवसूरि एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग, इस सम्बन्ध में निश्चयात्मक रूप से कुछ भी कह पाना कठिन है। ६-७. कम्बोइयाशाखा और अष्टापदशाखा - राजगच्छपट्टावली (रचनाकार, अज्ञात, रचनाकाल वि० सं० की १६वीं शती का अंतिम चरण) में चैत्रगच्छ की इन दो शाखाओं का उल्लेख है, परन्तु किन्हीं अन्य साक्ष्यों से उक्त शाखाओं के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती। ८. शार्दूलशाखा - चैत्रगच्छ की इस शाखा का एकमात्र लेख वि० सं० १६८६/ ई० सन्. १६३० का है। इस लेख में राजगच्छ के एक अन्वय के रूप में चैत्रगच्छ की उक्त शाखा का उल्लेख है । इस शाखा के सम्बन्ध में अन्यत्र किसी भी प्रकार का कोई विवरण अनुपलब्ध है। ९. देवशाखा - जैसा कि पूर्व में हम देख चुके हैं, दशवैकालिक सूत्र की वि० सं० १७६८/ ई. सन् १७१२ की प्रतिलिपित प्रशस्ति में चैत्रगच्छ की देवशाखा का उल्लेख है। इस शाखा के प्रवर्तक कौन थे, Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास यह कब अस्तित्व में आयी, इस बारे में कोई विवरण प्राप्त नहीं होता। चैत्रगच्छ तथा उसकी किसी शाखा का उल्लेख करनेवाला अंतिम साक्ष्य होने से महत्त्वपूर्ण है। ऐसा प्रतीत होता है कि भर्तृपुर (भटेवर), थारापद्र (थराद) और सलषणपुर में चैत्रगच्छ के उपाश्रय बन जाने पर वहां क चैत्रगच्छीय आचार्यों के साथ उक्त स्थानवाचक विशेषण जोड़ा जाने लगा होगा । इनमें से सलषणपुरा शाखा का अस्तित्व तो अल्पकाल में ही समाप्त हो गया किन्तु भर्तृपुरीय और थारापद्रीयशाखा का लगभग २०० वर्षों तक अस्तित्व बना रहा। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि यह गच्छ ईस्वी सन् की १२वीं शती के प्रारम्भ में अस्तित्व में आया और १८वीं शती के प्रथम चरण तक विद्यमान रहा । लगभग ६०० वर्षों के लम्बे इतिहास में इस गच्छ के मुनिजनों ने (गुणाकरसूरि, चारुचन्द्रसूरि आदि को छोड़कर)न तो स्वयं कोई ग्रन्थ लिखा और न ही किन्ही ग्रन्थों की प्रतिलिपि करायी, बल्कि प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप अपनी भूमिका निभाते रहे । धनेश्वरसूरि, भुवनचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि और जगच्चन्द्रसूरि तथा रत्नप्रभसूरि (घाघसा और चीरवा अभिलेखों के रचनाकार) को छोड़कर इस गच्छ में ऐसा कोई प्रभावक आचार्य भी नहीं हुआ, जो श्वेताम्बर श्रमण परम्परा में विशिष्ट स्थान प्राप्त कर सकता। ई. सन् की १८वीं शताब्दी के प्रथम चरण के बाद इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों के अभाव से यह सुनिश्चित है कि इस समय के बाद इस गच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया होगा और इस गच्छ अनुयायी किन्ही अन्य गच्छों में सम्मिलित हो गये होंगे। संदर्भ सूची: P.K. Gode, “References to Caitragaccha in Inscriptions and Literature", Studies in Indian Literary History, Vol. I, Singhi Jain Series, No. 37, Bombay 1953 A.D. p. 5. Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ ५०१ अगरचन्द नाहटा, "जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश", यतीन्द्रसूरिअभिनन्दनग्रन्थ (आहोर १९५८ ई०) पृष्ठ १४७ पर श्री नाहटा द्वारा उद्धृत बुद्धिसागरसूरि का मत । मुनि कान्तिसागर, शत्रुञ्जयवैभव (कुशल संस्थान, जयपुर १९९० ई०) पृष्ठ २३९. २-३. तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि कृत श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण की प्रशस्ति, Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm Leaf Manuscripts in the Shantinatha Jain Bhadara, Cambay (G.O.S. No. 149, Part II, Baroda 1966 A.D.) Pp. 263-265. तपागच्छीय क्षेमकीर्तिसूरि कृत बृहत्कल्पसूत्रवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १३२२ / ई० सन् १२५६) की प्रशस्ति C. D. Dalal - A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan, (G.O.S. No. LXXVI, Baroda) 1937 A.D. Pp. 354-356. तपागच्छीय विभिन्न पट्टावलियों के संदर्भ में द्रष्टव्य त्रिपुटी महाराज संपा० पट्टावलीसमुच्चय भाग १-२ (चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क २२ एवं ४४, अहमदाबाद १९३३-१९५० ई०) मुनि जिनविजय - संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ५३, बम्बई १९६१ ई०; मुनि कल्याणविजय गणि. संपा० पट्टावलीपरागसंग्रह, (कल्याणविजय शास्त्र संग्रह समिति, जालोर १९६६ ई०) शिवप्रसाद, तपागच्छ का इतिहास, वाराणसी २००० ई०, पृष्ठ ४२-४३. यतीन्द्रविहारदिग्दर्शन, भाग ४, लेखांक ४९, पृ० १४६. अगरचन्द नाहटा, "मेवाड़ में चित्रित कल्पसूत्र की एक विशिष्ट प्रति" श्रमण, वर्ष २८, अंक ८, जून १९७७ ई०, पृ० २४-२६. कस्तूरचंद कासलीवाल, संपा० प्रशस्तिसंग्रह (आमेर शास्त्र भंडार में संरक्षित ग्रन्थों की ग्रन्थ तथा लेखक प्रशस्तियों का संग्रह), जयपुर १९५० ई०, प्रशस्ति क्रमांक ५०, पृष्ठ ६४. A. P. Shah - Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Muni Shri Punyavijayaji's, Collection (L.D. Series No. 2, Ahmedabad - 1963 A.D.) Part I, Pp. 131, No. 2554. ७. bid, Part I, P. 93, No. 1464. Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ८. Ibid, Part I, P. 83, No. 1018. घाघसा चित्तौड़ के निकट एक ग्राम है । इस ग्राम में एक प्राचीन बावडी में यह शिलालेख लगा हुआ था। गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इसे वहां से हटाकर अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित रखवा दिया है। इस लेख में २८ पंक्तियां और ३३ श्लोक हैं । यह लेख वि० सं० १३२२ कार्तिक सुदि १ रविवार का है। गौरीशंकर ओझा, उदयपुर राज्य का इतिहास, भाग १, पृ० २७०, मूल ग्रन्थ उपलब्ध न होने से यह संदर्भ PK. Gode, Ibid, pp. 12 तथा गोपीनाथ शर्मा - राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत, पृ० १०८ के आधार पर दिया गया है। चीरवा नामक ग्राम उदयपुर से ८ मील उत्तर में स्थित है। यहां के एक विष्णु मंदिर में यह शिलालेख लगा हुआ है । एपिग्राफिया इंडिका, जिल्द १२, पृ० २८५२९२ पर इस लेख का मूल पाठ प्रकाशित है। इस लेख में कुल ५१ श्लोक और ३६ पंक्तियां हैं । चैत्रगच्छीय आचार्यों की नामावली से सम्बद्ध पंक्तियां इस प्रकार हैं : श्रीचैत्रगच्छगगने तारकबुधकविकलावतां निलये। श्रीभद्रेश्वरसूरिर्गुरुरुट्गान्निष्कवर्णांगः ॥ ४५ ॥ श्रीदेवभद्रसूरिस्तदनू श्रीसिंहसेनसूरिरथ । अजनि जिनेश्वरसूरिस्तच्चिष्यो विजयसिंहसूरिश्च ॥ ४६ ॥ श्रीभुवनचंद्रसूरिस्तत्पट्टेभूद्भूतदंभमलः । श्रीरत्नप्रभसूरिस्तम्यः विनेयोस्ति मुनिरत्नं ॥ ४७ ॥ त्रिपुटी महाराज - जैनतीर्थोनो इतिहास (श्री चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, अहमदाबाद ११४९ ई०) पृष्ठ ३८५ और आगे. १२. पूरनचन्द्र नाहर, संपा० जैनलेखसंग्रह, भाग २, कलकत्ता १९२७ ई०, लेखांक १९४९ तथा विजयधर्मसूरि - संग्राहक - प्राचीनलेखसंग्रह, (यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९२९ ईस्वी) लेखांक ३९. १३. गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत, पृ० ११४-१५. गौरीशंकर हीराचंद ओझा, उदयपुर राज्य का इतिहास, भाग १, पृ० १७५-१७६. उद्धृत, गोपीनाथ शर्मा, पूर्वोक्त, पृष्ठ ११४. ११. १४. Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्रगच्छ ५०३ १५. मुनि जयन्तविजय - संपा० अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह (विजयधर्मसूरि जैन ग्रन्थमाला, पुष्प ४०, छोटा सराफा, उज्जैन वि० सं० १९९४) लेखांक ५३५. १६. त्रिपुटी महाराज - जैन तीर्थोनो इतिहास, पृष्ठ ३८५ और आगे. १७. आचार्य बुद्धिसागरसूरि, संपा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, (श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडल, पादरा ई० सन् १९२४) लेखांक ७५४. १८. आचार्य विजयधर्मसूरि - पूर्वोक्त, लेखांक ४२८-४२९. १९. मुनि जिनविजय- विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ ५७-७१. २०. मुनि जिनविजय संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, (जैन आत्मानंदसभा, भावनगर १९२१ ई०) लेखांक ३९८, पूरनचन्द नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ८३०. द्रष्टव्य - पादटिप्पणी, २१. क्रमाङ्क ८. Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जालिहरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास विद्याधरकुल (बाद में विद्याधरगच्छ) की द्वितीय शाखा जालिहर (प्राचीन जाल्योधर) नामक स्थान से सम्बद्ध होने के कारण जालिहरगच्छ | जाल्योधरगच्छ के नाम से विख्यात हुई । यह गच्छ कब और किस कारण से अस्तित्व में आया ? इस गच्छ के पुरातन आचार्य कौन थे, इस बारे में सूचना अनुपलब्ध है । यद्यपि इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत मात्र दो प्रशस्तियां तथा अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत कुल ८ प्रतिमालेख ही उपलब्ध हैं, तथापि उनमें इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने के लिये पर्याप्त विवरण संग्रहीत हैं। यहां उन्हीं साक्ष्यों के विवेचन के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। ___ अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों, तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण एवं विवेचन किया गया है - साहित्यिक साक्ष्य १. नन्दिपददुर्गवृत्ति' - इस रचना की वि० सं० १२२६ / ई० सन् ११६९ की एक प्रति जैसलमेर के ग्रन्थभंडार में संरक्षित है। इस प्रति की दाताप्रशस्ति से ज्ञात होता है कि जालिहरगच्छीय बालचन्द्रसूरि के शिष्य गुणभद्रसूरी की प्रेरणा से यह प्रतिलिपि लिखी गयी। जालिहरगच्छीय बालचन्द्रसूरि गुणभद्रसूरि [वि० सं० १२२६ / ई०सन् ११६९ में इनकी प्रेरणा से Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जालिहरगच्छ foome | २. पद्मप्रभचरित' जालिहरगच्छीय देवप्रभसूरि ने वि० सं० १२५४/ ई० सन् १९९८ में प्राकृत भाषा में इस महत्त्वपूर्ण कृति की रचना की । कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत वर्णन किया है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इस प्रशस्ति में उल्लिखित गुरु-परम्परा इस प्रकार है - बालचन्द्रसूरि 1 गुणभद्रसूरि 1 सर्वाणंदसूर 1 धर्मघोषसूरि | देवसूरि नन्दिपददुर्गवृत्ति की प्रतिलिपि की गयी ] - ५०५ के रचनाकार ] अभिलेखीय साक्ष्य जैसा कि प्रारम्भ में ही कहा गया है, जालिहरगच्छ से सम्बद्ध ८ प्रतिमालेख मिलते हैं। इनमें से सर्वप्रथम अभिलेख वि० सं० १२१३ / ई० सन् ११५७ का है । लेख इस प्रकार है - सं० [०] १२१३ वैशाख वदि ५ जोराउद्रग्रामे श्रीवीसिवदेव्या श्रीजाल्योधरगच्छे ॥ प्रतिष्ठास्थान - जैन मंदिर, अजारी मुनि जयन्तविजय – अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ४०८ । [वि० सं० १२५४ / ई० सन् ११९८ में पद्मप्रभचरित Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास यद्यपि उक्त लेख में जालिहरगच्छ के किसी आचार्य का उल्लेख नहीं है, फिर भी इस गच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य होने के कारण यह महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है । इस गच्छ से सम्बद्ध द्वितीय लेख वि० सं० १२९६ / ई० सन् १२४० का है, जो भगवान् नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इस लेख में जालिहरगच्छीय देवसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में उल्लेख है । ५०६ देवसूरि | हरिभद्रसूरि की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक ] जालिहरगच्छ से सम्बद्ध तृतीय लेख वि० सं० १३३१ / ई० सन् १२७५ का है । यह लेख सलखणपुर स्थित जिनालय में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में हरिप्रभसूरि का उल्लेख है । आचार्य हरिप्रभसूरि द्वारा वि० सं० १३४९ / ई० सन् १२९३ और वि० सं० १३५९ / ई० सन् १३०३ में प्रतिष्ठापित एक - एक जिनप्रतिमायें मिली हैं, जो क्रमश: सलखणपुर " ओर घोघा के जिनालयों में आज संरक्षित है । वि० सं० १३४९ / ई० सन् १२९३ के लेख में प्रतिष्ठापक आचार्य हरिप्रभसूरि की गुरु- परम्परा दी गयी है, जो इस प्रकार है - देवसूरि 1 हरिभद्रसूरि [वि० सं० १२९६ / ई० सन् १२४० में नेमिनाथ I हरिप्रभसूरि वि० सं० १३४९ / ई० सन Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जालिहरगच्छ ३ जालिहरगच्छ से सम्बद्ध छठां अभिलेख वि० सम्वत् की चौदहवीं शती के अन्तिम दशक का है । लेख का एक अंक नष्ट हो गया है, शेष अंक स्पष्ट पढ़े जा सके हैं । आचार्य विजयधर्मसूरि ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है - स (सं)० १३९ - वैशाख शुदी (दि) ३ मोढवंशे श्रे० पाजान्वये व्य० देवा सुत व्य० मुंजालभार्याये (यर्या) व्य० रत्नदिव्या आत्मश्रेयोई (S) र्थं श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टी (ष्ठि) तं श्रीजाल्योद्धरगच्छे श्रीसर्वाणंदसु (सू) री (रि) संताने श्रीदेवसूरी (रि) पट्टभूषणमणिप्रभु श्रीहरी (रि) भद्रसूरी (रि) शिष्ये (?) सुविहितनामधेयभट्टारक श्रीचंद्रसिंहसूरी (रि) पट्ट (ट्टा) लंकरण श्रीविबुधप्रभसूरीणां श्रीपाजाब (व) सहीकायां भद्रं भवतु । इस लेख में जाल्योधरगच्छ के आचार्य विबुधप्रभसूरि की विस्तृत गुरुपरम्परा दी गयी है, जो इस प्रकार है ५०७ १२९३ में महावीर स्वामी की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक] सर्वाणंदसूरि | देवसूरी I हरिभद्रसूरि 1 चन्द्रसूरि विबुधप्रभसूरि [वि० सं० १३९.....? में नेमिनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक ] Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जालिहरगच्छ से सम्बद्ध सातवां अभिलेख वि० सं० १४२३ / ई० सन् १३६७ का है, जो चौमुखी देरासर, अहमदाबाद में प्रतिष्ठापित भगवान् शान्तिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है ।" इस लेख में इस गच्छ के आचार्य ललितप्रभसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है । ५०८ जालिहरगच्छ से सम्बद्ध एक अन्य अभिलेख' भी मिला है, परन्तु उसमें न तो प्रतिमा के प्रतिष्ठापना की मिति / तिथि का उल्लेख है और न ही प्रतिमा के प्रतिष्ठापक आचार्य का; अतः यह लेख महत्त्वहीन कहा जा सकता है। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर जालिहरगच्छीय मुनिजनों की गुरुपरम्परा की एक तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है बालचन्द्रसूरि 1 गुणभद्रसूरि I 1 सर्वणंदसूर I धर्मघोषसूरि T देवसूरि I I हरिभद्रसूरि I [ नंदिपददुर्गवृत्ति की वि० सं० १२२६ की प्रति में उल्लिखित ] [पार्श्वनाथचरित-वर्तमान में अनुपलब्ध के रचनाकार ] [वि० सं० १२५४ / ई० सन् १९९८ में पद्मप्रभचरित के रचनाकार ] Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जालिहरगच्छ ___५०९ - चन्द्रसूरि हरिप्रभसूरि [वि० सं० १३३९-५९] प्रतिमालेख विबुधप्रभसूरि [वि० सं० १३९३ प्रतिमालेख] - - - ललितप्रभसूरि [वि० सं० १४२३/ ई० सन् १३६७] प्रतिमा लेख उक्त साक्ष्यों के आधार पर विक्रम की तेरहवीं शती के प्रारम्भ से १५वीं शती के प्रथमचरण तक इस गच्छ का अस्तित्व सिद्ध होता है। जहां अन्य गच्छों से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य प्रचुरता से उपलब्ध होते हैं, वहीं इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की विरलता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अन्य गच्छों की अपेक्षा इस गच्छ के मुनिजनों और श्रावकों की संख्या अल्प थी। १५वीं शती के द्वितीय चरण से इस गच्छ से सम्बद्ध कोई भी साक्ष्य नहीं मिला है, अतः यह माना जा सकता है कि इस गच्छ के मुनिजन और उपासक किन्हीं अन्य गच्छ में सम्मिलित हो गये होंगे। संदर्भ सूची १. संवत् १२२६ वर्षे द्वितीय श्रावण शुदि ३ सोमऽद्येह मंडलीवास्तव्य श्रीजाल्योधरगच्छे मोढ़वंशे श्रावकश्रीसदेवसुतेन ले० पल्हणेन लिखिता। लिखापिता च गुणभद्रसूरिभिः ॥ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१० 2. ३. ४. ६. ७. ८. ९. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सकलभवुनप्रकाशन भानु श्रीहेमचन्द्रसुगुरूणाम् । स्थापयिताऽऽसीद् भाण्डागारिकसोमारकसु श्राद्धः ॥१॥ मरुदेवागर्भजया तत्सुतया सीमिकाह्वया क्रीत्वा । नन्द्यध्ययनसुविवरणटिप्पितपुस्तकमिदमुदारम् ॥२॥ मुनिबालचन्द्रशिष्य श्रीमरद्गुणभद्रसूरिसुगुरुभ्यः । दत्तमुपलभ्य एवं फलममलं ज्ञानदानस्य || ३ || Muni Punyavijaya- Catalogue of Sanskrit & Prakrit MSS : Jesalmer Collection, (Ahmedabad 1972) No. 76 P. 25. C. D. Dalal, Descriptive Catalogue of Manuscripts in Jaina Bhandars at Pattan (Baroda - 1937) pp. 210-213. कान्तिलाल फूलचन्द सोमपुरा, "घोघाना अप्रकट प्रतिमा लेखो" श्री महावीर जैन. विद्यालय सुवर्णमहोत्सव अंक, (बम्बई १९६२ ई०), भाग १, पृ० १११-११७. मुनि जिनविजय - संपा० - प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, ( भावनगर १९२१ ई०), लेखांक ४८३. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, लेखांक ४८४. सोमपुरा, पूर्वोक्त. - विजयधर्मसूरि – संपा० प्राचीनलेखसंग्रह, ( भावनगर १९२७ ई०), लेखांक ६७. वही, लेखांक ७६. विनयसागर – संपा० - प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, ( कोटा १९५३ ई०), लेखांक २३. Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीरापल्लीगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से उद्भूत गच्छो में बहद्गच्छ या वडगच्छ का महत्त्वपूर्ण स्थान है । पूर्णिमागच्छ, आगमिकगच्छ, अंचलगच्छ, पिप्पलगच्छ आदि बृहद्गच्छ से ही अस्तित्त्व में आये हैं । बृहद्गच्छगुर्वावली' [रचनाकाल - विक्रम सम्वत् की १६वीं शताब्दी] के अनुसार बृहद्गच्छ से उद्भूत पच्चीस शाखा गच्छों में जीरापल्लीगच्छ भी एक है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है जीरापल्ली [राजस्थान प्रान्त के सिरोही जिले में आबू के निकट अवस्थित जीरावला ग्राम] नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्त्व में आया प्रतीत होता है । बृहद्गच्छीय देवचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और जिनचन्द्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि इस गच्छ के प्रवर्तक माने जा सकते हैं । इस गच्छ में वीरसिंहसूरि, वीरचन्द्रसूरि, शालिभद्रसूरि, वीरभद्रसूरि, उदयरत्नसूरि, उदयचन्द्रसूरि, रामकलशसूरि, देवसुन्दरसूरि, सागरचन्द्रसूरि आदि कई मुनिजन हो चुके हैं। इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य मिलते हैं जो सब मिलकर विक्रम सम्वत् की १५वीं शताब्दी से लेकर विक्रम सम्वत् की १७वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक के हैं। किन्तु जहाँ अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १४०६ से लेकर विक्रम सम्वत १५७६ तक के हैं एवं उनकी संख्या भी तीस के लगभग है, वहीं साहित्यिक साक्ष्यों की संख्या मात्र दो है । चूँकि उत्तरकालीन अनेक चैत्यवासी मुनिजन प्राय: पाठन-पाठन से दूर रहते हुए स्वयं को चैत्यों की देखरेख और जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आदि कार्यों में ही व्यस्त रखते थे। अतः Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ऐसे गच्छों से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों का कम होना स्वाभाविक है। यहां उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। साहित्यिक साक्ष्यों की तुलना में अभिलेखीय साक्ष्यों का प्राचीनतर होने और संख्या की दृष्टि से अधिक होने के साथ अध्ययन की सुविधा आदि को नज़र में रखते हुए सर्वप्रथम इनका और तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण दिया जा रहा है: जीरापल्लीगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम लेख इस गच्छ के आदिम आचार्य रामचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । वर्तमान में यह प्रतिमा शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर में संरक्षित है। श्री पूरनचन्द नाहर ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : सं. १४०६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ९ रवौ सा...... कुटुम्ब श्रेयो) श्री आदिनाथ बिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं जीरापल्लीयैः श्रीरामचन्द्रसूरिभिः ।। जैनलेखसंग्रह, भाग- २, लेखांक १०४९ इस गच्छ का उल्लेख करने वाला द्वितीय लेख वि० सं० १४११ का है जो जीरावाला स्थित जिनालय में पार्श्वनाथ की देवकुलिका पर उत्कीर्ण है। मुनि जयन्तविजय ने इसकी वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : सं० १४११ वर्षे चैत्र वादि ६ बुधे अनुराधा नक्षत्रे बृहद्गच्छीय श्रीदेवचन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरीणां तपोवन तपोधन तपस्वीकरपरिवृतानां श्रीपार्श्वनाथस्य देवकुलिका जीरापल्लीयैः श्रीरामचन्द्रसूरिभिः कारिता छः ॥ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ११९ इस गच्छ से सम्बद्ध अन्य लेखों का विवरण इस प्रकार है : Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीरापल्लीगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ - प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख | १४१३ | फाल्गुन | देवचन्द्रसूरि के | पार्श्वनाथ की । देवकुलिका संख्या मुनि जयन्तविजय, सुदि १३ | पट्टधर जिनचन्द्रसूरि | देवकुलिका पर | ४८, जीरावला तीर्थ | संपा०, अर्बुदाचल के पट्टधर उत्कीर्ण लेख प्रदक्षिणाजैनरामचन्द्रसूरि लेखसंदोह, लेखांक १२० एवं दौलतसिंह लोढा, श्रीप्रतिमालेख संग्रह, २. १४२९ | माघ वदि ७ लेखांक ३०९ आदिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वडनगर पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ५४० वीरचन्द्रसूरि । आदिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ३. ४. ५. ६. तिथि १४३५ | माघ वदि १२ सोमवार १४३८ | ज्येष्ठ वदि ४ १४४० पौष सुदि ११ बुधवार १४४२ | वैशाख सुदि १५ आचार्य का नाम वीरसिंहसूरि के पट्टधर वीरचन्द्रसूरि 11 वीर (चन्द्र) सूरि के शिष्य शालिभद्रसूरि "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्णं लेख की जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धातु शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वीर चैत्य के अंतर्गत आदिनाथ चैत्य, थराद चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर गौडीपार्श्वनाथ जिनालय, बडोदरा संदर्भ ग्रन्थ लोढा, पूर्वोक्त, लेखांक ९९ अगरचन्द नाहटा, संपा० बीकानेर जैनलेखसंग्रह, लेखांक ५३२ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग - २, लेखांक २४१ चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर, पूर्वोक्त, अगरचंद नाहटा, लेखांक ५४ ५१४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीरापल्लीगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ७. |१४४९ / वैशाख पद्मप्रभ की अनुपूर्तिलेख, मुनि जयन्तविजय, सुदि६ प्रतिमा का लेख | आबू पूर्वोक्त, बुधवार लेखांक ६०३ ८. |१४५३ | वैशाख चौबीसी जिन वीर चैत्य के दौलत सिंह लोढ़ा, सुदि ३ प्रतिमा पर अंतर्गत आदिनाथ पूर्वोक्त, सोमवार उत्कीर्ण लेख | चैत्य, थराद लेखांक ६२ ९. | १४५३ महावीर चिन्तामणी जी नाहटा, पूर्वोक्त, की धातुप्रतिमा का मन्दिर लेखांक ५६३ पर उत्कीर्ण लेख | बीकानेर १०. | १४६२ | तिथि पार्श्वनाथ धर्मनाथ जिनालय, मुनि जयन्तविजय, विहीन की धातुप्रतिमा मडार पूर्वोक्त, भाग २, का लेख लेखांक ७४ Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ११. |१४६८ | वैशाख श्रेयांसनाथ | नवखण्डा पार्श्वनाथ |बुद्धिसागरसूरि, वदि ३ की पंचतीर्थों जिनालय, संपा० जैनधातुशुक्रवार प्रतिमा का लेख | भोयरापाडो, खंभात | प्रतिमालेखसंग्रह, भाग- २, लेखांक ८७४ १२. १४७२ / वैशाख शांतिनाथ | भंडारस्थ धातु |विजयधर्मसूरि, संपा० सुदि १२ की प्रतिमा प्राचीनलेखसंग्रह, का लेख पालिताणा लेखांक १११ १३. |१४७७ | वैशाख महावीर की सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागरसूरि, धातुप्रतिमा बावनजिनालय, पूर्वोक्त, भाग- २, | का लेख लेखांक ४६१ १४. |१४८१ / वैशाख पार्श्वनाथ की |चिन्तामणीजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १५ धातुप्रतिमा मन्दिर, बीकानेर लेखांक ७०७ बुधवार का लेख प्रतिमा, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मातर Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १५. १६. १७. १८. तिथि १४८३ वैशाख सुदि ५ गुरुवार १४८३ | माघ वदि ५ सोमवार १५०८ | ज्येष्ठ सुदि १० सोमवार १५०९ | वैशाख आचार्य का नाम "" " उदयचन्द्रसूरि आचार्य का नाम मिट गया है । प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख चन्द्रप्रभ की धातुप्रतिमा का लेख वासुपूज्य की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पार्श्वनाथ जिनालय, नरसिंहजी की पोल, बडोदरा पार्श्वनाथ जिनालय, साथां विमलनाथ चैत्य, मोटी शेरी, थराद सुविधिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, धातु की राधनपुर प्रतिमा का लेख संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३० विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २४५ लोढा, पूर्वोक्त, लेखांक २५६ मुनि विशालविजय, संपा० राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १६१ जीरापल्लीगच्छ ५१७ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख १९. १५१५ | फाल्गुन उदयचन्द्रसूरि कुन्थुनाथ की सुदि ५ धातुप्रतिमा गुरुवार का लेख २०. १५२० | माघ उदयचन्द्रसूरि | विमलनाथ की वदि ७ के शिष्य धातुप्रतिमा रविवार सागरचन्द्रसूरि का लेख २१. १५२७ | माघ शालिभद्रसूरि शांतिनाथ की वदि ७ के पट्टधर प्रतिमा का लेख रविवार उदयचन्द्रसूरि संभवनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, | अमरेली पूर्वोक्त, लेखांक ३०३ अजितनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, | शेख पाडो, पूर्वोक्त भाग-१, अहमदाबाद लेखांक १०१५ शांतिनाथ जिनालय, |पूरनचन्द नाहर, लखनऊ संपा०, जैनलेख संग्रह, भाग-२, लेखांक १५०६ वीरचैत्य अंतर्गत लोढा, पूर्वोक्त, आदिनाथ चैत्य, लेखांक १३८ थराद जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास २२. १५२७ संभवनाथ की प्रतिमा का लेख Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीरापल्लीगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २३. | १५३२ | वैशाख धर्मनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख । मन्दिर, बीकानेर लेखांक १०७२ रविवार २४. | १५४९ / ज्येष्ठ उदयचन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की वीर जिनालय, | विनयसागर, वदि १ के पट्रधर | पंचतीर्थी प्रतिमा | सांगानेर पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार देवरत्नसूरि का लेख लेखांक ८५५ २५. १५५२ माघ देवरत्नसूरि | वासुपूज्य की शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि २ धातु की प्रतिमा | शांतिनाथ पोल, पूर्वोक्त, भाग- १, रविवार का लेख अहमदाबाद लेखांक १३२३ २६. १५६० | वैशाख मुनिसुव्रत जैन मन्दिर, साराभाई नवाबसुदि ३ की प्रतिमा राजनगर "राजनगरना बुधवार का लेख जिनमन्दिरोमां सचवायेलां - Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ऐतिहासिक अवशेषो" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९, अंक ८, लेखांक ३६ चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, मन्दिर, बीकानेर लेखांक ११३६ २७. १५७२ | वैशाख सुदि३ शनिवार शांतिनाथ की धातुप्रतिमा का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२१ जीरापल्लीगच्छ ___जैसा की पीछे हम देख चुके हैं वि० सं० १४०६ के प्रतिमालेख में प्रतिमा- प्रतिष्ठापक के रूप में रामचन्द्रसूरि का तो उल्लेख है, परन्तु उनके गुरु आदि का नाम उक्त लेख से ज्ञात नहीं होता, वहीं दूसरी ओर वि० सं० १४११ और वि० सं० १४१३ के अभिलेखों से स्पष्ट रूप से उनके गुरु और प्रगुरु तथा उनके गच्छ का भी नाम मालूम हो जाता है। चूंकि ये इस गच्छ [जीरापल्लीगच्छ] से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य हैं अत: यह माना जा सकता है कि रामचन्द्रसूरि के समय से ही बडगच्छ की एक शाखा के रूप में जीरापल्लीगच्छ के अस्तित्त्व में आने की नींव पड़ चुकी थी और शीघ्र ही एक स्वतन्त्र गच्छ के रूप में स्थापित हो गया । इस आधार पर रामचन्द्रसूरि को इस गच्छ का पुरातन आचार्य माना जा सकता है । अभिलखीय साक्ष्यों से रामचन्द्रसूरि के अतिरिक्त वीरसिंहसूरि, वीरचन्द्रसूरि, शीलभद्रसूरि, वीरभद्रसूरि, उदयरत्नसूरि, उदयचन्द्रसूरि, सागरचन्द्रसूरि, देवरत्नसूरि आदि के नामों के साथ-साथ उनके पूर्वापर सम्बन्धों का भी उल्लेख मिल जाता है, जो इस प्रकार है: १. वीरसिंहसूरि के पट्टधर वीरचन्द्रसूरि [वि० सं० १४२९-३८] वीरचन्द्रसूरि के पट्टधर शालिभद्रसूरि [वि० सं० १४४०-८३] शालिभद्रसूरि के प्रथम शिष्य वीरभद्रसूरि [वि० सं० १४६८] शालिभद्रसूरि के द्वितीय शिष्य उदयरत्नसूरि [वि० सं० १४८३] शालिभद्रसूरि के तृतीय शिष्य उदयचन्द्रसूरि [वि० सं० १५०८१५२७] उदयचन्द्रसूरि के प्रथम शिष्य सागरचन्द्रसूरि [वि० सं० १५२०१५३२] उदयचन्द्रसूरि के द्वितीय शिष्य देवरत्नसूरि [वि० सं० १५४९१५७२] उक्त आधार पर जीरापल्लीगच्छ के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका पुनर्गठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : * ॐ 3 ) Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वडगच्छीय देवचन्द्रसूरि जिनचन्द्रसूरि रामचन्द्रसूरि [वि० सं० १४११ और १४१३ में जीरापल्ली तीर्थ पर दो देवकुलिकाओं के निर्माता ] वीरसिंहसूरि वीरचन्द्रसूरि [वि० सं० १४२९-१४३८] शालीभद्रसूरि [वि० सं० १४४०-१४८३ ] वीरभद्रसूरि उदयरत्नसूरि उदयचन्द्रसूरि [वि० सं० १४६८ ] [वि० सं० १४८३] [वि० सं० १५०८-१५२७] ___सागरचन्द्रसूरि देवरत्नसूरि [वि० सं० १५२०-१५३२] [वि० सं० १५४९-१५७२] जैसा कि लेख के प्रारम्भ में कहा जा चुका है इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो साहित्यिक साक्ष्य मिलते हैं। इनमें से प्रथम है रामकलशसूरि के शिष्य देवसुन्दरसूरि द्वारा रचित कयवन्नाचौपाई । इसकी प्रशस्ति में Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीरापल्लीगच्छ ५२३ रचनाकार ने केवल अपने गुरु और रचनाकाल तथा गच्छ आदि का ही उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : संवत पनर चोराण सार, मागसर वदि सातमि गुरुवार । पूष्य नक्षत्र हूंतो सिध जोग, कयवन्नानी कथानो भोग ॥ श्रीजीराउलिगच्छ गुरु जयवंत, श्री श्रीरामकलशसूरि गुणवंत । वाचक देवसून्दर पभणंति, भणइ गुणइ ते सूख लहंति ॥ इनके द्वारा रची गई एक अन्य कृति भी मिलती है जिसका नाम है आषाढ़भूतिसज्झाय (रचनाकाल वि० सं० १५८७)। वि० सं० १६०२ में लिखी गयी तपागच्छीयश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति की प्रतिलिपि की प्रशस्ति में भी इस गच्छ का उल्लेख है: इति श्री तपग० श्राद्ध प्रतिक्रमण ......... वृत्तौ शेषाधिकारः पंचमः । समाप्ता चेयमर्थदीपिकानाम्नी श्राद्धप्रतिक्रमणटीका । ग्रन्थाग्रन्थ ६६४४ ॥ श्री सं० १६०२ श्रावण सुदि ५ रवौ श्रीजीराउलगच्छे लिखितं कीकी जाउरनगरे श्रीविजयहर्षगणि शिष्य रंगविजयनी प्रति भंडारी मूकी । ___कयवन्नाचौपाई के रचनाकार देवसुन्दरसूरि के गुरु रामकलशसूरि किसके शिष्य थे । अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित सागरचन्द्रसूरि, देवरत्नसूरि आदि से उनका क्या सम्बन्ध था, प्रमाणों के अभाव में यह ज्ञात नहीं होता। ठीक यही बात श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की वि० सं० १६०२ में प्रतिलिपि करने वाले जीरापल्लीगच्छीय रंगविजय और उनके गुरु विजयहर्षगणि के बारे में कही जा सकती है, फिर भी उक्त साहित्यिक साक्ष्यों से वि० सम्वत् की १७वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक इस गच्छ का स्वतन्त्र अस्तित्त्व सिद्ध होता है। इसके बाद इस गच्छ से सम्बद्ध कोई साक्ष्य न मिलने से यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि इस समय तक इस गच्छ के अनुयायी श्रमण किन्ही प्रभावशाली गच्छों विशेषकर तपागच्छ में Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सम्मिलित हो गये होंगे। यद्यपि त्रिपुटीमहाराज ने वि० सं० १६५१ में इस गच्छ के किन्ही देवानन्दसूरि के पट्टधर सोमसुन्दरसूरि के विद्यमान होने का उल्लेख किया है, परन्तु अपने उक्त कथन का कोई आधार या सन्दर्भ नहीं दिया है, अत: इसे स्वीकार कर पाना कठिन है । सन्दर्भ सूची १. मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, बम्बई १९६९ ई० सन्, पृष्ठ ५२-५५. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९४८ ईस्वी सन्, पृष्ठ ८७-९७. २. ३-४. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग-१, नवीन संस्करण, संपा० डॉ. जयन्त कोठारी, बम्बई, १९८६ ईस्वी सन्, पृष्ठ ३३३. ". ६. अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा०, श्रीप्रशस्तिसंग्रह, अहमदाबाद वि० सं० १९९३, भाग - २, प्रशस्ति क्रमांक ३६६ पृष्ठ १००. त्रिपुटी महाराज, जैन परम्परानो इतिहास, भाग- २, श्री चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५४, अहमदाबाद १९६० ईस्वी सन्, पृष्ठ ५९९. Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारापद्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास प्राक् मध्ययुगीन एवं मध्यकालीन निर्ग्रन्थदर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय के गच्छों में थारापद्रगच्छ का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा । थारापद्र नामक स्थान (वर्तमान थराद, बनासकांठा मण्डल, उत्तर गुजरात) से इस गच्छ का प्रादुर्भाव हुआ था । थारापद्रगच्छ के ११वीं शताब्दी के प्रारम्भ के आचार्य पूर्णभद्रसूरि ने चंद्रकुल के वटेश्वर क्षमाश्रमण को अपना पूर्वज बतलाया है, किन्तु इस गच्छ के प्रवर्तक कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में उन्होने कुछ नहीं कहा है । इस गच्छ में वादिवेताल शांतिसूरि, शालिभद्र अपरनाम शीलभद्रसूरि 'प्रथम', शांतिभद्रसूरि, पूर्णभद्रसूरि, शालिभद्रसूरि 'द्वितीय', नमिसाधु आदि कई प्रभावक एवं विद्वान् आचार्य हुए। थारापद्रगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य है वि० सं० १०८४ / ई० स० १०२८ का रामसेन के आदिनाथ जिनालय स्थित प्रतिमाविहीन परिकर का लेख । पं० अम्बालाल शाह ने उक्त लेख की वाचना इस प्रकार दी है : "अनुवर्तमानतीर्थप्रणायकाद वर्धमान जिनवृषभात् । शिष्य क्रमानुयातो जातो वज्रस्तदुपमानः ॥१॥ तच्छाखायां जात [ : ] स्थानीय कुलोदभूतो महामहिमः । चन्दकुलोद्भवस्ततो वटेश्वराख्यः क्रमबलः ॥२॥ थीरापद्रोद्भूतस्तस्माद् गच्छोऽत्र सर्वदिक्ख्यातः । शुद्धाच्छयशोनिकरैर्धवलितदिक चक्रवालोऽस्ति ॥३॥ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास तस्मिन् भूरिषु सूरिषु देवत्वमुपागतेषु विद्वत्सु । जातो ज्येष्ठाचार्यस्तस्याच्छ्रीशांतिभद्राख्य ॥४॥ तस्माच्च सर्वदेवः सिद्धान्तमहोदधिः सदागाहः । तस्माच्च शालिभद्रो भद्रनिधिर्गच्छगतबुद्धि ॥५॥ श्रीशांतिभद्रसूरौ वज्रपतिजा [ता] पूर्णभद्राख्यः । रधुसेना [भिधाने ] स्ति........ बुद्धीन् ॥६॥ [ व्यधा] पयादिदं बिंबं नाभिसूनोर्महात्मनः । लक्ष्म्याश्चंचलतां ज्ञात्वा जीवतव्यं विशेषतः ॥७॥ मंगलं महाश्री ॥संवत् १०८४ चैत्र पौर्णमास्याम् ॥" साधारणतया प्रतिमा लेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि की परम्परा के एक या दो पूर्वाचार्यों का उल्लेख मिलता है, किन्तु इस लेख में थारापद्रगच्छ के सूरिवरों की लम्बी सूची दी गई है, जो इस प्रकार है : वटेश्वर ज्येष्ठाचार्य शांतिभद्रसूरि (प्रथम) सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि शालिभद्रसूरि (प्रथम) शांतिभद्रसूरि (द्वितीय) पूर्णभद्रसूरि (वि० सं० १०८४ / ई० सन् १०२८ में रामसेन स्थित Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारापद्रगच्छ ___५२७ जिनालय में उपर्युक्त प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) थरापद्रगच्छ से सम्बद्ध कालक्रम में द्वितीय प्रमाण है वि० सं० १११०/ ई० स० १०५४ में आचार्य पूर्णभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख । वर्तमान में यह प्रतिमा अहमदाबाद में झवेरीवाड़ के एक जिनालय में है। मेहता ने लेख की वाचना इस प्रकार की है : थारापद्रपुरीयगच्छगगनोद्योतक भास्वानभूत् सूरिः सागरसीम विश्रुतगुणः श्री शालिभद्राभिधः । तच्छिष्य समजन्यज्ञानवृजिनासंगः सतामग्रणीः सूरिः सर्वगुणोत्करैकवसतिः श्री पूर्णभद्राह्वयः ॥ तस्य श्री शालिभद्रप्रभु रत्नमकृतोच्चैः पदपुण्यमूर्तिः विद्वच्चूडामणेः स्वेशसि (शि) विस (श) दयशो व्यानशेवस्व विश्वम् । स्थाने तस्यापि सूरिः समजनि भुवनेऽनन्यसाधारणानां लीलागारं गुणानामनुपम महिमा पूर्णभद्राभिधानः ॥ श्री शालिसूरिनिजगुरुपुण्यार्थमिदं विधापित तेन । अजितजिनबिंबमतुलं नंदतु रघुसेन जिनभु (भ) वने ॥ संवत १११० चैत्र सुदि १३ इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य पूर्णभद्रसूरि का शालिभद्रसूरि के पट्टधर के रूप में उल्लेख है। लेख से ज्ञात होता है की यह प्रतिमा भी रामसेन स्थित राजा रघुसेन द्वारा निर्मित जिनालय में ही स्थापित की गयी थी। इस लेख के अनुसार गुर्वावली इस प्रकार है : शालिभद्रसूरि Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पूर्णभद्रसूरि (वि० सं० १११० / ई० स० १०५४ में राजा रघुसेन द्वारा निर्मित जिनालय में प्रतिमा प्रतिष्ठापक) साहित्य स्त्रोतों में देखा जाये तो थारापद्रगच्छ के नमिसाधु द्वारा प्रणीत दो कृतियाँ मिली हैं : १. षडावश्यकसूत्रवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १९२२ / ई० स० १०६५) २. काव्यालंकारटिप्पन' (रचनाकाल वि० सं० ११२५ / ई० स० १०६८) उक्त रचनाओं की प्रशस्तियों में ग्रन्थकार ने स्वयं को थारापद्रगच्छीय शालिभद्रसूरि का शिष्य बतलाया है । शालिभद्रसूरि नमिसाधु के प्रणेता) इसी गच्छ के शालिभद्रसूरि अभिधानधारक एक और आचार्य ने वि० सं० ११३९ / ई० स० १०८३ में सटीक बृहत्संग्रहणीप्रकरण की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुर्वावली इस प्रकार दी है - शीलभद्रसूरि I पूर्णभद्रसूरि (षडावश्यकसूत्रवृत्ति एवं काव्यालंकारटिप्पन 1 शालिभद्रसूरि (वि० सं० ११३९ / ई० स० १०८३ में सटीक Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारापद्रगच्छ २- जीवविचारप्रकरण ३- चैत्यवन्दनमहाभाष्य रचनाकार) रामसेन के उपरकथित लेख में उल्लिखित पूर्णभद्रसूरि तथा सटीकबृहत्संग्रहणीप्रकरण के कर्ता शालिभद्रसूरि के गुरु पूर्णभद्रसूरि सम्भवत: एक ही व्यक्ति हैं। रामसेन के उपर्युक्त लेख की मिति वि० सं० १११० तथा बृ० सं० प्र० की रचनामिति वि० सं० ११३९ के बीच २८ वर्षों का ही अन्तर है । इसमें भी यह संभावना बलवत्तर होती है। ठीक इसी तरह वि० सं० ११२२ और वि० सं० ११२५ में क्रमश: षडावश्यकसूत्रवृत्ति और काव्यालंकारटिप्पन रचने वाले नमिसाधु के गुरु शालिभद्रसूरि भी उपर्युक्त बृ० सं० प्र० के कर्त्ता शालिभद्रसूरि से अभिन्न जान पड़ते हैं । इसी गच्छ में वादिवेताल शांतिसूरि नामक एक प्रभावक एवं विद्वान् आचार्य हुए हैं। इनकी पांच कृतियां उपलब्ध हुई हैं, यथा : १ - उत्तराध्ययनसूत्र पर लिखी गयी पाइयटीका अपरनाम शिष्यहिताटीका ४ - बृहद्शान्तिस्तव ५ - जिनस्नात्रविधि ५२९ बृहत्संग्रहणीप्रकरण के इनमें पाइयटीका और बृहद्शान्तिस्तव अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । पाइयटीका की प्रशस्ति में टीकाकार ने थारापद्रगच्छ को चन्द्रकुल से समुद्भूत माना है, किन्तु रचना की तिथि एवं अपनी गुरु- परम्परा के बारे में वे मौन रहे हैं । अपनी अन्य कृतियों की प्रशस्तियों में भी शांतिसूरि ने अपनी गुरुपरम्परा एवं रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं किया है । Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास राजगच्छीय आचार्य प्रभाचन्द्रसूरि द्वारा रचित प्रभावकचरित (रचनाकाल वि० सं० १३३४ / ई० स० १२७८) में वादिवेताल शांतिसूरि का जीवनपरिचय प्राप्त होता है । उसके अनुसार इनके गुरु का नाम विजयसिंहसूरि था और परमार नरेश भोज ( ई० स० १०१० - १०५५ ) की सभा में उन्होंने वादियों को परास्त किया और वादिवेताल की उपाधि से विभूषित हुए । महाकवि धनपाल की तिलकमञ्जरी का भी इन्होंने संशोधन किया था । प्रभावकचरित के अनुसार वि० सं० १०९६ / ई स० १०४० में इन्होंने सल्लेखना द्वारा उज्जयन्तगिरि पर अपना शरीर त्याग दिया । ५३० | अब शान्तिसूरि तथा उनके गुरु विजयसिंहसूरि का थारापद्रगच्छीय मुनिजनों की पूर्वप्रदर्शित तालिका के साथ समन्वय बाकी रह जाता है । इस सम्बन्ध में इस गच्छ के सम्बद्ध प्रतिमालेखों से प्राप्त मुनिराजों की नामावली से हमें महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है । यद्यपि ये लेख १४वीं से १६वीं शती तक के हैं और उनकी संख्या भी स्वल्प ही है, फिर भी उनसे ज्ञात होता है, कि थारापद्रगच्छ की इस शाखा में सर्वदेवसूरि, विजयसिंहसूरि और शान्तिसूरि इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति होती रही है । विजयसिंहसूर और वादिवेताल शान्तिसूरि का आपस में गुरु-शिष्य का सम्बन्ध तो हमें प्रभावकचरित से ज्ञात हो चुका है, अत: विजयसिंहसूरि गुरु सर्वदेवसूरि नामके आचार्य रहे होंगे, ऐसा मानने में कोई आपत्ति नहीं । इस प्रकार अन्य उत्तरकालीन प्रतिमालेखों के आधार पर थारापद्रगच्छ इस शाखा की गुरु-शिष्य की निम्न प्रकार से तालिका बन सकती है : (सर्वदेवसूरि) विजयसिंहसूरि I Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारापद्रगच्छ ५३१ वादिवेताल शांतिसूरि (वि० सं० १०९६/ ई० सन् १०४०में स्वर्गवास) उत्तराध्ययनसूत्रपाइयटीका, बृहदशान्तिस्तव, जीवविचारप्रकरण, चैत्यवन्दनमहाभाष्य आदि के कर्ता (सर्वदेवसूरि) (विजयसिंहसूरि) (शांतिसूरि) (सर्वदेवसूरि) (विजयसिंहसूरि) शांतिसूरि (सर्वदेवसूरि) (इनके अनुयायी श्रावक यशश्चन्द्र ने वि० सं० १२५९ । ई० सन् १२०३ में पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा बनवायी) (वि० सं० १२८८/ ई० सन् १२३२) प्रतिमालेख (महामात्य वस्तुपाल द्वारा वि० सं० १२९८/ ई०सन् १२४२ में शत्रुञ्जयमहातीर्थ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख में उल्लिखित थारापद्रगच्छीय सर्वदेवसूरि संभवतः यही सर्वदेवसूरि हो सकते हैं) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १३१५/ ई० सन् १२५९) प्रतिमालेख सर्वदेवसूरि (वि० सं० १४५० / ई० सन् १३९४) प्रतिमालेख (विजयसिंहसूरि) (प्रतिमालेख अनुपलब्ध) शांतिसूरि (वि० सं० १४७९-१४८३ / ई० सन् १४२३-१४२७) प्रतिमालेख (प्रतिमालेख अनुपलब्ध) (सर्वदेवसूरि) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १५०१-१५१६ / ई० सन् १४४५-१४६०) प्रतिमालेख शांतिसार (वि० सं० १५२७-१५३२ / (वि० स० ११ ई० सन् १४७१-१४७६) प्रतिमालेख रामसेन के वि० सं० १०८४/ ई० सन् १०२८ के परिकरलेख में थारापद्रगच्छ के आचार्यों की जो गुरु-परम्परा मिलती है, उसमें सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि का भी नाम मिलता है। समसामयिकता और Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारापद्रगच्छ ५३३ नामसाम्य के आधार पर इन्हें वादिवेताल शान्तिसूरि के प्रगुरु सर्वदेवसूरि से अभिन्न माना जा सकता है । इस प्रकार थारापद्रगच्छ के मुनिजनों के गुरु-परम्परा के एक नवीन तालिका बनती है, जो इस प्रकार हैं : वटेश्वरसूरि I I 1 (सर्वदेवसूरि) | I ज्येष्ठाचार्य शांतिभद्रसूरि [ प्रथम ] | सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि | विजयसिंहसूरि T वादिवेतालशांतिसूरि [ उत्तराध्ययनसूत्रपाइयटीका, बृहद्शान्तिस्तव, जीवविचारप्रकरण, चैतन्यवन्दमहाभाष्य आदि के कर्त्ता वि० सं० १०९६/ ई सन् १०४० में मृत्यु शालिभद्रसूरि [ प्रथम ] T शांतिभद्रसूरि [ द्वितीय] | पूर्णभद्रसूरि वि० सं० २०८४ / ई० स १०२८ एवं वि० सं० १११० / ई सन्० १०५४ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास में रामसेन स्थित जिनालय में प्रतिमा प्रतिष्ठापक (विजयसिंहसूरि) ___ शालिभद्रसूरि [द्वितीय] वि० सं० ११३९/ ई० सन् १०८३ में सटीकबृहत्संग्रणीप्रकरण के रचनाकर्ता शांतिसूरि नामिसाधु [वि० सं० ११२२/ ई० सन् १०६५ में षडावश्यसूत्रवृत्ति एवं वि० सं० ११२५ / ई० सन् १०६८ में काव्यालंकारटिप्पन के रचनाकार] -- (सर्वदेवसूरि) (विजयसिंहसूरि) (शांतिसूरि) सर्वदेवसूरि [इनके अनुयायी श्रावक यशचन्द्र ने वि० सं० १२५९/ ई० सन् १२०३ में पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा बनवायी] [वि० सं० १२८८ / ई० सन् १२३२] प्रतिमालेख [महामात्य वस्तुपाल द्वारा वि० सं० १२९८ / ई० सन् १२४२ में शत्रुञ्जय महातीर्थ पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख में उल्लिखित सर्वदेवसूरि Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारापद्रगच्छ विजयसिंहसूरि संभवतः यही हैं] [वि० सं० १३१५ / ई० सन् १२५९] प्रतिमालेख [वि० सं० १४५० / ई० सन् १३९४] प्रतिमालेख [प्रतिमालेख अनुपलब्ध] सर्वदेवसूरि विजयसिंहसूरि शांतिसूरि [वि० सं० १४७९-१४८३/ ई० सन् १४२३-१४२७] प्रतिमालेख [प्रतिमालेख अनुपलब्ध] सर्वदेवसूरि -- विजयसिंहसूरि [वि० सं० १५०१-१५१६ / ई० सन् १४४५-१४६०] प्रतिमालेख] शांतिसूरि [वि० सं० १५२७-१५३२ / ई० सन् १४७१-१४७७] प्रतिमालेख] थारापद्रगच्छीय गुरु-शिष्य परम्परा की पूर्वप्रदर्शित तालिकाओं में सर्वप्रथम आचार्य वटेश्वर का नाम आता है । उनके कई पीढ़ियों बाद ही ज्येष्ठाचार्य से इस गच्छ की अविच्छिन्न परम्परा प्रारम्भ होती है। अब हमारे समाने यह प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या श्वेताम्बर सम्प्रदाय में वटेश्वर नामक कोई आचार्य हुए हैं ? यदि हुए हैं तो कब हुए हैं ? दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा [रचनाकाल शक सं० ७०० / ई० सन् ७७८] की प्रशस्ति में अपनी गुरु-परम्परा की नामावली दी है, इसमें सर्वप्रथम वाचक हरिगुप्त का नाम आता है, जो तोरराय (हूणराज तोरमाण) के गुरु थे। उनके पट्टधर कवि देवगुप्त हुए, जिन्होंने सुपुरुषचरिय अपरनाम त्रिपुरुषचरिय की रचना की । देवगुप्त Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास के शिष्य शिचन्द्रगणिमहत्तर हुए, जिनके नाग, वृन्द, दुर्ग, मम्मट, अग्निशर्मा और वटेश्वर ये ६ शिष्य थे । वटेश्वर क्षमाश्रमण ने आकाशवप्रनगर [अम्बरकोट/ अमरकोट] में जिनमंदिर का निर्माण कराया । वटेश्वर के शिष्य तत्त्वाचार्य हुए । कुवलयमालाकहा के रचनाकार दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि इन्हीं तत्त्वाचार्य के शिष्य थे। इस बात को प्रस्तुत तालिका से भली-भांति समझा जा सकता है : वाचक हरिगुप्त [तोरमाण के गुरु] कवि देवगुप्त [सुपुरुषचरिय के रचनाकार] शिवचन्द्रगणिमहत्तर नाग वृन्द दुर्ग मम्मट अग्निशर्मा वटेश्वर क्षमाश्रमण [आकाशवप्रनगर। अम्बरकोट। अमरकोट में जिनमंदिर के निर्माता] तत्त्वाचार्य दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि [शक सं ०७०० / ई० सन् ७७८ में कुवलयमालाकहा के रचनाकार] Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारापद्रगच्छ ५३७ कृष्णर्षिगच्छ के आचार्य जयसिंहसूरि ने वि० सं० ९१५ / ई० स० ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण की रचना की । इसकी प्रशस्ति° में उन्होंने वटेश्वर क्षमाश्रमण को अपना पूर्वज बतलाते हुए अपनी गुरु-परम्परा का परिचय इस प्रकार दिया है - वटेश्वर क्षमाश्रमण तत्त्वाचार्य यक्षमहत्तर कृष्णषि जयसिंहसूरि [वि० सं० ९१५ / ई० सन् ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण के रचनाकार उक्त दोनों प्रशस्तियों की गुरु-परम्परा की तालिकाओं के समायोजन से उद्योतनसूरि और जयसिंहसूरि की गुरु-परम्परा की जो संयुक्त तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : वाचक हरिगुप्त [किसी वैराग्यप्रधान कृति के कर्ता, तोरमाण के गुरु, मृत्यु प्रायः ई० सन् ५२९] कवि देवगुप्तसूरि [सुपुरुषचरिय के | रचनाकार शिवचन्द्रगणिमहत्तर [भिल्लमाल में स्थिरवास] Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास नाग वृन्द दुर्ग मम्मट अग्निशर्मा वटेश्वर क्षमाश्रमण [आकाशवप्रनगर में जिनमंदिर के निर्माता] तत्त्वाचार्य दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि यक्षमहत्तर [वि० सं० ८३५/ ई० सन् ७७८ / शक सं० ७०० में] कुवलयमालाकहा के रचनाकार] कृष्णर्षि जयसिंहसूरि [वि० सं० ९१५ / ई० सन् ८५९ में धर्मापदेशमालाविवरण के रचनाकार] उक्त आधार पर वटेश्वर क्षमाश्रमण का समय प्रायः ई० सन् ६७५ - ७२५ के बीच मान सकते हैं । चूंकि वे अपने समय के एक प्रभावक आचार्य रहें होंगे, अत: ११ वीं शती के प्रारम्भ में थारापद्रगच्छीय पूर्णभद्रसूरि द्वारा उन्हें अपने पूर्वज के रूप में स्मरण करना यही सूचित करता है कि वटेश्वर क्षमाश्रमण के ही किसी शिष्य की परम्परा आगे चलकर थारापद्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई, जिसमें बाद में प्राय: ५वीं पीढ़ी के करीब ज्येष्ठाचार्यादि हुए होंगे। Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३९ थारापद्रगच्छ थारापद्रगच्छ से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का वर्गीकरण - १. प्रतिमालेख, २, शिलालेख इसमें जिनप्रतिमालेखों को दो भागों में बांटा जा सकता है - क. थारापद्रगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें एवं उन पर उत्कीर्णं लेखों का विवरण ख. थारापद्रगच्छीय मुनिजनों की प्रेरणा से इस गच्छ के श्रावकों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें एवं उन पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण : Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 85 १. प्रतिमालेख क- थारापद्रगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें एवं उन पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण | क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १०८४ | चैत्र शांतिभद्रसूरि आदिनाथ की आदिनाथ जिनालय, अम्बालाल प्रेमचंद पूर्णिमा के पट्टधर | प्रतिमा के परिकर रामसेन शाह, जैनतीर्थसर्वपूर्णभद्रसूरि का लेख (उत्तर गुजरात) संग्रह, खंड १, भाग १, पृष्ठ ३९ २. |१११० | चैत्र । शालिभद्रसूरि | अजितनाथ की | अजितनाथ जिनालय N. C. Mehta, “A सुदि १३ | के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | झवेरीवाड़, Mediaeval Jain पूर्णभद्रसूरि अहमदाबाद Image of Ajitanath”, Indian Antiquary, Vol. LVI, 1927, P. 72-74 जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ३. ४. ५. [११] १२ तिथि ११५७ फाल्गुन वदि ९ सोमवार ११५७ वैशाख सुदि १० 11 आचार्य का नाम शालिभद्रसूरि 11 11 प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान आदिनाथ, जिनालय, जैनधातुप्रतिमा माणेकचौक, खंभात लेखसंग्रह, जैन मंदिर, रांतेज " संदर्भ ग्रन्थ | भाग - २, संपा० बुद्धिसागर, लेखाङ्क १०१२ प्राचीनजैनलेख संग्रह, भाग- २, संपा० मुनि जिनविजय, लेखाङ्क ४६६ वही, लेखाङ्क ४६७ थारापद्रगच्छ ५४१ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ६. |१२६४ | आषाढ़ महावीर की सुदि ५ प्रतिमा लेख ७. |१३०४ | वैशाख । पुरुषोत्तमसूरि | चौबीसी सुदि १० जिनप्रतिमा का लेख ८. |१३०९ | चैत्र । मदनचन्द्रसरि |धात की वदि ९ जिनप्रतिमा पर शुक्रवार उत्कीर्ण लेख ९. १३१५ | वैशाख | विजयसिंहसूरि | जिनप्रतिमा का सुदि ११ लेख मोतीसा का मंदिर, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, | रतलाम भाग १, संपा० विनयसागर, लेखाङ्क- ४८ धर्मनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, माणेकचौक, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ९५५ चिन्तामणिजी वही, भाग २, मंदिर, खंभात लेखाङ्क ५४९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास | शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, खंभात लेखाङ्क ७३५ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०. ११. १२. १३. तिथि १४५० १४४० पौष शुक्रवार दि ४ सुदि १२ शुक्रवार माघ वदि ९ सोमवार १४७९ चैत्र वदि २ गुरुवार आचार्य का नाम पूर्णचन्द्रसूरि शीलभद्रसूरि के उपदेश से श्रीसूरि सर्वदेवसूरि शांतिसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की चौबीसी प्रतिमा का लेख वासुपुज्य की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी नाहटा, पूर्वोक्त, का मंदिर बीकानेर लेखाङ्क ३८५ सुमतिनाथ जिनालय, विनयसागर, रतलाम संभवाथ जिनालय, राधनपुर संदर्भ ग्रन्थ वीर जिनालय, थराद, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क १६६ राघनपुरप्रतिमा लेखसंग्रह, संपा० मुनि विशालविजय, लेखाङ्क ८२ श्रीप्रतिमालेख संग्रह, दौलतसिंह लोढ़ा, लेखाङ्क २०६ थारापद्रगच्छ ५४३ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 885 | वही, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १४. | १४८३ | ज्येष्ठ शांतिनाथ चैत्य, वही, सुदि ९ सुथार सेरी, थराद लेखाङ्क २६८ मंगलवार १५. १५०१ | पौष । सर्वदेवसूरि के | श्रेयांसनाथ की | वीर जिनालय, वदि ६ पट्टधर प्रतिमा का लेख | थराद लेखाङ्क ६५ बुधवार विजयसिंहसूरि १६. १५०५ | वैशाख विजयसिंहसूरि | आदिनाथ की वही, सुदि ३ प्रतिमा लेख लेखाङ्क १४२ शुक्रवार १७. १५१२ | ज्येष्ठ । आदिनाथ की विमलनाथ चैत्य वही, सूदि ५ चौबीसी प्रतिमा | देसाईसेरी, थराद लेखाङ्क २२९ रविवार का लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारापद्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १८. १५१६ | पौष श्रेयांसनाथ की वीर जिनालय, वही लेखाङ्क ६१ वदि ५ चौबीसी प्रतिमा थराद, गुरुवार का लेख १९. १५२७ | कार्तिक विजयसिंहसूरि | अजितनाथ की वही, वदि ५ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख लेखाङ्क १६५ सोमवार शांतिसूरि २०. | १५३२ | वैशाख शांतिसूरि वही, सुदि १३ लेखाङ्क १७२ शनिवार २१. १५३३ | कार्तिक विजयसिंहसूरि शांतिनाथ की शेठ केशरीमल का नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ५ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | देरासर, जैसलमेर भाग ३, गुरुवार शांतिसूरि लेखाङ्क २४६४ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ ख. -थारापद्रगच्छीय मुनिजनों की प्रेरणा से इस गच्छ के श्रावकों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें एवं उन पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण क्रमाङ्क | संवत् | तिथि प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १११८ | - विमलवसही, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, आबू सं० मुनि जिनविजय, लेखाङ्क १५४ एवं अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग २, सं० मुनि जयन्तविजय, लेखांक ६३ २. |११२६ पार्श्वनाथ की - "राष्ट्रीय संग्रहालय की कतिपयधातु पीतल की प्रतिमा प्रतिमायें" अगरचन्द नाहटा, जैन का लेख सन्देश शोधाङ्क, भाग ४१, वर्ष ४२, पृष्ठ २४२-२४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ थारापद्रगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख ३. |११३१ शांतिनाथ की प्रतिमा विमलवसही, का लेख आबू ४. ११३९ । मार्ग० | जिन प्रतिमा पर | अजितनाथ सुदि १० | उत्कीर्ण लेख | जिनालय, सिरोही ५. ११६१ / शीतलनाथ की | पार्श्वनाथ प्रतिमाका लेख | जिनालय, मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ७४ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, | लेखांक ९ मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २९७ आरासणा ६. ७. ११९१ | मार्ग० । एकतीर्थी अनुपूर्तिलेख, मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, वदि ५ | जिनप्रतिमा का | आबू लेखांक ५१० १२१० | फाल्गुन | पार्श्वनाथ की शांतिनाथ अबूंदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, सुदि ११ प्रतिमा का लेख | जिनालय, नांदिया | आबू, भाग ५, लेखांङ्क ४५४ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८. | १२३४ | माघ । महावीर की | आदिनाथ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, सुदि १० प्रतिमा का लेख | जिनालय, सिरोही | लेखांक ३६ बुधवार ९. १२५१ | तिथि शांतिनाथ की | चिन्तामणिजी का | अगरचंद नाहटा, पूर्वोक्त विहीन । प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर | लेखांक १०३ १०. | १२५९ | ज्येष्ठ । पार्श्वनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, | जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, सुदि १५ | प्रतिमा का लेख | कटाकोटडी, खंभात | भाग २, संपा० बुद्धिसागर, लेखांक ६०९ ११. | १२५९ | ज्येष्ठ धातु की पार्श्वनाथ जिनालय, | बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग- २ सुदि ३ | जिनप्रतिमा पर | माणेकचौक, खंभात | लेखांक ९२८ उत्कीर्ण लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास धान र Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि १२. १२९४ वैशाख सुदि माघ सुदि १० रविवार १३. १३३४ प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर जैन मंदिर, शंखेश्वर संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३३ जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २ लेखांक ४९८ थारापद्रगच्छ ५४९ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास २. शिलालेख महामात्य वस्तुपाल द्वारा शत्रुञ्जय महातीर्थ पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख की प्राचीन नकल में अन्य गच्छों के आचार्यों के साथ साथ थारापद्रगच्छ के आचार्य सर्वदेवसूरि और पूर्णभद्रसूरि का भी उल्लेख है। लेख के मूलपाठ के लिये द्रष्टव्य - U. P. Shah - “A Forgotten Chapter in The History of Shwetambara Jaina Church” JASB Vol. 30, Part I, 1955, Pp - 100- 113. वि० सं० १३३३ का शिलालेख, जिसमें चाहमान नरेश चाचिगदेव के राज्य में स्थित महावीर जिनालय को थारापद्रगच्छ के आचार्य पूर्णभद्रसूरि के उपदेश से दान देने का उल्लेख है। द्रष्टव्य- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, सं० मुनि जिनविजय, लेखांक ४०२. घोघाकी जैन प्रतिमा निधि की दो जिन प्रतिमायें इस गच्छ से सम्बन्ध हैं । इन पर वि० सं० १२५९ और वि० सं० १५१४ के लेख उत्कीर्ण हैं, किन्तु इनके मूलपाठ हमें प्राप्त नहीं हो सके हैं, अतः इनके सम्बन्ध में विशेष विवरण दे पाना कठिन है। संदर्भ- मधुसुदन ढांकी और हरिशंकर शास्त्री, “घोघानो जैन प्रतिमा निधि", फार्बस गुजराती सभा त्रैमासिक, जनवरी-मार्च अंक, ई० स० १९६५. संदर्भ सूची :१. अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह, जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड १, अहमदाबाद १९५३, पृ० ३९. २. N.C. Mehta, “A Medieval Jaina Image of Ajitnath", Indian Antiquary, Vol LVI, 1927, Pp. 72-74. ३. bid. Pp. 73-74. Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५१ थारापद्रगच्छ Muni Punyavijaya, New Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts: Jesalmer Collection, L. D. seris No. 36, Ahmedabad 1972, Pp. 43. H. D. Velankar - Jinaratnakosha, Government Oriental Series, class C No 4, Pune 1944, P- 37. Muni. Punyavijaya, Ibid., P- 140. lbid., Pp- 69-70. Muni Punyavijaya, Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss in the Shanti Natha Jaina Bhandar, Cambay, G. O. S. Vol 135, 149 part I, II, Baroda 1961-1966, Pp- 109-112. "वादिवेताल शांतिसूरिचरितम्", प्रभावकचरित, सं० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क १३, बम्बई १९४१, पृ० १३३-१३७. कुवलयमालाकहा, सं० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ४५,बम्बई १९५९, पृ० २८२-२८४; एवं अपभ्रंशकाव्यत्रयी, सं० पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, गायकवाड़ प्राच्य ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ३७, द्वितीय संस्करण, बडोदरा १९६७, भूमिका, पृ० ९०-९१. १०. धर्मोपदेशमालाविवरण, सं०- पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क २८, बम्बई १९५९, पृ० २२८-२३०. Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ का संक्षिप्त इतिहास पूर्वमध्ययुग में श्वेताम्बर परम्परा में चन्द्रकुल का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इस कुल से समय-समय पर अनेक शाखायें और प्रशाखायें निकलीं जो विभिन्न गच्छों के रूप में अस्तित्व में आयीं । ई० सन् की दसवीं शताब्दी के आस-पास चन्द्रगच्छ की एक शाखा राज़गच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई । इस गच्छ में अभयदेवसूरि, वादीन्द्र धर्मघोषसूरि आदि प्रखर विद्वान् एवं प्रभावक आचार्य हुए । वादीन्द्र धर्मधोषसूरि की शिष्यसन्तति धर्मघोषगच्छ के नाम से विख्यात हुई । इस गच्छ में कई प्रभावक सूरिवर हुए हैं , जिन्होंने लगभग ५०० वर्षों तक अपनी साहित्योपासना, तीर्थोद्धार, नूतन जिनालयों के निर्माण एवं जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आदि द्वारा मध्ययुग में श्वेताम्बर श्रमण परम्परा को चिरस्थायित्य प्रदान करने में बहुमूल्य योगदान दिया। धर्मघोषगच्छ के इतिहास के अध्ययन के स्रोत के रूप में साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं। साहित्यिक साक्ष्यों में ग्रन्थ प्रशस्तियों तथा प्रतिलिपि प्रशस्तियों के साथ-साथ राजगच्छ की पट्टावली में भी इस गच्छ की चर्चा है। अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत वि० सं० १३०३ से वि० सं० १६९१ तक के लगभग २०० ऐसे अभिलेख मिले हैं जो तीर्थङ्कर प्रतिमाओं तथा जिनालयों के स्तंभ आदि पर उत्कीर्ण हैं और जिनमें इस गच्छ का उल्लेख है। इनका अलग अलग विवरण इस प्रकार है साहित्यिक साक्ष्य - साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत मूल प्रशस्तियां तथा प्रतिलिपि प्रशस्तिया प्रमुख हैं। मूल प्रशस्तियां ग्रन्थकर्ता द्वारा रचना Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ ५५३ के अन्त में लिखी गयी होती हैं। इनमें ग्रन्थकार की गुरु-परम्परा का उल्लेख होता है। __ अध्ययन की सुविधा के लिये सर्वप्रथम ग्रन्थ प्रशस्तियों, तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों और अन्त में मूल ग्रन्थ के प्रतिलेखन की दाताप्रशस्तियों एवं पट्टावली से प्राप्त विवरणों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है - धर्मघोषगच्छीय आचार्यों के रचनाओं की प्रशस्तियों का विवरण १- आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणवृत्ति - आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण खरतरगच्छीय आचार्य जिनवल्लभसूरि की प्रसिद्ध कृति है । इस पर ग्रन्थकार के शिष्य रामदेव गणि; बृहद्गच्छीय आचार्य हरिभद्रसूरि तथा धर्मघोषगच्छीय यशोभद्रसूरि द्वारा रचित वृत्तियां उपलब्ध होती है। यशोभद्रसूरि ने वृत्ति के अन्त में अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है शीलभद्रसूरि वादीन्द्रधर्मघोषसूरि यशोभद्रसूरि [वृत्तिकार] २- धर्मघोषसूरिस्तुति - यह ३३ पद्यों की एक लघु रचना है, जिसके रचयिता धर्मघोषगच्छीय रविप्रभसूरि हैं। इन्होने इस रचना में अपने गुरु का नामोल्लेख तो नहीं किया है, परन्तु इनके शिष्य उदयप्रभसूरि ने अपनी रचना प्रवचनसारोद्धार की विषमपदव्याख्या की प्रशस्ति में अपने गुरु के रूप में इनका उल्लेख किया है । इस प्रशस्ति में प्राप्त गुर्वावली इस प्रकार है - शालिभद्रसूरि Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास धर्मघोषसूरि I यशोभद्रसूरि T रविप्रभसूरि ( धर्मघोषसूरिस्तुति के कर्त्ता ) उदयप्रभसूरि ( व्याख्याकार) ३ - विचारसारविवरण - ९०० गाथाओं की इस रचना के कर्त्ता धर्मघोषगच्छीय प्रद्युम्नसूरि हैं। रचना के अन्त में उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - धर्मघोषसूरि देवप्रभसूरि I प्रद्युम्नसूरि ( रचनाकार) ४- कल्पसूत्रटिप्पनक' - यह धर्मघोषगच्छीय पृथ्वीचन्द्रसूरि की रचना है । रचना के अन्त में रचनाकार ने प्रशस्ति के अन्तर्गत अपनी गुर्वावली का उल्लेख तो किया है, परन्तु ग्रन्थ के रचनाकाल का कोई निर्देश नहीं किया है । इनका काल वि० सं० की १३ वीं शताब्दी के द्वितीय चरण के आस-पास माना जा सकता है । कल्पसूत्रटिप्पनक की वि० सं० १३८४ की एक प्रति पाटन के ग्रन्थ भंडार में संग्रहीत है । इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार द्वारा उल्लिखित अपनी गुरु- परम्परा इस प्रकार है शीलभद्रसूरि धर्मघोषसूरि T यशोभद्रसूरि Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ ५५५ देवसेनसूरि पृथ्वीचन्द्रसूरि (कल्पसूत्रटिप्पनक के कर्ता) उक्त प्रशस्तियों के आधार पर धर्मघोषगच्छीय आचार्यों की जो गुर्वावली निर्मित होती है, वह इस प्रकार है - शीलभद्रसूरि वादीन्द्र धर्मघोषसूरि देवप्रभसूरि यशोभद्रसूरि (आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण एवं गद्यगोदावरी के कर्ता रविप्रभसूरि (धर्मघोषसूरिस्तुति के रचनाकार) देवसेनसूरि प्रद्युम्नसूरि (विचारसारविवरण के कर्ता) उदयप्रभसूरि पृथ्वीचन्द्रसूरि (प्रवचनसारोद्धार की (कल्पसूत्रटिप्पनक विषमपद व्याख्या के रचनाकार के कर्ता) प्रो० एम० ए० ढांकी ने तारङ्गा के वि० सं० १३०४-१३०५; करेड़ा के वि० सं० १३३९; शत्रुञ्जय के वि० सं० १३४३ एवं आबू के वि० सं० १३९६ के प्रतिमा लेखों में उल्लिखित आचार्यों की नामावली के आधार पर धर्मघोषगच्छीय आचार्यों की एक तालिका तैयार की है जो इस प्रकार है – तालिका-२ Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वादीन्द्र धर्मघोषसूरि देवेन्द्रसूरि देवप्रभसूरि रत्नप्रभसूरि जिनचन्द्रसूरि पजून (प्रद्युम्नसूरि) भुवनचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि आनन्दसूरि (वि० सं० १२ + ९) दिलवाड़ा, आबू अमरप्रभसूरि ज्ञानचन्द्रसूरि (वि० सं० १३७८, आबू) गुणचन्द्रसूरि [वि० सं० १३३९ करेड़ा] रत्नाकरसूरि [वि० सं० १३४३ शत्रुञ्जय] मुनिशेखरसूरि (वि० सं० १३९६, आबू) धर्मघोषगच्छीय आचार्य अमरप्रभसूरि के शिष्य ज्ञानचन्द्रसूरि द्वारा वि० सं० १३७४ से १३९६ के मध्य प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें आबू स्थित विमलवसही तथा लूणवसही में विद्यमान हैं । इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है - वि० सं० १३७४ वैशाख सुदि ४ बुधवार (१ प्रतिमालेख) वि० सं० १३७८ ज्येष्ठ वदि ९ सोमवार (२ प्रतिमालेख) वि० सं० १३७८ वैशाख वदि ९ (३ प्रतिमालेख) वि० सं० १३७८ तिथिविहीन (१३ प्रतिमालेख) Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ ५५७ वि० सं० १३७९ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार २ (१ प्रतिमालेख) वि० सं० १३८९ तिथिविहीन (१ प्रतिमालेख) वि० सं० १३९४ तिथिविहीन (१३ प्रतिमालेख) वि० सं० १३९६ वैशाखसुदि ८ (१ प्रतिमालेख) मिति/ तिथि विहीन (३ प्रतिमालेख) धर्मघोषगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं में १५वीं-१६वीं शती की प्रतिमाओं की संख्या सर्वाधिक है। यह तथ्य उन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों से ज्ञात होता है । इन लेखों में यद्यपि इस गच्छ के अनेक आचार्यों का नामोल्लेख आया है, तथापि उनमें से कुछ आचार्यों के पूर्वापर सम्बन्ध ही निश्चित हो सके हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है - १- ज्ञानचन्द्रसूरि के पट्टधर सागरचन्द्रसूरि- सागरचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ८ प्रतिमा लेख अद्यावधि उपलब्ध हैं, जो वि० सं० १४२६ से वि० सं० १४६३ तक के हैं। २- सोमचन्द्रसूरि के पट्टधर देवचन्द्रसूरि- वि० सं० १४२२ का १ प्रतिमालेख ३- सोमचन्द्रसूरि के पट्टधर मलयचन्द्रसूरि । मलयचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ४ लेखयुक्त प्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जो वि० सं० १४५९ से वि० सं० १४६५ तक की हैं। ४- मलयचन्द्रसूरि के पट्टधर पद्मशेखरसूरि पद्मशेखरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित १९ प्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जो वि० सं० १४७४-१४९२ तक की हैं। ५- मलयचन्द्रसूरि के शिष्य विजयचन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित १ प्रतिमा उपलब्ध है जो वि० सं० १४८३ की है। Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ६ - मलयचन्द्र के शिष्य महीतिलकसूरि महीतिलकसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित १२ प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं, इनकी कालावधि वि० सं० १४८३ से वि० सं० १५१९ है । ७- पद्मशेखरसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि पद्मशेखरसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि द्वारा वि० सं० १४८३ से वि० सं० १५०४ के मध्य प्रतिष्ठापित १७ प्रतिमायें आज उपलब्ध हैं । ८ - महीतिलकसूरि के पट्टधर विजयप्रभसूरि विजयप्रभसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें उपलब्ध हैं जिनपर वि० सं० १५०९ का लेख उत्कीर्ण है । ९ - विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर पद्माणंदसूर पद्माणंदसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ३१ प्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जो वि० सं० १५०५ से वि० सं० १५३७ के मध्य की हैं 1 १० - विजयचन्द्रसूरि के शिष्य साधुरत्नसूरि साधुरत्नसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित २३ प्रतिमायें अद्यावधि उपलब्ध हैं जो वि० सं० १५०८ से १५३२ तक की हैं । ११- पद्माणंदसूरि के पट्टधर गुणसुन्दरसूरि गुणसुन्दरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित केवल १ प्रतिमा मिली है । यह प्रतिमा भगवान् कुन्थुनाथ की है। प्रतिमा पर वि० सं० १५२३ का लेख उत्कीर्ण है। १२- पद्मानंदसूर के (द्वितीय) पट्टधर नंदिवर्धनसूरि नंदिवर्धनसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित १० प्रतिमायें मिली हैं जो वि० सं० १५५५ से वि० सं० १५७७ तक की हैं I इन प्रतिमालेखों के आधार पर धर्मघोषगच्छ के आचार्यों की जो तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार है — Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___५५९ धर्मघोषगच्छ तालिका संख्या ३ ज्ञानचन्द्रसूरि वि० १३७८-९४ सोमचन्द्रसूरि मुनिशेखरसूरि (वि० सं० १३९६) सागरचन्द्रसूरि देवचन्द्रसूरि (वि० सं० (वि० सं० १४२६- १४२२ १४६३) (के मध्य ८ प्रतिमालेख) मलयचन्द्रसूरि वि० सं० १४५९ १४६५ (४ प्रतिमा लेख) पद्मशेखरसूरि विजयचन्द्रसूरि महीतिलकसूरि मुख्य पट्टधर शिष्य पट्टधर शिष्य पट्टधर वि० सं० १४७४-१४९२ वि० सं० वि० सं० १४८३(१९ प्रतिमा लेख) १४८३-१५०४ १५१९ (१८ प्रतिमा लेख) (१२ प्रतिमा लेख) विजयप्रभसूरि पद्मानन्दसूरि साधुरत्नसूरि वि० सं० वि० सं० १५०५-१५३७ १५०८-१५३२ (३१ प्रतिमा लेख) (२३ प्रतिमा लेख) गुणसुन्दरसूरि वि० सं० १५३२ (१ प्रतिमा लेख) नंदिवर्धनसूरि वि० सं० १५५५१५७७ (१० प्रतिमालेख) Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० पुस्तक प्रशस्तियाँ पाठकगुणरत्न जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १- कालकाचार्यकथा इस रचना की वि० सं० १३४४ की एक प्रति पाटन के जैन ग्रन्थ भंडार में सुरक्षित है। इसे धर्मघोषगच्छीय आचार्य अमरप्रभसूरि के उपदेश से सोमसिंह नामक श्रावक ने लिपिबद्ध कराया था। इसकी प्रशस्ति में अमरप्रभसूरि की गुरु- परम्परा का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है शीलभद्रसूरि 1 धर्मघोषसूरि पुण्यराजसूरि आनन्दसूरि अमरप्रभसूरि - (वि० सं० १३४४ में इनके उपदेश से कलकाचार्यकथा की प्रतिलिपि तैयार की गयी) २ - लघुक्षेत्रसमासवृत्ति १४ यह रत्नशेखरसूरि की रचना है । इसकी वि० सं० १५५० में धर्मघोषगच्छीय मुनि नन्दिवर्धनसूरि के शिष्य पाठक गुणरत्न द्वारा लिपिबद्ध की गयी एक प्रति मुनिश्रीपुण्यविजय जी के संग्रह में सुरक्षित है । Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ ५६१ नंदिवर्धनसूरि के शिष्य पाठक गुणरत्न का उल्लेख करनेवाला एक मात्र साक्ष्य होने से इस प्रशस्ति का विशिष्ट महत्त्व है । ३- कल्पसूत्र १५ – इस पुस्तक की मुनिराज श्री पुण्यविजयजी के संग्रह में एक प्रति सुरक्षित है । यह प्रति मुनि उदयराज के वाचनार्थ लिखवायी गयी । यह बात इसकी दाता प्रशस्ति से ज्ञात होती है । इस प्रशस्ति की विशेषता यह है कि इसमें धर्मघोषगच्छीय आचार्य पद्माणंदसूरि और नंदिवर्धनसूरि को राजगच्छीय कहा गया है। जैसा कि प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है धर्मघोषगच्छ का राजगच्छ की एक शाखा के रूप में ही उदय हुआ । १७ वीं शताब्दी में दोनों ही गच्छों का पूर्व प्रभाव समाप्तप्राय हो चुका था और उनका अलग-अलग स्वतन्त्र अस्तित्व भी नाम मात्र का ही रहा होगा । ऐसी स्थिति में एक समकालीन लिपिकार अथवा मुनि द्वारा उन्हें राजगच्छीय कहना अस्वाभाविक नहीं लगता । अंतिम दोनों दाताप्रशस्तियों से जो गुर्वावली निर्मित होती है, वह इस प्रकार है - तालिका-४ पाठक गुणरत्न वि० सं० १५५० में लघुक्षेत्रसमासवृत्ति के प्रतिलिपिकार नंदिवर्धनसूरि पुण्यराजसूरि । उदयराजसूर वि० सं० १६१२ पूर्व प्रदर्शित तालिका संख्या ३ के सम्बन्ध में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इसमें एक ओर मलयचन्द्रसूरि के गुरु सोमचन्द्रसूरि का उल्लेख है, परन्तु सोमचन्द्रसूरि के गुरु कौन थे ? यह हमें ज्ञात नहीं होता । दूसरी ओर इस तालिका से यह भी ज्ञात होता हैं कि ज्ञानचन्द्रसूरि के शिष्य Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सागरचन्द्रसूरि के पश्चात् उनकी शिष्य संतति के बारे में अभिलेखीय साक्ष्य मौन हैं । क्या सागरचन्द्रसूरि की शिष्य सन्तति आगे नहीं चली ? ये दो ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर के लिये हमें अन्यत्र प्रयास करना होगा। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, धर्मघोषगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत एक पट्टावली भी उपलब्ध है, वह है एक अज्ञात लेखक द्वारा १६ वीं शती के अन्तिम चरण के आस-पास लिखी गयी राजगच्छीयपट्टावली'५ । इसमें न केवल राजगच्छीय आचार्यों अपितु इस गच्छ की शाखा धर्मघोषगच्छ के आचार्योंज्ञानचन्द्रसूरि, सागरचन्द्रसूरि, मलयचन्द्रसूरि, पद्मशेखरसूरि आदि का भी उल्लेख है। पूर्वं प्रदर्शित तालिका २ और ३ में भी उक्त आचार्यों का नामोल्लेख है, अत: इस पट्टावली की प्रामाणिकता असंदिग्ध है। राजगच्छीयपट्टावली में सागरचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में मलयचन्द्रसूरि का उल्लेख है, जब कि पूर्व में सोमचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में मलयचन्द्रसूरि का नाम आया है ।१९ ऐसा प्रतीत होता है कि मलयचन्द्रसूरि के दीक्षागुरु सोमचन्द्रसूरि थे एवं सागरचन्द्रसूरि ने उन्हें अपने पट्ट पर प्रतिष्ठित किया। जहाँ तक सोमचन्द्रसूरि और सागरचन्द्रसूरि का प्रश्न है, वे परस्पर गुरुभ्राता हो सकते हैं क्यों कि किसी आचार्य द्वारा अपने उत्तराधिकारी के रूप में स्वदीक्षित योग्य शिष्य के अभाव में अपने गुरुभ्राता के शिष्य को अपना पट्टधर बनाना अस्वाभाविक नहीं है। उक्त चारों तालिकाओं में दर्शित गुर्वावलियों को परस्पर समायोजित करने से धर्मघोषगच्छीय आचार्यों का एक विस्तृत विद्यावंशवृक्ष तैयार हो जाता है, जो इस प्रकार है - Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रष्टव्य : तालिका संख्या- ५ यशोभद्रसूरि आगमिकवस्तुविचारसार तथा गद्यगोदावरी के कर्ता] रविप्रभसूरि [ धर्मघोषसूरिस्तुति ] देवसेनसूरि 1 | पृथ्वीचन्द्रसूरि उदयप्रभसूरि [प्रवचनसारोद्धार [कल्पसूत्र की विषमपदव्याख्या] टिप्पनक] वादीन्द्र धर्मघोषसूरि + देवेन्द्रसूरि रत्नप्रभसूरि T आनन्दसूरि [वि० सं० १२+९] [लेख-दिलवाड़ा] जिनचन्द्रसूरि | I भुवनचन्द्रसूरि देवप्रभसूरि प्रद्युम्नसूरि [विचारसारप्रकरण के रचनाकार ] वि० सं० १३०४-५ [लेख-तारंगा ] 1 मुनिचन्द्रसूरि धर्मघोषच्छ h m W Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 835 अमरप्रभसूरि गुणचन्द्रसूरि वि० सं० १३३९ [करहेटक - प्रतिमालेख] रत्नाकरसूरि वि० सं० १३४३ [शत्रुञ्जय - प्रतिमालेख] ज्ञानचन्द्रसूरि वि० सं० १३७८-९४ (प्रतिमालेख/दिलवाड़ा) सोमचन्द्रसूरि मुनिशेखरसूरि वि० सं० १३९६ [दिलवाड़ा - प्रतिमालेख] सागरचन्द्रसूरि वि० सं० १४२६-६३ [प्रतिमालेख] जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास मलयचन्द्रसूरि वि०सं० १४५९-६५ [प्रतिमालेख] देवचन्द्रसूरि वि० सं० १४२२ [प्रतिमालेख] Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलयचन्द्रसूरी धर्मघोषच्छ पद्मशेखरसूरि मुख्य पट्टधर वि० सं० १४७४-१४९२ [१९ प्रतिमालेख] विजयचन्द्रसूरि शिष्य पट्टधर वि० सं० १४८३-१५०४ [१८ प्रतिमालेख] महीतिलकसूरि शिष्य पट्टधर वि० सं० १४८३-१५१९ [१२ प्रतिमालेख] साधुरत्नसूरि वि० सं० १५०८-१५३२ [२३ प्रतिमालेख] पद्माणंदसूरि वि० सं० १५०५-१५३७ [३१ प्रतिमालेख] विजयप्रभसूरि वि० सं० १५०१ [२ प्रतिमालेख गुणसुन्दरसूरि वि० सं० १५३२ [१ प्रतिमालेख] नंदिवर्धनसूरि वि० सं० १५५५-१५७७ [१० प्रतिमालेख] Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ पुण्यराजसूरि पाठक गुणरत्न [इनके उपदेश से लघुक्षेत्रसमास की वि० सं० १५५० में प्रतिलिपि तैयार की गयी] उदयराजसूरि [वि० सं० १६१७ में इनके पठनार्थ कल्पसूत्र की प्रतिलिपि तैयार की गयी] जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ /वही धर्मघोषगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थंकरप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. १३०४ / द्वितीय । जिनचन्द्रसूरि अजितनाथ की अजितनाथ |सम्बोधि, जिल्द ७, ज्येष्ठ के शिष्य | प्रतिमा पर | जिनालय, तारंगा पृ० १३-२५ सुदि ९ | भुवनचन्द्रसूरि | उत्कीर्ण लेख सोमवार २. | १३०५ | आषाढ़ | धर्मधोषसूरि के | अजितनाथ की | अजितनाथ सुदि ७ | पट्टधर देवेन्द्रसूरि | प्रतिमा पर | जिनालय, तारंगा शुक्रवार | के पट्टशिष्य उत्कीर्ण लेख जिनचन्द्रसूरि के पट्टशिष्य भुवनचन्द्रसूरि ३. १३०९ - आनन्दसूरि विमलवसही, विमलवसही, मुनि कल्याणविजय देहरी नं० १२, आबू प्रबन्धपारिजात, नमिनाथ की पृ० ३४३-३४५, Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ४. ६. तिथि १३३९ फाल्गुन सुदि ८ बुधवार १३७४ | वैशाख सुदि ४ बुधवार १३७८ | वैशाख वदि ९ सोमवार आचार्य का नाम मुनिचन्द्रसूरि के पट्टधर गुणचन्द्रसूरि ज्ञानचन्द्रसूरि "" प्रतिमालेख / स्तम्भलेन प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान बावनजिनालय, करेड़ा अनुपूर्ति लेख विमलवसही, आबू संदर्भ ग्रन्थ लेखांङ्क २९ नाहट, पूर्वोक्त, जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९५२ मुनि जयन्तविजय, अर्बुदप्राचीन जैन लेखसंदोह, लेखांक ५४४ वही, भाग २, | लेखांक १३३ ५६८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ धर्मघोषगच्छ । वही वही, लेखांक ७५ वही वही, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ७. १३७८ / वैशाख शांतिनाथ की वदि ९ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८. १३७८ | वैशाख तीर्थङ्कर की वदि ९ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ९. १३७८ | वैशाख वही वदि ९ १०. १३७८ | ज्येष्ठ गुरु प्रतिमा पर सुदि ९ उत्कीर्ण लेख सोमवार लेखांक ८१ वही वही, लेखांक ८३ वही, लेखांक १ वही ५६९ Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक ४ वही वही, लेखांक ६५ वही क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | स्तम्भलेख ११. १३७८ | ज्येष्ठ आदिनाथ की वही वदि ९ प्रतिमा पर सोमवार उत्कीर्ण लेख तिथि वासुपूज्य की विहीन प्रतिमा का लेख १३. आदिनाथ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख अनन्तनाथ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की वही प्रतिमा का लेख वही, | वही लेखांक ६९ वही, लेखांक ११६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही वही, लेखांक १२० वही, लेखांक १२८ Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् १७. १८. १९. २०. २१. 11 11 11 " 11 तिथि 11 11 11 11 11 आचार्य का नाम 11 "1 11 11 प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख महावीर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान वही वही वही वही वही, संदर्भ ग्रन्थ वहीं, लेखांक १६२ वही, लेखांक २० वही, लेखांक २६ वही, लेखांक ३१ वही, लेखांक ३२ धर्मघोषगच्छ ५७१ Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ५७२ वही, वही, क्रमाङ्क संवत् । तिथि । आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । स्तम्भलेख वही वही, लेखांक ३६ २३. अभिनन्दनस्वामी | वही की प्रतिमा पर लेखांक ३७ उत्कीर्ण लेख २४. १३८९ शांतिनाथ की वही प्रतिमा पर लेखांक १२ उत्कीर्ण लेख २५. १३९४ नेमिनाथ की वही, प्रतिमा पर लेखांक ५७ उत्कीर्ण लेख २६. १३९४ जिनप्रतिमा पर वही, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४४ वही जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भ ग्रन्थ वर्मघोषगच्छ २७. " " वही, लेखांक ४१ वही, लेखांक १०५ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख महावीर स्वामी वही की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ की वही प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की वही प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, लेखांक १०७/ ३०. " वही वही, लेखांक १२७ ५७२ Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख संदर्भ ग्रन्थ 805 ३१. " वही वही, ३२. लेखांक १३८ सुविधिनाथ मंदिर, वही, पित्तलहर, आबू लेखांक ४३८ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही वही, लेखांक ७९ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही वही, लेखांक १६८ Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भ ग्रन्थ धर्मघोषगच्छ वही, लेखांक ७७ वही, लेखांक २५२ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख आदिनाथ की वही प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ की लूवणसही, प्रतिमा पर आबू उत्कीर्ण लेख ३७. वासुपूज्यस्वामी | विमलवसही, की प्रतिमा पर | आबू उत्कीर्ण लेख ३८. | १३९६ वैशाख वही सुदि ८ वही, लेखांक ६७ वही, लेखांक ९१ Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् ३९. १३९९ ४०. ४१. ४२. तिथि 17 १३९७ | माघ सुदि १० शनिवार १४१३ ज्येष्ठ सुदि ७ शुक्रवार १४१५ तिथि विहीन आचार्य का नाम 19 मानतुंगसूरि के शिष्य हंसराजसूरि गुणभद्रसूरि के शिष्य सर्वाणंदसूरि 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख पुण्डरीकस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीरस्वामी की जैनमंदिर, मेहसाणा शान्तिनाथ की चौबीसी का लेख प्रतिष्ठा स्थान चन्द्रप्रभ की धातुप्रतिमा का लेख सुविधिनाथ मंदिर वही, लेखांक ४३२ पित्तलहर, आबू संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणिजी का, मंदिर, बीकानेर विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त लेखांक ६५ अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४३२ शीतलनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, उदयपुर पूर्वोक्त, लेखांक ७४ ५७६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४३. | १४१५ | आषाढ़ । सर्वाणंदसूरि । चन्द्रप्रभ की चिन्तामणिजी का अगरचन्द नाहटा, वदि १३ धातुप्रतिमा का मंदिर, बीकानेर | पूर्वोक्त, लेख लेखांक ४३६ ४४. | १४२२ | चैत्र । सोमचन्द्रसूरि | शीतलनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय | पूरनचन्द नाहर, सुदि १२ के शिष्य | प्रतिमा का लेख | जैसलमेर पूर्वोक्त, भाग ३, देवचन्द्रसूरि लेखांक २२७१ ४५. | १४२३ | माघ । महेन्द्रसूरि | शीतलनाथ की | चिन्तामणिजी का अगरचन्द नाहटा, सुदि ८ . के पट्टधर प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर पूर्वोक्त, रविवार | शीलभद्रसूरि लेखांक ४५२ ४६. | १४२६ / वैशाख ज्ञानचन्द्रसूरि के । | चन्द्रप्रभ की चन्द्रप्रभ जिनालय, | वही । सुदि ९ शिष्य प्रतिमा का लेख | बीकानेर लेखांक १६४८ रविवार सागरचन्द्रसूरि L०७ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ लेख - क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४७. १४३० | फाल्गुन | सागरचन्द्रसूरि | पंचतीर्थी का चिन्तामणिजी का वही, लेखांक ४९६ सुदि १० मंदिर, बीकानेर ४८. १४३२ | वैशाख आदिनाथ की अनुपूर्ति लेख, मुनि जयन्तविजय, वदि ११ प्रतिमा का लेख आबू पूर्वोक्त, सोमवार लेखांक ५८७ ४९. १४३२ | माघ महेन्द्रसूरि शीतलनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ८ के पट्टधर । प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ५०० रविवार | शीलभद्रसूरि ५०. १४३४ सागरचन्द्रसूरि । शान्तिनाथ की प्रतिमा का लेख लेखांक ५१५ वैशाख | वीरभद्रसूरि पार्श्वनाथ की विमलनाथ जिनालय, विनयसागर, वदि २ प्रतिमा का सवाई माधोपुर संपा० प्रतिष्ठा वही, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास xx Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ १ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख लेख लेखसंग्रह, भाग १ लेखांक १६१ ५२. १४३५ | माघ वीरभद्रसूरि | वासुपूज्यस्वामी | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १२ की प्रतिमा का मंदिर, बीकानेर लेखांक ५१८ सोमवार लेख ३. |१४३८ ज्येष्ठ सागरचन्द्रसूरि | पार्श्वनाथ की वही वही, वदि ४ पंचतीर्थी का लेख लेखांक ५३३ ५४. |१४३८ । चैत्र पद्मशेखरसूरि | शान्तिनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १५ प्रतिमा का लेख | नागौर | भाग- २ सोमवार लेखांक १२३५ ५५. १४४० | फाल्गुन ज्ञानचन्द्रसूरि | शान्तिनाथ की शान्तिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, सुदि ८ के पट्टधर पंचतीर्थी प्रतिमा | राधनपुर पूर्वोक्त, सोमवार | सागरचन्द्रसूरि | पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ८६ Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० | सुदि ८ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५६. १४४२ सागरचन्द्रसूरि चन्द्रप्रभस्वामी | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० की प्रतिमा का | मंदिर, बीकानेर लेखांक ८३२ लेख ५७. १४४७ | फाल्गुन ज्ञानचन्द्रसूरि शान्तिनाथ की जैनमंदिर, मुनिविशाल विजय के पट्टधर पंचतीर्थी प्रतिमा | राधनपुर सपा०- राधनपुरसोमवार सागरचन्द्रसूरि का लेख प्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ८० ५८. १४५५ सर्वाणंदसूरि चन्द्रप्रभस्वामी की शीतलनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख उदयपुर भाग २, लेखांक १०६० ५९. |१४५९ | ज्येष्ठ । मलयचन्द्रसूरि | पार्श्वनाथ की लोंकागच्छीय बुद्धिसागरसूरि, वदि १२ प्रतिमा का लेख | जैन उपाश्रय, संपा०- जैनधातुशनिवार बालापुर, अकोला प्रतिमालेखसंग्रह, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ६०. १४६१ ६१. ६२. ६३. १४६१ तिथि माघ सुदि १० माघ सुदि १० १४६३ फाल्गुन सुदि ८ १५६५ | वैशाख सुदि ३ आचार्य का नाम "" सागरचन्द्रसूरि सोमचन्द्रसूरि के शिष्य मलयचन्द्रसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख शान्तिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर लाला हजारीमल का घर देरासर, दिल्ली चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर श्रीमालों का मंदिर, जयपुर संदर्भ ग्रन्थ भाग १, लेखांक ६० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ६०२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १८७६ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ६०८ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १२२० एवं विनयसागर, धर्मघोषगच्छ ५८१ Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १८९ ६४. १४७३ | माघ रत्नसागरसूरि आदिनाथ जिनालय, मुनि कान्तिसागर, सुदि ५ भायखला, बम्बई संपा०- जैनधातु प्रतिमालेख, लेखांक ७० ६५. १४७३ | ज्येष्ठ पद्मसिंहसूरि आदिनाथ की शीतलनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, । प्रतिमा का लेख उदयपुर शुक्रवार लेखांक १०६४ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ११३ सुदि २ भाग २, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६६. | १४७४ | फाल्गुन मलयचन्द्रसूरि आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि २ के पट्टधर नागौर भाग-२, पद्मशेखरसूरि लेखांक १२३९ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २१३ ६७. | १४७४ | मार्ग | पद्मशेखरसूरि आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ११४ ६८. १४७७ | माघ पद्मचन्द्रसूरि | चन्द्रप्रभस्वामी की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ६ ___ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ६८९ गुरुवार __ महेन्द्रसूरि ..... 2 पूना Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६९. |१४७८ | चैत्र मलयचन्द्रसूरि शान्तिनाथ की। | बड़ा मंदिर, विनयसागर, सुदि १५ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | नागौर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार पद्मशेखरसूरि लेखांक २१९ ७०. १४८० | फाल्गुन पद्मशेखरसूरि चन्द्रप्रभस्वामी की अनुपूर्ति लेख .मुनि जयन्तविजय, वदि १० प्रतिमा का लेख आबू पूर्वोक्त, बुधवार लेखांक ६१८ ७१. १४८१ वैशाख जयशेखरसूरि अजितनाथ की संभवनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | अजमेर पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक २३० ७२. १४८२ | वैशाख पद्मशेखरसूरि शान्तिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ८ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ७०९ नमिनाथ की प्रतिमा का लेख लेखांक ७१० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ७३. वही, Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ ७४. क्रमाङ्क. संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख सुमतिनाथ की महावीरस्वामी का विनयसागर, प्रतिमा का लेख | मंदिर, सांगानेर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २३३ मुनिसुव्रत की | माणिकसागरजी वही, प्रतिमा का लेख का मंदिर, कोटा लेखांक २३४ ७६. १४८३ | वैशाख मलयचन्द्रसूरि | शान्तिनाथ की । महावीर जिनालय, वही, सुदि .... के पट्टधर प्रतिमा का लेख | सांगानेर लेखांक २४३ पद्मशेखरसरि ७७. |१४८३ | भाद्रपद मलयचन्द्रसूरि | पार्श्वनाथ जिनालय जैनमंदिर, थराद दौलतसिंह लोढा, वदि ७ के पट्टधर का शिखर संपा०-श्रीप्रतिमागुरुवार विजयचन्द्रसूरि बनवाने का उल्लेख लेखसंग्रह, लेखांक २९० एवं मुनि जयन्तविजय Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख संपा० अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक १४० ७८. १४८३ वैशाख | पद्मशेखरसूरि सुविधिनाथ की विमलवसही, मुनि जयन्तविजय, सुदि ३ प्रतिमा का लेख आबू पूर्वोक्त, मंगलवार लेखांक ७५ ७९. १४८३ / मार्गशीर्ष महीतिलकसूरि पद्मप्रभ की माणिकसागरजी विनयसागर, सुदि ५ प्रतिमा का लेख का मंदिर, कोटा पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेखांक २४४ |१४८५ / ज्येष्ठ पद्मशेखरसूरि धर्मनाथ की महावीरस्वामी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | जिनालय, बीकानेर लेखांक १३५८ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ८०. Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८१. | १४८५ | ज्येष्ठ । पद्मशेखरसूरि संभवनाथ की शान्तिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | नमकमण्डी, आगरा | भाग २, सोमवार लेखांक १४९१ ८२. | १४८५ | ज्येष्ठ । मलयचन्द्रसरि । वही वही वही, भाग २, सुदि १३ | के पट्टधर लेखांक १४९१ पद्मशेखरसूरि ८३. | १४८६ / ज्येष्ठ । महीतिलकसूरि | आदिनाथ की | नया मंदिर, विनयसागर, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेखांक २६० एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११८० Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८४. १४८७ | आषाढ़ | पद्मशेखरसूरि मुनिसुव्रतस्वामी चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ९ की प्रतिमा का मंदिर, बीकानेर लेखांक ७३६ लेख ८५. १४८७ | श्रावण वासुपूज्यस्वामी विमलनाथ जिनालय, विनयसागर, वदि ५ की पंचतीर्थी का | सवाई माधोपुर पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक २६६ ८६. १४९१ | ज्येष्ठ मलयचन्द्रसूरि | सुविधिनाथ की जैन मंदिर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ८ के पट्टधर | चौबीसी का लेख | खंभात पूर्वोक्त, भाग २, रविवार पद्मशेखरसूरि लेखांक ७४२ ८७. |१४९२ | मार्गशिर्ष | पद्मशेखरसूरि विमलनाथ की संभवनाथ विनयसागर, वदि ४ प्रतिमा का लेख | जिनालय, अजमेर पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक २९१ लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ सुदि ५ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८८. | १४९३ | वैशाख चन्द्रप्रभ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ७६६ बुधवार ८९. १४९३ / वैशाख वासुपूज्य स्वामी | चन्द्रप्रभ जिनालय |वही, सुदि ५ की चौबीसी बीकानेर लेखांक १६४७ बुधवार प्रतिमा का लेख ९०. | १४९३ | पौष । विजयचन्द्रसूरि कुन्थुनाथ की शांतिनाथ जिनालय, | वही, वदि १ प्रतिमा का लेख | नाहटों की गवाड़, लेखांक १८२९ शनिवार बीकानेर ९१. १४९३ | वैशाख | विजयचन्द्रसूरि । सुमतिनाथ की | जैनमंदिर, थराद लोढ़ा, पूर्वोक्त, सुदि ५ | (पद्मशेखरसूरि । प्रतिमा का लेख लेखांक ९८ बुधवार के पट्टधर) Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९२. १४९४ | वैशाख | विजयचन्द्रसूरि सुविधिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि .... प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ७७४ ९३. १४९५ / ज्येष्ठ । वि.......? सुमतिनाथ की पार्श्वनाथ मंदिर वही, लेखांक २४८५ सुदि १३ | प्रतिमा का लेख नौहर, बीकानेर सोमवार ९४. |१४९५ / ज्येष्ठ । विजयचन्द्रसूरि शांतिनाथ की शीतलनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १४ प्रतिमा का लेख | उदयपुर भाग २, बुधवार लेखांक ९५. १४९५ | फाल्गुन चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त वदि ... कालू, बीकानेर लेखांक २५१३ रविवार - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ९६. ९७. ९८. ९९. तिथि १४९५ पौष वदि १ रविवार १४९५ फाल्गुन वदि रविवार १४१६ वैशाख सुदि १२ १४९६ फाल्गुन वदि १० रविवार आचार्य का नाम पद्मशेखरसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि महीतिलकसूरि विजयचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख "" मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान महावीर जिनालय बीकानेर चन्द्रप्रभ जिनालय, कालू, बीकानेर चन्द्रप्रभ जिनालय जैसलमेर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक १३३८ वही, लेखांक २५१३ नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २३११ नाहटा, पूर्वोक्त | लेखांक ७९१ धर्मघोषगच्छ ५९१ Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ // क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख १००. |१४९७ / माघ विमलनाथ की सुदि ८ प्रतिमा का लेख सोमवार १०१. १४९७ | चैत्र । पद्मसूरिशिष्य सुदि १५ | मुनिपद्मसागर वही, लेखांक ७९१ विमलवसही, आबू |मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, . लेखांक १६९ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८०३ १०२. | १४९८ | माघ । विजयचन्द्रसूरि सुमतिनाथ की चिन्तामणिजी का प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर सुदि ५ गुरुवार १०३. १४९८ | फाल्गुन वदि २ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास विजयचन्द्रसूरि वासुपूज्यस्वामी की प्रतिमा का आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, हीराबाड़ी, नागौर भाग- २, लेखांक १२४७ एवं विनयसागर, लेख - Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान - संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३२७ १०४. | १४९९ | फाल्गुन महेन्द्रसूरि चन्द्रप्रभस्वामी की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १३ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ८१० १०५. | १५०१ / फाल्गुन | विजयचन्द्रसूरि सुमतिनाथ की शीतलनाथ जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, वदि १३ प्रतिमा का लेख | मेवाड़ भाग-२, गुरुवार लेखांक १०७९ १०६. | १५०१ | माघ । विजयप्रभसूरि | शांतिनाथ की | विमलनाथ जिनालय, | विनयसागर, सुदि १० प्रतिमा का लेख | सवाईमाधोपुर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेखांक ३५२ १०७. | १५०१ | माघ । महीतिलकसूरि के | पद्मप्रभ की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० शिष्य प्रतिमा का लेख | आमेर भाग २, Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १०८. १०९. ११०. तिथि सोमवार १५०१ | फाल्गुन सुदि १३ शनिवार १५०३ १५०३ ज्येष्ठ सुदि ११ 11 आचार्य का नाम विजयप्रभसूरि पद्मशेखरसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि *1 11 प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान आदिनाथ की प्रतिमा का लेख अभिनंदनस्वामी शांतिनाथ जिनालय, वही भाग १, की प्रतिमा का रतलाम लेखांक ३५३ लेख संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वीर जिनालय, बोहारनटोला, लखनऊ लेखांक ११४४ एवं विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३४८ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८६६ नाहर, पूर्वोक्त, भाग- २, | लेखांक १५४७ ५९४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् १११. ११२. ११३. ११४. तिथि १५०३ माघ सुदि ५ १५०४ | मार्गसिर सुदि ५ १५०४ | फाल्गुन सुदि ११ गुरुवार १५०५ | वैशाख सुदि ५ बुधवार आचार्य का नाम महीतिलकसूरि पूर्णचन्द्रसूरि के पट्टधर महेन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि महीतिलकसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्यस्वामी की प्रतिमा का लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ शांतिनाथ जिनालय, वही पूर्वोक्त, नमकमंडी, आगरा भाग २, लेखांक १४९२ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८८३ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर पंचायती जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, लस्कर, ग्वालियर भाग २, लेखांक १३९९ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३८९ विमलनाथ जिनालय, सवाईमाधोपुर धर्मघोषगच्छ ५९५ Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ११५. | १५०५ | पौष | विनयचन्द्रसूरि अरनाथ की वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १५ | के पट्टधर प्रतिमा का लेख वैदों का चौक, लेखांक १२०७ पद्मानन्दसूरि बीकानेर ११६. |१५०५ पूर्णचन्द्रसूरि के चन्द्रप्रभ की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, पट्टधर महेन्द्रसूरि प्रतिमा का लेख | मद्रास भाग- २, लेखांक २०६८ ११७. |१५०६ | माघ । विजयचन्द्रसूरि सुविधिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ । के पट्टधर प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ९०२ रविवार साधुरत्नसूरि ११८. १५०६ । माघ महीतिलकसूरि वासुपूज्यस्वामी वही, वदि६ की प्रतिमा का लेखांक ९०१ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास लेख Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ पूर्वोक्त, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ११९. | १५०६ | फाल्गुन । विजयचन्दसूरि | सुविधिनाथ की | खरतरगच्छीय विनयसागर, वदि ५ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख | आदिनाथ जिनालय, पूर्वोक्त,भाग १, सोमवार | साधुरत्नसूरि कोटा लेखांक ४०९ १२०. | १५०६ / वैशाख शांतिनाथ की महावीर जिनालय, विजयधर्मसूरि, सुदि ६ प्रतिमा का लेख | जूनागढ़ शुक्रवार लेखांक २२४ १२१. | १५०६ | माघ श्रेयांसनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ९०३ रविवार १२२. १५०७ माघ पद्माणंदसूरि | आदिनाथ की बड़ा मंदिर, विनयसागर, सुदि १३ प्रतिमा का लेख | नागौर पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार लेखांक ४२२ Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - क्रमाङ्क |संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ । स्तम्भलेख १२३. १५०७ | ज्येष्ठ सुविधिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा का लेख चूरु, राजस्थान भाग- २, लेखांक १३६० १२४. १५०८ | आषाढ़ विजयचन्द्र धर्मनाथ की महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि २ के शिष्य | प्रतिमा का लेख बीकानेर लेखांक १३२३ सोमवार साधुरत्नसूरि १२५. | १५०९ फाल्गुन संभवनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विनयसागर, वदि १० प्रतिमा का लेख रतलाम पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार लेखांक ४४९ १२६. १५०९ माघ पद्माणंदसूरि वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ५ वैदों का चौक, लेखांक १२२२ बीकानेर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ सुदि ५ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२७. | १५०९ | माघ पद्मणंदसूरि सुमतिनाथ की वही, वदि ५ प्रतिमा का लेख लेखांक १२४० रविवार १२८. | १५०९ | ज्येष्ठ | पद्मशेखरसूरि धर्मनाथ की जैन मंदिर, खेड़ा बुद्धिसागरसूरि, के पट्टधर | प्रतिमा का लेख संपा०- जैनधातुरविवार विजयचन्द्र प्रतिमालेखसंग्रह, के शिष्य भाग २, पद्माणोदयसूरि लेखांक ४३८ (पद्माणंदसूरि) १२९. | १५११ माघ महीतिलकसूरि शांतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख | लखनऊ भाग २, लेखांक १५३८ Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १३०. १३१. १३२. १३३. १३४. तिथि १५१२ वैशाख सुदि ३ 19 11 १५१२ | वैशाख सुदि ३ १५१२ वैशाख सुदि १० १५१२ | मार्गशीर्ष वदि २ सोमवार आचार्य का नाम पद्मशेखरसूरि के पट्टधर पद्माणंदसूर 17 17 विनयचंद्रसूरि के पट्टधर साधुरत्नसूरि 19 प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख 11 वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख कुंथुनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की प्रतिमा का लेख अरनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर पार्श्वनाथ मंदिर, नौहर, बीकानेर जैन मंदिर, खंभात महावीर जिनालय, सांगानेर संदर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९५६ वही, लेखांक ९५५ वही, लेखांक २४८६ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, | लेखांक १०९० विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४८४ ६०० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३५. | १५१२ | ज्येष्ठ । विमलनाथ की आदिनाथ जिनालय | नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १ प्रतिमा का लेख देवीकोट, जैसलमेर | भाग ३, लेखांक २५७९ १३६. शीतलनाथ की | सुमतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, प्रतिमा का लेख | जययपुर लेखांक १०८८ १३७. १५१३ | चैत्र शीतलनाथ नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ६ जिनालय, उदयपुर | भाग- २, गुरुवार लेखांक १०८८ एवं विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक २८८ १३८. | १५१३ | वैशाख । महीतिलकसूरि | शान्तिनाथ की गौड़ी पार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ३ प्रतिमा जिनालय, लेखांक १९३५ Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख गोगा दरवाजा, बीकानेर १३९. १५१३ / ज्येष्ठ | पद्मशेखरसूरि पार्श्वनाथ की गौड़ी पार्श्वनाथ नाहर, पूर्वोक्त, वदि ११ के पट्टधर | प्रतिमा का लेख जिनालय, भाग- २, पद्माणंदसूरि मोती कटरा, आगरा लेखांक १४७४ १४०. |१५१३ | ज्येष्ठ । साधुरत्नसूरि सुमतिनाथ की वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ११ प्रतिमा का लेख बीकानेर लेखांक १३५३ गुरुवार १४१. नमिनाथ की आदिनाथ जिनालय, वही, प्रतिमा लेख लूणकरणसर, लेखांक २४९५ बीकानेर १४२. १५१३ | आषाढ़ | पद्माणंदसूरि चन्द्रप्रभ की चिन्तामणिजी का वही वदि ९ प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ९६९ गुरुवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १४३. १५१४ १४४. १४५. १४६. १५१५ तिथि १५१७ माघ सुदि १ शुक्रवार ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार १५१५ | मार्ग(?) सुदि १० गुरुवार वैशाख सुदि ४ गुरुवार आचार्य का नाम विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर साधुरत्नसूरि पद्मशेखरसूरि के पट्टधर पद्माणंदसूरि महीतिलकसूरि पद्माणंदसूर प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख अभिनन्दननाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान कुंथुनाथ की चौबीसी का लेख | जैसलमेर आदिनाथ की प्रतिमा का लेख जैन मंदिर, खंभात बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक ८७५ महावीर जिनालय गौड़ीजी भंडार, उदयपुर में संरक्षित संदर्भ ग्रन्थ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर नाहर, पूर्वोक्त, लेखांक २४१२ विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक २९७ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १००० धर्मघोषगच्छ ६०३ Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क |सवत् १४७. १४८. १४९. १५०. १५१७ तिथि माघ वदि ८ रविवार १५१७ | माघ १५१८ सुदि १ शुक्रवार १५१८ चैत्र सुदि ३ 71 आचार्य का नाम विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर साधुरत्नसूरि 11 11 11 प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख " शीतलनाथ की प्रतिमा का लेख की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैनमंदिर, खंभात बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग - २, लेखांक १०६४ अभिनन्दनस्वामी जैनमंदिर, बडोदरा वही, भाग- २, लेखांक ८० 11 संदर्भ ग्रन्थ जैनमंदिर, खंभात नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १००२ वही, भाग- २, लेखांक १०४६ ६०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ वही, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १५१. | १५१८ | वैशाख । महीतिलकसूरि | पार्श्वनाथ की महावीर जिनालय, विनयसागर, सुदि ४ प्रतिमा का लेख | भिनाय पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक ५७७ १५२. | १५१८ | मार्गशीर्ष रूपचन्द्रसूरि मूलनायक की जैन मंदिर, सुदि १० के पट्टधर पाषाण की प्रतिमा | टोडारायसिंह लेखांक ५८१ शनिवार पद्मशेखरसूरि पर उत्कीर्ण लेख के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर पद्माणंदसूरि १५३. | १५८ | माघ साधुरत्नसूरि | पार्श्वनाथ की जैनमंदिर, बडोदरा | बुद्धिसागरसूरि, (१५१८)/ वदि ५ प्रतिमा का लेख पूर्वोक्त, भाग- २, मंगलवार लेखांक १०९ not Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ वदि १ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १५४. |१५१८ | फाल्गुन | पद्माणंदसूरि सुविधिनाथ की | जैनमंदिर, थराद लोढ़ा, पूर्वोक्त चौबीसी का लेख लेखांक २६९ सोमवार १५५. |१५१९ वैशाख | साधुरत्नसूरि संभवनाथ की आदिनाथ जिनालय, विजयधर्मसूरि, वदि ११ प्रतिमा का लेख जामनगर पूर्वोक्त, शुक्रवार लेखांक ३३५ १५६. १५१९ | वैशाख महीतिलकसूरि सुमतिनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, विनयसागर, सुदि ३ प्रतिमा का लेख कोटा पूर्वोक्त, भाग १, शनिवार लेखांक ५९० १५७. १५२० । वैशाख | सुविधिनाथ की पंचायती जैनमंदिर, नाहर, पूर्वोक्त सुदि ९ ... के पट्टधर प्रतिमा का लेख लस्कर, ग्वालियर भाग- २, सोमवार | साधुरत्नसूरि लेखांक १३७७ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् १५८. १५९. १६०. १६१. तिथि १५२० | मार्गसिर सुदि ९ १५२० मार्गसिर सुदि ९ १५२० मार्गसिर सुदि ९ शनिवार १५२१ | ज्येष्ठ सुदि ९ सोमवार आचार्य का नाम पद्मशेखरसूरि के पट्टधर पद्माणंदसूरि 11 11 ** प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान अष्टापद जिनालय, जैसलमेर चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर संदर्भ ग्रन्थ वही, भाग- ३ लेखांक २१६६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २७४७ शान्तिनाथ जिनालय, मुनि कान्तिसागर, भिंडी बाजार, पूर्वोक्त, बम्बई लेखांक १७६ जैनमंदिर, थराद लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक १२३ धर्मघोषगच्छ ६०७ Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १६२. १५२१ आषाढ़ | पद्माणंदसूरि शीतलनाथ की महावीरस्वामीजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक १२५१ गुरुवार १६३. १५२२ | आषाढ़ श्रीसाधु....... | सुमतिनाथ की नेमिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ८ प्रतिमा का लेख मुर्शिदाबाद भाग-२, लेखांक १०१३ १६४. |१५२३ | आषाढ़ पद्माणंदसूरि कुन्थुनाथ की केशरियानाथ विनयसागर, सुदि६ के पट्टधर प्रतिमा का लेख |जिनालय, भिनाय पूर्वोक्त, भाग १, रविवार गुणसुन्दरसूरि लेखांक ६२९ १६५. १५२२ | फाल्गुन धर्मसुन्दरसूरि श्रेयांसनाथ की महावीर जिनालय, वही, भाग १, वदि ११ | के पट्टधर प्रतिमा का लेख | भिनाय लेखांक ६२२ लक्ष्मीसागरसरि जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १६६. १५२३ माघ १६७. १६८. १६९. तिथि १७०. वदि ११ गुरुवार १५२४ | मार्गशीर्ष सुदि १० १५२५ वैशाख सुदि ६ सोमवार १५२५ ज्येष्ठ वदि १ गुरुवार १५२६ | ज्येष्ठ वदि ८ आचार्य का नाम पद्मशेखरसूरि पट्टधर पद्माणंदसूरि पद्माणंदसूर विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर साधुरत्नसूरि साधुरत्नसूरि शालिभद्रसूरि प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान जैनमंदिर, शाहपुर जिला, थाणा, महाराष्ट्र चिंतामणि जिनालय, बीकानेर जैनमंदिर, खंभात शान्तिनाथ जिनालय, चंदलाई संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग - १, लेखांक १९० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०३८ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०७५ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६८० शान्तिनाथ जिनालय, वही, भाग १, रतलाम लेखांक ६८१ धर्मघोषगच्छ ६०९ Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १७१. १५२७ | माघ । | पद्माणंदसूरि श्रेयांसनाथ की विमलनाथ जिनालय वही, भाग १, सुदि ३ प्रतिमा का लेख बेतेड़ लेखांक ६९८ १७२. | १५२७ | मार्गसिर | विजयचन्द्रसूरि धर्मनाथ की पंचायती मंदिर, वही सुदि ५ __के पट्टधर प्रतिमा का लेख जयपुर लेखांक ६८९ शुक्रवार श्री..... सूरि १७३. |१५२८ | वैशाख पद्माणंदसूरि शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग १, वदि ५ लेखांक ७०२ १७४. १५२८ | वैशाख शांतिनाथ की वही नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख भाग- २, लेखांक १३२६ १७५. | १५२९ | वैशाख धर्मनाथ की वही नाहर, पूर्वोक्त, वदि ५ प्रतिमा का लेख | भाग-२, लेखांक १३२६ नागौर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ माघ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १७६. | १५२९ पद्मशेखरसूरि | शीतलनाथ की चिंतामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक १०६३ रविवार १७७. १५२९ माघ पद्मशेखरसूरि शांतिनाथ की अजितनाथ | नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | जिनालय, बीकानेर | लेखांक १५३५ रविवार पद्माणंदसूरि १७८. | १५२९ । माघ कुन्थुनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ विनयसागर, सुदि ५ प्रतिमा का लेख | जिनालय, पूर्वोक्त, भाग १, रविवार मेड़तासिटी लेखांक ७१५ १७९. | १५३० माघ । साधुरत्नसूरि विमलनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, सुदि १० प्रतिमा का लेख | सांभर लेखांक ७२९ १८०. १५३१ | आषाढ़ | पद्मशेखरसूरि के | आदिनाथ की चिन्तामणि पार्श्वनाथ वही, सुदि २ | पट्टघर पद्माणंदसूरि | प्रतिमा का लेख | जिनालय, किशनगढ़ लेखांक ७३५ Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् । तिथि आचार्य का नाम ६१२ प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान / संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख शांतिनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, वही, प्रतिमा का लेख मालपुरा लेखांक ७३७ १८१. १५३१ मार्गसिर । लक्ष्मीसागरसूरि वदि ९ बुधवार १८२. |१५३२ | ज्येष्ठ साधुरत्नसूरि वदि ३ रविवार १८३. |१८३३ / ज्येष्ठ पासरत्नसूरि वदि ११ | के पट्टधर क्षेमरत्नसूरि १८४. १५३३ मार्गशीर्ष पद्मशेखरसूरि सुदि६ के पट्टघर शुक्रवार पद्माणंदसूरि जैन मन्दिर, बुद्धिसागरसूरि, खंभात पूर्वोक्त, भाग- २, लेखांक ७२३ | आदिनाथ की पंचायती मन्दिर, विनयसागर, | प्रतिमा का लेख | जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७५८ | सुविधिनाथ की महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, | प्रतिमा का लेख बीकानेर लेखांक १५३३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १८५. | १५३४ / चैत्र मंदिर के रंगमंडप महावीर जिनालय, मुनि जयन्तविजय, वदि १० की दाहिने और जीरावला आबू, भाग ५, गुरुवार द्वितीय स्तंभ पर लेखांक १७५ उत्कीर्ण लेख १८६. | १५३४ मार्गशीर्ष | धर्मसुन्दरसूरि के विमलनाथ की | आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, | वदि ५ | पट्टधर प्रतिमा का लेख | नागौर भाग २, लक्ष्मीसागरसरि लेखांक १३१८ १८७. | १५३५ माघ लक्ष्मीसागरसूरि | कुंथुनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ९ प्रतिमा का लेख | रतलाम पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७९३ १८८. १५३५ | मार्ग पद्मशेखरसूरि के | पार्श्वनाथ की शीतलनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि १२ पट्टधर प्रतिमा का लेख | उदयपुर भाग- २, पद्माणंदसूरि लेखांक १०९८ एवं Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Im + क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४५८ १८९. १५३७ । वैशाख आदिनाथ की नवखंडा पार्श्वनाथ बुद्धिसागरसूरि, सुदि ३ प्रतिमा का लेख देरासर, पूर्वोक्त,भाग- २, भोंयरा पाडो, खंभात लेखांक ८६८ १९०. १५३७ माघ मानदेवसूरि विमलनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय नाहर, पूर्वोक्त, वदि १३ प्रतिमा का लेख हैदराबाद भाग- २, शुक्रवार लेखांक २०५३ १९१. १५३८ मार्गसिर धर्मसुन्दरसूरि के बड़ा जिनालय, विनयसागर, वदि ५ । लक्ष्मीसागरसूरि पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८१८ - - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास नागौर Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ - क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १९२. | १५४३ / मार्गसिर | पुण्यवर्धनसूरि सुमतिनाथ की | महावीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, वदि २ प्रतिमा का लेख | जालोर भाग- २, लेखांक ९०४ १९३. १५७२ माघ कमलप्रभसूरि वासुपूज्यस्वामी | वीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि २ | के पट्टधर प्रतिमा का लेख | वैदों का चौक, लेखांक १३७२ सोमवार | पुण्यवर्धनसूरि बीकानेर १९४. | १५५२ | ज्येष्ठ । चन्द्रप्रभस्वामी | खरतरगच्छीय बड़ा मुनि कान्तिसागर, सुदि १३ की प्रतिमा का | मंदिर, कलकत्ता पूर्वोक्त, शुक्रवार लेखांक २६३ १९५. | १५५४ | माघ पुण्यवर्धनसूरि घर देरासर, झज्झू, नाहटा, पूर्वोक्त, | सुदि ५ बीकानेर लेखांक २३२४ - -- लेख - Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १९६. १५५५ | चैत्र । नंदिवर्धनसूरि आदिनाथ की । अजितनाथ वही, सुदि ११ | प्रतिमा का लेख जिनालय, कोचरों लेखांक १५५३ सोमवार का चौक, बीकानेर १९७. १५५५ पद्माणंदसूरि के शांतिनाथ की शीतलनाथ जिनालय, वही, पट्टधर प्रतिमा का लेख रिणी, तारानगर, लेखांक २४४३ नंदिवर्धनसूरि १९८. १५५७ आषाढ पार्श्वनाथ की संभवनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि १० प्रतिमा का लेख अजमेर पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९०४ . १९९. १५६२ | वैशाख आदिनाथ की | श्रेयांसनाथ जिनालय, वही, सुदि २ प्रतिमा का लेख | हिण्डोन लेखांक ९१५ maan बीकानेर - - जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १५६३ २००. २०१. २०२. १५६९ १५७० तिथि माघ सुदि १५ वैशाख सुदि ६ माघ वदि १३ बुधवार २०३. १५७० | आषाढ़ सुदि ५ बुधवार आचार्य का नाम श्रुतसागरसूरि के पट्टधर लक्ष्मीसागरसूरि नंदिवर्धनसूरि 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख शान्तिनाथ की प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख की वासुपूज्य प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान बड़ा मन्दिर, नागौर संदर्भ ग्रन्थ घर देरासर, लखनऊ वही, लेखांक ९१७ सुमतिनाथ जिनालय, वही, लेखांङ्क ९४२ नागौर श्वे० जैनमंदिर, सम्मेदशिखर नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६९३ वही, भाग २, लेखांक १६२० धर्मघोषगच्छ ६१७ Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुदि ९ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २०४. १५७१ | माघ | पद्माणंदसूरि अजितनाथ की । अजितनाथ विनयसागर, वदि ५ । के पट्टधर प्रतिमा का लेख जिनालय, मालपुरा | पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार नंदिवर्धनसूरि लेखांक ९४७ २०५. १५७३ आषाढ़ श्री गंगा गोल्डेन नाहटा, पूर्वोक्त, जुबली म्यूजियम, लेखांक २१५८ बीकानेर २०६. १५७६ | ज्येष्ठ । पद्माणंदसूरि आदिनाथ की बड़ा जिनालय, |विनयसागर, सुदि ८ के पट्टधर प्रतिमा का लेख नागौर पूर्वोक्त, भाग १, रविवार | नंदिवर्धनसूरि लेखांक ९५८ २०७. १५७७ | वैशाख शान्तिनाथ की चौसठियाजी का । वही, भाग १, सुदि६ | धर नंदिवर्धनसूरि | प्रतिमा का लेख मंदिर, नागौर लेखांक ९६४ एवं नाहर, पूर्वोक्त, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख भाग- २, लेखांक १३२१ २०८. | १५८७ | फाल्गुन । विजयचन्द्रसूार विजयचन्द्रसूरि | वासुपूज्य की वासुपूज्य का जैनमंदिर, बुद्धिसागरसूरि, वदि ३ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | बडोदरा पूर्वोक्त, भाग २, बुधवार साधुरत्नसूरि लेखांक १८१ २०९. | १५९९ | फाल्गुन महेन्द्रसूरि शान्तिनाथ, नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १ प्रतिमा का लेख | जिनालय, बीकानेर | लेखांक ११४६ २१०. | १६९१ वैशाख । कल्याणसागरसूरि । मुनिसुव्रत की मुनिसुव्रत विनयसागर, सुदि १० प्रतिमा का लेख | मालपुरा पूर्वोक्त, भाग १, गुरुवार लेखांक ८७ चन्द्रप्र Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सन्दर्भ सूची :१. C. D. Dalal, - "A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan”, (Baroda 1937 A.D.) Pp. 395-396. वही, पृ० ३६६-३७०. सपादलक्षक्षोणीशसमक्षं जितवादिनाम् । श्रीधर्मघोषसूरीणां पट्टालंकारकारकाः ॥१॥ त्रिवर्गपरिहारेण गद्यगोदावरीसृजः।। बभूवुभूरिसौभाग्या: श्रीयशोभद्रसूरयः ॥२॥ स्व-परसमयज्ञानप्रतिप्रकृष्टजगज्जनाश्चतुरवचना मोदाधृष्टामरेशगुरुप्रभाः । अभिनृपसभं गंगागौरप्रतितकीर्त्तयस्तदनु महसः पात्रं जाता रविप्रभसूरयः ॥३॥ एवं प्रवचनसारे तच्छिष्यलवश्चकार टिप्पनकम् । श्रीउदयप्रभसूरिविषमपर्दार्थावबोधाख्यम् ||४|| A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Muniraja Shree Punyavijay Jis Collection, Part 1, No. 3324. Jinaratnakosha, P. 353. चंद्रकुलांबरशशिनश्चारित्रबीईसहस्त्रपत्रस्य । श्रीशीलभद्रसूरेर्गुणरत्नमहोदधि(धे:) शिष्यः ।। अभवद् वादिमदहरः षट्तांभोजबोधनदिनेशः । श्री धर्मघोषसूरिर्बोधितशाकंभरीभूपः ।। चारित्रांभोधिशशी त्रिवर्गपरिहारजनितबुधहर्षः । दर्शितविधिः शमनिधिः सिद्धांतमहोदधिप्रवरः ॥३॥ बभूव श्रीयशोभद्रसूरिस्तच्छिष्यशेखरः । तत्पादपद्ममधुपोभूत् श्रीदेवसेनगणिः ॥४॥ टिप्पनकं पर्युषणाकल्पस्यालिखदवेक्ष्य शास्त्राणिः । तच्छिष्य (त्पद्म) कमलमधुप: श्रीपृथ्वीचंद्रसूरिरिदं ॥५॥ इह यद्यपि न स्वधिया विहितं किंचित् तथापि बुधवगैः । Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मघोषगच्छ ६२१ संशोध्यमधिकमनं यद् भणितं स्वपरबोधाय ।।६।। श्रीपर्युषणाकल्पटिप्पनकं। संवत् १३८४ वर्षे भाद्रवा शुदि १ शनौ अद्येह स्तंभतीर्थे वेलाकूले श्रीमदंचलगच्छे श्रीकल्पपुस्तिका तिलकप्रभागणिनीयोग्या महं० अजयसिंहेन लिखिता । मंगलं महाश्रीः । देहि विद्यां परमेश्वरि ! शिवमस्तु सर्वजगतः । C. D. Dalal, Ibid, P- 37. एम. ए. ढांकी, लक्ष्मण भोजक - "शत्रुञ्जयगिरिना केटलाक अप्रकट लेखो" सम्बोधि, जिल्द VII, पृ० १३-२५. ७. वही ८. पूरनचन्द नाहर, - जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखाङ्क १९५२. ढाकी और भोजक - पूर्वोक्त पृ० १२-२५. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह (आबू-भाग २ ), लेखांक ९१. ११. वही अनुक्रमणिका, पृ० ३५. १२. मुनि जिनविजय-संपा०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३२. ऊकेशवंशे भुवनाभिरामे छायासमाश्वासितसत्वसार्था । शौराणकीयास्ति विशालशाखा साकारपत्रावलीराजमाना । तत्राभवद् भवभयच्छिदुरार्हदंधिराजीवजीवितसदाशयराजहंसः । पूर्वः पुमान् गणहरिगणधारिसार - - - - - - - - - -- [कनी] यान् थिरदेवस्य हरिदेवोस्ति बांधवः । हर्षदेवीभवाः पुत्रा नरसिंहादयोस्य च ॥ सहोदर्यः सप्तैत(?)स्य लष्मिणिधर्मकर्मठा। कर्मिणि हरिसणिश्च पुत्र्यस्तिस्त्रो गुणश्रियः ॥१६॥ अथ गुरुक्रमः श्रीराजगच्छमुकुटोपमशीलद्रसूरेविनेयतिलकः किल धर्मसूरिः। दूर्वादिगर्वभरसिंधुरसिंहनादः श्रीविग्रहक्षितिपतेर्दलितप्रमादः ॥ Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास आनन्दसूरिशिष्यश्रीअमरप्रभसूरितः । श्रुत्वोपदेशं कल्पस्य पुस्तिकां नूतनामिमां ॥१९॥ उद्यमात् सोमसिंहस्य सपुण्यपुण्यहेतवे । अलेखयच्छुभालेखां निजमातुर्गुणश्रियः ।।२०।। यावच्चिरं धर्मधराधिराजः सेवाकृतां सुकृतिनां वितनोति लक्ष्मी । मुनीन्द्रद्वंदैरिह वाच्यमाना तावन्मुदं यच्छतु पुस्तिकेयं ॥२१॥ Colophone :संवत् १३४४ वर्षे मार्ग० शुदि रवौ सोमसिंहेन लिखापिता ॥ C. D. Dalal, Ibid, p. 379. १४. श्रीधर्मधोषगच्छे भट्टारक श्रीनंदिवर्धनसूरीणां शिष्यपाठकगुणरत्नोपदेशेन सं० पट्टा तत्पुत्र सं० पासा तत्पुत्रसं लाषण सं० .............. | Shah, Ibid, Part 1, No. 3038 P- 166. Shah, Ibid, Part I, No. 620., P-51. १६. मुनि जिनविजय - संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह [प्रथम भाग] [सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ५३, बम्बई १९६१ ई०] पृ० ५७-७१. १७. जिनपतिमतचित्रोत्सर्पणाकेलिकारो। जयति कलियुगेऽस्मिन् गौतमो धर्मसूरिः ॥८४॥ प्रणाशयन्तो जडतान्धकारं विकासयन्तो भविकैरवाणि । श्रीज्ञानचन्द्रोत्तमसूरिराजपादाः प्रकामं जयिनो भवन्तु ॥८५॥ प्रबलवादिमतङ्गजमर्दने हरिरिवोन्नतवाक्यनखाङ्कुरे । य इह जैनमताभिधकानने सुशिवदः सुगुरुर्मुनिशेखरः ॥८६॥ वन्दामि तं सुगुरुसागरचन्द्रसूरिं यस्यामृतोपमवचांसि निशम्य सद्यः । के के न केल्हणनृपप्रमुखा बभूवुः जैनेन्द्रधर्मरुचयो द्विजराजपुत्राः ॥८७॥ श्रीजैनशासनवनीनववारिवाहाः सद्देशनारसनिरस्तसुधाप्रवाहाः । विद्याकलागुणसुलब्धिमहानिधानाः श्रीसागरेन्दुगुरुवो गुरवो जयन्तु ॥८८॥ १५. Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२३ धर्मघोषगच्छ भूपालमालाप्रणतो निरीहः समग्रविद्यागुणलब्धिपात्रम् । सर्वत्र सत्कीर्तितपद्महस्तो मुदेऽस्तु नित्यं मलयेन्दुसूरिः ॥८९॥ श्रीराजगच्छाम्बुधिपूर्णचन्द्रः, समस्तविद्यापदमस्ततन्द्रः । प्रज्ञापराभूतसुरेन्द्रसूरि याच्चिरं श्रीमलयेन्दुसूरिः । विश्वोद्योतिशय:प्रतापविलसच्चन्द्रार्कसंशोभितोगुर्वानन्दनसौमनस्यकलितः सद्भद्रशालावनिः ॥१०॥ भूयान्मेरुरिव क्षमाभरधरो विख्यातनामा सतां । पूज्य: श्रीप्रभुपद्मशेखरगुरुः कल्याणदः शर्मणे ॥२१॥ "राजगच्छपट्टावली" विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ ६९-७० १८. "राजगच्छपट्टावली' गाथा ८८-८९. १९. द्रष्टव्य-तालिका संख्या- ३. . Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ का संक्षिप्त इतिहास श्वेताम्बर चैत्यवासी गच्छों में नाणाकीयगच्छ का प्रमुख स्थान रहा है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है अर्बुदमण्डल के अन्तर्गत नाणा नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया । इसके नाणगच्छ, नाणागच्छ, नाणावालगच्छ आदि नाम भी मिलते हैं । यह गच्छ वि० सं० की ११वीं शताब्दी के लगभग अस्तित्व में आया । शांतिसूरि इस गच्छ के पुरातन आचार्य माने जाते हैं। उनके बाद सिद्धसेनसूरि, धनेश्वरसूरि और महेन्द्रसूरि क्रमानुसार पट्टधर बने । इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों के यही चार नाम पुन: पुन: मिलते हैं। चैत्यवासी गच्छों में प्रायः यही परम्परा मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है कि गच्छ के प्रारम्भिक एवं प्रभावशाली आचार्यों के नाम उनके 'पट्ट' के रूप में रुढ़ हो जाते थे और उन पर प्रतिष्ठित होने वाले मुनि को आचार्यपद के साथ साथ उक्त 'पट्ट नाम' भी प्राप्त होता रहा । नाणकीय गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत मात्र दो ग्रन्थों के प्रतिलेखन की दाता प्रशस्तियाँ ही उपलब्ध हैं, इसके विपरीत अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत लगभग १४० प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं। दोनों साक्ष्यों की संख्या में इस विषमता को देखते हुए यह स्वीकार करना पड़ता है कि इस गच्छ के मुनिजन साहित्योपासना को छोड़कर चैत्यों, जिनमंदिरों और उपाश्रयों ( वसतियों) की व्यवस्था एवं देख-रेख में ही अपना सम्पूर्ण समय व्यतीत करते रहे । श्रावकों को नूतन जिनालयों एवं तीर्थंकर प्रतिमाओं के निर्माण की प्रेरणा देना ही इनका Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ ६२५ प्रधान कार्य था। विधिमार्गियों द्वारा चैत्यवास के प्रबल विरोध के बाद भी दीर्घकाल तक चैत्यवासियों का अस्तित्व बना रहना समाज पर इनके व्यापक प्रभाव का परिचायक है । नाणकीयगच्छ से सम्बद्ध सबसे प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १२७२ में लिखी गयी 'बृहत्संग्रहणीपुस्तिका' की दाताप्रशस्ति, जिसमें गोसा नामक श्रावक की बहन पवइणी द्वारा नाणकीय गच्छ के जयदेव उपाध्याय को उक्त पुस्तिका की प्रतिलिपि अध्ययनार्थ भेंट में देने का उल्लेख है । शांतिसूरि, सिद्धसेनसूरि, धनेश्वरसूरि और महेन्द्रसूरि इन चार परम्परागत आचार्यों का इसमें नामोल्लेख भी नहीं है । नाणकीय गच्छ का सबसे प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य होने के कारण इस प्रशस्ति का विशिष्ट महत्त्व है । २ इस गच्छ से सम्बद्ध दूसरा और अब तक उपलब्ध अन्तिम साहित्यिक साक्ष्य है, ‘षट्कर्म अवचूरि' के प्रतिलेखन की दाताप्रशस्ति, जो वि० सं० १५९२ में पूर्ण की गयी है । लगभग १० पंक्तियों की इस प्रशस्ति में इस गच्छ के परम्परागत ४ आचार्यों का नाम प्राप्त होता है, इसी लिये इस प्रशस्ति को विशेष महत्त्वर्ण माना जा सकता है। नाणाकीय गच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमा लेखों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है - - 'संवत ११०२ वीरेण कारिता श्रीमन्नाणकीय गच्छे' ३ जैसा कि हम पहेले देख चुके हैं, नाणकीय गच्छ का उल्लेख करने वाला यह सबसे प्राचीन प्रतिमा लेख है, जो पींडवाड़ा स्थित जैनमंदिर में संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस गच्छ से सम्बन्धित दूसरा लेख वि० सं० ११३३ का है, जो पींडवाड़ा के उक्त जिनालय में एक खंडित प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है 1 - Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास 'संवत ११३३ नाणक गच्छे यशोदेवसुतेन वामदेवेन कारित: ।' इस गच्छ से सम्बधित तृतीय लेख वि० सं० ११४१ का है, जो इसी जिनालय में स्थित एक तीर्थकर प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है - I ६२६ 'संवत ११४१ श्रीनाणकीय गच्छे पालिसयुतेन धीरक स्त्रा (श्रा) वकेन श्रेयोर्थं कारिता ।' इसी गच्छ का एक अन्य अभिलेख वि० सं० ११४२ का है, जो अहमदाबाद के सीमन्धर स्वामी के देरासर में स्थित महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, लेख इस प्रकार है 'सं० ११४३ श्रीनाणकीयगच्छे स्वसुवपद्मासुयचनतः श्राद्धैः श्रीवीरनाथबिंबं चायणसुदेवऊलभदेवडमनि ॥६ - जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, इस गच्छ में सिद्धसेनसूरि घनेश्वरसूरि, महेन्द्रसूरि और शान्तिसूरि इन चार पट्टधर आचार्यों के नामों की ही पुनरावृत्ति होती है । इन परागत नामों का उल्लेख करनेवाला सर्वप्रथम लेख वि० सं० १९९८ / ई० सन् १९४१ का है जो आबू के निकट मालणु नामक ग्राम में स्थित जिनालय के गूढ़ मंडप में उत्कीर्ण है । इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में श्रीधनेश्वरसूरि का उल्लेख है । लेख इस प्रकार है : संवत् ११९८ वैशाख शुदि ३ छारा सुत भूणदेव भार्या वेल्ही पुत्रैः धणदेवजिदुश्च सहदेव जसधवलश्रावकैः । निजभग्नी महणी सुपुत्र जेसलप्रभृतिसहितः । श्रीनाणकगच्छ प्रति पड ( ? ) सीपेरकस्थान - श्रीशांतिनाथचैत्ये श्रीमहावीरबिंबं कारितं श्रेयोनिमित्तं श्रीधनेश्वराचार्यः प्रतिष्ठतमिति ॥ पींडवाड़ा के महावीर जिनालय के स्तम्भ पर वि० सं० १२०८ का एक लेख उत्कीर्ण है । यह लेख भी इसी गच्छ से सम्बन्धित है, परन्तु Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ इसमें प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं है। इसके पश्चात् वि० सं० १५९९ तक के प्रायः सभी प्रतिमा लेखोंमें प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख है। जिसकी संक्षिप्त तालिका इस प्रकार है - Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १. | १२१२ | ज्येष्ठ । महेन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की | जैन मंदिर, अजारी मुनि जयन्तविजय, सुदि १० प्रतिमा पर आबू, भाग-५ उत्कीर्ण लेख लेखांक ४०७ २. १२१२ | माघ । आचार्य का नाम | धातुप्रतिमा पर चिन्तामणिजी का अगरचन्द नाहटा, सुदि १० / नहीं है। उत्कीर्ण लेख मंदिर, बीकानेर संपा०- बीकानेर जैनलेखसंग्रह, लेखांक ८१ १२१७ | ज्येष्ठ महेन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की जैन मंदिर, सुदि ९ प्रतिमा पर | अजारी आबू, भाग-५, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४०९ ४. | १२२२ | ज्येष्ठ पार्श्वनाथ की वही सुदि १० प्रतिमा पर लेखांक ४१० बुधवार उत्कीर्ण लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही, Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ -- - वही, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५. १२२४ | ज्येष्ठ पार्श्वनाथ की | जैन मंदिर, वही, सुदि ९ धातुप्रतिमा पर मालणु लेखांक ३२० शुक्रवार उत्कीर्ण लेख ६. १२३४ आषाढ़ प्रतिष्ठापक आचार्य | गूढ मंडप स्थित जैन मंदिर, वदि २ का नाम प्रतिमा पर पीडवाड़ा लेखांक ३७३ अनुपलब्ध उत्कीर्ण लेख ७. १२३४ | आषाढ़ महेन्द्रसूरि | धातुप्रतिमा पर जैन मंदिर, वही, वदि३ उत्कीर्ण लेख अजारी लेखांक ४१२ ८. १२३५ फाल्गुन शांतिसूरि दीवाल पर आदिनाथ जिनालय, पूरनचन्द नाहर, सुदि ७ उत्कीर्ण लेख बेलार संपा०- जैनलेखगुरुवार संग्रह, भाग १, लेखांक ८६२ Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० क्रमाङ्क | संवत् तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९. |१२३६ | माघ जैन मंदिर, जैनसत्यप्रकाश, सुदि १० राणकपुर जिल्द १८, बुधवार अङ्क ४-५, लेखांक ९ १०. १२३९ | वैशाख | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त सुदि ५ मंदिर, बीकानेर लेखांक १०० गुरुवार ११. | १२४० | फाल्गुन परिकर का लेख | जैन मंदिर, नाणा |आबू, भाग ५, सुदि २ लेखांक ३४६ बुधवार १२. | १२४३ | वैशाख वीरसूरी परिक परिकर के नीचे | जैन मंदिर, आबू, भाग ५, . सुदि६ का लेख अजारी लेखांक ४१५ बुधवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ पाटण लेख क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३. १२४८ | वैशाख शांतिसूरी | चन्द्रप्रभ स्वामी शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ की प्रतिमा का संपा०-जैनधातुबुधवार प्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २६२ १४. |१२५१ | आषाढ़ स्तंभ लेख | जैन मंदिर, मुनि जिनविजय, वदि ५ उथमण संपा०- प्राचीनगुरुवार जैनलेखसंग्रह, |भाग २, लेखांक ४२८ १५. १२६५ | मित । प्रतिष्ठयक का | वही | जैन मंदिर, बेलार आबू, भाग ५, तिहीन नाम उपलब्ध लेखांक ३३० Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वही, क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १६. | १२..? शांतिसूरि दीवाल पर | जैन मन्दिर, उत्कीर्ण लेख | अजारी लेखांक ४२५ १७. १२६४ | माघ शांतिसूरि के शिष्य | पार्श्वनाथ की धर्मनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ प्रतिमा का लेख अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ११११ १८. | १२६५ फाल्गुन शांतिसूरि महावीर स्वामी | आदिनाथ जिनालय, मुनि जिनविजय, वदि ७ की प्रतिमा के पूर्वोक्त, भाग २, गुरुवार गुणसमुद्रसूरि परिकर पर लेखांक ४०३ उत्कीर्ण लेख एवं आबू, भाग ५, लेखांक ३२७ १९. |१२६५ तिथि आचार्य का शिलालेख वही मुनि जिनविजय विहीन नाम नहीं पूर्वोक्त, भाग २, मिलता है। लेखांक ४०४ एवं बेलार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | संदर्भ ग्रन्थ नाणकीयगच्छ आबू, भाग ५ लेखांक ४१८ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख २०. १२६५ | आषाढ़ शांतिसूरि पार्श्वनाथ पंचतीर्थी | जैन मन्दिर सुदि ७ पर उत्कीर्ण लेख | अजारी सोमवार २१. १२६८ | आषाढ़ सिद्धसेनसूरि वीर जिनालय, वदि २ दीयाणा शुक्रवार २२. १२६८ | आषाढ़ जिनमातृपट्ट पर वीर जिनालय, वदि २ | उत्कीर्ण लेख | दीयाणा गुरुवार २३. १२६९ / ज्येष्ठ धातु की प्रतिमा | चिन्तामणिजी का पर उत्कीर्ण लेख मंदिर, बीकानेर । बुधवार नोट :- लेखांक २१ और २२ संभवतः एक ही लेख प्रतीत होते हैं। जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १४, अंक १, पृ० १३ . आबू, भाग ५, लेखांक ४८९ - - सुदि २ अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ११० Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख २४. | १२७२ / माघ शांतिनाथ की वही वही, सुदि १४ प्रतिमा का लेख लेखांक ११२ सोमवार २५. | १२८२ | ज्येष्ठ धातु की वही वही, सुदि ९ जिनप्रतिमा पर लेखांक १२१ गुरुवार उत्कीर्ण लेख २६. | १२८५ / ज्येष्ठ - आचार्य का | नेमिनाथ की विजयधर्मसूरि, सुदि ३ | नाम अनुपलब्ध | धातुप्रतिमा पर लींच संपा०, प्राचीनरविवार उत्कीर्ण लेख लेखसंग्रह, लेखांक ३४ २७. |१२९३ | ज्येष्ठ । सिद्धसेनसूरि | धातु की चिन्तामणीजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ६ जिनप्रतिमा पर | मंदिर, बीकानेर लेखांक १३१ गुरुवार उत्कीर्ण लेख | जैन मन्दिर, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख २८. १३०८ | फाल्गुन आचार्य का स्तम्भ लेख वदि ११ नाम नहीं शुक्रवार मिलता है। नाणकीयगच्छ विमलवसही, आबू मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, लेखांक २३१ तथा आबू, भाग २, लेखांक १८४ आबू, भाग ५ लेखांक ४२७ प्रतिमालेख जैन मन्दिर, अजारी २९. १३०८ | ज्येष्ठ | सिद्धसेनसूरि वदि..? गुरुवार ३०. १३१३ | माघ । वदि प सोमवार ३१. १३१४ | फाल्गुन धनेश्वरसूरि सुदि १४ शांतिनाथ की जैन मन्दिर, धातु की प्रतिमा दरापरा का लेख | पार्श्वनाथ की आदिनाथ प्रतिमा का लेख जिनालय, कोटा बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २५ विनयसागर, सम्पा०- प्रतिष्ठा- | Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ३२. ३३. ३४. तिथि १३२३ | माघ सुदि ५ बुधवार १३२९ | ज्येष्ठ वदि ११ १३२९ | ज्येष्ठ सुदि ११ रविवार आचार्य का नाम धनेश्वरसूरि " प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख दीवाल पर उत्कीर्ण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान जैन मन्दिर तोपखाना, जालौर चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर जैनमन्दिर, अजारी संदर्भ ग्रन्थ लेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६८ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९०२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२३० आबू, भाग ५, लेखांक ४२९ Ww m जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ३५. |१३३५ | माघ । महेन्द्रसूरि शांतिनाथ की सुदि १३ प्रतिमा उत्कीर्ण नाणकीयगच्छ लूणवसही, आबू आबू, भाग २, लेखांक २५९ लेख ३६. १३३९ फाल्गुन सुदि ८ अनुपूर्ति लेख, आबू वही, लेखांक ५३६ महावीरस्वामी की प्रतिमा स्थापित करने का उल्लेख ३७. - |१३३९ फाल्गुन सुदि ८ ३८. |१३३९ | फाल्गुन सुदि ८ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, | मंदिर, बीकानेर लेखांक १९२ | मुनिसुव्रत जिनालय |जैनसत्यप्रकाश, | मालपुरा वर्ष ६, पृ० ३७५-३८३, एवं विनयसागर, Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८९ ३९. |१३४१ / तिथि चौबीसी पर | जैन मन्दिर, रोहेड़ा | नाहर, पूर्वोक्त, विहीन उत्कीर्ण लेख (सिरोही) भाग २, लेखांक २०८१ तथा आबू, भाग ५, लेखांक ५६४ ४०. | १४४६/ वैशाख पार्श्वनाथ की जैन मन्दिर नाहर, पूर्वोक्त, सुदि २ प्रतिमा का लेख | अंजार भाग २, बुधवार लेखांक १७१९ ४१. |१३४७] तिथि शांतिसूरि प्रतिमा स्थापना | चिन्तामणि जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, विहीन की चर्चा बीकानेर लेखांक २०५ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४२. |१३५४ | ज्येष्ठ शांतिनाथ की चिन्तामणि जिनालय, वही, सुदि६ प्रतिमा का लेख |बीकानेर लेखांक २१६ शनिवार ४३. १३५६ | आषाढ़ धातु प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, जैनसत्यप्रकाश, सुदि ३ उत्कीर्ण लेख कोरटा, मारवाड़ वर्ष १, रविवार पृ० ३१०-११, लेखांक ९ ४४. |१३७२ माघ सिद्धसेनसूरि पार्श्वनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त वदि ५ प्रतिमा पर उत्कीर्ण मंदिर, बीकानेर लेखांक २५१ सोमवार लेख ४५. १३७३ | माघ वही वही, वदि ५ लेखांक २५९ सोमवार वहीं Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० वही क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ४६. |१३७६ | माघ वही नाहटा, पूर्वोक्त, वदि १२ लेखांक २७१ बुधवार ४७. |१३७६ / माघ शांतिनाथ की वही | वही, वदि १२ प्रतिमा पर लेखांक २७० बुधवार उत्कीर्ण लेख ४८. १३७८ | ज्येष्ठ जिनप्रतिमा पर | वही वही, वदि उत्कीर्ण लेख लेखांक २७८ ४९. | १३८१ | वैशाख शांतिनाथ की वदि ३ प्रतिमा की लेखांक २८६ स्थापना का उल्लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही वही, Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ वही क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५०. १३८२ | ज्येष्ठ धातु की प्रतिमा | वही वही, सुदि ९ पर उत्कीर्ण लेखांक २९४ गुरुवार लेख ५१. १३८३ | माघ पार्श्वनाथ की वही वदि ५ प्रतिमा पर लेखांक २९६ सोमवार उत्कीर्ण लेख ५२. १३८४ | ज्येष्ठ आदिनाथ प्रतिमा | वही वही, वदि ११ का लेख लेखांक २९८ सोमवार ५३. १३८६ माघ | बुद्धिसागरसूरि प्रतिमा लेख | सौदागर पोल का बुद्धिसागर, वदि २ देरासर, अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८७५ . Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - C83 क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान । संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५४. | १३८६ / माघ । सिद्धसेनसूरि प्रतिमा स्थापना | नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ९ का उल्लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ३१४ । सोमवार ५५. | १३८६ फाल्गुन आदिनाथ की | वही . | वही, वदि १ प्रतिमा का लेख लेखांक ३१५ सोमवार ५६. | १३८८ | वैशाख शांतिनाथ प्रतिमा | चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १५ का लेख जैसलमेर | भाग-३ रविवार लेखांक २२५४ ५७. | १३८९ / ज्येष्ठ आदिनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, वदि ११ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ३३१ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान / संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ५८. १३९१ | फाल्गुन शांतिनाथ प्रतिमा | वही वही, वदि ११ का लेख लेखांक ३४६ शनिवार ५९. १३९३ | फाल्गुन पार्श्वनाथ प्रतिमा | वही वही, सुदि २ का लेख लेखांक ३५९ सोमवार ६०. १३९४ चैत्र पंचतीर्थी का लेख खरतरगच्छीय विनयसागर, शुक्ल ३ उपाश्रय, किशनगढ़ |पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३९ ६१. १३९४ | माघ शांतिसूरि आदिनाथ की बड़ा जिनालय, वही, सुदि ५ धातु की प्रतिमा | नागौर लेखांक ३०१ . शुक्रवार का लेख 83 Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ सुदि लेख क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ६२. | १३९९ | चैत्र । सिद्धसेनसूरि एकतीर्थी अनुपूर्ति लेख आबू, भाग २, जिनप्रतिमा का | आबू लेखांक ५६४ शुक्रवार ६३. | १४०५ | फाल्गुन शांतिसूरि कुन्थुनाथ की शांतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ९ पंचतीर्थी का | नमक मंडी, आगरा | भाग २, शुक्रवार लेखांक १४८७ ६४. |१४०८ | वैशाख धनेश्वरसूरि आदिनाथ प्रतिमा | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ५ का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ४१८ ६५. | १४०९ / ज्येष्ठ चन्द्रप्रभ प्रतिमा | वही सुदि १० का लेख लेखांक ४२१ सोमवार लेख जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही, Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ६६. ६७. १४१० ६८. १४०९ ६९. १४२२ तिथि फाल्गुन सुदि १० सोमवार माघ वदि १ रविवार वैशाख सुदि १२ बुधवार १४२३ | फाल्गुन सुदि ९ सोमवार आचार्य का नाम शांतिसूरि धनेश्वरसूरि " 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख विमलनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख विमलनाथ की पंचतीर्थी का लेख पार्श्वनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वही विमलनाथ जिनालय, चौकसी पोल, खंभात चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वही संदर्भ ग्रन्थ वही, लेखांक ४२३ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ७९३ नाहटा, पूर्वोक्त लेखांक ४५० वही, लेखांक ४५५ नाणकीयगच्छ ६४५ Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ७०. ७१. ७२. ७३. तिथि १४२६ |द्वितीय वैशाख सुदि १० रविवार १४२६ द्वितीय वैशाख सुदि .. सोमवार १४२६ | वैशाख सुदि १० सोमवार १४३३ | आषाढ़ सुदि १० आचार्य का नाम 11 11 11 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वही वही धातु प्रतिमा लेख | जैसलमेर पाटण संदर्भ ग्रन्थ वही लेखांक ४७८ वही लेखांक ४७६ जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ७, पृ० २११-२३ मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, ६४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख बुधवार सिद्धसेनसूरि की भाग २, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेखांक ५३१ लेख ७४. १४३४ | वैशाख चन्द्रप्रभ प्रतिमा चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, (?) वदि का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ५१२ बुधवार ७५. १४३६ | वैशाख ___ महेन्द्रसूरि सुमतिनाथ की वही वही, वदि ११ प्रतिमा का लेख लेखांक ५२१ सोमवार ७६. १४४० वैशाख . वासपज्य की अनुपति लेख, आबू, भाग २, प्रतिमा का लेख आबू लेखांक ५९८ शनिवार ७७. |१४५९ माघ पद्मप्रभ पंचतीर्थी | चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि ६४७ Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - संदर्भ ग्रन्थ 783 लेखांक ५९४ वही, लेखांक ६०९ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान स्तम्भलेख सुदि १ का लेख मंदिर, बीकानेर ७८. | १४६४ / ज्येष्ठ आदिनाथ प्रतिमा | वही वदि ४ का लेख | शुक्रवार ७९. | १४६५ / वैशाख शान्तिनाथ प्रतिमा | वही सुदि ३ का लेख गुरुवार ८०. १४६९ माघ । पद्मप्रभ पंचतीर्थी | वही सुदि १ का लेख ८१. १४७३ | ज्येष्ठ शांतिसूरि संभवनाथ की वही सुदि ३ प्रतिमा का लेख बुधवार वही लेखांक ६१६ वही लेखांक ६४२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वही लेखांक ६६७ Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ वही क्रमाङ्क |संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८२. १४७३ | ज्येष्ठ सुमतिनाथ की वही, सुदि ३ प्रतिमा का लेख लेखांक ६६८ बुधवार ८३. |१४७४ | आषाढ़ धनेश्वरसूरि शान्तिनाथ की वही, लेखांक ६७२ सुदि ६ प्रतिमा का लेख गुरुवार ८४. १४७५ शाातसूरि जैन मन्दिर मुनि विशालविजय, राधनपुर सम्पा०- राधनपुर प्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ९८ ८५. |१४७६ वैशाख । धनेश्वरसूरि शान्तिनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० | प्रतिमा का लेख | जैसलमेर | भाग ३, सोमवार लेखांक २२९१ कब Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुदि क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ८६. | १४७९ / वैशाख शांतिसूरि चन्द्रप्रभस्वामी अजितनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ४ की प्रतिमा का शेख पाडो, पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार लेख अहमदाबाद लेखांक १००० ८७. |१४८५ / वैशाख धनेश्वरसूरि । | शान्तिनाथ की चिन्तामणिजी का । नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ७२७ सोमवार ८८. १४८७ | माघ शान्तिसूरि कुंथुनाथ की वही नाहटा, पूर्वोक्त वदि ५ प्रतिमा का लेख लेखांक ७३७ शुक्रवार ८९. | १४८९ | फाल्गुन अनन्तनाथ की वही वही, वदि ५ प्रतिमा का लेख लेखांक ७४६ सोमवार जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | सवत् ९०. ९१. १४९३ ९२. ९३. तिथि १४९२ ज्येष्ठ वदि ११ शुक्रवार १४९४ ज्येष्ठ सुदि २ शुक्रवार १४९५ ज्येष्ठ सुदि १४ रविवार आचार्य का नाम 11 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिमा लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वही शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वही संदर्भ ग्रन्थ वही लेखांक ७६० नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ११११ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७७५ वहीं, लेखांक ७८४ नाणकीयगच्छ ६५१ Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९४. १४९५ | फाल्गुन चन्द्रप्रभ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, वदि ९ प्रतिमा का लेख । (पांचू) बीकानेर लेखांक २२५९ रविवार ९५. | १४९८ | ज्येष्ठ धर्मनाथ की चिन्तामणिजी का वही, सुदि २ प्रतिमा का लेख | मंदिर, बीकानेर लेखांक ७९३ सोमवार ९६. | १४९९ / ज्येष्ठ पार्श्वनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय मुनि बुद्धिसागर, वदि ११ प्रतिमा का लेख | अहमदाबाद पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक ९०७ ९७. | १५०१ माघ । आदिनाथ की सुपार्श्वनाथ का नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० प्रतिमा का लेख | पंचायती बड़ा | भाग २ सोमवार मन्दिर, जयपुर लेखांक ११४३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ क्रमाङ्क संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ | प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ९८. १५०१ | माघ आदिनाथ की चन्द्रप्रभ जिनालय, विनयसागर, सुदि १० प्रतिमा का लेख | आमेर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेखांक ३४९ ९९. | १५०४ | माघ प्रतिष्ठापक संभवनाथ की पार्श्वचन्द्रगच्छ का वही, वदि ९ | आचार्य का नाम | प्रतिमा का लेख | उपाश्रय, जयपुर लेखांक ३८१ शनिवार । अनुपलब्ध १०० १५०४ | माघ शान्तिसूरि धर्मनाथ की चिन्तामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि २ प्रतिमा का लेख मंदिर, बीकानेर लेखांक ८८५ शुक्रवार १०१. १५१५ | माघ । महेन्द्रसूरि महावीर की जैन मंदिर, जिनविजय, वदि ९ के पट्टधर प्रतिमा का लेख | नाणा पूर्वोक्त, भाग २, शनिवार शान्तिसूरि लेखांक ४०९ Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् तिथि १०२. १५१० माघ १०३. १०४. १०५. सुदि १० शुक्रवार १५११ आषाढ़ वदि ८ १५१३ माघ वदि ९ गुरुवार १५१६ | वैशाख सुदि ५ आचार्य का नाम शान्तिसूरि सिद्धसेनसूरि शान्तिसूरि के पट्टधर सिद्धसेनसूरि सिद्धसेनसूरि के पट्टधर धनेश्वरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख नमिनाथ चौबीसी | आदिनाथ जिनालय, प्रतिमा का लेख करमदी वासुपूज्य की प्रतिमा का लेख शान्तिनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान आदिनाथ. की प्रतिमा का लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर पार्श्वनाथ जिनालय, जड़ाउ महावीर जिनालय, बोहारनहोला, लखनउ संदर्भ ग्रन्थ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४६७ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९४६ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५१९ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १५५२ ६५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - क्रमाङ्क संवत् १०६. १०७. १०८. १०९. तिथि १५२० चैत्र वदि ८ शुक्रवार १५२० वैशाख वदि २ १५२२ वैशाख सुदि ३ रविवार १५२७ माघ वदि ७ आचार्य का नाम धनेश्वरसूरि 11 11 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शान्तिनाथ की प्रतिमा का लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा का लेख 'प्रतिष्ठा स्थान आदिनाथ जिनालय, माणेकचौक, खंभात चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, कड़ी चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर चन्द्रप्रभ जिनालय, अजमेर संदर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १०२१ वही, भाग १, लेखांक ७२० नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०२८ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६९७ नाणकीयगच्छ ६५५ Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ ६५६ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि । आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख ११०. १५२७ / ज्येष्ठ सुदि ३ १११. | १५२७ वैशाख सुदि ३ धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मालपुरा जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ६, पृ० २७५-२८३ जैन मंदिर, खंडप नाहर, पूर्वोक्त, | (मारवाड़) भाग २, लेखांक २११० चन्द्रप्रभ जिनालय, वही, भाग ३, जैसलमेर लेखांक २३४८ ११२. | १५२७ / माघ वदि ७ शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास राधनपुर ११३. | १५२८ | आषाढ़ सुदि २ सोमवार मनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक २६० Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख ११४. १५२८ माघ सुमतिनाथ की सुमतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, वदि ५ | प्रतिमा का लेख ओराण पूर्वोक्त, भाग -१, बुधवार लेखांक ६१२ ११५. १५२९ | अषाढ पद्मप्रभ की | जैनमंदिर, विनयसागर, सुदि २ पंचतीर्थी का | नथमलजी का कटरा, पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेख जयपुर लेखांक ७१३ ११६. |१५३० / फाल्गुन सिद्धसेनसूरि धातु प्रतिमा का जैन मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, सुदि १० के पट्टधर | लेख माँकलेश्वर भाग २, धनेश्वरसूरि (मारवाड़) लेखांक ११८७ ११७. १५३४ | फाल्गुन धर्मनाथ की बड़ा मंदिर, विनयसागर, सुदि ५ पंचतीर्थी का जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेख लेखांक ७८३ Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् ११८. १५३४ वैशाख वदि १० रविवार १५३४ वैशाख सुदि ३ गुरुवार | १२०. १५३४ मार्गशिर ११९. तिथि १२१. वदि ५ सोमवार १५३५ | पौष वदि १३ रविवार आचार्य का नाम 11 ** 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख संभवनाथ की प्रतिमा का लेख पंचतीर्थी का लेख नमिनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की धातु - प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान मुनिसुव्रत जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, बोलपीपलो, खंभात जैन मंदिर, गुड़ा, सिरोही महावीर जिनालय, सांगानेर संदर्भ ग्रन्थ पार्श्वनाथ जिनालय, गीपटी, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १११२ नाहर, पूर्वोक्त, भाग- २, लेखांक २०८९ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७७९ मुनि कान्तिसागर, संपा० जैनधातुप्रतिमालेख, ६५८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ क्रसाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ स्तम्भलेख नाणकीयगच्छ - - भाग १, लेखांक २३३ महावीर जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, गीपटी, खंभात पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ७०५ पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, पाँचू, बीकानेर लेखांक २२७३ - १२२. १५३५ । पौष वदि १३ बुधवार १२३. १५३५ / माघ । सुदि ५ गुरुवार १२४. १५३६ | फाल्गुन सुदि २ रविवार विमलनाथ की प्रतिमा का लेख . विमलनाथ की शंखेश्वर पार्श्वनाथ नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख | जिनालय, बीकानेर लेखांक १९०९ एवं नाहर, पूर्वोक्त, भाग- २, लेखांक १३३९ Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगलवार क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १२५. | १५३६ / वैशाख कुन्थुनाथ की धर्मनाथ पंचायती , नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ५ धातुप्रतिमा पर | जैन मंदिर, बडा भाग १, उत्कीर्ण लेख बाजार, कलकत्ता लेखांक १०९ १२६. | १५३६ / वैशाख खरतरगच्छीय बड़ा मुनि कान्तिसागर, सुदि ८ जिनालय, तुलापट्टी, पूर्वोक्त, भाग १, रविवार कलकत्ता लेखांक २३६ १२७. | १५३९ आषाढ़ पद्मप्रभ पंचतीर्थी | पंचायती मन्दिर, विनयसागर, सुदि २ का लेख जयपुर पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक ८१६ १२८. | १५४२ | फाल्गुन संभवनाथ की | चन्द्रप्रभ जिनालय, वही, भाग १, वदि ७ प्रतिमा का आमेर लेखांक ८३२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास लेख Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क संवत् १२९. १३०. १३१. १३२. तिथि १५४२ फाल्गुन वदि २ १५४३ | मार्गशीर्ष सुदि २ सोमवार १५४६ माघ वदि ८ सोमवार १५४८ | वैशाख सुदि ५ आचार्य का नाम " .? धनेश्वरसूरि प्रतिमालेख / स्तम्भलेख चन्द्रप्रभ की पंचतीर्थी का लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा का लेख वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा का लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान वही चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर | महावीर जिनालय, भिनाय शांतिनाथ जिनालय, (नाहटों में) बीकानेर संदर्भ ग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, | लेखांक १२३१ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ११०९ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८४२ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १८३४ नाणकीयगच्छ m Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३३. | १५५२ / मार्गशिर आदिनाथ की | शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि २ धातुप्रतिमा का | वीरमगाम पूर्वोक्त, भाग १, रविवार लेखांक १५०० १३४. | १५५३ माघ धातुपंचतीर्थी का | जैन मन्दिर, आबू, भाग ५, सुदि ६ लेख ब्राह्मणवाड़ा लेखांक २९६ सोमवार १३५. १४५७ / मार्गशिर महेन्द्रसूरि शांतिनाथ की | शीतलनाथ नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ९ पंचतीर्थी का जिनालय, उदयपुर | भाग २, शुक्रवार लेख लेखांक १०३१ १३६. | १५५९ | आषाढ़ धनेश्वरसूरि श्रेयांसनाथ की शान्तिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, सुदि १० के पट्टधर प्रतिमा का लेख | (नाहटों में) लेखांक १८२० बुधवार महेन्द्रसूरि बीकानेर जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ - - | लेख क्रमाङ्क |संवत् तिथि । आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १३७. १५६१ / फाल्गुन | शांतिसूरि आदिनाथ की सुमतिनाथ विनयसागर, सुदि ८ प्रतिमा का लेख | जिनालय, रतलाम पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ९१४ १३८. १४६४ | ज्येष्ठ यशोभद्रसूरि | पंचतीर्थी का पद्मप्रभ जिनालय नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ५ के संतानीय चूड़ी वाली गली, भाग २, शुक्रवार शांतिसूरि लखनऊ लेखांक १५५६ १३९. १५६६ फाल्गुन शांतिसूरि विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, वही, सुदि ३ प्रतिमा का लेख घोमावतों की पोल, भाग २, सोमवार नागौर लेखांक १३२८ १४०. १५६६ | फाल्गुन विमलनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विनयसागर, सुदि ३ प्रतिमा का लेख | नागौर पूर्वोक्त, भाग १, सोमवार लेखांक ९३० ६६३ Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क | संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १४१. | १५६६ | फाल्गुन सुविधिनाथ की | मुनिसुव्रत जिनालय, वही, भाग १, सुदि ३ पंचतीर्थी का मालपुरा लेखांक ९३२ सोमवार लेख १४२. | १५६७ / वैशाख सुमतिनाथ की खरतरगच्छीयवही, भाग १, सुदि ४ प्रतिमा का लेख | आदिनाथ लेखांक ९३४ जिनालय, कोटा १४३. | १५६९ | ज्येष्ठ | श्रीभारुद्रसूरि(?) | शीतलनाथ श्रेयांसनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, सुदि १२ चौबीसी प्रतिमा | फतहशाह का पोल, पूर्वोक्त,भाग १, शुक्रवार का लेख अहमदाबाद लेखांक १३६९ १४४. | १५७० माघ महेन्द्रसूरि आदिनाथ खरतरगच्छीय विनयसागर, सुदि ३ | के पट्टधर पंचतीर्थी का उपाश्रय, किशनगढ़ | पूर्वोक्त, भाग १, रविवार ___शांतिसूरि लेख लेखांक ९४३ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ - क्रमाङ्क | संवत् | तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । प्रतिष्ठा स्थान संदर्भ ग्रन्थ स्तम्भलेख १४५. १५७६ / माघ शांतिसूरि | शांतिनाथ की | जैनमंदिर, राधनपुर मुनि विशालविजय, सुदि ५ प्रतिमा पर पूर्वोक्त, रविवार उत्कीर्ण लेख लेखांक ३३१ १४६. १५७६ | आषाढ़ ....? पंचतीर्थी का लेख जैनमंदिर, रोहेड़ा नाहर, पूर्वोक्त, सुदि ९ (सिरोही) भाग २, रविवार लेखांक २०८७ एवं आबू, भाग-२, लेखांक ५९६ १४७. | १५७ १५७७ शांतिसूरि शांतिनाथ की सुपार्श्वनाथ जिनालय नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख (नाहटो में) लेखांक १७८० बीकानेर Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क सवत् १४८. १४९. १५८३ १५०. १५८७ १५१. १५८१ पौष १५२. तिथि सुदि ५ शुक्रवार माघ सुदि ८ गुरुवार १५९० वैशाख १५९५ माघ सुदि १२ आचार्य का नाम सिद्धसेनसूरि " सिद्धरत्नसूरि सिद्धसेनसूरि 11 प्रतिमालेख / स्तम्भलेख सुविधिनाथ की पंचतीर्थी का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख अजितनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान पार्श्वनाथ जिनालय, वही, जांगलू (बीकानेर) चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, पीपला शेरी, बड़ोदरा शांतिनाथ जिनालय करबटीया संदर्भ ग्रन्थ शांतिनाथ जिनालय, बीकानेर लेखांक २२५७ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६५ वही, भाग १, लेखांक ४८७ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ११४४ अजितनाथ जिनालय, वही, लेखांक १५५७ बीकानेर m m .m जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । प्रतिष्ठा स्थान | संदर्भ ग्रन्थ क्रमाङ्क |संवत् । तिथि | आचार्य का नाम | प्रतिमालेख/ । स्तम्भलेख १५३. १५९९ माघ महेन्द्रसूरि प्रतिमा लेख सुदि.... गुरुवार नाणकीयगच्छ | जैन देरासर, गेरीता बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६६८ - - Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित . नाणकीय गच्छ की गुर्वावली वि० सं० ११०२ [सर्वप्रथम प्रतिमा लेख, जिसमें प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम अनुपलब्ध है] वि० सं० ११३३ वि० सं० ११४१-११४३ धनेश्वरसूरि [प्रथम] वि० सं० ११९८ महेन्द्रसूरि [प्रथम] वि० सं० १२१७-१२३४ शान्तिसूरि [प्रथम] वि० सं० १२३५-१२६५ सिद्धसेनसूरि [प्रथम] वि० सं० १२६८-१३१३ धनेश्वरसूरि [द्वितीय] वि० सं० १३१४-१३२९ महेन्द्रसूरि [द्वितीय] वि० सं० १३३५-१३४६ शांतिसूरि [द्वितीय] वि० सं० १३४७-१३५६ सिद्धसेनसूरि [द्वितीय] वि० सं० १३७२-१३९९ Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ धनेश्वरसूरि [तृतीय ] | महेन्द्रसूरि [ तृतीय ] | शांतिसूर [ तृतीय ] | सिद्धसेनसूरि [तृतीय ] | धनेश्वरसूरि [ चतुर्थ ] 1 महेन्द्रसूरि [ चतुर्थ ] I शांतिसूरि [ चतुर्थ] I सिद्धसेनसूरि [ चतुर्थ ] 1 [] महेन्द्रसूरि [पंचम ] 1 शांतिसूरि [पंचम ] I सिद्धसेनसूरि [पंचम ] धनेश्वरसूरि [षष्ठम्] I ६६९ वि० सं० १४०९ - १४३४ वि० सं० १४३६ - १४६९ वि० सं० १४६९ - १४८७ वि० सं० ? कोई प्रतिमा लेख उपलब्ध नहीं । वि० सं० १४७४ - १४८५ ? वि० सं०................. कोइ प्रतिमा लेख उपलब्ध नहीं । वि० सं० १४९२ - १५१० वि० सं० १५११ - १५१३ वि० सं० १५१६- १५५३ वि० सं० १५५७ - १५५९ वि० सं० १५६१ - १५७७ वि० सं० १५८१ - १५९५ वि० सं० कोई प्रतिमा लेख नहीं मिलता । Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास -- महेन्द्रसूरि [षष्ठम्] वि० सं० १५९९ [एकमात्र प्रतिमा लेख एवं नाणकीय गच्छ का उल्लेख करने वाला अन्तिम साक्ष्य] उक्त तालिका से स्पष्ट है कि यह गच्छ ११वीं शती के उत्तरार्ध में किसी समय अस्तित्त्व में आया और १६वीं शती तक विद्यमान रहा । इस प्रकार लगभग ४०० वर्षों तक यह गच्छ विद्यमान रहा । जैन साहित्य के विशाल भंडार में एक भी ऐसा ग्रन्थ नहीं है, जिसकी रचना का श्रेय इस गच्छ के किसी विद्वान् को दिया जा सके। यह थी इस गच्छ के अनुयायी मुनिजनों की विद्याभ्यास की स्थिति ! फिर भी इस गच्छ के मुनिजन लम्बे समय तक अपने अनुयायी श्रावकों को जिनालयों और जिनप्रतिमाओं के निर्माण की प्रेरणा देते हुए समाज के एक बड़े वर्ग पर अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल रहे। सन्दर्भ सूची :१. सं. १२७२ वर्ष चैत्र वदि ८ शनौ पुस्तिकेयं लिखितेति । श्री नाणकीयगच्छे हरीराह (हृतरोह) वास्तव्य गोसा भगिनी पवइणि श्रीजयदेवोपाध्यायपठनार्थं प्रकरणपुस्तिका दत्ता | Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandaras at Pattan, P. 176, जैनपुस्तक प्रशस्तिसंग्रह (संपा०- मुनि जिनविजय) पृ० ११५ सं० १५९२ वर्षे शाके १४५७ प्रवर्तमाने वैशाख शुक्लपक्षे तृतीया तिथौ रवौ वारे । मृगशिर नक्षत्रे । श्री मेड़तानगरे । राजाधिराज श्रीवीरमदेवराज्ये। श्रीओसवाल ज्ञातीय । श्रीऋषभगोत्रे । को० परिणर्थरे । भा० रयणादे पुत्र को० धरमसी । को० नेतसी को० भीमसी । षीमा हरचंद । को० नेतसी भार्या नायकदे । सूरांणी Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणकीयगच्छ ६७१ पीहरनउ नाम सरूपां । को० श्री नेतस्यंघेन । श्रीनाणावालगच्छे मुनि श्री शांतिसूरि संताने भ० श्री सिद्धसेनसूरि श्री धनेसरसूरि श्री महेद्रसूरि श्री शांतिसूरि तत्पट्टे श्रीसिद्धसेणसूरि जयवंता वा० श्री भावसुन्दरेण प्रदत्तवान् । सुराणां पुण्यार्थं लिषापितवान् ॥ शुभं भवतु || श्रीप्रशस्ति संग्रह : संपा० - अमृतलाल मगनलाल शाह ( अहमदाबाद वि० सं० १९९३) भाग २, क्रमांक ३३४ पृ० ९३ मुनि जयन्तविजय- संपा० अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह (आबू, भाग-५) लेखांक ३६७. वही, लेखांक ३६८. वही, लेखांक ३६९. बुद्धिसागरसूरि - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ११७९. ७. मुनि जयन्तविजय- पूर्वोक्त, लेखांक ३१८. ८. वही, लेखांक ३७१. m 3 Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Notes Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास, KIRIT GRAPHICS 09898490091 Jain Education Intemational ,