________________
के वटेश्वर क्षमाश्रमण को अपना पूर्वज बताया है । इस ग्रन्थ का सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य संवत् १०८४ का है। नमिसाधु षडावश्यकसूत्रवृत्ति ( संवत् १९२२), काव्यलंकारटिप्पण (संवत् १९२५), शालिभद्रसूरि - सटीक बृहद्संग्रहणीप्रकरण (संवत् ११३९), वादीवेताल शान्तिसूरि- उत्तराध्ययनसूत्र पाइयटीका । इन्हीं की जीवविचार प्रकरण, चैत्यवन्दन महाभाष्य, बृहद्शान्तिस्तवन, जिनस्त्रात्रविधि प्राप्त होती है । इन्हों ने महाकवि धनपाल कृत तिलकमंजरी का संशोधन किया था और विक्रम संवत् १०४० में उज्जयन्तगिरि पर संलेखना द्वारा अपना शरीर त्याग किया था । इस गच्छ में सर्वदेवसूरि, विजयसिंहसूरि और विजयशान्तिसूरि इन तीन नामों की पुनरावृत्ति होती रहती है । वटेश्वर क्षमाश्रमण का समय ई.सन् ६७५ से ७२५ माना जाता है। संवत् १०८४ से १५६३ तक २१ लेख और १९१८ से १३३४ तक १३ लेख प्राप्त होते हैं ।
१४. धर्मघोषगच्छ - चन्द्रकुलीय परम्परा में इस गच्छ का राजगच्छ के नाम से उल्लेख मिलता है। श्री धर्मघोषसूरि से यह गच्छ धर्मघोषगच्छ कहलाया । मैंने देखा है कि धर्मघोपगच्छ के अन्तिम यति गोपजी करके नागोर में रहते थे । यशोभद्रसूरि आगमिकवस्तुविचारसारवृत्ति, रविप्रभसूरिधर्मघोषसूरि स्तुति, प्रद्युम्नसूरि - विचारसारविवरण, पृथ्वीचन्द्रसूरिकल्पसूत्रटिप्पणक प्राप्त होते हैं । पुस्तक प्रशस्तियों में १५५० की लघुक्षेत्रसमासवृत्ति आदि प्राप्त होती हैं । संवत् १३०४ से १६९१ कल्याणसागरसूरि तक २१० लेख प्राप्त होते हैं ।
१५. नाणकीयगच्छ - चैत्यवासी गच्छों में नाणकीयगच्छ का प्रमुख स्थान है । अर्बुदमण्डल के अन्तर्गत नाणा स्थान से यह गच्छ ११वीं शती में अस्तित्व में आया है । इस गच्छ के शान्तिसूरि पुरातन आचार्य माने गए हैं। शान्तिसूरि, सिद्धसेनसूरि, धनेश्वरसूरि और महेन्द्रसूरि इन चार पट्टधर आचार्यों की पुनरावृत्ति होती गई है। लेखन प्रशस्तियों में १२७२ की
Jain Education International
26
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org