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चन्द्र गच्छ
४११ रत्नाकरसूरि (वि० सं० १३०८ / ई. सन्
१२५२ में उत्तराध्ययनसूत्र
के प्रतिलिपिकर्ता) ४. पिण्डविशुद्धिसावचूरि की पुस्तक प्रशस्ति - वि० सं० १४१०/ ईस्वी सन् १३५४ में देवकुलपाटक में किन्हीं आनन्दरत्नगणि के परोपकारार्थ उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि की गयी । यह बात उक्त प्रति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है । इस प्रशस्ति में चन्द्रगच्छ के नायक सोमसुन्दरसूरि, उनके शिष्य साधुराजगणि आदि का उल्लेख है।
सोमसुन्दरसूरि
साधुराजगणि
साधुराजगणिशिष्य (?) ५. युगप्रधानयंत्र की प्रतिलिपिप्रशस्ति - देवेन्द्रसूरि द्वारा प्रणीत युगप्रधानयंत्र की एक प्रति वि० सं० १४१३/ईस्वी सन् १३५७ में चन्द्रगच्छीय कीर्तिभुवन द्वारा लिपिबद्ध की गयी । इसकी प्रशस्ति२२ में प्रतिलिपिकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
चन्द्रगच्छीय सोमतिलकसूरि
उपाध्याय हंसभुवनगणि
कीर्तिभुवन
(वि० सं० १४१३/ईस्वी सन् १३५७ में युगप्रधानयंत्र के प्रतिलिपिकार)
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