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________________ ५५४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास धर्मघोषसूरि I यशोभद्रसूरि Jain Education International T रविप्रभसूरि ( धर्मघोषसूरिस्तुति के कर्त्ता ) उदयप्रभसूरि ( व्याख्याकार) ३ - विचारसारविवरण - ९०० गाथाओं की इस रचना के कर्त्ता धर्मघोषगच्छीय प्रद्युम्नसूरि हैं। रचना के अन्त में उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - धर्मघोषसूरि देवप्रभसूरि I प्रद्युम्नसूरि ( रचनाकार) ४- कल्पसूत्रटिप्पनक' - यह धर्मघोषगच्छीय पृथ्वीचन्द्रसूरि की रचना है । रचना के अन्त में रचनाकार ने प्रशस्ति के अन्तर्गत अपनी गुर्वावली का उल्लेख तो किया है, परन्तु ग्रन्थ के रचनाकाल का कोई निर्देश नहीं किया है । इनका काल वि० सं० की १३ वीं शताब्दी के द्वितीय चरण के आस-पास माना जा सकता है । कल्पसूत्रटिप्पनक की वि० सं० १३८४ की एक प्रति पाटन के ग्रन्थ भंडार में संग्रहीत है । इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार द्वारा उल्लिखित अपनी गुरु- परम्परा इस प्रकार है शीलभद्रसूरि धर्मघोषसूरि T यशोभद्रसूरि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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