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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
कक्कसूरि
वि० सं० १५३४
वाचक आसदेव
सावदेवसूरि
वि० सं० १५३६-१५५६ के
वाचक भोजदेव
वाचक जयतिलक नन्नसूरि
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मध्य ३ प्रतिमा लेख वि० सं० १५४९-१५७३ के मध्य ७ प्रतिमा लेख वि० सं० १५७९-१५९५ के मध्य ३ प्रतिमा लेख
कक्कसूरि
वाचक देवकलश
वाचक
देवसुन्दर
सावदेवसूरि
वाचक देवमूर्ति
(कोई प्रतिमा लेख उपलब्ध नहीं)
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वाचक
नन्नसूरि
वि.सं. १६११-१६१२ के देवप्रभ
२ प्रतिमा लेख [वि० सं० १६१९ में रायपसेणियसुत्त के प्रतिलिपिकर्ता]
उक्त तालिका से स्पष्ट है कि वि० सं० की १२वीं शती के उत्तरार्ध में यह गच्छ अस्तित्व में आया और सत्रहवीं शती के प्रथम चरण तक विद्यमान रहा । ४०० वर्षों के दीर्घकाल में इस चैत्यवासी गच्छ के आचार्यों
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