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२. प्राचीन उल्लेख - प्राचीन प्रतिष्ठापित मूर्तियों, शिलालेखों एवं पादुकाओं के लेखों का आधार मुद्रित से लिया गया है।
३. प्राचीन ताम्रपत्रादि लेखों के उल्लेखों का आधार लिया गया है। ४. ग्रन्थ रचनाओं की प्रशस्ति का आधार मुद्रित से लिया गया है और लेखन प्रशस्तियों का भी आधार लिया गया है।
द्वितीय अध्याय में कल्पसूत्र की द्वितीय वाचना स्थिविरावली का आधार दिया है और इसमें इस स्थिविरावली के अनुसार श्रमण भगवान महावीर के शिष्य गौतम से लेकर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक पूर्ण परम्परा दी है। पूर्ण परम्परा देते हुए इसमें उल्लिखित गण, संघ और कुलों का पूर्ण विवरण दिया है। तृतीय अध्याय में श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय दिया गया है।
इन लेखों के आधार पर लेखक ने इस ग्रन्थ का निर्माण किया है । लेखक स्वयं स्वीकार करता है कि कोटिकगण, चन्द्रकुल, वज्रशाखा सबसे प्राचीन परम्परा रही। किन्तु अन्य गच्छों के साथ इस कोटिकगण का या वज्रशाखा का क्या संबंध रहा है इस पर कोई प्रकाश नहीं डाला गया है । लेखक ने तपागच्छ, अंचलगच्छ और खरतरगच्छ के संबंध में इस ग्रन्थ में विचार नहीं किया है क्योंकि तपागच्छ का इतिहास और अंचलगच्छ का इतिहास लेखक ने स्वयं ने लिखा है और खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास स्वयं (महोपाध्याय विनयसागर) ने लिखा है अत: इन तीन गच्छों को छोड़ दिया गया है । चन्द्रकुल के संबंध में विचार अवश्य किया गया है और चन्द्रकुल से संबंधित गच्छों का भी उल्लेख किया गया है। जो कि आगे वर्णित है।
गच्छों के नामकरण के सम्बन्ध में अलग-अलग उल्लेख प्राप्त होते हैं। कई गच्छ ग्रामों के नाम से सम्बद्ध है, कई गच्छ आचार्यों के नाम से सम्बद्ध है और कई गच्छ मान्यता भेद से सम्बद्ध है । उसमें ग्रामों के नाम से जो गच्छ प्रचलित हुए हैं, वे निम्न हैं:
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