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________________ गम शब्द 'गम्लु गतौ' इस धातु से गच्छ शब्द निष्पन्न हुआ है। जिसका धातु के अनुसार अर्थ गमन होता है। ये गत्यर्थाः ते ज्ञानार्थाः' व्युत्पत्ति से गच्छ शब्द निष्पन्न होता है। ___ ८४ गच्छों की मान्यता परम्परानुसार रही है। विक्रम संवत् ९९४ में (तपागच्छ पट्टावली पृष्ठ ५३) उद्योतनसूरि ने अर्बुदाचल के समीप टेली ग्राम की सीमा में रात्रि के समय शुभ योग देखकर सर्वदेवसूरि आदि आठ आचार्यों की पदस्थापना की। वहीं से वटगच्छ, बृहद्गच्छ चला। तभी से ८४ गच्छों की परम्परा चल पड़ी। खरतरगच्छ की परम्परा के अनुसार श्री वर्द्धमानाचार्य जो कि ८४ मठों के अधिपति थे, चैत्यवासी आचार्य रहे। उन्होंने चैत्यवास से विरक्त होकर उद्योतनसूरि के समीप दीक्षा ग्रहण की। ८४ मठों की मान्यता ही ८४ गच्छों के रूप में प्रचलित हो गई। श्री वर्द्धमानसूरि के शिष्य श्री जिनेश्वरसूरि प्रथम हुए। तभी से ८४ गच्छों की परम्परा सभी को मान्य हो गई किन्तु कोई ऐतिहासिक प्रमाणों के अभाव में ऐसा नहीं कहा जा सकता। दसवीं शताब्दी से लेकर सत्रवहीं शती तक में जितने भी गच्छ उपलब्ध थे वे सब ८४ गच्छों में सम्मिलित होते गए और ८४ की मान्यता दृढ़ होती गई। ___ योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने गच्छमत प्रबन्ध नामक पुस्तक में इन प्राप्त गच्छों का उल्लेख और इतिवृत्त दिया है। डॉ. शिवप्रसाद ने इस पुस्तक विविध गच्छ पट्टावली संग्रह में ३८ गच्छों का विवरण दिया है। अध्याय १, गच्छों के इतिहास के मूल स्रोत में गच्छों की प्रारम्भिक स्थिति का अवलोकन करते हुए प्रारंभिक स्वरूप का विवेचन किया गया है। १. पट्टावली - पट्टावलियों में पट्टधर आचार्यों का ही वर्णन किया जाता है अन्य आचार्यों अथवा उपाध्यायों का वर्णन नहीं रहता है। 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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