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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ८. श्रीपत्तनाख्यनगरे रविविश्व वर्षे ।
पार्श्वप्रभोश्चरितरत्नमिदं ततान ।। १४ ॥ इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में पं० श्री हरगोविन्ददासजी ने प्रशस्ति पद्य में उल्लिखित रविविश्व वर्ष का अर्थ १३१२ किया है जो भ्रामक प्रतीत होता है, क्योंकि रवि - १२
और विश्व १४ गणना ही उचित है। इस आधार पर भावदेवसूरि विक्रम सम्वत् की १५वीं शती के विद्वान् सिद्ध होते हैं।
यह ग्रन्थ यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, काशी से ई० सन् १९१२ में प्रकाशित हुआ है। ९. Muni Punyavijaya, Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss in the
Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay Part II G.O.S. No. 149, pp. 432-33 No. 278.
मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगुर्जरकविओ, भाग ३, खंड १, पृष्ठ ५३०-३१ । ११. वही, भाग १, पृष्ठ १०५; शीतिकंठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, मरु -
गुर्जर, भाग १, पृष्ठ ५३७-३८ । १२. अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा० श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक २४५,
पृष्ठ ६४। १३. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगुर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ ५८३, Vidhatri ___Vora, Ed. Catalogue of Gujarati Mss. Muni PunyavijayaJi's
Collection, L.D. Siris No. 71. Ahmedabad 1978, P. 610. १४. मुनि कांतिसागर, संपा० जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ५। १५. मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ३१९ ।
सोहनलाल पटनी, संपा० अर्बुद परिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मन्दिरावलि,
सिरोही २००२ ई०, लेखांक १, पृष्ठ १०७ । १६. अगरचन्द नाहटा, "खेड़ का जैन शिलालेख", जैनसत्यप्रकाश, जिल्द XVIII
पृष्ठ १८७-९० । मुनि कांतिसागर, संपा० जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ५ । मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, लेखांक १८ अ-सोहनलाल पटनी,
पूर्वोक्त, पृष्ठ. १०७, ३१९ । १९. अगरचंद नाहटा - 'खेड़ का जैन शिलालेख जैनसत्यप्रकाश, जिल्द XVIII,
पृ० १८७-९० । २०. अगरचन्द नाहटा, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०९ ।
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