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________________ काशहद गच्छ २९९ सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय में रखी पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है ।" लेख का मूलपाठ इस प्रकार है सं० १४६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रे उपकेराज्ञा ० ० सांगणभार्यासुहवदे-पुत्रघणसीहेन सु० मेघासहितेन पितृपितृव्यराणानिमित्तं श्री पार्श्वनाथबिंबं का० प्र० काशहृदगच्छे श्रीदेवचन्द्रसूरिभिः ॥ वि० सं० की १५वीं शती का द्वितीय लेख वि० सं० १४७२ / १४१६ ई० का है जो धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । श्री अगरचन्द नाहटा ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है सं० १४७२ वर्ष फा॰ सु० ९ श्रीकासद [काशहद] गच्छे उएस ज्ञा० मोटिलागोत्रे . जयता पु० रत्ना भा० रत्नसिरि पु. धणसीहेन पित्रोः श्रेयसे श्री धर्मनाथ [[ ] कारित प्रति० श्री उजोअण [ उद्योतन ] सूरिभिः ॥ उक्त प्रतिमा आज चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर में है काशहदगच्छ का उल्लेख करने वाला यह अंतिम अभिलेखीय साक्ष्य है I काशहृदगच्छीय किन्हीं देवचन्द्रसूरि के शिष्य उपाध्याय देवमूर्ति द्वारा रचित विक्रमचरित [रचनाकाल वि०सं० १४७१ के आसपास] नामक एक कृति मिलती है । १३ इस कृति की दो हस्तलिखित प्रतियां मेदपाट । [मेवाड़] के शासक कुम्भकर्ण [वि०सं० १४८९ - १५२४ / १४३३ -१४६८ ई०] के राज्य में लिखी गयीं। प्रथम प्रति वि० सं० १४९२ / १४३६ ई० में वेसग्राम नामक स्थान पर ग्रन्थकार के गुरु देवचन्द्रसूरि के शिष्य उद्योतनसूरि पट्टधर सिंहरि ने स्व पठनार्थ वाचनाचार्य शीलसुन्दर से लिखवायी । द्वितीय प्रति उक्त सिंहसूरि ने ही उक्त शासक के शासनकाल में ही वि० सं० १४९९/१४४० ई० में महीतिलक से लिखवायी । अर्थात् ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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