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________________ ३०० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देवचन्द्रसूरि उपाध्याय देवमूर्ति उद्योतनसूरि [वि०सं० १४७१/१४१५ ई० के आसपास विक्रमचरित अपरनाम सिंहासनद्वात्रिंशिका के रचनाकार] सिंहसूरि [वि०सं० १४९२ और १४९६ में इन्होंने विक्रमचरित की प्रतिलिपि करायी] वि० सं० १४६१/१४०५ ई० के प्रतिमालेख में उल्लिखित देवचन्द्रसूरि और वि०सं० १४७२/१४१६ ई. के प्रतिमालेख में प्रतिष्ठापक के रूप में वर्णित उद्योतनसूरि को विक्रमचरित की प्रशस्ति में उल्लिखित देवचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर उद्योतनसूरि से समसामयिकता और गच्छसाम्य के आधार पर अभिन्न माना जा सकता है। देवचन्द्रसूरि [वि०सं० १४६१/१४०५ ई०] प्रतिमालेख उपाध्याय देवमूर्ति [वि०सं० १४७१/१४१५ ई. के आसपास विक्रमचरित के रचनाकार] उद्योतनसूरि वि०सं० १४७२-१४१६ ई.] प्रतिमालेख सिंहसूरि [वि०सं० १४९२ और १४९५ में उन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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