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________________ ३०१ काशहद गच्छ विक्रमचरित की प्रतिलिपि करायी] उक्त साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के कुल ९ मुनिजनों के नामों का पता चलता है। इनमें से उद्योतनसूरि और सिंहसूरि का तीन बार और देवचन्द्रसूरि का दो बार उल्लेख आया है अर्थात् देवचन्द्रसूरि, उद्योतनसूरि और सिंहसूरि का पट्टधर आचार्यों के रूप में पुनः पुनः नाम आता है। अतः यह कहा जा सकता है कि काशहृदगच्छ में पट्टधर आचार्यों के यहीं तीन नाम पुनः पुनः प्राप्त होते रहे । संख्या की दृष्टि से साक्ष्यों की विरलता तथा उपलब्ध साक्ष्यों से प्राप्त विवरणों की सीमितता आदि कारणों से इस गच्छ के बारे में विशेष विवरणों का अभाव सा है। फिर भी उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर विक्रम सम्वत् की १३वीं शती से १५वीं शती के अन्त तक लगभग ३०० वर्ष पर्यन्त इस गच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध होता है। इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की सीमितता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अन्य गच्छों की अपेक्षा इस गच्छ के मुनिजनों और उनके अनुयायी श्रावकों की संख्या अधिक न थी। १६वीं शती से इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों का पूर्णतः अभाव है, अत: यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि इस गच्छ के मुनि और श्रावक इस समय तक किन्ही अन्य गच्छ में सम्मिलित हो गये होंगे। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका निर्मित की जा सकती है, जो इस प्रकार है ? उद्योतनसूरिसंतानीय [वि०सं० १२२२/११६६ ई.] प्रतिमालेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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