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________________ २६. मोढगच्छ - मोढेरक। २७. वायडगच्छ - वायड। २९. हारीजगच्छ - हारीज, शंखेश्वर के पास। कई गच्छ संस्थापक आचार्यों के नाम से प्रसिद्ध हुए जैसेयशोभद्रसूरि से यशोभद्रगच्छ। सैद्धान्तिक मतभेद यह वैचारिक मतभेद के कारण जो गच्छ उत्पन्न हुए हैं उनमें पूर्णिमापक्ष (सार्द्धपूर्णिमा पक्ष) आदि। इसके पश्चात् लेखक द्वारा लिखित गच्छों का वर्णन अकारानुक्रम से प्राप्त होता है। १. अड्डालिजीय गच्छ - इसके केवल १२वीं शताब्दी के ४ प्रतिष्ठा लेख ही प्राप्त होते हैं। २. आगमिक गच्छ - यह वडगच्छ की शाखा मानी जाती है और यहीं से संवत् ११४९ में पूर्णिमागच्छ का प्रारम्भ हुआ। पूर्णिमागच्छ की एक शाखा तेरहवीं शताब्दी में आगमिक गच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई । आगमिक गच्छ का यह अपरनाम त्रिस्तुतिकमत हुआ। आगमिक गच्छ की शाखाओं में धन्धूकीया शाखा और विडालंबीया शाखा भी प्राप्त होती है। मुनिसागरसूरि रचित आगमिकगच्छीय पट्टावली में शीलगुणसूरि से लेकर मुनिसागरसूरि तक पट्टावली प्राप्त होती है और दूसरी पट्टावली शीलगुणसूरि से लेकर मेघरत्नसूरि तक प्राप्त होती है। साहित्यिक साक्ष्यों में हेमरत्नसूरि के शिष्य साधुमेरु द्वारा पुण्यसार रास और अन्य रचनाओं में अमररत्नसूरि फागु प्राप्त होता है। क्षमाकलश द्वारा १५५१ में रचित ललितांगकुमार रास, मतिसागरसूरि द्वारा १५९४ में रचित लघुक्षेत्रसमास चौपई, उदयधर्मसूरि ने मलयसुन्दरी रास, मुनिसुन्दरसूरि ने १४९९ में रचित धर्मकल्पद्रुम, शीलसिंहसूरि रचित कोष्ठकचिन्तामणि स्वोपज्ञ टीका और वरसिंहसूरि संवत् १६८१ में रचित आवश्यक बालावबोधवृत्ति आदि भी प्राप्त है। आगमिक गच्छ के संवत् १४२० से लेकर १६८३ तक २१८ मूर्तिलेख प्राप्त हैं। 20 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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