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________________ ३. उपकेशगच्छ - कहा जाता है कि भगवान महावीर के ७०वें वर्ष श्री रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर (ओसिया) में ओसवाल जाति की स्थापना की थी। लेखक लिखता है कि- परम्परानुसार इस गच्छ के आदिम आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीर संवत् ७० में ओसवाल जाति की स्थापना की, परन्तु किसी भी ऐतिहासिक साक्ष्य से इस तथ्य की पुष्टि नहीं होती। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ओसवालों की स्थापना और इस गच्छ की उत्पत्ति का समय ईस्वी सन् की आठवीं शती के पूर्व नहीं माना जा सकता। (पृष्ठ ४६) । उपकेशगच्छ चैत्यवासी आम्नाय का था। इसकी आवान्तर शाखाओं का भी जन्म हुआ। १२६६ में द्विवन्दनीक शाखा, १३०८ में खरतपाशाखा और १४९८ में खादिरि शाखा अस्तित्व में आयी। इस परम्परा में कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि और सिद्धसूरि इन तीन नामों की पुनरावृत्ति होती रहती थी। मेरे देखते-देखते श्री प्रेमसुन्दरजी फलोदी और मुकुन्दसुन्दरजी नागौर में विद्यमान थे और अभी पद्मसुन्दर नामक यति विद्यमान है। आचार्यों में अन्तिम देवगुप्तसूरि २०वीं सदी में विद्यमान थे। देवगुप्तसूरि नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति (१०७४), सिद्धसूरि (११९२) क्षेत्रसमासटीका, कक्कसूरि; नाभिनन्दनजिनोद्धर प्रबन्ध अपरनाम शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारप्रबन्ध (१३९३), कक्कसूरि-उपकेशगच्छप्रबन्ध (१३९३)। उपकेशगच्छपट्टावली- (१५वीं सदी का अन्त) उपकेशगच्छपट्टावली २०वीं शताब्दी। श्री देवगुप्तसूरि (ज्ञानसुन्दरजी) ने भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास दो भागों में लिखा है, जो वस्तुतः वह इतिहास भाटों की बिरुदावलियों के आधार पर लिखा गया है। कहा जाता है कि वीर निर्वाण संवत् ८४ में श्री रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर और कोरण्टगच्छ के मन्दिरों की प्रतिष्ठा एक साथ करवाई थी। संवत् १०११ से १९१८ तक १२९ मूर्ति लेख प्राप्त होते हैं। लेखन प्रशस्तियों में उत्तराध्ययनसूत्र, सुखबोधावृत्ति (१४८९), धर्मरुचि-अजापुत्रचौपई प्राप्त हैं। 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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