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________________ २०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास रचना की प्रशस्ति में भी वाचक विनयसमुद्र ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - रत्नप्रभसूरि सिद्धसूरि हर्षसमुद्र कक्कंसूरि विनयसमुद्र [वि०सं० १६०२/ई. सन् १५४६ में मृगावतीचौपाई के रचनाकार] उपकेशगच्छीय वाचक मतिशेखर द्वारा वि०सं० १५३७ में रचित मयणरेहारास की वि०सं० १५९१/ई. सन् १५३४ में लिखी गयी प्रतिलिपि की प्रशस्ति में उपकेशगच्छीय कक्कसूरि, उनके शिष्य उपा० रत्नसमुद्र और उनकी शिष्या साध्वी रङ्गलक्ष्मी का उल्लेख प्राप्त होता है। इस प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि मयणरेहारास की यह प्रतिलिपि साध्वी रङ्गलक्ष्मी के पठनार्थ लिखी गयी थी। उक्त साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसन्तानीय मुनिजनों के आचार्य परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है - द्रष्टव्य, तालिका संख्या २ : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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