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जालिहरगच्छ
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जालिहरगच्छ से सम्बद्ध छठां अभिलेख वि० सम्वत् की चौदहवीं शती के अन्तिम दशक का है । लेख का एक अंक नष्ट हो गया है, शेष अंक स्पष्ट पढ़े जा सके हैं । आचार्य विजयधर्मसूरि ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है -
स (सं)० १३९ - वैशाख शुदी (दि) ३ मोढवंशे श्रे० पाजान्वये व्य० देवा सुत व्य० मुंजालभार्याये (यर्या) व्य० रत्नदिव्या आत्मश्रेयोई (S) र्थं श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टी (ष्ठि) तं श्रीजाल्योद्धरगच्छे श्रीसर्वाणंदसु (सू) री (रि) संताने श्रीदेवसूरी (रि) पट्टभूषणमणिप्रभु श्रीहरी (रि) भद्रसूरी (रि) शिष्ये (?) सुविहितनामधेयभट्टारक श्रीचंद्रसिंहसूरी (रि) पट्ट (ट्टा) लंकरण श्रीविबुधप्रभसूरीणां श्रीपाजाब (व) सहीकायां भद्रं भवतु । इस लेख में जाल्योधरगच्छ के आचार्य विबुधप्रभसूरि की विस्तृत गुरुपरम्परा दी गयी है, जो इस प्रकार है
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१२९३ में महावीर स्वामी की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक]
सर्वाणंदसूरि |
देवसूरी
I
हरिभद्रसूरि 1
चन्द्रसूरि
विबुधप्रभसूरि
[वि० सं० १३९.....? में नेमिनाथ की प्रतिमा के
प्रतिष्ठापक ]
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