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थारापद्रगच्छ
५३७ कृष्णर्षिगच्छ के आचार्य जयसिंहसूरि ने वि० सं० ९१५ / ई० स० ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण की रचना की । इसकी प्रशस्ति° में उन्होंने वटेश्वर क्षमाश्रमण को अपना पूर्वज बतलाते हुए अपनी गुरु-परम्परा का परिचय इस प्रकार दिया है -
वटेश्वर क्षमाश्रमण
तत्त्वाचार्य
यक्षमहत्तर
कृष्णषि
जयसिंहसूरि
[वि० सं० ९१५ / ई० सन्
८५९ में
धर्मोपदेशमालाविवरण के
रचनाकार उक्त दोनों प्रशस्तियों की गुरु-परम्परा की तालिकाओं के समायोजन से उद्योतनसूरि और जयसिंहसूरि की गुरु-परम्परा की जो संयुक्त तालिका बनती है, वह इस प्रकार है :
वाचक हरिगुप्त [किसी वैराग्यप्रधान कृति के
कर्ता, तोरमाण के गुरु, मृत्यु प्रायः ई० सन् ५२९]
कवि देवगुप्तसूरि [सुपुरुषचरिय के
| रचनाकार शिवचन्द्रगणिमहत्तर [भिल्लमाल में स्थिरवास]
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