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________________ ३७ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय ४. बेगड शाखा - वि.सं. १४२२ में यह शाखा अस्तित्व में आयी। जिनेश्वरसूरि इस शाखा के प्रथम आचार्य हुए । ५. पिप्पलकशाखा - वि०सं० १४७४ में जिनवर्धनसूरि द्वारा इस शाखा का उदय हुआ । नाहटाजी के अनुसार पिप्पलक नामक स्थान से सम्बद्ध होने से यह पिप्पलकशाखा के नाम से जाना गया । इसी नाम का एक गच्छ वडगच्छीय शांतिसूरि के शिष्य महेन्द्रसूरि, विजयसिंहसूरि आदि के द्वारा वि०सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५ में अस्तित्व में आया । ६. आद्यपक्षीयशाखा - वि०सं० १५६४ में आचार्य जिनदेवसूरि से यह शाखा अस्तित्व में आयी । इस शाखा की एक गद्दी पाली में थी। ७. भावहर्षीयशाखा - वि०सं० १६२१ में भावहर्षसूरि से इसका उदय हुआ । इस शाखा की एक गद्दी बालोतरा में है । ८. लघुआचार्यशाखा - आचार्य जिनसागरसूरि से वि०सं० १६८६ में यह शाखा अस्तित्व में आयी । इसकी गद्दी बीकानेर में विद्यमान है । ९. जिनरंगसूरिशाखा - यह शाखा वि०सं० १७०० में जिनरंगसूरि से प्रारम्भ हुई । इसकी गद्दी लखनऊ में थी। १०. श्रीसारीयशाखा - वि०सं० १७०० के लगभग यह शाखा अस्तित्व में आयी, परन्तु शीघ्र ही नामशेष हो गयी। ११. मंडोवराशाखा - जिनमहेन्द्रसूरि द्वारा वि०सं० १८९२ में मंडोवरा नामक स्थान से इसका उदय हुआ। इसकी एक गद्दी जयपुर में विद्यमान थी। अगरचन्दजी नाहटा, भंवरलालजी नाहटा और महो० विनयसागरजीने इस गच्छ की साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों का न केवल संकलन और प्रकाशन किया है, अपितु उनका सम्यक् अध्ययन भी समाज के सम्मुख रखा है जो अपने आप में अद्वितीय है। चन्द्रगच्छ - चन्द्रकुल ही आगे चलकर चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । राजगच्छ, वडगच्छ, खरतरगच्छ, पूर्णतल्लगच्छ, भावडारगच्छ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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