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________________ ३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास खरतरगच्छ - चन्द्रकुल के आचार्य वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि ने चौलुक्य नरेश दुर्लभराज की राजसभा में शास्त्रार्थ में चैत्यवासियों को परास्त किया, जिससे प्रसन्न होकर राजा द्वारा उन्हें 'खरतर' का विरुद् प्राप्त हुआ । इस घटना से गुर्जरभूमि में सुविहितमार्गीय श्रमणों का विहार प्रारम्भ हो गया। जिनेश्वरसूरि की शिष्य-सन्तति प्रारम्भ में सुविहितमार्गीय और बाद में खरतरगच्छीय कहलायी । इस गच्छ में अनेक प्रभावशाली और प्रभावक आचार्य हुए और आज भी हैं । इस गच्छ के आचार्यों ने साहित्य की प्रत्येक विधाओं को अपनी लेखनी द्वारा समृद्ध किया, साथ ही जिनालयों के निर्माण, प्राचीन जिनालयों के पुनर्निर्माण एवं जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा में भी सक्रियरूप से भाग लिया। युगप्रधानाचार्यगुर्वावली में इस गच्छ के ११वीं शती से १४वीं शती के अन्त तक के आचार्यों का जीवनचरित्र दिया गया है जो न केवल इस गच्छ के अपितु भारतवर्ष के तत्कालीन राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसके अतिरिक्त इस गच्छ से सम्बद्ध अनेक विज्ञप्तिपत्र, पट्टावलियाँ, गुर्वावलियाँ, ऐतिहासिकगीत आदि मिलते हैं, जो इसके इतिहास के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं । अन्यान्य गच्छों की भांति इस गच्छ की भी कई शाखायें अस्तित्व में आयीं, जो इस प्रकार हैं - १. मधुकर शाखा - आचार्य जिनवल्लभसूरि के समय वि०सं० ११६७/ ईस्वी सन् ११११ में यह शाखा अस्तित्व में आयी। ... २. रुद्रपल्लीयशाखा - वि०सं० १२०४ में आचार्य जिनेश्वरसूरि से यह शाखा अस्तित्व में आयी । इस शाखा में अनेक विद्वान् आचार्य हुए । श्री अगरचन्द नाहटा के अनुसार वि०सं० की १७वीं शती तक इस शाखा का अस्तित्व रहा । ३. लघुखरतरशाखा- वि०सं० १३३१/ई.सन् १२७५ में आचार्य जिनसिंहसूरि से इस शाखा का उदय हुआ । अन्यान्य ग्रन्थों के रचनाकार, सुल्तान मुहम्मद तुगलक के प्रतिबोधक शासनप्रभावक आचार्य जिनप्रभसूरि इसी शाखा के थे । वि.सं. की १८वीं शती तक इस शाखा का अस्तित्व रहा । . इस गच्छ का इतिहास प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर से तीन भागों में प्रकाशित हो चुका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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