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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
उक्त प्रतिमालेखों के आधार पर द्विवंदणीकशाखा के मुनिजनों के
गुरु- परम्परा की एक तालिका बनती है, जो इस प्रकार है -
सिद्धसूरि
[वि० सं० १३३४]
२४६
रत्नप्रभसूरि
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[वि० सं० १४७९ - १५०८]
[वि० सं० १५१२ - १५४७]
[वि० सं० १५५२ - १५८९]
[वि.सं. १५६७ - १५९९]
देवगुप्तसूरि विवंदणीक / द्विवंदणीकगच्छीय कक्कसूरि के प्रशिष्य एवं देवगुप्तसूरि के शिष्य सिंहकुल ने वि० सं० १४८५ (एक अन्य प्रति में वि० सं० १५५०) में मुनिपतिचरित्र की रचना की ।
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अभिलेखीयसाक्ष्यों के आधार पर निर्मित द्विवंदणीकशाखा के मुनिजनों की उक्त तालिका में देवगुप्तसूरि नामक दो आचार्यों का उल्लेख है । मुनिपतिचरित्र की दो हस्तप्रतियों में भी इसके रचनाकाल की दो तिथियां वि० सं० १४८५ और वि० सं० १५५० दी गयी हैं। अब हमारे सामने यह प्रश्न उठता है कि रचनाकार सिंहकुल किस देवगुप्तसूरि के शिष्य थे और मुनिपतिचरित्र के रचनाकाल की कौन सी तिथि सत्य है ?
देवगुप्तसूरि
1
सिद्धसूरि
[वि०सं० १४४७]
1
कक्कसूरि
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