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________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास परिकर के नीचे का लेख बड़ा जैन मंदिर, बढवाण, (गुजरात)। ४. संवत् १२७३ वर्षे कार्तिक वदि ५ सोमे श्रीमोढ......... श्रीअड्डालिज्ज गच्छीय श्रे० आसादेवसुत श्रे० शांतिपुत्रेण व्य० उदयपातेन श्रे० षोहिणि स्वश्रेयो) (स्वश्रेयोऽर्थ) श्रीमल्लिनाथजिनविवं (बिंब) कारितमिति । परिकर के नीचे का लेख बड़ा जैन मंदिर, बढवाण, (गुजरात). जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं प्रथम लेख में जो वि० सं० ११३६ का है, जीवदेवाचार्य की परम्परा के अनुयायी एक श्रावक द्वारा शांतिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने की बात कही गयी है जबकि द्वितीय लेख में (जो वि० सं० १२०७ का है) देवसूरि की परम्परा के एक श्रावक द्वारा अजितनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने का उल्लेख है। श्वेताम्बर परम्परा में परकायप्रवेशविद्या में निपुण जीवदेवसूरि नामक एक प्रभावक आचार्य हो चुके हैं जो वायडगच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। उनका काल ईस्वी सन् की ८वीं-९वीं शताब्दी माना जाता है। यदि ऊपरकथित अभिलेखों में उल्लिखित जीवदेवसूरि और देवसूरि से वायडगच्छ के प्रवर्तक जीवदेवसूरि की ओर संकेत है तो यह कहा जा सकता है कि वायडगच्छ या वायटीयगच्छ की एक शाखा के रूप में यह गच्छ अस्तित्व में आया होगा। इस गच्छ से सम्बद्ध तृतीय और चतुर्थ लेखों से भी ज्ञात होता है कि प्रतिमा प्रतिष्ठा का कार्य इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा नहीं बल्कि श्रावकों द्वारा ही सम्पन्न होता रहा। वि० सं० १२६३ के पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिलता । अतः यह माना जा सकता है कि इस गच्छ के अनुयायी श्रमण विक्रम सम्वत् की तेरहवीं शती के अन्त तक किन्हीं अन्य प्रभावशाली गच्छों में सम्मिलित हो गये होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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