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________________ १४६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास साधुओं को गच्छ से बाहर करने की बात, जो इस पट्टावली में उद्धृत की गयी है, सत्य प्रतीत होती है । यद्यपि इस घटना का किसी अन्य समसामयिक साक्ष्य से समर्थन नहीं होता। इस पट्टावली में उल्लिखित अन्य बातें - यथा - पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा से उपकेशगच्छ की उत्पत्ति, वीरनिर्वाणसम्वत् ८४ में आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर और कोरंटपुर में एक साथ जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा आदि का किसी भी पुराने ऐतिहासिक साक्ष्य से समर्थन नहीं होता, अतः ये बातें ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वहीन उपकेशगच्छ की द्वितीय पट्टावली में भी पार्श्वनाथ की परम्परा से उपकेशगच्छ की उत्पत्ति, वीरसम्वत् ८४ में आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर और कोरंटपुर में एक ही तिथि में जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठापना का परम्परागत विवरण प्राप्त होता है । इस पट्टावली में वि०सं० १२६६ में उपकेशगच्छ से द्विवंदनीकगच्छ का प्रादुर्भाव, इसके पश्चात् वि० सं० १३०८ में खरातपा शाखा का उद्भव एवं वि० सं० १४९८ में देवगुप्तसूरि के शिष्य से खादिरी शाखा के उदय की बात कही गयी है। द्विवंदनीकगच्छ के उद्भव की बात तो अन्य पट्टावलियों से भी ज्ञात होती है किन्तु खरातपा शाखा और खादिरी शाखा के उद्भव के सम्बन्ध में अन्य किसी पट्टावली से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । चूंकि अभिलेखीय साक्ष्यों से उक्त शाखाओं का अस्तित्व सिद्ध है, अतः इस पट्टावली का उक्त विवरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। उपकेशगच्छ की तृतीय पट्टावली में भगवान् पार्श्वनाथ के पट्टधर शुभदत्त से लेकर सिद्धसूरि वि०सं० १९३५ तक लगभग २५०० वर्षों की अवधि में हुए ८४ आचार्यों के नाम, उनके काल एवं उनके समय की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का संक्षिप्त विवरण है। अनुश्रुतिपरक विवरणों से परिपूर्ण एवं अर्वाचीन होने के कारण उपकेशगच्छ के प्राचीन इतिहास के अध्ययन में उक्त पट्टावली प्रामाणिक नहीं कही जा सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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