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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
कक्कसूरि (चौलुक्यनरेश कुमारपाल [वि०सं० ११९९-१२३०]
। के समकालीन) वि०सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३१४-२३] प्रतिमालेख
सिद्धसूरि [वि०सं० १३४६-१३७३] प्रतिमालेख,
। शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारक समरसिंह के गुरु;
। वि०सं० १३५२ की उत्तराध्ययनसूत्रटीका में उल्लिखित कक्कसूरि [वि०सं० १३७६-१४१२] प्रतिमालेख; । वि०सं० १३९३/ ई० सन् १३३७ में नाभिनन्दन
जिनोद्धारप्रबन्ध एवं उपकेशगच्छप्रबन्ध के रचयिता देवगुप्तसूरि [वि०सं० १४३२-१४७६] प्रतिमालेख
सिद्धसूरि [वि०सं० १४७७-१४९८] प्रतिमालेख
कक्कसूरि [वि०सं० १४९९-१५१२] प्रतिमालेख
मुनि शीलसुन्दर
देवगुप्तसूरि [वि०सं० १५२८-१५२७] प्रतिमालेख
वाचक मतिशेखर
सिद्धसूरि वि०सं० १५१४/ई. सन् [वि०सं० १५६६-१५९६] प्रतिमालेख १४५८ में धन्नारास एवं वि०सं० १५३७/ई. सन् १४७१ में मयणरेहारास के कर्ता
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