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________________ उपकेश गच्छ हर्षसमुद्र उपा० रत्नसमुद्र कक्कसूरि . [वि०सं० १६०२ में वाचक विनयसमुद्र साध्वी रंगलक्ष्मी रचित मृगावतीचौपाई [वि०सं० १५८३ में [वि०सं० १५९१ में में उल्लिखित आरामशोभाचौपाई] इनके पठनार्थ । एवं [वि०सं० १६०२ मयणरेहारास की में मृगावतीचौपाई] प्रतिलिपि की गयी] [वि०सं० १६३४ के कर्ता प्रतिमालेख] साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय आचार्य परम्परा की उक्त तालिका में वि० सं० की ग्यारहवीं शती के मध्य हुए कक्कसूरि से लेकर विक्रम की सत्रहवीं शती के बीच हुए देवगुप्तसूरि तक के आचार्य हैं । इस तालिका में चौलुक्यनरेश कुमारपाल (वि०सं० ११९९-१२३०) के समकालीन कक्कसूरि (वि० सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख) और ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि (वि०सं० १३१४-१३२३ प्रतिमालेख) के मध्य लगभग १०० वर्षों का अन्तराल है। इस बीच कौन-कौन से आचार्य हुए, इस बारे में ग्रन्थप्रशस्तियों तथा प्रतिमालेखों से कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती, किन्तु उपकेशगच्छपट्टावली (उपकेशगच्छप्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के आधार पर निर्मित) के विवरण के आधार पर इस अन्तराल को पूर्ण किया जा सकता है। उक्त पट्टावली के अनुसार कक्कसूरि (कुमारपाल के समकालीन) के पश्चात् देवगुप्तसूरि हुये५ । यद्यपि इस देवगुप्तसूरि का कोई प्रतिमालेख नहीं मिला है, तथापि वि० सं० १२४० के आस-पास उनका समय माना जा सकता है। पट्टावली के अनुसार देवगुप्तसूरि के पट्टधर सिद्धसूरि हुए।१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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