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________________ पराजित किया था और प्रमाणनयतत्वलोकालंकार एवं उसकी स्वोपज्ञ टीका स्याद्वादरत्नाकर की रचना की थी। हरिभद्रसूरि ने आगमिकवस्तुविचारसार प्रकरण की टीका एवं प्रशमरतिप्रकरण टीका एवं रत्नप्रभसूरि ने रत्नकरावतारिका, उपदेशमाला टीका, नेमिनाथ चरित्र आदि की रचना की । हेमचन्द्रसूरि ने नाभेयनेमिद्विसंधानकाव्य की रचना की जिसका संशोधन श्रीपाल महाकवि ने किया था । इस शाखा की कई गुरु परम्परागत तालिकाएँ दी गई हैं। २९. महाहडागच्छ - चन्द्रकुल से उद्भूत गच्छों में मडाहडागच्छ भी आता है। वर्तमान मडार नामक ग्राम से इसका उद्भव हुआ था । चक्रेश्वरसूरि इस गच्छ के मुख्य आचार्य माने जाते हैं। इस गच्छ की रत्नपुरीय शाखा, जागड़ियाशाखा, जालोराशाखा आदि प्रसिद्ध है । संवत् १२८७ से लेकर १७८७ चक्रेश्वरसूरि पर्यन्त ८९ लेख प्राप्त होते हैं । लींबड़ी के हस्तलिखित जैन ग्रन्थ भंडार में संवत् १५१७ की लिखित कल्पसूत्र स्तबक और कालिकाचार्य कथा रामचन्द्रसूरि की मानी गई है। श्री पद्मसागरसूरि रचित १५वीं शताब्दी की कयवन्ना चौपई आदि प्राप्त है । १७वीं शताब्दी में सारंग नामक विद्वान् ने कवि विल्हण पंचाशिका चौपई संवत् १६३९ और कृष्ण रुक्मणीवेलि की संस्कृत टीका ( संवत् १६७८) रचना की । इसकी रत्नपुरीयाशाखा के १४ लेख प्राप्त होते हैं। जिसमें धर्मघोषसूरि, सोमदेवसूरि, धनचन्द्रसूरि, धर्मचन्द्रसूरि, कमलसूरि आदि मुख्य हैं। रत्नपुरीयशाखा के प्रतिमा लेखों में संवत् १३५० का उल्लेख मिलता है । मडाहडागच्छ की एक शाखा जाखडिया शाखा के पाँच लेख प्राप्त होते हैं। जिसमें कमलचन्द्रसूरि, आनन्दसूरि और गुणचन्द्रसूरि प्रमुख हैं । ३०. मोढ़गच्छ और मोढचैत्य - चन्द्रकुल से निष्पन्न यह गच्छ माना गया है । मोढेरा उत्तर गुजरात से इसका उद्भव माना जाता है। संवत् १३२५ कालिकाचार्य कथा की प्रतिलिपि और १३३४ प्रभावक चरित्र की प्रतिलिपि Jain Education International 34 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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