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________________ प्राप्त होती है। संवत् १५९८ की रसरत्नाकर की दाताप्रशस्ति प्राप्त होती है । अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर कई छोटी-मोटी गुरु- परम्परा की तालिकाएँ भी दी गई हैं। २८. बृहद्गच्छ - इस गच्छ के उल्लेख वाली प्राचीनतम प्रशस्तियाँ १२वीं शताब्दी के मध्य की हैं । इस गच्छ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में चर्चा करने वाली सर्वप्रथम प्रशस्ति १२३८ रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति में प्राप्त होती है। जिसके अनुसार उद्योतनसूरि ने वटवृक्ष के नीचे शुभ लग्न पर सर्वदेवसूरि सहित ८ मुनिजनों को आचार्यपद प्रदान संवत् ९९४ में किया था। नेमिचन्द्रसूरि ने आख्यानकमणिकोश ११वीं शती का प्रारम्भिक चरण में विद्यावंशावली का उल्लेख किया है। नेमिचन्द्रसूरि ने उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधाटीका संवत् १२२९ में रचना की थी । मुनिचन्द्रसूरि का परिवार विशाल था। वादीदेवसूरि के परिवार में भद्रेश्वरसूरि, रत्नप्रभसूरि, विजयसिंहसूरि आदि शिष्य-प्रशिष्यों का विशेष उल्लेख मिलता है । यहाँ भी लेखक ने चन्द्रकुलीय आचार्य वर्द्धमान, आचार्य जिनेश्वर, आचार्य जिनचन्द्र, अभयदेवसूरि का उल्लेख किया है जो कि चन्द्रकुलीय के कारण है । लेखक ने यहाँ स्वीकार किया है कि जिनवल्लभगणि वास्तव में एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे और बाद में अभयदेवसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की थी। अभयदेवसूरि के शिष्य वर्द्धमानसूरि ने मनोरमाकहा (संवत् ११४०) आदिनाथ चरित्र (संवत् ११६०) में रचना की। उसमें विक्रम संवत् ११८७ के अभिलेख में वडगच्छीय चक्रेश्वरसूरि को वर्द्धमानसूरि का शिष्य लिखा है । संवत् १२१४ के एक अभिलेख में चक्रेश्वरसूरि के दादागुरु वर्द्धमानसूरि का उल्लेख है। विद्याध्ययन की दृष्टि से यह प्रतिकूल नहीं माना जाता। मुनिचन्द्रसूरि के अनेकान्त - जयपताका टिप्पणक, उपदेशपद सुखबोधावृत्ति, धर्मबिन्दुवृत्ति, योगबिन्दुवृत्ति आदि अनेकों ग्रन्थ प्राप्त हैं। वादीदेवसूरि ने संवत् ११८१/८२ में सिद्धराज जयसिंह की सभा में कर्णाटकीय विद्वान् आचार्य कुमुदचन्द्र को Jain Education International 33 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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