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से माना जाता है किन्तु १४वीं शताब्दी के पूर्व इसके अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। संवत् १४१२ में श्री शांतिनाथचरित्र की प्रतिलिपि करवाई गई, उसमें अभयचन्द्रसूरि का उल्लेख है। गुणचन्द्रसूरि ने ११८१ रत्नकरावतारिकाटिप्पण लिखा है एवं आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के न्यायावतार सूत्र पर निवृत्तिकुलीय सिद्धर्षि द्वारा वृत्ति की १४५३ में प्रतिलिपि करवाई। इसमें रामचन्द्रसूरि का उल्लेख है। पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक आचार्य चन्द्रप्रभसूरि कृत सम्यक्त्वरत्न महोदधि की तिलकाचार्य द्वारा रची गई टीका पुण्यप्रभसूरि को प्रदत्त की गई। इसी प्रकार विजयचन्द्रसूरि के शिष्य ( श्रावक) कीर्ति द्वारा रचित आरामशोभा चौपई ( संवत् १५३५) रचना की । इस गच्छ के संवत् १४३३ से १६२४ तक ५३ लेख प्राप्त होते हैं 1 २६. भीमपल्लीयाशाखा - पूर्णिमापक्ष चन्द्रकुल / चन्द्रगच्छ में उद्भुत गच्छों में पूर्णिमागच्छ भी एक है। यह गच्छ पाक्षिक पर्व पूर्णिमा को मनाए जाने का आधार रखता है । संवत् १९४९ या संवत् ११५९ में जयसिंहसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभसूरि इस गच्छ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इस शाखा में देवचन्द्रसूरि पार्श्वचन्द्रसूरि, जयचन्द्रसूरि, भावचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि, विनयचन्द्रसूरि आदि महत्त्वपूर्ण आचार्य हुए हैं । १५वीं शताब्दी से लेकर १८वीं शताब्दी तक इनके मूर्तिलेख प्राप्त होते हैं। संवत् १४५९ पार्श्वचन्द्रसूरि से लेकर १५९८ विनयचन्द्रसूरि तक ५३ लेख प्राप्त होते हैं। जयचन्द्रसूरि ने १५०४ में पार्श्वनाथ चरित्र की प्रतिलिपि करवाई थी । पूर्णिमागच्छीय किन्ही जयराजसूरि ने मत्स्योदर रास ( संवत् १५५३), विद्यारत्नसूरि के कुर्मापुत्र संवत् १५७७ प्राप्त होते हैं ।
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२७. ब्रह्माणगच्छ - चैत्यवासी गच्छों से संबंधित ब्रह्माणगच्छ भी एक है संवत् ११२४ प्रद्युम्नसूरि से लेकर संवत् १५९२ श्रीसूरि तक २३४ लेख प्राप्त होते हैं । देवचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिचन्द्रसूरि को भवभावनाप्रकरण की प्रथम बार वाचना की थी । संवत् १५२७ की नेमिनाथ चरित्र की प्रतिलिपि भी
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