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________________ प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति, समुद्रघोषसूरि के शिष्य मुनिरत्नसूरि कृत अममस्वामिचरित महाकाव्य, मलयसुन्दरसूरि का प्रश्नोत्तरसंग्रहवृत्ति, तिलकाचार्य का प्रत्येकबुद्धचरित, रत्नप्रभसूरि का पुण्डरीकचरित, देवानन्दसूरि कृत क्षेत्रसमासवृत्ति (संवत् १४५५), गुणसमुद्रसूरि के शिष्य सत्यराजगणि कृत श्रीपालचरित्र (संवत् १५७५), उदयसमुद्रसूरि कृत पूर्णिमागच्छ पट्टावली (संवत् १५८०) प्राप्त हैं। रचना प्रशस्ति के आधार पर कई परम्पराओं के आचार्यों की इस ग्रन्थ में तालिका दी गई है। २४. पूर्णिमागच्छ-ढंढेरिया शाखा - यह पूर्णिमागच्छ की प्रधान शाखा है। इस शाखा के प्रथम आचार्य समुद्रघोषसूरि के द्वितीय शिष्य सूरप्रभसूरि माने गए हैं। इस शाखा में आचार्य जयसिंहसूरि, जयप्रभसूरि, भुवनप्रभसूरि, यशतिलकसूरि, कमलप्रभसूरि, पुण्यप्रभसूरि और ललितप्रभसूरि आदि कई प्रमुख विद्वान् आचार्य हो चुके हैं। इस शाखा के १५२० जयप्रभसूरि से लेकर १७९८ भावप्रभसूरि तक ५५ लेख प्राप्त होते हैं। श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने ढंढेरिया शाखा की एक पट्टावली दी है जिसके अनुसार लेखक ने वंशावली भी दी है। २५. सार्धपूर्णिमागच्छ - चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) की एक शाखा का वडगच्छ से ११५९ में उत्पन्न पूर्णिमागच्छ की शाखा के रूप में यह सार्धपूर्णिमागच्छ माना जाता है। विभिन्न पट्टावलियों के अनुसार पूर्णिमागच्छीय आचार्य सुमतिसिंहसूरि द्वारा विक्रम संवत् १२३६ में पाटण में इस शाखा का उदय माना गया है। महाराजा कुमारपाल ने नये गच्छों के मुनिजनों का अपने राज्य में प्रवेश निषेध करा दिया था। वहीं विक्रम संवत् १२३६ में पूर्णिमागच्छीय आचार्य सुमतिसिंहसूरि विहार करते हुए पाटण पहुँचे और वहाँ स्वयं को सार्धपूर्णिमागच्छीय बतलाकर प्रवेश किया। यह शाखा भी संडेरगच्छ, भावदेवाचार्यगच्छ, राजगच्छ, चैत्रगच्छ, नाणकीयगच्छ, वडगच्छ के समान चतुर्दशी को ही पाक्षिक पर्व मानता था। इसका उद्भव १२३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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