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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास महत्त्वपूर्ण कृति की प्रतिलिपि करायी गयी। सुविहितशिरोमणि पद्मचन्द्र उपाध्याय
भट्टारक पृथ्वीचन्द्रसूरि
प्रभानन्दसूरि [वि०सं० १३९० / ई. सन् १३३४ में जम्बूद्वीपसंग्रहणीप्रकरणटीका के रचनाकार, इनके उपदेश से वि० सं० १३९१ / ई. स. १३३५ में त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रतिलिपि की गयी]
कृष्णर्षिगच्छ का उल्लेख करने वाला तृतीय साहित्यिक साक्ष्य है इसी गच्छ के आचार्य जयसिंहसूरि द्वारा रचित कुमारपालचरित (रचनाकाल वि०सं० १४२२। ई० १३६६) की प्रशस्ति, जिसके अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरुपरम्परा दी है । इसके अनुसार चारण (वारण) गण की वज्रनागरी शाखा के... कुल में कृष्ण नामक महातपस्वी मुनि हुए। उनकी परम्परा में निर्ग्रन्थचूडामणि आचार्य जयसिंहसूरि हुए, जिन्होंने वि० सं० १३०१ / ई. स. १२४५ में मरुभूमि से मंत्रशक्ति द्वारा जल निकाल कर प्यास से व्याकुल श्रीसंघ की प्राणरक्षा की । इनके शिष्य प्रभावक शिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि हुए। इनके पट्टधर निःस्पृहशिरोमणि महेन्द्रसूरि हुए, जिनका सम्मान मुहम्मदशाह ने किया था। इन्हीं के शिष्य जयसिंहसूरि हुए, जिन्होंने वि० सं० १४२२ / ई. सन् १३६६ में उक्त कृति की रचना की जिसकी प्रथमादर्श प्रति इनके प्रशिष्य नयचन्द्रसूरि ने लिखी ।
कृष्णमुनि
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