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________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति इस ग्रन्थ की एक प्रति शान्तिनाथ जैन ग्रंथ भण्डार, खंभात में संरक्षित है। इसे उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि के शिष्य सिद्धसूरि के उपदेश से वि.सं. १३५२ / ई० सन् १२९५ में श्रावक गोसल के पुत्र सङ्घपति आशाधर ने लिपिबद्ध कराया : १४४ देवगुप्तसूरि T सिद्धसूरि Jain Education International नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध अपरनाम शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारप्रबन्ध शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारक समरसिंह के गुरु उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि के पट्टधर कक्कसूरि ने वि० सं० १३९३ में कञ्जरोटपुर में उक्त कृति की रचना की । इसमें समरसिंह द्वारा शत्रुञ्जय पर कराये गये जीर्णोद्धार एवं उपकेशगच्छ के सम्बन्ध में विवरण प्राप्त होता है । श्री लालचन्द भगवानदास गांधी ने अपने विद्वत्तापूर्ण लेख' में कक्कसूरि की गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - रत्नप्रभसूरि T यक्षदेवसूरि - कक्कसूरि I सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि [वि० सं० १३५२ / ई० सन् १२९५ में इनके उपदेश से उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि की गयी ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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