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________________ १४३ उपकेश गच्छ देवगुप्तसूरि की कृति पर बृहदवृत्ति की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - कक्कसूरि जिनचन्द्रगणि / देवगुप्तसूरि [नवपदप्रकरण के रचनाकार] कक्कसूरि [पञ्चप्रमाण के कर्ता] सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि धनदेव/यशोदेव उपाध्याय [वि०सं० ११६५/ई० सन् ११०८ में नवपदप्रकरणबृहवृत्ति के रचनाकार] यशोदेवउपाध्याय ने वि० सं० ११७८ / ई० सन् ११२१ में प्राकृत भाषा में (६४०० गाथाओं) चन्द्रप्रभचरित की भी रचना की। ३. क्षेत्रसमासवृत्ति - ३००० श्लोक परिमाण यह कृति उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि द्वारा वि०सं० ११९२ में रची गयी है। इसकी प्रशस्ति में वृत्तिकार की गुरु-परम्परा का जो उल्लेख मिलता है, वह इस प्रकार है कक्कसूरि सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि [क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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