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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उपकेशगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों की कृतियों की प्रशस्तिया, मुनिजनों के अध्ययनार्थ अथवा प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी प्राचीन ग्रन्थों की दाता प्रशस्तियाँ, दो प्रबन्ध (उपकेशगच्छप्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध - रचनाकाल - वि० सं० १३९३/ई० सन् १३३६) और उपकेशगच्छ की कुछ पट्टावलियाँ उपलब्ध हैं । इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा बड़ी संख्या में प्रतिष्ठापित जिन-प्रतिमायें मिली हैं, जिनमें से अधिकांशतः लेखयुक्त हैं। साम्प्रत लेख में उक्त साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है
१. नवपयपयरण (नवपदप्रकरण) -महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में रचित १३७ पद्यों की यह रचना उपकेशगच्छीय कक्कसूरि के विद्वान् शिष्य जिनचन्द्रगणि पूर्वनाम कुलचन्द्र (देवगुप्तसूरि) की अनुपम कृति है । रचनाकार ने अपनी इस कृति पर वि० सं० १०७३/ई० सन् १०१६ में वृत्ति की रचना की, जिसका नाम श्रावकानन्दकारिणी है।'
कक्कसूरि
कुलचन्द्र / जिनचंद्रगणि अपरनाम देवगुप्तसूरि [वि० सं० १०७३/ ई० सन्
१०१६ में नवपदप्रकरण
सटीक के रचनाकार वाचक उमास्वाति के तत्त्वार्थाधिगमसूत्र की ३१ उपोद्धातकारिका की टीका करने वाले देवगुप्तसूरि भी शायद यही देवगुप्तसूरि हों !
२. नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति - उपकेशगच्छीय धनदेव अपरनाम यशोदेवउपाध्याय ने वि०सं० ११६५ में अपने पूर्वज जिनचन्द्रगणि अपरनाम
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