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उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
पूर्वमध्यकालीन श्वेताम्बर गच्छों में उपकेशगच्छ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। जहाँ अन्य सभी श्वेताम्बर गच्छ भगवान् महावीर से अपनी परम्परा जोड़ते हैं, वहीं उपकेशगच्छ अपना सम्बन्ध भगवान् पार्श्वनाथ से जोड़ता है। अनुश्रुति के अनुसार इस गच्छ की उत्पत्ति का स्थान राजस्थान प्रदेश में स्थित ओसिया (प्राचीन उपकेशपुर) माना जाता है। परम्परानुसार इस गच्छ के आदिम आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीर सम्वत् ७० में ओसवाल जाति की स्थापना की, परन्तु किसी भी ऐतिहासिक साक्ष्य से इस तथ्य की पुष्टि नहीं होती । ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ओसवालों की स्थापना
और इस गच्छ की उत्पत्ति का समय ईस्वी सन् की आठवीं शती के पूर्व नहीं माना जा सकता।
चैत्यवासी आम्नाय में उपकेशगच्छ का विशिष्ट स्थान है। इस गच्छ में कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि और सिद्धसूरि इन तीन नामों की प्रायः पुनरावृत्ति होती रही है। उपकेशगच्छ में कई विद्वान् एवं प्रभावक आचार्य
और मुनिजन हुए हैं, जिन्होंने साहित्योपासना के साथ-साथ नवीन जिनालयों के निर्माण और प्राचीन जिनालयों के जीर्णोद्धार तथा जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना द्वारा पश्चिम भारत में श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय को जीवन्त बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
अन्य गच्छों की भाँति उपकेशगच्छ से भी कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ, जैसे वि० सं० १२६६/ई० सन् १२१० में द्विवंदनीक शाखा, वि० सं० १३०८/ई० सन् १२५२ में खरतपाशाखा तथा वि० सं० १४९८/ई० सन् १४४१ में खादिरीशाखा अस्तित्व में आयी।
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