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________________ ३६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्राणरक्षा की थी) के गुरु (नयचन्द्रसूरि ?) से समीकृत किया जा सकता है । किन्तु इनके शिष्य प्रसन्नचन्द्रसूरि और वि० सं० १३७९ में प्रतिमाप्रतिष्ठापक प्रसन्नचन्द्रसूरि को अभिन्न मानने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि दोनों आचार्यों की कालावधि में पर्याप्त अन्तर है। वि० सं० १४१७ के प्रतिमालेख में उल्लिखित जयसिंहसूरि कुमारपालचरित और न्यायतात्पर्यदीपिका (रचनाकाल वि० सं० १४२२/ई० स० १३६६) के रचनाकार जयसिंहसूरि से निश्चय ही अभिन्न हैं। वि० सं० १४८३ से वि० सं० १५०५ के मध्य प्रतिमाप्रतिष्ठापक नयचन्द्रसूरि और हम्मीरमहाकाव्य (रचनाकाल वि० सं० १४४४ / ई० स० १३८८) और रम्भामंजरीनाटिका के कर्ता नयचन्द्रसूरि को उनके कालावधि के आधार पर अलग - अलग आचार्य माना जा सकता है और यह कहा जा सकता है कि वि० सं० १४४४ और वि० सं० १४८३ के मध्य जयसिंहसूरि और प्रसन्नचन्द्रसूरि ये दो आचार्य हुए, परन्तु उनके बारे में हमें कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित लक्ष्मीसागरसूरि (वि० सं० १५२४) और जयशेखरसूरि (वि० सं० १५८४) के बारे में हमें अन्यत्र कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। .. इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा निर्मित तालिकाओं के परस्पर समायोजन से कृष्णर्षिगच्छीय मुनिजनों के आचार्य परम्परा की एक विस्तृत तालिका बनती हैं, जो इस प्रकार है : वाचक हरिगुप्त [तोरमाण के गुरु] कवि देवगुप्त [सुपुरुषचरिय या त्रिपुरुषचरिय के रचनाकार] शिवचन्द्रगणि महत्तर [भिन्नमाल में स्थिरवास] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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