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________________ ३६३ कृष्णर्षि गच्छ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के कुछ मुनिजनों की गुरु-परम्परा की एक तालिका इस प्रकार बनायी जा सकती है : नयचन्द्रसूरि (प्रथम) [वि० सं० १२८७] प्रसन्नचन्द्रसूरि (प्रथम) जयसिंहसूरि [वि० सं० १३७९] [वि० सं० १४१७] प्रसन्नचन्द्रसूरि (द्वितीय) नयचन्द्रसूरि (द्वितीय) [वि० सं० १४८३- । १५०६] जयसिंहसूरि जयचन्द्रसूरि [वि० सं० १५२१-३२] [वि० सं० १५३४] लक्ष्मीसागरसूरि [वि० सं० १५२४] जयसिंहसूरि [वि० सं० १५९५] अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा निर्मित इस तालिका में नयचन्द्रसूरि, प्रसन्नचन्द्रसूरि और जयसिंहसूरि ये तीन नाम कुमारपालचरित और हम्मीरमहाकाव्य की प्रशस्तियों में भी आ चुके हैं। दोनों ही साक्ष्यों में इन नामों की प्रायः पुनरावृत्ति होती रही है । इस आधार पर कहा जा सकता है कि कृष्णर्षिगच्छ की इस शाखा में पट्टधर आचार्यों को जयसिंहसूरि, प्रसन्नचन्द्रसूरि और नयचन्द्रसूरि ये तीन नाम प्रायः प्राप्त होते रहे । उक्त तर्क के आधार पर वि० सं० १२८७ के प्रतिमालेख में उल्लिखित नयचन्द्रसूरि को निर्ग्रन्थचूडामणि जयसिंहसूरि (जिन्होंने वि० सं० १३०१ में मरुभूमि में भीषण ताप के समय मंत्रशक्ति द्वारा भूमि से जल निकाल कर श्रीसंघ की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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