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________________ ५२८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पूर्णभद्रसूरि (वि० सं० १११० / ई० स० १०५४ में राजा रघुसेन द्वारा निर्मित जिनालय में प्रतिमा प्रतिष्ठापक) साहित्य स्त्रोतों में देखा जाये तो थारापद्रगच्छ के नमिसाधु द्वारा प्रणीत दो कृतियाँ मिली हैं : १. षडावश्यकसूत्रवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १९२२ / ई० स० १०६५) २. काव्यालंकारटिप्पन' (रचनाकाल वि० सं० ११२५ / ई० स० १०६८) उक्त रचनाओं की प्रशस्तियों में ग्रन्थकार ने स्वयं को थारापद्रगच्छीय शालिभद्रसूरि का शिष्य बतलाया है । शालिभद्रसूरि नमिसाधु Jain Education International के प्रणेता) इसी गच्छ के शालिभद्रसूरि अभिधानधारक एक और आचार्य ने वि० सं० ११३९ / ई० स० १०८३ में सटीक बृहत्संग्रहणीप्रकरण की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुर्वावली इस प्रकार दी है - शीलभद्रसूरि I पूर्णभद्रसूरि (षडावश्यकसूत्रवृत्ति एवं काव्यालंकारटिप्पन 1 शालिभद्रसूरि (वि० सं० ११३९ / ई० स० १०८३ में सटीक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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