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आगमिक गच्छ
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सोमरत्नसूरि [वि० सं० १५४८-८१ ]
प्रतिमालेख
कल्याणराजसूरि __अमररत्नसूरिशिष्य
[अमररत्नसूरिफागु
के कर्ता]
गुणनिधानसूरि क्षमाकलश [ वि० सं० १५५१ में
सुन्दरराजारास एवं वि० सं० १५५३ में ललिताङ्गकुमाररास के
कर्ता] उदयरत्नसूरि[ वि० सं० १५८६-८७ ] प्रतिमालेख
सौभाग्यसुन्दरसूरि गुणमेरुसूरि [ वि० सं० १६१०] । प्रतिमालेख
मतिसागरसूरि धर्मरत्नसूरि [वि० सं० १५९४ में
लघुक्षेत्रसमासचौपाई
के रचनाकार] मेघरत्नसूरि
जैसा कि पूर्व में ही स्पष्ट किया जा चुका है, अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसूरि और सोमतिलकसूरि से आगमिकगच्छ की दो शाखायें अस्तित्व में आयीं । अमरसिंहसूरि की शिष्यसंतति आगे चलकर धंधूकीया शाखा के नाम से जानी गयी । उसी प्रकार सोमतिलकसूरि की शिष्य परम्परा विडालंबीयाशाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई।
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