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________________ जालिहरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास विद्याधरकुल (बाद में विद्याधरगच्छ) की द्वितीय शाखा जालिहर (प्राचीन जाल्योधर) नामक स्थान से सम्बद्ध होने के कारण जालिहरगच्छ | जाल्योधरगच्छ के नाम से विख्यात हुई । यह गच्छ कब और किस कारण से अस्तित्व में आया ? इस गच्छ के पुरातन आचार्य कौन थे, इस बारे में सूचना अनुपलब्ध है । यद्यपि इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत मात्र दो प्रशस्तियां तथा अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत कुल ८ प्रतिमालेख ही उपलब्ध हैं, तथापि उनमें इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने के लिये पर्याप्त विवरण संग्रहीत हैं। यहां उन्हीं साक्ष्यों के विवेचन के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। ___ अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों, तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण एवं विवेचन किया गया है - साहित्यिक साक्ष्य १. नन्दिपददुर्गवृत्ति' - इस रचना की वि० सं० १२२६ / ई० सन् ११६९ की एक प्रति जैसलमेर के ग्रन्थभंडार में संरक्षित है। इस प्रति की दाताप्रशस्ति से ज्ञात होता है कि जालिहरगच्छीय बालचन्द्रसूरि के शिष्य गुणभद्रसूरी की प्रेरणा से यह प्रतिलिपि लिखी गयी। जालिहरगच्छीय बालचन्द्रसूरि गुणभद्रसूरि [वि० सं० १२२६ / ई०सन् ११६९ में इनकी प्रेरणा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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