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श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय
उत्पत्ति हुई। इस गच्छ में यशोभद्रसूरि सर्वाणंदसूरि, विजयसिंहसूरि, अमरसिंहसूरि, हेमरत्नसूरि, अमररत्नसूरि, सोमप्रभसूरि, आनन्दप्रभसूरि आदि कई प्रभावक आचार्य हुए जिन्होंने साहित्यसेवा और धार्मिक क्रियाकलापों से श्वेताम्बर श्रमणसंघ को जीवन्त बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
आगमिकगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में आज साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध होते हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा लिखे गये ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ तथा कुछ पट्टावलियाँ आदि हैं । इस गच्छ से सम्बद्ध लगभग २०० प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं जो वि०सं० १४२० से लेकर वि० सं० १६८३ तक के हैं । उपलब्ध साक्ष्यों से इस गच्छ की दो शाखाओं-धंधूकीया और विलाबंडीया का पता चलता है ।
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उपकेशगच्छ - पूर्वमध्यकालीन और मध्यकालीन श्वेताम्बर परम्परा में उपकेशगच्छ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । जहाँ अन्य सभी गच्छ भगवान् महावीर से अपनी परम्परा जोड़ते हैं, वहीं उपकेशगच्छ अपना सम्बन्ध भगवान् पार्श्वनाथ से जोड़ता है । अनुश्रुति के अनुसार इस गच्छ का उत्पत्ति स्थल उपकेशपुर (वर्तमान ओसिया - राजस्थान) माना जाता है । परम्परानुसार इस गच्छ के आदिम आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीर सम्वत् ७० में ओसवाल गच्छ की स्थापना की, परन्तु किसी भी प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य से इस बात की पुष्टि नहीं होती । ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ओसवालों की स्थापना और इस गच्छ की उत्पत्ति का समय ईस्वी सन् की आठवीं शती के पूर्व नहीं माना जा सकता ।
उपकेशगच्छ में कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि और सिद्धसूरि इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की प्राय: पुनरावृत्ति होती रही है, जिससे प्रतीत होता है कि इस गच्छ के अनुयायी श्रमण चैत्यवासी रहे होंगे । इस गच्छ में विभिन्न प्रभावक और विद्वान् आचार्य हो चुके हैं जिन्होंने साहित्योपासना के साथ-साथ नवीन जिनालयों के निर्माण, प्राचीन जीनालयों के जीर्णोद्धार नूतन जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना द्वारा पश्चिम भारत में श्वेताम्बर श्रमण परम्परा को जीवन्त बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
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