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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास __ अन्यान्य गच्छों की भाँति उपकेशगच्छ से भी कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ । जैसे वि०सं० १२६६/ईस्वी सन् १२१० में द्विवंदनीक शाखा, वि०सं० १३०८/ईस्वी सन् १२५२ में खरतपाशाखा तथा वि.सं. १४९८१ ईस्वी सन् १४४२ में खादिरी शाखा अस्तित्व में आयी। इसके अतिरिक्त इस गच्छ की दो अन्य शाखाओं-ककुदाचार्यसंतानीय और सिद्धाचार्यसंतानीय का भी पता चलता है, किन्तु इनकी उत्पत्तिकाल के सम्बन्ध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती।
उपकेशगच्छ के इतिहास से सम्बद्ध पर्याप्त संख्या में इस गच्छ के मुनिजनों के कृतियों की प्रशस्तियाँ, मुनिजनों के अध्ययनार्थ या उनकी प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी प्राचीन ग्रन्थों की दाताप्रशस्तियाँ तथा दो प्रबन्ध (उपकेशगच्छप्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध-रचनाकाल वि०सं० १३९३/ईस्वी सन् १३३६) और उपकेशगच्छ की कुछ पट्टावलियाँ उपलब्ध हैं।
इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में जिनप्रतिमायें प्राप्त होती हैं जिनमें से अधिकांश लेखयुक्त हैं । इसके अतिरिक्त इस गच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से निर्मित सर्वतोभद्रयंत्र, पंचकल्याणकपट्ट, तीर्थंकरों के गणधरों की चरणपादुका आदि पर भी लेख उत्कीर्ण हैं । ये सभी लेख वि०सं० १०११ से वि०सं० १९१८ तक के हैं । उपकेशगच्छ के इतिहास के लेखन में उक्त साक्ष्यों का विशिष्ट महत्त्व है। ___ उपकेशगच्छीय साक्ष्यों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि वि.सं. की १०वीं शताब्दी से लेकर वि०सं० की १६वीं शताब्दी तक इस गच्छ के मुनिजनों का समाज पर विशेष प्रभाव रहा, किन्तु इसके पश्चात् इसमें न्यूनता आने लगी, फिर भी २०वीं शती के प्रारम्भ तक निर्विवाद रूप से इस गच्छ का स्वतन्त्र अस्तित्व बना रहा ।
काशहृदगच्छ-अर्बुदगिरि की तलहटी में स्थित काशहद (वर्तमान कासीन्द्रा या कायन्द्रा) नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। जालिहरगच्छ के देवप्रभसूरि द्वारा रचित पद्मप्रभचरित (रचनाकाल वि०सं०१२५४/ईस्वी सन्
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