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श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय
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१९९८) की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि काशहद और जालिहर ये दोनों विद्याधरगच्छ की शाखायें हैं । यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस गच्छ के आदिम आचार्य कौन थे, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । प्रश्नशतक और ज्योतिषचतुर्विंशतिका के रचनाकार नरचन्द्र उपाध्याय इसी गच्छ के थे । प्रश्नशतक का रचनाकाल वि० सं० १३२४ / ईस्वी सन् १२७८ माना जाता है । विक्रमचरित (रचनाकाल वि० सं० १४७१ / ईस्वी सन् १४१५ के आसपास) के रचनाकार उपाध्याय देवमूर्ति इसी गच्छ के थे । इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ प्रतिमालेख भी प्राप्त होते हैं जो वि० सं० १२२२ से वि० सं० १४१६ तक के हैं ।
उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर विक्रम सम्वत् की १३वीं शती से १५वीं शती के अन्त तक इस गच्छ का अस्तित्व सिद्ध होता है । इस गच्छ सम्बद्ध साक्ष्यों की विरलता को देखते हुए यह माना जा सकता है कि अन्य गच्छों की अपेक्षा इस गच्छ के अनुयायी श्रावकों और श्रमणों की संख्या अल्प थी । १६वीं शती से इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों के नितान्त अभाव होने से यह कहा जा सकता है कि इस समय तक इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया ।
कृष्णर्षिगच्छ- प्राक्मध्ययुगीन और मध्ययुगीन श्वेताम्बर आम्नाय के गच्छों में कृष्णर्षिगच्छ भी एक है। आचार्य वटेश्वर क्षमाश्रमण के प्रशिष्य और यक्षमहत्तर के शिष्य कृष्णमुनि की शिष्य संतति अपने गुरु के नाम पर कृष्णर्षिगच्छीय कहलायी । धर्मोपदेशमालाविवरण ( रचनाकाल वि० सं० ९१५ / ईस्वी सन् ८५९ ) के रचयिता जयसिंहसूरि, प्रभावकशिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि, निस्पृहशिरोमणि महेन्द्रसूरि कुमारपालचरित ( वि० सं० १४२२ / ईस्वी सन् १३६६ ) के रचनाकार जयसिंहसूरि, हम्मीरमहाकाव्य ( रचनाकाल वि०सं० १४४४ / ईस्वी सन् १३८६) और रम्भामंजरीनाटिका के कर्ता नयचन्द्रसूरि इसी गच्छ के थे । इस गच्छ में जयसिंहसूरि, प्रसन्नचंन्द्रसूरि, नयचन्द्रसूरि इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति मिलती है, जिससे अनुमान होता है कि यह चैत्यवासी गच्छ था । इस गच्छ से सम्बद्ध पर्याप्त संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं जो वि०सं० १२८७ से वि०सं० १६१६ तक के हैं ।
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