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________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास __ अभिलेखीय साक्ष्यों से इस गच्छ की कृष्णर्षितपाशाखा का भी उल्लेख प्राप्त होता है। इस शाखा के वि०सं० १४५० से १४७३ तक के लेखों में पुण्यप्रभसूरि, वि०सं० १४८३-१४८७ के लेखों में शिष्य जयसिंहसूरि तथा वि०सं० १५०३१५०८ के लेखों में जयसिंहसूरि के प्रथम पट्टधर जयशेखरसूरि तथा वि०सं० १५१० के एक लेख में उनके द्वितीय पट्टधर कमलचन्द्रसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु इस शाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह शाखा कब अस्तित्व में आयी, इस सम्बन्ध में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। वि०सं० की १७वीं शती के पश्चात् कृष्णर्षिगच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों का अभाव है। इससे प्रतीत होता है कि इन समय तक इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो चुका था। कोरंटगच्छ-आबू के निकट कोरटा (प्राचीन कोरंट) नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। उपकेशगच्छं की एक शाखा के रूप में इस गच्छ की मान्यता है। इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों को कक्कसूरि, सर्वदेवसूरि और नन्नसूरि ये तीन नाम पुनः-पुनः प्राप्त होते रहे । इस गच्छ का सर्वप्रथम उल्लेख वि०सं० १२०१ के एक प्रतिमालेख में और अन्तिम उल्लेख वि०सं० १६१९ में प्रतिलिपि की गयी राजप्रश्नीयसूत्र की दाताप्रशस्ति में प्राप्त होता है। इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र कुछ दाताप्रशस्तियाँ तथा बड़ी संख्या में प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं । ये लेख वि०सं० १६१२ तक के हैं। लगभग ४०० वर्षों के अपने अस्तित्वकाल में इस गच्छ के अनुयायी श्रमण शास्त्रों के पठन-पाठन की अपेक्षा जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा में ही अधिक सक्रिय रहे। खंडिलगच्छ-इस गच्छ के कई नाम मिलते हैं यथा भावडारगच्छ, कालिकाचार्यसंतानीय, भावड़गच्छ, भावदेवाचार्यगच्छ, खंडिल्लगच्छ आदि । प्रभावकचरित में चन्द्रकुल की एक शाखा के रूप में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है। इस गच्छ में पट्टधर आचार्यों को भावदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, वीरसूरि और जिनदेवसूरि ये चार नाम पुनः-पुनः प्राप्त होते रहे । पार्श्वनाथचरित (रचनाकाल वि०सं० १४१२/ईस्वी सन् १३५६) के रचनाकार भावदेवसूरि इसी गच्छ के थे। इसकी प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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