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________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास में लिखी होती हैं । ये भी दो प्रकार की होती हैं । प्रथम वे जो किन्हीं मुनिजनों या श्रावक द्वारा स्वयं के अध्ययनार्थ लिखी गयी होती हैं और दूसरी वे जो श्रावकों द्वारा स्वयं के अध्ययनार्थ या किन्हीं मुनिजनों को भेंट देने हेतु दूसरों से (लेहिया से) द्रव्य देकर लिखवाई जाती हैं । ___ गच्छों के इतिहास की सामग्री की दृष्टि से प्रशस्तियाँ राजाओं के दानपत्रों और मन्दिरों के शिलालेखों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं । तथ्य की दृष्टि से इनमें कोई अन्तर नहीं होता; अन्तर यही है कि एक पाषाण या ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण होता है तो दूसरा ताड़पत्र या कागजों पर ।। गुजरात के पाटण, खंभात, अहमदाबाद, बड़ौदा और लिम्बडी; राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, कोटा आदि तथा भण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्सिट्यूट, पुणे के ग्रन्थ भण्डारों में जैन ग्रन्थों का विशाल संग्रह विद्यमान है । पीटर पीटर्सन, मुनि जिनविजयजी, मुनि पुण्यविजयजी, श्री चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, पण्डित लालचन्द भगवान गांधी, प्रो. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, पण्डित अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह, डॉ. विधात्री वोरा, श्री जौहरीमल पारेख आदि विद्वानों के अथक परिश्रम से उक्त भण्डारों के विस्तृत सूचिपत्र प्रकाशित हो चुके हैं । इनका विवरण इस प्रकार है। 1. P. Peterson, Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, Vol. I-VI, Bombay 1882-1898 A.D. 2. C.D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandaras at Pattan, Vol. 1, G.O.S. No. LXXVI, Baroda 1937. 3. H.R. Kapadia, Descriptive Catalogue of the Government Collections of Manuscripts deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. XVII-XIX, Poona 1935-1977. 4. Muni Punya Vijaya, Catalogue of Palm-Leaf Mss. in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay. Vol. I, II, G.O.S., Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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