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१७. वही, पृष्ठ २२६७.
१८. वही, पृष्ठ २२६८ १९. वही
२०. मुनि जिनविजय- विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ ८.
२१. देसाई, पूर्वोक्त, प्रथम संस्करण, भाग ३, खंड २, पृष्ठ २२६९. २२. संवत् १४७९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि षष्ठ्यां रवौ श्री श्री उपकेशगच्छे श्री सिद्धाचार्य संताने
जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
एवंविधगुणोपेतभट्टारकश्री श्रीदेवगुप्तसूरीणामादेशेन शिष्याणुरुपाध्याय श्रीविनयप्रभेण आत्मपठनार्थ श्रीनेमिचन्द्रसूरिविरचिता श्रीउत्तराध्ययन- लघुवृत्तिर्नि (नि) जसंच(?) पुस्तके निजगुर्वाज्ञया लिषापिता लेषकेन लिखिता श्रीउत्तराध्ययनवृत्तिः संपूर्णा ॥
२६.
Kapadiya, H.R. - Descriptive Catalogue of the Govt. Collections of the Mss deposited at the B. O. R. I., Pune, Volume XVII Part III (Pune - 1940) Pg. 32-33.
२३. संवत पन्नर वरस अकसट्ठि, वैशाख पंचमी शुदि गुरुहिं गरिठ्ठा । नक्षत्र मृगशिर योग सकर्मा, कधी चउपई दिन जाणी ॥ ३४ ॥
उवएसगच्छ तणा शृंगार, सिद्धसूरि गुरु लब्धिभंडार । सद्गुरु नामइ गच्छ संतान, वंदिइ भवियण महिमानिधान ॥ ३५ ॥
कक्कसूरि तस पाटि मुणींद, आगम कमला विकासन दिणंद । लोपी मिथ्यामय विषकंद, समकित अमृतकला गुरु चंद || ३६ ||
सूरि शीरोमणी देवगुप्त, जाइ पाय जस नाम पवित्त । विघ्न टलइ सवि संपद मिलइ, गुरु नामइ चिंतित फलइ ॥ ३७ ॥
चितामणी कामधेनु समान, रत्नत्रय जिम नाम प्रधान । अलिय निवारी देव सचि आवी, वीरजिणेश्वर नमइशि भावि ॥ ३८ ॥
कक्कसूरि केरा शिष्य, श्री धर्महंस पय नामक शिष्य । धर्म्मरुचि बोलइ तास पसाइ, रची चउपर अजापुत्रराय ॥ ३९ ॥
देसाई, पूर्वोक्त, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ २१८-२१९.
२४. मुनि कान्तिसागर - शत्रुञ्जयवैभव, पृष्ठ १२६-१२७.
२५. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जकविओ- - भाग १ (नवीन संस्करण, बम्बई
१९८५) पृष्ठ १९४-१९६.
अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २१३१ - २१५१.
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