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उपकेश गच्छ
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तस पाटे संपइ जयवंतो, गच्छनायक महिमा गुणवंतो, कक्कसूरि गुरुराय ॥ २७ ॥ सई हत्थ थापीय तिणि गुणहारा, गुणवन्त सीलसुन्दर सारा, वारीय जिणि अणंगो, तास सीस मतिसेहर हरसिहि, पनरइ सई चउदोत्तर वरसिहि, कीयो कवित अतिअंगो ॥२८॥
मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगुर्जरकविओ - भाग १, (नवीन संस्करण, अहमदाबाद - १९८६ ई०) पृष्ठ १०७.
१०. देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ १०७ और आगे.
११. करि संलेहण साध्यां काज, लहिसे मुक्तिपुरीनउ राज । उवसगच्छ गुणगणे गरिठ्ठ, श्री रयणप्पहसूरि वरिठ्ठ ॥ ४५ ॥
तसु अनुक्रम संपइ सिद्धसूरि, तासु सीस वाचक गुणभूरि । हरषसमुद्र नामि गुणसार, तासु सीसइ कहउ विचार ॥ ४६ ॥
विनयसमुद्र वाचक इम भणई, धन्य ति नरनारी जे सुणई । तेहनी सीझई सघली आस, पुणि ते लहिओ शिवपुरि वास ॥ ४७ ॥
अ आरामसोभा चउपइ, भावतणे उपरि मई कही, वरस त्र्यासिये मागसिर मासि, कानरिहि मन उल्लास ॥ ४८ ॥
देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ २८१
१२.
कर गयणंगण रस शशि वर्षे, वर वैशाख मास मन हर्षे । पञ्चमी सोमवार चउसाल, उपबन्ध रची सुविशाल ॥ ९३ ॥
बीकानरहि वीर जिणंद, तासु पसायई परमाणंद । श्री उवसगच्छ सिणगार, taye गिरुओ गणधार ॥ ९४ ॥
प्रकट पारसनाहथी पट्टि, बहुरिमें मुनिजननैं थट्ठि । श्री सिद्धसूरि संपइ सुहकार, कक्कसूरितसु शिष्य उदार ॥ ९५ ॥
तसु आदेशि हर्षसमुद्र, वाचक तेहनै विनयसमुद्र । तिणि विरच्यो अ चरित रसाल, सुणियो कविवर संघ विशाल ।। ९६ ।।
मोहनलाल दलीचन्द देसाई, वही, भाग
१, पृष्ठ २८२-८३.
१३. देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ ११०.
१४. देसाई, जैनगुर्जरकविओ (प्रथम संस्करण) भाग ३, खंड २, पृष्ठ २२५४-२२७६.
१५. वही, पृष्ठ २२६५-२२६६.
१६. वही, पृष्ठ २२६७.
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