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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४. सिद्धसूरिगुरोराज्ञां बिभ्राणः शिरसा भृशम्।
करेष्वग्नीन्दु १३५२ वर्षेऽत्र व्यलीलिखदवाचयत् ॥ २८ ॥
श्रीदेवगुप्तसूरीणां शिष्यः समुदि संसदि । पासमूर्तिस्तदादेशात् किमप्यर्थमभाषत् ।। ३१ ।। ....... जस्येह पुष्पदन्तौ स्थिराविमौ । गुरुभिर्वाच्यमानोऽयं तावन्नन्दतु पुस्तकः ॥ ३२ ॥ संवत् १३५२ वर्षे वर्षाकाले श्रीउपकेशगच्छे ककुदाचार्यसंताने श्रीसिद्धसूरिप्रतिपत्तो सा. देसलसन्ताने सा. गोसलात्मजसंघपतिआशाधरेण श्रीउत्तराध्ययनवृत्तिः ससूत्रा कारिता ॥ Muni Punyavijaya, Ed. Catalogue of Palm-Leaf Manuscripts in the Shantinath Jain Bhandar, Cambay (Baroda 1962-66 A.D.) Pp. 120-123). लालचन्द भगवानदास गान्धी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, [बड़ोदरा, १९६३ ई०] पृष्ठ ५११-५९१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ४२६-२७. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगुर्जरकविओ (प्रथम संस्करण), भाग-३, खण्ड २, पृष्ठ २२५४-२२७६. मुनि जिनविजय - संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह (बम्बई १९५१ ई०) पृष्ठ ७-९. देसाई, जैनगुर्जरकविओ (प्रथम संस्करण), भाग-३, खंड-२, पृष्ठ २२७७२२८५. मुनि दर्शनविजय-संपा० पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, (वीरमगाम १९३३ ई०) पृष्ठ १७७-१९४. मुनि कल्याणविजय - संपा० पट्टावलीपरागसंग्रह (जालौर सं० २०२३) पृष्ठ २३४२३८. श्री उवएसगच्छ सिणगारो पहिलो रयणप्पह गणधारो, गुणि गोयम अवतारो, जकखदेवसूरीय प्रसिद्धो तास पाटि जिणि जगि जस लीधो, संयमसिरि उरिहारो ॥२६॥ अनुक्रमि देवगुपतिसूरीस, सिद्धसूरि नामि तस सीस, मुणिजण सेवीय पाय,
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