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________________ ६४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अमररत्नसूरिशिष्य इतना ही बतलाया है। यह रचना प्राचीनफागुसंग्रह में प्रकाशित है। अमरसिंहसूरि अमररत्नसूरिशिष्य [ रचनाकार ] ३- सुन्दरराजारास-आगमगच्छीय अमररत्नसूरि की परम्परा के कल्याणराजसूरि के शिष्य क्षमाकलश ने वि० सं० १५५१ में इस कृति की रचना की । क्षमाकलश की दूसरी कृति ललिताङ्गकुमाररास वि० सं० १५५३ में रची गयी है। दोनों ही कृतियाँ मरु-गूर्जर भाषा में हैं । इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है, जो इस प्रकार है अमररत्नसूरिशिष्य अमररत्नसूरि सोमरत्नसूरि कल्याणराजसूरि क्षमाकलश [सुन्दरराजारास एवं ललिताङ्गकुमाररास के कर्ता] ४-लघुक्षेत्रसमासचौपाई-यह कृति आगमगच्छीय मतिसागरसूरि द्वारा वि०सं० १५९४ में पाटन नगरी में रची गयी है। इसकी भाषा मरुगुर्जर है। चना के प्रारम्भ और अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा की चर्चा की है, जो इस प्रकार है - सोमरत्नसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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