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________________ उपकेश गच्छ २३७ धर्महंस धर्मरुचि [वि०सं० १५६१/ई. सन् १५०५ में ___ अजापुत्रचौपाई के रचनाकार] साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छ की उक्त शाखाओं (ककुदाचार्यसंतानीय और सिद्धाचार्यसंतानीय) के अतिरिक्त इस गच्छ की एक अन्य शाखा द्विवंदणीकगच्छ या विवंदणीकगच्छ का भी पता चलता है। उपकेशगच्छपट्टावली के अनुसार वि० सं० १२६६ (ई० सन् १२१०)में सिद्धसूरि द्वारा आगमिकगच्छ की सामाचारी और सूरिमंत्र अपनाने के कारण इस शाखा का जन्म हुआ। संभवतः पार्श्व और महावीर दोनों की वन्दना करने के कारण ये द्विवंदणीक कहलाये । इस शाखा की कोई पट्टावली नहीं मिलती है । इस शाखा से सम्बद्ध वि० सं० १३३४ से १५९९ तक के प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं। इस शाखा के १६वीं शती के कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य को सिद्धाचार्यसंतानीय कहा गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि उपकेशगच्छ की द्विवंदणीकशाखा और सिद्धाचार्य संतानीयशाखा का निकट सम्बन्ध रहा है । इस शाखा के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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