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________________ जीरापल्लीगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से उद्भूत गच्छो में बहद्गच्छ या वडगच्छ का महत्त्वपूर्ण स्थान है । पूर्णिमागच्छ, आगमिकगच्छ, अंचलगच्छ, पिप्पलगच्छ आदि बृहद्गच्छ से ही अस्तित्त्व में आये हैं । बृहद्गच्छगुर्वावली' [रचनाकाल - विक्रम सम्वत् की १६वीं शताब्दी] के अनुसार बृहद्गच्छ से उद्भूत पच्चीस शाखा गच्छों में जीरापल्लीगच्छ भी एक है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है जीरापल्ली [राजस्थान प्रान्त के सिरोही जिले में आबू के निकट अवस्थित जीरावला ग्राम] नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्त्व में आया प्रतीत होता है । बृहद्गच्छीय देवचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और जिनचन्द्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि इस गच्छ के प्रवर्तक माने जा सकते हैं । इस गच्छ में वीरसिंहसूरि, वीरचन्द्रसूरि, शालिभद्रसूरि, वीरभद्रसूरि, उदयरत्नसूरि, उदयचन्द्रसूरि, रामकलशसूरि, देवसुन्दरसूरि, सागरचन्द्रसूरि आदि कई मुनिजन हो चुके हैं। इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य मिलते हैं जो सब मिलकर विक्रम सम्वत् की १५वीं शताब्दी से लेकर विक्रम सम्वत् की १७वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक के हैं। किन्तु जहाँ अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १४०६ से लेकर विक्रम सम्वत १५७६ तक के हैं एवं उनकी संख्या भी तीस के लगभग है, वहीं साहित्यिक साक्ष्यों की संख्या मात्र दो है । चूँकि उत्तरकालीन अनेक चैत्यवासी मुनिजन प्राय: पाठन-पाठन से दूर रहते हुए स्वयं को चैत्यों की देखरेख और जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आदि कार्यों में ही व्यस्त रखते थे। अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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